भाजपा ने कहा कि कांग्रेस सरकार सदन में अपना विश्वास मत हासिल नहीं कर पाएगी तो उन्होंने कहा निश्चित रूप से। सौ फीसद। जब उनसे यह पूछा गया कि क्या केंद्र शासित प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगने की संभावना है तो उन्होंने कहा कि यह एकमात्र विकल्प है। जब सुराना से पूछा गया कि क्या कांग्रेस सरकार सदन में अपना विश्वास मत हासिल नहीं कर पाएगी तो उन्होंने कहा, निश्चित रूप से। सौ फीसद। जब उनसे यह पूछा गया कि क्या केंद्र शासित प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगने की संभावना है तो उन्होंने कहा कि यह एकमात्र विकल्प है।
पुड्डुचेरी/नयी दिल्ली :
पुडुचेरी की विधानसभा में कॉन्ग्रेस के तीन और विधायक पार्टी से इस्तीफा देने को तैयार हैं। यह ताजा दावा भाजपा नेता ने शुक्रवार (फरवरी 19, 2021) को किया है। इससे पहले चार कॉन्ग्रेस नेता पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं। इनमें से दो ने भाजपा भी ज्वाइन कर ली है। जिनके नाम ए नमस्सिवम ( A Namassivayam) और ई थेप्पनथन ( E Theeppainthan) हैं।
केंद्र शासित प्रदेश में भाजपा के इंचार्ज निर्मल कुमार सुराणा ने कहा कि अन्य दो कॉन्ग्रेस विधायक- मल्लदी कृष्ण राव और ए जॉन कुमार भी जे पी नड्डा के नेतृत्व वाली भाजपा में शामिल होंगे।
उन्होंने पीटीआई को बताया, “वह दोनों (कॉन्ग्रेस से इस्तीफा देने वाले नेता) भाजपा से जुड़ने वाले हैं। वह हमारे शीर्ष नेतृत्व से बात कर रहे हैं” बीजेपी नेता का मानना है कि कॉन्ग्रेस सदन में शत प्रतिशत विश्वास मत खोने वाली है।
हालाँकि, सवालों के जवाब देते हुए बीजेपी नेता ने उन तीन कॉन्ग्रेस नेताओं के नाम बताने से इंकार किया जो भाजपा से जुड़ने वाले हैं। उन्होंने कहा, “मैं अभी नहीं बता सकता। वह (तीनों विधायक) नारायणस्वामी सरकार से नाखुश हैं और इस्तीफा देना चाहते हैं। ये बात 100 प्रतिशत पक्की है कि वह इस्तीफा देंगे।” सुराणा ने कहा कि जो कोई भी भाजपा की विचारधारा स्वीकारता है और इससे जुड़कर पुडुचेरी के विकास पर काम करना चाहता है, पार्टी उसे लेने को तैयार है।
गौरतलब है कि 22 फरवरी को पुडुचेरी में बहुमत साबित करने की बात उठने के बाद सत्ताधारी कॉन्ग्रेस ने गुरुवार को बैठक की थी । हालाँकि, इसमें पार्टी ने भविष्य की कार्रवाई के बारे में कोई निर्णय नहीं लिया और विश्वास मत से एक दिन पहले फिर से मिलने का संकल्प लिया।
बता दें कि पुडुचेरी की 33 सदस्यीय विधानसभा में कुल 30 विधायक चुनकर आते हैं। ऐसे में वर्तमान में यहाँ स्पीकर समेत कॉन्ग्रेस के दस सदस्य हैं। जबकि इसके गठबंधन सहयोगी DMK के पास तीन सदस्य हैं और माहे क्षेत्र भी स्वतंत्र रूप से इसका समर्थन करता है।
इसी प्रकार नए सदस्यों के जुड़ने के साथ सदन में विपक्ष के कुल 14 सदस्य हो गए हैं, जिन पर कॉन्ग्रेस का कहना है कि उन तीन नेताओं को विपक्ष में अभी नहीं गिना जाना चाहिए जो हाल में शामिल हुए और उन्हें कॉन्फिडेंस मोशन के दौरान वोट करने का भी अधिकार नहीं होना चाहिए। विपक्ष के पास सिर्फ़ 11 की शक्ति है न कि 14 की।
मालूम हो कि साल 2016 में पुडुचेरी के विधानसभा चुनावों में कॉन्ग्रेस ने 15 सीटें जीती थीं। कॉन्ग्रेस को 3 डीएमके और 1 निर्दलीय विधायक का समर्थन मिला था। मगर अब सदन में कॉन्ग्रेस विधायकों की संख्या घटकर 10 हो गई है। 4 विधायक इस्तीफा दे चुके हैं, जबकि एक को पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्त रहने के कारण पार्टी से बाहर निकाला जा चुका है।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2021/02/IMG_20210216_200551.jpg7791080Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2021-02-19 14:33:532021-02-19 14:34:34“मैं अभी नहीं बता सकता। वह (तीनों विधायक) नारायणस्वामी सरकार से नाखुश हैं और इस्तीफा देना चाहते हैं। ये बात 100 % पक्की है कि वह इस्तीफा देंगे।” : निर्मल कुमार सुराणा
राहुल गांधी के दौरे से ए दिन पहले पुडुचेरी में कॉंग्रेस की सरकार अल्पमत में आ गयी है। काँग्रेस राज्यपाल के नाम पर किरन बेदी का इस्तीफा मांगे उससे पहले ही राष्ट्रपति महोदय ने किरण बेदी को राज्यपाल के पद से मुक्त कर दिया, खबर मिलते ही कॉंग्रेस खेमे में एक लहर दौड़ पड़ी और वह लड्डू बांटने लगे। लेकिन मज़े की बात यह है की भाजपा के इस मास्टर स्ट्रोक को कॉंग्रेस न तो समझ पाई न ही उसे पास इसका कोई तोड़ है। किरण बेदी को हटा कर भाजपा ने कॉंग्रेस से एक चुनावी मुद्दा छीन लिया। पुद्द्चेरी में राज्य पाल किरण बेदी एक बड़ा चुनावी मुद्दा थीं। जो अब नहीं रहीं। कॉंग्रेस लड्डुओं ए स्वाद में यहाँ चूक गयी। अब नयी राज्यपाल का अतिरिक्त भार तमिल साई सुंडेरराजन को दिया गया है जो पहले तमिल नाडु में भाजपा की प्रदेशाध्यक्ष हुआ करतीं थीं। सनद रहे की पुद्दुचेरी में तमिल नडू की राजनीति का पूरा पूरा असर रहता है। विश्लेषकों की मानें तो भाजपा के 14 विधाया हैं कॉंग्रेस से छटके 4 विधाया भी भाजपा का दमन थाम सकते हैं। उपचुनाव जो जल्दी ही होने वाले हैं, के पश्चात भाजपा की सरकार बनना तय माना जा रहा है। उधर किरण बेदी यदि चुनाव लड़तीं हैं तो भाजपा उनका स्वागत करेगी। वैसे किरण बेदी को ले कर भाजपा के पास और भी विकल्प है, वह किरण को बतौर राज्यपाल पंजाब, हरियाणा महाराष्ट्र भी भेज सकती है।
सरिया तिवारी,पुड्डुचेरी/चंडीगढ़ :
पुडुचेरी में हाल के दिनों में कॉन्ग्रेस विधायकों के इस्तीफे के बाद वहाँ की कॉन्ग्रेस सरकार अल्पमत में आ गई है। ऐसा लग रहा है कि केंद्र शासित प्रदेश का राजनीतिक ड्रामा अप्रैल में होने वाले विधानसभा चुनावों तक यूँ ही चलता रहेगा। अब केंद्र सरकार ने उप-राज्यपाल किरण बेदी को अपने पद से हटा दिया है। उनकी जगह तेलंगाना की राज्यपाल तमिलसाई सुंदरराजन को पुडुचेरी का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है।
तमिलसाई पहले तमिलनाडु में भाजपा की प्रदेश अध्यक्ष हुआ करती थीं। मंगलवार (फरवरी 16, 2021) की रात राष्ट्रपति भवन की इस अधिसूचना के बाद घटनाक्रम तेज़ी से बदलने लगा। राष्ट्रपति भवन ने कहा है कि जब तक पुडुचेरी के उप-राज्यपाल के रूप में अगली नियुक्ति नहीं की जाती, तमिलसाई सुंदरराजन अतिरिक्त प्रभार संभालती रहेंगी। भाजपा के एक यूनिट के कुछ नेताओं ने भी किरण बेदी के कामकाज से आपत्ति जताई थी।
किरण बेदी को मई 2016 में उप-राज्यपाल बनाया गया था, ऐसे में उनका कार्यकाल पूरा होने को मात्र 3 महीने ही बचे हुए थे। कॉन्ग्रेस पार्टी ने लगातार पुडुचेरी में ये बात फैलाई थी कि किरण बेदी के कामकाज से जनता नाराज़ है और वो चुनी हुई सरकार के ऊपर हावी हैं। स्थानीय भाजपा यूनिट ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को 3 बार याचिका भेज कर किरण बेदी को हटाने की माँग की थी।
किरण बेदी ने पुडुचेरी में ट्रैफिक नियमों में सख्ती की थी और हेलमेट न पहनने पर भारी जुर्माने का प्रावधान किया था। गरीबों को अनाज के बदले ‘डायरेक्ट बेनेफिर ट्रांसफर (DBT)’ पर जोर दिया गया था। प्रदेश सरकार ने जब सरकारी स्कूल के बच्चों को प्रदेश के इंजीनियरिंग/मेडिकल कॉलेजों में 10% आरक्षण देने का फैसला लिया तो किरण बेदी ने इसे नकार दिया था। कॉन्ग्रेस इन बातों से नाराज थी।
किरण बेदी के हटाए जाने की खबर के साथ ही प्रदेश भर में कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं ने पटाखे फोड़ कर अपनी ख़ुशी जताई। कॉन्ग्रेस के दफ्तरों में जश्न मनाया गया। खुद मुख्यमंत्री वेलु नारायणसामी ने नेताओं के बीच मिठाई बाँट कर जश्न मनाया।
सीएम नारायणसामी ने कुछ दिनों पहले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से किरण बेदी को हटाने की माँग की थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि बेदी प्रदेश सरकार की विकास और जन-कल्याणकारी योजनाओं पर ब्रेक लगा रही हैं।
वी नारायणसामी ने इस फैसले के तुरंत बाद एक प्रेस बैठक बुलाई और उसमें कहा कि ये न सिर्फ कॉन्ग्रेस पार्टी, बल्कि पुडुचेरी की जनता की भी जीत है। उन्होंने कहा कि सरकारी कामकाज में किरण बेदी के लगातार हस्तक्षेप के बाद जनता के अधिकार सुरक्षित नहीं रह गए थे। उन्होंने कहा कि पुडुचेरी की जनता ने किरण बेदी को ‘एक बड़ा सबक सिखाया’ है। किरण बेदी अब तक इस मामले में खामोश ही हैं।
किरण बेदी के हटाए जाने की खबर के साथ ही प्रदेश भर में कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं ने पटाखे फोड़ कर अपनी ख़ुशी जताई। कॉन्ग्रेस के दफ्तरों में जश्न मनाया गया। खुद मुख्यमंत्री वेलु नारायणसामी ने नेताओं के बीच मिठाई बाँट कर जश्न मनाया।
सीएम नारायणसामी ने कुछ दिनों पहले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से किरण बेदी को हटाने की माँग की थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि बेदी प्रदेश सरकार की विकास और जन-कल्याणकारी योजनाओं पर ब्रेक लगा रही हैं।
वी नारायणसामी ने इस फैसले के तुरंत बाद एक प्रेस बैठक बुलाई और उसमें कहा कि ये न सिर्फ कॉन्ग्रेस पार्टी, बल्कि पुडुचेरी की जनता की भी जीत है। उन्होंने कहा कि सरकारी कामकाज में किरण बेदी के लगातार हस्तक्षेप के बाद जनता के अधिकार सुरक्षित नहीं रह गए थे। उन्होंने कहा कि पुडुचेरी की जनता ने किरण बेदी को ‘एक बड़ा सबक सिखाया’ है। किरण बेदी अब तक इस मामले में खामोश ही हैं।
एक और अटकल ये लगाई जा रही है कि किरण बेदी सक्रिय राजनीति में वापसी कर सकती हैं, इसीलिए उन्हें हटाया गया है। पिछले साढ़े 4 वर्षों से भी अधिक समय के अपने कार्यकाल में उन्होंने पुडुचेरी में बतौर उप-राज्यपाल प्रतिदिन जनसंपर्क को प्राथमिकता दी है। ये बात नारायणसामी के प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान भी गूँजी। नारायणसामी ने कहा कि अगर वो भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में आती हैं तो उनका स्वागत है।
नारायणसामी ने कहा कि हमने न जाने कितने ही उपवास किए और धरने दिए, तब जाकर केंद्र सरकार की अब नींद खुली है। उन्होंने कहा कि अब पुडुचेरी की जनता खुश है। हालाँकि, कॉन्ग्रेस पार्टी ने इसे भाजपा का ड्रामा बताते हुए कहा कि पार्टी को पता था कि अगर बेदी इस पद पर रहतीं तो भाजपा को वोट नहीं मिलते। अब सभी की नजरें राहुल गाँधी पर हैं, जो 4 दिनों के चुनावी कैम्पेन के लिए आज पुडुचेरी पहुँच रहे हैं। कॉन्ग्रेस की सोशल मीडिया संयोजक ने बेदी और संघ/भाजपा के लिए काम करने के आरोप लगाए।
बता दें कि पुडुचेरी में कॉन्ग्रेस की सरकार अल्पमत में आ गई है क्योंकि पार्टी के एक विधायक ने इस्तीफा दे दिया है। मुख्यमंत्री वेलु नारायणसामी (Velu Narayanasamy) सरकार ने एक विधायक के जाने से बहुमत खो दिया है। विधायक ए जॉन कुमार ने मंगलवार (फरवरी 16, 2021) को विधानसभा से अपना इस्तीफा स्पीकर वीपी शिवाकोलुन्थु को सौंप दिया है। कॉन्ग्रेस यहाँ DMK (द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) के साथ गठबंधन बना कर सत्ता में है।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2021/02/narayanasamy2-1613532659.jpg338600Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2021-02-18 03:18:012021-02-18 03:18:52किरण बेदी के हटते ही कॉंग्रेस ने बांटे लड्डू
हिन्दू धर्म में वर्ण व्यवस्था है, हिन्द धर्म 4 वर्णों में बंटा हुआ है, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वेश्या एवं शूद्र। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात पीढ़ियों से वंचित शूद्र समाज को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए संविधान में आरक्षण लाया गया। यह आरक्षण केवल (शूद्रों (दलितों) के लिए था। कालांतर में भारत में धर्म परिवर्तन का खुला खेल आरंभ हुआ। जहां शोषित वर्ग को लालच अथवा दारा धमका कर ईसाई या मुसलिम धर्म में दीक्षित किया गया। यह खेल आज भी जारी है। दलितों ने नाम बदले बिना धर्म परिवर्तन क्यी, जिससे वह स्वयं को समाज में नचा समझने लगे और साथ ही अपने जातिगत आरक्षण का लाभ भी लेते रहे। लंबे समय त यह मंथन होता रहा की जब ईसाई समाज अथवा मुसलिम समाज में जातिगत व्यवस्था नहीं है तो परिवर्तित मुसलमानों अथवा इसाइयों को जातिगत आरक्षण का लाभ कैसे? अब इन तमाम बहसों को विराम लग गया है जब एकेन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद सिंह ने सांसद में स्पष्ट आर दिया कि इस्लाम या ईसाई धर्म स्वीकार करने वाले दलितों के लिए आरक्षण की नीति कैसी रहेगी।
नयी दिल्ली(ब्यूरो):
इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तित होने वाले दलितों को चुनावों में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों से चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं होगी। इसके अलावा वह आरक्षण से जुड़े अन्य लाभ भी नहीं ले पाएँगे। गुरुवार (11 फरवरी 2021) को राज्यसभा में एक प्रश्न का जवाब देते हुए क़ानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने यह जानकारी दी।
हिन्दू, सिख या बौद्ध धर्म स्वीकार करने वाले अनुसूचित जाति के लोग आरक्षित सीट से चुनाव लड़ने के योग्य होंगे। साथ ही साथ, वह अन्य आरक्षण सम्बन्धी लाभ भी ले पाएँगे। भाजपा नेता जीवी एल नरसिम्हा राव के सवाल का जवाब देते हुए रविशंकर प्रसाद ने इस मुद्दे पर जानकारी दी।
आरक्षित क्षेत्रों से चुनाव लड़ने की पात्रता पर बात करते हुए रविशंकर प्रसाद ने कहा, “स्ट्रक्चर (शेड्यूल कास्ट) ऑर्डर के तीसरे पैराग्राफ के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जो हिन्दू, सिख या बौद्ध धर्म से अलग है, उसे अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जाएगा।” इन बातों के आधार पर क़ानून मंत्री ने स्पष्ट कर दिया कि इस्लाम या ईसाई धर्म स्वीकार करने वाले दलितों के लिए आरक्षण की नीति कैसी रहेगी।
क़ानून मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि संसदीय या लोकसभा चुनाव लड़ने वाले इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तित होने वाले अनुसूचित जाति/जनजाति के व्यक्ति को निषेध करने के लिए संशोधन का प्रस्ताव मौजूद नहीं।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2021/02/RSPLS.png382966Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2021-02-12 08:29:242021-02-12 10:03:53इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तन लेने के पश्चात दलित नहीं ले सकेंगे जातिगत आरक्षण का लाभ
तमिलनाडु के मदुरई के अवनीयापुरम में जल्लीकट्टू का खेल आरंभ हो चुका है। इस प्रतियोगिता में 200 से अधिक बैल हिस्सा ले रहे हैं। वहीं कोविड-19 को देखते हुए, राज्य सरकार ने निर्देश दिया है कि किसी कार्यक्रम में खिलाड़ियों की संख्या 150 से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। साथ ही दर्शकों की तादाद सभा के 50 फीसद से अधिक नहीं होनी चाहिए। बता दें कि प्रति वर्ष इस खूनी खेल में कई लोग बुरी तरह जख्मी भी हो जाते हैं, तो कई की जान भी जाती है। साल 2019 में इसी वक़्त शुरू हुये पोंगल महोत्सव में राज्य के विभन्न हिस्से में आयोजित जलीकट्टू के दौरान यहां दिल का दौरा पड़ने की वजह से एक दर्शक की मौत हो गई थी। इसके अलावा बैलों को काबू करने वाले 40 से अधिक व्यक्ति जख्मी हो गए थे। उस वक़्त समारोह में कुल 729 बैलों का उपयोग किया गया था।
चेन्नई/नयी दिल्ली :
तमिलनाडु के मदुरई के अवनीयापुरम में जलीकट्टू का खेल शुरू हो चुका है। कॉन्ग्रेस ने जिस खेल को कभी ‘बर्बर’ बताकर भाजपा पर इसके राजनीतिकरण का आरोप लगाया था, उसी जलीकट्टू का मजा लेने कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी अवनियापुरम के इस कार्यक्रम में पहुँच चुके हैं।
राहुल गाँधी शायद ये भूल गए कि उन्हीं की पार्टी के कई वरिष्ठ नेता और यहाँ तक कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस जलीकट्टू को ‘हिंसक’ और पशुओं पर अत्याचार वाला खेल बता चुके हैं। यही नहीं, साल 2016 के कॉन्ग्रेस के चुनावी घोषणापत्र में जलीकट्टू को प्रतिबंधित करना भी शामिल था।
सोशल मीडिया पर राहुल गाँधी की जलीकट्टू में शामिल होने को लेकर जमकर खिंचाई हो रही है। वर्ष 2016 में, कॉन्ग्रेस ने जल्लीकट्टू को ‘बर्बर’ हरकत कहते हुए भाजपा पर इसे समर्थन देकर राजनीति करने का आरोप लगाया था।
वहीं, शशि थरूर ने तो जनवरी, 2016 में भाजपा को घेरते हुए पशु कल्याण बोर्ड से आग्रह कर लिया था कि वो ‘बैलों को यातना’ देने वाले इस खेल पर एक्शन ले।
कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने बृहस्पतिवार (जनवरी 14, 2021) को जलीकट्टू में शामिल होने के बाद बयान दिया, “मैं यहाँ आया हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि तमिल संस्कृति, भाषा और इतिहास भारत के भविष्य के लिए आवश्यक हैं और इसका सम्मान करने की आवश्यकता है।”
राहुल गाँधी ने कहा कि तमिल संस्कृति को देखना काफी प्यारा अनुभव था और उन्हें ये देखकर बेहद खुशी हुई कि जलीकट्टू को व्यवस्थित और सुरक्षित तरीके से आयोजित किया जा रहा है। राहुल ने कहा कि वो उन लोगों को संदेश देने के लिए गए हैं, जो ये सोचते हैं कि वो तमिल संस्कृति को खत्म कर देंगे।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2021/01/739301-rahul-gandhi.jpg400700Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2021-01-14 17:45:592021-01-15 01:43:36राहुल गांधी पहुंचे ‘बैलों को यातना’ का खेल देखने
कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम ने पार्टी की तमिलनाडु इकाई के लिए बड़ी संख्या में पदाधिकारियों की नियुक्ति पर सवाल खड़े करते हुए शनिवार को कहा कि इससे कोई लक्ष्य पूरा नहीं होगा। उन्होंने ट्वीट किया, इन विशाल समितियों से कोई लक्ष्य पूरा नहीं होता। 32 उपाध्यक्ष, 57 महासचिव और 104 सचिव। किसी के पास कोई ताकत नहीं होगी जिसका मतलब यह है कि कोई जवाबदेही भी नहीं होगी।
तमिलनाडु की शिवगंगा लोकसभा सीट से कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम नाराज
राज्य में कांग्रेस की नई टीम के गठन के बाद कार्ति ने ट्विटर पर जताई नाराजगी
सांसद ने कहा कि इतनी बड़ी टीम का मतलब किसी को अधिकार नहीं, इसलिए जिम्मेवारी भी नहीं
चेन्नई/ नयी दिल्ली :
तमिलनाडु में कॉन्ग्रेस की नई कमिटी के गठन के तुरंत बाद पार्टी के अंदर बड़ा विवाद हो गया है। शिवगंगा से पार्टी सांसद कार्ति चिदंबरम ने इस कमिटी के गठन के तुरंत बाद ट्वीट कर कहा कि इस कमिटी से कोई लाभ नहीं होगा। उन्होंने पार्टी के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि सौ से अधिक लोगों की कमिटी का मतलब किसी की जिम्मेदारी तय नहीं होगी, न ही किसी के पास कुछ करने का अधिकार होगा।
उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘इन विशाल समितियों से कोई लक्ष्य पूरा नहीं होता। 32 उपाध्यक्ष, 57 महासचिव और 104 सचिव। किसी के पास कोई ताकत नहीं होगी जिसका मतलब यह है कि कोई जवाबदेही भी नहीं होगी।’’
वहीं एक निजी चैनल से बातचीत में उन्होंने कहा, “तमिलनाडु कॉन्ग्रेस को एक ठोस टीम की जरूरत है, ना कि विशालकाय कमिटियों की। इन बड़ी-बड़ी कमिटियों से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा। चुनाव 90 दिन दूर है और हमें एक ऐसी टीम की जरूरत है, जिसके पास निर्णय लेने की क्षमता और जवाबदेही हो।”
कार्ति चिदंबरम तमिलनाडु से पार्टी के लोकसभा सांसद हैं। मालूम हो कि इसी साल अप्रैल-मई में तमिलनाडु में भी विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। कॉन्ग्रेस का वहाँ डीएमके के साथ गठबंधन है। हालाँकि, दोनों दलों के बीच अभी तक सीटों का बँटवारा नहीं हुआ है। बहरहाल, कार्ति ने अपने ट्वीट में राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी को भी टैग किया है। इनके अलावा, उन्होंने कॉन्ग्रेस पार्टी, तमिलनाडु प्रदेश कॉन्ग्रेस, केसी वेणुगोपाल और दिनेश गुंडू को भी टैग कर अपनी नाराजगी जाहिर की है।
दरअसल, कॉन्ग्रेस ने तमिलनाडु विधानसभा चुनाव के मद्देनजर शनिवार (जनवरी 02, 2021) को अपनी राज्य इकाई के लिए 32 उपाध्यक्षों समेत कई पदाधिकारियों की नियुक्ति की और कई समितियों एवं चुनाव प्रबंधन दल का गठन किया।
पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम और मणिशंकर अय्यर तथा कई अन्य वरिष्ठ नेताओं को विभिन्न समितियों में स्थान दिया गया है। कई समितियों में कार्ति को भी शामिल किया गया है। तमिलनाडु प्रदेश कॉन्ग्रेस कमेटी के लिए 32 उपाध्यक्ष, 57 महासचिव और 104 सचिव नियुक्त किए गए हैं। इसके साथ ही, पार्टी ने कार्यकारी समिति के सदस्य और 32 जिला कॉन्ग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी नियुक्त किए हैं।
लगातार सवाल उठा रहे हैं कार्ति
कार्ति चिदंबरम, पार्टी के उन नेताओं में शामिल हैं जो हाल के दौर में कॉन्ग्रेस की अंदरूनी चुनौतियों पर मुखर सवाल उठा रहे हैं। दिलचस्प यह भी है कि उनके पिता पी. चिदंबरम कॉन्ग्रेस में जारी मौजूदा अंदरूनी घमासान में कॉन्ग्रेस हाईकमान और असंतुष्ट नेताओं के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे हैं।
असंतुष्ट नेताओं की सोनिया गाँधी के साथ 19 दिसंबर 2020 को हुई बैठक में चिदंबरम ने मध्यस्थ की भूमिका निभाते हुए भी ब्लॉक, जिला से लेकर प्रदेश स्तर के संगठन चुनाव कराने की जमकर वकालत की थी। इतना ही नहीं पी चिदंबरम ने कॉन्ग्रेस में करीब दो दशक से ठंडे बस्ते में पड़े संसदीय बोर्ड के ढाँचे को भी फिर से खड़ा करने की पैरोकारी की थी।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2021/01/karthi-chidambaram_710x400xt.jpg400710Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2021-01-02 18:57:162021-01-02 18:58:08तमिलनाडु कॉन्ग्रेस को एक ठोस टीम की जरूरत है, ना कि विशालकाय कमिटियों की : कार्ति
2018 में विधि आयोग की बैठक में भाजपा और कांग्रेस ने इससे दूरी बनाए रखी. कॉंग्रेस का विरोध तो जग जाहिर है लेकिन भाजपा की इस मुद्दे पर चुप्पी समझ से परे है. 2018 में ऐसा क्या था कि प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता वाली भाजपा तटस्थ रही और आज मोदी इसका हर जगह इसका प्रचार प्रसार कर रहे हैं? 1999 में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान विधि आयोग ने इस मसले पर एक रिपोर्ट सौंपी। आयोग ने अपनी सिफारिशों में कहा कि अगर किसी सरकार के खिलाफ विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लेकर आता है तो उसी समय उसे दूसरी वैकल्पिक सरकार के पक्ष में विश्वास प्रस्ताव भी देना सुनिश्चित किया जाए। 2018 में विधि आयोग ने इस मसले पर एक सर्वदलीय बैठक भी बुलाई जिसमें कुछ राजनीतिक दलों ने इस प्रणाली का समर्थन किया तो कुछ ने विरोध। कुछ राजनीतिक दलों का इस विषय पर तटस्थ रुख रहा। भारत में चुनाव को ‘लोकतंत्र का उत्सव’ कहा जाता है, तो क्या पांच साल में एक बार ही जनता को उत्सव मनाने का मौका मिले या देश में हर वक्त कहीं न कहीं उत्सव का माहौल बना रहे? जानिए, क्यों यह चर्चा का विषय है.
सारिका तिवारी, चंडीगढ़:
हर कुछ महीनों के बाद देश के किसी न किसी हिस्से में चुनाव हो रहे होते हैं. यह भी चुनावी तथ्य है कि देश में पिछले करीब तीन दशकों में एक साल भी ऐसा नहीं बीता, जब चुनाव आयोग ने किसी न किसी राज्य में कोई चुनाव न करवाया हो. इस तरह के तमाम तथ्यों के हवाले से एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘एक देश एक चुनाव’ की बात छेड़ी है. अव्वल तो यह आइडिया होता क्या है? इस सवाल के बाद बहस यह है कि जो लोग इस आइडिया का समर्थन करते हैं तो क्यों और जो नहीं करते, उनके तर्क क्या हैं.
जानकार तो यहां तक कहते हैं कि भारत का लोकतंत्र चुनावी राजनीति बनकर रह गया है. लोकसभा से लेकर विधानसभा और नगरीय निकाय से लेकर पंचायत चुनाव… कोई न कोई भोंपू बजता ही रहता है और रैलियां होती ही रहती हैं. सरकारों का भी ज़्यादातर समय चुनाव के चलते अपनी पार्टी या संगठन के हित में ही खर्च होता है. इन तमाम बातों और पीएम मोदी के बयान के मद्देनज़र इस विषय के कई पहलू टटोलते हुए जानते हैं कि इस पर चर्चा क्यों ज़रूरी है.
क्या है ‘एक देश एक चुनाव’ का आइडिया?
इस नारे या जुमले का वास्तविक अर्थ यह है कि संसद, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव एक साथ, एक ही समय पर हों. और सरल शब्दों में ऐसे समझा जा सकता है कि वोटर यानी लोग एक ही दिन में सरकार या प्रशासन के तीनों स्तरों के लिए वोटिंग करेंगे. अब चूंकि विधानसभा और संसद के चुनाव केंद्रीय चुनाव आयोग संपन्न करवाता है और स्थानीय निकाय चुनाव राज्य चुनाव आयोग, तो इस ‘एक चुनाव’ के आइडिया में समझा जाता है कि तकनीकी रूप से संसद और विधानसभा चुनाव एक साथ संपन्न करवाए जा सकते हैं.
पीएम मोदी की खास रुचि
जनवरी, 2017 में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक देश एक चुनाव के संभाव्यता अध्ययन कराए जाने की बात कही. तीन महीने बाद नीति आयोग के साथ राज्य के मुख्यमंत्रियों की बैठक में भी इसकी आवश्यक्ता को दोहराया. इससे पहले दिसंबर 2015 में राज्यसभा के सदस्य ईएम सुदर्शन नचियप्पन की अध्यक्षता में गठित संसदीय समिति ने भी इस चुनाव प्रणाली को लागू किए जाने पर जोर दिया था. 2018 में विधि आयोग की बैठक में भाजपा और कांग्रेस ने इससे दूरी बनाए रखी. चार दलों (अन्नाद्रमुक, शिअद, सपा, टीआरएस) ने समर्थन किया. नौ राजनीतिक दलों (तृणमूल, आप, द्रमुक, तेदेपा, सीपीआइ, सीपीएम, जेडीएस, गोवा फारवर्ड पार्टी और फारवर्ड ब्लाक) ने विरोध किया. नीति आयोग द्वारा एक देश एक चुनाव विषय पर तैयार किए गए एक नोट में कहा गया है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को 2021 तक दो चरणों में कराया जा सकता है. अक्टूबर 2017 में तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा था कि एक साथ चुनाव कराने के लिए आयोग तैयार है, लेकिन निर्णय राजनीतिक स्तर पर लिया जाना है.
क्या है इस आइडिया पर बहस?
कुछ विद्वान और जानकार इस विचार से सहमत हैं तो कुछ असहमत. दोनों के अपने-अपने तर्क हैं. पहले इन तर्कों के मुताबिक इस तरह की व्यवस्था से जो फायदे मुमकिन दिखते हैं, उनकी चर्चा करते हैं.
कई देशों में है यह प्रणाली
स्वीडन इसका रोल मॉडल रहा है. यहां राष्ट्रीय और प्रांतीय के साथ स्थानीय निकायों के चुनाव तय तिथि पर कराए जाते हैं जो हर चार साल बाद सितंबर के दूसरे रविवार को होते हैं. इंडोनेशिया में इस बार के चुनाव इसी प्रणाली के तहत कराए गए. दक्षिण अफ्रीका में राष्ट्रीय और प्रांतीय चुनाव हर पांच साल पर एक साथ करा जाते हैं जबकि नगर निकायों के चुनाव दो साल बाद होते हैं.
पक्ष में दलीलें
1. राजकोष को फायदा और बचत : ज़ाहिर है कि बार बार चुनाव नहीं होंगे, तो खर्चा कम होगा और सरकार के कोष में काफी बचत होगी. और यह बचत मामूली नहीं बल्कि बहुत बड़ी होगी. इसके साथ ही, यह लोगों और सरकारी मशीनरी के समय व संसाधनों की बड़ी बचत भी होगी. एक अध्ययन के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव पर करीब साठ हजार करोड़ रुपये खर्च हुए. इसमें पार्टियों और उम्मीदवारों के खर्च भी शामिल हैं. एक साथ एक चुनाव से समय के साथ धन की बचत हो सकती है। सरकारें चुनाव जीतने की जगह प्रशासन पर अपना ध्यान केंद्रित कर पाएंगी.
2. विकास कार्य में तेज़ी : चूंकि हर स्तर के चुनाव के वक्त चुनावी क्षेत्र में आचार संहिता लागू होती है, जिसके तहत विकास कार्य रुक जाते हैं. इस संहिता के हटने के बाद विकास कार्य व्यावहारिक रूप से प्रभावित होते हैं क्योंकि चुनाव के बाद व्यवस्था में काफी बदलाव हो जाते हैं, तो फैसले नए सिरे से होते हैं.
3. काले धन पर लगाम : संसदीय, सीबीआई और चुनाव आयोग की कई रिपोर्ट्स में कहा जा चुका है कि चुनाव के दौरान बेलगाम काले धन को खपाया जाता है. अगर देश में बार बार चुनाव होते हैं, तो एक तरह से समानांतर अर्थव्यवस्था चलती रहती है.
4. सुचारू प्रशासन : एक चुनाव होने से सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल एक ही बार होगा लिहाज़ा कहा जाता है कि स्कूल, कॉलेज और अन्य विभागों के सरकारी कर्मचारियों का समय और काम बार बार प्रभावित नहीं होगा, जिससे सारी संस्थाएं बेहतर ढंग से काम कर सकेंगी.
5. सुधार की उम्मीद : चूंकि एक ही बार चुनाव होगा, तो सरकारों को धर्म, जाति जैसे मुद्दों को बार बार नहीं उठाना पड़ेगा, जनता को लुभाने के लिए स्कीमों के हथकंडे नहीं होंगे, बजट में राजनीतिक समीकरणों को ज़्यादा तवज्जो नहीं देना होगी, यानी एक बेहतर नीति के तहत व्यवस्था चल सकती है.
ऐसे और भी तर्क हैं कि एक बार में ही सभी चुनाव होंगे तो वोटर ज़्यादा संख्या में वोट करने के लिए निकलेंगे और लोकतंत्र और मज़बूत होगा. बहरहाल, अब आपको ये बताते हैं कि इस आइडिया के विरोध में क्या प्रमुख तर्क दिए जाते हैं.
1. क्षेत्रीय पार्टियां होंगी खारिज : चूंकि भारत बहुदलीय लोकतंत्र है इसलिए राजनीति में भागीदारी करने की स्वतंत्रता के तहत क्षेत्रीय पार्टियों का अपना महत्व रहा है. चूंकि क्षेत्रीय पार्टियां क्षेत्रीय मुद्दों को तरजीह देती हैं इसलिए ‘एक चुनाव’ के आइडिया से छोटी क्षेत्रीय पार्टियों के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो जाएगा क्योंकि इस व्यवस्था में बड़ी पार्टियां धन के बल पर मंच और संसाधन छीन लेंगी.
2. स्थानीय मुद्दे पिछड़ेंगे : चूंकि लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग मुद्दों पर होते हैं इसलिए दोनों एक साथ होंगे तो विविधता और विभिन्न स्थितियों वाले देश में स्थानीय मुद्दे हाशिये पर चले जाएंगे. ‘एक चुनाव’ के आइडिया में तस्वीर दूर से तो अच्छी दिख सकती है, लेकिन पास से देखने पर उसमें कई कमियां दिखेंगी. इन छोटे छोटे डिटेल्स को नज़रअंदाज़ करना मुनासिब नहीं होगा.
3. चुनाव नतीजों में देर : ऐसे समय में जबकि तमाम पार्टियां चुनाव पत्रों के माध्यम से चुनाव करवाए जाने की मांग करती हैं, अगर एक बार में सभी चुनाव करवाए गए तो अच्छा खास समय चुनाव के नतीजे आने में लग जाएगा. इस समस्या से निपटने के लिए क्या विकल्प होंगे इसके लिए अलग से नीतियां बनाना होंगी.
4. संवैधानिक समस्या : देश के लोकतांत्रिक ढांचे के तहत यह आइडिया सुनने में भले ही आकर्षक लगे, लेकिन इसमें तकनीकी समस्याएं काफी हैं. मान लीजिए कि देश में केंद्र और राज्य के चुनाव एक साथ हुए, लेकिन यह निश्चित नहीं है कि सभी सरकारें पूर्ण बहुमत से बन जाएं. तो ऐसे में क्या होगा? ऐसे में चुनाव के बाद अनैतिक रूप से गठबंधन बनेंगे और बहुत संभावना है कि इस तरह की सरकारें 5 साल चल ही न पाएं. फिर क्या अलग से चुनाव नहीं होंगे?
यही नहीं, इस विचार को अमल में लाने के लिए संविधान के कम से कम छह अनुच्छेदों और कुछ कानूनों में संशोधन किए जाने की ज़रूरत पेश आएगी.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2020/11/One-nation-one-election-1.jpg8101440Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2020-11-28 03:52:012020-11-28 03:56:55एक राष्ट्र एक चुनाव, पक्ष – विपक्ष
गृह मंत्री अमित शाह ने शनिवार को तमिलनाडु के चेन्नई में रोड शो किया. अमित शाह ने सड़क पर पैदल चलकर बीजेपी कार्यकर्ताओं से मुलाकात की. गृहमंत्री का ये दौरा इसलिए भी खास है, क्योंकि राज्य में अगले साल 2021 में विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं. इस राज्य में अपना प्रदर्शन सुधारने के लिए बीजेपी पूरी जी जान से लगी है. ऐसे में गृहमंत्री अमित शाह का ये दौरा काफी अहम माना जा रहा है. लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी को यहां पर कोई कामयाबी नहीं मिली थी. चुनाव में स्टालिन पार्टी डीएमके ने सबसे ज्यादा सीटें बटोरीं थीं.
चेन्नई/नयी दिल्ली:
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शनिवार को चेन्नई पहुंचे, जहां वे चेन्नई मेट्रो रेल के दूसरे चरण की आधारशिला रखने के साथ 67 हजार करोड़ रुपये के विकास कार्यक्रमों का शिलान्यास करेंगे. अमित शाह शनिवार को तीन कार्यक्रमों में हिस्सा लेंगे.
अमित शाह के ऑफिस की ओर से जारी किए गए शेड्यूल के मुताबिक गृहमंत्री राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एमजी रामचंद्रन और पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता को शाम 4.30 बजे श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे. इसके 10 मिनट बाद कई अहम विकास कार्यों का शिलान्यास करेंगे.
शाम के 6 बजे गृह मंत्री अमित शाह पार्टी कार्यकर्ताओं और जिला अध्यक्षों से मिलेंगे. माना जा रहा है कि इस बैठक में अमित शाह अगले साल होने वाले तमिलनाडु चुनाव पर चर्चा कर सकते हैं. गृह मंत्री दो दिवसीय दौरे पर चेन्नई पहुंचे हैं. एयरपोर्ट पर, गृह मंत्री अमित शाह का राज्य के मुख्यमंत्री और उनके डिप्टी ओ. पन्नीरसेल्वम ने स्वागत किया. राज्य के मुख्यमंत्री के साथ कैबिनेट सदस्य और बीजेपी के राज्य अध्यक्ष एल. मुरुगन भी शामिल थे.
जैसे ही अमित शाह का काफिला एयरपोर्ट से निकला, बीजेपी नेता ने सबको चौंकाते हुए प्रोटोकॉल तोड़ा और गाड़ी से बाहर निकलकर व्यस्त जीएसटी रोड पर अपने कार्यकर्ताओं का अभिवादन किया. बता दें कि अमित शाह के आने की खबर के साथ ही शनिवार सुबह से हजारों पार्टी कार्यकर्ता चेन्नई एयरपोर्ट के बाहर मजमा लगाए थे. अमित शाह के ऑफिस ने कार्यकर्ताओं का अभिवादन करते हुए बीजेपी नेता का वीडियो सोशल मीडिया पर जारी किया.
शाह का दौरा उस समय हो रहा है, जब बीजेपी और अन्नाद्रमुक के रिश्तों में वेत्री वेल यात्रा को लेकर दरार दिख रही है. हालांकि लोकसभा चुनावों के बाद से अन्नाद्रमुक और बीजेपी के रिश्ते ठीक नहीं चल रहे हैं. राज्य सरकार ने कोरोना वायरस संक्रमण के चलते बीजेपी को वेत्री वेल यात्रा निकालने की अनुमति नहीं दी थी. अन्नाद्रमुक के मुखपत्र ने इस यात्रा को बांटने वाला करार दिया था. हालांकि बीजेपी नेता 6 नवंबर तक राज्य में यात्रा निकालने में जुटे थे, लेकिन बाद में राज्य पुलिस ने नेताओं को गिरफ्तार कर लिया.
एक दैनिक की रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी ने शुक्रवार को एक बार फिर अन्नाद्रमुक नेता ई. पलानीस्वामी को विधानसभा चुनावों के लिए मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर स्वीकार करने से मना कर दिया.
पिछले महीने अन्नाद्रमुक नेताओं ने पार्टी में आतंरिक तौर पर विचार विमर्श के बाद उपमुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम ने 2021 विधानसभा चुनाव के लिए पलानीस्वामी को अन्नाद्रमुक का मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया.
गृह मंत्री अमित शाह की यात्रा को देखते हुए चेन्नई में चाक चौबंद सुरक्षा के लिए बड़ी संख्या में सुरक्षा बल लगाए गए हैं. अमित शाह रविवार को दिल्ली के लिए रवाना होंगे.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2020/11/AmitshahChennaivisit_21112020_1200.jpg10001200Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2020-11-21 12:29:222020-11-21 12:29:53जब चेन्नई में शाह सड़कों पर उतरे
कॉंग्रेस पार्टी में अभी एक महिला नेत्री की पिटाई का मामला थमा नहीं था कि दक्षिण भारत मे कांग्रेस पार्टी की चर्चित चेहरा रहीं खुशबू सुंदर सोमवार को भाजपा में शामिल हो गई हैं। उन्होंने सोमवार को ही कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। भाजपा में शामिल होने से पहले उन्होने सोनिया गांधी को शिकायती पत्र लिखा था। शिकायत करने पर उस शिकायत को दूर न कर सीधे सीधे पद से मुक्त कर दिया गया। इसके बाद पार्टी ने उन्हें तत्काल प्रभाव से राष्ट्रीय प्रवक्ता पद से हटा दिया था। उन्होंने 200 से ज्यादा दक्षिण भारतीय और बॉलीवुड फिल्मों में काम किया है। सोनिया गांधी को भेजे त्यागपत्र में लिखा- पार्टी में बड़े ओहदे पर ऐसे लोग बैठे हैं, जिनका जमीनी हकीकत से कोई जुड़ाव नहीं है।
खुशबू सुंदर 2010 में राजनीति में उतरीं, करुणानिधि ने उन्हें डीएमके ज्वॉइन कराई थी
2014 में खुशबू कांग्रेस में आईं, तब कहा था- यही पार्टी देश को एकजुट कर सकती है
नयी दिल्ली(ब्यूरो) – 12 अक्तूबर:
कांग्रेस का साथ छोड़कर खुशबू सुंदर सोमवार को भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गई हैं। एक्ट्रेस से पॉलिटिशियन बनीं खुशबू सुंदर ने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजे अपने त्यागपत्र में उन्होंने बिना नाम लिए पार्टी के बड़े नेताओं पर गंभीर आरोप लगाए हैं। एक्ट्रेस ने लिखा है, “पार्टी में बड़े ओहदे पर कुछ ऐसे लोग बैठे हैं, जिनका जमीनी हकीकत या सार्वजानिक मान्यता से कोई जुड़ाव नहीं है। वे आदेश दे रहे हैं और मेरे जैसे लोगों को, जो पार्टी के लिए काम करना चाहते हैं, पीछे धकेल रहे हैं और रोक रहे हैं।”
2014 में कांग्रेस में आई थीं खुशबू
खुशबू को राजनीति में लाने का श्रेय करुणानिधि को जाता है। 2010 में उन्होंने एक्ट्रेस को अपनी पार्टी डीएमके ज्वॉइन कराई थी। 50 साल की खुशबू ने 2014 में कांग्रेस का दामन थामा था। तब उन्होंने कहा था कि कांग्रेस ही एकमात्र ऐसी पार्टी है, जो भारत के लोगों की भलाई और देश को एकजुट कर सकती है।
कांग्रेस ने एक्ट्रेस को राष्ट्रीय प्रवक्ता तो बनाया। लेकिन 2019 में न उन्हें लोकसभा के लिए टिकट दिया और न ही राज्यसभा में भेजा गया। बताया जा रहा है कि वे इसी बात से नाराज चल रही थीं। रिपोर्ट्स की मानें तो खुशबू अब भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो सकती हैं।
बॉलीवुड की कई फिल्मों में काम किया
खुशबू को वैसे तो साउथ इंडियन फिल्म इंडस्ट्री में उनके काम के लिए जाना जाता है। लेकिन वे बॉलीवुड की भी कई फिल्मों में नजर आ चुकी हैं।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2020/10/Khushbu-Sunder.jpg6751200Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2020-10-12 09:07:002020-10-12 09:17:32खुशबू सुंदर ने कांग्रेस का हाथ छोड़ कर थामा कमल
कोविड-19 महामारी के बीच संसद का मानसून सत्र 14 सितंबर से शुरू हो रहा है और इस बार सदन की बैठक के लिए कई बदलाव भी किए गए हैं। सूत्रों ने बताया कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने आठ सितंबर को पार्टी के रणनीति समूह की बैठक बुलाई है। विपक्षी नेता चाहते हैं कि समान सोच वाले दलों को संसद में सरकार को घेरने के लिए एक दूसरे के साथ मिलकर तालमेल से काम करना चाहिए। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी, शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे और झामुमो के हेमंत सोरेन जेईई/नीट और जीएसटी मुद्दे पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ विपक्षी दलों के मुख्यमंत्रियों की हालिया बैठक के दौरान यह विचार व्यक्त कर चुके हैं।
नयी दिल्ली(ब्यूरो):
विपक्षी दल संसद में सरकार को कोरोना से निपटने, अर्थव्यवस्था और राज्यों को जीएसटी क्षतिपूर्ति, चीन के साथ सीमा पर गतिरोध जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर एक साथ मिलकर घेरने पर विचार कर रहे हैं। सूत्रों ने इस बारे में बताया है।
14 सितंबर से शुरू हो रहा है मानसून सत्र
उन्होंने बताया कि विभिन्न विपक्षी दलों के नेताओं द्वारा संसद के दोनों सदनों में सरकार के खिलाफ एक साथ मोर्चा खोलने के लिए इस सप्ताह बैठक कर एक संयुक्त रणनीति बनाने की संभावना है। कोविड-19 महामारी के बीच संसद का मानसून सत्र 14 सितंबर से शुरू हो रहा है। इस बार सदन की बैठक के लिए कई बदलाव भी किए गए हैं। सूत्रों ने बताया कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने आठ सितंबर को पार्टी के रणनीति समूह की बैठक बुलाई है।
विपक्षी नेता चाहते हैं कि समान सोच वाले दलों को संसद में सरकार को घेरने के लिए एक-दूसरे के साथ मिलकर तालमेल से काम करना चाहिए। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी, शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे और झामुमो के हेमंत सोरेन जेईई/नीट और जीएसटी मुद्दे पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ विपक्षी दलों के मुख्यमंत्रियों की हालिया बैठक के दौरान यह विचार व्यक्त कर चुके हैं।
एक बार बैठक कर चुकी है कांग्रेस
कांग्रेस की रणनीति बनाने वाला समूह एक बार बैठक कर चुका है और इस दौरान सत्र में उठाए जाने वाले मुद्दों पर चर्चा की गई। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को संप्रग के सहयोगियों और समान सोच वाले दलों से संपर्क करने को कहा गया है ताकि संसद के बाहर और भीतर सरकार के खिलाफ एकजुटता दिखायी जाए।
तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ ब्रायन ने पूर्व में कहा था कि समान सोच वाले विपक्षी दल संसद में एक साथ काम करेंगे और जनता के मुद्दों को उठाएंगे। उन्होंने कहा था कि संसद में ऐसे दलों के बीच आपसी तालमेल होगा। सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने रविवार को कहा कि विपक्ष की संयुक्त रणनीति के लिए विचार-विमर्श चल रहा है।
विपक्षी नेताओं की जल्द ही बैठक होगी
सीपीआई नेता डी राजा ने भी कहा कि इस संबंध में विपक्षी नेताओं की जल्द ही बैठक होगी। पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर बढ़े तनाव के संबंध में विपक्ष इस पर सरकार से जवाब की मांग करेगा। देश में कोविड-19 के बढ़ रहे मामलों को लेकर भी चर्चा होने की संभावना है। फेसबुक को लेकर भी संसद में गर्मागर्म बहस हो सकती है।
नीट समेत कई अन्य परीक्षाएं कराने का मुद्दा भी उठाया जा सकता है। विपक्ष ने आरोप लगाया है कि कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों के बीच परीक्षाएं आयोजित कर सरकार ने छात्रों के जीवन को खतरे में डाला है। कांग्रेस हालिया समय में सरकार द्वारा जारी अध्यादेश का भी विरोध कर सकती है।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2020/09/images.jpg159318Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2020-09-06 16:03:482020-09-06 16:19:07हंगामेदार होगा इस बार का मानसून सत्र, क्या एकजुट विपक्ष चलने देगा संसद?
मोदी सरकार ने कोरोना पर अपनी विफलता छुपाने के लिए तबलीगी जमात को ‘बलि का बकरा’ बनाया और मीडिया ने इस पर प्रॉपेगेंडा चलाया। बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में तबलीगी जमात मामले में देश और विदेश के जमातियों के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द कर दिया है। इस एक फैसले ने तबलिगी जमात के प्रति लोगों को अपने विचार बदलने पर मजबूर किया हो ऐसा नहीं है, हाँ मुसलमानों के एक तबके में राहत है और खुशी की लहर है। इस फैसले का मोदी सरकार के तथाकथित @#$%$ मीडिया वाली बात सच साबित होती दिखती है।
महाराष्ट्र(ब्यूरो):
बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में तबलीगी जमात मामले में देश और विदेश के जमातियों के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में तबलीगी जमात को ‘बलि का बकरा’ बनाया गया। कोर्ट ने साथ ही मीडिया को फटकार लगाते हुए कहा कि इन लोगों को ही संक्रमण का जिम्मेदार बताने का प्रॉपेगेंडा चलाया गया। वहीं कोर्ट के इस फैसले के बाद असदुद्दीन ओवैसी ने बीजेपी पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि इस प्रॉपेगेंडा से मुस्लिमों को नफरत और हिंसा का शिकार होना पड़ा।
देश में जब दिल्ली के निज़ामुद्दीन में स्थित तबलीग़ी जमात के बने मरकज़ में फंसे लोगों की ख़बर निकल कर सामने आई और तबलीगी जमात में शामिल छह लोगों की कोविड-19 से मौत का मामला सामने आया, तब से ही भारतीया मीडिया ने तबलीग़ी जमात की आड़ में देश के मुस्लमानों पर फेक न्यूज़ की बमबारी कर दी । मीडिया ने चंद लम्हों में इसको हिंदू-मुस्लिम का मामला बना कर परोसना शुरू कर दिया । सरकार से सवाल पूछने के बजाए नेशनल चैनल पर अंताक्षरी खेलने वाली मीडिया को जैसे ही मुस्लमानों से जुड़ा कोई मामला मिला उसने देश भर के मुस्लमानों की छवि को धूमिल करना शुरू कर दिया । कोरोनावायरस जैसी जानलेवा बीमारी को भारत में फैलाने का ज़िम्मेदार मुस्लमानों को ठहराना शुरू कर दिया। : नेहाल रिज़वी
कोर्ट ने शनिवार को मामले पर सुनवाई करते हुए कहा, ‘दिल्ली के मरकज में आए विदेशी लोगों के खिलाफ प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बड़ा प्रॉपेगेंडा चलाया गया। ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की गई, जिसमें भारत में फैले Covid-19 संक्रमण का जिम्मेदार इन विदेशी लोगों को ही बनाने की कोशिश की गई। तबलीगी जमात को बलि का बकरा बनाया गया।’
हाई कोर्ट बेंच ने कहा, ‘भारत में संक्रमण के ताजे आंकड़े दर्शाते हैं कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ ऐसे ऐक्शन नहीं लिए जाने चाहिए थे। विदेशियों के खिलाफ जो ऐक्शन लिया गया, उस पर पश्चाचाताप करने और क्षतिपूर्ति के लिए पॉजिटिव कदम उठाए जाने की जरूरत है।
वहीं हैदराबाद से सांसद और AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने कोर्ट के इस फैसले की सराहना करते हुए इसे सही समय पर दिया गया फैसला करार दिया। ओवैसी ने ट्वीट कर कहा, ‘पूरी जिम्मेदारी से बीजेपी को बचाने के लिए मीडिया ने तबलीगी जमात को बलि का बकरा बनाया। इस पूरे प्रॉपेगेंडा से देशभर में मुस्लिमों को नफरत और हिंसा का शिकार होना पड़ा।’
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2020/08/tabligi.jpg400650Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2020-08-23 08:35:272020-08-23 08:35:49तबलीगी जमात को औरंगाबाद हाइ कोर्ट से राहत, एफ़आईआर रद्द, ओवैसी ने भाजपा पर साधा निशाना
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