चार वर्षों के अंतराल के बाद, गुरदास मान बिग स्क्रीन पर “ननकाना” के साथ करेंगे वापसी

 

चंडीगढ़ 25 जुन (  ) अपने प्रशंसकों के इंतजार को समाप्त करने के लिए, हमारे बहुत ही सम्मान योग  गायक / अभिनेता / गीतकार, गुरदास मान जी  6 जुलाई को सिल्वर स्क्रीन पर वापस आने के लिए तैयार हैं-‘ ननकाना के साथ। मान साहिब की “ननकाना” एक अवधि फिल्म है जिसमें कविता कौशिक और अनस राशिद भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते नज़र आएंगे  फिल्म ‘शाह और शाह पिक्चर्स’ व् सेवन कलर्स मोशन पिक्चर्स के सहयोग द्वारा बनाई गई है।

ननकाना कर्म सिंह की कहानी है, जो पंजाब में 1941-47 के बीच की परेशान अवधि के सभी बाधाओं और प्रतिकूल माहौल के बावजूद, मानवता और प्रेम में अपनी धारणाओं को छोड़ने नहीं देता। इस प्रकार, उसके इस दृढ़ विश्वास के साथ, वह परिवेश को बदलने के लिए अपना स्तर सबसे अच्छा करता है। फिल्म की उपरोक्त धर्म’ की टैगलाइन स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि मानवता जीवन में सबकुछ और सब से ऊपर है।

फिल्म गुरदास मान जी की पत्नी मनजीत मान द्वारा निर्देशित है. मनजीत मान ने कहा, “बतौर निर्देशक यह मेरी तीसरी फिल्म हैं  डायरेक्टर के रूप में है और मैंने हमेशा अपनी सभी फिल्मों से प्यार किया है लेकिन यह फिल्म बहुत खास है और मेरे दिल के बहुत करीब है”।

जतिंदर शाह और पुजा गुजराल फिल्म के निर्माता हैं, जगजीत सिंह गुजराल सहयोगी निर्माता हैं और सुमित सिंह सह-निर्माता हैं. निर्माता जतिंदर शाह ने ही  फिल्म को संगीत भी दिया है, इसलिए दर्शक कुछ बहुत ही मधुर व् प्यारी धुनों की उम्मीद कर सकते हैं।

प्रेस कांफ्रेंस में बोलते हुए, गुरदास मान जी ने इस फिल्म में काम करने में अपनी खुशी व्यक्त की और कहा कि ये फिल्म उनके दिल के बहुत करीब है. ननकाना मानव करुणा और मूल्यों के बारे में एक फिल्म है, और मानवता और प्रेम की शक्ति में लोगों के विश्वास को स्थापित करने का प्रयास है. सर्वशक्तिमान में विश्वास पहाड़ों को स्थानांतरित कर सकता है और बिना शर्त प्यार भी दुश्मन के दिल पिघला सकता है.

ननकाना पर अपने विचार व्यक्त करते हुए जतिंदर शाह जी ने कहा, “मेरे मान साहब के साथ बहुत व्यक्तिगत और घनिष्ठ संबंध हैं, उनका हमारी फिल्म में काम करना एक सपना था, जो अंततः सच हो गया। यह फिल्म सिर्फ मेरे लिए एक फिल्म ही नहीं है, बल्कि मेरे जीवन की भावनात्मक घटना है”.

पुजा गुजराल, फिल्म की निर्माता और जिन्होंने कहानी को भी लिखा है, ने कहा, “मेरे लिए मान साहिब जैसे लेजेंड के साथ काम करना मेरे लिए यह एक पूर्ण सम्मान है”. हमने निर्माता होते हुए पंजाबी सिनेमा के दर्शकों को एक स्वच्छ और सार्थक सिनेमा देने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया है.

फिल्म के सह-निर्माता सुमित सिंह ने यह भी कहा, “हमने सागा में इस समय तक कई फिल्में बनायीं हैं और रिलीज की हैं लेकिन “ननकाना” का एक विशेष स्थान है क्योंकि इसकी अवधारणा और सामग्री भावनात्मक रूप से दर्शकों को स्थानांतरित करेगी। हम इस तरह के प्रोजेक्ट से जुड़ने के लिए काफी उत्साहित हैं और इस फिल्म को दुनिया भर में रिलीज करने की भी बहुत ख़ुशी है”.

इस फिल्म में कुल पांच गाने हैं जो गुरदास मान जी और फतेह शेरगिल द्वारा लिखे गए हैं और गुरदास मान जी, ज्योति नूरां और सुनिधि चौहान ने इस के गीतों को अपनी सुरीली आवाज़ों में गाया है।

प्रधान मंत्री पद की दावेदारी गठबंधन पर पड़ेगी भारी

 

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को रोकने के लिए कांग्रेस की उम्मीदें केवल एक ही सहारे पर टिकी हुई हैं. वो सहारा है महागठबंधन. कांग्रेस को लगता है कि महागठबंधन के समुद्र मंथन से ही सत्ता का अमृत पाया जा सकता है. महागठबंधन का वैचारिक आधार है-मोदी विरोध. महागठबंधन की बात बार-बार दोहराकर कांग्रेस इसकी अगुवाई का भी दावा कर रही है ताकि भविष्य में पीएम पद को लेकर महाभारत न हो. लेकिन दूसरे राजनीतिक दलों में गूंजने वाली अलग-अलग प्रतिक्रियाएं महागठबंधन के वजूद पर अभी से ही सवालिया निशान लगा रही हैं.

एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार चुनाव से पहले महागठबंधन की कल्पना को व्यावहरिक ही नहीं मानते हैं. उनका मानना है कि क्षेत्रीय दलों की मजबूती की वजह से महागठबंधन व्यावहारिक नहीं दिखाई देता है. पवार का राजनीतिक अनुभव और दूरदर्शिता उनके इस बयान से साफ दिखाई देता है.

जिन क्षेत्रीय दलों की मजबूती को कांग्रेस एक महागठबंधन में देखना चाहती है दरअसल यही मजबूती ही क्षेत्रीय दलों को चुनाव बाद के गठबंधन में सौदेबाजी का मौका देगी. क्षेत्रीय दलों की यही ताकत उन्हें चुनाव बाद एकजुट होने की परिस्थिति में उनके फायदे के लिये ‘सीधी बात’ कहने का आधार देगी और सत्ता में भागेदारी का बराबरी से अधिकार भी देगी.

शरद पवार ये मानते हैं कि हर राज्य में अलग-अलग पार्टियों की अपनी स्थिति और भूमिका है. कोई पार्टी किसी राज्य में नंबर 1 है तो उसकी प्राथमिकता राष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्थिति को और मजबूत करने की होगी. जाहिर तौर पर ऐसी स्थिति में कोई भी पार्टी चुनाव पूर्व महागठबंधन के फॉर्मूले में कम से कम अपने गढ़ में तो ऐसा कोई समझौता नहीं करेगी जिससे उसके वोट प्रतिशत और सीटों का नुकसान हो.

वहीं इस महागठबंधन के आड़े आने वाला सबसे बड़ा व्यावहारिक पक्ष ये है कि बीजेपी के खिलाफ एकजुट होने वाले क्षेत्रीय दल लोकल स्तर पर एकजुटता कैसे दिखा पाएंगे? वो पार्टियां जो अबतक एक दूसरे के खिलाफ आग उगलकर चुनाव लड़ती आई हैं वो राष्ट्रीय स्तर पर कैसे एकता दिखा सकेंगी? उन सभी के किसी न किसी रूप में वैचारिक मतभेद हैं जिनका किसी न किसी रूप में समझौते पर असर पड़ेगा.

सबसे बड़ी चुनौती जमीनी स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं को लेकर होगी जिनके लिए महागठबंधन के बाद एक साथ काम कर पाना आसान नही होगा क्योंकि कई राज्यों में वैचारिक मतभेद से उपजा खूनी संघर्ष भी इतिहास में कहीं जिंदा है.

बड़ा सवाल ये है कि सिर्फ मोदी को रोकने के लिए क्या पश्चिम बंगाल में टीएमसी और वामदल आपसी रंजिश को भुलाकर कांग्रेस के साथ आ सकेंगे? क्या तमिलनाडु में डीएमके और आआईएडीएमके, बिहार में लालू-नीतीश, यूपी में अखिलेश-मायावती और दूसरे राज्यों में गैर कांग्रेसी क्षेत्रीय दलों के साथ कांग्रेस का गठबंधन साकार हो सकेगा?

महागठबंधन को साल 2015 में पहली कामयाबी बिहार में तब मिली जब लालू-नीतीश की जोड़ी ने बीजेपी के विजयी रथ को रोका. इसी फॉर्मूले का नया अवतार साल 2018 में यूपी में तब दिखा जब बीजेपी को हराने के लिए पुरानी रंजिश भूलकर एसपी-बीएसपी गोरखपुर-फूलपुर के लोकसभा उपचुनाव में साथ आए तो फिर कैराना में रालोद के साथ गठबंधन दिखा. यूपी-बिहार के गठबंधन के गेम से ही कांग्रेस उत्साहित है और वो महागठबंधन का सुनहरा ख्वाब संजो रही है.

लेकिन एक दूसरा सवाल ये भी है कि अपने-अपने राज्यों के क्षत्रप आखिर कांग्रेस के नेतृत्व में महागठबंधन से जुड़ने को अपना सौभाग्य क्यों मानेंगे? खासतौर से तब जबकि हर क्षेत्रीय दल का नेतृत्व खुद में ‘पीएम मैटेरियल’ देख रहा हो.

कांग्रेस राहुल के नेतृत्व में महागठबंधन की अगुवाई करना चाहती है. जबकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में गैर-बीजेपी दलों के हित में जारी महागठबंधन की अपील को ठुकरा चुकी हैं. ममता बनर्जी तीसरे मोर्चे की कवायद में ज्यादा एक्टिव दिखाई दे रही हैं. वो दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों और क्षेत्रीय नेताओं के लगातार संपर्क में हैं. बीजेपी को हराने के लिए वो हर बीजेपी विरोधी नेता से हाथ मिलाने को तैयार हैं. उन्होंने गुजरात चुनाव में बीजेपी की नजदीकी जीत के बाद हार्दिक-अल्पेश-जिग्नेश की तिकड़ी की तारीफ की और हार्दिक पटेल को पश्चिम बंगाल का सरकारी मेहमान तक बना डाला.

हाल ही में उन्होंने दिल्ली के सीएम केजरीवाल के एलजी ऑफिस में धरने के वक्त तीन अलग राज्यों के सीएम के साथ पीएम से मुलाकात की. ये मुलाकात साल 2019 को लेकर कांग्रेस के लिए भी बड़ा इशारा था. एक तरफ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी दिल्ली में केजरीवाल के धरने को ड्रामा बता रहे थे तो दूसरी तरफ ममता बनर्जी की अगुवाई में चार राज्यों के सीएम केजरीवाल का सपोर्ट कर रहे थे.

महागठबंधन से पहले किसी विचारधारा या फिर मुद्दे पर कांग्रेस और गैर-कांग्रेसी दलों में एकता दिखाई नहीं दे रही है. ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि किसी भी कीमत पर मोदी और बीजेपी को साल 2019 में सत्ता में आने से रोकने के लिए महागठबंधन की नींव पड़ भी गई तो इमारत बनाने के लिए ईंटें कहां से आएंगी?

मोदी को रोकने के लिए महागठबंधन तो बन सकता है लेकिन महागठबंधन के नेतृत्व को लेकर कांग्रेस आम सहमति कैसे बना पाएगी? साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस राहुल गांधी को पीएम के तौर पर प्रोजेक्ट कर चुकी है. यहां तक कि खुद राहुल गांधी भी कर्नाटक चुनाव प्रचार के वक्त कह चुके हैं कि वो देश का पीएम बनने को तैयार हैं. जबकि मुंबई में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब राहुल से महागठबंधन के नेतृत्व पर सवाल पूछा गया तो वो जवाब टाल गए.

पीएम बनने की महत्वाकांक्षा आज के दौर में हर क्षेत्रीय पार्टी के अध्यक्ष के मन में है और यही महागठबंधन की महाकल्पना के साकार होने में आड़े भी आएगी. क्योंकि क्षेत्रीय दल सिर्फ सीटों तक की सौदेबाजी को लेकर महागठबंधन के समुद्र मंथन में नहीं उतरेंगे बल्कि वो पीएम पद को लेकर भी बंद दरवाजों  से लेकर खुले मैदान में शक्ति-परीक्षण के जरिये सौदेबाजी करने का मौका नहीं चूकेंगे

महागठबंधन पर बात न बन पाने की सूरत में कांग्रेस के पास यही विकल्प बचता है कि या तो वो गैर कांग्रेसी दलों को पीएम पद सौंपने पर राजी हो जाए या फिर यूपीए 3 के नाम से अपने प्रगतिशील गठबंधन के दम पर लोकसभा चुनाव में उतरे और चुनाव बाद महागठबंधन को लेकर फॉर्मूला बनाए.

सिर्फ विधानसभा चुनाव और उपचुनावों से लोकसभा चुनाव का मूड नहीं भांपा जा सकता है. यूपीए ने भी साल 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले उपचुनावों में जीत हासिल की थी. वहीं इस साल 15 सीटों पर हुए उपचुनावों में महागठबंधन को सिर्फ चार सीटों पर ही जीत मिली है. ऐसे में महागठबंधन को लेकर बनाई जा रही हवा कहीं हवा-हवाई न साबित हो जाए.

क्षेत्रीय दलों को सिर्फ एक ही बात की चिंता है कि साल 2019 में भी कहीं ‘मोदी लहर’ की वजह से उनके राजनीतिक वनवास की मियाद पांच साल और न बढ़ जाए. यही डर उन्हें महागठबंधन में लाने को मजबूर कर सकता है लेकिन सत्ता में भागीदारी का लालच उन्हें पीएम पद की तरफ भी आकर्षित करता है. तभी पीएम पद की बाधा-रेस महागठबंधन में सबसे बड़ा अड़ंगा डालने का काम कर सकती है क्योंकि इस मुद्दे पर चुनाव से पहले कोई भी पार्टी राजी होने को तैयार नहीं होगी.

कांग्रेस ये कभी नहीं चाहेगी कि वो पीएम पद के बारे में चुनाव बाद उभरे राजनीतिक हालातों के बाद फैसला करे. वो ये चाहेगी कि इस मामले में तस्वीर अभी से एकदम साफ रहे और पूरा चुनाव राहुल बनाम मोदी ही लड़ा जाए.

बहरहाल सिर्फ मोदी-विरोध के नाम पर अलग-अलग राज्यों में विपक्षी दलों के सियासी समीकरण साधना भी इतना आसान नहीं है क्योंकि ये जातीय समीकरणों में भी उलझे हुए हैं. सिर्फ मोदी-विरोध का एक सूत्रीय कार्यक्रम देश की सभी विपक्षी पार्टियों के लिए साल 2019 के लोकसभा चुनाव में आत्मघाती साबित हो सकता है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस की अंदरूनी रिपोर्ट को बाकी विपक्षी दलों को किसी ऐतिहासिक दस्तावेज की तरह जरूर पढ़ना चाहिये और ये भी समझना चाहिये कि कि उनका सियासी इस्तेमाल सिर्फ कांग्रेस के प्रतिशोध तक ही तो सीमित नहीं है. फिलहाल कांग्रेस के लिए महागठबंधन बना पाना उसी तरह असंभव दिखाई दे रहा है जिस तरह अपने बूते साल 2019 का लोकसभा चुनाव जीतना.

The Sub Committee is done with their report to be presented in Syndicate

 

The Panjab University in a meeting of the committee on the Governance reforms considered the recommendations of the Sub Committee  ,here today.

The Sub Committee gave the presentation of their report.

Members gave their views, and it was decided to refer it to the forthcoming meeting of the Syndicate.

“जहाँ बलिदान हुए मुखर्जी वह काश्मीर हमारा है” सतिन्दर सिंह

 

डॉ॰ श्यामा प्रसाद मुखर्जी भारतीय जनसंघ के संस्थापक नेता, जम्मू कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाने के पवित्र कार्य करते हुए ,अपने प्राण न्योछावर करने वाले वीर योद्धा थे । स्वतंत्र भारत में जम्मू कश्मीर का अलग झण्डा, अलग संविधान ओर वहाँ का मुख्यमन्त्री (वजीरे-आज़म) अर्थात् प्रधानमन्त्री कहलाता था।
उन्होंने तात्कालिन नेहरू सरकार को चुनौती दी तथा अपने दृढ़ निश्चय पर अटल रहे। अपने संकल्प को पूरा करने के लिये वे 1953 में बिना परमिट लिये जम्मू कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े। वहाँ पहुँचते ही उन्हें गिरफ्तार कर नज़रबन्द कर लिया गया। 23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी।

उनका बलिदान हर भारतीय के लिए प्ररेणा दायक है।

 

।। भारत माता की जय।।

सतिन्दर सिंह

Truck skidded off a road, broke the railing and stood suspended between two railway over-bridges

LUDHIANA: Traffic came to a standstill on National Highway-1, near Ladhowal, when a truck skidded off a road, broke the railing and stood suspended between two railway over-bridges.
The incident, which occurred early on Friday, caused a long traffic jam as rescue teams of the railway department came to lift the truck. The cranes blocked both the roads, leaving commuters hassled for over two hours. Some trains were also delayed.

It was suspected that truck driver Pargat Singh Brar, who escaped from the spot, fell asleep and lost control over the vehicle around 3am. The officials came to know about it only by 7am.

Commuters from Ludhiana to Jalandhar had to wait for hours to reach their destinations. Model Gram resident Himanshu Verma, who works at Lovely Professional University, said, “I travel daily by bus. Today when I reached near Ladhowal, I saw a huge traffic jam. After waiting for long when I got off the bus to check the matter, I came to know of the truck accident. The officials present at the spot said traffic would resume after the stuck vehicle was lifted.”

Samlara Chowk resident Abhishek Kanojia, who was traveling to Jalandhar by bus, said, “I have to reach office before 9am, but since 7.30am I am stuck in traffic. This is a national highway and such jams show apathetic attitude of the authorities. There should be at least a diversion to release congestion.”

Railway Protection Force in-charge inspector Pawan Kumar said, “On the basis of the registration number of the truck, its owner was contacted. The owner produced the driver before police and he was arrested. A case under section 154 (endangering safety of persons travelling by railway by rash or negligent act or omission) and 174 (obstructing running of train) of the Railway Act has been registered.”

Dr SP Singh Oberoi has saved 15 Indians, including 14 Punjabis, from the gallows in UAE

Dubai-based hotelier Dr SP Singh Oberoi has saved 15 Indians, including 14 Punjabis, from the gallows in UAE and brought 14 of them back home to reunite with their families. Dr. Oberoi presented the youth in front of the media on Friday at a press conference in Jalandhar.

Some of them were meeting their families after 8-9 years. The youth were sentenced to death in two separate cases of murder, one of a Pakistani national and the other from Uttar Pradesh. “Blood money” was paid in both cases to save them from the gallows.

The youth were arrested in two cases registered at Shahrjah and Al-Ain cities in Abu Dhabi, and the court had awarded death sentence to them. The first case, registered in Shahrjah in November 2011 was of the murder of Virendra Chauhan (38), originally from Shekhapura village in Azamgarh district of UP. Five youth, namely, Dharmender Kumar of Chhapra in Bihar state, Harvinder Singh of Ajnala in Amritsar, Ranjit Singh of Jinsara of Nawanshahr district, Dalwinder Singh of Mahilpur in Hoshiarpur district, and Sucha Singh of Jassomajra of Patiala district were sentenced to death in this case.

In the second case, 10 Punjabi youth were sentenced to death in the murder of Muhamad Farhaan of Peshawar in Pakistan by an Ai-Ain court in 2016. In this case, Satminder Singh of Thhikriwal in Barana district, Chander Shekhar of Nawanshahr, Chamkor Singh of Malerkotla, Kulwinder Singh of Ludhiana, Balwinder Singh of Chilang village, Dharamvir Singh of Samrala, Harjinder Singh of Mohali, Tarsem Singh of Amritsar, Gurpreet Singh of Patiala, Jagjit Singh of Gurdaspur, and Kuldeep Singh of Tarntaran district were sentenced to death.

Dr. Oberoi said that all were brough back except Dharamvir, who will return as soon as the legal formalities are completed.

In both cases, Dr. Oberoi filed the appeals after their death sentence and visited the families of the deceased a number of times to persuade them to accept the blood money. A hefty amount was paid to the families of the deceased and that money too was organised by Dr. Oberoi through his Sarabat Da Bhala trust.

Till date, Dr. Oberoi has saved 93 Indians, mostly Punjabis, from the death sentence by paying blood money worth Rs. 20 crore and by fighting their cases in the courts free of cost. Also, his trust has brought back the bodies of 63 Indians, mostly Punjabis, from Arab Countries who died there due to unknown reasons. His trust even perfoms the last rites as well as adopts the families of such youth if their economic condition is bad.

The families of these youth were also present in the press conference and they said that Dr. Oberoi had given them a second life by bringing their children back from the jaws of death.

He said that boys from Punjab must focus on their work whenever they go to these countries instead indulging in criminal activities. He said that the families of these boys send them abroad with great expectations of a good future and they must keep that in mind.

अधिकारियों की संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करने बारे 9 वर्ष पुराने केस की महत्वपूर्ण सुनवाई 26 जून को

 

चंडीगढ़ (धरणी): 

हरियाणा के सभी आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करने बारे 9 वर्ष पुराने केस की महत्वपूर्ण सुनवाई 26 जून को राज्य सूचना आयुक्त योगेंद्र पाल गुप्ता व हेमंत अत्री की दो सदस्यीय डिवीजन बेंच करेगी। आयोग ने इसके लिए कार्मिक विभाग के अवर सचिव, डीजीपी कार्यालय के अधीक्षक, पुलिस मुख्यालय के एसपी (कानून व्यवस्था) व अपीलकर्ता पीपी कपूर को 26 जून को चंडीगढ़ तलब किया है। इस केस में कुल 69 में से 36 आईएएस ने अपनी संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करने की सहमति वर्ष 2010 में सरकार को दे दी थी। जबकि 33 आईएएस ने इसे सार्वजनिक करने से मना कर दिया था। तभी से केस सूचना आयोग में लम्बित पड़ा है।

आरटीआई एक्टिविस्ट पीपी कपूर ने बताया कि 9 वर्ष पूर्व 16 दिसंबर 2009 को उन्होंने मुख्य सचिव को आरटीआई आवेदन भेजकर प्रदेश के सभी आईएएस, आईपीएस, एचपीएस, एचसीएस अफसरों की संपत्ति का ब्यौरा मांगा था। पुलिस मुख्यालय ने तो इस सूचना को देने से स्पष्ट मना कर दिया था। जबकि हरियाणा सरकार ने सभी आईएएस अधिकारियों से इस बारे में उनकी राय मांगी थी। इस पर आईएएस अशोक खेमका, समीर माथुर, उमाशंकर, पीके दास, टी.के. शर्मा, बलबीर मलिक, डा0 जे गणेशन, डॉ अमित अग्रवाल, सहित कुल 36 आईएएस ने अपनी संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करने के लिए सहमति सरकार को दे दी थी।

आईएएस अशोक खेमका ने तो कैबिनेट सचिव व केंद्रीय सतर्कता आयुक्त को भेजे पत्र में कहा कि ईमानदार लोक सेवकों को अपनी संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करने में कोई भय नहीं होता। ऐसे कदमों से सार्वजनिक संस्थानों  में पारदर्शिता व विश्वास को बढ़ावा मिलता है। आरटीआई एक्ट के सेक्शन 4 के तहत संपत्ति का विवरण ऑफिशियल वेबसाइट पर सार्वजनिक कर देना चाहिए। सरकार को लोक सेवकों द्वारा सार्वजनिक ना की गई संपत्ति को ज़ब्त करने का कानून बना देना चाहिए। कानून में इस छोटे से संशोधन से ही भ्रष्टाचार के कैंसर का काफी हद तक इलाज हो जाएगा। जबकि दूसरी ओर तत्कालाीन सरकार को भेजे अपने जवाब में आईएएस आरके खुल्लर, सुप्रभा दहिया, विजय दहिया, अशोक लवासा, डॉक्टर चंद्रशेखर, सुनील गुलाटी, वीएस कुंडू सहित कुल 33 आईएएस ने अपनी संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करने से स्पष्ट इंकार कर दिया।

आरटीआई एक्टिविस्ट पीपी कपूर ने बताया कि फरवरी 2012 में राज्य सूचना आयोग की फुल बेंच ने इस केस की सुनवाई की थी। लेकिन राज्य सूचना आयोग ने जिला खाद्य आपूर्ति नियंत्रक डी.पी. जांगड़ा की संपत्ति के ब्यौरे संबंधी याचिका हाईकोर्ट में लंबित होने का हवाला देकर सुनवाई अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी। जबकि इसी बीच हाईकोर्ट ने राज्य सूचना आयोग के डीपी जांगड़ा वाले केस में निर्णय को सही बताते हुए संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करने के आदेश कर दिए थे। कपूर ने सभी आईएएस, आईपीएस, एचसीएस, एचपीएस अधिकारियों की संपत्ति का ब्यौरा तत्काल सार्वजनिक करने व इसे विभागों की वेबसाइट अपलोड करने की मांग की है।

Without street lights, it is scary and dangerous to walk at night in Dhkoli

Without street lights, it is scary and dangerous to walk at night

Dark streets and hide and seek of power supply have been plaguing the residents of Guru Nanak Nagar in Dhakoli of Zirakpur for past five summers. Complaints to the electricity department also could not bring any relief to the residents till date.

With the announcement of 66 KV project at Baltana, residents had hoped to finally ward off their long-pending problem this season. However, there hopes were dashed as the situation worsened after the work of the new infrastructure started in the area.

The residents said a fire broke out in a transformer three days ago. It was installed just last year. Tthe authorities acted upon it and got it repaired, only after a complaint was placed.

Residents complained the streets of the area generally remains dark due to the defunct streetlights. The commuters do not feel safe going out for a walk after sundown. The unscheduled power cuts also irk the residents making them spend almost four to five hours without electricity daily during the sultry summer season.

When enquired, power department staffers seem clueless about when and how the power supply would be restored.

From past one year the residents of the area are struggling to get the streetlights repaired. They keep on posting complaints but all in vain. Residents alleged that a bunch of wires is spread all over the area which is not only posing threat to their lives, but is also affecting the power supply in the area.

In fact, the poles installed in the area are tilted. A transformer here is also in bad shape. It has not been repaired by the department even after a number of reminders.

N S Rangi, executive engineer, Punjab State Power Corporation Limited (PSPCL) said the department resolved the problem of fluctuation immediately after a complaint was received. The maintenance of the transformers is also on our priority.

पंजाब में विधायक महफूज नहीं है तो कोई भी महफूज नहीं : सुखपाल खैहरा

 

पंजाब आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता और नेता प्रतिपक्ष  ने गुरूवार को यहां कहा कि यदि पंजाब में विधायक महफूज नहीं है तो कोई भी महफूज नहीं है।

खैहरा यहां पीजीआई में दाखिल कराए गए पार्टी के विधायक अमरजीत संदोआ से मिलने पहुंचे थे। रोपड से विधायक संदोआ को अवैध माइनिंग माफिया ने गुरूवार को ही हमला कर गंभीर घायल कर दिया था। पीजीआई परिसर में पत्रकारों से बातचीत में खैहरा ने कहा कि पंजाब में पिछली अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार के दौरान फला-फूला माइनिंग माफिया आज कांग्रेस सरकार के दौरान भी ठीक वैसे ही काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि रोपड विधायक ने अपने करीब के अवैध माइनिंग को पत्रकारों को दिखाने का प्रयास किया तो उन्हें हमलाकर घायल कर दिया गया। उन्होंने कहा कि रोपड ही नहीं पठानकोट,अमृतसर के अजनाला और खरड इलाके में भी अवैध माइनिंग की जा रही है। कांग्रेस की मौजूदा सरकार अवैध माइनिंग को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही।

खैहरा ने कहा कि विधायक संदोआ पर हमला करने वाले सभी जाने-पहचाने है। घटना का वीडियो बनाया गया है। विधायक के सहयोगी जसपाल सिंह पाली का कहना है कि सभी हमलावर वीडियो में साफ दिखाई दे रहे है। उन्होंने कहा कि इन हमलावरों के खिलाफ तो सख्त कार्रवाई होना ही चाहिए लेकिन विधायक ने हमले की साजिश में एक कांग्रेस नेता का नाम भी बताया है। इस नेता के खिलाफ भी साजिश रचने की दंड सहिता की धाराओं के तहत कार्रवाई होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि पंजाब में न्याय चुन-चुनकर दिया जाता है। जब युवक कांग्रेस नेता के साथ धुरी में पुलिस अधिकारी धक्का-मुक्की करता है तो तुरन्त कार्रवाई की जाती है लेकिन यदि कोई और न्याय की पुकार करता है तो कोई सुनवाई नहीं की जाती। उन्होंने कहा कि विधायक संदोआ पर हमले के मामले में कार्रवाई के लिए मुख्यमंत्री ओर राज्यपाल से मिलेंगे। इसके अलावा रोपड के उपायुक्त व वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के कार्यालय पर भी धरना दिया जाएगा।

हनी ट्रैप में फंसे व्यक्ति को हरियां पुलिस ने बचाया, पकड़े आरोपी

 

पंचकूला़,, 21 जून –

हरियाणा पुलिस की अपराध षाखा ने सराहनीय कार्य करते हुए हनी ट्रप में लोगो को फंसाने वाले गिरोह की एक महिला सहित चार आरोपियों को फरीदाबाद से गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की है।

पुलिस विभाग के एक प्रवक्ता ने आज यहां यह जानकारी देते हुए बताया कि गिरोह के सदस्य शिकायतकर्ता को बलात्कार के झूठे मामले में फसाने की धमकी देकर 5 लाख रुपये की मांग कर रहे थे।

षिकायतकर्ता के पास करीब 20-25 दिन पहले एक अनजान नंबर से एक लड़की का फोन आया जिसने अपना पेशा प्रॉपर्टी डीलर बताया। शिकायतकर्ता को लगातार कॉल करके जाल में फंसाया जा रह था। 16 जून 2018 को शिकायतकर्ता को सस्ती प्रॉपर्टी दिलाने के बहाने से आरोपी महिला रिसोर्ट में ले गई वहां शिकायतकर्ता के साथ मेलजोल बढ़ाने की कोशिश की। जिस पर शिकायतकर्ता के कहने पर दोनों वहां से खाना खाकर वापस चले गए।

अगले दिन आरोपी महिला के साथी ने शिकायतकर्ता को कॉल करके कहा जल्दी थाना सेक्टर-37 आ जाओ वरना बलात्कार के केस में अंदर चले जाओगे। जब शिकायतकर्ता थाना पहुंचा तो उक्त महिला व उसके दोस्तों ने शिकायतकर्ता को सेक्टर-37 थाना के सामने ले जाकर झूठे बलात्कार के केस में फंसाने की धमकी देकर 5 लाख रुपये की डिमांड की।

झूठे मुकदमे में फंसने के डर से शिकायतकर्ता ने 50,000 रुपये तुरंत आरोपियों को दे दिए और बाकी पैसों के लिए चार-पांच दिन का टाइम ले लिया। उसके बाद आरोपियों द्वारा लगातार शिकायतकर्ता को फोन करके डराया गया और पैसों की मांग की गई।

षिकायतकर्ता ने पुलिस को जानकारी देने के बाद थाना सराय ख्वाजा में मुकदमा दर्ज किया गया। क्राईम ब्रांच एन.आई.टी ने कार्यवाही करते हुए 4 आरोपियों को काबू करने में सफलता हासिल की। कुछ आरोपी अभी फरार है उन्हें भी जल्द ही गिरफ्तार कर लिया जाएगा

उन्होने बताया कि आरोपियों में से एक आरोपी क्राउन इंटीरियर मॉल सेक्टर 37 में सपा सेंटर चलाता है, जिसने ऑल इंडिया क्राइम एंटी करप्शन ऑर्गनाइजेशन के नाम से आई. कार्ड भी बनाया हुआ है। इससे पहले भी उन्होंने हनी ट्रेप के दो अन्य शिकार सूरजकुंड व दिल्ली में भी बनाए हैं।