Police Files, Chandigarh : – Five held for dealing for illegal trading of Remdesivir

‘Purnoor’ Korel, CHANDIGARH :

Operations Cell of Chandigarh Police has successfully arrested a group of persons involving in illegal dealing of Remdesivir medicine for selling it in local market in India at high rates. ASI Surjit Singh of Operations Cell along with police party while on patrolling received a secret information regarding some illegal dealing of  Medicine Remdesivir which is used in corona disease is in process  at Hotel Sec 17 Chd ;  On this ASI Surjit Singh  along with police party  raided there and apprehended 05 persons, red handed namely :-  

  1. Abhishek PV S/o Palangattu Veetil Diva Karan R/O Kerala Age 21 Yrs
  2. Susheel Kumar S/o Ram Saran, Kalka ji, South Delhi
  3. Parbhat Tyagi S/o Chandra Raj Singh Tyagi R/O Bhopal MP
  4. Philip Jacob Auxilium Pala of Kerala
  5. KP Francis S/o P T Paulose R/o Kerala

            All were dealing in sale/purchase of Remdesivir medicine, without any permit or license. After facts’ verification it was found that Abhishek PV and Susheel Kumar, Parbhat Tyagi , KP Francis and Philip Jacob  were making a fraud/illegal deal of medicine without any permit or license and committing  an offence  under section 420, 120B IPC and Section 7 of EC Act 1955 and Section 27 of Drugs and cosmetics act 1940.

            A raid was conducted at said medicine manufacturer plant at Baddi regarding which medicine they were dealing and 3000 injection of Remdesivir meant for supply in local market here in India without any prior permission or approval were seized in the presence of Local Drug Inspector.  Glaring irregularities were found in the physical verification of stock pointing towards diversion of said medicine towards local market after the ban on export by govt. Company director Gaurav Chawla R/o Zirakpur was also arrested. Further investigation is going on. A Special Investigation team has been constituted for the detailed Investigation.

बंगाल चुनावों के नतीजों से थी एक दिन पहले अभिषेक को मध्य प्रदेश की एक कोर्ट से समन

25 नवम्बर 2020 को कोलकाता में आयोजित तृणमूल कांग्रेस की आमसभा के दौरान डायमंड हार्बर संसदीय क्षेत्र से तृणमूल कांग्रेस के सांसद अभिषेक बनर्जी ने मंच से बंगाल प्रभारी भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को बाहरी एवं उनके पुत्र विधायक आकाश विजयवर्गीय को गुंडा जैसे अशोभनीय शब्दों से संबोधित कर उन्हें सार्वजनिक रूप से अपमानित किया था। उन्होंने कहा कि इसके विरूद्ध आकाश विजयवर्गीय द्वारा न्यायिक दंडाधिकारी प्रथम श्रेणी भोपाल के समक्ष मानहानि का परिवाद दायर कर साक्ष्य प्रस्तुत किए गए थे।

भोपाल /कोलकतता

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले तृणमूल कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। मध्य प्रदेश की एक कोर्ट ने टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी के भतीजे और सांसद अभिषेक बनर्जी को मानहानि मामले समन जारी किया है। 

बता दें कि अभिषेक बनर्जी के खिलाफ यह मामला पश्चिम बंगाल भाजपा प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश विजयवर्गीय ने दायर किया था। 

न्यायिक दंडाधिकारी (प्रथम श्रेणी) भोपाल की अदालत ने यह आदेश दिया है कि वह आकाश विजयवर्गीय द्वारा दायर किए गए मानहानि मामले में एक मई 2021 को कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत हो। यह जानकारी आकाश विजयवर्गीय के अधिवक्ता श्रेयराज सक्सेना ने दी।

बता दें कि 25 मई 2020 को कोलकात में आयोजित टीएमसी की आम सभा के दौरान डायमंड हार्बर के सांसद अभिषेक बनर्जी ने मंच से कैलाश विजयवर्गीय को ‘बाहरी’ और उनके बेटे आकाश को ‘गुंडा’ जैसे शब्दों से संबोधित कर अपमानित किया था। 

अधिवक्ता ने बताया कि मानहानि का परिवाद दायर किया गया था, न्यायिक दंडाधिकारी प्रथम श्रेणी भोपाल के समक्ष मानहानि का परिवाद दायर कर साक्ष्य प्रस्तुत किए गए थे। 

अधिवक्ता श्रेयराज सक्सेना ने बताया कि कोर्ट ने उक्त साक्ष्यों और मेरे तर्कों से सहमत होकर न्यायालय ने पाया कि ममता दीदी के भतीजे और तृणमूल कांग्रेस सांसद अभिषेक बनर्जी द्वारा आकाश विजयवर्गीय की मानहानि किया है।  इसके बाद न्यायालय ने अभिषेक बनर्जी को समन जारी करते एक मई 2021 को कोर्ट के समक्ष उपस्थित होने के आदेश दिया है।

बता दें कि आकाश विजयवर्गीय मध्य प्रदेश की इंदौर- 3 विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं।

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 

पश्चिम बंगाल में कुल आठ चरणों में मतदान होने वाले हैं, राज्य में पहले चरण के लिए 27 मार्च को मतदान हुआ था। पहले चरण में करीब 80 फीसदी मतदान हुआ था। वहीं दूसरे चरण के लिए एक अप्रैल को मतदान होगा। बता दें कि मतगणना दो मई को होगी।  

भारत सरकार का आजादी का अमृत महोत्सव और आपातकाल लोकतंत्र सेनानियों का दयनीय जीवन

आपातकाल में लोकतंत्र कायम करने के लिए मीसा, डीआईआर और सीआरपीसी की अलग अलग धाराओं में बड़ी संख्या में व्यक्ति निरुद्ध या जेल में बंद रहे थे। इनके आकलन और जांच के लिए केंद्र सरकार ने जेएस शाह की अध्यक्षता में इस बारे में कमीशन का गठन किया था। इसकी रिपोर्ट अनुसार, राजस्थान में मीसा बंदियों की संख्या 542, डीआईआर बंदियों की संख्या 1352 और सीआरपीसी निरुद्ध व्यक्तियों की संख्या 1908 बताई गई है। इस संख्या में वह आंकड़ा भी शामिल है जो मीसा,डीआईआर और सीआरपीसी की अलग अलग धाराओं में 30 दिन से भी कम समय तक जेल में बंद या निरुद्ध रहे। 

करणीदानसिंह राजपूत(पत्रकार, आपातकाल जेलयात्री) , 9 मार्च 2021.

आजादी का अमृत महोत्सव भारत सरकार पूरे देश में मनाने जा रही है। यह महोत्सव आजादी के 75 साल पूरे होने पर मनाया जा रहा है। यह 12 मार्च 2021 से देशभर में शुरू होगा और 75 सप्ताह तक यानी 15 अगस्त 2023 तक मनाया जाएगा। इस महोत्सव पर आयोजन के लिए प्रत्येक राज्य में और प्रत्येक जिले में तैयारियां शुरू हो चुकी है। इस 75 सप्ताह तक चलने वाले महोत्सव में अनेक कार्यक्रम होंगे।

वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से अपने सम्बोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि इस आयोजन का लक्ष्य लोगों को देश की आजादी और स्वतंत्रता संग्राम के महत्व को समझाना है, साथ ही, युवा पीढ़ी को स्वतंत्रता आन्दोलन की जानकारी देना है। उन्होंने कहा कि इससे युवाओं को जोड़ना है और इस आयोजन को आन्दोलन का रूप देना है।

स्वतंत्रता के 75 वर्ष का समारोह, आजादी का अमृत महोत्सव मनाने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय समिति की पहली बैठक 8 मार्च 2021 को आयोजित हुई। प्रधानमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए पैनल को संबोधित किया। राज्यपालों, केंद्रीय मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, राजनेताओं, वैज्ञानिकों, अधिकारियों, मीडिया प्रमुखों,आध्यात्मिक नेताओं, कलाकारों तथा फिल्मों से जुड़े व्यक्तियों, खिलाड़ियों तथा जीवन के अन्य क्षेत्रों के विख्यात व्यक्तियों सहित राष्ट्रीय समिति के विभिन्न सदस्यों ने बैठक में भाग लिया।

राष्ट्रीय समिति के जिन सदस्यों ने बैठक में इनपुट तथा सुझाव दिये, उनमें पूर्व राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, पूर्व प्रधानमंत्री श्री एच डी देवेगौड़ा, श्री नवीन पटनायक, श्री मल्लिकार्जुन खड़गे, श्रीमती मीरा कुमार, श्रीमती सुमित्रा महाजन, श्री जे.पी. नड्डा, मौलाना वहीदुद्दीन खान शामिल थे।

  • समिति के सदस्यों ने प्रधानमंत्री को “आजादी का अमृत महोत्सव” की योजना बनाने तथा इसके आयोजन के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने महोत्सव के क्षेत्र को और विस्तारित करने के लिए अपने सुझाव तथा इनपुट दिए।

केंद्रीय गृहमंत्री ने कहा कि भविष्य में ऐसी और अधिक बैठकें होंगी तथा आज प्राप्त हुए सुझावों एवं इनपुटों पर विचार किया जाएगा।

प्रधानमंत्री ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि देश धूमधाम और उत्साह के साथ आजादी के 75 वर्ष का समारोह मनाएगा, जो ऐतिहासिक प्रकृति, गौरव और इस अवसर के महत्व के अनुकूल होगा। उन्होंने समिति के सदस्यों से प्राप्त होने वाले नए विचारों तथा विविध सोचों की सराहना की। उन्होंने आजादी के 75 वर्ष के महोत्सव को भारत के लोगों को समर्पित किया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि आजादी के 75 वर्ष का समारोह एक ऐसा समारोह होना चाहिए, जिसमें स्वतंत्रता संग्राम की भावना, शहीदों को श्रद्धांजलि तथा भारत के निर्माण के उनके संकल्प का अनुभव किया जा सके। उन्होंने कहा कि इस समारोह को सनातन भारत के गौरव की झलकियों तथा आधुनिक भारत की चमक को भी साकार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस समारोह को संतों की आध्यात्मिकता की रोशनी तथा हमारे वैज्ञानिकों की प्रतिभा और ताकत को भी परिलक्षित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम विश्व के सामने इन 75 वर्षों की उपलब्धियों को भी प्रदर्शित करेगा तथा अगले 25 वर्षों के लिए हमारे लिए संकल्प करने की एक रूपरेखा भी प्रदान करेगा।

प्रधानमंत्री ने कहा कि कोई भी संकल्प बिना समारोह के सफल नहीं है। उन्होंने कहा कि जब कोई संकल्प समारोह का रूप ले लेता है तो लाखों लोगों की प्रतिज्ञा और ऊर्जा उसमें जुड़ जाती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि 75 वर्षों का समारोह 130 करोड़ भारतीयों की भागीदारी के साथ किया जाना है तथा लोगों की यह भागीदारी इस समारोह के मूल में है। इस समारोह में 130 करोड़ देशवासियों की अनुभूतियां, सुझाव तथा सपने शामिल हैं।

प्रधानमंत्री ने जानकारी दी कि 75 वर्षों के समारोह के लिए पांच स्तंभों का निर्णय किया गया है। ये हैं- स्वतंत्रता संग्राम, 75 पर विचार, 75 पर उपलब्धियां, 75 पर कदम तथा 75 पर संकल्प। इन सभी को 130 करोड़ भारतीयों के विचारों तथा भावनाओं में शामिल किया जाना चाहिए।

  • प्रधानमंत्री ने कम ज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मानित करने तथा लोगों को उनकी कहानियों के बारे में भी बताने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि देश का हर कोना देश के बेटों और बेटियों की शहादत से भरा हुआ है और उनकी कहानियां देश के लिए प्रेरणा का शाश्वत स्रोत होंगी। उन्होंने कहा कि हमें प्रत्येक वर्ग के योगदान को सामने लाना है। ऐसे बहुत से लोग हैं, जो पीढ़ियों से देश के लिए बहुत महान कार्य कर रहे हैं, उनके योगदान, विचार तथा सोच को राष्ट्रीय प्रयासों के साथ समेकित किये जाने की आवश्यकता है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि यह ऐतिहासिक समारोह स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों को पूरे करने, ऐसी ऊंचाई पर भारत को पहुंचाने, जिसकी उन्होंने कल्पना की थी, को लेकर है। उन्होंने जोर देकर कहा कि देश ऐसी चीजें अर्जित कर रहा है, जिसके बारे में कुछ वर्ष पहले तक सोचा भी नहीं जा सकता था। उन्होंने कहा कि यह समारोह भारत के ऐतिहासिक गौरव के अनुरूप होगा।

लोकतंत्र सेनानियों, देश की आजादी के बाद लोकतंत्र इतिहास में आपातकाल लगाया तब देश की आजादी, लोकतंत्र और संविधान को बचाने के लिए अपने परिवार व्यावसाय,नौकरियों को छोड़ कर लाखों लोग निकल पड़े। दमनचक्र में पिसे। वे देश के साथ खड़े थे लेकिन उनके साथ कौन खड़ा है? न सरकार, न कोई नेता न कोई संगठन साथ दे रहा है। प्रधानमंत्री गृहमंत्री के यहां से तो 7 सालों में एक पत्र का उत्तर तक नहीं आया। उनकी और सरकार की ईच्छा क्या है? इसका संकेत तक नहीं मिला।
आपातकाल 26 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का यह क्रांतिकारी इतिहास में और महोत्सव में शामिल होने से रह जाएगा। जब हमारी सरकार ही आपातकाल और आपातकाल के लोकतंत्र रक्षक सेनानियों को दूर रखेगी तो अन्य कौन सहेजेगा? आपातकाल के लोककतंत्र रक्षकों की वृद्धावस्था है और 60 वर्ष से ऊपर 75,80,85 और अधिक उम्र में पहुंच चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमितशाह व अन्य प्रमुख जन एक एक अंश से परिचित हैं और उनकी चुप्पी सभी को पीड़ित कर रही है। यह पीड़ा अपने कहे जाने वाले राज में हो तो अधिक महसूस होती है, आपातकाल के अत्याचारों से अधिक महसूस होती है।

स्वतंत्रता सेनानियों जैसे सम्मान के खातिर अब भी भटक रहे लोकतंत्र सेनानी
  • भारत सरकार जिन दलों के संगठन से बनी है उसमें भाजपा सबसे बड़ा दल है। इस बड़े दल के प्रमुख और अन्य नेताओं को नैतिक दायित्व भूलना नहीं चाहिए। आपातकाल में लोकतंत्र को बचाने वालों में माना जाता है कि देश के विभिन्न हिस्सों से अलग अलग विचारधारा होते हुए भी 36 या 38 संगठनों ने अपनी आहुतियां दी थी। भाजपा के अलावा भी संगठन हैं उनके नेताओं को भी इस बारे में आगे आना चाहिए। अनुनय, विनय,प्रार्थना, आग्रह पिछले 7 सालों में बहुत हो चुके हैं।
    अब पढ कर चुप रहने का समय नहीं है। जो सेनानी करें वे ही आगे बढें और सत्ता के हर भागीदार को बतादें कि जो नुकसान होगा वह सभी को भोगना होगा।
    भारत सरकार निर्णय लेने तक पहुंचे ऐसा कार्य सभी करें।

इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तन लेने के पश्चात दलित नहीं ले सकेंगे जातिगत आरक्षण का लाभ

हिन्दू धर्म में वर्ण व्यवस्था है, हिन्द धर्म 4 वर्णों में बंटा हुआ है, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वेश्या एवं शूद्र। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात पीढ़ियों से वंचित शूद्र समाज को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए संविधान में आरक्षण लाया गया। यह आरक्षण केवल (शूद्रों (दलितों) के लिए था। कालांतर में भारत में धर्म परिवर्तन का खुला खेल आरंभ हुआ। जहां शोषित वर्ग को लालच अथवा दारा धमका कर ईसाई या मुसलिम धर्म में दीक्षित किया गया। यह खेल आज भी जारी है। दलितों ने नाम बदले बिना धर्म परिवर्तन क्यी, जिससे वह स्वयं को समाज में नचा समझने लगे और साथ ही अपने जातिगत आरक्षण का लाभ भी लेते रहे। लंबे समय त यह मंथन होता रहा की जब ईसाई समाज अथवा मुसलिम समाज में जातिगत व्यवस्था नहीं है तो परिवर्तित मुसलमानों अथवा इसाइयों को जातिगत आरक्षण का लाभ कैसे? अब इन तमाम बहसों को विराम लग गया है जब एकेन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद सिंह ने सांसद में स्पष्ट आर दिया कि इस्लाम या ईसाई धर्म स्वीकार करने वाले दलितों के लिए आरक्षण की नीति कैसी रहेगी।

नयी दिल्ली(ब्यूरो):

इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तित होने वाले दलितों को चुनावों में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों से चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं होगी। इसके अलावा वह आरक्षण से जुड़े अन्य लाभ भी नहीं ले पाएँगे। गुरुवार (11 फरवरी 2021) को राज्यसभा में एक प्रश्न का जवाब देते हुए क़ानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने यह जानकारी दी। 

हिन्दू, सिख या बौद्ध धर्म स्वीकार करने वाले अनुसूचित जाति के लोग आरक्षित सीट से चुनाव लड़ने के योग्य होंगे। साथ ही साथ, वह अन्य आरक्षण सम्बन्धी लाभ भी ले पाएँगे। भाजपा नेता जीवी एल नरसिम्हा राव के सवाल का जवाब देते हुए रविशंकर प्रसाद ने इस मुद्दे पर जानकारी दी। 

आरक्षित क्षेत्रों से चुनाव लड़ने की पात्रता पर बात करते हुए रविशंकर प्रसाद ने कहा, “स्ट्रक्चर (शेड्यूल कास्ट) ऑर्डर के तीसरे पैराग्राफ के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जो हिन्दू, सिख या बौद्ध धर्म से अलग है, उसे अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जाएगा।” इन बातों के आधार पर क़ानून मंत्री ने स्पष्ट कर दिया कि इस्लाम या ईसाई धर्म स्वीकार करने वाले दलितों के लिए आरक्षण की नीति कैसी रहेगी। 

क़ानून मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि संसदीय या लोकसभा चुनाव लड़ने वाले इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तित होने वाले अनुसूचित जाति/जनजाति के व्यक्ति को निषेध करने के लिए संशोधन का प्रस्ताव मौजूद नहीं।    

भीमबेटका में मिला दुनिया का सबसे पुराने और दुर्लभ जीव का जीवाश्म

डिकिनसोनिया को लगभग 541 मिलियन वर्ष पहले, कैम्ब्रियन काल में प्रारंभिक, सामान्य जीवों और जीवन की शुरुआत के बीच प्रमुख लिंक में से एक माना जाता है। अब इस बात की पुष्टि हो गयी है कि डिकिनसोनिया सबसे पुराना ज्ञात जीवाश्म है. अब कई दशकों पुराना रहस्य रहस्य नहीं रह गया है. बता दें कि वैज्ञानिकों की इस खोज को अमेरिकी जर्नल साइंस ने पिछले गुरुवार को प्रकाशित किया है. जानकारी दी गयी है कि डिकिनसोनिया के अंडाकार शरीर की लंबाई में वालय जैसी संरचना होती है और यह 4.6 फीट तक बढ़ सकता है. विश्लेषण से पता चला कि यह 55.8 करोड़ साल पहले पृथ्वी पर भारी संख्या में मौजूद थे. यह जीव एडियाकारा बायोटा का हिस्सा है. बैक्टीरिया के दौर में यह जीव पृथ्वी पर थे. इसका मतलब यह कि आधुनिक जीवन शुरू होने के लगभग दो करोड़ साल पहले ये मौजूद थे. वैज्ञानिकों के लिए कार्बनिक पदार्थ से लैस डिकिनसोनिया जीवाश्मों को ढूंढना काफी मुश्किल काम रहा. हालांकि ऐसे बहुत से जीवाश्मों का पता ऑस्ट्रेलिया में चला था.

  • भीमबेटका में मिला दुनिया के सबसे पुराने जानवर का जीवाश्म
  • करीब 57 करोड़ साल पुराना जीवाश्म पहली बार भारत में मिला
  • गोंडवाना रिसर्च नामक अंतरराष्‍ट्रीय पत्रिका में प्रकाशित हुई खोज

नयी दिल्ली(ब्यूरो):

भोपाल से लगभग 40 किमी दूर स्थित यूनेस्को के संरक्षित क्षेत्र, भीमबेटका की ‘ऑडिटोरियम गुफा’ में दुनिया के सबसे दुर्लभ और सबसे पुराने जीवाश्म खोजा गया है। शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि उन्हें भारत में डिकिनसोनिया का पहला जीवाश्म मिला है। यह पृथ्वी का सबसे पुराना, लगभग 57 करोड़ साल पुराना जानवर है।

समाचार पत्र ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ के अनुसार, यह खोज अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ‘गोंडवाना रिसर्च’ के फरवरी संस्करण में प्रकाशित हुई है। डिकिनसोनिया जीवाश्म से पता चला है कि इस जानवर की लंबाई चार फीट से अधिक रही होगी, जबकि मध्य प्रदेश स्थित भीमबेटका की गुफा में जो जीवाश्म मिला है वो 17 इंच लंबा है।

भीमबेटका में डिकिनसोनिया का जीवाश्‍म (Dickinsonia fossils) शोधकर्ताओं को संयोग से ही मिला है। दरअसल, मार्च, 2020 में होने वाली 36वीं इंटरनेशनल जियोलॉजिकल कॉन्ग्रेस से पहले दो शोधकर्ता भीमबेटका के टूर पर गए थे। ये सेमीनार कोरोना वायरस महामारी के कारण दो बार स्थगित भी हो चुका है।

शोधकर्ताओं को भीमबेटका के अपने टूर के दौरान एक पत्‍तीनुमा आकृति नजर आई। यह जमीन से 11 फीट की उँचाई पर चट्टान के ऊपर मौजूद था और किसी रॉक आर्ट की तरह नजर आ रहा था। डिकिनसोनिया को लगभग 541 मिलियन वर्ष पहले, कैम्ब्रियन काल में प्रारंभिक, सामान्य जीवों और जीवन की शुरुआत के बीच प्रमुख लिंक में से एक माना जाता है।

शोधकर्ता इस बात को लेकर हैरान हैं कि इतने वर्षों तक यह जीवाश्म अनदेखा कैसे रह पाया? भीमबेटका की गुफा को 64 साल पहले वीएस वाकणकर ने ढूँढा था। तब से, हजारों शोधकर्ताओं ने साइट का दौरा किया और यहाँ पर लगातार ही शोधकार्य चल रहे हैं। लेकिन, दिलचस्प बात यह है कि यह दुर्लभ जीवाश्म अब तक सामने नहीं आ सका था।

नयी उम्मीदें जगा कर दतिया फ़िल्म महोत्सव सम्पन्न

माँ पीताम्बरा की विश्व प्रसिद्ध नगरी दतिया, मध्य प्रदेश  में 31 जनवरी से 1 फ़रवरी 2021 तक चलने वाले दतिया फ़िल्म महोत्सव का शुभारंभ  मध्य प्रदेश के गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा के मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुआ। महोत्सव में फिल्म जगत से जुड़ी कई महत्तवपूर्ण हस्तियों ने शिरकत की। दतिया नगर वासियों के लिए ये गर्व का विषय है कि नगर के लोकप्रिय विधायक एवं मध्यप्रदेश के  गृह मंत्री के अथक प्रयासों से नगर का नाम हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है।

शमीम शेख, DF – दतिया :

गृह मंत्री जी के आदेश से डॉ. बालकृष्ण कुशवाहा द्वारा गहोई वाटिका में फिल्म महोत्सव का आयोजन कर बुंदेलखंड क्षेत्र के हर ज़िले से फ़िल्म कलाकारों को आमंत्रित कर गृहमंत्री जी द्वारा उनका सम्मान किया गया। साथ ही साथ  गृहमंत्री जी ने  बॉलीवुड के कलाकारों  और फिल्म महोत्सव के आयोजकों को ये भरोसादिलाया कि दतिया में वह सारी व्यवस्थाएं की जाएंगी जिससे दतिया के ऐतिहासिक जीवन को फिल्मी पर्दे पर बख़ूबी दर्शाया जा सके और स्थानीय कलाकारों के लिए इस तरह के आयोजन लगातार किए जाएंगे जिससे उन्हें अपनी कला का प्रदर्शन करने के अधिक अवसर प्राप्त हों। 

मुंबई से आए हुए कलाकारों में मुकेश बच्चन ( दूरदर्शन निदेशक, मुंबई)  आरिफ़ शहडोली ( सब टीवी चिड़िया घर फेम) , अज़ीम शेख़( सोनी टीवी क्राइम पेट्रोल- सी आई डी फेम)  , देवदत्त बुधौलिया (फिल्म धड़कोला, भू माफिया फेम), अभिनेत्री शालू गोस्वामी , गीतकार दुष्यंत कुमार, आदित्य एन शर्मा, टीवी शो सब झोल झाल है के  निर्देशक परेश मसीह,अभिनेता नीतेश सिंघल ,शरद सिंह, आलोक त्रिपाठी, राजेंद्र सिंह पटेल आदि ने नव कलाकारों का मार्गदर्शन किया। मुकेश बच्चन ने जहां एक ओर स्टानिस्लावस्की और मेइस्नर के अभिनय सिद्धांतों की व्याख्या की, वहीं दूसरी ओर क्राइम पेट्रोल अभिनेता अज़ीम शेख़ ने अपनी दमदार संवाद द्वारा  सहज अभिनय के महत्त्व पर ज़ोर दिया। रंगकर्मी अभिनेता आरिफ़ शहडोली और देवदत्त बुधौलिया ने फिल्म और नाटक की अभिनय विधा के महत्त्वपूर्ण अंतर पर प्रकाश डाला । महोत्सव में आरीफ शहडोली द्वारा संकलित बुन्देलखण्ड फ़िल्म उद्योग निर्देशिका का विमोचन भी हुआ जिसकी सहायता से बुन्देलखण्ड के कलाकारों को भविष्य में आवश्यकता होने पर संपर्क किया जा सकेगा ।


महोत्सव का मुख्य आकर्षण रही निर्देशक – लेखक अवि संधू निर्देशित एवं अज़ीम शेख़, सिराज आलम, नईम शेख़ अभिनीत लघु फ़िल्म ‘ शिकार ‘।गृहमंत्री जी द्वारा फ़िल्म शिकार के पोस्टर लॉच के बाद आयोजकों द्वारा फिल्म शिकार का प्रदर्शन किया गया।  जिसके लिए निर्देशक अवि संधू को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के पुरस्कार से सम्मनित किया गया।

गृहमंत्री जी ने सभी कलाकारों को उनके आने वाले प्रोजेक्ट के लिए शुभकामनाएं दी।

माँ भगवती के लाडले भजन गायक ‘नरेंद्र चंचल’ नहीं रहे, वह 80 वर्ष के थे

नरेंद्र चंचल की मां कैलाशवती भी भजन गाया करती थीं। मां के भजन सुनते- सुनते उनकी रुचि भक्ति संगीत में बढ़ी. नरेंद्र चंचल की पहली गुरु उनकी मां ही थीं , इसके बाद चंचल ने प्रेम त्रिखा से संगीत सीखा, फिर वह भजन गाने लगे। नरेंद्र चंचल ने अपनी गायकी से बॉलीवुड में एक खास पहचान बनाई थी. उनकी गायकी का सफर राज कपूर के समय ही शुरू हुआ था। फिल्म ‘बॉबी’ में उनके द्वारा गाया गाना ‘बेशक मंदिर मस्जिद तोड़ो’ काफी मशहूर हुआ था. इसके बाद उन्होंने कई फिल्मों में गाने गाए, लेकिन उन्हें पहचान मिली फिल्म ‘आशा’, में गाए माता के भजन ‘चलो बुलावा आया है’ से जिसने रातोरात उन्हें मशहूर बना दिया। हाल ही में नरेंद्र चंचल ने कोरोनावायरस महामारी को लेकर गाना गाया था जो काफी वायरल भी हुआ था।

मुंबई/ चंडीगढ़:

प्रसिद्ध भजन गायक नरेंद्र चंचल का निधन हो गया है| 80 वर्ष की आयु में उन्होने अपनी अंतिम सांस ली है| बताया जाता है कि नरेंद्र चंचल काफी समय से अस्वस्थ चल रहे थे और आज उन्होने इस दुनिया को अलविदा कह दिया| वहीँ नरेंद्र चंचल के निधन से भजन भूमि और धार्मिक क्षेत्र और भजन गायकों के साथ-साथ उनके भजनों का रसपान करने वालों में शोक की लहर दौड़ गई है| चंचल की आवाज बेहद अलग थी और वह अपनी गायकी में एक अलग और उम्दा स्थान रखते थे|

उनके निधन की खबर सामने आते ही इंडस्ट्री में शोक की लहर है। सभी उन्हें श्रद्धांजली दे रहे हैं। उनके निधन पर देश के प्रधानमंत्री ने भी शोक व्यक्त किया है।

मशहूर सिंगर दलेर मेहंदी ने ट्वीट कर उनके निधन पर शोक जताया साथ ही उन्हें श्रद्धांजली भी अर्पित की।

उनके अलावा हरभजन सिंह ने भी नरेंद्र चंचल के निधन पर शोक व्यक्त किया है।

बतादें कि, नरेंद्र चंचल का जन्म 16 अक्टूबर, 1940 को अमृतसर के नामक मंडी में एक धार्मिक पंजाबी परिवार में हुआ था। 22 जनवरी, 2021 को उनका निधन हो गया। वह एक धार्मिक माहौल में बड़े हुए, जिसने उन्हें भजन और आरती गाने के लिए प्रेरित किया। नरेंद्र चंचल ने हिंदी फिल्मों में भजन दिए जो कि सुपर से सुपरहिट रहे| नरेंद्र चंचल का ”चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है’ गाना बेहद सुपरहिट रहा और भक्तों के बेहद करीब| नरेंद्र चंचल के शो भी होते थे जहाँ उनके मुख से भजन सुनने के लिए लोगों का ताँता लग जाता था| चंचल एक भक्त और भगवान के मिलन का एक समा बांध देते थे| बेहतरीन भजनों के लिए नरेंद्र चंचलको हमेशा याद किया जायेगा|

राणा को उनकी तथाकथित रचनात्मक स्वतंत्रता के लिए जवाबदेह बनाया जाना चाहिए

मुनव्वर राणा अपने ट्विटर अकाउंट पर शायरी की पंक्तियां ट्वीट करते रहते हैं। इसी तरह उन्होंने रविवार को भी एक ट्वीट किया, जिसपर बवाल मच गया। राणा ने अपने ट्वीट में लिखा, ”इस मुल्क के लोगों को रोटी तो मिलेगी, संसद को गिराकर वहां कुछ खेत बना दो। अब ऐसे ही बदलेगा किसानों का मुकद्दर, सेठों के बनाए हुए गोदाम जला दो। मैं झूठ के दरबार में सच बोल रहा हूं, गर्दन को उड़ाओ, मुझे या जिंदा जला दो।” हालांकि, बाद में मुनव्वर राणा ने ट्वीट को डिलीट कर दिया, लेकिन तब तक लोग स्क्रीनशॉट ले चुके थे और उसे शेयर कर रहे थे।इससे पहले राणा ने अपने बयान के जरिए पेरिस में शिक्षक का गला रेतने वाले आतंकी का बचाव किया था। उन्होंने कहा था कि अगर उस लड़के की जगह वह होते तो भी यही करते। विवादित शायर मुनव्वर राणा के इस बयान को लेकर काफी बवाल हुआ था।

नयी द्ल्लि/लखनऊ:

उर्दू शायर मुनव्वर राणा ने रविवार (जनवरी 10, 2021) को सोशल मीडिया पर अपने कविता के माध्यम से भीड़ को उकसाने का प्रयास किया। उन्होंने ट्वीट करते हुए लोगों से संसद भवन गिराने और गोदामों को जला देने का आह्वान किया। हालाँकि अब उन्होंने यह ट्वीट डिलीट कर दिया है।

मुनव्वर राणा ने ट्वीट करते हुए लिखा था, “इस मुल्क के कुछ लोगों को रोटी तो मिलेगी, संसद को गिरा कर वहाँ कुछ खेत बना दो। अब ऐसे ही बदलेगा किसानों का मुकद्दर, सेठों के बनाए हुए गोदाम जला दो। मैं झूठ के दरबार में सच बोल रहा हूँ, गर्दन को उड़ाओ, मुझे या जिंदा जला दो।”

इससे पहले राणा ने अपने बयान के जरिए पेरिस में शिक्षक का गला रेतने वाले आतंकी का बचाव किया था। उन्होंने कहा था कि अगर उस लड़के की जगह वह होते तो भी यही करते। विवादित शायर मुनव्वर राणा के इस बयान को लेकर काफी बवाल हुआ था। बता दें कि पिछले दिनों पेरिस में शिक्षक सैमुअल पैटी ने अपनी कक्षा में छात्रों के सामने पैगंबर मोहम्मद का विवादित कैरिकेचर दिखा दिया था। इसके बाद एक कट्टरपंथी छात्र ने उन्हें दिनदहाड़े बेरहमी से मार डाला था। 

अब कोई यह तर्क दे सकता है कि एक कवि के रूप में राणा उपमा या अलंकारों की बात कर सकते हैं। उनके कहने का मतलब वाकई में यह नहीं हो सकता कि गोदाम को आग लगा देना चाहिए, संसद को गिरा देना चाहिए। तो अब यह तर्क देने का कोई मतलब नहीं रहता है, क्योंकि उपमाओं के प्रयोग करने की क्रिएटिव लिबर्टी को पहले ही दरकिनार कर दिया गया है। 2013 में एक अन्य कवि और गीतकार जावेद अख्तर ने आजाद मैदान दंगों पर कविता लिखने के लिए एक महिला पुलिस अधिकारी को बर्खास्त करने की माँग की थी।

11 अगस्त 2012 को, रजा अकादमी के नेतृत्व में मुस्लिम संगठनों ने असम और म्यांमार में मुसलमानों पर कथित अत्याचारों के विरोध में आजाद मैदान मैदान में हिंसा की थी। आजाद मैदान में मुस्लिम संगठनों द्वारा रखाइन दंगों और असम दंगों की निंदा करने के लिए विरोध-प्रदर्शन किया गया, जो बाद में दंगे में बदल गया।

असम और राखाइन दंगों की निंदा करने के लिए, रज़ा अकादमी ने विरोध रैली का आयोजन किया था। हालाँकि, एक कुख्यात समूह के पुलिसकर्मियों पर हमला करने के बाद विरोध-प्रदर्शन हिंसक हो गया, जिसमें पुलिस की गोलीबारी में दो लोग मारे गए और 58 पुलिसकर्मियों सहित 63 लोग घायल हो गए।

दंगों के दौरान मौजूद पुलिस अधिकारी सुजाता पाटिल ने इस पर एक कविता लिखी थी। इसमें सुजाता ने उन चीजों का जिक्र किया था, जो उन्होंने वहाँ पर देखा था।

जावेद अख्तर उनकी कविता से बेहद निराश हो गए और उन्होंने उनकी कविता को ‘सांप्रदायिक’ कहा।

इसके बाद सुजाता पाटिल को माफी माँगनी पड़ी, तब जाकर उनकी नौकरी बची। इस तरह सभी के लिए एक ही तरह का व्यवहार होना चाहिए। राणा को भी उनकी तथाकथित रचनात्मक स्वतंत्रता के लिए जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।

अपनी बात रखने का हकः राणा
अपने विवादित ट्वीट पर मीडिया से बातचीत करते हुए मुनव्वर राणा ने कहा कि किसी भी देश को दो संसद की जरूरत नहीं होती है। जब देश में एक नई संसद बन रही है तो पुरानी संसद की क्या जरूरत है ऐसे में इस जगह को किसी और काम में भी लिया जा सकता है। मुझे अपनी बात कहने का पूरा हक है इसलिए मैं अपनी बात जरूर कहूंगा, किसान अपना फैसला खुद करें। साथ ही उन्होंने ये भी बताया कि ये ट्वीट उन्होंने डिलीट भी कर दिया है

भाषाओं को बचाता है अनुवाद : डॉ. चंद्र त्रिखा

Chandigarh January 1, 2021

किसी भी भाषा की गतिशीलता और तरक्की उस भाषा से और उस भाषा में होने वाले अनुवाद पर निर्भर करती है। कोई भाषा कहां तक पहुंचेगी, उसमें अनुवाद की बड़ी भूमिका होती है। अतः हमें अनुवाद की ताकत को पहचानना चाहिए। यह तथ्य पंजाब विश्वविद्यालय के यू.जी.सी. – एच.आर.डी.सी. द्वारा आयोजित दो सप्ताह के भाषा शिक्षकों के लिए पुनश्चर्या पाठ्यक्रम (रिफ्रेशर कोर्स) के दौरान उभरकर सामने आया। पंजाब विश्वविद्यालय की ओर से “अनुवाद की संस्कृति व संस्कृति का अनुवाद” विषय पर आयोजित यह पहला ऑनलाइन रिफ्रेशर कोर्स आज संपन्न हो गया।इसके समापन सत्र में हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला के कुलाधिपति प्रो. हरमहेंद्र सिंह बेदी मुख्य वक्ता के तौर पर शामिल हुए जबकि हरियाणा साहित्य अकादमी व हरियाणा उर्दू अकादमी, पंचकूला के निदेशक डॉ. चंद्र त्रिखा मुख्य अतिथि थे। 

डॉ. चंद्र त्रिखा ने इस अवसर पर कहा कि भाषाएं अनुवाद के माध्यम से केवल बढ़ती ही नहीं है बल्कि बचती भी हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि उर्दू अदब आज यदि युवा पीढ़ी के बीच जिंदा है तो वो अनुवाद के कारण ही है।

प्रो. बेदी ने अनुवाद के महत्त्व को रेखांकित करते हुए गुरुवाणी का उदाहरण देते हुए बताया कि इसमें हिंदी, फ़ारसी, ब्रज, पंजाबी इत्यादि भाषाओं के संतों की वाणी गुरु ग्रंथ साहिब में गुरुमुखी लिपि में संकलित की गई है। वैश्विक वाङ्मय के पीछे अनुवाद की बहुत बड़ी भूमिका है और इसके माध्यम से ही यह ज्ञात हुआ है कि ऋग्वेद सबसे प्राचीन ग्रंथ है जिसमें एशिया की संस्कृति का सूक्ष्म वर्णन मिलता है।

एचआरडीसी के निदेशक प्रो. एसके तोमर ने कहा कि नई शिक्षा नीति में अनुवाद के महत्व को समझते हुए राष्ट्रीय स्तर पर एक श्रेष्ठ अनुवाद संस्थान स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है। उन्होंने कहा कि अनुवाद के माध्यम से सभी भारतीय भाषाओं की ज्ञान संपदा पूरी दुनिया तक पहुंच सकती है।

रिफ्रेशर कोर्स के कोर्स समन्वयक व हिंदी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. गुरमीत सिंह ने समापन सत्र में दो सप्ताह के रिफ्रेशर कोर्स की रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए उम्मीद जताई कि कोर्स के दौरान अनुवाद के विविध पक्षों पर हुई सार्थक चर्चा को प्रतिभागी अपने क्षेत्रों और विद्यार्थियों के बीच आगे बढ़ाएंगे और इसके माध्यम से अनुवाद की एक ऐसी  संस्कृति विकसित हो पाएगी जिसमें सभी भारतीय भाषाएं एक साथ आगे बढ़ पाएंगी। कोर्स में शामिल प्रतिभागियों राजेश जानकर, वेदव्रत, पूजा रावल और गुरप्रीत रायकोट ने समापन सत्र में अपने अनुभव साझे करते हुए कहा कि कोर्स में बहुत कुछ नया सीखने को मिला। एचआरडीसी की उप निदेशक डॉ. जयंती दत्ता ने सभी का धन्यवाद किया।

 इस रिफ्रेशर कोर्स में भारत के 10 राज्यों हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, चंडीगढ़, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली एवं राजस्थान से भाषा के शिक्षकों ने हिस्सा लिया। जिसमें अंग्रेजी के 13, हिंदी के 11, पंजाबी के 5, संस्कृत के 7 और मराठी के 1 शिक्षक शामिल हैं। इस कोर्स में अलग – अलग विषयों तथा क्षेत्रों से सम्बन्धित देश – विदेश के लगभग 30 विषय विशषज्ञों ने व्याख्यान दिए। इनमें प्रो. शिव कुमार सिंह (पुर्तगाल), प्रो. आनंदवर्धन शर्मा (बुल्गारिया), प्रो. भीम सिंह दहिया (पूर्व कुलपति, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय), श्री बालेंदु शर्मा दाधीच (निदेशक माइक्रोसॉफ्ट), डॉ. चंद्र त्रिखा (निदेशक हरियाणा उर्दू अकादमी, पंचकूला), प्रो.अनघा भट्ट(पुणे) , डॉ. धनंजय चोपड़ा (इलाहाबाद), प्रो. शशि मुदिराज (हैदराबाद), प्रो. प्रभाकर सिंह (बीएचयू, बनारस), श्री विनोद संदलेश (संयुक्त निदेशक, केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो, दिल्ली), प्रो. शाशिधरन (कोची,केरल), प्रो. दिलीप शाक्य व प्रोफेसर खालिद जावेद (जामिया,नई दिल्ली), प्रो. सुधीर प्रताप सिंह (जेएनयू, नई दिल्ली), प्रो. कुमुद शर्मा (दिल्ली विश्वविद्यालय), प्रो. विजय लक्ष्मी (मणिपुर) एवं प्रो. दिनेश चमोला( हरिद्वार) शामिल हैं।

दिखने और बिकने की सोच ने ही पत्रकारिता का बेड़ागर्क किया है : अवधेश बच्चन

  • पत्रकार को हड़बड़ी से बचना चाहिए। आज पत्रकार भी संपादक की भूमिका में आ गए हैं।
  • दिखने और बिकने की सोच ने ही पत्रकारिता का बेड़ागर्क किया है। पत्रकारिता जगत की बेहतरी के लिए संपादकों को इस सोच से बाहर आना होगा।
  • उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी संपादकों के आदर्शु होना चाहिए। गांधी जी ने जिस तरह से विभिन्न भूमिकाओं में रहकर अपने समाचार पत्रों को संपादित किया वह आज के संपादकों के लिए आदर्श लकीर की तरह है।
  • देश की आजादी में संपादकों का योगदान स्वतंत्रता सेनानियों जितना ही है.
  • कई बार इतना भी समय नहीं होता की भाषायी अशुद्धता एवं व्याकरण की कमियों को दुरूस्त किया जाए, ऐसे में रिपोर्ट भेजते समय पत्रकार को वर्तनी और व्याकरण की अशुद्धियों का विशेष ध्यान रखना चाहिए
  • आज संपादक नाम की संस्था ढलान की ओर उन्मुख है। कई समाचार पत्रों में तो संपादकीय कॉलम की खत्म कर दिया गया है।

31 दिसंबर 2020 :

दुनिया का चलन है जो दिखेगा, वो बिकेगा। पत्रकारिता जगत भी इस चलन से अछूता नहीं है। निश्चित ही जो दिखता है, वही बिकता है लेकिन, पत्रकारिता जगत में ये आवश्यक नहीं। दिखने और बिकने की सोच ने ही पत्रकारिता का बेड़ागर्क किया है। पत्रकारिता जगत की बेहतरी के लिए संपादकों को इस सोच से बाहर आना होगा। उक्त विचार उच्चतर शिक्षा विभाग, हरियाणा के रूसा सलाहकार एवं वरिष्ठ संपादक अवधेश बच्चन ने सेक्टर -1 कॉलेज के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग में उच्चतर शिक्षा निदेशालय के दिशा – निर्देश में संपादन की बारीकियाँ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय राज्य स्तरीय मीडिया कार्यशाला में रखे। उन्होंने कहा कि पाठकों को आकर्षित करने के लिए समाचार शीर्षक का आकर्षक होना आश्यक है। शीर्षक समाचार की आत्मा है, लिहाजा शीर्षक तैयार करते समय अनर्गल शब्दों के उपयोग से बचने के साथ ही बहुअर्थी शब्दों के चयन से बचना चाहिए।

भाषायी पकड़ है जरूरी :

कार्यशाला में विद्यार्थियों को संपादन की बारीकियों से अवगत करते हुए अवधेश बच्चन ने कहा कि अच्छे संपादन कार्य के लिए भाषायी व्याकरण की जानकारी के साथ वर्तनी का ज्ञान होना आवश्यक है। वर्तनी और बिना व्याकरण ज्ञान के संपादन अधूरा है।

कॉलेज की प्राचार्या डॉ. अर्चना मिश्रा ने वक्ताओं के औपचारिक स्वागत के बाद विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि यह कार्यशाला कई मामलों में अभिनव है। इस राज्य स्तरीय कार्यशाला से हरियाणा के सभी राजकीय एवं सहायता प्राप्त कॉलेज के विद्यार्थी एवं प्राध्यापक लाभान्वित हो रहें हैं। यह दूसरा मौका है जब हरियाणा के सभी राजकीय, अराजकीय कॉलेज समेत सहायता प्राप्त कालेजों के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग एक मंच पर आएं हैं। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी संपादकों के आदर्शु होना चाहिए। गांधी जी ने जिस तरह से विभिन्न भूमिकाओं में रहकर अपने समाचार पत्रों को संपादित किया वह आज के संपादकों के लिए आदर्श लकीर की तरह है।

संपादक नाम की संस्था पर बढ़ा है संकट :

कार्यशाला के पहले दिन के दूसरे सत्र में वरिष्ठ जनसंपर्क अधिकारी एवं संस्कृति कर्मी राजीवरंजन में भी विद्यार्थियों को संपादन के गुर सिखाए। उन्होंने कहा की देश की आजादी में संपादकों का योगदान स्वतंत्रता सेनानियों जितना ही है। तत्कालीन संपादकों के संपादन कौशल ने ही समाचार पत्रों के माध्यम से लोगों में आजादी की ललक पैदा की थी। आज संपादक नाम की संस्था ढलान की ओर उन्मुख है। कई समाचार पत्रों में तो संपादकीय कॉलम की खत्म कर दिया गया है। ऐसे में समाचार पत्रों की विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि संपादकीय कॉलम की बहाली के साथ ही संपादकों को मजबूत किया जाए।
कार्यशाला के दोनों सत्रों की अध्यक्षता राजकीय महाविद्यालय सेक्टर -14, फरीदाबाद की वरिष्ठ प्राध्यापिका प्रो. शालिनी खुराना ने की। उन्होंने कहा कि यह समय इन्फोडेमिक का है। ऐसे में प्राप्त समाचार के स्त्रोंतों की पड़ताल करना आवश्यक है। पत्रकार को हड़बड़ी से बचना चाहिए। आज पत्रकार भी संपादक की भूमिका में आ गए हैं। कई बार इतना भी समय नहीं होता की भाषायी अशुद्धता एवं व्याकरण की कमियों को दुरूस्त किया जाए, ऐसे में रिपोर्ट भेजते समय पत्रकार को वर्तनी और व्याकरण की अशुद्धियों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

कार्यशाला में सेक्टर -1 कॉलेज के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के विद्यार्थियों समेत 80 से अधिक विद्यार्थियों एवं प्राध्यापकों ने भागीदारी की। कार्यशाला का संचालन चित्रा तंवर और अनिल पाण्डेय ने किया वहीं आभार श्रेयसी ने जताया। कार्यशाला के आयोजन में डॉ. सज्जन सिंह नैन, नवीन कुमार, कुसुम रानी, गौरव कुमार, अमित दलाल, तकनीकी सहयोगी मनीषा, हिमांशु और दीपक पराशर का विशेष सहयोग रहा।