इलाज और बॉडी डिटॉक्सिफिकेशन करवा कर लौटे सिद्धरमैया


सिद्धरमैया ने ट्वीट करके कहा कि 15 दिन के आयुर्वेदिक इलाज और बॉडी डिटॉक्सिफिकेशन के बाद उनका शरीर और दिमाग राजनीति में सक्रिय होने के लिए पूरी तरह तैयार है


गुरुवार रात कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया बेंगलुरु वापस लौटे. एयरपोर्ट पर उतरने के 15 मिनट बाद सिद्धारमैया ने ट्वीट करके कहा कि 15 दिन के आयुर्वेदिक इलाज और बॉडी डिटॉक्सिफिकेशन के बाद उनका शरीर और दिमाग राजनीति में सक्रिय होने के लिए पूरी तरह तैयार है.

हालांकि, यह ट्वीट एक साधारण और आम ट्वीट लगता है, लेकिन इसके जरिए सिद्धारमैया ने अपनी पार्टी कांग्रेस और गठबंधन साझीदार जेडीएस दोनों को संदेश दे दिया है कि उनकी अनदेखी नहीं होनी चाहिए. आने वाले दिनों में वह बड़ी भूमिका निभाएंगे.

प्राकृतिक चिकित्सा के लिए उज्जिर गए थे

कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता और कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन समन्वय समिति के अध्यक्ष सिद्धारमैया, राज्य में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन बनने के बाद मैंगलौर के पास उज्जिर में प्राकृतिक चिकित्सा के लिए चले गए थे. इस दौरान उन्होंने कहा कि वह राजनीति से पूरी तरह दूर हैं. हालांकि, उन्होंने अपने करीबी नेताओं से मुलाकात की और उनकी ‘निजी’ बातचीत मीडिया में भी लीक हो गई.

सिद्धारमैया कांग्रेस द्वारा उन्हें अनदेखा कर जेडीएस से सीधे बातचीत करने की वजह से पार्टी हाईकमान से नाराज हैं, लीक ऑडियो और वीडियो के माध्यम से उन्होंने अपनी नाराजगी सार्वजनिक कर दी. बताया जा रहा है कि इसके बाद कुमारस्वामी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से शिकायत कर सिद्धारमैया पर नियंत्रण रखने की मांग की थी.

पहले ही सरकार गिरने की घोषणा कर चुके हैं सिद्धरमैया

गुरुवार को पत्रकारों से बात करते हुए कुमारस्वामी ने कहा था कि कांग्रेस-जेडीएस के बीच कोई समस्या नहीं है. सरकार अपना कार्यकाल खत्म करेगी, जबकि इससे ठीक एक दिन पहले सिद्धारमैया ने अपने सहयोगियों को कहा था कि यह सरकार लोकसभा चुनाव से ज्यादा नहीं चलेगी.

जेडीएस सुप्रीमो और एक समय पर सिद्धरमैया के गुरु एचडी देवगोड़ा ने गठबंधन में चल रही उठापठक पर गुरुवार को बयान देते हुए कहा था कि कांग्रेस और जेडीएस के बीच कोई समस्या नहीं है, गठबंधन सरकार लंबी चलेगी.

दरअसल, देवगौड़ा के साथ सिद्धारमैया के मनमुटाव राजनीतिक कम और निजी ज्यादा हैं, इसलिए कांग्रेस उनकी नाराजगी को ज्यादा तवज्जो नहीं दे रही है. कर्नाटक के ज्यादातर कांग्रेस नेताओं का मानना है कि गौड़ा के प्रति सिद्धारमैया का गुस्सा गठबंधन के पतन का कारण नहीं बनना चाहिए.

कांग्रेस के नेता हैं नाखुश

एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा, ‘अगर कर्नाटक में फिर से बीजेपी आती है, तो इसके लिए सिद्धारमैया पूरी तरह से उत्तरदायी होंगे. उन्होंने पिछले पांच सालों में बीजेपी, आरएसएस, हिंदुत्व, मोदी और शाह के खिलाफ इतने बयान दिए हैं, अगर वह वास्तव में धर्मनिरपेक्ष नेता हैं और बीजेपी के खिलाफ हैं, तो उन्हें गठबंधन सरकार का समर्थन कर इसे साबित करना होगा. गौड़ा परिवार के साथ उनके व्यक्तिगत मुद्दे रास्ते में नहीं आने चाहिए, लेकिन नीतीश कुमार की तरह वह भी जनता परिवार की पृष्ठभूमि से हैं. इसलिए वह भी कुछ भी कर सकते हैं.’

सिद्धारमैया के किसी भी कदम के जवाब में देवगौड़ा और कुमारस्वामी ने बीजेपी का विकल्प खुला रखा हुआ है. गुरुवार को बीजेपी एमएलसी और येदियुरप्पा के करीबी लहर सिंह की देवगौड़ा से मुलाकात के बाद इस बात को और अधिक बल मिला है. लहर सिंह ने कहा था कि यह शिष्टाचार मुलाकात थी, जिसका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है.

वहीं, कर्नाटक कांग्रेस चाहती है कि राहुल गांधी सिद्धारमैया पर लगाम लगाएं. उन्हें बताएं कि उन्होंने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया और राज्य में खुली छूट दी, लेकिन यह वक्त गठबंधन के साथ चलने का है.

तीसरे मोर्चे की तैयारी में लगे देवेगौडा


एच.डी देवगौड़ा को कांग्रेस के समर्थन वापस लेने से प्रधानमंत्री के पद से हटना पड़ा था. लेकिन अपने भाषण में देवगौड़ा ने कहा था कि अगर उनकी किस्मत में फिर से प्रधानमंत्री बनना है तो वो फिर से उठेंगे और कांग्रेस पार्टी भी उसको रोक नहीं सकती है.


कांग्रेस के नए साथी बने एच.डी देवगौड़ा भी तीसरे मोर्चे की बात शुरू करने वाले हैं. जिसके लिए गैर बीजेपी दलों के नेताओं से मिलने का सिलसिला शुरू कर रहे हैं. पूर्व प्रधानमंत्री भी राजनीतिक संभावना तलाश रहे हैं. एच.डी देवगौड़ा ने कहा कि हमे जल्दी ही तीसरा मोर्चा खड़ा कर लेना चाहिए, ये वक्त की जरूरत है. क्योंकि समय से पहले चुनाव से इनकार नहीं किया जा सकता है. हालांकि कांग्रेस के लिए राहत की खबर है कि कर्नाटक में जेडीएस ने कांग्रेस के साथ ही रहने की बात कही है.

लेकिन लोकसभा चुनाव के लिए दोनों दलों के बीच औपचारिक बातचीत नहीं शुरू हुई है. एच.डी देवगौड़ा कांग्रेस के समर्थन से केंद्र में सरकार चला चुके हैं. जिसमें बीजेपी को छोड़कर लगभग सभी दलों की भागीदारी रही है. कई दल जो एनडीए के साथ हैं, वो संयुक्त मोर्चा सरकार में शामिल थे. यूपीए के साथी भी इस सरकार के हिस्सा थे. जाहिर है कि देवगौड़ा की राजनीतिक गणित में इन सभी संभावनाओं का खयाल जरूर रखा गया होगा.

कर्नाटक में सरकार से मिली मजबूती

कर्नाटक में सरकार आने से जेडीएस को मजबूती मिली है. इससे पहले जेडीएस की केंद्रीय राजनीति में कोई भूमिका नहीं थी. जेडीएस की कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनने के बाद एच.डी देवगौड़ा को केंद्र की राजनीति में दखल देने का मौका मिल गया है. एच.डी देवगौड़ा भी कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहते हुए प्रधानमंत्री बने थे. अब उनके बेटे एच.डी कुमारास्वामी मुख्यमंत्री हैं. देवगौड़ा को लग रहा है कि संभावना के इस खेल में उनकी लॉटरी फिर से लग सकती है. इसलिए वो सक्रिय हो रहे हैं.

दक्षिण की भूमिका

बीजेपी अपनी सारी ताकत उत्तर के राज्यों में लगा रही है. नया प्रयोग बंगाल और ओडिशा में कर रही है. बीजेपी को साउथ के राज्यों से ज्यादा उम्मीद नहीं है. कांग्रेस भी इन राज्यों में कमजोर है. रीजनल पार्टियां यहां मजबूत हैं. तमिलनाडु में एआईडीएमके और डीएमके, आंध्र प्रदेश में टीडीपी और वाईआरएस तेलांगना में टीआरएस जो पहले से ही तीसरे मोर्चे की वकालत कर रही है. केरल में भी लेफ्ट कांग्रेस के मुकाबले में है. ओडिशा में नवीन पटनायक गैर कांग्रेस गैर बीजेपी मोर्चे के साथ जा सकते हैं. ममता बनर्जी खुलकर तीसरे मोर्चे के लिए कवायद कर रही हैं.

केजरीवाल का भी मिलेगा साथ

राहुल गांधी के इफ्तार में सभी विपक्षी दलों को दावतनामा भेजा गया. लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को न्योता नहीं दिया गया था. दिल्ली में केजरीवाल एलजी के खिलाफ धरने पर बैठे तो कांग्रेस का कोई नुमाइंदा नहीं पहुंचा. लेकिन ममता बनर्जी समेत चार मुख्यमंत्री केजरीवाल से मिलने दिल्ली आए थे. इनमें एच.डी कुमारास्वामी भी शामिल थे. इसके अलावा चंद्रबाबू नायडू और केरल के सीएम पी.विजयन भी थे. केजरीवाल और ममता के रिश्ते काफी अच्छे हैं. ममता कई बार कांग्रेस के नेताओं से इशारा कर चुकी हैं. ममता चाहती हैं कि केजरीवाल को भी भविष्य के गठबंधन में शामिल किया जाए. लेकिन कांग्रेस इसके लिए तैयार नहीं है.

देवगौड़ा ने किया इशारा

पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी देवगौड़ा ने कई इशारे किए हैं. बेंगलूरु में कुमारास्वामी के शपथग्रहण समारोह में लगभग पूरा विपक्ष शामिल हुआ था. जिसपर देवगौड़ा ने साफ किया है कि मंच पर एक साथ दिखाई देने वाले नेता, जरूरी नहीं है कि चुनाव भी साथ लड़े, यानि संकेत साफ है कि कांग्रेस किसी मुगालते में ना रहे. मंच का फोटोसेशन राजनीतिक मुनाफे में तब्दील हो इसकी कोई गारंटी नहीं है. देवगौड़ा अभी कोशिश कर रहे हैं कि वो संयुक्त मोर्चा की तर्ज पर नया गठजोड़ खड़ा करें. अगर इसमें कामयाबी मिली तो कांग्रेस को सलाम नमस्ते भी कर सकते हैं. देवगौड़ा की अगुवाई वाली सरकार में लेफ्ट के इंद्रजीत गुप्ता मंत्री थे तो मुलायम, लालू, पासवान, शरद यादव तक मंत्रिपरिषद में थे. डीएमके, टीडीपी भी सरकार के साथ थे. बीजेडी तब जनता दल का ही हिस्सा थी.

कर्नाटक में ऑल इज नॉट वेल

कर्नाटक में पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया का वीडियो वायरल हुआ है. इसमें वो आशंका जाहिर कर रहे हैं कि प्रदेश की सरकार ज्यादा दिन नहीं चलने वाली है. जबकि इस पर देवगौड़ा ने कहा कि ऐसा सिद्धरमैया सोचते होंगे. जिससे लगता है कि कर्नाटक में गठबंधन की सरकार में को की कमी है.पार्टी के सीनियर नेता सरकार के कामकाज पर खुश नहीं है.जिससे बार बार इस तरह की बाते उठ रही है.

ड्राइविंग सीट के लिए मारामारी

यूपीए का गठबंधन का स्वरूप सामने नहीं आया है. कमजोर जेडीएस को ड्राइविंग सीट देने से रीजनल पार्टियां संभावना तलाश रही हैं. आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव सार्वजनिक तौर पर कांग्रेस को आगाह कर चुके हैं. कांग्रेस के साथी राज्यों में गठबंधन मनमुताबिक चलाना चाहते हैं. तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार के बारे में जो नो वैकेंसी वाला बयान दिया है. इसको साबित करता है. कांग्रेस ने भी तेजस्वी के बयान पर कुछ नहीं कहा है. बिहार में कांग्रेस की मजबूरी आरजेडी है.

कांग्रेस नहीं कर रही प्रयास

शायद कांग्रेस को हालात का अंदाजा है, इसलिए औपचारिक तौर पर कोशिश नहीं हो रही है. कांग्रेस के नेता समय का इंतजार करने की बात कह रहे हैं. चुनाव नजदीक आने पर कांग्रेस की कोशिश तेज होगी. राज्यवार गठबंधन की बात पर विचार हो रहा है. लेकिन यूपीए का कुनबा बढ़ाने की कोशिश नहीं की जा रही है. एनडीए का साथ छोड़ रहे दलों से कांग्रेस की तरफ से कोई पेशरफ्त नहीं हो रही है. जिससे तीसरे मोर्चे की बात बार-बार उठ रही है.

कांग्रेस ने गिराई थी देवगौड़ा सरकार

एच.डी देवगौड़ा को कांग्रेस के समर्थन वापस लेने से प्रधानमंत्री के पद से हटना पड़ा था. लेकिन अपने भाषण में देवगौड़ा ने कहा था कि अगर उनकी किस्मत में फिर से प्रधानमंत्री बनना है तो वो फिर से उठेंगे और कांग्रेस पार्टी भी उसको रोक नहीं सकती है. देवगौड़ा शायद फिर से उठने की कोशिश कर रहे हैं. इस बार हालात 1996 से भी ज्यादा मुफीद हैं. फर्क इतना है कि तब कांग्रेस की कमान केसरी के पास थी अब राहुल गांधी के पास है.

Jordan Sandhu and Payal Rajput will be seen in Punjabi Film, “Hanji Hanji”

Chandigarh, June 29, Friday 2018 : 

Punjabi cinema which is touching new heights everyday is no longer bound to the limited number artists or boundaries. For the past few years, new artists have brought themselves in front of the audience with lot of good talent and promises and in this kind of era, Punjabi film, “Hanji Hanji” is also going to make a significant mark in the industry. Being made under the banners of Teji Productions and Mahi Productions, the film was announced here in Chandigarh today in a private hotel. Present on this occasion were, the renowned singer Jordan Sandhu, playing the lead, and the actress Payal Rajput, famous bollywood artist, Sumit Gulati, Director Rakesh Dhawan, Producers, Ricky Teji, Deep Sood, Khushwant Singh and Co-Producer, Sukhdev Singh (Next Level Entertainment) and the Executive Producer Miss. Gunjan Chauhan.

On this occasion, the Director Rakesh Dhawan, said, that he has been associated with the entertainment industry from quite a long time. As a writer he has written many comedy and other shows and films as well and he is going to connect with the Punjabi Film Industry now. He further added that he has written so much for Punjabi Films as a writer, but as a Director, this will be his first Punjabi Film. This film is a complete family film whose shooting will be done in Canada and Punjab both. The first schedule of the film will be shot in Canada.

Renowned singer, Jordan Sandhu, said, that this film will show his acting skill in a different manner altogether. The audience will like its concept/subject and his character too. As per Jordan, this film is going to make his name in the industry. Infact he has finished the shooting of one punjabi film but this film is surely going to mark my presence in this industry. Got famous from her punabi film, “Channa Mereya”, the lead actress Payal Rajput is quite enthusiastic being a part of this film and said that the audience will be happy to see me in two different shades in this film. Payal, has complete trust in the Director and the Producers of this film, that they do full justice to the film and with the audience too. Sumit Gulati, the famous bollywood arist, also added that the audience loved my work in punjabi film, “Golak Bugni Bank Te Batua” and this love is the only reason he is a part of this film as well. This film will actually entertain its audience completely. His character in the film will actually tickle the audience with laughter. This is Producers Ricky Teji, Deep Sood, Khushwant Singh and Co-Producer, Sukhdev Singh (Next Level Entertainment) first Film. After having spent a good amount of time with the renowned personalities of the film industry, the producers chose this subject and selected the artists. They have full belief, that the audience will like this film a lot. There are couple of other renowned artists in this film whose names will also be revealed soon. The audience will also listen to the heart touching music also in this film.

PHD CHAMBER TO HOST STATES’ CONCLAVE – 2018 THEMED ON NEW INDIA@PUNJAB 2022

Chandigarh:

PHD Chamber of Commerce and Industry in collaboration with ‘Invest India’ – Investment Promotion and Facilitation Agency of Govt of India is organizing “States’ Conclave – 2018” which is themed on ‘New India @ Punjab 2022’ on August 24, 2018 at Hotel Taj Palace, New Delhi. Mr. Anil Khaitan, President, PHD Chamber along with Mr R.S Sachdeva, Chairman , Punjab Committee, Dr Ashok Khanna, Former President, PHD Chamber, Mr Satish Bagrodia, Former President, PHD Chamber, and Mr Rajiv Bhatnagar, Chairman, Defence and HLS Committee, PHD Chamber met Captain Amarinder Singh, Chief Minister, Punjab today to extend the invitation for this prestigious conclave.

This event is in continuation to the Chamber working relentlessly over the decades for the socio-economic development of Indian States with a motto – ‘Strong States Make Strong Nation.’. The conclave wll e attended by Industry captains and investors who are engaged in their businesses in Punjab.

A delegation of PHD Chamber under the leadership of its President  Anil Khaitan today met Captain Amarinder Singh, the Chief Minister of Punjab to extend him the invitation for conclave. Mr.Khaitan appraised Chief Minister about the background and objectives of the conclave.

 

In its 15th edition this year, PHD Chamber aims to support for “Making New India” through strengthening the base for government-industry interface at statesby ensuring the best desired outcomes in these crucial thrust areas during the Conclave and further on through sustainable practices which includes Agro & Food Processing, Healthcare, Infrastructure, MSME, Renewable Energy, IT &ITeS, Auto & Engineering, Tourism, Textiles, Defence Manufacturing and Electronics System Design & Manufacturing (ESDM)

According to Anil Khaitan, President, PHD Chamber, “The Government of India (GoI) with its latest vision, mission and further goals and policies, is pushing forth the idea of a government which governs, facilitates and encourages the citizens from diverse stratums to participate in economic development activities. Such a vision necessitates innovative means to achieve the desired ends.

As per an estimate of International Monetary Fund (IMF), the past 26 years have seen the Indian economy grow more than eightfold in dollar terms between 1992 and 2018. A $293 billion economy 26 years back is now a $2.65 trillion one in 2018. Average incomes have also gone up by a factor of six over the same period – from $318 to $1,852.

At the cusp of decisive change, if the collaborative efforts of government and industry could continue with the same momentum or increased pace, the next 25 years will end with making India a $20 trillion economy or even richer where the average Indian citizen would earn $7,100 or more.

“That is on track of attaining the goals figured out with “Making New India,” and the Conclave keeping the constructive bearing with the government and industry, spearheads the Campaign to transform the way India perceives governance.” Said Khaitan

A uniquely significant programme on government-industry interface in India, it upholds to ensure a robust eco-system for businesses, by simplifying the official procedures and making them transparent at decision-making levels, with greater interface of technology. Also, it proactively supports India’s “Economic Reforms Mission,” with bringing the highest echelons of government and industry at one powerful platform where who’s who of India makes their presence felt.

About PHD Chamber

PHDCCI, established in 1905, is a proactive and dynamic multi-State apex organisation working at the grass-root level across States of India and develop strong national and international linkages. Through policy interventions, it acts as a catalyst in the promotion of industry, trade and entrepreneurship.

The 113-year old Chamber is focused on facilitating nation-building endowed with a strong secretarial team comprising of 72 expert committees, 2 foundations, state chapters and an effectual State Development Council (SDC). SDC as the Think Tank of PHDCCI offers strategic advice on key identified areas at the State Level – and it hosts the Chamber’s signature initiative, Chief Ministers’ Conclave.

This Council, since its inception has been working towards a shared vision of priorities. It strives hard to create a knowledge, innovation and entrepreneurial support system through a collaborative group of experts, practitioners, partners, diplomatic community, members of civil society, chambers with diverse accreditation and media to pursue the developmental agenda for states and accelerate its implementation on ground.

Govt employees to plant trees : Dharmsot

Forest Minister Sadhu Singh Dharamsot said that the forest department would soon send a written communication to all the departmental heads with regard to sapling plantation by the government employees. He also said that the campaign of sapling plantation by the government employees would be commenced from Chandigarh and Mohali and afterwards taken to the other districts in a phased manner.

Only 13 percent of students are able to secure jobs- CAG


Sareeka Tewari

Chandigarh 29 June, 2018 :

A fifth of all school teachers in the country do not have the requisite qualifications to teach young children. If this doesn’t shock you, take a look at what’s going in your State.

Today lets talk about Haryana.

A recent report by the Comptroller and Auditor General (CAG) of India showed that a mere 41 percent of students at colleges under Maharshi Dayanand University (MDU) — one of Haryana’s oldest and largest universities — passed in the year 2015-16.

The pass percentage has been in constant decline since 2012-2013: It was 55 percent only three years ago.

Pass percentage by year:

Year                   Students appeared         Students passed                Pass percentage

2012-13              6, 41, 328                           3, 55, 786                                   55

2013-14             6, 43, 790                            3, 32, 029                                  52

2014-15             6, 48, 390                           3, 89, 330                                  45

2015-16             6, 30, 294                           2, 59,363                                    41

(Data: CAG report)

MDU, which has about 250 colleges under it has reportedly granted affiliation to several institutes which lack necessary infrastructure.

On inspecting 40 random colleges, the CAG found out that 27 lacked proper teaching staff; either there was a shortage of teachers or the teachers hired lacked the necessary qualifications. Sixteen of the 40 colleges lacked proper laboratory equipment.

At Rohtak’s Pt Neki Ram College, the alma-mater of Chief Minister Manohar Lal Khattar, the number of students admitted was higher than the available seats for both BA and BSc courses.

Some students feel that nepotism is to blame. “Our classrooms are small but the intake is high due to nepotism in admissions. There is also a shortage of faculty. Part-time lecturers have been hired to make up for this. But instead of teaching, they are mostly out protesting to be made permanent,” said Mohit Kumar, a final year BA student.

At MDU, the situation is not very different. Students from various departments complain that the 665-acre campus lacks enough laboratories and research facilities. As of 2017, there was also a 26 percent shortfall in the number of teachers: 101 posts were lying vacant. This deteriorating quality of higher education can be seen reflected in the high unemployment rate among Haryana graduates.

Last year, as many as 23,166 people applied for 92 peon jobs in MDU, Rohtak. People holding degrees — MA, M.Ed, and an M.Phil — were all seen applying for the post.

The CAG report pointed out that only 13 percent of students at the University Institute of Engineering and Technology (UIET) managed to secure jobs in its last two sessions. “The syllabus taught by MDU is ancient. We are still taught subjects such as old JavaServer Pages, telnet, fundamentals of internet which are of no use in present times,” said a fourth year computer science student.

UIET placement record:

Year                          Admitted students                Placed students                       Percentage

2012-13                              439                                              78                                         18

2013-14                              431                                               48                                        11

2014-15                              579                                               76                                        13

2015-16                              479                                               61                                        13

Pradeep Deswal, a PhD law student at MDU and president of the Indian National Students’ Organisation, said students were completely dependent on themselves to prepare for examinations. “As a union leader, most requests I get from students is to get them a seat in the main library. It’s always packed. Teachers at the university are busy attending seminars, conferences and writing research papers,” he said.

We regularly submit memorandums to the vice-chancellor requesting him to take classes. All of it falls on deaf ears,” he added. The CAG report backed Deswal’s claim, highlighting a nearly 50 percent decrease in work load of teachers at the university.

MDU vice-chancellor Bijender Kumar Punia refused to comment. “I have already replied to the CAG officials to whom I was legally bound to answer. They have given us some recommendations which we will follow,” he said.

But the CAG said the university’s replies were unsatisfactory and not precise in several instances. It said MDU did not even analyse its ails and recommended the university adhere to prescribed standards in granting affiliations and improve existing infrastructure.

मदन लाल सैनी बने प्रदेशाध्यक्ष

 

जयपुर।

भारतीय जनता पार्टी के राजस्थान प्रदेश के अध्यक्ष को लेकर अंततः पूर्ण विराम लग गया। पार्टी आलाकमान ने राज्यसभा सांसद मदन लाल सैनी को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है। पार्टी के इस फैसले को मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की जीत के तौर पर माना जा रहा है। इससे पहले 3 अप्रैल 2018 को ही उन्हें राज्यसभा में भेजा गया था।

बीजेपी सूत्रों के मुताबिक लंबे समय से RSS से जुड़े रहे कार्यकर्ता मदन लाल सैनी को बीजेपी अध्यक्ष के पद पर ताजपोशी दे दी गई है। हालांकि, इस मामले में अभी 5 बजे तक भी पार्टी की तरफ से कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की जा रही है।

आपको बता दें कि मदन लाल सैनी भेरूसिंह शेखावत के मुख्यमंत्री कार्यकाल में उदयपुरवाटी से बीजेपी के टिकट पर एक बार विधायक रह चुके हैं। इसके अलावा सैनी एक बार विधानसभा और एक बार सांसद का चुनाव भी हार चुके हैं। वो भारतीय मज़दूर संघ के लंबे अरसे तक जुड़े रहे हैं।

वर्तमान में राज्यसभा सांसद के अलावा BJP प्रदेश अनुशासन समिति के सदस्य भी हैं। मदन लाल सैनी के अध्यक्ष बनने के बाद सीधे तौर पर इसको मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की जीत करार दिया जा रहा है। बताया जा रहा है कि
मदनलाल सैनी के नाम पर सहमति बनने की सबके पहले अमित शाह और संघठन मंत्री रामलाल ने उनको बधाई देकर जानकारी दी। आपको यह भी बता दें कि बीजेपी अध्यक्ष का पद बीते 75 दिन से रिक्त पड़ा हुआ है।

बीजेपी सूत्रों की मानें तो अमित शाह और रामलाल की मीटिंग के बाद यह फैसला हुआ था। इस मामले में लंबे अरसे से खींचतान चल रही थी। बताया जा रहा है कि
रामलाल ने सीएम वसुंधरा राजे को फोन कर इस फैसले की जानकारी दी। इससे पहले काफी समय तक गजेंद्र सिंह शेखावत के नाम को लेकर भी मशक्कत की गई थी।

लेकिन, शेखावत के नाम पर राज्य BJP इकाई और खुद मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के तरफ से सहमति नहीं बन पाई। आखिरकार पार्टी आलाकमान को राजे की सियासत के आगे झुकना पड़ा और अध्यक्ष का नाम बदलकर सैनी के नाम पर सहमति जताई गई।

उत्तर प्रदेश कांग्रेस ने पार्टी के नए प्रवक्ताओं की नियुक्ति के लिए किया साक्षात्कार


इस इंटरव्यू में सफल होने वाले अभ्यर्थी राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की टीम के साथ मिलकर काम करेगी


उत्तर प्रदेश कांग्रेस ने पार्टी के नए प्रवक्ताओं की नियुक्ति के लिए गुरुवार को एक इंटरव्यू आयोजित कराया. इस इंटरव्यू में 70 लोगों ने हिस्सा लिया और इसमें कुल 14 सवाल पूछे गए. इन सवालों में केंद्र की मोदी सरकार और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की असफलताओं के साथ-साथ मनमोहन सिंह सरकार की सफलताओं और उपलब्धियों के बारे में सवाल पूछे गए थे.

इन सबका इंटरव्यू कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी और मीडिया प्रभारी राहुल गुप्ता कि देखरेख में हुआ. मालूम हो कि पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के कांग्रेस प्रभारी राजबब्बर ने पुरानी मीडिया टीम को भंग कर दिया था.

प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि इस तरह के इंटरव्यू कोई नया नहीं है. ऐसे इंटरव्यू पहले भी होते रहे हैं. इस इंटरव्यू में सामान्य से सवाल पूछे गए थे, जो एक प्रवक्ता को सामान्य तौर पर मालूम होने चाहिए. इस इंटरव्यू में सफल होने वाले अभ्यर्थी राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की टीम के साथ मिलकर काम करेगी.

कांग्रेस प्रवक्ता की नियुक्ति के लिए पूछे गए ये सवाल:

1. उत्तर प्रदेश में कितने मंडल, जिले एवं और ब्लॉक हैं?

2. उत्तर प्रदेश में लोकसभा की कितनी आरक्षित सीटें हैं?

3. 2004 एवं 2009 में कांग्रेस कितनी सीटों पर जीती थी?

4. लोकसभा 2014 एवं 2017 विधानसभा में कांग्रेस को कितने प्रतिशत मत मिले हैं?

5. उत्तर प्रदेश में कितनी लोकसभा सीटें और विधानसभा सीटें हैं?

6.उत्तर प्रदेश में एक लोकसभा सीट में कितनी विधानसभा सीटें आती हैं?

7. किन लोकसभा सीटों पर मानक से कम या ज्यादा सीटें हैं?

8. प्रवक्ता का कार्य क्या होता है?

9. आप प्रवक्ता क्यों बनना चाहते हैं?

10. मोदी सरकार की असफलता के प्रमुख बिंदु क्या-क्या हैं?

11. योगी सरकार की असफलता के प्रमुख बिंदु क्या हैं?

12. मनमोहन सिंह सरकार की उपलब्धियां क्या-क्या थीं?

13.आज समाचार पत्र में तीन प्रमुख खबरें क्या हैं? जिन पर कांग्रेस प्रवक्ता बयान जारी कर सकें.

14. प्रमुख हिंदी/अंग्रेजी एवं उर्दू अखबार तथा चैनलों के नाम.

गौरतलब है कि इससे पहले मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस प्रवक्ताओं की नियुक्ति के लिए इंटरव्यू प्रक्रिया अपना चुकी है. इस बार तो बाकायदा लिखित परीक्षा कराई गई है, जिसमें छोटे प्रश्नों के साथ-साथ विश्लेषणात्मक प्रश्न पूछे गए. प्रवक्ता बनने की ख्वाहिश रखने वाले लोगों से यह भी पूछा गया कि वे प्रवक्ता क्यों बनना चाहते हैं.

अपने ही जाल में उलझी आ आ पा


केजरीवाल अपनी हार का ठीकरा कभी ईवीएम पर तो कभी बीजेपी पर फोड़ते रहे हैं लेकिन क्या उनकी पार्टी की लगातार हार उनके दिल्ली सरकार चलाने के तरीके पर सवालिया निशान तो नहीं है?


आम आदमी पार्टी हरियाणा में चुनाव लड़ेगी और उसने अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार भी चुन लिया है. पंडित नवीन जयहिंद मुख्यमंत्री उम्मीदवार होंगे. इस खबर ने आम आदमी पार्टी की हरियाणा विंग को जरूर खुश कर दिया लेकिन आम आदमी यानी आपके और हमारे लिए ये खबर बस अखबार में लिखे चंद शब्द थे.

राजनीति कुछ ऐसी ही होती है. अन्ना हजारे आंदोलन से निकली, भ्रष्टाचार को खत्म करने और व्यवस्था को साफ करने का आंदोलन कर के अरविंद केजरीवाल जब आम आदमी पार्टी बनाकर सक्रिय राजनीति में घुसे तो लोगों ने हाथों हाथ ले लिया.

2013 से आम आदमी पार्टी ने जिस तरह से धमाकेदार एंट्री की, उससे दिल्ली की दोनों पार्टियां हिल गई. इस पार्टी ने लोगों में ऐसी उम्मीद जताई कि आम आदमी को लगा कि देश में सारे बदलाव कर ये पार्टी एक आदर्श भारत का निर्माण करेगी. आम आदमी पार्टी का उबरने का सबसे बड़ा खामियाजा कांग्रेस पार्टी को भुगतना पड़ा था, क्योंकि केंन्द्र और राज्य में उन्हीं की सरकार थी इसलिए केन्द्र में यूपीए और राज्य में शीला दीक्षित की कांग्रेस सरकार पर जब आम आदमी पार्टी ने आरोपों की झड़ी लगाई तो लोगों ने खूब ताली बजाई. और कांग्रेस के वोटर्स आम आदमी पार्टी के सपोर्टर्स बन गए.

दिल्ली की जनता के विश्वास पर आप अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल भी कुछ ज्यादा ही उत्साहित हो गए और दिल्ली में 2013 में 70 में से 28 सीटों पर विजय प्राप्त की, लेकिन राजनीति में घुसते ही उन्हें अपने आप से भी कुछ ज्यादा उम्मीदें हो गई थीं. इसलिए 2013 में जीती हुई आप ने अपनी ही सरकार के खिलाफ विपक्ष की भूमिका निभाई. और 49 दिनों में सरकार से इस्तीफा भी दे दिया.

आम आदमी पार्टी की भारत विजय यात्रा

अति उत्साहित अरविंद केजरीवाल को दिल्ली के नेता से देश के नेता बनने की जल्दबाजी थी. और वो इस जल्दबाजी में भारत विजय यात्रा पर निकल पड़े. 2014 में आम आदमी पार्टी ने लोकसभा में 434 उम्मीदवार खड़े किए. खुद अरविंद केजरीवाल बीजेपी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी को चुनौती देने के लिए वाराणसी पहुंच गए. उनको उम्मीद थी कि इतने सारे उम्मीदवारों को खड़े करने के बाद वो इतने वोट जमा कर लेंगे कि चुनाव आयोग उन्हें राष्ट्रीय पार्टी घोषित कर देगा. लेकिन उनकी अपनी जल्दबाजी ने उन्हें जमीन पर लाकर पटक दिया.

पंजाब में जरूर उनके चार उम्मीदवार चुनकर आ गए और वहां पर वो क्षेत्रीय पार्टी के रूप में स्थापित हो गई. दिल्ली में करीब 32 फीसदी वोट पाने के बावजूद उनकी पार्टी ने एक भी सीट पर विजय हासिल नहीं की और लोकसभा चुनाव में उनके 414 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई.

पार्टी की हार के बाद उनके अपने लोगों ने उन पर सवालिया निशान खड़े करने शुरू कर दिए. वैसे भी आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्यों ने केजरीवाल की भारत विजय यात्रा पर पहले भी सवाल उठाए थे. लेकिन यहीं पर पार्टी में टूट साफ दिखने लगी.

दिल्ली की नंबर वन पार्टी

केजरीवाल ने 2015 में दिल्ली विधानसभा में फिर हाथ आजमाया और इस बार रिकॉर्ड तोड़ वोट मिले. दिल्ली विधानसभा में 70 में से 67 सीटों पर कब्जा कर आप दिल्ली की नंबर वन पार्टी बन गई. बीजेपी को उसने तीन सीटों पर समेट दिया और 15 साल दिल्ली में राज करने वाली कांग्रेस का तो खाता भी नहीं खुला.

इस हैरतंगेज चुनाव परिणाम की उम्मीद तो केजरीवाल को भी नहीं थी और फिर वो उसी रौ में बह गए. दिल्ली की जीत ने उन्हें ये बता दिया कि दिल्ली में लोगों की उम्मीदे अभी भी हैं लेकिन उन्हें ये नहीं समझ आया कि दिल्ली की शहरी पढ़ी-लिखी जनता ने उन्हें वोट दिया है. बदलाव की राजनीति का सपना संजोकर देश के सियासी फलक पर तेजी से उभरी आम आदमी पार्टी के लिए साल 2015 भले ही दिल्ली की सत्ता लेकर आया लेकिन जीत के बावजूद केजरीवाल अपनी पार्टी में बगावती सुर को संभाल नहीं पाए.

संस्थापक सदस्यों ने केजरीवाल पर पार्टी को मूल दिशा से भटकाने का आरोप लगाया. केजरीवाल ने पार्टी की दिशा तो नहीं बदली लेकिन विरोध के स्वर को दबाना शुरू कर दिया. नतीजा संस्थापक सदस्य जैसे योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण, किरण बेदी, आनंद कुमार, शाजिया इल्मी ने पार्टी छोड़ दी. किरण बेदी और शाजिया ने बीजेपी का दामन थामा जबकि योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण ने अपनी पार्टी स्वराज्य इंडिया बनाई.

दिल्ली में सरकार बनाते ही आप फिर अपने फॉर्म में आ गई. केजरीवाल ने पहले दिल्ली के लेफ्टिनेंट गर्वनर और फिर केन्द्र की मोदी सरकार पर हमला साधा. एल.जी पर उन्होंने सरकार को काम नहीं करने देने का आरोप लगाया. हर बात पर एल.जी और केन्द्र सरकार से लड़ाई ने केजरीवाल को बात-बात पर लड़ने वाले नेता की छवि दी, लेकिन सरकार में रहने के बावजूद काम नहीं करने का दोषारोपण केन्द्र सरकार पर लगातार डालना लोगों को समझ नहीं आ रहा था.

साथ ही प्रधानमंत्री मोदी पर उनके हमले लगातार बढ़ते चले गए और ये हमले राजनीतिक के साथ-साथ निजी होते चले गए. ये बात लोगों को हजम नहीं हो रही थी. हर बात पर आरोप लगाने वाली आप सरकार से लोगों का भी मोहभंग होने लगा था.

देश को नई दिशा और दशा देने का सपना संजोकर देश के सियासी फलक पर तेजी से उभरी आम आदमी पार्टी के लिए साल 2017, संगठन में विस्तार के लिहाज से बहुत फायदेमंद साबित नहीं हुआ. दिल्ली में सरकार बनाने के बाद केजरीवाल फिर दिल्ली के बाहर किला फतह करने निकल पड़े. गोवा और पंजाब में सरकार बनाने निकली आप ने सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए.

उन्होंने 2017 में गोवा विधानसभा में 39 सीटों में से 38 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे साथ ही पंजाब में क्षेत्रीय पार्टी के तौर पर विधानसभा चुनाव में लोक इंसाफ पार्टी के साथ गठबंधन कर 117 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए. आप को ये पूरी उम्मीद थी कि वो पंजाब में सरकार बना लेगी यही वजह थी कि 2017 में पार्टी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी. बात यहां तक होने लगी कि अरविंद केजरीवाल दिल्ली की सत्ता या तो अपनी पत्नी नहीं तो मनीष सिसोदिया को देकर पंजाब में मुख्यमंत्री का पद संभालेंगे. लेकिन नतीजे उनके पक्ष में नहीं आए.

गोवा विधानसभा में उनके सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई. जमानत जब्त यानी उनके नेता अपने क्षेत्र में छह फीसदी वोट लेने में भी सफल नहीं हुए. वहीं पंजाब में कांग्रेस की सरकार बनी. आप को 22 सीटें मिली. पंजाब की हार ने पार्टी को बहुत बड़ा झटका दिया. पंजाब में अपनी जीत को सौ फीसदी मानने वाली आम आदमी पार्टी ने चुनाव में मिली हार ने तोड़ कर रख दिया. वोट शेयर के मामले में भी आप पंजाब में तीसरे नंबर पर रही. इस नतीजे ने आम आदमी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ कर रख दिया. और यही वजह थी कि वो दिल्ली में आने वाले एमसीडी चुनाव में अपनी पूरी ताकत से खड़ी नहीं हो पाई.

एमसीडी में उन्हें हार का सामना करना पड़ा और बीजेपी ने तीनों एमसीडी पर कब्जा कर लिया, दो साल पहले तक प्रचंड बहुमत वाली आप सरकार को एमसीडी चुनाव मुंह की खानी पड़ी. अपने लोकलुभावन वादों के चलते आम आदमी पार्टी सत्ता में तो आ गयी, लेकिन दो साल पूरे होने के बावजूद पार्टी उन वादों को पूरा करने की दिशा में आगे नहीं बढ़ पाई थी.

अपने द्वारा किये तमाम वादे जैसे महिला सुरक्षा के लिए पूरी दिल्ली में सीसीटीवी लगवाना और राष्ट्रीय राजधानी को वाईफाई जोन में तब्दील कर देना इत्यादि जैसे वादों के साथ-साथ दिल्ली में नए स्कूल, कॉलेज और अस्पताल खोलना, संविदा कर्मचारियों को स्थायी करना जैसे मुद्दों पर आम आदमी पार्टी बचती नजर आयी. केन्द्र सरकार और एलजी पर लगातार आरोपों की झड़ी लगाती रही.

दिल्ली में भी उनका सफर बहुत आसान नहीं रहा. उनके पार्टी में विरोध के स्वर लगातार गूंज रहे हैं. राजनीति में नौसिखिए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया था, जो लाभ का पद है. पंजाब चुनाव के दौरान एक ने इस्तीफा दे दिया था. लेकिन 20 विधायकों पर तलवार लटक रही है.

कायदे से कानून कहता है कि संसद या फिर किसी विधानसभा का कोई भी सदस्य अगर लाभ के किसी भी पद पर होता है तो उसकी सदस्यता जा सकती है. हालांकि फिलहाल उन्हें हाईकोर्ट ने अपना पक्ष रखने का मौका दिया है लेकिन मामला गंभीर है. हालांकि आप की सरकार को खतरा नहीं है लेकिन उनकी छवि पर ये बहुत बड़ा झटका है.

राज्यसभा चुनाव ने अरविंद केजरीवाल के लिए मुसीबतें बढ़ा दीं. उनके करीबी नेताओं को उम्मीद थी कि केजरीवाल राज्यसभा की तीन सीटों पर उनके नाम को आगे बढ़ाएंगे. लेकिन केजरीवाल ने दो बाहरी उम्मीदवारों को चुना. पार्टी में से सिर्फ संजय सिंह को चुना गया. ये उनके करीबी लोगों के लिए बड़ा झटका था.

केजरीवाल का माफीनामा

अरविन्द केजरीवाल ने सोनिया गांधी और कांग्रेस पार्टी और बीजेपी और मोदी पर लगातार निशाना साधा. आरोप की झड़ी लगाते चले गए लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं किया. लेकिन ये सारे आरोपों की झड़ी ने उन पर कोर्ट केस की झड़ी लगा दी. केसों के निबाटारा करने के लिए अरविन्द केजरीवाल ने लोगों से माफी मांगनी शुरू की.

पंजाब में अकाली दल के नेता बिक्रम मजीठिया को ड्रग्स माफिया कहने पर हुए मानहानि केस में माफी मांगने के बाद केजरीवाल अब तक नितिन गडकरी, वित्त मंत्री अरुण जेटली और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल से माफी मांग चुके हैं. एक समय पर केजरीवाल ने भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए इन नेताओं के खिलाफ आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ने का दावा किया था.

हालांकि उनका तर्क था कि कोर्ट के चक्कर लगाने में सरकार का पैसा खर्च हो रहा है लेकिन सूत्रों का मानना था कि वो कोर्ट में अपने आरोप सिद्ध नहीं कर पा रहे थे. बताया जाता है कि सुप्रीम कोर्ट ने नेताओं के केस की फास्ट ट्रैक सुनवाई का आदेश है. ऐसे में आपराधिक मानहानि का केस झेल रहे केजरीवाल को चिंता है कि अगर उन्हें इस चक्कर में सजा मिल गई तो उनकी भविष्य की राजनीति प्रभावित होगी.

आईएस थप्पड़

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल फिर विवादों में फंसे जब उन पर उनके मुख्य सचिव मुख्यमंत्री निवास पर आप नेताओं द्वारा मारपीट का आरोप लगाया. ये केजरीवाल की छवि पर बहुत बड़ा झटका था. उनके नेताओं पर बाकायदा पुलिस कार्रवाई हुई और अफसरों ने अपनी सुरक्षा की मांग की. बदले में अरविंद केजरीवाल ने फिर एनजीओ मार्का राजनीति की कोशिश की और एलजी ऑफिस के वेटिंग रूम में धरने पर बैठ गए.

दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की मांग करने लगे और साथ ही आईएस अफसरों पर असहयोग आंदोलन का आरोप लगाया. नौ दिन चले इस पूरे धरने में केजरीवाल फिर बैकफुट पर आए जब आईएएस अफसर संगठन ने केजरीवाल से ही सुरक्षा की गारंटी मांग ली. एसी कमरे में धरने पर बैठे केजरीवाल के इस आंदोलन ने आम लोगों का साथ नहीं मिला. हालांकि कार्यकर्ताओं ने धरना प्रदर्शन सब किया लेकिन हाईकोर्ट ने केजरीवाल के धरने को गलत ठहराया.

अब जब केजरीवाल ने फिर दिल्ली से बाहर कदम रखने की बात कही तो इस बार हरियाणा चुना. केजरीवाल खुद हरियाणा से हैं. उन्हें उम्मीद है कि हरियाणा में लोग उनके काम को देख रहे हैं. उनके धुर विरोधी योगेन्द्र यादव ने लोकसभा का चुनाव भी हरियाणा से लड़ा था. हरियाणा में विधानसभा चुनाव नवंबर 2019 में होंगे.

केजरीवाल को उम्मीद है कि हरियाणा का वैश्य समाज उनका साथ देगा. हालांकि उनकी उम्मीदें अभी तक बहुत रंग नहीं लाई हैं. दिल्ली के अलावा हर जगह हारने वाली आम आदमी पार्टी भविष्य में क्या करेगी ये तो देखने वाली बात है. केजरीवाल अपनी हार का ठीकरा कभी ईवीएम पर तो कभी बीजेपी पर फोड़ते रहे हैं लेकिन क्या उनकी पार्टी की लगातार हार उनके दिल्ली सरकार चलाने के तरीके पर सवालिया निशान तो नहीं है.

“We have not received any formal request for his visit to Mansarovar,” MEA

 

New Delhi:

The Ministry of External Affairs (MEA) on Thursday said it has not received any “formal request” for Congress president Rahul Gandhi’s visit to Kailash Mansarovar in China’s Tibetan region.

“We have not received any formal request for his visit to the Tibetan Autonomous region in China,” MEA spokesperson Raveesh Kumar said.

Last week, the Congress had said that Gandhi was yet to receive a response from the government to his request to undertake the Kailash Manasoravar Yatra.

Addressing a rally in New Delhi on 29 April, Gandhi had announced that he would go on a pilgrimage to Kailash Mansarovar after the 12 May Assembly polls in Karnataka.

He had made the announcement three days after an aircraft in which he was travelling from Delhi to Karnataka developed technical snag.

Kumar said Gandhi can visit Kailash Mansarovar either through the MEA-organised route or through a private route.

He said the MEA has not received any communication for the second option as well.

Known for its religious values and cultural significance, Kailash Manasarovar Yatra, organised by the Ministry of External Affairs, is undertaken by hundreds of people every year.