तीसरी ताकत के रूप में उभरने का दावा कर रहे घनश्याम तिवाड़ी और हनुमान बेनीवाल अभी ‘तेल देखो, तेल की धार देखो’ की रणनीति पर चल रहे हैं
गहलोत को इस समय आरवाती भेजने का आलाकमान का फैसला क्या राजस्थान कांग्रेस के हित में होगा ?
7 दिसंबर को हिने वाले चुनावों की बात करें तो रण राजस्थान का है लेकिन पूरी रणनीति दिल्ली में बन रही है. किसको मिलेगा टिकट से लेकर कौन होगा स्टार प्रचारक. कांग्रेस से लेकर बीजेपी तक की ये पूरी कवायद दिल्ली में ही चली है और आगे भी शायद आदेश दिल्ली से ही तय होंगे. जयपुर के चुनावी दफ्तरों का दौरा करो तो सूनापन देखकर यकीन ही नहीं होगा कि 25 दिन बाद यहां चुनाव है.
दोनों पार्टियों ने राज्य में फील्ड सर्वे किए हैं और उन्ही के आधार पर टिकटों पर फैसला भी किया जा रहा है. बहुत से नाम तय हो गए हैं, कुछ तय होना बाकी हैं. बैठकों का दौर लगातार जारी है. सरकार और संगठन के तमाम पदाधिकारी दिल्ली में जमे हैं. टिकट की उम्मीद में तमाम छोटे-बड़े नेता अपने इलाकों के बजाय दिल्ली में दंगल जीतने की मशक्कत कर रहे हैं. आखिर आधुनिक लोकतंत्र में टिकट मिलना सेमीफाइनल जीतने जैसा जो हो गया है.
टिकट के जुगाड़ में हर नेता
टिकट चाहने वाले हर वो मुमकिन कोशिश कर रहे हैं, जो वो कर सकते हैं. फिर चाहे स्क्रीनिंग कमेटी से जुड़े नेताओं के नजदीकी लोगों से सिफारिश हो या उनके दूरदराज के रिश्तेदारों के घर ‘धोक’ देना हो. एक बड़े नेता ने बताया कि टिकटार्थी ऐसे-ऐसे रिश्तेदारों के घर भी पहुंच रहे हैं, जिनसे नेताजी खुद महीनों-सालों से नहीं मिले हैं.
खैर, इस जद्दोजहद के बीच कांग्रेस में चल रही उठापटक भी कम दिलचस्प नहीं है. शनिवार को पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव अशोक गहलोत का अचानक ‘युद्ध’ से दूर अमरावती जाना दिल्ली से जयपुर तक चर्चा का विषय बना रहा.
गहलोत को गैर हाजिर क्यों किया गया ?
कई दौर की बातचीत, रस्साकशी और जद्दोजहद के बाद शनिवार को कांग्रेस नेताओं की मैराथन बैठकें हुई. गुरुद्वारा रकाब गंज के वॉर रूम से लेकर कुमारी शैलजा के घर तक 13 घंटे से भी ज्यादा समय तक राजस्थान कांग्रेस के आला नेता बैठकों में बिजी रहे.
मीडिया से स्क्रीनिंग कमेटी की अध्यक्ष कुमारी शैलजा ने कहा कि 150 नाम फाइनल कर लिए गए हैं और केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में इस लिस्ट को अनुमोदन के लिए रखा जाएगा. शैलजा ने दावा किया कि इस हफ्ते के भीतर सभी 200 नामों की घोषणा कर दी जाएगी.
लेकिन सबसे बड़ी हैरानी रही शनिवार की इस कवायद में अशोक गहलोत की गैर मौजूदगी. 200 में से 150 नाम फाइनल कर लिए गए और राज्य के सबसे कद्दावर नेता यानी अशोक गहलोत बैठक से दूर रहे या कहें कर दिए गए.
इस अहम बैठक से ऐन पहले गहलोत को दिल्ली से दूर अमरावती भेज दिया गया. बताया गया कि 2019 के लिए गठबंधन पर चंद्रबाबू नायडू से अहम बैठक करनी है. ये समझ से परे है कि क्यों राजस्थान में टिकट वितरण जैसे तात्कालिक महत्त्वपूर्ण काम के बजाय 6 महीने बाद होने वाले चुनाव के बहाने सबसे बड़े नेता को बैठक से दूर कर दिया गया ?
इस बैठक में शैलजा के अलावा प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडेय, प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट और विधानसभा में नेता विपक्ष रामेश्वर डूडी मौजूद थे. गहलोत की गैर मौजूदगी के सवालों से बचने के लिए शैलजा ने बयान में ये जरूर जोड़ा कि फाइनल किए गए नामों पर राष्ट्रीय महासचिव अशोक गहलोत की राय जरूर ली जाएगी. लेकिन राजनीतिक गलियारों में सब जानते हैं कि ऐसी राय में आज़ादी कितनी सीमित होती है.
चर्चा ये भी है कि जो 50 नाम छोड़े गए हैं, वे पश्चिमी राजस्थान की सीटों के हैं. इन्हें गहलोत की वजह से ही अभी फाइनल नहीं किया गया है. गहलोत जोधपुर से आते हैं और माना जा रहा है कि इन टिकटों को गहलोत की सिफारिश पर ही बांटा जाएगा. लेकिन सचिन पायलट ने गहलोत की गैर मौजूदगी में 150 सीटों पर नाम फाइनल करके ‘चुनाव बाद की फिल्म’ का ट्रेलर तो दिखा ही दिया है.
बीजेपी में भी जद्दोजहद कम नहीं
चुनाव को अब एक महीने से भी कम वक्त बचा है. लेकिन जयपुर में बीजेपी और कांग्रेस, दोनों के दफ्तरों में आम दिनों से भी कम रौनक है. वजह सिर्फ यही है कि सारी कवायद दिल्ली में हो रही है तो टिकटार्थी भी वही हाजिरी लगा रहे हैं. कांग्रेस की तरह बीजेपी में भी शनिवार का दिन, दोपहर से देर रात तक लंबी बैठकों के नाम रहा.
दोपहर डेढ़ बजे केंद्रीय मंत्री और राजस्थान चुनाव प्रभारी प्रकाश जावड़ेकर के घर आला नेताओं की बैठक थी. लेकिन बैठक से पहले मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने करीब आधे घंटे तक जावड़ेकर से अलग से चर्चा की. पिछली बार राजे अपनी बनाई लिस्ट को पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से अप्रूव नहीं करवा पाई थी.
लिहाजा इस बार वे शायद कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी. हालांकि बैठक शुरू होने के समय वे बाहर निकल गई. जाते-जाते पत्रकारों से ये कहना नहीं भूलीं कि उनके जाने का गलत मतलब न निकाला जाए, वे लंच करके वापस आएंगी.
देर शाम तक जावड़ेकर के घर पर टिकटों को लेकर रणनीति बनती रही. सूत्रों के मुताबिक यहां 150 से ज्यादा नाम फाइनल कर लिए गए. इन नामों को लेकर सभी पदाधिकारी अमित शाह के घर पहुंचे. देर रात तक वहां मंत्रणा का दौर जारी रहा.
तीसरे मोर्चे को बागियों का इंतज़ार
दोनों प्रमुख पार्टियों के अलावा बीएसपी, आम आदमी पार्टी और जेडीयू जैसी दूसरी पार्टियां अपने उम्मीदवारों की घोषणा लगातार कर रही हैं. जेडीयू ने पहली लिस्ट में 13 नाम जारी किए हैं जबकि ‘आप’ ने अपनी नौवीं सूची में 25 और नाम घोषित किए हैं. किसान नेता रामपाल जाट को अपने खेमे में लाने के बाद आप का इरादा सभी 200 सीटों पर लड़ने का है
लेकिन तीसरी ताकत के रूप में उभरने का दावा कर रहे घनश्याम तिवाड़ी और हनुमान बेनीवाल अभी ‘तेल देखो, तेल की धार देखो’ की रणनीति पर चल रहे हैं. दरअसल दोनों बीजेपी और कांग्रेस की लिस्ट का इंतजार कर रहे हैं. तिवाड़ी और बेनीवाल दोनों की ही नजर बीजेपी-कांग्रेस के संभावित बागियों पर है. दोनों ने हाल ही में अपनी पार्टियों की घोषणा की है. ऐसे में वे चाहते हैं कि पहली ही बार में वे अपनी सशक्त मौजूदगी का अहसास कराएं.
इसी कोशिश के तहत वे बीजेपी-कांग्रेस के संभावित बागियों पर नजर बनाए हुए हैं. घनश्याम तिवाड़ी तो साफ कह चुके हैं कि जिनको राष्ट्रीय पार्टियों से टिकट न मिले, वे उनसे संपर्क कर सकते हैं. अभी तक जो ओपिनियन पोल सामने आए हैं, उनमें त्रिशंकु विधानसभा की संभावना तो नहीं जताई गई है लेकिन किसे पता राष्ट्रीय पार्टियों के बागी वोट काटकर संभावनाओं को जीवित कर दें. इसी आधार पर तिवाड़ी और बेनीवाल किंगमेकर बनने की रणनीति बना रहे है.
बगावत से डरे दोनों दल !
नई पार्टियां पुराने दलों में बगावत की संभावनाएं टटोल रही हैं तो पुरानी पार्टियां इसे रोकने की रणनीति पर काम कर रही हैं. बीजेपी-कांग्रेस, दोनों को ही इस बात का अच्छी तरह इल्म है कि जिसका टिकट कटेगा, वो अपना असर जरूर दिखाने की कोशिश करेगा. शायद यही कारण है कि बीजेपी को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना पड़ा. पार्टी ने एंटी इनकम्बैंसी फैक्टर से निपटने के लिए मौजूदा 163 में से 100 विधायकों के टिकट काटने की बात कही थी. लेकिन खतरे की आशंका के मद्देनजर इस योजना को ‘माइल्ड’ करना पड़ा है.
कांग्रेस को भी डर है कि कहीं बागियों के कारण संभावित जीत हार में न बदल जाए. लिहाजा टिकटों की घोषणा से पहले ही पार्टी ने एक ‘बिग फोर’ कमेटी बना दी है. अहमद पटेल, मुकुल वासनिक, पी सी चाको और वीरप्पा मोइली के रूप में ये बिग फोर संभावित बागियों के साथ बातचीत और समझाइश के रास्ते अपनाएंगे.
बागियों से ख़तरा है भी बहुत बड़ा. 1993 में बीजेपी की सत्ता में वापसी कांग्रेस के बागियों की वजह से ही हुई थी. तब 20 से ज्यादा निर्दलीय जीते थे और इनमें से ज्यादातर कांग्रेस के बागी नेता ही थे. भैरों सिंह शेखावत ने इनके समर्थन से सरकार बनाई थी और कई निर्दलीय मंत्री भी बने थे. दोनों ही पार्टियां इस खतरे से अनजान नहीं हैं. घनश्याम तिवाड़ी बीजेपी के सवर्ण वोटबैंक में तो हनुमान बेनीवाल कांग्रेस के जाट वोटबैंक में सेंध लगा सकते हैं. यहां जीत का अंतर वैसे भी 2-4 फीसदी से ज्यादा नहीं होता. ऐसे में ‘वोट कटुआ’ पूरे खेल पर हावी हो सकते हैं.