अयोध्या गोलीकांड: तत्कालीन एसएचओ का दावा, ‘मौत का आंकड़ा कम दिखाने को दफनाई गईं कारसेवकों की लाशें’

साभार अर्श अग्रवाल के फकेबुक वाल से

जिस देश में देश द्रोहीयों, आतंकवादियों, दहशतगर्दों ज्धन्य अपराध करने वालों को मौत की सज़ा देने के बाद उचित संस्कार की परंपरा रही है वहीं तत्कालीन मुलायम सरकार ने कारसेवकों को उचित अंतिम संस्कार की बात तो दूर उनकी पहचान तक को खत्म कर दिया। हिन्दू कारसेवकों को उनकी पहचान के साथ दफना दिया गया। यह खुलासा एक निजी टीवी चैनल पर तत्कालीन एसएचओ बहादुर सिंह ने किया ।

अयोध्या गोलीकांड में कारसेवकों की मौत को लेकर आंकड़ों पर हमेशा संशय रहा है। हालांकि एक निजी टीवी चैनल से बातचीत में तत्कालीन एसएचओ और राम जन्मभूमि थाने के प्रभारी वीर बहादुर सिंह ने बताया है कि मौत का आंकड़ा कम दिखाने के लिए कई कारसेवकों की लाशों को दफनाया गया था।


अयोध्‍या गोलीकांड के बारे में एक टीवी चैनल ने बड़े खुलासे का दावा किया तत्कालीन एसएचओ ने बताया कि कारसेवकों के मौत का आंकड़ा ज्‍यादा उन्‍होंने कहा कि आंकड़े नहीं पता हैं, लेकिन काफी संख्या में लोग मारे गए थे

अयोध्या में 1990 में यूपी की मुलायम सिंह सरकार के दौरान कारसेवकों पर पुलिस की गोलीबारी के मामले में एक टीवी चैनल ने बड़े खुलासे का दावा किया है। चैनल ने अपने स्टिंग में एक तत्कालीन अधिकारी से बात की। रामजन्मभूमि थाने के तत्कालीन एसएचओ वीर बहादुर सिंह ने बताया कि कारसेवकों के मौत का जो आंकड़ा बताया गया था, उससे ज्यादा कारसेवकों की मौत हुई थी।
राम जन्मभूमि थाने के तत्कालीन एसएचओ वीर बहादुर सिंह ने इस टीवी चैनल से बातचीत में बताया, ‘घटना के बाद विदेश तक से पत्रकार आए थे। उन्हें हमने आठ लोगों की मौत और 42 लोगों के घायल होने का आंकड़ा बताया था। हमें सरकार को रिपोर्ट भी देनी थी तो हम तफ्तीश के लिए श्मशान घाट गए, वहां हमने पूछा कि कितनी लाशें हैं जो दफनाई जाती हैं और कितनी लाशों का दाह संस्कार किया गया है, तो उसने बताया कि 15 से 20 लाशें दफनाई गई हैं। हमने उसी आधार पर सरकार को अपना बयान दिया था। हालांकि हकीकत यही थी कि वे लाशें कारसेवकों की थीं। उस गोलीकांड में कई लोग मारे गए थे। आंकड़े तो नहीं पता हैं, लेकिन काफी संख्या में लोग मारे गए थे।’
टीवी चैनल के इस सवाल पर कि कई लोग अपनों के बारे में पूछते हुए अयोध्या तक आए होंगे, उन्हें क्या बताया जाता था। पूर्व एसएचओ ने बताया, ‘हम उन्हें बताते थे कि ये लाशें (जिन्हें दफनाया गया है) उनके परिवार के सदस्यों की नहीं हैं।’
मुलायम सिंह यादव भी कई मौकों पर इस गोलीकांड को सही ठहराते रहे हैं। उन्होंने हमेशा कहा है, ‘हमने देश की एकता के लिए गोली चलवाई थी। आज जो देश की एकता है उसी वजह से है। हमें इसके लिए और भी लोगों को मारना पड़ता तो सुरक्षाबल मारते।’
क्या हुआ था 30 अक्टूबर 1990 के दिन?
बता दें कि वीएचपी के आह्वान पर साल 1990 के अक्टूबर महीने में लाखों कारसेवक अयोध्या में इकट्ठा हुए थे। उद्देश्य था कि विवादित स्थल पर मस्जिद को तोड़कर मंदिर का निर्माण किया जाए। जब हजारों की संख्या में लोग विवादित स्थल के पास की एक गली में इकट्ठा हुए उसी वक्त सामने से पुलिस और सुरक्षाबलों ने गोली चला दी। इसमें कई लोग गोली से तो कई लोग भगदड़ से मारे गए और घायल हुए। हालांकि मौतों के आंकड़े कभी स्पष्ट नहीं हुए, ऐसे में तत्कालीन अधिकारी का यह खुलासा हैरान करने वाला है।

शुक्ला की नियुक्ति तय मानदंडों के अनुसार: जितेंद्र सिंह

नई दिल्‍ली: केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने शनिवार को दावा किया कि सीबीआई निदेशक का चयन करने वाली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली उच्च-स्तरीय समिति के सदस्य एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपने पसंदीदा अधिकारियों को तवज्जो देने की ”गलत मंशा” से सीबीआई प्रमुख के चयन के मानदंडों में ”हेरफेर” करने की कोशिश की. उन्होंने खड़गे पर आरोप लगाया कि वह चयन समिति में हुई चर्चा के बारे में मीडिया को सिर्फ अपने हिसाब से चीजें बता रहे हैं.

केंद्रीय कार्मिक राज्य मंत्री सिंह ने बताया, ”खड़गे ने सीबीआई निदेशक के चयन से संबंधित स्वतंत्र एवं निष्पक्ष मूल्यांकन पर आधारित उद्देश्यपरक मानदंडों में हेरफेर की कोशिश की. वह उम्मीदवारों की अंतिम सूची में अपने कुछ पसंदीदा अधिकारियों को शामिल करना चाह रहे थे.” कार्मिक मंत्रालय के आदेश के मुताबिक, मध्य प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ऋषि कुमार शुक्ला को शनिवार को दो वर्ष के तय कार्यकाल के लिए सीबीआई का निदेशक नियुक्त किया गया. 

साल 1983 बैच के आईपीएस अधिकारी शुक्ला को आलोक कुमार वर्मा की जगह सीबीआई प्रमुख के पद पर नियुक्त किया गया. वर्मा को 10 जनवरी को सीबीआई निदेशक के पद से हटाया गया था. सिंह ने कहा कि प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने सीबीआई प्रमुख के चयन में लागू किए जाने वाले मानदंडों का पूरा समर्थन किया. सीबीआई निदेशक का चयन करने वाली समिति में पीएम मोदी के अलावा प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) गोगोई और लोकसभा में कांग्रेस के नेता खड़गे शामिल हैं.

ऋषि कुमार शुक्ला, जानिए मुख्य बातें

सीबीआई को आखिरकार अपना नया निदेशक मिल गया है. मध्य प्रदेश पुलिस के डीजीपी रहे ऋषि कुमार शुक्ला को सीबीआई का नया निदेशक बनाया गया है. कैबिनेट की अपॉइंटमेंट कमेटी ने आईपीएस ऋषि कुमार शुक्ला को दो साल के लिए सीबीआई प्रमुख के पद पर नियुक्त किया है. वह तत्काल प्रभार से इस पद की जिम्मेदार संभालेंगे.

-शुक्ला 1983 बैच के आईपीएस अधिकारी है.

-ऋषि कुमार शुक्ला, मध्य प्रदेश पुलिस के प्रमुख थे. जब कांग्रेस ने राज्य में सरकार की कमान संभाली तो उन्हें उनके पद से हटा दिया गया था.

-ऋषि कुमार शुक्ला वर्तमान में पुलिस आवास निगम के महानिदेशक के रूप में सेवारत हैं.

-शुक्ला ने इंटेलिजेंस ब्यूरो में भी काम किया है.

-ऋषि कुमार शुक्ला आतंकवाद के खिलाफ अपने काम के लिए भी जाने जाते हैं.

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दरअसल, पिछले दिनों सीबीआई के डायरेक्टर आलोक वर्मा और वरिष्ठ अधिकारी राकेश अस्थाना के बीच विवाद के बाद दोनों अधिकारियों को छुट्टी पर भेज दिया गया था. इसके बाद सरकार के इस फैसले को आलोक वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. कोर्ट ने सरकार के फैसले को पलटते हुए वर्मा को सीबीआई डायरेक्टर नियुक्त किया था. वर्मा की नियुक्ति के चंद घंटों के भीतर उनका ट्रांसफर कर दिया गया. इस फैसले से नाराज वर्मा ने इस्तीफा दे दिया था. तभी से सीबीआई प्रमुख का यह पद खाली पड़ा था.

ऋषि कुमार शुक्ला नए सीबीआई चीफ

IPS ऋषि कुमार शुक्ला को मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार के मुखिया कमलनाथ ने पांच दिन पहले 29 जनवरी को डीजीपी पद से हटाया था.

केन्द्रीय जांच ब्यूरो के विशेष निदेशक के पद पर ऋषि कुमार का नाम तय हो गया है, ऋषि कुमार कांग्रेस की आखिरी पसंद हैं क्योंकि वह मद्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीबी माने जाते हैं और उन्होने 8 आतंकियों का एनकाउंटर भी कर चुके हैं। जल्दी ही कांग्रेस इस नियुक्ति के प्रति अपना विरोध दर्ज करवा देगी।

नई दिल्ली/भोपाल: केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना से विवाद के बाद आलोक वर्मा को सीबीआई के प्रमुख के पद से हटाए जाने के 20 दिन बाद शनिवार को मध्यप्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ऋषि कुमार शुक्ला को सीबीआई का नया प्रमुख नियुक्त किया गया. सीबीआई प्रमुख का नाम तय करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली उच्चस्तरीय चयन समिति की बैठक के अगले दिन शुक्ला को दो वर्ष के कार्यकाल के लिए सीबीआई प्रमुख चुना गया. सीबीआई प्रमुख चुनने के लिए समिति पिछले नौ दिनों में दो बार बैठक कर चुकी है.

एक आधिकारिक अधिसूचना के अनुसार, “समिति की अनुशंसा वाले पैनल के आधार पर दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 के अनुच्छेद 4 ए(1) के आधार पर गठित कैबिनेट की चयन समिति ने ऋषि कुमार शुक्ला को दो वर्ष के लिए सीबीआई के निदेशक के तौर पर चुना.”

मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार में डीजीपी रहे शुक्ला (59) इस समय पुलिस हाउसिंग कॉर्पोरेशन के प्रमुख थे. उन्हें सीबीआई में काम करने का तो कोई अनुभव नहीं है, मगर इंटेलीजेंस ब्यूरो में काम कर चुके हैं.

डीजीपी पद से हटाया
ऋषि कुमार शुक्ला को मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार के मुखिया कमलनाथ ने पांच दिन पहले 29 जनवरी को डीजीपी पद से हटाया था. पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीबी माने जाते हैं. शुक्ला अगस्त, 2020 में सेवानिवृत्त हो जाते, लेकिन सीबीआई प्रमुख बनने के बाद उनका कार्यकाल फरवरी, 2021 में खत्म होगा. शुक्ला मध्यप्रदेश के डीजीपी के तौर पर 30 जून, 2016 को चुने गए थे. इस पद पर वह 29 जनवरी, 2019 तक रहे.

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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सवाल उठाया था कि सीबीआई में अंतरिम प्रमुख एम. नागेश्वर राव से कब तक काम चलाया जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने सरकार को बताया था कि सीबीआई निदेशक का पद संवेदनशील होता है और सरकार को अभी स्थायी निदेशक चुनना होगा.

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सीबीआई प्रमुख के पद पर वर्मा को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बहाल किए जाने के बाद उच्चस्तरीय समिति ने 10 जनवरी को वर्मा को फिर से हटा दिया था. केंद्र सरकार ने उन्हें अग्निशमन, नागरिक सेवा और होम गार्ड का महानिदेशक नियुक्त किया था. उन्होंने इस पद को अस्वीकार कर दिया था.

मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में रॉबर्ट वाड्रा ने अग्रिम जमानत याचिका दायर की है

नई दिल्ली: मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में रॉबर्ट वाड्रा ने दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में अग्रिम जमानत याचिका दायर की है. प्राप्त जानकारी के अनुसार, इस याचिका पर शनिवार को सुनवाई होगी. गौरतलब है कि रॉबर्ट वाड्रा कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा के पति हैं. दरअसल, मनी लॉन्ड्रिंग का यह मामला वाड्रा के करीबी सुनील अरोड़ा से जुड़ा हुआ है. वाड्रा ने इसी मामले में गिरफ्तारी से बचने के लिए अग्रिम जमानत याचिका लगाई है.

लंदन की प्रॉपर्टी से जुड़ा है यह कथित मनी लॉन्ड्रिंग मामला
गौरतलब है कि राबर्ट वाड्रा के करीबी कहे जाने वाले सुनील अरोड़ा के खिलाफ ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) ने मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया है. इस मामले में सुनील अरोड़ा को कोर्ट ने 6 फरवरी तक के लिए गिरफ्तारी से अंतरिम राहत दी है. दरअसल, यह मामला लंदन के 12, ब्रायनस्टन स्कवायर स्थित 19 लाख पाउंड (करीब 17 करोड़ रुपये) की एक प्रॉपर्टी की खरीदारी में हुए कथित मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ा है. ईडी ने दावा किया है कि इस संपत्ति के असली मालिक राबर्ट वाड्रा हैं. 

भगोड़े डिफेंस डीलर संजय भंडारी पर भी दर्ज है मुकदमा
ईडी ने कोर्ट में बताया कि लंदन स्थित इस प्रॉपर्टी को भगोड़े डिफेंस डीलर संजय भंडारी ने खरीदा था. भंडारी ने यह प्रॉपर्टी 16 करोड़ 80 लाख रुपये में खरीदा था. ईडी के अनुसार, भंडारी ने 2010 में इसी कीमत पर इसकी बिक्री वाड्रा के नियंत्रण वाली फर्म को कर दी थी. ईडी ने बताया कि इस प्रॉपर्टी में मरम्मत के लिए इस पर 65,900 पाउंड का अतिरिक्त खर्चा हुआ था. बावजूद इसके भंडारी ने इस प्रॉपर्टी की बिक्री कर दी थी. गौरतलब है कि भंडारी के खिलाफ ऑफिशल सीक्रेट ऐक्ट के तहत 2016 में मुकदमा दर्ज किया था. 

मजीठिया समिति की सिफ़ारिशें लागू करने और कर्मचारियों के निलंबन के मामले तय समयसीमा में निपटाने के सुप्रीम कोर्ट ने दिए आदेश

मजीठिया व टर्मिनेशन के लंबित मामले तय समयसीमा में निपटाने के सुप्रीम कोर्ट ने दिए आदेश, देशभर के सभी हाईकोर्ट की रजिस्ट्री को नोटिस जारी किये गये।

नए साल के साथ ही देशभर में मजीठिया वेतनमान के लिए संघर्ष कर रहे साथियों के लिए देश की सबसे बड़ी अदालत ने बड़ी राहत भरी खबर दी है। मजीठिया को लेकर दायर एक मिसलेनियस एप्लीकेशन पर सोमवार 28 जनवरी को प्रधान न्यायाधीश माननीय रंजन गोगोई व माननीय संजीव खन्ना की बेंच ने सुनवाई कर कर्मचारियों के हक में फैसला सुनाया है। कर्मचारियों की ओर से देश के जाने-माने वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण व उनके सहयोगी अधिवक्ता गोविंद जी ने पैरवी की। श्री भूषण ने कर्मचारियों के पक्ष में जोरदार दलीलें दीं। भूषण जी ने माननीय अदालत के सामने कई साल से लंबित पड़े मामले व साथ ही termination के लंबित पड़े मामलो को रखा।इसके बाद माननीय न्यायालय ने आदेश दिया कि देशभर में मजीठिया के मामलों का निराकरण श्रम न्यायालय निश्चित तय अवधि में करें। इस दौरान हाईकोर्ट के स्टे का मामला भी उठाया गया। इस पर भी कोर्ट ने आदेश दिए कि हाईकोर्ट मजीठिया के मामलों में अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करे और स्टे देने से बचे। साथ ही वर्तमान में हाईकोर्ट में जो मामले लंबित हैं, उन्हें जल्द से जल्द निपटाया जाए। इसके अलावा सालों से चल रहे बर्खास्तगी और ट्रांसफर के मामलों में भी कर्मचारियों को राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया है कि इन मामलों को भी श्रम न्यायालयों को निर्धारित समय सीमा में ही निपटाना होगा। सर्वोच्च न्यायालय का आदेश कर्मचारियों की बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है। पूर्व के कटू अनुभवों से सीख लेते हुए इस बार बिलकुल तय रणनीति के मुताबिक माननीय सर्वोच्च न्यायालय में इस मामले को लड़ा गया। इससे सफलता मिली है। इस मामले में दिल्ली से महेश कुमार मजीठिया क्रांतिकारी ने मुख्य भूमिका निभाई, नोएडा से विवेक त्यागी जी, रतनभूषण प्रसाद जी, राजेश निरंजन जी , मध्यप्रदेश से राजेंद्र मेहता संयोजक स्टेट वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन एमपी, मौ फैजान खान महासचिव स्टेट वर्किग जर्नलिस्ट एमपी, हिमाचल प्रदेश से राजेश गोस्वामी, राजेश शर्मा, पंजाब जालंधर से मानसिंह,सुनील कुमार, विकास सिंह लुधियाना से धीरज सिंह साथियों का विशेष सहयोग रहा। यहां के सभी साथी बधाई के पात्र हैं, जिन्होंने पूरे मामले के लिए न केवल धन बल्कि दस्तावेज और अन्य माध्यमों से केस में अपना सहयोग किया।
प्रभावी रणनीति से मिली सफलता
ज्ञात हो कि देशभर के श्रम न्यायालयों में करीब दो साल से मजीठिया के प्रकरण विभिन्न् कारणों से लंबित हैं। अखबार प्रबंधन श्रम न्यायालयों के अंतरिम आदेशों को लेकर हाईकोर्ट जाकर मामले में स्टे लेकर लंबित करने का प्रयास कर रहा है। इससे मामलों में अनावश्यक देरी हो रही है। इसके अलावा प्रबंधन की मंशा थी कि किसी भी श्रम न्यायालय से कोई अवार्ड पारित न हो सके। अखबार मालिकों की इस रणनीति से निपटने के लिए दिल्ली, नोएडा , पंजाब, से लेकर भोपाल के साथियों ने पूरी व्यूह रचना तैयार की। इसके बाद अधिवक्ता गोविंद जी के माधयम से प्रख्यात अधिवक्ता प्रशांत भूषण जी को सारे मामले से अवगत कराया और उनसे अनुरोध किया गया कि वे इस मामले को माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष रखें, जिसके बाद नवंबर माह में एक आईए दाखिल हुई। अवमानना मामलों की गलतियों से सबक लेते हुए इस बार पूरा प्लान तैयार किया गया था ताकि कोर्ट में इस बार कानूनी रूप से किसी तरह की कोई कमी न रह जाए। सभी के साझा प्रयासों और सहयोग से इस बार कर्मचारियों को सुप्रीम कोर्ट से जीत मिली है। सभी साथियों को सुप्रीम कोर्ट के इस ताजा आदेश के अनुसार ही अपनी आगे की रणनीति तैयार करना चाहिए। देशभर के साथियों को पुन: जीत पर बधाई।
Note:- सुप्रीम कोर्ट का order आने पर और विस्तृत जानकारी दी जाएगी

अविवादित ज़मीन ‘न्यास’को लौटाई जाये ताकि निर्माण आरंभ हो: केंद्र सरकार

केंद्र का कहना है कि राम जन्मभूमि न्यास से 1993 में जो 42 एकड़ जमीन अधिग्रहित की थी सरकार उसे मूल मालिकों को वापस करना चाहती है.

नई दिल्‍ली : अयोध्‍या विवाद पर केंद्र की मोदी सरकार ने मंगलवार को बड़ा कदम उठाते हुए  सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है. इसमें मोदी सरकार ने कहा है कि 67 एकड़ जमीन सरकार ने अधिग्रहण की थी. इसपर सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया है. सरकार का कहना है कि जमीन का विवाद सिर्फ 2.77 एकड़ का है, बल्कि बाकी जमीन पर कोई विवाद नहीं है. इसलिए उस पर यथास्थित बरकरार रखने की जरूरत नहीं है. सरकार चाहती है जमीन का कुछ हिस्सा राम जन्भूमि न्यास को दिया जाए और सुप्रीम कोर्ट से इसकी इजाजत मांगी है.

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि वह अपने 31 मार्च, 2003 के यथास्थिति बनाए रखने के आदेश में संशोधन करे या उसे वापस ले. केंद्र सरकार ने SC में अर्जी दाखिल कर अयोध्या की विवादित जमीन को मूल मालिकों को वापस देने की अनुमति देने की अनुमति मांगी है. इसमें 67 एकड़ एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया था, जिसमें लगभग 2.77 एकड़ विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि का अधिग्रहण किया था.

केंद्र का कहना है कि राम जन्मभूमि न्यास से 1993 में जो 42 एकड़ जमीन अधिग्रहित की थी सरकार उसे मूल मालिकों को वापस करना चाहती है. केंद्र ने कहा है कि अयोध्या जमीन अधिग्रहण कानून 1993 के खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, जिसमें उन्‍होंने सिर्फ 0.313 एकड़ जमीन पर ही अपना हक जताया था, बाकि जमीन पर मुस्लिम पक्ष ने कभी भी दावा नहीं किया है.

अर्जी में कहा गया है कि इस्माइल फारुकी नाम के केस के फैसले में सुप्रीमकोर्ट ने कहा था कि सरकार सिविल सूट पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद विवादित भूमि के आसपास की 67 एकड़ जमीन अधिग्रहित करने पर विचार कर सकती है. केंद्र का कहना है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया है और इसके खिलाफ अपील सुप्रीम कोर्ट के सामने लंबित है, गैर-उद्देश्यपूर्ण उद्देश्य को केंद्र द्वारा अतिरिक्त भूमि को अपने नियंत्रण में रखा जाएगा और मूल मालिकों को अतिरिक्त जमीन वापस करने के लिए बेहतर होगा.

बता दें कि अयोध्‍या मामले पर सुप्रीम कोर्ट में 29 जनवरी को सुनवाई होनी थी, लेकिन इसके लिए बनाई गई जजों की बेंच में शामिल जस्‍ट‍िस बोबड़े के मौजूद न होने पर अब ये सुनवाई आगे के लिए टल गई है. अभी इस मामले में सुनवाई के लिए तारीख भी तय नहीं हुई है. इससे पहले पीठ के गठन और जस्‍ट‍िस यूयू ललित के हटने के कारण भी सुनवाई में देरी हुई थी.

इससे पहले 25 जनवरी को अयोध्या मामले की सुनवाई के लिए चीफ जस्‍ट‍िस रंजन गोगोई ने नई बेंच का गठन कर दि‍या था. इस बैंच में CJI रंजन गोगोई के अलावा एसए बोबडे, जस्टिस चंद्रचूड़, अशोक भूषण और अब्दुल नज़ीर शामि‍ल हैं. पिछली बैंच में कि‍सी मुस्‍ल‍िम जस्‍ट‍िस के न होने से कई पक्षों ने सवाल भी उठाए थे.

इससे पहले बनी पांच जजों की पीठ में जस्‍ट‍िस यूयू ललित शामि‍ल थे, लेकिन उन पर मुस्‍लि‍म पक्ष के वकील राजीव धवन ने  सवाल उठाए थे. इसके बाद वह उस पीठ से अलग हो गए थे. इसके बाद चीफ जस्‍ट‍िस ने नई पीठ गे गठन का फैसला किया था. वहीं अयोध्‍या में राम मंदिर निर्माण की मांग कर रहे साधु-संतों की ओर से प्रयागराज में चल रहे कुंभ में परम धर्म संसद का आगाज सोमवार को हो चुका है. स्‍वामी स्‍वरूपानंद सरस्‍वती के नेतृत्‍व में 30 जनवरी तक प्रयागराज में चल रहे कुंभ मेले में परम धर्म संसद का आयोजन होगा.

वहीं साधु और संतों ने इस संबंध में बड़ा ऐलान भी किया हुआ है. उनका कहना है कि राम मंदिर सविनय अवज्ञा आंदोलन के जरिये बनाया जाएगा. प्रयागराज में चल रहे कुंभ मेले में इस समय साधु और संतों का जमावड़ा लगा हुआ है. यहां विश्‍व हिंदू परिषद (विहिप) की धर्म संसद से पहले शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती परम धर्म संसद का आयोजन कर रहे हैं. यह परम धर्म संसद कुंभ में 28, 29 और 30 जनवरी तक चलेगी. इसमें राम मंदिर निर्माण के लिए चर्चा और रणनीति बनेगी. बता दें कि विश्‍व हिंदू परिषद 31 जनवरी को राम मंदिर मुद्दे पर धर्म संसद का आयोजन कर रही है.

नमो में भरोसा जताएँ मोदी को वोट दें हमें आशीर्वाद

शादी के वायरल अनोखे कार्ड के जरिये बीजेपी को वोट देने का उपहार देने की बात लिखी गई है. 

देश में चुनावी बयार बहना शुरू हो गई है. तमाम राजनैतिक पार्टियों के नेता अभी से उड़न खटोले की सवारी पर फर्राटा भरकर माहौल बनाने में जुटे हैं. ऐसे में अमेठी के अंदर बीजेपी के एक अदना से कार्यकर्ता ने अपनी पार्टी के लिए बड़ा काम किया है जो चर्चा का विषय बन गया है. शादी के वायरल अनोखे कार्ड के जरिये बीजेपी को वोट देने का उपहार देने की बात लिखी गई है.

विनायक त्रिपाठी नाम के अपील कर्ता अमेठी के जामो थाने के निवासी हैं. वह अमेठी युवा मोर्चे से जुड़े हैं. विनायक ने कार्ड पर एक संदेश लिखवाया है, ‘2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को वोट ही हमारा उपहार है. हम अमेठी से एक कमल दिल्ली भेजने के लिए अपील करते हैं.’ यह कार्ड इन दिनों बीजेपी कार्यकर्ताओं के लिए सोशल मीडिया पर शेयर करने का एक साधन बन गया है. गौरतलब हो कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को संसदीय क्षेत्र से वापस लौटे घंटे भी नहीं बीते थे कि शादी के एक कार्ड ने अमेठी की सियासत में भूचाल ला दिया. सोशल मीडिया पर वायरल शादी का कार्ड बीजेपी के युवा मोर्चा के नेता के घर का है. 

अमेठी में ये राजनैतिक उफान तब आया है जब अभी कल ही राहुल गांधी ने बहन प्रियंका को पार्टी का बड़ा पद देकर उनको प्रत्यक्ष रूप से राजनीति में लाए हैं. ये खबर देश प्रदेश के साथ साथ अमेठी में जैसे पहुंची अमेठी के कांग्रेसियों के अलावा अमेठी के आम लोग भी गदगद हो गए थे. जगह जगह खुशियां मनाई जा रही थी, लेकिन अब इस कार्ड ने प्रियंका पर चर्चा कम करते हुए मोदी-मोदी की चर्चा शुरू करा दी है. 

Yuvraj & Sakshi

आपको बता दें कि इससे पहले सूरत के एक युवा की शादी का कार्ड भी सोशल मीडिया पर खूब छाया हुआ था. सूरत के युवराज पोखरना और साक्षी अग्रवाल ने अपनी शादी के कार्ड पर भगवान गणेश के बजाए राफेल की तस्वीर छपवाई थी. राफेल को लेकर पीएम मोदी की तारीफ करता और उसके फायदे गिनाता यह कार्ड सोशल मीडिया पर छाया हुआ था. इस शादी के कार्ड के चर्चे प्रधानमंत्री कार्यालय तक भी पहुंच गए थे, जिसके बाद पीएम मोदी की ओर से इस जोड़े को शादी से पहले बधाई और आशीर्वाद मिला था.

“उन्होंने हमारी जमीन छीनी है,वो यहां रहने के लायक नहीं है”, संजय सिंह

भारतीय राजनीति में किसानों का बहुत महत्व है उनके द्वारा उगाये गए प्याज़ हों या खुद उनकी ज़मीन। नेता किस तरह उनकी ज़मीन हड़पते हैं इसकी एक बानगी है कौसर के इंडस्ट्रियल इलाके में 65.57 एकड़ साइकल फैक्ट्री की ज़मीन को “राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट” द्वार खरीदा जाना और बाद में ज़ाहिर होने पर उस सौदे का अमान्य होना। प्रश्न उठता है जब साइकल फैक्ट्री का प्रोजेक्ट फेल कर दिया गया तब किसानों से किया गया नौकरी का वादा भी फेल हो गया।

किसान सालों से एक के बाद एक फेल होते प्रोजेक्ट्स के कारण अपनी ज़मीन, नौकरी की उम्मीद से हाथ धोते रहे। पर क्या प्रोजेक्ट के फेल होने पर अधिगृहीत ज़मीन किसानों को वापिस की गयी? क्या नौकरी का वादा किसी और प्रोजेक्ट में पूरा नहीं किया जा सकता था?

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी बुधवार को लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार करने अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी गए थे. इस दौरान एक तरफ जहां वो चुनाव प्रचार में लगे हुए थे तो वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग राहुल गांधी के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए नजर आए. दरअसल ये लोग अमेठी के किसान थे जो कांग्रेस पर उनकी जमीन हड़पने का आरोप लगा रहे थे.

बुधवार को गौरीगंज शहर में विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों ने बताया कि उन्होंने अपनी जमीन राजीव गांधी फाउंडेशन को दी थी. उनकी मांग है कि या तो उनकी जमीन उन्हें वापस की जाए या फिर उन्हें रोजगार दिया जाए.

NDTV की रिपोर्ट के मुताबिक विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों में से एक संजय सिंह ने कहा, हम राहुल गांधी से काफी निराश हैं. उन्हें इटली वापस चले जाना चाहिए. वो यहां रहने के लायक नहीं है. उन्होंने हमारी जमीन छीनी है.

किसान ये प्रदर्शन सम्राट साइकिल फैक्ट्री के पास कर रहे थे. ये वही फैक्ट्री है जिसका उद्घाटन पूर्व प्रधानमंत्री रजीव गांधी ने किया था.

क्या है पूरा मामला?

दरअसल 1980 में जैन भाईयो ने कौसर के इंडस्ट्रियल इलाके में 65.57 एकड़ की जमीन ली थी. वो यहां एक कपंनी चलाना चाहते थे लेकिन प्राजेक्ट फेल हो गया. जिसके बाद 2014 में जमीन की नीलामी हो गई. नीलामी में खरीदी गई जमीन का भुगतान 1,50,000 रुपए की स्टांप ड्यूटी पर राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट की तरफ से  किया गया. बाद में UPSIDC ने इस निलामी को अमान्य कर दिया, जिसके बाद गौरीगंज कोर्ट ने आदेश दिया कि इस जमीन को UPSIDC के हवाले कर दिया जाए. तब से कागजों में तो ये जमीन UPSIDC के पास है लेकिन असल में रजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट के कब्जे में है.

इससे पहले केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी ने भी राहुल गांधी पर किसानों की जमीन हड़पने का आरोप लगाया था.

सिंधिया-शिवराज कि मुलाकात ने उड़ाई पार्टियों की नींद

पूर्व केंद्रीय मंत्री व कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बीच यहां सोमवार की रात को हुई मुलाकात ने कांग्रेस नेताओं को बेचैन कर दिया है. 
“हम दोनों के बीच कोई मनमुटाव नहीं है, कोई कड़वाहट नहीं है, मैं ऐसा व्यक्ति नहीं हूं जो चुनाव के समय की कड़वाहट को लेकर पूरी जिंदगी बिताऊं. जैसा कहा जाता है कि रात गई बात गई. इसलिए आगे की सोचना होगा.”  ज्योतिरादित्य सिंधिया
“इस मुलाकात से हतप्रभ हूं, चौहान ने तो कभी शिष्टाचार नहीं निभाया, मगर ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रेम कैसे उमड़ आया.” अजय सिंह

भोपाल: पूर्व केंद्रीय मंत्री व कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बीच यहां सोमवार की रात को हुई मुलाकात ने कांग्रेस नेताओं को बेचैन कर दिया है. पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह तो इस मुलाकात से हैरान हैं. सिंधिया और चौहान की मुलाकात को लेकर पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने मंगलवार के संवाददाताओं से चर्चा करते हुए कहा, “इस मुलाकात से हतप्रभ हूं, चौहान ने तो कभी शिष्टाचार नहीं निभाया, मगर ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रेम कैसे उमड़ आया.”

सिंधिया सोमवार की रात दिल्ली से भोपाल पहुंचे और अचानक पूर्व मुख्यमंत्री चौहान के आवास पर गए. दोनों नेताओं के बीच बंद कमरे में लगभग 45 मिनट बातचीत हुई. इस मुलाकात को लेकर राजनीति के गलियारों में चर्चाएं जारों पर है. मुलाकात के बाद सिंधिया ने संवाददाताओं से कहा, “हम दोनों के बीच कोई मनमुटाव नहीं है, कोई कड़वाहट नहीं है, मैं ऐसा व्यक्ति नहीं हूं जो चुनाव के समय की कड़वाहट को लेकर पूरी जिंदगी बिताऊं. जैसा कहा जाता है कि रात गई बात गई. इसलिए आगे की सोचना होगा.” 

सिंधिया ने आगे कहा, “मध्य प्रदेश का भविष्य संवारना है, उज्ज्वल करना है, इसलिए हमें सबको साथ लेकर चलना है, खासकर कांग्रेस की जिम्मेदारी है क्योंकि वह सत्ता में है. चुनाव मैदान में कश्मकश होती है, मगर चुनाव के बाद सबको मिलकर साथ काम करना चाहिए.” 

सिंधिया ने चौहान के साथ हुई बातचीत को अच्छा बताते हुए कहा, “वे हमारे राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं, उनसे मिलने आया था, बहुत सारी बातें हुईं.” 

सिंधिया से जब सवाल किया गया कि क्या कांग्रेस को विपक्ष का साथ मिलेगा? तब उन्होंने कहा कि विपक्ष को हमेशा अच्छी चीजों का साथ देना चाहिए और कमियों को उजागर करना चाहिए. देश के प्रजातंत्र में विपक्ष की भूमिका भी उतनी ही महत्वपूर्ण होती है, जितनी सत्तापक्ष की होती है. केंद्र में बतौर विपक्ष कांग्रेस का महत्वपूर्ण योगदान है, अपेक्षा है कि इसी तरह का राज्य में भाजपा का रहेगा.

पूर्व मुख्यमंत्री चौहान ने भी इस मुलाकात को सौजन्य मुलाकात करार दिया है. इससे पहले चौहान का मुख्यमंत्री कमलनाथ के शपथ ग्रहण समारोह में मंच पर जाना और सिंधिया व कमलनाथ द्वारा चौहान का गर्मजोशी से स्वागत खासा चर्चाओं में रहा था. अब यह मुलाकात सियासी गलियारों में चर्चा में है.