अयोध्या विवाद में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला


नमाज़ पढने के लिए मस्जिद कि ज़रुरत नहीं होती 

29 अक्टूबर से अगर लगातार अयोध्या मामले की सुनवाई चली तो इस पर फैसला जल्द आ सकता है. अगर ऐसा हुआ तो इस फैसले को लेकर सियासत काफी तेज होगी.


दिनेश पाठक:

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान अपने फैसले में मस्‍जिद में नमाज पढ़ने को इस्‍लाम का अभिन्‍न हिस्‍सा मानने से जुड़े मामले को बड़ी बेंच को भेजने से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया कि यह मसला अयोध्‍या मामले से बिल्‍कुल अलग है. कोर्ट ने अयोध्‍या मामले को धार्मिक मानने से भी इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि इस मामले की सुनवाई प्रॉपर्टी डिस्‍प्‍यूट यानी जमीन विवाद के तौर पर ही होगी.

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्षकारों की तरफ से यह दलील दी गई थी कि मस्‍जिद में नमाज करने के मामले पर जल्द निर्णय लिया जाए. कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला 20 जुलाई को ही सुरक्षित रख लिया था. 27 सितंबर को अब इस मामले में कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है.

दरअसल, 1994 में इस्माइल फारूकी के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने फैसला दिया था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है. इसके साथ ही राम जन्मभूमि में यथास्थिति बरकरार रखने का निर्देश दिया गया था, जिससे हिंदू धर्म के लोग वहां पूजा कर सकें.

अयोध्या मामले पर जब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है तो इस बीच मुस्लिम पक्षकारों की तरफ से यह दलील दी गई थी कि 1994 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार के लिए बड़ी बेंच में भेजा जाए. लेकिन, कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया है. कोर्ट के इस फैसले के बाद अब सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले पर सुनवाई में तेजी आई है. कोर्ट ने अगले महीने 29 अक्टूबर से इस मामले की सुनवाई की तारीख भी तय कर दी है. अयोध्या का मामला काफी संवेदनशील रहा है. ऐसे में इस मसले पर सुनवाई को लेकर जब भी कोई चर्चा होती है, इस पर सियासत गरमा जाती है.

अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है, ‘अगर इस मुद्दे को संवैधानिक खंडपीठ को भेजा जाता तो बेहतर होता.’ ओवैसी ने इशारों-इशारों में बीजेपी और संघ पर भी निशाना साधा.

ओवैसी ने भले ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत नहीं किया हो, लेकिन, आरएसएस की तरफ से इस फैसले का स्वागत किया गया है. संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख अरुण कुमार ने कहा है, ‘आज सर्वोच्च न्यायालय ने राम जन्मभूमि मुकदमे में तीन सदस्यीय पीठ के द्वारा 29 अक्टूबर से सुनवाई का निर्णय किया है, इसका हम स्वागत करते हैं और विश्वास करते हैं कि जल्द से जल्द मुकदमे का न्यायोचित निर्णय होगा.’

अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अपनी बात रखते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि यह देश के हित में है अयोध्या विवाद का हल जल्द से जल्द निकाला जाए. इस देश के बहुसंख्यक लोग इसका समाधान चाहते हैं.

विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने भी अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जताई है. आलोक कुमार ने कहा है, ‘मैं संतुष्ट हूं कि एक बाधा को पार कर लिया गया है. राम जन्मभूमि की अपील की सुनवाई के लिए रास्ता साफ हो गया है.’

संघ परिवार की तरफ से आ रही प्रतिक्रिया से साफ है कि अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उनकी उम्मीदें बढ़ गई हैं. हालांकि इस मुद्दे पर बीजेपी और कांग्रेस जैसी राजनीतिक पार्टियां संभलकर चलना चाह रही हैं, क्योंकि, बीजेपी के एजेंडे में पहले से ही राम मंदिर रहा है. बीजेपी के चुनावी घोषणा-पत्र में भी राम-मंदिर है. लेकिन, जब कानून बनाकर राम मंदिर निर्माण की बात आती है तो इस मुद्दे पर बीजेपी का रुख कोर्ट के फैसले पर आकर टिक जाता है. राम मंदिर मुद्दे पर कानून बनाने की मांग हिंदूवादी संगठनों की तरफ से होती आई है. लेकिन, इस मुद्दे पर बीजेपी आपसी बातचीत या कोर्ट के फैसले पर आगे बढ़ने की बात करती रही है. जल्द फैसला आने की उम्मीद ने संघ परिवार के साथ-साथ बीजेपी के लिए भी कुछ मुश्किलें कम कर दी हैं.

2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रामजन्मभूमि वाली जमीन को तीन हिस्सों में बांटकर एक हिस्से को रामलला, एक हिस्सा निर्मोही अखाड़ा और एक वक्फ बोर्ड के लिए देने की बात कही थी. इसे भी बीजेपी और संघ परिवार ने अपनी जीत के तौर पर ही देखा था. अब जबकि कोर्ट की तरफ से 1994 के फैसले को ही बरकरार रखा है, तो आने वाले दिनों में सुनवाई को लेकर संघ परिवार और बीजेपी उत्साहित नजर आ रही है.

2019 का लोकसभा चुनाव अप्रैल-मई में होने वाला है. लेकिन, 29 अक्टूबर से अगर लगातार अयोध्या मामले की सुनवाई चली तो इस पर फैसला जल्द आ सकता है. अगर ऐसा हुआ तो इस फैसले को लेकर सियासत काफी तेज होगी. सुप्रीम कोर्ट का फैसला जो भी हो अयोध्या मुद्दा पर अगर फैसला चुनाव से पहले आ गया तो यह मुद्दा 2019 के महासमर में बड़ा मुद्दा बनकर उभरेगा

कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, कमलनाथ और आईटी विशेषज्ञ प्रशांत पांडे के खिलाफ मामला दर्ज करने के साथ ही जांच के आदेश दे दिए हैं


व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले में कांग्रेस नेताओं के लिए मुसीबत खड़ी होती दिखाई दे रही है.


व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले में कांग्रेस नेताओं के लिए मुसीबत खड़ी होती दिखाई दे रही है. मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की विशेष अदालत ने मध्य प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है.

स्पेशल कोर्ट के जज सुरेश सिंह ने व्यापमं घोटाले में दायर एक परिवाद के आधार पर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, कमलनाथ और आईटी विशेषज्ञ प्रशांत पांडे के खिलाफ मामला दर्ज करने के साथ ही जांच के आदेश दे दिए हैं. इस मामले में बीजेपी के विधि प्रकोष्ठ की ओर से अधिवक्ता संतोष शर्मा ने राजनीतिक मामलों के लिए बनी विशेष अदालत के न्यायाधीश सुरेश सिंह की अदालत में एक परिवाद दाखिल किया था. जिसमें व्यापमं घोटालों में पेश किए गए दस्तावेजों के फर्जी होने की बात कही गई थी. इसमें दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, सिंधिया और प्रशांत पांडे को दस्तावेज पेश करने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया.

मामला दर्ज किए जाने की मांग

इस परिवाद में शर्मा ने बताया कि अदालत को गुमराह करते हुए तीनों कांग्रेस नेताओं ने पांडे के साथ मिलकर व्यापमं घोटाले के मामले में झूठे और फर्जी दस्तावेज पेश किए हैं. जिसके बाद इनके खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज किए जाने की मांग की गई है.

वहीं पिछले दिनों दिग्विजय सिंह ने भोपाल की अदालत में व्यापमं घोटाले को लेकर अपील की थी और साथ ही 27000 पन्नों की चार्जशीट भी दाखिर की थी

हताश कांग्रेस कि मनोस्थिति बयान करते पोस्टर


बिहार में फॉरवर्ड कहलाने वाली जातियों के नेताओं को तरजीह दी गई थी. बिहार के प्रदेश अध्यक्ष मदनमोहन झा ब्राह्मण हैं. कैंपेन कमेटी के मुखिया अखिलेश प्रसाद सिंह भूमिहार जाति से आते है


बिहार में कांग्रेस बेचारगी के आलम में है. पार्टी की तरफ से लगाए गए पोस्टर में हर नेता की जाति उसकी तस्वीर के आगे लिख दी गई है. कांग्रेस ने हाल में ही राज्य में जंबो संगठन बनाया था. जिसमें बिहार में फॉरवर्ड कहलाने वाली जातियों के नेताओं को तरजीह दी गई थी. बिहार के प्रदेश अध्यक्ष मदनमोहन झा ब्राह्मण हैं. कैंपेन कमेटी के मुखिया अखिलेश प्रसाद सिंह भूमिहार जाति से आते है. इन दोनों जातियों पर कांग्रेस की नजर है.

कांग्रेस आलाकमान ने रणनीतिक तौर पर उच्च जातियों को अपनी ओर खींचने के लिए ये फैसला किया था. यही अगड़ी जातियां बीजेपी की बिहार में धुरी हैं. जिनकी बदौलत प्रदेश में बीजेपी की राजनीतिक हैसियत बढ़ी है. कांग्रेस बिहार में अगड़ी जाति का समायोजन ना कर पाने की वजह से पिछड़ गई. मंडल की राजनीति में लालू-नीतीश जैसे नेताओं का उदय हुआ. बीजेपी के कमंडल की राजनीति में अगड़ी जातियां पार्टी के साथ हो गई हैं. जिनको दोबारा पाले में लाने के लिए कांग्रेस जद्दोजहद कर रही है. लेकिन कांग्रेस की लालू प्रसाद से दोस्ती की वजह से ये संभव नहीं हो पा रहा है.

कांग्रेस के पोस्टर में नेताओं का जातिवार ब्यौरा

कांग्रेस के पोस्टर में सोशल इंजीनियरिंग नजर आ रही है. उससे पार्टी की साख पर सवाल उठ रहा है. गांधी-नेहरू की विरासत की बात करने वाली पार्टी को ये सब करना पड़ रहा है! कांग्रेस बिहार में पस्त हालत में है. पार्टी को मजबूत करने के लिए ये तरीका कांग्रेस के नेताओं के भी समझ से परे है. बिहार कांग्रेस के नेता का कहना है कि रेवड़ी की तरह पद बांटने से वोट नहीं मिलता है. इस तरह का पोस्टर लगाना बेहूदगी है. कांग्रेस की परंपरा से मेल नहीं खाता है.

कांग्रेस भी ये दावा करती है कि सभी जाति मजहब की पार्टी है, लेकिन जिस तरह से धर्म और जाति का प्रचार किया जा रहा है. उससे ये सवाल उठना लाजिमी है कि कांग्रेस किस दिशा की तरफ जा रही है? बिहार में जाति की राजनीति का बोलबाला है. 1989 के बाद से ही रीजनल पार्टियों की सरकार है. कांग्रेस हाशिए पर है. बीजेपी भी रीजनल पार्टियों के सहारे है.

कांग्रेस की हताशा की कहानी

कांग्रेस की ये कोशिश हताशा की कहानी बयां कर रही है. कांग्रेस के पास कोर वोट का अभाव है. कमिटेड लीडर्स की कमी है. जो पार्टी को सेंटर स्टेज पर ले जाने की कोशिश ठीक ढंग से कर सकें. पार्टी के पोस्टर से लग रहा है कि हर जाति का नेता बना दो तो शायद सभी जातियां पार्टी के पीछे खड़ी हो जाएं.

हालांकि ये सब इतना आसान नहीं है. जातियों को जोड़ने के लिए प्रोग्राम तैयार करना होता है. उस जाति के लोगों को जोड़ने के लिए उनके बीच काम करना पड़ेगा. पोस्टर छपवाने से कोई लाभ नहीं होने वाला है. कांग्रेस में बिहार के बड़े नेता सड़क पर उतरकर काम करने से गुरेज कर रहे है. सब किस्मत के भरोसे है. कभी लालू का तो कभी नीतीश का सहारा लिया जा रहा है. लेकिन कांग्रेस धरातल पर ही है.

मंडल की राजनीति में कमजोर

वी.पी. सिंह की मंडल की राजनीति में कांग्रेस लगातार कमजोर होती रही है. बिहार में जनता दल के उदय से पिछड़ी जातियां इन दलों के साथ हो गईं. जनता दल का बीजेपी से जब रिश्ता टूट गया,तो कांग्रेस ने बढ़कर जनता दल को सहारा दिया. जिसके बाद कांग्रेस समय-समय पर लालू प्रसाद को मदद करती रही है. जिससे पार्टी से अगड़ी जातियां भी दूर हो गई हैं. मुस्लिम भी लालू के साथ चला गया है. लालू ने पिछड़े और एमवाई(मुस्लिम – यादव) समीकरण की बदौलत बिहार की राजनीति पर वर्षों तक राज किया.

 

बीजेपी जैसी पार्टियां भी कुछ खास नहीं कर पाई. बीजेपी ने पर्दे के पीछे से समता पार्टी का समर्थन किया और लालू विरोधियों को एकजुट कर दिया. जार्ज फर्नाडिज की पार्टी में नीतीश कुमार और शरद यादव भी थे. जिससे पिछड़ी जातियों की एकजुटता में टूट पड़ गई. नीतीश कुमार के साथ कुर्मी-कोइरी हो गया. बाद में नीतीश कुमार ने अलग पार्टी बना ली और बीजेपी के साथ गठबंधन में नीतीश मुख्यमंत्री बन गए. हालांकि लालू की बिहार की सत्ता चली गई है लेकिन राजनीतिक ताकत में कमी नहीं हैं. कांग्रेस मजबूरी में उनके पीछे खड़ी रही है. जो अब तक जारी है.कांग्रेस ने अपने बूते पर खड़ा होने के लिए गंभीर प्रयास नहीं किया है.

बिहार की जाति में बंटी राजनीति

बिहार में 1989 के बाद से जातिगत राजनीतिक पार्टियों का उदय हुआ है. लालू प्रसाद की आरजेडी यादव जाति के समर्थन पर चल रही है. नीतीश कुमार कुर्मियों के नेता हैं. हालांकि अत्यंत पिछड़ा वर्ग को भी जोड़ने का प्रयास किया है. उपेन्द्र कुशवाहा के पास कोइरी का समर्थन है. रामविलास पासवान दलित और अपनी जाति दुसाध के बल पर टिके हैं. जीतन राम मांझी मुसहर जाति के पैरोकार हैं. बीजेपी के पास अगड़ी जातियों के अलावा वैश्य और कायस्थ का भी साथ है. जहां तक मुस्लिम का सवाल है वो आरजेडी के साथ ज्यादा है. कहीं नीतीश और कांग्रेस का समर्थन भी करता रहा है. लेकिन इस बार कांग्रेस आरजेडी के साथ जाने की संभावना है.

rahul tejaswi

बीजेपी से सीखे सबक

उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने पिछले हफ्ते कुशवाहा, सैनी और मौर्य समाज का सम्मेलन किया. जिसमें पार्टी की इन जातियों के लिए भविष्य में क्या योजना है? ये बताया गया है. ये भी कहा गया कि बीजेपी इन जातियां में किसी को मुख्यमंत्री भी बना सकती है. ये सभी जातियां पहले एसपी-बीएसपी के साथ थीं. बीजेपी ने सही समय पर इन जातियों पर फोकस किया है. जिससे बीजेपी को राजनीतिक लाभ मिला है. इन जातियों के बड़े नेताओं को पार्टी में शामिल कर लिया गया है.

बिहार में भी बीजेपी ने धीरे धीरे कई जातियां में सेंध लगाई है. कांग्रेस को भी इस तरह से नई कार्ययोजना पर चलने की जरूरत है. हालांकि ये काम एक दिन में संभव नहीं है. कांग्रेस को पहले कोर वोट की तलाश करने की जरूरत है. जो अगड़ी जातियां बीजेपी से निराश हैं. कांग्रेस उनसे बीच काम कर सकती है. अगड़ी जातियों के साथ आने से ही कांग्रेस बिहार में आगे बढ़ सकती है. कांग्रेस ने राजनीति के मंडलीकरण के बाद इस बार अगड़ी जातियों पर दांव लगाया है. जिसका नतीजा चुनाव में देखने को मिल सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी पीठ को देने करने से मना कर दिया, नमाज पढने के लिये मस्जिद जरूरी नही

दिनेश पाठक, Sep 27, 2018

  • 15:27(IST)विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जताते हुए कहा कि मैं संतुष्ट हूं कि एक बाधा को पार कर लिया गया है. राम जन्मभूमि की अपील की सुनवाई के लिए रास्ता साफ हो गया है.

    ANI

    @ANI

    I am satisfied that this impediment has been defeated. The way is now clear for the hearing of Ram janmabhoomi appeals: Alok Kumar, VHP Working President on Ayodhya matter (Ismail Faruqui case)

  • 15:21(IST)

    बहुमत के निर्णय से बहुमत के लोग खुश होंगे, माइनोरिटी के निर्णय से अल्पसंख्यक प्रसन्न होगा. लेकिन जिस समस्या को लेकर हमने शुरुआत की है, उसका हल नहीं किया गया है. बात अंकगणित की नहीं है लेकिन इस बात की है कि सुप्रीम कोर्ट को एक आवाज में बोलना चाहिए.


    ANI

    @ANI

    Majority judgement will please majority,minority judgement will please minority.Very problem we started off with hasn’t been resolved.Not about arithmetic,but of convincing everybody that SC should’ve spoken in 1voice: Rajiv Dhawan, Petitioner’s counsel in Ayodhya title suit case


  • 14:46(IST)कोर्ट ने कहा कि इस्माइल फारूकी केस से अयोध्या जमीन विवाद का मामला प्रभावित नहीं होगा. ये केस बिल्कुल अलग है. अब इसपर फैसला होने से अयोध्या केस में सुनवाई का रास्ता साफ हो गया है. कोर्ट के फैसले के बाद अब 29 अक्टूबर 2018 से अयोध्या टाइटल सूट पर सुनवाई शुरू होगी.

  • 14:46(IST)दोनों जजों के फैसले से जस्टिस नजीर ने असहमति जताई. उन्होंने कहा कि वह साथी जजों की बात से सहमत नहीं है. यानी इस मामले पर फैसला 2-1 के हिसाब से आया है. जस्टिस नजीर ने कहा कि जो 2010 में इलाहाबाद कोर्ट का फैसला आया था, वह 1994 फैसले के प्रभाव में ही आया था. इसका मतलब इस मामले को बड़ी पीठ में ही जाना चाहिए था.

  • 14:45(IST)जस्टिस अशोक भूषण ने अपना फैसला पढ़ते हुए कहा कि हर फैसला अलग हालात में होता है. पिछले फैसले के संदर्भ को समझना जरूरी है.’ जस्टिस भूषण ने कहा कि पिछले फैसले में मस्जिद में नमाज अदा करना इस्लाम का अंतरिम हिस्सा नहीं है कहा गया था, लेकिन इससे एक अगला वाक्य भी जुड़ा है.

  • 14:45(IST)जस्टिस भूषण ने अपना और चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की तरफ से कहा कि इस मामले को बड़ी बेंच को भेजने की जरूरत नहीं है. जो 1994 का फैसला था हमें उसे समझने की जरूरत है. जो पिछला फैसला था, वह सिर्फ जमीन अधिग्रहण के हिसाब से दिया गया था.

  • 14:44(IST)फैसला पढ़ते हुए जस्टिस भूषण ने कहा- ‘सभी मस्जिद, चर्च और मंदिर एक समान रूप से महत्वपूर्ण हैं. राज्यों को इन धार्मिक स्थलों का अधिग्रहण करने का अधिकार है. लेकिन, इसका मतलब ये नहीं है कि इससे संबंधित धर्म के लोगों को अपने धर्म के मुताबिक आचरण करने से वंचित किया गया.’

  • 14:40(IST)

    अयोध्या मामले पर जस्टिस नजीर ने कहा कि बड़ी बेंच को यह तय करने की जरूरत है कि धार्मिक मान्यताओं की क्या भूमिका है

आआपा नेता संजय सिंह पर आरोप तय


संजय सिंह ने बीजेपी नेता को पूर्व मंत्री कपिल मिश्र पर कथित रूप से हमला करने वाला बताया था, अब देखने वाली बात यह है कि “आआपा नेता संजय सिंह” इस मुकद्दमे को इमानदारी से लड़ेंगे या फिर अपने नेता कि तरह भरे बाज़ार माफ़ी मांग लेंगे और गोर तलब यह भी रहेगा कि क्या भाजपा कि युवा इकाई के नेता ‘अंकित भारद्वाज’ अपने नेताओं का अनुसरण करते हुए उन्हें माफ़ कर देंगे. 


कल ही आआपा नेता संजय सिंह ने राफेल सौदे में रक्षा मंत्री श्रीमती निर्मला सीता रमण को एक कानूनी नोटिस भिजवाया ऐसा उन्होंने मिडिया में कहा, परन्तु आज उनके ही खिलाफ न्यायालय में अवमानना का मुकद्दमा दर्ज हो गया है.

बीजेपी की युवा इकाई के एक नेता की ओर से दाखिल मानहानि के मामले में दिल्ली की एक अदालत ने आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह के खिलाफ आरोप तय किए हैं.

संजय सिंह ने बीजेपी नेता को पूर्व मंत्री कपिल मिश्र पर कथित रूप से हमला करने वाला बताया था. अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट समर विशाल ने कहा कि आरोपी के खिलाफ कार्यवाही शुरू करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य हैं.

ये आरोप भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500 के तहत तय किए गए हैं. इससे पहले राज्यसभा सांसद ने मामले में अपनी गलती स्वीकार नहीं की और इस संबंध में सुनवाई किए जाने पर जोर दिया.

[section 499 cr.p.c सिर्फ defamation मानहानि की परिभाषा बताता है यह section 499 cr.p.c  बताता है की मानहानि क्या होती है व कितने प्रकार की हो सकती है पर इसमें सजा का प्रावधान धारा 500 cr.p.c. में है इसके अनुसार जो भी कोई व्यक्ति ऐसा अपराध करेगा वो दो साल के कारावास व जुर्माने व या दोनो की सजा भुगतेगा इसके अलावा वह कोर्ट में अगर कोई defamation मानहानि के लिए भी केस डालता है तो वो जुरमाना भी उसे मिलेगा ]

संजय  के अधिवक्ता मोहम्मद इरशाद ने बताया कि अदालत में सुनवाई के दौरान आरोपों पर वह आआपा नेता का पक्ष रखेंगे. भारतीय जनता युवा मोर्चा के कार्यकारी सदस्य अंकित भारद्वाज ने यह मामला दायर किया था.

अंकित ने दावा किया कि आआपा नेताओं ने मीडिया में गलत तरीके से उनका नाम लिया और बीजेपी युवा मोर्चा का पदाधिकारी बताया, जिसने पिछले साल दस मई को मिश्र पर हमला किया था.

‘एनआरसी मुद्दे पर कांग्रेस संसद में ऐसे कांव-कांव करने लगी जैसे उनकी नानी मर गई हो.’ शाह


अमित शाह ने मध्य प्रदेश में भोपाल के जंबूरी मैदान में बीजेपी कार्यकर्ता महाकुंभ रैली को संबोधित कर रहे थे


बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण (एनआरसी) के मुद्दे पर कांग्रेस पर राजनीति करने का आरोप लगाया है. मंगलवार को उन्होंने कहा कि ‘एनआरसी मुद्दे पर कांग्रेस संसद में ऐसे कांव-कांव करने लगी जैसे उनकी नानी मर गई हो.’

अमित शाह ने मध्य प्रदेश में भोपाल के जंबूरी मैदान में बीजेपी कार्यकर्ता महाकुंभ रैली को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा,‘असम में पंजीकरण में प्राथमिक रूप से 40 लाख घुसपैठियों की पहचान की गई है. अब इनको मतदाता सूची से भी हटाया जाएगा.’

शाह ने कहा,‘आज कार्यकर्ताओं की लाखों की भीड़ मेरे सामने खड़ी है. मैं पूछना चाहता हूं कि इस देश से घुसपैठियों को जाना चाहिए कि नहीं जाना चाहिए?’

इस पर जनता की ओर से आवाज आई – ‘हां जाना चाहिए’.

बीजेपी अध्यक्ष ने कहा,‘पूरे देश से घुसपैठियों को निकालने की शुरुआत असम से की जाएगी.’ उन्होंने कहा कि हमने असम में सरकार बनने के बाद एनआरसी को लागू किया. भारत के नागरिकों पर रजिस्टर बनते ही अवैध घुसपैठियों की सूची बन जाएगी.

अमित शाह ने कहा,‘बीजेपी के लिए देश की सुरक्षा पहली प्राथमिकता है. आपको चिंता करने की जरूरत नहीं. एनआरसी की प्रक्रिया रुकने वाली नहीं है.’

वसुंधरा जी काठ की हांडी एक बार ही चढ़ती है, बार-बार नहीं. जनता आपकी विदाई तय कर चुकी है: गहलोत


गहलोत ने कहा, राजे को झूठी उपलब्धियों का ढिंढ़ोरा पीटकर जनता को भ्रमित करने की बजाय सच का सामना करना चाहिए


कांग्रेस महासचिव और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कार्यकाल में राज्य पर कर्ज की लगातार बढ़ोतरी हुई है. काठ की हांडी एक बार ही चढ़ती है, बार-बार नहीं. जनता उनकी विदाई तय कर चुकी है.

गहलोत ने यहां एक बयान में कहा कि राजे बार-बार कांग्रेस सरकार पर ऋणभार बढ़ाकर खजाना खाली छोड़ने का झूठा और बेबुनियाद आरोप लगा रही हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि उन्होंने खुद राजस्थान को कर्ज में डुबो दिया है. राजे को झूठी उपलब्धियों का ढिंढ़ोरा पीटकर जनता को भ्रमित करने की बजाय सच का सामना करना चाहिए.

उन्होंने कहा कि कांग्रेस के समय राज्य पर साल 2012-13 में 1,17,809 करोड़ रुपए का कर्ज भार था, आज उससे दोगुने से भी अधिक कर्ज राज्य की जनता पर डाल दिया गया है. साल 2018-19 के बजट अनुमानों के अनुसार राज्य पर ऋण भार उदय योजना सहित 3,08,033 करोड़ रुपए माना जा रहा है.

उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री का यह कहना कि कांग्रेस सरकार ने राज्य का खजाना खाली कर दिया, असत्य और भ्रामक है. हकीकत में कांग्रेस सरकार ने साल 2012-13 में 3451 करोड़ रुपए का राजस्व अधिशेष छोड़ा था जबकि साल 2018-19 के बजट अनुमानों के अनुसार बीजेपी सरकार का उदय योजना सहित 17454 करोड़ रुपए का राजस्व घाटा है.

उन्होंने कहा कि कुशल वित्तीय प्रबंधन से पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के समय राज्य सरकार के राजकोषीय घाटे को एफआरबीएम अधिनियम के तहत निर्धारित जीएसडीपी के 3 प्रतिशत की सीमा के अंदर ही नियंत्रित रखा गया था.

गहलोत ने कहा कि वित्तीय कुप्रबन्धन के कारण राज्य के राजकोषीय घाटे को नियंत्रित रखने में भी राजे सरकार विफल रही है. साल 2016-17 के अंत तक राजकोषीय घाटा जीएसडीपी का 3.19 प्रतिशत रहा जो निर्धारित सीमा से अधिक है.

उन्होंने कहा कि इस बार जनता इनके भ्रम जाल में फंसने वाली नहीं है, जैसा कि पिछली बार हुआ. यात्रा में झूठी गौरव गाथा गाने की बजाय जनता से माफी मांगनी चाहिए. चुनाव में कांग्रेस पर रेवड़ियां बांटने का आरोप लगाने वाली राजे जो बिना बजट प्रावधान के लोकलुभावन घोषणाएं कर रही हैं, उन्हें पूरा करना अब उनके बस में नहीं है.

पद्मश्री, पद्मविभूषण जसदेव सिंह नहीं रहे


87 बरस की उम्र में आवाज के जादूगर जसदेव सिंह ने ली आखिरी सांस


हॉकी वर्ल्ड कप विजय की वर्षगांठ थी. दिल्ली के शिवाजी स्टेडियम में एक समारोह रखा गया. इसमें जसदेव सिंह भी आए थे. तमाम औपचारिकताओं और एक प्रदर्शनी मैच के बीच जसदेव सिंह से उस जीत की यादें ताजा करने को कहा गया. मार्च का महीना था. जसदेव सिंह ने छोटा सा कागज निकाला. उस पर कुछ पॉइंट लिखे हुए थे. माइक हाथ में लिया. …और अगले 4-5 मिनट उनकी आवाज की खनक और रवानगी उस माहौल को जसदेवमय बना गई.

मैं जसदेव सिंह बोल रहा हूं… इस घोषणा के साथ ही रेडियो की आवाज बढ़ा दी जाती थी. लोग रेडियो के करीब आ जाते थे. उसके बाद बस, एक आवाज गूंजती थी. जसदेव सिंह की. 1975 के विश्व कप की उस दौर का कोई शख्स नहीं भूल सकता. यहां तक कि फाइनल में विजयी गोल करने वाले अशोक कुमार ने कुछ समय पहले कहा था कि जब हम लौटकर आए, तो वो कमेंट्री दोबारा सुनी. उन्होंने कहा, ‘मैं दिल से कहता हूं कि उस कमेंट्री का रोमांच मैं शब्दों में नहीं बता सकता.’

हॉकी के हर पास की रफ्तार जसदेव सिंह के मुंह से निकलते शब्द की रफ्तार से मुकाबला करते थे. ऐसा लगता था, जैसे वो एक भी लम्हा नहीं चूकना चाहते. ..और कमेंट्री को लेकर उनका लगाव ही था, जो वर्ल्ड कप के 30 बरस बाद भी वो कमेंट्री शब्द-दर-शब्द उन्हें याद थी.

दरअसल, महात्मा गांधी के अंतिम सफर की कमेंट्री से उनका कमेंट्री के साथ लगाव शुरू हुआ था. उनके शब्दों में 1962 के स्वतंत्रता दिवस पर जो शुरुआत की, तो फिर वो किसी भी स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस की आवाज बन गए. खासतौर पर गणतंत्र दिवस परेड की. माहौल बताना उनकी खासियत थी. उनकी कमेंट्री चिड़ियों के चहचहाने, सुहानी बयार, पेड़ों के झूमने से शुरू होती थी. यहां तक कि मजाक में कहा जाने लगा था कि जसदेव सिंह तो इनडोर स्टेडियम में चिड़ियों की आवाज सुना देते हैं.


Rajyavardhan Rathore

@Ra_THORe

It is with deep sadness that I note the demise of Sh Jasdev Singh, one of our finest commentators.

A veteran of @AkashvaniAIR & @DDNational, he covered 9 Olympics, 6 Asian Games & countless Independence Day & Republic Day broadcasts.

His demise is truly the end of an era.


शायद ही कोई ऐसा बड़ा इवेंट हो, जहां जसदेव सिंह की आवाज न गूंजी हो. जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी जैसे नेताओं की अंतिम यात्रा हो… खेलों के हर बड़े इवेंट के साथ जुड़ाव हो.. हर जगह जब भी कमेंट्री की बात आती, जसदेव सिंह का नाम पहले आता था. उन्हें फिल्म चक दे में कमेंटेटर के रोल के लिए भी बुलाया गया. लेकिन लिखी हुई लाइन के बजाय अपने हिसाब से बोलने पर वो अड़ गए, जिस वजह से उन्हें फिल्म में नहीं लिया गया.

एक समय के बाद उनमें कुछ कड़वाहट आने लगी. उन्हें लगने लगा कि उनका वो सम्मान नहीं हो रहा, जिसके वो हकदार थे. हालांकि सब जानते हैं कि पद्म भूषण, पद्म श्री, ओलिंपिक ऑर्डर.. ये सब उनके नाम हैं. लेकिन रिटायरमेंट के बाद हालात बदले. 1955 से कमेंट्री कर रहे जसदेव शायद कमेंट्री से अपने प्यार की वजह से इससे दूर नहीं होना चाहते थे. उन्हें स्टार स्पोर्ट्स में भी शुरुआती समय में सुनील गावस्कर के साथ मौका दिया गया. 2000 के सिडनी ओलिंपिक में उन्होंने ओपनिंग सेरेमनी की कमेंट्री की. लेकिन तब तक साफ होने लगा कि आवाज का जादू तो बरकरार है, लेकिन अब आंखों और आवाज का समन्वय गड़बड़ा रहा है. कुछ खिलाड़ियों को पहचानने में उन्हें समस्या होने लगी थी.

इसके बाद भी कई सालों तक वो कमेंट्री करते रहे. वो लगातार यह कहते रहे कि उनसे कमेंट्री करवाई जानी चाहिए. लेकिन जैसा कहा जाता है कि दिन किसी के लिए नहीं थमते. आज, 24 सितंबर 2018 को 87 साल की उम्र में जसदेव सिंह दुनिया छोड़ गए हैं. कमेंट्री का वो दौर खत्म हो गया है, जिसे उनकी आवाज ने पहचान दी थी.

आकाशवाणी के सबसे चर्चित नामों में एक देवकी नंदन पांडेय थे. समाचार पढ़ने के उनके तरीके ने उन्हें ख्याति दिलाई थी. उनके बारे में कहा जाता है कि एक बार इंदिरा गांधी से आकाशवाणी से लोग मिलने गए. सबने परिचय दिया. इंदिरा गांधी सिर नीचे किए कोई फाइल देख रही थीं. जब देवकी नंदन पांडेय ने अपना परिचय दिया तो इंदिरा जी ने सिर उठाया और कहा- अच्छा, आप हैं… 11 साल पहले 2007 में देवकी नंदन पांडेय का निधन हुआ था.

इसी तरह जसदेव सिंह को कमेंट्री की आवाज कहा जाता है. उनके लिए भी कहा जाता है कि 1975 के हॉकी वर्ल्ड कप फाइनल की कमेंट्री सुनने के लिए इंदिरा गांधी ने संसद की कार्यवाही रुकवा दी थी. यकीनन इसमें कोई शक नहीं कि जसदेव सिंह की आवाज गूंजती थी, तो ऐसा लगता था, मानो दुनिया थम जाए. सवाई माधोपुर में जन्मे जसदेव सिंह दिल्ली और जयपुर में रहते थे. जयपुर में अमर जवान ज्योति पर हर शाम उनकी आवाज गूंजा करती है. वो आवाज सिर्फ अमर जवान ज्योति नहीं, हर उस दिल मे हमेशा गूंजती रहेगी, जिसने उनकी कमेंट्री सुनी है. वो आवाज अमर है.

Congress-led government cancelled the deal with Dassault as the French company did not accept one of Vadra’s firm as “middleman”: Gajendra Shekhawat


The Congress has been accusing massive irregularities in the deal, alleging that the government was procuring each aircraft at a cost of over Rs 1,670 crore as against Rs 526 crore finalised by the UPA government.


Firing fresh salvo at the Congress party and its president Rahul Gandhi, BJP leader and Union minister Gajendra Shekhawat on Monday alleged that the opposition leader was being part of an “international conspiracy” to sabotage the Rafale fighter jet deal to benefit his brother-in-law Robert Vadra.

The minister also claimed that Vadra had links with arms dealer Sanjay Bhandari. He said the Congress-led government cancelled the deal with Dassault as the French company did not accept one of Vadra’s firm as “middleman”.

“They (Vadra and Bhandari) represent themselves as middlemen at many defence expos but they have not got a big breakthrough yet. The then government wanted that the French firm should accept it (Vadra’s company) as the middleman. But since it did not materialise, the deal with Dassault was cancelled,” the minister said.

Referring to former French president Francois Hollande, who stirred controversy about the Rafale fighter jet deal with India last week, Shekhawat said, “How Rahul Gandhi and he (Hollande) are linked as a part of nexus, and are trying to sabotage the deal needs to be understood.”

Accusing the opposition of messing with national security, the minister said the Congress party was weakening the Army’s morale by keeping the nation’s interest on the business interests of its son-in-law (Robert Vadra).

Hollande, who left office in May last year, said on Friday during a trip to India that French jet manufacturer Dassault Aviation had been given no choice about its local partner in a 2016 deal with the Indian administration.

Hollande’s announcement that Dassault “did not have a say in it” added fuel to claims from India’s opposition that the New Delhi government had intervened to help Ambani.

The Congress has been accusing massive irregularities in the deal, alleging that the government was procuring each aircraft at a cost of over Rs 1,670 crore as against Rs 526 crore finalised by the UPA government when it was negotiating procurement of 126 Rafale jets.

Congress president Rahul Gandhi went on the offensive. He attacked Prime Minister Narendra Modi after the reports of French media and said that the PM Modi personally negotiated and changed the Rafale deal behind closed doors.

“An ex-president of France is calling him (the prime minister of India) a thief. It’s a question of the dignity of the office of the prime minister,” he told a news conference in New Delhi.

PM Modi announced the purchase of 36 Rafale fighters after talks with Hollande on April 10, 2015, in Paris.

Two full time professions will now go hand in hand for Politicians

Courtsey: Bar & Bench :

The Supreme Court today ruled that Members of Parliament and Members of Legislative Assemblies (MPs and MLAs) cannot be barred from practicing law.

The Court made it clear that Rule 49 of the the Bar Council of India Rules is applicable only to full-time salaried employees, and does not cover legislators within its ambit.

The judgment was delivered by a Bench of Chief Justice Dipak Misra and Justices AM Khanwilkar and DY Chandrachud in a petition filed by advocate and BJP Spokesperson Ashwini Kumar Upadhyay.

Upadhyay had filed the petition praying that legislators be debarred from practicing as Advocates (for the period during which they are Members of Parliament or State Assembly), in the spirit of Part-VI of the Bar Council of India Rules.

Senior Advocates Kapil Sibal and Dr. AM Singhvi are Parliamentarians representing the Congress Party.

In the alternative, he had sought for a direction to quash Rule 49 of the Bar Council of India Rules as ultra vires the Constitution and its basic structure, and to permit all Public Servants to practice as Advocates.

The Bar Council of India (BCI) too had issued notice to MPs, MLAs and MLCs who continue to practice law, following Upadhyay’s submission that since the legislators are being paid salary by the government, they cannot be allowed to practice, as per the Advocates Act and BCI Rules.

Interestingly, the Central government through Attorney General KK Venugopalhad opposed the petition,  contending that a Member of Parliament (MP) is an elected representative, and is not a full-time employee of the Government of India, and hence cannot be stopped from practicing law.

“They are doing a public service in their capacity as an MP. You can’t stop a person from practising a profession. It is a fundamental right to carry on a profession”, Venugopal had argued.

Senior Counsel Shekhar Naphade had represented the petitioner.

Questionable verdict. They are treated as public servants in corruption cases against them. There can be conflict of interest when a law which is to be enacted is against the interest of their clients and they vote against it even if it is in public interest.

Advocate/ legal profession is fulltime profession. Public representative viz. M.P./ MLA are bound to duty serve public full time. They can not say that they will serve/ perform their duties for part time either way.
In both position full time duty is badly required. So they should be banned from practising. According  to me, SC must review its Judgment.

When they are urgently required, either at Court or for Public duties, they are not available.
Even there are all possibilities of conflict of timing while dicharging their duties.
MLA-MP are getting undue advantages in profession. They are softly treated in court and they are getting government briefs.