केंद्र सरकार और मणिपुर सरकार ने मणिपुर के एक विद्रोही समूह जे.ड.यू.एफ. के साथ गतिविधियों की समाप्ति के समझौते पर हस्ताक्षर किए : गृह मंत्रालय 

रघुनंदन पराशर, डेमोक्रेटिक फ्रंट, जैतो – 27 दिसम्बर :

            गृह मंत्रालय ने मंगलवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘उग्रवाद मुक्त और समृद्ध पूर्वोत्तर’ के विजन को साकार करते हुए और केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह के मार्गदर्शन में भारत सरकार और मणिपुर सरकार ने एक दशक से अधिक समय से सक्रिय जेलियांग्रोंग यूनाइटेड फ्रंट (जेडयूएफ) के साथ आज नई दिल्ली में गतिविधियों की समाप्ति का समझौता किया। यह समझौता मणिपुर में शांति प्रक्रिया को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ावा देगा।

            इस समझौते पर केन्द्रीय गृह मंत्रालय एवं मणिपुर सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों और जेडयूएफ के प्रतिनिधियों ने मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए।सशस्त्र समूह के प्रतिनिधियों ने हिंसा छोड़ने और देश के कानून द्वारा स्थापित शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होने पर सहमति व्यक्त की। इस समझौते में सशस्त्र कैडरों के पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन का प्रावधान है।

            सहमति प्राप्त बुनियादी नियमों के कार्यान्वयन की देख-रेख के लिए एक संयुक्त निगरानी समूह का गठन किया जाएगा।

कपिल सिब्बल हाथ छोड़ कर हुए साइकल सवार, अब रजाया सभा जाने की तैयारी

असम, नगालैंड, मणिपुर के कुछ हिस्सों से हटा सेना को स्पेशल पावर देने वाला कानून, लंबे समय से थी हटाने की मांग

3 राज्यों में AFSPA का दायरा घटा: असम, नगालैंड, मणिपुर के कुछ हिस्सों से हटा सेना को स्पेशल पावर देने वाला कानून, लंबे समय से थी हटाने की मांग भारत सरकार ने दशकों बाद नगालैंड, असम और मणिपुर राज्यों में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) के तहत अशांत क्षेत्रों का दायरा कम करने का फैसला किया है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने दशकों बाद पूर्वोत्तर राज्य नगालैंड, असम और मणिपुर में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) के तहत अशांत क्षेत्रों का दायरा कम करने का फैसला किया है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने गुरुवार (31 मार्च 2022) को सिलसिलेवार तीन ट्वीट कर यह जानकारी दी। गृहमंत्री ने लिखा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक अहम फैसला लिया गया है। भारत सरकार ने दशकों बाद नागालैंड, असम और मणिपुर राज्य में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) के तहत अशांत क्षेत्रों का दायरा कम करने का निर्णय लिया है।”

नयी द्ल्लि(ब्यूरो), डेमोक्रेटिक फ्रंट :

भारत सरकार ने दशकों बाद नगालैंड, असम और मणिपुर राज्यों में आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट (AFSPA) के तहत अशांत क्षेत्रों का दायरा कम करने का फैसला किया है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने ट्वीट में यह जानकारी दी है। शाह ने लिखा- AFSPA के इलाकों का दायरा घटाने में सरकार के शांति लाने के लिए किए जा रहे प्रयास मददगार रहे हैं। इन इलाकों में उग्रवाद पर भी नियंत्रण बढ़ा है। कई समझौतों के कारण सुरक्षा के हालात और विकास ने भी कानून हटाने में मदद की।

पिछले साल दिसंबर में नगालैंड में सेना के हाथों 13 आम लोगों के मारे जाने और एक अन्य घटना में एक व्यक्ति के मारे जाने के बाद असम में अफ्सपा (सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम ) हटाने की मांग ने जोर पकड़ लिया था। यह एक्ट मणिपुर में (इंफाल नगर परिषद क्षेत्र को छोड़ कर), अरुणाचल प्रदेश के चांगलांग, लोंगदिंग और तिरप जिलों में, असम से लगने वाले उसके सीमावर्ती जिलों के आठ पुलिस थाना क्षेत्रों के अलावा नगालैंड और असम में लागू है। केंद्र सरकार ने जनवरी की शुरुआत में नगालैंड में इसे छह महीने के लिए बढ़ा दिया था।

उन्होंने लिखा, “अफस्पा (AFSPA) के इलाकों में सरकार के शांति लाने के लिए किए जा रहे प्रयास मददगार रहे हैं। इन इलाकों में उग्रवाद पर भी नियंत्रण बढ़ा है। कई समझौतों के कारण सुरक्षा के हालात और विकास ने भी कानून हटाने में मदद की।” इसके बाद वह (अमित शाह) अपने अंतिम ट्वीट में पीएम मोदी को धन्यवाद करते हुए लिखते हैं, “पीएम मोदी की प्रतिबद्धता के कारण हमारा पूर्वोत्तर क्षेत्र, जो दशकों से उपेक्षित था, अब शांति, समृद्धि और अभूतपूर्व विकास के एक नए युग का गवाह बन रहा है। मैं इस महत्वपूर्ण अवसर पर पूर्वोत्तर के लोगों को बधाई देता हूँ।”

सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) को केवल अशांत क्षेत्रों में ही लागू किया जाता है। पूर्वोत्तर में सुरक्षाबलों की सहूलियत के लिए 11 सितंबर 1958 को यह कानून पास किया गया था। 1989 में जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद बढ़ने लगा तो यहाँ भी 1990 में अफस्पा लागू कर दिया गया था। अशांत क्षेत्र कौन-कौन से होंगे, ये भी केंद्र सरकार ही तय करती है। आसान शब्दों में अफस्पा कानून को ऐसे समझे। यह किसी भी राज्य या किसी भी क्षेत्र में तभी लागू किया जाता है, जब राज्य या केंद्र सरकार उस क्षेत्र को ‘अशांत क्षेत्र’ अर्थात डिस्टर्बड एरिया एक्ट (Disturbed Area Act) घोषित कर देती है। इस कानून के लागू होने के बाद ही वहाँ सेना या सशस्त्र बल भेजे जाते हैं। कानून के लगते ही सेना या सशस्त्र बल को किसी भी संदिग्ध व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई का अधिकार मिल जाता है।

इस एक्ट को सबसे पहले अंग्रेजों के जमाने में लागू किया गया था। उस वक्त ब्रिटिश सरकार ने भारत छोड़ो आंदोलन को कुचलने के लिए सैन्य बलों को विशेष अधिकार दिए थे। आजादी के बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने भी इस कानून को जारी रखने का फैसला लिया। फिर वर्ष 1958 में एक अध्यादेश के जरिए AFSPA को लाया गया और तीन महीने बाद ही अध्यादेश को संसद की स्वीकृति मिल गई। इसके बाद 11 सितंबर 1958 को AFSPA एक कानून के रूप में लागू हो गया।

इस कानून को लागू करने के पीछे यह तर्क दिया जाता है कि इसे उन इलाकों में लागू किया जाता है, जिनमें उग्रवादी गतिविधियाँ होती रहती हैं। भारत और म्यांमार की सीमा के दोनों तरफ कई अलगाववादी विद्रोही संगठनों के ठिकाने हैं। नागालैंड के अलावा मणिपुर में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी सक्रिय है, जो सेना पर हमले करती रहती है। इसी तरह जम्मू-कश्मीर में भी अलगाववादी संगठन सक्रिय है। इन संगठनों से निपटने और देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सेना को अफस्पा के तहत विशेष अधिकार दिए गए।

AFSPA को असम, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नगालैंड, पंजाब, चंडीगढ़, जम्मू-कश्मीर समेत देश के कई हिस्सों में लागू किया गया था। लेकिन, समय-समय पर परिस्थितियों को देखते हुए हटा भी दिया जाता है। मणिपुर में अफस्फा के खिलाफ इरोम चानू शर्मिला ने 16 साल तक अनशन किया था। नवंबर 2000 में आयरन लेडी के नाम से मशहूर इरोम शर्मिला के सामने एक बस स्टैंड के पास दस लोगों को सैन्य बलों ने गोली मार दी थी। इस घटना का विरोध करते हुए उस वक्त 29 वर्षीय इरोम ने भूख हड़ताल शुरू कर दी थी, जो 16 साल तक चली। अगस्त 2016 में उन्होंने भूख हड़ताल खत्म करके राजनीति में आने का फैसला किया और चुनाव भी लड़ा था, जिसमें उन्हें नोटा (NOTA) से भी कम वोट मिले थे। बताया जाता है कि उन्हें सिर्फ 90 वोट मिले थे, जबकि 143 मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना था।

कांग्रेस की कलह फिर सामने आई, विश्वबंधु राय ने सोनिया गांधी को भेजा पत्र

महाराष्ट्र के कांग्रेस विधायकों का कहना है कि गठबंधन सरकार की तो छोड़िये यदि हमारे मंत्री ही हमारी नहीं सुनेंगे तो आगामी चुनावों में पार्टी कैसे अच्छा प्रदर्शन कर पाएगी। इकॉनामिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार इन विधायकों ने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर तुरंत दखल देने की मांग की है, ताकि चीजें बिगड़ने से पहले संभल जाए। विधायकों ने कहा कि कांग्रेस के मंत्री हमारी चिंताओं पर ध्यान नहीं दे रहे हैं और वे हमसे तालमेल नहीं बना रहे हैं। 

  • विधानसभा में कांग्रेस के 44 विधायक हैं, इनमें से 25 विधायकों ने नाराजगी जताई है
  • कांग्रेस के लिए यह खतरे का संकेत माना जा रहा है, नाराज विधायकों ने सोनिया गांधी को लेटर लिखा है
  • इन 14 के अलावा 30 विधायक हैं, उनमें से 25 विधायकों ने नाराजगी जताई है

मुंबई/नयी दिल्ली(ब्यूरो), डेमोक्रेटिक फ्रंट :

महाराष्‍ट्र  कांग्रेस में सब कुछ ठीक नहीं है। राज्‍य के विधायकों की नाराजगी और उनके कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी  से मिलने का समय मांगे जाने के बाद अब ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सदस्य विश्वबंधु राय ने भी सोनिया गांधी को पत्र लिखा है। उन्‍होंने राज्‍य में कांग्रेस की स्थिति को लेकर संज्ञान लेने का आग्रह किया है। उन्‍होंने कहा कि जैसा नुकसान पार्टी को पंजाब में हुआ, वैसा ही महाराष्‍ट्र में होने वाला है। महाराष्‍ट्र प्रभारी पार्टी के अंदरूनी असंतोष से अनजान रहते हैं। एनसीपी के साथ-साथ हमारे मंत्रियों से भी कई विधायक नाराज चल रहे हैं।

कॉन्ग्रेस के 25 विधायकों ने महाराष्ट्र सरकार में अपनी ही पार्टी के मंत्रियों के खिलाफ शिकायत करने के लिए पार्टी अध्यक्ष सोनिया गाँधी से मिलने का समय माँगा है। इन कॉन्ग्रेस विधायकों का कहना है कि पार्टी के मंत्री भी उनकी बात नहीं सुनते। उनकी चिंताओं का जवाब नहीं देते हैं। विधायकों ने सोनिया गाँधी को भेजे पत्र में उनसे हस्तक्षेप करने और चीजों को सही करने का आग्रह किया है।

कुछ विधायकों ने ET से कहा है कि महाविकास अघाड़ी सरकार के मंत्री, विशेष रूप से कॉन्ग्रेस के मंत्री, उनकी बात नहीं सुन रहे हैं। उनमें से एक ने कहा, “अगर मंत्री विधायकों के निर्वाचन क्षेत्रों में काम को लागू करने के अनुरोधों की अनदेखी करते हैं, तो पार्टी चुनावों में अच्छा प्रदर्शन कैसे करेगी?”

पार्टी में कोऑर्डिनेशन की कमी का संकेत देते हुए विधायकों ने कहा कि उन्हें पिछले सप्ताह ही पता चला कि कॉन्ग्रेस के प्रत्येक मंत्री को पार्टी विधायकों से जुड़े मसलों का तरीके से समाधान करने की जिम्मेदारी दी गई है। इसके तहत हर मंत्री के जिम्मे तीन पार्टी विधायक आते हैं। एक कॉन्ग्रेस विधायक ने कहा, “हमें इसके बारे में तब पता चला जब एचके पाटिल ने हाल ही में एक बैठक की थी। इसमें बताया गया कि कॉन्ग्रेस मंत्रियों को तीन-तीन विधायक आवंटित किए गए हैं। राज्य मे एमवीए की सरकार बनने के कुछ महीने बाद ही ऐसा किया गया था। लेकिन हमें इसके बारे में सरकार बनने के ढाई साल बाद पता चल रहा है। अब भी कोई नहीं जानता कि कौन सा मंत्री हमसे जुड़ा हुआ है।”

इसके अलावा कॉन्ग्रेस के विधायकों का यह भी कहना है कि इस तरह की परिस्थिति के कारण राज्य में पार्टी एनसीपी से भी पिछड़ रही है। विधायकों ने चिट्ठी में लिखा है कि एनसीपी के नेता और उद्धव सरकार में डिप्टी सीएम अजित पवार लगातार अपनी पार्टी के विधायकों से मिलते हैं, उनकी बात सुनते हैं और योजनाओं के लिए धन की व्यवस्था भी कराते हैं। उन्होंने ये भी लिखा है कि एनसीपी लगातार कॉन्ग्रेस पर निशाना साधती है। अगर अभी कदम नहीं उठाया गया, तो कॉन्ग्रेस बाकी राज्यों की तरह महाराष्ट्र में हाशिए पर चली जाएगी। विधायकों ने कहा कि पंजाब में पार्टी की हार के बाद तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए। अगर पार्टी का महाराष्ट्र में ऐसा ही रवैया रहता है तो पंजाब जैसा परिणाम आ सकता है। बता दें कि हालिया विधानसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस को पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में करारी हार मिली है।

एन बीरेन सिंह होंगे मणिपुर के अगले मुख्यमंत्री

बीजेपी सूत्रों के अनुसार, मणिपुर में मुख्यमंत्री पद को लेकर पार्टी के अंदर खींचतान थी, इसलिए चुनाव से पहले किसी को आधिकारिक तौर पर मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर नामित नहीं किया गया था। एन. बीरेन सिंह ने मुख्यमंत्री के रूप में मणिपुर में 5 साल तक एक सफल सरकार का नेतृत्व किया है, लेकिन पार्टी के अंदर उन्हें बिस्वजीत सिंह से चुनौती मिल रही थी। बता दें कि मणिपुर में विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 60 में से 32 सीटें जीतकर बहुमत हासिल किया। हालांकि जीत के बावजूद सीएम के नाम को लेकर पेंच फंसा हुआ था और 10 दिन बाद आखिरकार यह साफ हुआ कि एन बीरेन सिंह ही राज्य के अगले मुख्यमंत्री होंगे।

इम्फाल: 

मणिपुर में बीजेपी के फिर से सत्ता में वापसी करने के बाद राज्य का अगला मुख्यमंत्री  कौन होगा? इस पर पिछले 10 दिनों से अटकलों का दौर जारी था लेकिन आखिरकार पार्टी ने तमाम कयासों को विराम देते हुए एन बीरेन सिंह को फिर से सीएम पद के लिए चुना है।  रविवार को राजधानी इंफाल  में हुई विधायक दल की बैठक में उन्हें सर्वसम्मति से विधायक दल का नेता चुन लिया गया। इस मौके पर बीजेपी के केंद्रीय पर्यवेक्षक निर्मला सीतारमण और किरण रिजिजू भी मौजूद रहे।

बीजेपी 2017 में कांग्रेस की 28 सीटों की तुलना में सिर्फ 21 सीटें होने के बावजूद दो स्थानीय दलों- एनपीपी और एनपीएफ के साथ हाथ मिलाकर सरकार बनाने में सफल रही थी। हालांकि, इस बार, भाजपा ने अकेले चुनाव लड़ा और बहुमत हासिल करने में कामयाब रही। भाजपा का चुनावी मुद्दा यह था कि पार्टी को दिया गया वोट अशांत राज्य में शांति लाएगा।

मणिपुर में बीजेपी विधायक दल की बैठक में शामिल होने के लिए बीजेपी केंद्रीय पर्यवेक्षक निर्मला सीतारमण और किरेन रिजिजू और पार्टी नेता भूपेंद्र यादव इम्फाल पहुंचे हुए हैं। बीरेन सिंह को विधायक दल का नेता चुने जाने पर सीतारमण ने कहा कि ये बहुत ही अच्छा निर्णय है, ये सुनिश्चित करेगा कि मणिपुर में एक स्थिर और जिम्मेदार सरकार हो जो आगे निर्माण करेगी क्योंकि केंद्र पीएम मोदी के नेतृत्व में पूर्वोत्तर राज्यों पर विशेष ध्यान देता है।

‘कॉन्ग्रेस में अध्यक्ष पद खाली नहीं है’ गुलाम नबी आज़ाद

यूपी-पंजाब समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक बुलाई गई, लेकिन ‘जी 23’ खेमा संतुष्ट नजर नहीं आया। दो दिनों में बड़े-बड़े नेताओं की दो मीटिंग से देश की राजनीति में हलचल बढ़ गई। सवाल उठने लगा कि क्या कांग्रेस टूट की कगार पर पहुंच गई है? लेकिन फिर सोनिया गांधी एक्टिव हुईं। गुलाम नमी आजाद से मुलाकात फिक्स हुई और मुलाकात के बाद लगता है कि जैसे सारे विवाद भी फिलहाल फिक्स कर लिए गए हैं। सिब्बल ने कहा था कि पार्टी को लोकसभा चुनाव हारे आठ साल हो गए हैं। अगर नेतृत्व को अभी भी यह पता लगाने के लिए ‘चिंतन शिविर’ की आवश्यकता है कि क्या गलत हुआ तो वे सपनों की दुनिया में रह रहे हैं। उन्होंने कहा कि वे ‘सबकी कॉन्ग्रेस’ चाहते हैं न कि ‘घर की कॉन्ग्रेस’। लेकिन सीडब्ल्यूसी के प्रमुख नेता यह महसूस करते हैं कि गाँधी परिवार के बिना कॉन्ग्रेस चल नहीं पाएगी।

‘घर की कॉन्ग्रेस’ चाहते हैं न कि ‘सबकी कॉन्ग्रेस’

डेमोक्रेटिक फ्रंट संवाददाता :

कांग्रेस के ‘जी 23’ समूह के प्रमुख सदस्य गुलाम नबी आजाद ने शुक्रवार को पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की और कहा कि फिलहाल नेतृत्व परिवर्तन कोई मुद्दा नहीं है तथा उन्होंने सिर्फ संगठन को मजबूत बनाने तथा आगे के विधानसभा चुनावों की तैयारियों को लेकर अपने सुझाव दिए हैं।

आजाद का यह बयान इस मायने में अहम है कि कुछ दिनों पहले ही ‘जी 23’ के उनके साथी कपिल सिब्बल ने एक साक्षात्कार खुलकर कहा था कि गांधी परिवार को नेतृत्व छोड़ देना चाहिए और किसी अन्य नेता को मौका देना चाहिए।

बताया जाता है कि करीब एक घंटे तक चली बैठक के दौरान आजाद ने कांग्रेस कार्य समिति का चुनाव कराने, केंद्रीय चुनाव समिति को निर्वाचित इकाई बनाने और निष्क्रिय संसदीय बोर्ड को पुनः जीवित करने का प्रस्ताव रखा। सोनिया गाँधी से मिलने के बाद आजाद ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि कांग्रेस के अध्यक्ष का पद ‘रिक्त नहीं है’ और CWC ने अगस्त-सितंबर में कांग्रेस अध्यक्ष के लिए चुनाव कराने का फैसला लिया है। बता दें कि आजाद के सदस्य हैं।

उन्होंने कहा, “कॉन्ग्रेस अध्यक्ष के साथ बैठक अच्छी थी। हम कॉन्ग्रेस प्रमुख से मिलते रहते हैं और वह नियमित रूप से नेताओं से मिलती हैं। हाल ही में कार्यसमिति की बैठक हुई थी और पार्टी को मजबूत करने के लिए सुझाव माँगे गए थे। मैंने कुछ सुझाव भी दिए थे। इसलिए मैंने उन सुझावों को दोहराया है। कुल मिलाकर चर्चा आगामी विधानसभा चुनाव पर रही। पार्टी में सुधार के सुझाव सार्वजनिक रूप से नहीं दिए जा सकते। पार्टी अध्यक्ष के लिए अभी कोई पद खाली नहीं है। उन्होंने (सोनिया गाँधी ने) इस्तीफे की पेशकश की, लेकिन हमने (G 23 ने भी) इसे खारिज कर दिया।”

लगता है कि कॉन्ग्रेस ने राहुल गाँधी के अध्यक्ष बनने की उम्मीद छोड़ दी है। गुरुवार (17 मार्च) को राहुल गाँधी ने कॉन्ग्रेस के दिग्गज नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा से मुलाकात की थी और पार्टी अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने गुलाम नबी आजाद से दो बार फोन पर बात की थी। खबरों के मुताबिक, कहा जाता है कि दोनों नेताओं राहुल गाँधी और हुड्डा ने पार्टी के पुनर्गठन पर चर्चा की थी। कॉन्ग्रेस के जी-23 बागी गुट की भी यही प्रमुख माँग है।

जी-23 के सदस्यों ने भविष्य की रणनीति पर चर्चा के लिए बुधवार (16 मार्च) की रात को गुलाम नबी आजाद के आवास पर मुलाकात की थी। बैठक के दौरान G-23 सदस्यों ने कथित तौर पर चर्चा की कि कैसे पार्टी के लिए आगे बढ़ने का एकमात्र तरीका सामूहिक और समावेशी नेतृत्व और सभी स्तरों पर निर्णय लेने का एक मॉडल अपनाना था। G-23 नेताओं ने कॉन्ग्रेस नेतृत्व से 2024 के लोकसभा चुनाव में एक विश्वसनीय विकल्प का मार्ग तैयार करने के लिए समान विचारधारा वाली ताकतों के साथ बातचीत करने का भी आग्रह किया।

बैठक कपिल सिब्बल के आवास पर होनी थी, लेकिन अंतिम समय में कार्यक्रम स्थल को स्थानांतरित कर दिया गया। बैठक में शामिल होने वाले नेताओं में आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी, संदीप दीक्षित और शशि थरूर शामिल थे। शशि थरूर सहित की उपस्थिति से कई कॉन्ग्रेस नेता आश्चर्यचकित थे, क्योंकि हाईकमान पर सवाल खड़ा करने के कारण थरूर या मुकुल वासनिक ने इसके बैठकों में आना बंद कर दिया था।

पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे 10 मार्च को घोषित होने के बाद से कॉन्ग्रेस नेतृत्व दबाव में है। वापसी की सभी उम्मीदें खत्म होने के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता गाँधी परिवार के अलावा किसी और को पार्टी की कमान सौंपने की माँग दोहरा रहे हैं।

दिलचस्प बात यह है कि कॉन्ग्रेस कार्यसमिति की बैठक के एक दिन 15 मार्च को पार्टी के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने राहुल गाँधी और पार्टी आलाकमान के खिलाफ तीखी प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने सवाल किया था कि राहुल गाँधी के पास पार्टी में कोई औपचारिक पद नहीं है, फिर उन्होंने पंजाब जाकर मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में चरणजीत सिंह चन्नी क नाम की घोषणा कैसे कर दी। उन्होंने यह भी कहा कि गाँधी परिवार को पार्टी का कमान छोड़ देना चाहिए।

इसी तरह सोमवार (14 मार्च) को कार्यसमिति की बैठक के दौरान सिब्बल ने कहा कि पार्टी को लोकसभा चुनाव हारे आठ साल हो गए हैं। अगर नेतृत्व को अभी भी यह पता लगाने के लिए ‘चिंतन शिविर’ की आवश्यकता है कि क्या गलत हुआ तो वे सपनों की दुनिया में रह रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि सीडब्ल्यूसी के प्रमुख नेता यह महसूस करते हैं कि गाँधी परिवार के बिना कॉन्ग्रेस चल नहीं पाएगी। उन्होंने कहा कि वे ‘सबकी कॉन्ग्रेस’ चाहते हैं न कि ‘घर की कॉन्ग्रेस’। ‘सब की कॉन्ग्रेस’ से उनका मतलब उन पुराने सदस्यों को लाना है, जिन्होंने पार्टी छोड़ दी और बीजेपी के खिलाफ लड़ाई लड़ी।

भाजपा ने चार राज्यों के लिए पर्यवेक्षकों का किया एलान, शाह को यूपी की जिम्मेदारी

विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित होने के चार दिन बाद भाजपा ने सरकार बनाने की कवायद शुरू कर दी है। सूत्रों के मुताबिक, भाजपा के दो केंद्रीय पर्यवेक्षक सोमवार शाम को विधायकों के साथ बैठक करेंगे। इस दौरान गोवा में अगले मुख्यमंत्री के नाम को लेकर चर्चा हो सकती है। हालांकि, सूत्रों ने बताया है कि पार्टी सावंत को फिर से मुख्यमंत्री के रूप में चुनेगी। भाजपा ने 40 सदस्यीय विधानसभा में सबसे अधिक 20 सीट पर जीत हासिल की थी। तीन निर्दलीय और महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी (एमजीपी) के दो सदस्यों ने पहले ही भाजपा को अपना समर्थन दिया है। 

लखनऊ(ब्यूरो), डेमोक्रेटिक फ्रंट :

विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत हासिल करने वाली भारतीय जनता पार्टी ने अपने पर्यवेक्षकों के नाम का ऐलान कर दिया है। बीजेपी संसदीय बोर्ड ने सोमवार को उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा विधानसभा में विधायक दल के नेता के चुनाव के लिए केंद्रीय पर्यवेक्षकों और सह-पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की। बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में सरकार गठन करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को केंद्रीय पर्यवेक्षक, जबकि झारखंड के पूर्व सीएम रघुवर दास को  सह-पर्यवेक्षक नियुक्त किया है।

केंद्रीय वित्‍त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) को मणिपुर का पर्यवेक्षक नियुक्‍त किया गया है। किरेन रिजिजू मणिपुर के सह-पर्यवेक्षक होंगे। इसी तरह नरेंद्र सिंह तोमर को गोवा के पर्यवेक्षक की जिम्‍मेदारी सौंपी गई है। केंद्रीय मंत्री एल. मुरुगन गोवा के सह-पर्यवेक्षक की जिम्‍मेदारी संभालेंगे। सभी पर्यवेक्षक नई सरकार के गठन में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। 

उम्‍मीद है कि होली बाद यूपी में सरकार का गठन किया जाएगा। इसी क्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दिल्ली आए थे। उन्‍होंने दिल्‍ली में प्रधानमंत्री मोदी, भाजपा अध्यक्ष नड्डा और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी। यूपी में नई सरकार के गठन की तारीख घोषित नहीं हो पाई है। माना जा रहा है कि मंत्रिमंडल में जिन चेहरों को शामिल किया जाएगा उनके नामों पर मंथन हो रहा है। 

उल्‍लेखनीय है कि भाजपा ने यूपी में सहयोगियों के साथ मिलकर 403 विधानसभा सीटों में से 273 पर जीत हासिल की है जबकि समाजवादी पार्टी को 111 सीटें मिली हैं। उत्‍तराखंड की 70 विधानसभा सीटों में से भाजपा ने 47 पर जीत हासिल की है। उत्‍तराखंड में कांग्रेस को 19 सीटों से संतोष करना पड़ा है। वहीं गोवा की 40 विधानसभा सीटों में से भाजपा को 20 सीटें हासिल हुई हैं। मणिपुर की 60 विधानसभा सीटों में से भाजपा ने 32 सीटों पर जीत दर्ज की है। 

जब तक संगठन के चुनाव नहीं हो जाते, सोनिया गांधी ही पार्टी का नेतृत्व करेंगी

बीते करीब 19 महीने में कांग्रेस के अंदर का ये प्रेशर ग्रुप अक्सर चुनाव के वक्त ही चर्चा में आया है। अगस्त 2020 में जब इस समूह ने पहली बार सोनिया गांधी को पत्र लिखा। उस वक्त राजस्थान के उप मुख्यमंत्री बगावती तेवर अपनाए हुए थे। वहीं, एक महीने बाद ही बिहार में चुनाव तारीखों का ऐलान होने वाला था।  एक बार फिर ये नेता चर्चा में हालांकि, इस बार चुनाव नतीजों के बाद इस समूह ने सक्रियता दिखाई है। इसके अलावा भी गाहे बगाहे ये नेता अपने बयानों और ट्वीट से पार्टी और गांधी परिवार से मुश्किल सवाल पूछते रहते हैं। पंजाब में चुनाव से पहले जारी कलह पर मनीष तिवारी अक्सर बोलते रहते थे। पंजाब से आने वाले मनीष तिवारी को पूरे चुनाव के दौरान कांग्रेस नेतृत्व ने हाशिए पर रखा था। 

  • वैसे कांग्रेस में यह एक आम सहमति है कि सोनिया गांधी के बाद पार्टी का जिम्मा राहुल गांधी ही संभालेंगे

नयी दिल्ली(ब्यूरो), डेमोक्रेटिक फ्रंट :

पांच राज्यों में हुई करारी हार और चौतरफा उठ रहे सवालों के बीच कांग्रेस कार्यसमिति ने फैसला लिया है कि जब तक संगठन के चुनाव नहीं हो जाते, सोनिया गांधी ही पार्टी का नेतृत्व करेंगी। पांच घंटे चली कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में तमाम सदस्यों ने हार के कारणों पर अपनी अपनी राय रखी और पार्टी को मजबूत करने की सलाह भी दी। लेकिन सबने तय किया कि जल्दबाज़ी में फैसला लेना उचित नहीं है, इसलिए 20 अगस्त को संगठन के चुनाव के बाद ही तय होगा कि पार्टी का नया नेतृत्व किसे मिलेगा।

कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) ने हालिया विधानसभा चुनावों में हार के संदर्भ में ‘खामियों’ को स्वीकार करते और नतीजों पर गंभीर चिंता प्रकट करते हुए फैसला किया कि जल्द ही एक ‘चिंतन शिविर’ का आयोजन किया जाएगा जिसमें आगे की रणनीति तैयार की जाएगी।

पार्टी के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने बताया कि सीडब्ल्यूसी ने सोनिया गांधी के नेतृत्व में विश्वास जताया और उनसे आग्रह किया कि वे पार्टी को मजबूत करने के लिए जरूरी बदलाव करें।

वैसे कांग्रेस में यह एक आम सहमति है कि सोनिया गांधी के बाद पार्टी का जिम्मा राहुल गांधी ही संभालेंगे। आज इस मीटिंग से पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का बयान भी चर्चा में रहा जिसमें उन्होंने राहुल गांधी को नेतृत्व संभालने की बात कही। यही नहीं जब सीडब्लूसी के मेंबर्स पार्टी दफ्तर के अंदर मंथन कर रहे थे, तब भी बाहर राहुल गांधी के समर्थन में यूथ कांग्रेस के नेता धरने पर बैठे रहे। हालांकि पार्टी का एक धड़ा उनकी रणनीतियों के तहत लड़े जा रहे चुनाव और लगातार मिल रही हार से निराश है, गुलाम नबी आजाद के नेतृत्व में तेईस नेताओं का ये धड़ा मानता है कि कांग्रेस को आमूल परिवर्तन करके ही रास्ते पर लाया जा सकता है। 

हाल में हुई चुनावी हार के बाद गुलाम नबी आजा़द ने कहा था कि इस हार से उनका दिल बैठा जा रहा है। नेताओं की इस उद्वेलना और निराशा को देखते हुए ही कार्यसमिति बुलायी गयी थी। लेकिन हार की समीक्षा के कारणों में रणनीति से ज्यादा नए नेतृत्व के मुद्दे पर बात हुई। कई नेताओं ने अपने सुझाव भी रखे। दिग्विजय सिंह ने कहा कि पार्टी नेतृत्व को संगठन के लोगों तक अपनी पहुंच आसान बनानी होगी, वहीं गुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि नेतृत्व

G-23 में शामिल कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भी पार्टी की हार पर ट्वीट किया। उन्होंने कहा कि पार्टी हारी है, पराजित नहीं हुई है। उन्होंने चुनावों में बेहतरीन प्रदर्शन के लिए भाजपा को बधाई भी दी। उन्होंने ट्वीट किया कि कांग्रेस अभी भी योग्य विरोधी साबित होगी। जैसा मेरे सहयोगी आलिम जावेरी ने कहा, हम हारे हैं लेकिन पराजित नहीं हुए हैं। हमारा विश्वास, मूल्य और हमारी विरासत की भावना बहुत गहरी है और आगे भी बनी रहेंगी। कांग्रेस नेता अजय कुमार ने कहा कि दुखी हैं लेकिन टूटे नहीं हैं। हिले हैं लेकिन बिखरे नहीं। दिल छोटा न करें, धर्मी अकेले और कठिन लड़ाई लड़ते हैं।

पाँच राज्यों में शर्मनाक हार के बाद गांधी परिवार करेगा इस्तीफे की ‘पेशकश’

कांग्रेस ने स्पष्ट रूप से इस बात से इनकार किया है कि गांधी परिवार – सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा – अपने शीर्ष निर्णय लेने वाले निकाय कांग्रेस कार्य समिति या सीडब्ल्यूसी की रविवार को होने वाली बैठक में इस्तीफा देने जा रहे हैं. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने शनिवार शाम कहा, “कथित इस्तीफे की खबर अज्ञात स्रोतों पर आधारित है और पूरी तरह से अनुचित एवं गलत है.” यह पहली बार नहीं होगा जब गांधी परिवार के सदस्यों ने हार के बात अपने इस्तीफे की पेशकश की हो. 2014 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद सोनिया गांधी ने अपने इस्तीफे की पेशकश की थी जिसे कांग्रेस वोर्किंग कमिटी ने अस्वीकार कर दिया था। आज कल इस बार भी तीनों के इस्तीफे की पेशकश को खारिज कर दिया जाएगा और जल्दी ही प्रियंका गांधी वाड्रा को राज्य सभा भेजा जाएगा। अभी कुछ दिन पहले ही जब एक्ज़िट पोल जानने के बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने अपनी इछ ज़ाहिर आर दी थी, जिसे किस ने भी नहीं नकारा।

राजविरेन्द्र वसिष्ठ, डेमोक्रेटिक फ्रंट :

2019 में, राहुल गांधी ने पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। तब से सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष के रूप में कार्य कर रही हैं। इतनी पुरानी पार्टी कोई नया अध्यक्ष तक नहीं खोज पाई है।गुरुवार को घोषित 5 राज्यों के चुनाव नतीजों में पार्टी का बेहद खराब प्रदर्शन जारी रहा। इसने अपने नियंत्रण वाले प्रमुख राज्यों में से एक, पंजाब को आम आदमी पार्टी (आप) के हाथों खो दिया। तीन अन्य राज्यों में एक मजबूत लड़ाई लड़ने में विफल रही, जहां उसने वापसी की उम्मीद की थी। ये थे – उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर। यूपी में, जहां चुनाव अभियान का नेतृत्व प्रियंका गांधी वाड्रा ने किया था, कांग्रेस को 403 में से सिर्फ 2 सीटें मिलीं, पिछले चुनावों के मुकाबले पार्टी को 5 सीटों का नुकसान हुआ। पार्टी को महज 2.4 फीसदी वोट मिले।

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पांच राज्यों में बुरी तरह हार का सामना करने के बाद कांग्रेस पार्टी ने कल कांग्रेस वोर्किंग कमिटी की बैठक बुलाई है। इस बैठक को लेकर एक बड़ी खबर सामने आ रही है। एनडीटीवी की एक खबर के अनुसार कांग्रेसकी अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी, उनके बेटे राहुल गांधी और राहुल की बहन प्रियंका गांधी वाड्रा, जिन्होंने ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र पार्टी के प्रचार अभियान की जिम्मेदारी ली हुई थे, तीनों कल पार्टी के पदों से अपने इस्तीफे की पेशकश कर सकते हैं।

इस बार भी तीनों के इस्तीफे की पेशकश को खारिज कर दिया जाएगा और जल्दी ही प्रियंका गांधी वाड्रा को राज्य सभा भेजा जाएगा। अभी कुछ दिन पहले ही जब एक्ज़िट पोल जानने के बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने अपनी इछ ज़ाहिर आर दी थी, जिसे किस ने भी नहीं नकारा।

आआपा 3 राज्य की 460 सीटों पर लड़े सिर्फ 2 जीते अब 2024 में मोदी से लड़ने का ख्वाब देखने वाली

पंजाब में आम आदमी पार्टी की जीत का प्रमुख कारण उसके व पंजाब की तरह ही अन्य राज्यों में भी आम आदमी पार्टी ने अपना फ्री मॉडल जनता के सामने रखा था। लेकिन, पंजाब के अलावा किसी और राज्य में उसका प्रदर्शन रहा ही नहीं है। लेकिन, इससे यह भी पता चलता है कि पंजाब में आप की विशाल जीत केवल वादों पर ही आधारित नहीं है। दरअसल, चुनाव से ठीक पहले पंजाब में राजनीतिक संकट खड़ा हो गया था। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस छोड़ दी थी और चरणजीत सिंह चन्नी को कांग्रेस ने मुख्यमंत्री बना दिया था। दे ही नहीं हैं। इसके लिए प्रदेश की राजनीतिक स्थिति ने भी अहम भूमिका निभाई है। केजरीवाल पंजाब के बारे में यह कह रहे हैं कि वहाँ इनकी पुरानी पहचान है तो उत्तर प्रदेश से केजरीवाल खुद ही मोदी के खिलाफ चुनावों में अपनी पहचान भी बना नहीं पाये थे। वही हाल इस बार भी आआपा का 4 राज्यों में रहा है।

चंडीगढ़ संवाददाता, डेमोक्रेटिक फ्रंट :

आम आदमी पार्टी ने पंजाब में 92 सीट जीत कर इतिहास रच दिया। आप की आंधी ने बड़े-बड़े दिग्गज धराशाही कर दिए। आम आदमी पार्टी का झाडू़ ऐसा चला कि सूबे की 117 सीटों में से 92 पर पार्टी का परचम लहरा गया। पंजाब के इतिहास में अब तक की ये सबसे बड़ी जीत है। 3 राज्य, 460 सीटों पर लड़े, 2 जीते, 2024 में मोदी से लड़ने का ख्वाब देखने वाली आआपा का परफॉर्मेंस यह भी है। यहाँ आआपा के संयोजक व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी रैली की थी। पार्टी को कुल 0.38 प्रतिशत वोट मिले हैं, जो कि नोटा (0.69) से भी कम है। कानपुर में 10 में से 7 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई। आआपा भाजपा से जीतने कि बात कर रही है जबकि सच यह है कि पंजाब में भाजपा कभी भी सत्तारूढ़ नहीं थी अपितु सत्ताधारियों का एक सहयोगी ही रही।

जब आम आदमी पार्टी के बीजेपी के खिलाफ उतरने की बात हो रही है तो आइए एक नजर डालते हैं उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गोवा में उनकी क्या स्थिति रही। सबसे पहले बात करते हैं उत्तर प्रदेश की। प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा की लहर के आगे इस बार भी विरोधियों और विपक्ष की एक नहीं चली। इसी के चलते भाजपा एक बार फिर अकेले अपने दम पर 403 में से 255 सीटें जीतकर लगातार दूसरी बार सरकार बनाने जा रही है। वहीं, पंजाब में करामात करने वाली आम आदमी पार्टी का यूपी में खाता भी नहीं खुला।

AAP ने यूपी चुनाव में 350 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। खलीलाबाद सीट पर पूर्व सांसद भालचंद्र यादव के बेटे सुबोध यादव से पार्टी को काफी उम्मीदें थी लेकिन वह पाँचवें नंबर पर खिसक गए। यहाँ AAP के संयोजक व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी रैली की थी। पार्टी को कुल 0.38 प्रतिशत वोट मिले हैं, जो कि नोटा (0.69) से भी कम है। कानपुर में 10 में से 7 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई।

वहीं उत्तराखंड की बात करें तो यहाँ आम आदमी पार्टी का प्रतिनिधित्व कर रहे कर्नल अजय कोठियाल अपनी सीट भी नहीं बचा सके। वह उत्तराखंड की गंगोत्री विधानसभा सीट से अपना चुनाव हार गए। उनकी जमानत जब्त हो गई। उत्तराखंड में पार्टी का खाता भी नहीं खुला। उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी ने सभी 70 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे लेकिन वो वहाँ पर कुल 3.31 प्रतिशत वोट ही हासिल कर सकी।

गोवा में पहली बार आम आदमी पार्टी के दो प्रत्‍याश‍ियों ने जीत तो दर्ज की है। लेकिन उनके सीएम उम्‍मीदवार अमित पालेकर अपनी सीट हार गए हैं। वहाँ उन्हें 6.77 प्रतिशत वोट मिले हैं। AAP ने सभी 40 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे।