पाक प्रेम या मानसिक विक्षिप्तता???


मणि शंकर अय्यर , दिग्विजय सिंह और राहुल ही काफी  नहीं थे कि नवजोत सिंह सिद्धु भी पाक प्रेमियों की सूची में शामिल हो गए । कल तक सिद्धू की मुखालफत करने वाले पार्टी के सरमाये दार सिद्धू के ब्यान के बाद सन्नाटे में हैं


Sareeka Tewari V

मणि शंकर अय्यर , दिग्विजय सिंह और राहुल ही काफी  नहीं थे कि नवजोत सिंह सिद्धु भी पाक प्रेमियों की सूची में शामिल हो गए । कल तक सिद्धू की मुखालफत करने वाले पार्टी के सरमाये दार सिद्धू के ब्यान के बाद सन्नाटे में हैं। सोच रहे हैं अब क्या कहें क्या न कहें। सिद्धू के खिलाफ बोलते हैं तो राहुल और कुछ गिने चुने कट्टरपंथी गुस्सा  सिद्धू के हक़ में बोलने से कैप्टन की नज़र में खटक सकते हैं। लेकिन हैरत की बात है कि राहुल ने किस आधार पर सिद्धू को पाकिस्तान जाने के लिए कहा होगा। कैप्टन कि अनदेखी और अनसुनी करने का अर्थ ये तो नहीं राहुल सिद्धू को पंजाब का सिंहासन सोंपने का वादा कर बैठे हैं और  2019 में प्रधान मंत्री बनवाने के लिए से सिफ़ारिश करने भेजा । आपको बता दें कि कुछ महीने पहले पाकिस्तान में अपने मणि शंकर अय्यर ने कहा था कि आप अगर राहुल गांधी को प्रधान मंत्री बनवा दें तो भारत पाक समस्या खत्म करने मे मदद होगी। मणि शंकर अय्यर कांग्रेस्स सरकार के समय विदेशी मामलों के मंत्री थे उससे पहले भारतीय विदेशी सेवा अधिकारी रहे हैं।

या तो ये राजनेता खुले तोर पर देश के हितों कि अनदेखी करते हैं या फिर विक्षिप्त मानसिकता के स्वामी हैं।

अब बात करते हैं नवजोत सिंह सिद्धू आपसे: 

आपका और विवादों का चोली दामन का साथ है, जबकि सार्वजनिक जीवन जीने वालों को जिन बातों से गुरेज करना चाहिए आप उन्ही बातों को नगाड़े की चोट पर कहते हैं, चाहे भाजपा नेत्री को ठोकने की बात हो या प्रधान मंत्री को चोर कहने की। अब दूसरी बार करतारपुर कॉरीडोर का नियोता मिला, भारत से कोई भी जाने के लिए तैयार नहीं था, भारत सरकार और आपकी पंजाब की प्रदेश सरकार ने भी इंकार किया और कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने आपको पुन: चेताया परंतु आप की आँखों पर न जाने कौन सी पट्टी चढ़ी थी की देखना सुनना तो दूर आपने तो सोचना भी बंद कर दिया।

भारत भूमि पर लगातार छद्म युद्ध थोप रहे पाकिस्तान के नव निर्वाचित प्रधान मंत्री इमरान खान ने भारत के कई नेताओं ओर क्रिकेट जगत के पुरोधाओं को न्योता भेजा था, सभी ने घाटी में फैले पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को ध्यान में रखते हुए समारोह में जाने से मना किया, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने भी पाकिस्तान के दोगले रवैये को देखते हुए जाने से इंकार किया और सिद्धु को भी नसीहत दी परंतु सिद्धु को इतना प्यार उमड़ा की वह पैदल ही समारोह में शिरकत करने चले गए। वहाँ शिरकत करना ही किसी को नहीं सुहाया ऊपर से इनहोने जन बाजवा को गलबाहियाँ दी।

मामला क्या है ? आप शक के दायरे में हैं।

गुरु कहीं सिखों को भारत से अलग करने कि पाक कि  नीति में मोहरा तो नहीं बन रहे। क्योंकि चाहे खालिस्तान समर्थक हों या काश्मीरी अलगाववादी या अब रेफेरेंड्म 20 के समर्थक सबके रोटी कपड़ा मकान का इंतजाम पाकिस्तान में ही है।

सनद रहे उनके सेनाध्यक्ष बाजवा वही  है जिस के इशारे पर पाकिस्तान भारत पर जगह जगह आतंकी वारदातों को अंजाम देता है और हमारी युवा शक्ति को लील जाता है। उस बाजवा को गलबहियाँ डालना और फिर वापिस आ कर आप बेशर्मी के साथ भारत के प्रधान मंत्री पर तंज़ कसते हैं कि आप शपथ ग्रहण समारोह में गए थे न की ‘राफेल डील‘ करने। आपको कई बार चेताया जा चुका है की आप जन भावनाओं को ‘कामेडी शो’ की तालियाँ न समझें।

“राहुल मेरे ‘कप्तान’ उनके कहने पर ही मैं पाकिस्तान गया” सिद्धु


डोकलाम विवाद के समय राहुल गांधी चीनी राजदूत से मिलते हैं ओर तस्वीरें जारी होने के बाद मुकर जाते हैं

‘हाफ़ीज़ साहब’ वाले ब्यान के बाद दिग्गी राजा भी ब्यान को तोड़ा मरोड़ा गया बताते हैं

मणि शंकर अइय्यर तो सारी हदें पार कर पाकिस्तान से भारत सरकार को पलटवाने की गुहार तक लगा देते हैं

वह मोदी को हारने पर काँग्रेस भवन में चाय का ठेला लगा देने की नसीहत तक दे डालते हैं

शशि थरूर मोदी को बिच्छू कह जाते हैं

इन सबसे अलग नवजोत सिद्धू पाकिस्तान जाते हैं ओर इमरान खान के कसीदे पढ़ते जाते हैं ओर मंच पर ही से और कासीदे काढ़ने के लिए समय की मांग भी रखते हैं 

बदले में इमरान आशा व्यक्त करते हैं की सिद्धू एक दिन भारत के प्रधान मंत्री बनेंगे ओर तब दोनों देशों में शांति स्थापित हो सकेगी

बाकी सब में और सिद्धू में एक फर्क है कि बाकी कांग्रेसी नेता मानते नहीं और सिद्धू ठोक कर, डंके कि चोट पर कहते हैं कि उन्हे राहुल ने ऐसा करने को कहा था वह पाकिस्तान राहुल के कहने से गए थे।  ठोको ताली:

सिद्धू ने सिख कौम (बक़ौल सिद्धू 12 करोड़ सिखों) कि मदद तो कर दी अब वह ज़रा भारत कि सुध भी लें, वह अपने मित्र इमरान ख़ान से दाऊद इब्राहिम और हफीज सईद समेत कुछ आतंकियों की मांग के साथ साथ इमरान को कश्मीर मुद्दे पर बड़ा दिल दिखाने को कहें ताकि भारत भी सिद्धू पर मान कर सके और इमरान ख़ान कि ख़्वाहिश भी जल्द से जल्द पूरी हो सके। 


करतारपुर कॉरिडोर मामले में कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने बयान दिया है. उन्होंने कहा, ‘मेरे कैप्टन राहुल गांधी हैं और उन्होंने मुझे हर जगह भेजा है.’ सिद्धू ने यह सफाई विपक्ष की उन टिप्पणियों के बाद दी है जिसमें कहा गया था कि पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह नहीं चाहते थे कि सिद्धू पाकिस्तान जाएं लेकिन वह फिर भी गए.’

इससे पहले सिद्धू ने कहा था कि जब मैं पहली बार पाकिस्तान गया था और करतारपुर कॉरिडोर के लिए उनसे वादा करने की बात की थी, तो आलोचकों ने मेरा मजाक उड़ाया था. मुझ पर हंसे थे और अब वही लोग अपना ही थूका हुआ चाट रहे हैं और अपनी बात से मुकर रहे हैं.

पाकिस्तान यात्रा के बारे में पंजाब के सीएम की मनाही का मुद्दा छिड़ा तो सिद्धू ने कहा कि मुझे कम से कम 20 कांग्रेसी नेताओं ने जाने के लिए कहा था. केंद्रीय नेताओं ने मुझे जाने के लिए कहा था. पंजाब के मुख्यमंत्री मेरे पिता समान हैं. मैंने उन्हें कहा था कि मैंने उन्हें वादा कर दिया है कि मैं जाउंगा।


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किसान मार्च राजनैतिक और मोदी विरोध ही है


दरअसल, किसान मुक्ति मार्च की पूरी कवायद से भी साफ लग रहा है कि विरोधी पार्टियां और संगठन मिलकर किसानों के मुद्दे पर भी मोदी विरोधी एक मंच तैयार करना चाहते हैं.


किसान मुक्ति मार्च के दूसरे दिन दिल्ली के रामलीला मैदान से संसद का घेराव करने के लिए सुबह-सुबह किसानों का जत्था निकल पड़ा. अलग-अलग प्रदेशों और क्षेत्रों से आए किसान अपनी अलग-अलग टोलियों में किसान एकता का नारा लगाते संसद मार्ग की तरफ बढ़ रहे थे, जिसके आगे जाकर संसद का घेराव करने की इजाजत नहीं दी गई थी.

किसान मुक्ति मार्च के नेताओं का दावा है कि इस मार्च में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक किसान पहुंचे थे. ऐसा दिख भी रहा था. तमिलनाडु से आए किसानों ने तो मंच के बिल्कुल नीचे होकर अपने शरीर के कपड़े उतारकर सरकार की किसान विरोधी नीतियों का विरोध किया. तमिलनाडु से आए किसान सुरेंद्र जैन ने फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत के दौरान साफ तौर पर कहा कि सरकार न ही एमएसपी का डेढ़ गुना दाम दे रही है और न ही हमारा कर्ज माफ कर रही है.

इसी तरह बिहार के बाढ़ से आए शिवनंदन ने भी सरकार पर वादे से मुकरने का आरोप लगाया. फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत के दौरान शिवनंदन का कहना था कि एमएसपी के डेढ़ गुना दाम देने की बात तो सरकार कहती है लेकिन, इसको लागू नहीं कर पा रही है. इनकी शिकायत है कि जमीन पर हालात इन दावों से अलग हैं. उनकी तरफ से भी सरकार से किसानों की कर्जमाफी की मांग की गई.

इसी तरह यूपी से लेकर मध्य प्रदेश तक, पंजाब से लेकर हरियाणा तक और महाराष्ट्र से लेकर राजस्थान तक के किसान इस मार्च में हिस्सा लेने पहुंचे थे. सबकी तरफ से एक ही नारा और एक ही मांग थी किसानों की मांगों को पूरी करो, वरना इसका अंजाम बुरा होगा.

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के बैनर तले देशभर के 200 से भी ज्यादा किसान संगठनों ने इस मार्च में हिस्सा लिया, जिसका नेतृत्व स्वराज इंडिया के संरक्षक योगेंद्र यादव ने किया था. किसानों की दो मांगें थीं, पहला किसानों की कर्जमाफी के लिए एक बिल को पास कराना और दूसरा लागत के डेढ़ गुना एमएसपी दिलाने के लिए बिल को पास कराना. संघर्ष समिति ने मंच से सरकार से किसानों के हक और हित में इन दो बिल को पास कराने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है.


पूरे किसान मार्च का नेतृत्व कर रहे योगेंद्र यादव ने भी इस मंच से मोदी सरकार के खिलाफ बिगुल फूंक दिया. उन्होंने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि जो पार्टी इस मंच से किसानों की इन दो मांगों के समर्थन में खड़ी पार्टियों को किसान हितैषी और इस रैली में शामिल नहीं होने वाली पार्टियों को किसान विरोधी तक कह डाला. किसान मुक्ति मार्च में कोशिश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को किसान विरोधी बताने की थी.


जब मंच पर इस तरह सरकार विरोधी बात हो और मंच के नीचे देश के अलग-अलग कोने से आए किसान और किसानों के संगठन के लोग हैं तो फिर विरोधी पार्टियां भला कैसे पीछे रह सकती हैं. देखते ही देखते किसानों के समर्थन में और सरकार के विरोध में सभी विपक्षी दलों का जमावड़ा लग गया.

लेफ्ट के नेता सीताराम येचुरी से लेकर डी. राजा तक और फिर एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार, एलजेडी नेता शरद यादव, एसपी नेता धर्मेंद्र यादव, आप से संजय सिंह, एनसी के फारूक अब्दुल्ला, टीएमसी से दिनेश त्रिवेदी भी मंच पर पहुंचे. इसके अलावा टीडीपी और आऱएलडी के भी नेता इस मार्च में पहुंचे. सबने एक सुर में किसानों की मांगों का समर्थन किया.

लेकिन, अंत में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस आंदोलन में किसानों के सुर में सुर मिलाकर माहौल को और गरमा दिया. राहुल गांधी ने मोदी सरकार को किसान विरोधी बताते हुए कहा, ‘मोदी जी ने कहा था कि एमएसपी बढ़ेगी, पीएम ने बोनस का भी वादा किया था, लेकिन हालात पर नजर डालें, सिर्फ झूठे वादे किए गए थे और कुछ नहीं.’

राहुल गांधी ने कहा ‘आज हिंदुस्तान के सामने दो बड़े मुद्दे हैं. एक मुद्दा हिंदुस्तान में किसान के भविष्य का मुद्दा, दूसरा देश के युवाओं के भविष्य का मुद्दा. पिछले साढ़े चार साल में नरेंद्र मोदी ने 15 अमीर लोगों का कर्जा माफ किया है. अगर 15 अमीर लोगों का कर्जा माफ किया जा सकता है तो किसानों का कर्ज माफ क्यों नहीं किया जा सकता?’


राहुल गांधी के अलावा अरविंद केजरीवाल ने भी इस मंच पर आने के बाद सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. केजरीवाल ने सरकार की नीतियों के खिलाफ आवाज उठाते हुए कहा, ‘जिस देश के अंदर किसानों को आत्महत्या करनी पड़ी, जिस देश का किसान खुद भुखमरी का शिकार हो.


ऐसा देश कभी तरक्की नहीं कर सकता. बीजेपी ने किसानों से जो वादे किए उससे वो मुकर गई. किसानों को 100 रुपए में से 50 रुपए मुनाफा देने की बात बीजेपी कह रही थी. सबसे पहले किसानों का जितना कर्ज है वो सारा कर्ज माफ होना चाहिए. दूसरी मांग किसानों को फसल का पूरा दाम मिलना चाहिए’

राहुल और केजरीवाल के अलावा लेफ्ट नेता सीताराम येचुरी और शरद पवार सहित सभी नेताओं ने किसानों की दोनों मांगों का समर्थन करते हुए मोदी सरकार को अगले चुनाव में नतीजे भुगतने की चेतावनी भी दी.

दरअसल, किसान मुक्ति मार्च की पूरी कवायद से भी साफ लग रहा है कि विरोधी पार्टियां और संगठन मिलकर किसानों के मुद्दे पर भी मोदी विरोधी एक मंच तैयार करना चाहते हैं. किसान मुक्ति मार्च भी किसानों की समस्या का दीर्घकालिक समाधान ढ़ूंढ़ने के बजाए मोदी विरोधी मंच बनकर रह गया.

 

 

09 दिसंबर को राम मंदिर निर्माण के लिए हुंकार भरेंगे लाखों रामभक्त

09 दिसंबर को दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित धर्म सभा में भगवा पताका के साथ लाखों कार्यकर्ताओं के पहुुंचने का लक्ष्य बना है। 1528 से लेकर 2018 तक 77 बार हिंदू समाज मंदिर निर्माण के लिए संघर्ष कर चुका है। इस दिशा में रामलीला मैदान में लाखों कार्यकर्ता अपनी भावनाओं का प्रदर्शन करेंगे। किसी पार्टी का झंडा नहीं होगा। इस रैली को सफल बनाने के लिए संत समाज के साथ पूरा संघ परिवार तैयारी में जुटा हुआ है। इस रामभक्त महासम्मेलन में लाखों रामभक्त 09 दिसंबर को रामलीला मैदान पहुँचकर राम मंदिर निर्माण का संकल्प लेंगे। सिर्फ भारत माता, भारत माता की जय एवं जय श्रीराम के जयकारे सुनाई देंगे।

मध्य प्रदेश में 75% मताधिकार का प्रयोग हुआ


 

भोपाल, 28 नवंबर :-

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बने मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए मतदान में आज सभी 230 विधानसभा क्षेत्रों के लगभग 65 हजार मतदान केंद्रों में अपरान्ह चार बजे तक 55 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं ने वोट डाले। इक्का दुक्का घटनाओं को छाेड़कर मतदान शांतिपूर्ण ढंग से चल रहा है, वहीं इंदौर, गुना और धार जिले में एक एक यानी कुल तीन मतदान कर्मचारियों की मृत्यु हृदयाघात और अन्य बीमारियों से हुयी है।

नक्सली प्रभावित बालाघाट जिले के तीन क्षेत्रों परसवाड़ा, बैहर और लांजी में दोपहर तीन बजे निर्धारित समय पर मतदान संपन्न हो गया। इन तीनों इलाकों में सुबह सात बजे मतदान शुरू हुआ था और औसतन 65 प्रतिशत वोट पड़े। हालाकि इन तीनों क्षेत्रों का अंतिम वोट प्रतिशत अभी आना शेष है।

वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में लगभग 72 प्रतिशत मतदाताओं ने वोट डाले थे। राज्य के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय का प्रयास है कि इस बार कम से कम 80 फीसदी मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग करें।

मतदान के शुरूआती क्षणों में सतना जिला और कुछ अन्य जिलों में इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में गड़बड़ी के कारण कुछ देर के लिए मतदान प्रभावित रहा। इन सभी स्थानों पर मशीनें बदलकर मतदान शुरू कराया गया। सतना जिले में लगभग डेढ़ हजार वीवीपेट और तीन सौ से अधिक कंट्रोल यूनिट बदली गयीं। इस जिले में रिजर्व मशीन भी कम पड़ गयीं, इसलिए रीवा और आसपास के जिलों से अतिरिक्त मशीनें बुलाकर सतना जिले में इनका उपयोग किया गया।

राज्य के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी वी एल कांताराव ने पत्रकारों को बताया कि राज्य में आज मतदान के दौरान डेढ़ प्रतिशत कंट्रोल यूनिट (सीयू) और ढाई प्रतिशत वीवीपेट बदली गयीं। वहीं सतना जिले में 20 प्रतिशत वीवीपेट (1545 नग) बदले गए। उन्होंने कहा कि इन स्थानों पर पुनर्मतदान कराने की आवश्यकता इसलिए नहीं हैं, क्योंकि मशीन बदलकर फिर से मतदान शुरू करा दिया गया और शाम पांच बजे तक आने वाले सभी मतदाताओं से वोट डलवाए जाएंगे, भले ही इस कार्य में रात्रि के आठ नौ ही क्यों नहीं बज जाएं।

उन्होंने बताया कि मशीनों में खराबी के संबंध में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की शिकायत आयी थी और आयोग की ओर से उठाए गए कदमों के बारे में बता दिया गया। एक सवाल के जवाब में उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा की ओर से श्री कमलनाथ के आज छिंदवाड़ा जिले में मतदान के दौरान चुनाव चिन्ह दिखाने के संबंध में शिकायत प्राप्त हुयी है। इस बारे में वीडियो रिकार्डिंग मंगवायी गयी है और उसके अवलोकन के बाद अगला कदम उठाया जाएगा।

श्री राव ने कहा कि राज्य में मतदान पूरी तरह शांतिपूर्ण ढंग से चल रहा है और भिंड जिले के मोहनपुरा के पास गोली चलने संबंधी जो खबर आयी है, उसका मतदान से कोई लेना देना नहीं है। पास के मतदान केंद्र पर मतदान प्रभावित नहीं हुआ और झगड़े के संबंध में पुलिस ने आवश्यक कार्रवाई की है। इस मामले में एक व्यक्ति को मामूली चोट आयी है।

आज के चुनाव की खासियत यह है कि 2 चीजें शांति से निपट गईं. एक चुनाव और दूसरा बीजेपी: कमलनाथ


नागपुर में बुधवार को नौ राजनीतिक पार्टियों ने मिलकर महाराष्ट्र से अलग विदर्भ को नया राज्य बनाने की आवाज उठाई


कांग्रेस नेता कमलनाथ ने भोपाल में मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों पर बयान दिया है. उन्होंने कहा, ‘मैंने कहा था कि हम 140 से ज्यादा सीटें जीतेंगे लेकिन आज की वोटिंग के बाद जो जानकारी सामने आ रही है उससे इस बात की संभावना है कि नतीजे बहुत आश्चर्यजनक होंगे.’

कमलनाथ ने कहा, ‘हमने उन सभी पोलिंग स्टेशनों पर दोबारा वोटिंग की मांग की है जहां वोटिंग प्रक्रिया तीन घंटे बाधित रही. ऐसा इसलिए कहा गया कि वोटिंग 9 या 10 बजे तक होगी, यह सही नहीं है.’

कमलनाथ ने यह भी कहा कि आज के चुनाव की खासियत यह है कि 2 चीजें शांति से निपट गईं. एक चुनाव और दूसरा बीजेपी.

गौरतलब है कि एमपी में 230 विधानसभा सीटों के लिए आज वोटिंग खत्म हो गई. इस बार पिछली बार की तुलना में अधिक यानी करीब 75 फीसदी लोगों ने वोटिंग की. वहीं 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में करीब 72.69 फीसदी वोटिंग हुई थी.

कांग्रेस पार्टी ने उस कहावत को आत्मसात कर लिया है कि, ‘जीतने की तरह हारते जाना भी एक आदत है


दुकानदार कहते हैं कि, ‘हम बीजेपी के वोटर हैं और किसी और पार्टी के बारे में सोच भी नहीं सकते

दिग्विजय सिंह का 1993-2003 का कार्यकाल, पुरानी पीढ़ी आज भी याद करती है। यही वजह है कि बुजुर्ग वोटर न सिर्फ कांग्रेस को लेकर आशंकित हैं, बल्कि पार्टी के पुराने दौर के कुशासन का जिक्र भी अक्सर कर बैठते हैं

ग्वालियर के महाराजा ज्योतिरादित्य सिंधिया और उद्योगपति कमलनाथ जैसे नेता, वोटरों में कोई उम्मीद नहीं जगाते. जनता को इस बात की उम्मीद ही नहीं है कि इन नेताओं की अगुवाई में कांग्रेस का रुख-रवैया बदलेगा

जहां तक कांग्रेस की बात है तो ऐसा लगता है कि पार्टी ने उस कहावत को आत्मसात कर लिया है कि, ‘जीतने की तरह हारते जाना भी एक आदत है


1990 के दशक में नरेंद्र मोदी बीजेपी के संगठन महामंत्री के तौर पर मध्य प्रदेश के प्रभारी थे. उस वक्त उन्हें एक उपनाम मिला था, ‘मास्टर साहब’. इसकी वजह बीजेपी का संगठन चलाने और पार्टी का वोट बैंक बढ़ाने का उनका तरीका था. मोदी की पुरजोर कोशिश बीजेपी के समर्थन का दायरा बढ़ाने की होती थी.

1998 में मध्य प्रदेश, बीजेपी के मजबूत गढ़ के तौर पर उभरा था. राज्य के शहरी ही नहीं, ग्रामीण वोटरों के बीच भी बीजेपी की मजबूत पकड़ थी. ऐतिहासिक रूप से भी मध्य प्रदेश को बीजेपी और उससे भी पहले भारतीय जनसंघ के मजबूत संगठन की मौजूदगी के लिए जाना जाता था. जमीनी स्तर पर पार्टी ने लगातार अच्छा काम कर के पकड़ बना ली थी.

राज्य में बीजेपी की बुनियाद मजबूत करने और इसके लगातार विस्तार में कुशाभाऊ ठाकरे का अहम रोल रहा था. कुशाभाऊ ठाकरे को संगठन का आदमी कहा जाता था. अपनी इसी खूबी के चलते, वो 1998 में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बने.

कैसा था कुशाभाऊ ठाकरे का तरीका

लेकिन, कुशाभाऊ ठाकरे के काम करने का तरीका एकदम किताबी था. वो लीक पर चलने वाले नेता थे. उन्होंने संघ के आनुषांगिक संगठनों से कार्यकर्ताओं को बीजेपी में जोड़ा और उन्हें राजनीतिक कार्यकर्ता बनने की ट्रेनिंग दी. 1998 में जब मोदी मध्य प्रदेश के बीजेपी प्रभारी बने, तो उन्होंने संगठन में क्रांतिकारी बदलाव किए. पार्टी के उस वक्त के नेतृत्व को ये बात बिल्कुल नहीं सुहाई.

उन्होंने मोदी के तौर-तरीकों का विरोध किया. उस वक्त बीजेपी में मध्य प्रदेश से कई कद्दावर नेता थे. जैसे कि सुंदर लाल पटवा, विक्रम वर्मा और कैलाश जोशी. इसके अलावा उमा भारती जैसे उभरते हुए बेहद लोकप्रिय नेता भी थे. मोदी ने नए नेताओं को बढ़ावा दिया और संगठन को अनुसूचित जाति और जनजातियों के बीच अपना जनाधार बढ़ाने के लिए लगातार प्रेरित किया.

मोदी को लगता था कि वोटरों के इस तबके को अपनी पार्टी का समर्थक बनाने के लिए बहुत कम कोशिश करनी होगी. राज्य के बीजेपी नेताओं ने मोदी की इस कोशिश का कड़ा विरोध किया था. फिर भी, वो बीजेपी का सामाजिक दायरा बढ़ाने और नए सिरे से संगठित करने की अपनी रणनीति पर अमल करते रहे, ताकि समाज के हाशिए पर पड़े लोगों को हिंदुत्ववादी पार्टी के पाले में ला सकें.

मास्टर साहब की संगठन का असर

हालांकि बीजेपी 1998 का चुनाव हार गई थी. लेकिन, पार्टी का आदिवासियों, अनुसूचित जातियों और पिछड़े वर्ग के बीच हुआ संगठनात्मक विस्तार साफ दिखा. ये वो तबके थे जो परंपरागत रूप से कांग्रेस को वोट देते रहे थे. बीजेपी के ‘मास्टर साहब’ की संगठन के विस्तार की लगातार कोशिश का ही नतीजा था कि 2003 के चुनाव में पहले उमा भारती और फिर शिवराज चौहान विजयी नेता बन कर उभरे.

इसमें कोई दो राय नहीं कि बीजेपी को लगातार 15 साल तक राज करने की कीमत चुकानी पड़ रही है. बीजेपी के परंपरागत वोटर, यानी ऊंची जाति के जमींदार बहुत नाखुश हैं. लेकिन, इस बात की काफी संभावना है कि बीजेपी इस सियासी जमीन के बिखराव की भरपाई, हाशिए पर पड़े तबकों को अपने साथ लाकर कर लेगी. खास तौर से आदिवासियों, अनुसूचित जातियों और शहरी गरीबों को जोड़ने का बीजेपी को काफी फायदा होगा. हालांकि, हैरान करने वाली बात ये है कि बीजेपी के परंपरागत वोटरों के मुकाबले ये तबका उतना खुलकर पार्टी के साथ नहीं आता दिखता है.

मध्य प्रदेश के मालवा इलाके में बीजेपी की हालत उतनी कमजोर नहीं दिखती, जितनी चंबल और बुंदेलखंड इलाके में दिखती है। चंबल और बुंदेलखंड में बीजेपी के लिए लंबा राज ही चुनौती बन गया है। मालवा को मध्य प्रदेश का अमीर इलाका माना जाता है.

यहां शहरी आबादी ज्यादा है. कारोबार फल-फूल रहा है। जैसे कि इंदौर शहर को ही लीजिए, जिसे राज्य के लोग ‘मिनी मुंबई’ कहते हैं. इसकी वजह यहां खूब फल-फूल रहे उद्योग और कारोबार हैं। ये शहर खान-पान के शौकीनों के लिए भी जन्नत है। स्ट्रीट फूड के लिए इंदौर का सर्राफ़ा बाजार काफी मशहूर है। ये बाजार सोने, हीरे और गहनों के कारोबार का बड़ा केंद्र है. हालांकि पहले के मुकाबले यहां रौनक कम दिखती है।

नोटबंदी से निराशा 

दुकानदार मानते हैं कि, ‘हां, नोटबंदी के बाद से हमारा धंधा मंदा हुआ है।’ फिर भी वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति कोई बैर नहीं रखते। जब हम ने उनसे पूछा कि वो इस बार किस पार्टी को वोट देंगे, तो दुकानदार कहते हैं कि, ‘हम बीजेपी के वोटर हैं और किसी और पार्टी के बारे में सोच भी नहीं सकते।’

इंदौर बीजेपी का मजबूत गढ़ रहा है। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन यहां से लगातार आठ बार चुनाव जीत चुकी हैं। पिछले एक दशक में इंदौर शहर देश के दूसरे शहरों के लिए मॉडल बन कर उभरा है। यहां की साफ-सफाई और दूसरी सुविधाएं, दूसरे शहरों के मुकाबले बहुत बेहतर हैं।

आज से केवल 15 साल पहले, दिग्विजय सिंह के राज में इंदौर शहर बहुत बुरी हालत में था। लेकिन, आज तो झुग्गी-झोपड़ियों की हालत भी संवर गई है। स्लम बस्तियों मे भी साफ सफाई दिखती है। इंदौर और आस-पास के शहरों के इस बदले हुए रूप को लोग पसंद करते हैं. समाज के निचले तबके से आने वाले लोग भी इस बदलाव की तारीफ करते हैं। इसलिए बीजेपी के इस गढ़ में सेंध लगने के कोई संकेत नहीं दिखते। गरीबों को घर बनाने में मदद करने, ग्रामीण इलाकों में बिजली और गैस कनेक्शन देने की केंद्र सरकार की योजनाएं भी मतदाताओं के बीच बहुत चर्चित हैं।

लोगों की उम्मीदें बढ़ीं 

इस में कोई दो राय नहीं कि पिछले कुछ बरसों में लोगों की उम्मीदों में कई गुना इजाफा हुआ है। किसी भी सरकार से उकता जाने के लिए 15 साल का कार्यकाल बहुत होता है। फिर भी मालवा का वोटर, बदलाव को लेकर आशंकित है। दिग्विजय सिंह का 1993-2003 का कार्यकाल, पुरानी पीढ़ी आज भी याद करती है। यही वजह है कि बुजुर्ग वोटर न सिर्फ कांग्रेस को लेकर आशंकित हैं, बल्कि पार्टी के पुराने दौर के कुशासन का जिक्र भी अक्सर कर बैठते हैं।

कांग्रेस के खिलाफ एक और बात जो जाती है, वो इसके चेहरे भी हैं. इनमें ग्वालियर के महाराजा ज्योतिरादित्य सिंधिया और उद्योगपति कमलनाथ जैसे नेता, वोटरों में कोई उम्मीद नहीं जगाते. जनता को इस बात की उम्मीद ही नहीं है कि इन नेताओं की अगुवाई में कांग्रेस का रुख-रवैया बदलेगा.

मालवा इलाके में बीजेपी अपनी सोशल इंजीनियरिंग और मजबूत संगठन के साथ-साथ मोदी की लोकप्रियता की वजह से मजबूत स्थिति में है. शिवराज सिंह चौहान के लिए मालवा में कोई खतरा नहीं है. जहां तक कांग्रेस की बात है तो ऐसा लगता है कि पार्टी ने उस कहावत को आत्मसात कर लिया है कि, ‘जीतने की तरह हारते जाना भी एक आदत है.’

Congress hasn’t succeeded in building a narrative against Chouhan 

Jotiraditya Scindia, Kamal Nath, Digvijay Singh


Political analysts think Congress hasn’t succeeded in building a narrative against Chouhan 

“The pro-poor schemes of Shivraj Singh government will help the BJP to get support from the poor and economically-weaker sections of the society, especially the urban poor,” former Hindustan Times resident editor NK Singh said. 

Chouhan’s image as a son of the soil. He brought in the ‘insider-outsider’ narrative into play during the last 15 years. 

A large section of voters still unable to forget Digvijay Singh’s disastrous second term (1998 to 2003) and poor infrastructure that earned the state the infamous ‘Bimaru’ tag.


As the curtain comes down on the high-voltage electoral campaigning by the ruling BJP and the Opposition Congress in Madhya Pradesh for the votes to be cast on 28 November, both parties are keeping their fingers crossed. Who will win Madhya Pradesh? The betting market is swinging on both sides: sometimes in favour of Congress and sometimes for the BJP. Uncertainty looms on whether the BJP under Chief Minister Shivraj Singh Chouhan will return to power for a fourth consecutive term or if fortune will smile on the Congress after its long electoral drought.

Political analysts think Congress hasn’t succeeded in building a narrative against Chouhan. People do not complain against Chouhan, but against the lower bureaucracy and uncaring BJP MLAs, some of whom are also corrupt, they add. In fact, Chouhan has, over the years, emerged as a brand not only of the party, but also the state. “Congress couldn’t build a strong issue-based narrative against Shivraj Singh government, except announcing debt waiver for farmers and tackling unemployment. It’s not necessary that those who’re unhappy (and not angry) with the BJP government will vote for the Congress,” Bhopal-based political commentator Girija Shankar said.

File Photo of Shiv Raj Singh Chouhan

The high-decibel campaigning in Madhya Pradesh witnessed 10 rallies of Prime Minister Narendra Modi, 27 of BJP president Amit Shah, 178 of Chouhan along with his Jan Aashirwad Yatra criss-crossing the state. Unlike the BJP, Congress didn’t have many star campaigners. While Congress president Rahul Gandhi addressed 15 rallies, Jyotiraditya Scindia held the highest rallies for the party (103). MPCC president Kamal Nath addressed a few rallies, with a focus on organisational support, while courting a controversy on a video allegedly slamming the RSS over minority issue.

The issues raised by the BJP and the Congress leaders were more national than state-level: Ram Mandir, Rafale deal. The Opposition Congress couldn’t make ‘Vyapam scam’ a big issue. One may recall, five years ago the ‘Vyapam scam’—the biggest one till date in Madhya Pradesh—relating to irregularities in medical admissions and other recruitment examinations conducted by the state government was unearthed. It had almost dislodged Chouhan, but the BJP salvaged the crisis by handing the case to the CBI.

The state population is nearly 90 percent Hindu, which prompted Congress to toe a soft-Hindutva line. It is in the battlefield of Madhya Pradesh where Congress president Rahul Gandhi visited Jyotirlinga shrines Omkareshwar and Mahakaleshwar, and was projected as a ‘Shiv-bhakt’, and ‘pandit Rahul Gandhi’. But Rahul’s new avatar has drawn criticism.

Congress has successfully raked up the farmer distress that erupted in Mandsaur in 2017. Despite the state government’s quick measures to quell farmers’ anger, election results will show if the Congress succeeded in swinging the issue in its favour. “The pro-poor schemes of Shivraj Singh government will help the BJP to get support from the poor and economically-weaker sections of the society, especially the urban poor,” former Hindustan Times resident editor NK Singh said.

Factors in favour of Shivraj Singh Chouhan and the BJP

· Unlike in the case of the former chief minister Digvijay Singh, there’s no anger directly against Chouhan.

· No large-scale complaint against Chouhan on basic amenities like electricity, road and water, as against the Congress between 2000 and 2003.

· Strong organisational base.

· Active role of frontal organisations of RSS-BJP and their grassroots reach.

· Chouhan’s image as a son of the soil. He brought in the ‘insider-outsider’ narrative into play during the last 15 years.

· Strong support from those living in slums and economically-weaker sections (EWS) due to state government schemes, especially housing scheme (Awas Yojna).

Against the BJP

· Large-scale rebellion in the form of Independent candidates, who failed to get either a BJP ticket, a post or favour from the party.

· Upper castes and a section of middle-class voters are disturbed over SC/ST Atrocities Act, high fuel prices.

· Mid-level businessmen, small and medium level farmers who are politically influential are vocal against the BJP.

· High-voltage campaigning in the form of rallies and roadshows with star campaigners like Modi, Shah and Chouhan.

Factors in favour of Congress

· Anti-incumbency factor against the BJP.

· A section of voters wants a change in government.

· Farmer distress that erupted in Mandsaur district and the anger among small and marginal farmers may help Congress, especially due to ‘Bhaavantar Yojna’.

· People’s anger against bureaucracy and BJP MLAs

Against the Congress

· Long absence of senior leaders of Congress in the state. They are being considered more as ‘outsiders’, who have spent less time in state politics.

· Weak frontal organisations of Congress that lack grassroots connectivity.

· A large section of voters still unable to forget Digvijay Singh’s disastrous second term (1998 to 2003) and poor infrastructure that earned the state the infamous ‘Bimaru’ tag.

· Lack of cohesive leadership in the state over the last 15 years, which has weakened the party at organisational level.

· Soft-Hindutva line adopted by the Congress won’t make much dent in BJP, rather it has attracted more criticism.

Congress’ Hindutva shows death of ‘secularism’, gives BJP chance to set new inclusive agenda


Once the self-anointed custodian of ‘secular’ politics, the Congress is now desperate to be rebranded as a ‘Hindu party’. 

CP Joshi, was heard telling participants at a rally in Nathdwara that only Brahmins can talk about Hinduism, not Modi or Uma Bharti soon after, Rahul’s ‘gotra was leaked to the media

The Congress initially tried to solve this problem by driving a difference between ‘Hinduism’ and ‘Hindutva’, but it lacks the ideological conviction and political capital to communicate that strategy.

“You don’t need to offer education, jobs, bijlisadakpaani to secure Muslim votes. Just keep them insecure and keep offering them security. Muslims were perfect political hostage to ‘secular’ politics”. Yogendra Yadav


In 2006, Rahul Gandhi, then a newbie in politics, announced at the Congress plenary session that he follows two religions — flag and the party. Twelve years is a long time in politics. The Gandhi scion is now the Congress president, busy shedding his ‘secular’ credentials.

Rahul flaunts his ‘janeu‘ (sacred thread), pitches a journey to Kailash Mansarovar as the high point of his ‘Shiv bhakti‘, criss-crosses between temples across India during elections, sports a ’tilak’ on his forehead and tells the head priest in Pushkar that he is a ‘Dattatreya Kaul Brahmin’, by gotra(caste). Once the self-anointed custodian of ‘secular’ politics, the Congress is now desperate to be rebranded as a ‘Hindu party’. ‘Secularism’ has travelled a long way in India.

The ongoing election season reinforces the death of ‘secularist’ politics. While Assembly elections will be held in five states this year, the big one is next year, when Prime Minister Narendra Modi will seek to extend his mandate. Amid this dance of democracy, the absolute silence of Muslim voices points to a decisive shift in identity politics. Muslims, who were central to any election debate or campaign in India till 2014, suddenly find themselves sidelined, marginalised and even forgotten.

In a leaked video clip that has since gone viral, Madhya Pradesh Congress chief Kamal Nath was recently heard telling Muslim leaders that if the Congress does not get 90 percent of the total Muslim votes in the state, the party will “suffer a big loss”. There’s nothing wrong with the pitch, but the fact that the comments were made at a private, closed-door meeting, where Nath also pleaded with leaders from the community that “you will have to bear everything till the day of voting” and “we will deal with them (RSS and BJP) later”, indicates that the Congress is now scared of the ‘pro-Muslim’ tag that was ironically its calling card till 2014.

In a report, India Today quotes a Congress leader as saying that the party believes that being sympathetic to Muslim causes has “harmed its electoral prospects”.

This shift from a ‘pro-Muslim’ stance — as the AK Antony Committee had pointed out after the 2014 drubbing — to a ‘pro-Hindutva’ approach is not a preserve of the Congress. In West Bengal, for instance, Chief Minister Mamata Banerjee underwent a similar trajectory.

However, in recent years, Mamata has been busy celebrating Ram Navami, greeting the nation on Hanuman Jayanti or announcing a Rs 28 crore cash bonanza and power bill relief for Durga Puja organisers in the state.

A part of this shift has undoubtedly happened due to the rise of the BJP as the dominant force in national politics, but the crucial bit about the saffron party’s ascendancy has been the way it has forced a shift in mainstream political discourse from ‘secularism’ to ‘Hindutva’, so much so that other parties are being forced to play by its rules. The Congress initially tried to solve this problem by driving a difference between ‘Hinduism’ and ‘Hindutva’, but it lacks the ideological conviction and political capital to communicate that strategy.

Consequently, a desperate Congress shed all ‘secularist’ pretenses and embarked on an aggressive brand of Hindutva politics to beat the BJP in its own game — almost as if to show that the BJP is a ‘pseudo-Hindutva’ party just as the Congress is a ‘pseudo-secular’ one. Accordingly, All India Congress Committee general secretary and senior Congress leader in poll-bound Rajasthan, CP Joshi, was heard telling participants at a rally in Nathdwara that only Brahmins can talk about Hinduism, not Modi or Uma Bharti (who belong to a lower caste), in a constituency that has a sizeable portion of Brahmin representation.

Rahul Gandhi reveals his caste and gotra in Rajasthan’s Pushkar temple

Joshi was apparently “chided” by the party president, but soon after, Rahul’s ‘gotra‘ was leaked to the media, where his Brahmin credentials were reinforced to go with his janeu-dhaariappearance. After all, Congress spokesperson Randeep Surjewala did claim that his party has “Brahmin Samaj’s DNA in its blood”.

Meanwhile, the Congress manifesto in Madhya Pradesh vows to build the route taken by Lord Ram in his exile, cow shelters in every panchayat, commercial production of cow urine, opening of a spiritual department and developing the Narmada Parikrama, while senior Congress leaders are seen swearing by “Ganga jal” in their hands during news conferences.

This comical, competitive Hindutva seems to be a tactical attempt to reclaim the ground that Congress assumes it has lost to the BJP. The fact that it feels it will be in a better place to do so by revamping itself as a ‘Hindutva’ party, giving fewer tickets to Muslims instead of reinforcing its ‘secular’ credentials, speaks of the quiet death of ‘secularism’ as a driving force in Indian politics.

This isn’t a surprise because the Congress-championed ‘secularism’ — a model that was followed by all ‘secular’ parties — had long collapsed under the weight of its contradictions. Instead of an ideological anchor, it degenerated into a rent-seeking exercise.

As Swaraj India chief Yogendra Yadav writes in ‘The Print’, “Unlike other castes and communities, you don’t need to offer education, jobs, bijlisadakpaani to secure Muslim votes. Just keep them insecure and keep offering them security. Muslims were perfect political hostage to ‘secular’ politics. Anything that pandered to Muslim ‘sentiment’ as defined by its leadership was kosher, as secular politics was seen to be pro-minority. Any party opposed to the BJP could call itself secular.”

For the BJP, this presents an opportunity to replace the discredited concept of ‘secularism” and cement Hindutva as the new normal — an inclusive, ideological agenda that RSS sarsanghchalak Mohan Bhagwat speaks of — which isn’t complete without Muslims and celebrates diversity rather than feeling threatened by it. That may free Muslims from the bondage of rent-seeking ‘secularism’ and lead to true empowerment

TRS and Congress are two faces of the same coin are ‘Family parties’: Modi


PM pooh-poohs the ”yagas” and ”yagnas” of Telangana Chief Minister K. Chandrasekhar Rao, he says the TRS chief was whiling away the time by indulging in use of ”neembu-mirchi” (lemon and chillis).


Prime Minister Narendra Modi, in his first election rally in poll-bound Telangana, on Tuesday said the Congress and the TRS (Telangana Rashtra Samithi) are “family parties” and they are two faces of the same coin.

There was no democracy in both the parties. “They compete with each other in spreading untruths and half truths and therefore you don’t believe them in this election,” he said.

Family rule and vote bank politics were impediments for development and vote bank politics was a moth which ate the vitals of the economy, he said at the well attended meeting at Giriraj Government College ground in Nizamabad.

“Where there is family rule, there is no development. It is ridiculous that Sonia Gandhi and Rahul Gandhi are criticising the family rule of K. Chandrasekhar Rao while running the same show. Mr. Rao dashed the hopes and aspirations of the Telangana people in his four-and-a-half year governance. Both the Congress and the TRS are involved in a friendly contest. Mr. Rao is a friend of the Congress,” Mr. Modi said.

Mr. Rao ate the salt of the Congress-led United Progressive Alliance (UPA) government as he was the Minister in it and enjoyed facilities. “Sonia acted as a remote control of the UPA regime and Mr. Rao knew it better.” Mr. Rao, in fact, got training under the tutelage of the Congress, he said.

‘Congress student caused much damage to State’

Drawing comparison between the two, Mr. Modi said Mr. Rao, as a student of the Congress, did so much damage to the State that would equal the damage caused by the Congress if it was voted to power. “Therefore, you have only one way for development; that is the BJP. The Congress ruled the country from Delhi to galli [street] for several years. When I questioned what had it done all those years, they started attacking me asking my caste and personal details,” he said.

Mr. Rao, with his “feeling of insecurity”, had not allowed the implementation of Ayushman Bharath. As a result, lakhs of poor families were getting affected in the State. In just two months of the introduction of the scheme, three lakh families got benefit availing medical treatment for cancer and major diseases up to Rs. 5 lakh, Mr. Modi claimed.

Pooh-poohing the yagas and yagnas of Mr. Rao, he said the former was whiling away the time by indulging in use of neembu-mirchi (lemon and chillis). “He left the public health to the air. Therefore, the poor were suffering. Conditions in hospitals were bad and the condition of medical college here the worst,” he said.

Mr. asked the people “if they like to vote for the Congress” which had “failed the State”. Wherever the Congress was defeated, it did not come back to power again. “I appeal to you to give the chance to the BJP once and vote for it on December 7,” he said.