क्या वसुंधरा के पर कतरकर पार्टी डैमेज कंट्रोल कर पाएगी?


पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे ज्यादा परेशानी राजस्थान में ही हो रही है.


पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे ज्यादा परेशानी राजस्थान में ही हो रही है. राज्य में बीजेपी की सीधी लड़ाई कांग्रेस से है लिहाजा किसी तीसरे मोर्चे की ताकत नजर नहीं आ रही है. भले ही घनश्याम तिवाड़ी जैसे बीजेपी के पुराने दिग्गज अलग से मैदान में ताल ठोक रहे हों या फिर दलित वोटों की जुगत में लगी बीएसपी भी मैदान में क्यों न उतर आई हो, लेकिन, मुकाबले के केंद्र में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ही हैं.

बीजेपी की कोशिश, लड़ाई के केंद्र में हों मोदी

2018 के इस मुकाबले में मजबूत दावेदार बनकर उभरी कांग्रेस ने पांच साल की वसुंधरा सरकार के काम को आधार बनाकर हमला बोलना शुरू किया है. पलटवार बीजेपी की तरफ से भी हो रहा है, लेकिन, बीजेपी की कोशिश 2018 की इस लड़ाई के केंद्र से वसुंधरा को हटाकर मोदी को लाने की है. बीजेपी चाहती है कि पांच साल की लड़ाई महज वसुंधरा राजे बनाम सचिन पायलट न बनकर मोदी बनाम राहुल की लड़ाई के तौर पर सामने आए.

टीम अमित शाह की रणनीति के केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं जिनके साढ़े चार साल के काम-काज को आधार बनाकर बीजेपी 2019 की बड़ी लड़ाई के पहले 2018 में भी राजस्थान के रेगिस्तान में अपनी कंटीली राह को कुछ हद तक आसान बनाना चाहती है.

बीजेपी के रणनीतिकारों को लगता है कि अगर लड़ाई मोदी बनाम राहुल की हो तो फिर बीजेपी को काफी हद तक राहत मिल सकती है, वरना राजस्थान में इस बार पार्टी के लिए अपना किला बचाना मुश्किल लग रहा है.

अमित शाह की सियासी बिसात

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने राजस्थान को लेकर विशेष ‘गेम प्लान’ भी तैयार किया है. इसके लिए उन्होंने खुद सबसे ज्यादा फोकस राजस्थान पर किया है. शाह के लगातार हो रहे राजस्थान दौरे और वहां हर संभाग में जाकर पार्टी संगठन को चुस्त करने की कवायद इस बात का प्रतीक है. वसुंधरा राजे से नाराज पार्टी नेताओं को साथ लाने की कोशिश भी हो रही है. संघ और संगठन में समन्वय के साथ-साथ बूथ स्तर पर पार्टी को मजबूत करने पर जोर दिया जा रहा है.

माइक्रो मैनेजमेंट के माहिर खिलाड़ी अमित शाह खुद पूरे मामले पर नजर रख रहे हैं. बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने फ़र्स्टपोस्ट के साथ बातचीत में कहा, ‘भले ही राज्य में बीजेपी ने कई नेताओं और प्रभारियों को जिम्मेदारी दी है, लेकिन, खुद अमित शाह की हर पहलू पर नजर है.’

इसके अलावा राज्य में चुनाव प्रभारी केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर को बनाया गया है, जबकि अविनाश राय खन्ना पहले से ही प्रभारी की भूमिका में काम कर रहे हैं. ये दोनों नेता राज्य में पार्टी की चुनावी रणनीति को लेकर लगातार बैठक भी कर रहे हैं और उम्मीदवारों के चुनाव में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.

राज्यसभा सांसद मदनलाल सैनी अभी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं, हालांकि पार्टी आलाकमान केंद्रीय मंत्री और जोधपुर से सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाह रहा था, लेकिन, मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के विरोध के चलते मदन लाल सैनी को प्रदेश की कमान सौंपकर बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की गई. पार्टी आलाकमान ने चुनावी साल में विवाद खत्म करने के लिए ऐसा कर दिया. लेकिन, बाद में गजेंद्र सिंह शेखावत को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाकर संकेत साफ दे दिया गया कि पार्टी आलाकमान की पसंद गजेंद्र सिंह शेखावत ही हैं.

भरोसेमंद नेताओं के भरोसे आलाकमान !

हालांकि इन लोगों के अलावा भी बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने संगठन के दूसरे नेताओं को मैदान में उतार दिया है. बीजेपी के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री वी सतीश, केंद्रीय मंत्री और बीकानेर से सांसद अर्जुन राम मेघवाल, पार्टी महासचिव भूपेंद्र यादव और राजस्थान में संगठन मंत्री चंद्रशेखर भी लगातार चुनावी तैयारी में लगे हुए हैं जिनसे मिले फीडबैक के आधार पर पार्टी आगे की रणनीति बना रही है.

राजस्थान में संगठन मंत्री चंद्रशेखर कुछ महीने पहले ही राजस्थान में संगठन को दुरुस्त करने की जिम्मेदारी दी गई है. इसके पहले वे पश्चिमी यूपी के संगठन का काम देख रहे थे. चंद्रशेखर को राजस्थान भेजने के पीछे भी बीजेपी आलाकमान का मकसद वसुंधरा की नकेल कसना था.

इसके अलावा वसुंधरा राजे की काट के लिए प्रदेश के दो राजपूत नेताओं केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को भी मैदान में उतारा है. इस तरह बीजेपी आलाकमान ने अपने तरीके से राजस्थान में पार्टी संगठन और चुनावी रणनीति में वसुंधरा की मनमानी को रोकने की पूरी तैयारी कर ली है.

नहीं चलेगी महारानी की मनमानी !

राजस्थान में पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के 200 में से 162 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि कांग्रेस महज 21 सीटों पर ही सिमट कर रह गई थी. उस वक्त मोदी लहर का असर राजस्थान में भी दिखा था. लेकिन, इस बार इस तरह की कोई लहर नहीं दिख रही है. बल्कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ माहौल जरूर दिख रहा है.बीजेपी की कोशिश है डैमेज कंट्रोल करने की. पार्टी को इस बात का अंदाजा है, क्योंकि इस साल हुए अजमेर और अलवर लोकसभा के उपचुनाव और मांडलगढ़ के विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था. इसे मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ गुस्से के तौर पर देखा गया था.

अब पार्टी आलाकमान ने डैमेज कंट्रोल करने के लिए ही पहले वसुंधरा के हाथों में चुनाव की पूरी कमान सौंपने के बजाए कई नेताओं को अपने तरीके से चुनाव अभियान की कमान सौंपी है. दूसरी तरफ अब तैयारी हो रही है कई मौजूदा विधायकों के टिकट काटने की.

बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, इस बार 162 विधायकों में से एक तिहाई से ज्यादा विधायकों के टिकट भी कट जाएं तो बहुत आश्चर्य नहीं होना चाहिए. पार्टी एंटीइंबेंसी फैक्टर को कम करने के लिए इस तरह की तैयारी कर रही है. इसके लिए पार्टी आलाकमान ने हर विधायक की रिपोर्ट मंगाई है, जिसके आधार पर ही टिकट का फैसला होगा.

बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, हर मौजूदा विधायक को टिकट उनके परफॉरमेंस और रिपोर्ट कार्ड के आधार पर ही तय होगा, भले ही वो विधायक कितने भी दिनों से अपने क्षेत्र से विधायक क्यों न हो ? सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी इस बाबत अपनी मंशा से पार्टी नेताओं को अवगत करा दिया है.

हालांकि, इसके पहले विधानसभा चुनाव या फिर लोकसभा चुनाव में वसुंधरा राजे की ही मनमानी चलती रही है, क्योंकि वहां प्रदेश अध्यक्ष भी अबतक उन्हीं के गुट के रहे हैं. लेकिन, अब पहली बार वसुंधरा पार्टी के अंदर ही घिर गई हैं. महारानी की मनमानी इस बार अब नहीं चलने वाली है. पार्टी आलाकमान जीताऊ उम्मीदवार और उम्मीदवार के रिपोर्ट कार्ड के आधार पर ही फैसला करेगा.

पार्टी की नजर लोकसभा चुनाव पर

2014 के लोकसभा चुनाव में राजस्थान की सभी 25 सीटें बीजेपी की झोली में आई थीं. लोकसभा चुनाव से पहले हुए विधानसभा चुनाव का असर लोकसभा में भी देखने को मिला था. इस लिहाज से बीजेपी के लिए अब विधानसभा का चुनाव काफी अहम हो गया है. पार्टी आलाकमान को अंदाजा है कि अगर विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन ज्यादा खराब हुआ तो फिर उसका असर लोकसभा चुनाव में भी पड़ सकता है.

पार्टी की तरफ से इसी रणनीति के तह तैयारी हो रही है, जिसमें पहले तैयारी सरकार बनाने की होगी. लेकिन, बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, अगर सरकार नहीं बन पाई तो भी पार्टी मजबूत विपक्ष के तौर पर राज्य में अपने –आप को जिंदा रखे, वरना कांग्रेस की एकतरफा जीत और पार्टी की एकतरफा हार का असर सीधे लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा.

सूत्रों के मुताबिक, अगर राजस्थान में सरकार नहीं बन पाई तो बीजेपी वसुंधरा को किनारे करने की तैयारी करेगी. हो सकता है कि पार्टी उन्हें विधानसभा में नेताप्रतिपक्ष का पद न दे. लोकसभा चुनाव से पहले अगर ऐसा पार्टी नहीं भी कर पाई तो इतना तय है कि फिर वो अपने हिसाब से नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति कर लोकसभा चुनाव की तैयारी करेगी. उस वक्त कमजोर हो चुकी वसुंधरा राजे को नजरअंदाज कर गजेंद्र सिंह शेखावत जैसे युवा चेहरे को कमान सौंपी जा सकती है.

नेताजी, पटेल और आंबेडकर के सम्मान से कांग्रेस को क्यों ऐतराज है: शाहनवाज हुसैन


शाहनवाज हुसैन ने कहा, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभ भाई पटेल, बाबा साहब भीमराव आंबेडकर जैसे महापुरूषों का सम्मान किए जाने का तो कांग्रेस को स्वागत करना चाहिए


मोदी सरकार पर इतिहास को फिर से लिखने का प्रयास करने के कांग्रेस के आरोप पर पलटवार करते हुए बीजेपी ने सोमवार को कहा कि नेताजी, सरदार पटेल, बाबा साहब आंबेडकर जैसे महापुरूषों के सम्मान पर विपक्षी दल को ऐतराज क्यों हो रहा है?

बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सैयद शाहनवाज हुसैन ने कहा, ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभ भाई पटेल, बाबा साहब भीमराव आंबेडकर जैसे महापुरूषों का सम्मान किए जाने का तो कांग्रेस को स्वागत करना चाहिए. लेकिन उसे इस पर ऐतराज है, क्यों?’

उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार इतिहास को फिर से लिखने का प्रयास नहीं कर रही है, बल्कि इन महापुरूषों के साथ जो नाइंसाफी हुई, जिस प्रकार इन्हें कांग्रेस ने भुलाने का काम किया, उसे दूर करते हुए उन्हें सम्मान देने का प्रयास किया जा रहा है.

हुसैन ने कहा कि 75 साल में पहली बार, अखंड भारत की पहली सरकार को सम्मानपूर्वक, समारोह में याद किया गया. कांग्रेस पर निशाना साधते हुए बीजेपी प्रवक्ता ने कहा कि नेताजी की तरह ही सरदार पटेल और बाबा साहब आंबेडकर का योगदान भुलाने की कोशिश की गई. 31 अक्टूबर को सरदार पटेल की याद में ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ का अनावरण किया जा रहा है.

स्वतंत्रता संग्राम में आरएसएस के योगदान पर कांग्रेस द्वारा सवाल उठाने के विषय पर हुसैन ने कहा कि कांग्रेस के लिए एक ही परिवार का योगदान मायने रखता है जबकि आजादी की लड़ाई में नागरिक होने के नाते अनेकानेक लोगों ने योगदान दिया और देश से मोहब्बत रखने वाला संगठन होने के नाते संघ ने भी योगदान दिया.

उल्लेखनीय है कि कांग्रेस ने बीजेपी नीत केंद्र सरकार पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की धरोहर हथियाने के लिए ‘षडयंत्रपूर्ण प्रयास’ करने का आरोप लगाते हुए रविवार को कहा था कि बीजेपी इतिहास फिर से लिखने के लिए व्याकुल है.

कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि ‘व्याकुल बीजेपी इतिहास फिर से लिखने की कोशिश कर रही है और सरदार पटेल एवं जवाहरलाल नेहरू के बीच तथा नेताजी सुभाष चंद्र बोस एवं नेहरू के बीच एक काल्पनिक प्रतिद्वंद्विता पैदा कर रही है. इसने शुभ अवसरों का इस्तेमाल ओछे राजनीतिक हथकंडों के लिए किया है.’

इससे पहले आजाद हिंद सरकार की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर रविवार को आयोजित समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि यह दुखद है कि एक परिवार को बड़ा बताने के लिए, देश के अनेक सपूतों के योगदान को भी भुलाने का प्रयास किया गया.

अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वी राज चौहान का महासम्मेलन 24 अक्तूबर को

पंचकूला, 22 अक्तूबर:

अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वी राज चौहान का महासम्मेलन 24 अक्तूबर को बरवाला अनाज मंडी के पास राजपूत यूथ ब्रिगेड के द्वारा आयोजित किया जाएगा। इस सम्मेलन में पंजाब विधानसभा स्पीकर राणा के.पी. सिंह तथा स्पीकर हरियाणा विधानसभा कंवरपाल गुज्जर मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत करेंगे जबकि समाज के आदर्श भाई शेर सिंह राणा व स्व. पृथ्वीराज चौहान की 36वीं पीढ़ी से श्रीमती सुनीता सिंह विशिष्ट अतिथि होंगे। इसके साथ-साथ काफी संख्या में समाज व सरकार के अन्य प्रतिनिधि भी भाग लेंगे।

पंचकूला, कालका व नारायणगढ़  विधानसभा क्षेत्र के विधायक तथा समाज से हरियाणा के एकमात्र विधायक श्याम सिंह राणा भी उपस्थित रहेंगे। यह जानकारी राजपूत यूथ ब्रिगेड एसोसिएशन (रजि0) के गणतव्य संयोजक जतिंदर सिंह राणा ने पंचकूला के सैक्टर एक स्थित रेड बिशप में आयोजित प्रेस वार्ता के दौरान दी। उन्होंने बताया कि इससे पूर्व भी संस्था द्वारा 2016 में अम्बाला में महाराणा प्रताप की जयंती का आयोजन किया था, जिसमे हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल सहित कई महानुभावों ने इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया था। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम को आयोजित करने का उद्देश्य युवा पीढ़ी को सही रास्ते पर लाना तथा उन्हें  पृथ्वीराज चौहान के मार्ग का अनुसरण करते हुए बुलंदियों तक पहुंचाना है। इसके अलावा कार्यक्रम का उद्देश्य 36 बिरादरियों में एकता व सामाजिक समरसता को बढ़ावा देना है। उन्होंने बताया कि समाज द्वारा समाज कल्याण के लिए भी कई कार्य किये जाते हैं तथा कई सामाजिक गतिविधियों का आयोजन किया जाता है, जिसमे खेल प्रतियोगिताएं, रक्तदान शिविर, गरीब व्यक्तियों की सहायता इत्यादि में भी समाज द्वारा बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया जाता है।

राहुल गांधी महागठबंधन के पीएम उम्मीदवार नहीं


पूर्व केंद्रीय वित्‍त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि पिछले दो दशकों में राष्‍ट्रीय पार्टियों के वोट बैंक में सेंधमारी कर क्षेत्रीय पार्टियों की स्थिति मजबूत हुई है


2019 लोकसभा चुनाव को लेकर पूर्व केंद्रीय वित्‍त मंत्री पी चिदंबरम ने एक बड़ा खुलासा किया है. आम चुनावों को लेकर बयान देते हुए पी चिदंबरम ने कहा कि 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार के तौर पर घोषित नहीं करेगी. पूर्व केंद्रीय वित्‍त मंत्री पी चिदंबरम ने यह बात मिडियाकर्मियों से कही. उन्‍होंने कहा कि राहुल ही नहीं कांग्रेस अन्‍य किसी भी व्‍यक्ति की दावेदारी की घोषणा नहीं करेगी.

पूर्व केंद्रीय वित्‍त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि पिछले दो दशकों में राष्‍ट्रीय पार्टियों के वोट बैंक में सेंधमारी कर क्षेत्रीय पार्टियों की स्थिति मजबूत हुई है. बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों का संयुक्‍त वोट शेयर भी 50 फीसदी से कम है. उन्होंने कहा कि केंद्र में बीजेपी सरकार यह देखने के लिए पुरजोर कोशिशें कर रही है कि क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस से हाथ न मिला लें. स्थिति बदल जाएगी और कांग्रेस राज्‍य स्‍तर पर जबरदस्त गठबंधन बनाएगी.

पी चिदंबरम ने कहा- हम बीजेपी को बाहर देखना चाहते हैं और उसकी जगह पर एक ऐसी सरकार बनाना चाहते हैं जो कि प्रगतिशील हो, लोगों की स्वतंत्रता का सम्मान करती हो, भारी टैक्स से लोगों में तनाव न पैदा करती हो, महिलाओं और बच्चों को सुरक्षा दे सके और किसानों की स्थिति में सुधार कर सके. उन्होंने कहा हम गठबंधन चाहते हैं और उसके बाद ही मिलजुल कर पीएम उम्मीदवार का नाम तय किया जाएगी. आपको बता दें कि इसी बीच पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी एक दिवसीय दौरे पर आज रायपुर पहुंचेंगे. वह साइंस कॉलेज में एक सभा को संबोधित करेंगे. इसके बाद शाम को सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों से चर्चा भी करेंगे.

बीजेपी इतिहास फिर से लिखने, नेताजी की धरोहर हथियाने को व्याकुल: सिंघवी


सिंघवी ने कहा कि कांग्रेस ने हमेशा ही बहादुर देशभक्त और धर्मनिरपेक्षतावादी बोस के आदर्शों को संरक्षित रखने और उन्हें प्रसारित करने की कोशिश की है


कांग्रेस ने बीजेपी नीत केंद्र सरकार पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की धरोहर हथियाने के लिए ‘षडयंत्रपूर्ण प्रयास’ करने का आरोप लगाते हुए रविवार को कहा कि भगवा पार्टी इतिहास फिर से लिखने के लिए व्याकुल है.

कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि उनकी पार्टी (कांग्रेस) ने राष्ट्र नायकों को अपमानित करने के नरेंद्र मोदी सरकार के नापाक मंसूबों को खारिज दिया है.

उन्होंने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस और सरदार पटेल सांप्रदायिकता एवं धर्मांधता के दर्शन के पूरी तरह से खिलाफ थे, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वैचारिक संस्थाओं-आरएसएस और हिंदू महासभा- द्वारा इसका समर्थन किया गया. वहीं, विनायक दामोदर सावरकर ने देशवासियों से ब्रिटिश इंडियन आर्मी में शामिल होने की पुरजोर अपील की थी. सावरकर को आरएसएस बहुत सम्मान की नजरों से देखता है.

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को नेहरू – गांधी परिवार पर परोक्ष हमला बोलते हुए आरोप लगाया कि सिर्फ ‘एक परिवार’ का महिमामंडन करने के लिए स्वतंत्रता आंदोलन में सरदार पटेल, भीमराव आंबेडकर और बोस जैसे कई नेताओं के योगदान को जानबूझ कर भुला दिया गया. प्रधानमंत्री ने आजाद हिंद सरकार के गठन के 75 वर्ष पूरे होने के मौके पर यह कहा.

वहीं, सिंघवी ने कहा कि कांग्रेस ने हमेशा ही बहादुर देशभक्त और धर्मनिरपेक्षतावादी बोस के आदर्शों को संरक्षित रखने और उन्हें प्रसारित करने की कोशिश की है.

उन्होंने कहा कि जिन लोगों की अपनी कोई विचारधारा और आदर्श नहीं हैं और जिनका राष्ट्रीय आंदोलन में कुछ भी योगदान नहीं रहा है, वे खुद को राष्ट्रवादी के तौर पर पेश करने का प्रयास करते हुए हमारे स्वतंत्रता सेनानियों की धरोहर हथियाने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि आज, प्रधानमंत्री मोदी ने भी यही करने की हताशापूर्ण कोशिश की.

सिंघवी ने कहा, ‘व्याकुल बीजेपी इतिहास फिर से लिखने की कोशिश कर रही है और सरदार पटेल एवं जवाहरलाल नेहरू के बीच तथा नेताजी सुभाष चंद्र बोस एवं नेहरू के बीच एक काल्पनिक प्रतिद्वंद्विता पैदा कर रही है. इसने शुभ अवसरों का इस्तेमाल इन ओछे राजनीतिक हथकंडों के लिए किया है.’

उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि पटेल ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी को लिखे अपने पत्र में कहा था कि हिंदू महासभा की गतिविधियां सरकार के अस्तित्व के लिए एक स्पष्ट खतरा है और प्रतिबंध के बावजूद गतिविधियां खत्म नहीं हुई हैं.

उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया कि नेहरू आजाद हिंद फौज के सेनानियों पर चले मुकदमे के दौरान बोस के वकीलों में शामिल थे.

सिंघवी ने पूछा, ‘क्या आरएसएस से किसी व्यक्ति ने नेताजी का समर्थन किया था? बीजेपी और प्रधानमंत्री हर राष्ट्रीय धरोहर को हथियाने की हताशापूर्ण कर रहे हैं.’

कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया कि आरएसएस और बीजेपी देश को आजाद कराने की बोस की सैन्य कोशिशों को लेकर उनकी सराहना कर रही है, जबकि उनके वैचारिक पूर्वजों ने इसके ठीक उलट कार्य किया था.

उन्होंने कहा कि जब नेताजी जापान में आजाद हिंद फौज को तैयार कर कर रहे थे और गांधीजी ने भारत छोड़ो आंदोलन का आह्ववान किया था, उस वक्त आरएसएस अंग्रेजों से घनिष्ठ संबंध बना रहा था.

कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने ट्विटर पर कहा कि यदि आप इतिहास को हथियाना चाहेंगे, तो राष्ट्र को यह याद दिलाना पड़ेगा कि नेताजी ने सैन्य अभियान के जरिए अंग्रेजों से भारत को आजादी दिलाने की अलख जगाई थी. जबकि वीर सावरकर जैसे लोगों ने अंग्रेजों के पिट्ठू के तौर पर काम किया था. सांप्रदायिक बीजेपी विभाजन का यही खेल आज खेल रही है.

सलमान खुर्शीद बोले- कांग्रेस को रोकने की कीमत पर नहीं होना चाहिए विपक्ष का महागठबंधन

सलमान खुर्शीद बोले- कांग्रेस को रोकने की कीमत पर नहीं होना चाहिए विपक्ष का महागठबंधन


खुर्शीद ने कहा कि 2019 के आम चुनावों में बीजेपी को हराने के लिए सहयोगियों को त्याग करने और तालमेल बिठाने के लिए तैयार रहना चाहिए


कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद का मानना है कि मौजूदा हालात में पार्टी का अकेले दम पर सत्ता में आना मुश्किल है, लेकिन ‘कांग्रेस को रोकने की कीमत पर’ विपक्षी महागठबंधन नहीं बनना चाहिए.

खुर्शीद ने कहा कि 2019 के आम चुनावों में बीजेपी को हराने के लिए सहयोगियों को त्याग करने और तालमेल बिठाने के लिए तैयार रहना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘हमारे सभी नेताओं ने साफ कर दिया है कि देश की सरकार को बदलने के लिए गठबंधन की जरूरत है. बीजेपी को जाना होगा. गठबंधन को मूर्त रूप देने के लिए चाहे जिस त्याग, तालमेल और बातचीत की जरूरत हो, कांग्रेस वह करने के लिए तैयार है.’

पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘लेकिन अच्छा यहीं रहेगा कि अन्य (विपक्षी) पार्टियों का भी रुख ऐसा ही हो. गठबंधन कांग्रेस को रोकने के लिए नहीं होना चाहिए, गठबंधन बीजेपी को हटाने के लिए होना चाहिए और हम किसी भी चीज के लिए तैयार हैं.’

यह पूछे जाने पर कि क्या अकेले के दम पर कांग्रेस का सत्ता में आना संभव है, इस पर खुर्शीद ने कहा, ‘निश्चित तौर पर आज यह मुश्किल है.’ उन्होंने कहा, ‘यदि यह (अकेले दम पर बहुमत पाना) उद्देश्य है तो हमें पांच साल काम करना होगा. क्योंकि आप तीन साल तक गठबंधन की दिशा में काम करके अचानक यह नहीं कह सकते कि हम (अपने दम पर) जीतने के लिए चुनाव लड़ेंगे. आपको पांच साल लड़ना होगा. आज हम गठबंधन के लिए प्रतिबद्ध हैं. हम यह सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव कदम उठाएंगे कि गठबंधन सफल हो.’

खुर्शीद ने कहा कि कांग्रेस एकमात्र पार्टी है जिसे पूरे देश से सीटें मिलती हैं और अन्य सभी (विपक्षी) पार्टियों को अपने-अपने राज्यों से सीटें मिलती हैं. पूर्व विदेश मंत्री ने यह बयान ऐसे समय में दिया है जब विपक्ष 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए महागठबंधन बनाने की कोशिशों में जुटा है. बीएसपी प्रमुख मायावती ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के आगामी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस से गठबंधन नहीं करने का फैसला किया, जिससे महागठबंधन बनने की उम्मीदों को झटका लगा है.

समाजवादी पार्टी (एसपी) ने भी मध्य प्रदेश में कांग्रेस से गठबंधन नहीं करने का फैसला किया है. खुर्शीद ने कहा कि महागठबंधन का मकसद मोदी सरकार को मात देना है. उन्होंने कहा, ‘यदि महागठबंधन में शामिल होने वाले दल इस मकसद को भूलेंगे तो निश्चित तौर पर यह नहीं बन पाएगा और यह हर पार्टी एवं देश का नुकसान होगा.’ खुर्शीद ने उम्मीद जताई कि मायावती की बीएसपी महागठबंधन में लौट आएगी. उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनावों के मुद्दे लोकसभा चुनावों से अलग होते हैं.

जानिये और समझिये कि सबरीमला मंदिर क्यों सबकी आंखों में खटक रहा है?

दिनेश पाठक अधिवक्ता, राजस्थान उच्च न्यायालय, जयपुर। विधि प्रमुख विश्व हिन्दु परिषद

केरल में सबरीमला के मशहूर स्वामी अयप्पा मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के नाम पर चल रहे विवाद के बीच लगातार यह सवाल उठ रहा है कि आखिर इस मंदिर में ऐसा क्या है कि ईसाई और इस्लाम धर्मों को मानने वाले तथाकथित एक्टिविस्ट भी कम से कम एक बार यहां घुसने को बेताब हैं।
इस बात को समझने के लिये हमें केरल के इतिहास और यहां इस्लामी और राज्य में बीते 4-5 दशक से चल रही ईसाई धर्मांतरण की कोशिशों को भी समझना होगा।
मंदिर में प्रवेश पाने के पीछे नीयत धार्मिक नहीं, बल्कि यहां के लोगों की सदियों पुरानी धार्मिक आस्था को तोड़ना है, ताकि इस पूरे इलाके में बसे लाखों हिंदुओं को ईसाई और इस्लाम जैसे अब्राहमिक धर्मों में लाया जा सके।
केरल में चल रहे धर्मांतरण अभियानों में सबरीमला मंदिर बहुत बड़ी रुकावट बनकर खड़ा है।
पिछले कुछ समय से इसकी पवित्रता और इसे लेकर स्थानीय लोगों की आस्था को चोट पहुंचाने का काम चल रहा था।
लेकिन हर कोशिश नाकाम हो रही थी।
लेकिन आखिरकार महिलाओं के मुद्दे पर ईसाई मिशनरियों ने न सिर्फ सबरीमला के अयप्पा मंदिर बल्कि पूरे केरल में हिंदू धर्म के खात्मे के लिए सबसे बड़ी चाल चल दी है।

सबरीमला के इतिहास को समझिये…

1980 से पहले तक सबरीमला के स्वामी अयप्पा मंदिर के बारे में ज्यादा लोगों को नहीं पता था। केरल और कुछ आसपास के इलाकों में बसने वाले लोग यहां के भक्त थे।
70 और 80 के दशक का यही वो समय था जब केरल में ईसाई मिशनरियों ने सबसे मजबूती के साथ पैर जमाने शुरू कर दिये थे।
उन्होंने सबसे पहला निशाना गरीबों और अनुसूचित जाति के लोगों को बनाया।
इस दौरान बड़े पैमाने पर यहां लोगों को ईसाई बनाया गया। इसके बावजूद लोगों की मंदिर में आस्था बनी रही।
इसका बड़ा कारण यह था कि मंदिर में पूजा की एक तय विधि थी जिसके तहत दीक्षा आधारित व्रत रखना जरूरी था।
सबरीमला उन मंदिरों में से है जहां पूजा पर किसी जाति का विशेषाधिकार नहीं है किसी भी जाति का हिंदू पूरे विधि-विधान के साथ व्रत का पालन करके मंदिर में प्रवेश पा सकता है।
सबरीमला में स्वामी अयप्पा को जागृत देवता माना जाता है।
यहां पूजा में जाति विहीन व्यवस्था का नतीजा है कि इलाके के दलितों और आदिवासियों के बीच मंदिर को लेकर अटूट आस्था है।
मान्यता है कि मंदिर में पूरे विधि-विधान से पूजा करने वालों को मकर संक्रांति के दिन एक विशेष चंद्रमा के दर्शन होते हैं जो लोग व्रत को ठीक ढंग से नहीं पूरा करते उन्हें यह दर्शन नहीं होते।
जिसे एक बार इस चंद्रमा के दर्शन हो गए माना जाता है कि उसके पिछले सभी पाप धुल जाते हैं।

सबरीमला से आया सामाजिक बदलाव…

सबरीमला मंदिर की पूजा विधि देश के बाकी मंदिरों से काफी अलग और कठिन है।
यहां दो मुट्ठी चावल के साथ दीक्षा दी जाती है इस दौरान रुद्राक्ष जैसी एक माला पहननी होती है।
साधक को रोज मंत्रों का जाप करना होता है।
इस दौरान वो काले कपड़े पहनता है और जमीन पर सोता है।
जिस किसी को यह दीक्षा दी जाती है उसे स्वामी कहा जाता है।
यानी अगर कोई रिक्शावाला दीक्षा ले तो उसे रिक्शेवाला बुलाना पाप होगा इसके बजाय वो स्वामी कहलायेगा।
इस परंपरा ने एक तरह से सामाजिक क्रांति का रूप ले लिया।
मेहनतकश मजदूरी करने वाले और कमजोर तबकों के लाखों-करोड़ों लोगों ने मंदिर में दीक्षा ली और वो स्वामी कहलाये।
ऐसे लोगों का समाज में बहुत ऊंचा स्थान माना जाता है।
यानी यह मंदिर एक तरह से जाति-पाति को तोड़कर भगवान के हर साधक को वो उच्च स्थान देने का काम कर रहा था जो कोई दूसरी संवैधानिक व्यवस्था कभी नहीं कर सकती है।

ईसाई मिशनरियों के लिये मुश्किल

सबरीमला मंदिर में समाज के कमजोर तबकों की एंट्री और वहां से हो रहे सामाजिक बदलाव ने ईसाई मिशनरियों के कान खड़े कर दिये उन्होंने पाया कि जिन लोगों को उन्होंने धर्मांतरित करके ईसाई बना लिया वो भी स्वामी अयप्पा में आस्था रखते हैं और कई ने ईसाई धर्म को त्यागकर वापस सबरीमला मंदिर में ‘स्वामी’ के तौर पर दीक्षा ले ली।
यही कारण है कि ये मंदिर ईसाई मिशनरियों की आंखों में लंबे समय से खटक रहा था।
अमिताभ बच्चन, येशुदास जैसे कई बड़े लोगों ने भी स्वामी अयप्पा की दीक्षा ली हझ।
इन सभी ने भी मंदिर में रहकर दो मुट्ठी चावल के साथ दीक्षा ली है इस दौरान उन्होंने चप्पल पहनना मना होता था और उन्हें भी उन्हीं रास्तों से गुजरना होता था जहां उनके साथ कोई रिक्शेवाला, कोई जूते-चप्पल बनाने वाला स्वामी चल रहा होता था।
नतीजा यह हुआ कि ईसाई संगठनों ने सबरीमला मंदिर के आसपास चर्च में भी मकर संक्रांति के दिन फर्जी तौर पर ‘चंद्र दर्शन’ कार्यक्रम आयोजित कराए जाने लगे।
ईसाई धर्म के इस फर्जीवाड़े के बावजूद सबरीमला मंदिर की लोकप्रियता दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती रही थी।
नतीजा यह हुआ कि उन्होंने मंदिर में 10 से 50 साल तक की महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक को मुद्दा बनाकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाल दी।
यह याचिका कोर्ट में एक हिंदू नाम वाले कुछ ईसाइयों और एक मुसलमान की तरफ से डलवाई गई।

1980 में सबरीमला मंदिर के बागीचे में ईसाई मिशनरियों ने रातों रात एक क्रॉस गाड़ दिया था।
फिर उन्होंने इलाके में परचे बांट कर दावा किया कि यह 2000 साल पुराना सेंट थॉमस का क्रॉस है इसलिये यहां पर एक चर्च बनाया जाना चाहिये।
उस वक्त आरएसएस के नेता जे शिशुपालन ने इस क्रॉस को हटाने के लिए आंदोलन छेड़ा था और वो इसमें सफल भी हुये थे।
इस आंदोलन के बदले में राज्य सरकार ने उन्हें सरकारी नौकरी से निकाल दिया था।

केरल में हिंदुओं पर सबसे बड़ा हमला

केरल के हिंदुओं के लिए यह इतना बड़ा मसला इसलिये है क्योंकि वो समझ रहे हैं कि इस पूरे विवाद की जड़ में नीयत क्या है।
राज्य में हिंदू धर्म को बचाने का उनके लिये यह आखिरी मौका है।
केरल में गैर-हिंदू आबादी तेज़ी के साथ बढ़ते हुए 35 फीसदी से भी अधिक हो चुकी है।
अगर सबरीमला की पुरानी परंपराओं को तोड़ दिया गया तो ईसाई मिशनरियां प्रचार करेंगी कि भगवान अयप्पा में कोई शक्ति नहीं है और वो अब अशुद्ध हो चुके हैं।
ऐसे में ‘चंद्र दर्शन’ कराने वाली उनकी नकली दुकानों में भीड़ बढ़ेगी।
नतीजा धर्मांतरण के रूप में सामने आएगा।
यह समझना बहुत मुश्किल नहीं है क्योंकि जिन तथाकथित महिला एक्टिविस्टों ने अब तक मंदिर में प्रवेश की कोशिश की है वो सभी ईसाई मिशनरियों की करीबी मानी जाती हैं।
जबकि जिन हिंदू महिलाओं की बराबरी के नाम पर यह अभियान चलाया जा रहा है वो खुद ही उन्हें रोकने के लिये मंदिर के बाहर दीवार बनकर खड़ी हैं।

दिनेश पाठक

नेशनल हेराल्ड केस: स्वामी का जवाब- मुझे ट्वीट करने का पूरा अधिकार है


मुझे ट्वीट याद नहीं है. मैंने अनगिनत ट्वीट किए हैं. और यह नहीं पता कि वोरा ने जिन ट्वीट्स का जिक्र किया है वो मेरे ही हैं


बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने शनिवार को दिल्ली की एक अदालत में नेशनल हेराल्ड मामले में अपने ट्वीट्स के जरिए कार्यवाही को प्रभावित करने की कोशिशों के आरोपों को खारिज कर दिया है. इसके साथ ही कहा कि कांग्रेस ने जिन ट्वीट्स के बारे में कहा है वैसा कोई भी सोशल मीडिया पोस्ट मुझे याद नहीं आता.

स्वामी, कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा की उस याचिका का जवाब दे रहे थे, जिसमें वोरा ने अदालत से नेशनल हेराल्ड मामले में स्वामी के ट्वीट करने पर रोक लगाने के आदेश की मांग की थी. नेशनल हेराल्ड केस में मोतीलाल वोरा, पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी मां सोनिया गांधी के साथ आरोपी हैं.

बीजेपी ने एडिशनल चीफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट समर विशाल को बताया कि वोरा ने जिन ट्वीट्स के बारे में कहा है उन्हें शक है कि उनके साथ छेड़छाड़ की गई होगी. लेकिन साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि मुझे ट्वीट करने का पूरा अधिकार है. स्वामी ने कहा कि मुझे ट्वीट याद नहीं है. मैंने अनगिनत ट्वीट किए हैं. और यह नहीं पता कि वोरा ने जिन ट्वीट्स का जिक्र किया है वो मेरे ही हैं.

ट्वीट कोई सबूत नहीं:

स्वामी ने आगे कहा कि ‘कानून के तहत ट्वीट स्वीकार्य नहीं है. और न ही किसी आवेदन के लिए उन्हें सबूत के रूप में गिना जा सकता है. अगर मुझे नहीं पता कि सबूत क्या हैं, तो फिर मैं आगे कैसे आगे बढ़ूंगा? मुझे ट्वीट करने का पूरा अधिकार है. लेकिन आप जिस सबूत का दावा कर रहे हैं वो सबूत नहीं हैं क्योंकि वे प्रमाणित नहीं हैं.’

उन्होंने आगे तर्क दिया कि उनके ट्वीट अपमानजनक हैं इसका कोई सबूत नहीं है और इसलिए, वोरा के आवेदन को ‘खारिज’ कर दिया जाना चाहिए. भले ही ट्वीट सही हैं तब भी ये साबित करने के लिए वो ट्वीट अपमानजनक हैं कोई सबूत नहीं है. यह भ्रष्टाचार का मामला है. इसमें सार्वजनिक हित शामिल है.

वही वोरा के वकील आर एस चीमा ने कहा कि स्वामी ने आरोपों से लिखित तौर पर इंकार नहीं किया है. और जब हमने आरोप लिखित तौर पर दिए थे तब भी उन्होंने लिखित तौर पर आरोपों से इंकार नहीं किया था. यह कोर्ट की अवमानना है.

कोर्ट ने मामले में फैसला 17 नवंबर तक के लिए सुरक्षित कर लिया है.

रीवा सोलंकी जडेजा बनीं करनी सेना की गुजरात महिला मोर्चा की प्रमुख


करणी सेना ने जडेजा की पत्नी को गुजरात महिला मोर्चा का प्रमुख बनाया है और जडेजा खुद राजपूत हैं


भारतीय क्रिकेट टीम के ऑलराउंडर रवींद्र जडेजा की पत्‍नी रीवा सोलंकी करणी सेना में शामिल हो गई हैं. सेना ने उन्हें गुजरात महिला मोर्चा का प्रमुख बनाया है. रीवा को यह जिम्‍मेदारी देने की घोषणा महिपाल सिंह मकराणा ने की है, जो कि करणी सेना के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष हैं.

करणी सेना राजस्‍थान के राजपूतों का एक संगठन है, जिसके संस्‍थापक/सरंक्षक लोकेंद्र सिंह कालवी हैं. यह (करणी सेना) पिछले साल पद्मावत फिल्‍म के विरोध की वजह से सुर्खियों में आई थी और तब से इसका उबार जारी है.

टीम इंडिया के क्रिकेटर रवींद्र जडेजा भी राजपूत हैं और उनका विवाह अप्रैल 2016 में पेशे से मकैनिकल इंजीनियर रीवा सोलंकी से हुआ, जो कि राजकोट के राजपूत परिवार से संबंध रखती हैं. जबकि रीवा के पिता वहां के रसूखदार बिजनेसमैन हैं.

हालांकि कुछ महीने पहले रीवा राजकोट में पुलिसकर्मी के साथ झगड़े को लेकर सुर्खियों में थीं. खबरों के मुताबिक रीवा की बीएमडब्‍ल्‍यू कार पुलिस वाले से टकरा गई थी और इसके बाद उसने रीवा से हाथा पाई कर दी थी. हालांकि मामला हाई-प्रोफाइल होने के कराण गुजरात पुलिस ने पुलिसकर्मी को तुरंत गिरफ्तार करके मामले की जांच शुरू कर दी थी.

6 दिसम्बर से भव्य राम मंदिर का निर्माण आरंभ होगा: वेदांती

राम जन्मभूमि न्यास समिति के वरिष्ठ सदस्य और पूर्व सांसद रामविलास वेदांती ने शुक्रवार को दावा किया कि अयोध्या मे विवादित भूमि पर इसी साल छह दिसम्बर से भव्य राममंदिर का निर्माण शुरू हो जाएगा।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत के राममंदिर निर्माण के लिए कानून बनाने जाने की पहल का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा कि पांच अक्टूबर को साधु संतों के ऐलान के बाद आरएसएस प्रमुख का बयान स्वागत योग्य है। कभी दो सीटों वाली भारतीय जनता पार्टी आज देश की सबसे अधिक सांसदों वाली पार्टी तो है ही, साथ ही दुनिया मे सबसे लोकप्रिय पार्टी होने का तमगा भाजपा के पास ही है। देश मे आज 20 राज्यों में भाजपा की सरकार है।

शिवसेना प्रमुख उद्वव ठाकरे के नंबवर मे अयोध्या मे राममंदिर निर्माण की दिशा में शिलान्यास करने के ऐलान पर वेदांती ने कहा कि भाजपा के अलावा कोई भी दल राममंदिर का निर्माण करने का पक्षधर नहीं है।

उन्होंने कहा कि देश का मुसलमान चाहता है कि अयोध्या में भव्य रामलला इन मंदिर बने। सुन्नी वक्फ बोर्ड के लोग चाहते हैं, शिया वक्फ बोर्ड के लोग चाहते हैं, केवल 20 प्रतिशत लोग नहीं चाहते और वह ऐसे लोग हैं जो पाकिस्तान से सम्मानित किए जाते हैं। पाकिस्तान की मंशा है कि भारत का हिंदू और मुसलमान आपस में इसी तरह से लड़ता और भिडता रहे।

फैजाबाद के पूर्व सांसद ने कहा कि भारत के हिंदू और मुसलमानों को आपस में लडाने के लिए पाकिस्तान पैसा भेजता है। अरबों डालर रुपया भारत में इसी बाबत भेजा जाता है ताकि देश का मुसलमान और हिंदू आपस में लड़ते रहे।

उन्होंने कहा कि 2018 के आखिर मे अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण का शुभारंभ किया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के रहते श्रीराम मंदिर का निर्माण नहीं होगा तो फिर कब होगा।

आज देश मे प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, देश के 20 राज्यों में भाजपा की सरकार होना इस बात का सबूत है कि हर कोई राममंदिर निर्माण मे अपनी अपनी हिस्सेदारी रखना चाहता है। हमारे पक्ष ने साक्ष्य प्रस्तुत करते हुए धार्मिक ग्रंथों तथा पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट प्रस्तुत की तो वाल्मीकि रामायण के अनुरूप मंदिर माना।

वेदांती ने बाबर के वंशज प्रिंस के दावे को खारिज करते हुए कहा कि प्रिंस झूठ बोलते हैं। उन्होंने जमीन का मालिकाना हक पर सवाल उठाते हुए कहा कि अयोध्या की जमीन सरकारी दस्तावेज में दशरथ के नाम पर दर्ज हुआ करती थी जो आज राजाराम के नाम पर दर्ज है। इस बात का सबूत अदालत मे प्रस्तुत किए जा चुके हैं।