केलेंडर पर बवंडर

कोरोना संकट के दौर में मोदी सरकार पर लगातार हमलावर रहे राहुल गांधी ने मंगलवार को एक बार फिर हमला बोलते हुए इस साल फरवरी से लेकर जुलाई तक की एक टाइमलाइन पेश करते हुए मोदी सरकार पर निशाना साधा। कुछ इसी अंदाज में भारतीय जनता पार्टी ने भी पलटवार किया।

नई दिल्ली: 

कोरोना संकट के दौर में मोदी सरकार पर लगातार हमलावर रहे राहुल गांधी ने मंगलवार को एक बार फिर हमला बोलते हुए इस साल फरवरी से लेकर जुलाई तक की एक टाइमलाइन पेश करते हुए मोदी सरकार पर निशाना साधा। कुछ इसी अंदाज में भारतीय जनता पार्टी ने भी पलटवार किया। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भी राहुल गांधी के अंदाज में हर महीने की अलग-अलग उपलब्धियां गिनवाई, जिनमें शाहीन बाग से लेकर राजस्थान की लड़ाई तक शामिल है।

केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने ट्विटर पर लिखा कि राहुल गांधी जी अपने पिछले 6 महीने की उपलब्धियों पर आप भी ध्यान दें..फरवरी: शाहीन बाग और दंगे, मार्च: ज्योतिरादित्य सिंधिया और मध्य प्रदेश को गंवाना, अप्रैल: प्रवासी मजदूरों को उकसाना, मई: कांग्रेस की ऐतिहासिक हार की छठी सालगिरह, जून: चीन का बचाव करना, जुलाई: राजस्थान में कांग्रेस पतन के कगार पर।

प्रकाश जावड़ेकर ने यह भी लिखा कि राहुल बाबा आप भारत की उपलब्धियां भी लिख लें जिनमें कोरोना के खिलाफ जंग जारी है, औसतन केस के मुकाबले में देश की स्थिति बेहतर है, एक्टिव केस और मौत के आंकड़े में अमेरिका के मुकाबले भारत की स्थिति बेहतर है। आपने मोमबत्तियां जलाने का मजाक उड़ाकर देश की जनता और कोरोना वॉरियर्स का मजाक उड़ाया है।

बता दें कि सरकार पर तंज कसते हुए राहुल ने पीएम मोदी के ‘आत्मनिर्भर’ भारत के नारे को अलग ढंग से परिभाषित किया। बता दें कि राहुल गांधी लॉकडाउन के समय से ही सरकार की आर्थिक और विदेश नीतियों पर वीडियो और ट्वीट के माध्यम से हमला बोलते रहे हैं। 

राहुल ने मंगलवार को ट्वीट करते हुए कोरोना काल में सरकार की उपलब्धियां गिनाई हैं। राहुल ने लिखा है कि फरवरी- नमस्ते ट्रंप, मार्च- MP में सरकार गिराई, अप्रैल- मोमबत्ती जलवाई, मई- सरकार की 6वीं सालगिरह, जून- बिहार में वर्चुअल रैली, जुलाई- राजस्थान सरकार गिराने की कोशिश। राहुल इस ट्वीट के आखिर में लिखते हैं कि इसी लिए देश कोरोना की लड़ाई में ‘आत्मनिर्भर’ है।

कॉंग्रेस V/s कॉंग्रेस फैसला 24 तक सुरक्षित

राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष सीपी जोशी द्वारा सचिन पायलट समेत 19 विधायकों को दल-बदल कानून के तहत दिए गए नोटिस पर मंगलवार को हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. कोर्ट 24 अगस्त को अपना फैसला सुनाएगा. ऐसे में फिलहाल दोनों खेमों के लिए टेंशन बढ़ गई है.

जयपुर. 

राजस्थान में चल रहा सत्ता का संग्राम थमने का नाम नहीं ले रहा है. कांग्रेस संगठन और राज्य सरकार में हुए दो फाड़ के बाद सीएम अशोक गहलोत और बगावत करने वाले पूर्व पीसीसी चीफ एवं डिप्टी सीएम सचिन पायलट खेमा अलग-अलग शहरों के होटलों में डेरा जमाये हुए हैं. गहलोत खेमा जयपुर में फेयरमोंट लग्जरी होटल में एकत्र है तो पायलट गुट दिल्ली के एक होटल में बंद है. दोनों तरफ से तलवारें खिंची हुई हैं. सत्ता के संघर्ष में नित नये पैंतरे आजमाये जा रहे हैं. इधर, हाईकोर्ट से पायलट खेमे को राहत मिल गई है. राजस्थान हाईकोर्ट ने 24 जुलाई तक स्पीकर को कार्रवाई से रोक दिया है.

राजनीतिक माहौल गरमाया

मालूम हो कि इस पूरे संकट के दौरान पार्टी व्हिप के उल्लंघन के मामले में सचिन पायलट समेत कांग्रेस के 19 बागी विधायकों को थमाये गए नोटिस को लेकर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. वहीं इस बीच आरोप-प्रत्यारोप जोर पकड़ रहे हैं. पिछले सप्ताह राजस्थान की राजनीति में भूचाल लाने वाले ऑडियो क्लिप धमाके और सोमवार को कांग्रेस विधायक गिरराज सिंह मलिंगा की ओर से सचिन पायलट पर लगाये गए 35 करोड़ की पेशकश के आरोपों के बाद राजनीतिक माहौल पूरी तरह से गरमाया हुआ है. इस दरम्यान विधायक-खरीद फरोख्त प्रकरण में एसओजी और एसीबी की जांच भी तेजी से चल रही है.

हाईकोर्ट में सुनवाई

सियासी संकट के बीच पायलट गुट के कांग्रेस के बागी विधायकों को पार्टी व्हिप उल्लंघन मामले में विधानसभा अध्यक्ष की ओर से थमाये गए नोटिस पर मंगलवार को भी हाईकोर्ट में सुनवाई जारी रही. सीजे इंद्रजीत मोहंती और जस्टिस प्रकाश गुप्ता की बेंच में यह सुनवाई हुई. पायलट खेमे की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने आज रिजॉइनडर पर बहस की. उसके बाद इस मामले में पक्षकार बनने के लिए लगाए प्रार्थना-पत्र पर उनके अधिवक्ताओं को सुना गया.

कांग्रेस विधायक दल की बैठक

वहीं आज सुबह 11 बजे जयपुर में कांग्रेस विधायक दल की बैठक हुई. यह बैठक होटल फेयरमोंट में हुई. इस होटल में सरकारी खेमा डटा हुआ है. कांग्रेस विधायक दल की बैठक सीएम अशोक गहलोत की अध्यक्षता में हुई. बैठक में पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता भी मौजूद रहे.

मध्य प्रदेश के राज्यपाल और लखनऊ से पूर्व सांसद लालजी टंडन नहीं रहे, वह 85 वर्ष के थे

मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन का मंगलवार सुबह निधन हो गया। 85 वर्षीय लालजी टंडन काफी दिनों से बीमार चल रहे थे। राजनीति में सभासद से संसद और राजभवन तक सफर तय करने वाले लालजी टंडन के जीवन पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का काफी असर रहा।

उत्तर प्रदेश में 3 दिन का शोक

नई दिल्ली: 

मध्य प्रदेश के राज्यपाल और लखनऊ से पूर्व सांसद लालजी टंडन का निधन हो गया,  लखनऊ के मेदांता में उनका इलाज चल रहा था। वह 85 साल के थे। उनके बेटे और कैबिनेट मंत्री आशुतोष टण्डन ने लालजी टंडन के निधन की जानकारी ट्वीटर के माध्यम से दी। आशुतोष टंडन ने ट्वीटर पर लिखा बाबू जी नहीं रहे। बता दें कि लालजी टण्डन पिछले काफी वक्त से गंभीर रूप से बीमार चल रहे थे। लखनऊ के मेदांता में वह 14 जून से भर्ती थे। ज्यादातर समय वह वेंटिलेटर पर ही रहते थे।

लालजी टंडन की गिनती भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेताओं में रही। मध्य प्रदेश से पहले वह बिहार के राज्यपाल की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। लालजी, अटल बिहारी बाजपेयी के करीबियों में माने जाते थे। लालजी टंडन खुद कहा करते थे कि अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति में उनके साथी, भाई और पिता तीनों की भूमिका अदा की है. अटल के साथ उनका करीब 5 दशकों का साथ रहा। इतना लंबा साथ अटल का शायद ही किसी और राजनेता के साथ रहा हो। यही वजह रही कि अटल बिहारी वाजपेयी के बाद उनकी राजनीतिक विरासत को लखनऊ में टंडन ने ही संभाला था और सांसद चुने गए थे।

बचपन से ही संघ के साये में

लालजी टंडन का जन्म 12 अप्रैल 1935 में हुआ था। अपने शुरुआती जीवन में ही लालजी टंडन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ गए थे। उन्होंने स्नातक तक पढ़ाई की. इसके बाद 1958 में लालजी का कृष्णा टंडन के साथ विवाह हुआ। उनके बेटे गोपाल जी टंडन इस समय उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में मंत्री हैं। संघ से जुड़ने के दौरान ही पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से उनकी मुलाकात हुई। लालजी शुरू से ही अटल बिहारी वाजपेयी के काफी करीब रहे।

जेपी आंदोलन में हुए शामिल

लालजी टंडन का राजनीतिक सफर साल 1960 में शुरू हुआ। उन्होंने इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ जेपी आंदोलन में भी बढ़-चढकर हिस्सा लिया था। इसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। टंडन दो बार पार्षद चुने गए और दो बार विधान परिषद के सदस्य रहे। 1978 से 1984 तक और 1990 से 1996 तक लालजी टंडन दो बार उत्तर प्रदेश विधानपरिषद के सदस्य रहे। इस दौरान 1991-92 की उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह सरकार में मंत्री बने।

यूपी की राजनीति में प्रयोग

लालजी टंडन को उत्तर प्रदेश की राजनीति में कई अहम प्रयोगों के लिए भी जाना जाता है। 90 के दशक में प्रदेश में बीजेपी और बसपा की गठबंधन सरकार बनाने में भी उनका अहम योगदान माना जाता है। इसके बाद लालजी 1996 से 2009 तक लगातार तीन बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। बसपा सुप्रीमो मायावती उन्हें अपने बड़े भाई की तरह मानती थीं और राखी भी बांधा करती थीं। 1997 में वह प्रदेश के नगर विकास मंत्री रहे।

संभाली अटल की विरासत

साल 2009 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के राजनीति से दूर होने के बाद लखनऊ लोकसभा सीट खाली हो गई। इसके बाद भाजपा ने लालजी टंडन को ही यह सीट सौंपी। लोकसभा चुनाव में लालजी टंडन ने लखनऊ लोकसभा सीट से आसानी से जीत हासिल की और संसद पहुंचे। लालजी टंडन को साल 2018 में बिहार के राज्यपाल की जिम्मेदारी सौंपी गई थी और फिर कुछ दिनों के बाद मध्यप्रेदश का राज्यपाल बनाया गया था।

आशोक गहलोत ने बंधक बनाए अपने ही विधायक, रिज़ॉर्ट राजनीति जारी है

राजस्थान राजनैतिक संकट के दौरान गहलोत द्वारा जो बैठक सुबह 10 बजे बुलवाई गयी थी वह बैठा 2 बजे तक भी शुरू नहीं हो पाई थी। अव्वल तो बैठा में पूरे विधायक नहीं पहुंचे और जो 96 विधाया पहुंचे भी उन्हे बंधक बना लिया गया।

राजस्थान (ब्यूरो) – 13 जुलाई

आशोक गहलोत ने बंधक बनाए अपने ही विधायक, मुख्यमंत्री निवास में सात बसों के आने से ही स्थिति स्पष्ट हो गयी थी की सरकार खतरे में है। गहलोत का दर इतना अधिक है की वह विधायकों से एक पल के लिए भी दूर नहीं हो सकते। इन सात बसों में विधायकों को ‘कूकस’ ले कर जाया जा रहा है। इस बात से साफ ज़ाहिर हो रहा है की गहलोत को अपने आप पर ही भरोसा नहीं है।सचिन खेमे के 10 विधायक भी इन्हीं बंधकों में शामिल हैं।

राजस्थान कॉंग्रेस ने जो सुबह पायलट के पोस्टर उतारने की गलती की उससे जो संदेश जाना था वह तो गया ही साथ ही रही सही कसर सुरजेवाला के बयानों ने पूरी कर दी। सुरजेवाला आए तो संकट का हल निकालने थे परंतु उन्होने सचिन पायलट को राष्ट्रीय मंच से सीधे सीधे चुनौती देने के अंदाज़ में अपील की की आपके पास 48 से 72 घंटे हैं आप वापिस आ जायें इस बयान का क्या अर्थ निकाला जाये कि आ जाओ अन्यथा 48 घंटों से 72 घंटों के पश्चात सब दरवाजे बंद।

राजस्‍थान में मचे सियासी भूचाल के बीच कांग्रेस विधायक दल की बैठक शुरू होनी है। इस बैठक के लिए विधायकों का आना शुरू हो गया है। कांग्रेस पार्टी की ओर से व्हिप जारी किया गया है कि जो भी इस बैठक में नहीं आएगा, उसपर कड़ा एक्शन लिया जाएगा। जानकारी के मुताबिक, डिप्‍टी सीएम सचिन पायलट (CM Sachin Pilot) समर्थक 17 विधायक इसके बावजूद बैठक में शिरकत करने नहीं पहुंचे।

बैठक में 96 विधायक पहुंचे थे जबकि दावा 102 का किया गया था।

बैठक में न पहुंचने वाले विधायक

  1. राकेश पारीक
  2. मुरारी लाल मीणा
  3. जीआर खटाना
  4. इंद्राज गुर्जर
  5. गजेंद्र सिंह शक्तावत
  6. हरीश मीणा
  7. दीपेंद्र सिंह शेखावत
  8. भंवर लाल शर्मा
  9. इंदिरा मीणा
  10. विजेंद्र ओला
  11. हेमाराम चौधरी
  12. पीआर मीणा
  13. रमेश मीणा
  14. विश्वेंद्र सिंह
  15. रामनिवास गावड़िया
  16. मुकेश भाकर
  17. सुरेश मोदी

क्या राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बाजी पलट दी है?

राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बाजी पलट दी है. उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट की बगावत से गहलोत सरकार पर छाए संकट के बाद फिलहाल छंटते नजर आ रहे हैं. सीएम आवास के अंदर गहलोत ने अपने समर्थक विधायकों की मीडिया के सामने परेड कराई है. गहलोत खेमे ने दावा किया है कि उनके पास 109 विधायक हैं. यानी बहुमत के आंकड़े 101 से ज्यादा विधायक उनके पास हैं. हालांकि, सचिन पायलट का कहना है कि उनके पास 25 विधायक हैं. लेकिन फिलहाल अशोक गहलोत की सरकार बचती नजर आ रही है. अब प्रियंका गांधी ने भी इस संकट को खत्म करने के लिए मार्चो संभाल लिया है. प्रियंका के अलावा राहुल गांधी समेत कुल 5 बड़े नेताओं ने पायलट से बात कर उन्हें समझाने की कोशिश की है.

राजस्थान (ब्यूरो)

सीएम अशोक गहलोत और डिप्‍टी सीएम सचिन पायलट के बीच सियासी मनमुटाव ने कांग्रेस आलाकमान की परेशानी बढ़ा दी है. तमाम प्रयासों के बावजूद सोमवार को सचिन पायलट (Sachin Pilot) की गैरमौजूदगी में ही राजस्‍थान कांग्रेस विधायक दल की बैठक हुई. इस बीच, सूत्रों के हवाले से यह खबर सामने आई है कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi) अब इस सियासी संकट को निपटाने के लिए सामने आई हैं. उनके दखल पर नाराज पायलट से फिर से बातचीत शुरू हुई है, ताकि हालात को सामान्‍य किया जा सके. जानकारी के मुताबिक, कांग्रेस कार्यालय से सचिन पायलट के उतारे गए होर्डिंग्‍स को फिर से लगा दिए गए हैं. बताया जाता है कि राजस्‍थान के राजनीतिक घटनाक्रम से कांग्रेस आलाकमान बेहद चिंतित है.

इससे पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के आवास पर बुलाई गई विधायक दल की बैठक में 100 से ज्यादा विधायकों के पहुंचने के बाद दो दिन से चल रहे सियासी घटनाक्रम का पटाक्षेप होता दिखा. सीएम गहलोत ने 10 से ज्यादा निर्दलीय विधायकों का समर्थन जुटाकर मीडिया को संकेत दिया कि उनकी सरकार सुरक्षित है. हालांकि इस बैठक में सचिन पायलट और उनके कुछ समर्थक विधायक शामिल नहीं हुए. पायलट के करीबी सूत्रों ने यह दावा भी किया था कि उनके गुट को 25 MLA का समर्थन हासिल है. उन्‍होंने स्‍पष्‍ट रूप से कहा था कि सीएम गहलोत की अध्यक्षता में होने वाली विधायक दल की बैठक में शामिल नहीं होंगे. बहरहाल, बदलते घटनाक्रम के बीच अब डिप्टी सीएम सचिन पायलट को मनाने की कवायद फिर से शुरू हो गई है.

आपको बता दें कि कांग्रेस के राजस्थान प्रभारी अविनाश पांडे ने आज सुबह मीडिया के साथ बातचीत में प्रदेश की सरकार को अस्थिर करने का आरोप भारतीय जनता पार्टी के ऊपर लगाया था. पांडे ने कहा था कि बीजेपी की साजिश को कामयाब नहीं होने दिया जाएगा. राजस्थान कांग्रेस के सब विधायक एकजुट हैं. उन्होंने कहा था कि बीजेपी हर राज्य में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी सरकारों को अस्थिर करने की साजिश रच रही है. वह कर्नाटक और मध्य प्रदेश की तरह राजस्थान में भी ऐसी घटनाएं दोहराना चाहती है, लेकिन इसे कामयाब नहीं होने दिया जाएगा.

कांग्रेस के बागी: सचिन आखिरी नहीं

  • राजस्थान में संकट में आई गहलोत की सरकार
  • कांग्रेस में उभर रहा युवा नेताओं का असंतोष
  • सिंधिया और हिमंता बिस्वा की राह पर पायलट

डेमोक्रेटिकफ्रंट॰कॉम सिंधिया के इस्तीफ़े को कांग्रेस के लिए ख़तरे की घंटी बताया था। उस समय भी कहा गया था कि, “ऐसा नहीं है कि सिंधिया से पहले कोई कांग्रेस नेता बीजेपी में शामिल नहीं हुआ. असम के हिमंता बिस्वा सरमा को देखिए. कांग्रेस ने उन्हें तवज्जो नहीं दी और अब वो बीजेपी में जाकर चमक रहे हैं. अब सिंधिया के इस्तीफ़े से कांग्रेस के अन्य युवा नेताओं के भी ऐसा क़दम उठाने की आशंका है.”

आज हम फिर दोहराते हैं कि सचिन आखिरी नहीं हैं, मिलिंद देवड़ा, आरपीएन सिंह और जितिन प्रसाद जैसे युवा नेताओं को पार्टी ने कोई अहम भूमिका नहीं दी है. ऐसे में उनमें असंतोष आना स्वाभाविक है। कांग्रेस के कई नेता बीच-बीच में पार्टी की अप्रभावी कार्यशैली और नेतृत्व की कमी का मुद्दा उठाते रहते हैं। ज़ाहिर है, कांग्रेस के अपने नेताओं में भी कम असंतोष नहीं है।

Sachin Pilot , Jyotiraditya Scindia , RPN Singh Milind Deora Jitin Prasada during the swearing-in ceremony for the new ministers at Rashtrapati Bhavan on October 28, 2012 in New Delhi, India

सारिका तिवारी, चंडीगढ़ – 13 जुलाई :

सियासत में हमेशा ओल्ड गार्ड के साथ युवा जोश के सामंजस्य को कामयाबी की सबसे मजबूत कड़ी समझा जाता है. ये फॉर्मूला कई मौकों पर कारगर होते हुए भी देखा गया है. मौजूदा वक्त में राजनीतिक संकट से जूझ रही कांग्रेस के लिए भी अनुभव और युवा सोच ने मिलकर जीत की कई कहानियां लिखी हैं, लेकिन अब हालात ऐसे हो गए हैं कि युवा चेहरे ही पार्टी के साथ-साथ दिग्गज नेताओं की चूलें हिला रहे हैं.

ताजा उदाहरण सचिन पायलट का है. राजेश पायलट जैसे कांग्रेसी दिग्गज के बेटे सचिन पायलट 26 साल की उम्र में कांग्रेस से सांसद बने तो 35 साल की उम्र में उन्हें केंद्रीय कैबिनेट में जगह दी गई. इसके बाद 2014 में जब उनकी उम्र 37 साल थी तो पार्टी ने राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कमान उनके हाथों में सौंप दी.

सचिन पायलट ने जी-तोड़ मेहनत की. पूरे प्रदेश में घूमकर तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार को एक्सपोज किया और अपने संगठन को मजबूती से आगे बढ़ाया. ये वो वक्त था जब अशोक गहलोत दिल्ली में राहुल गांधी के साथ देश की राजनीतिक बागडोर संभाले हुए थे. सचिन पायलट की मेहनत रंग लाई और 2018 में राजस्थान की जनता ने वसुंधरा सरकार उखाड़ फेंकी और कांग्रेस को सत्ता सौंप दी. हालांकि, जब जीत का सेहरा बंधने का नंबर आया तो अशोक गहलोत का तजुर्बा और प्रदेश व पार्टी में उनकी पकड़ सचिन पायलट की पांच साल की मेहनत पर भारी पड़ गई. तमाम खींचतान के बाद सचिन पायलट उपमुख्यमंत्री पद पर राजी हुए, लेकिन दोनों में तालमेल नहीं बैठ पाया. अब बात यहां तक पहुंच गई है कि सचिन पायलट बगावत पर उतर आए हैं और गहलोत सरकार संकट में आ गई है.

सिंधिया ने दिखाई कांग्रेस को जगह

इसी साल मार्च महीने में जब देश में कोरोना वायरस का संक्रमण अपने पैर पसार रहा था और देश होली के जश्न में डूबा हुआ था, मध्य प्रदेश और देश की राजनीति का बड़ा फेस माने जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस को ऐसा गम दिया कि पार्टी को सरकार से हाथ धोना पड़ा. पिता माधवराव सिंधिया की मौत के बाद सिंधिया ने 2001 में कांग्रेस ज्वाइन की और चुनाव-दर चुनाव गुना लोकसभा से जीतते चले गए. 2007 में केंद्र की मनमोहन सरकार में सिंधिया को मंत्री बनाकर बड़ा तोहफा दिया गया. लेकिन 2018 में जब मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में जीत मिलने के बाद पार्टी नेतृत्व ने कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाया तो सिंधिया के अरमान टूट गए. इसका नतीजा ये हुआ कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीजेपी का साथ देकर कमलनाथ की सरकार 15 महीने के अंदर ही गिरा दी.

हिमंता बिस्वा सरमा ने नॉर्थ ईस्ट से बाहर कराया

सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के लिए उन राज्यों में चुनौती बनकर उभरे जहां मुख्य विरोधी बीजेपी हमेशा से मजबूत रही है. लेकिन पार्टी के एक और युवा चेहरे रहे हिमंता बिस्वा सरमा ने कांग्रेस को जो नुकसान पहुंचाया वो ऐतिहासिक है. हिमंता बिस्वा सरमा कभी दिल्ली में बैठे कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व तक पहुंच रखते थे. लेकिन 2015 में उन्होंने कांग्रेस का हाथ छोड़ दिया. 1996 से 2015 तक हिमंता बिस्वा कांग्रेस में रहे और असम की कांग्रेस सरकार में मंत्रीपद भी संभाला.

कांग्रेस से हिमंता बिस्वा सरमा इतने नाराज हो गए कि उन्होंने बीजेपी में जाने का फैसला कर लिया. उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर उस वक्त गंभीर आरोप भी लगाए. इसके बाद 2016 असम विधानसभा चुनाव लड़ा और कैबिनेट मंत्री बने. इतना ही नहीं बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने हिमंता बिस्वा सरमा को नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (NEDA) का संयोजक भी बना दिया. NEDA, नॉर्थ ईस्ट भारत के कई क्षेत्रीय दलों का एक गठबंधन है. नेडा के संयोजक रहते हुए हिमंता बिस्वा सरमा बीजेपी के लिए सबसे बड़े संकटमोचक के तौर पर उभरकर सामने आए. नॉर्थ ईस्ट की राजनीति में शून्य कही जाने वाली बीजेपी ने असम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर जैसे राज्यों में सरकार बनाकर कांग्रेस का सफाया कर दिया. इसके अलावा नॉर्थ ईस्ट के अन्य राज्यों की सत्ता में भी बीजेपी का दखल बढ़ गया. हिमंता बिस्वा सरमा ने नॉर्थ ईस्ट की राजनीति में बीजेपी की बढ़त बनाने में अहम भूमिका अदा की.

इस तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जहां कमलनाथ जैसे दिग्गज को कुर्सी से हटाने का काम किया, वहीं सचिन पायलट अब कांग्रेस के जमीनी नेताओं में शुमार अशोक गहलोत के लिए परेशानी का सबब बन गए हैं. वहीं, हिमंता बिस्वा सरमा लगातार कांग्रेस को बड़ा आघात पहुंचा रहे हैं. यानी कांग्रेस के ये तीन युवा चेहरे रहे आज देश की इस सबसे पुरानी पार्टी के बड़े-बड़े दिग्गजों को सियासी धूल चटा रहे हैं.

गहलोत के करीबियों पर आईटी के छापों से कांग्रेस में खलबली

  • राजीव अरोड़ा और धर्मेंद्र राठौड़ के ठिकानों पर छापेमारी
  • केंद्रीय रिजर्व पुलिस के साथ आयकर विभाग कर रही पड़ताल

आज सुबह दिल्ली से जयपुर पहुंची आयकर विभाग की टीम ने केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों के साथ मिलकर छापे की यह कार्रवाई की है। आईटी टीम ने कूकस स्थित होटल फेयरमाउंट सहित प्रदेशभर में कांग्रेस नेताओं के 22 ठिकानों पर एक साथ छापेमारी की। फेयरमाउंट होटल के बारे में बताया गया कि यह सीएम गहलोत के करीबी शख्स का होटल है। आयकर विभाग ने जयपुर के अलावा कोटा, दिल्ली और मुंबई के ठिकानों पर भी छापे की कार्रवाई को अंजाम दिया है। विभाग के सूत्रों के मुताबिक बड़े हवाला कारोबार और टैक्स चोरी की शिकायतों के आधार पर छापेमारी की कार्रवाई की गई है। सनद रहे की यह छापेमारी अचानक नहीं हुई है। रविकांत शर्मा से विदेश से आए करोड़ों रुपये के बारे में पूछताछ की जा रही है. पिछले दिनों ही ईडी ने रविकांत शर्मा को नोटिस भेजा था।

अशोक गहलोत और धर्मेंद्र राठौड़

राजस्थान(ब्यूरो):

राजस्थान में सियासी संकट के बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबियों पर आयकर विभाग का शिकंजा कसना शुरू हो गया है. आयकर विभाग के 200 से अधिक अधिकारियों और कर्मचारियों ने दिल्ली और राजस्थान के कई जगहों पर छापेमारी की है. यह छापेमारी अशोक गहलोत के करीबी धर्मेंद्र राठौड़ और राजीव अरोड़ा के ठिकानों पर की गई है.

सीएम अशोक गहलोत के करीबी और ज्वैलरी फर्म के मालिक राजीव अरोड़ा के ठिकानों पर सोमवार सुबह आयकर विभाग की टीम पहुंची. उनके घर और दफ्तरों पर छापेमारी चल रही है. खास बात है कि इस छापेमारी की सूचना स्थानीय पुलिस को नहीं दी गई थी. आयकर विभाग की टीम केंद्रीय रिजर्व पुलिस के साथ छापेमारी को अंजाम दे रही है.

राजीव अरोड़ा के अलावा धर्मेंद्र राठौड़ के आवास और दफ्तर पर आयकर विभाग की टीम छापेमारी कर रही है. धर्मेंद्र अरोड़ा को भी सीएम अशोक गहलोत का करीबी बताया जाता है. सूत्रों का कहना है कि राजीव अरोड़ा और धर्मेंद्र राठौड़ से देश के बाहर किए गए ट्रांजेक्शन के बारे में पूछताछ की जा रही है.

गहलोत के बेटे के बिजनेस पार्टनर पर ईडी की छापेमारी

सीएम अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत के बिजनेस पार्टनर रविकांत शर्मा पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने छापेमारी की है. रविकांत शर्मा से विदेश से आए करोड़ों रुपये के बारे में पूछताछ की जा रही है. पिछले दिनों ही ईडी ने रविकांत शर्मा को नोटिस भेजा था.

कांग्रेस ने छापेमारी पर उठाए सवाल

राजीव अरोड़ा और धर्मेंद्र अरोड़ा के करीब 24 ठिकानों पर चल रही छापेमारी पर कांग्रेस ने सवाल उठाए हैं. कांग्रेस ने बीजेपी पर गहलोत सरकार को अस्थिर करने का आरोप लगाया. साथ ही कांग्रेस ने बिना स्थानीय पुलिस को सूचना दिए आयकर विभाग की छापेमारी पर भी सवाल पूछा.

बीजेपी ने किया आरोपों से इनकार

बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने पत्रकारों से बात करते हुए कांग्रेस के आरोपों से इनकार कर दिया है. संबित पात्रा का कहना है कि कोरोना के कारण आयकर विभाग ने छापेमारी रोकी थी. अब फिर से आयकर विभाग की कार्रवाई कर रही है. इस छापेमारी और राजस्थान के सियासी संकट का कोई लेना-देना नहीं है.

राजस्थान कांग्रेस का आर्थिक मैनेजमेंट देखते हैं राजीव अरोड़ा

आयकर विभाग की टीम ने जिन राजीव अरोड़ा के ठिकानों पर छापेमारी की है, वह राजस्थान कांग्रेस का आर्थिक मैनेजमेंट भी देखते हैं. इस छापेमारी के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं. कांग्रेस, बीजेपी पर हमलावर है और गहलोत सरकार को अस्थिक करने का आरोप लगा रही है.

कमलनाथ के करीबी प्रद्युमान सिंह भाजपा में शामिल, बने नागरिक आपूर्ति निगम का अध्यक्ष

  • एमपी में प्रद्युम्न सिंह लोधी को बनाया गया नागरिक आपूर्ति निगम का अध्यक्ष
  • प्रदीप जायसवाल को मध्य प्रदेश राज्य खनिज निगम का अध्यक्ष बनाया गया

एक ओर जहां सबकी निगाहें राजस्थान में सचिन – गहलोत प्रकरण पर लगीं थीं वहीं उमा भारती की नाराजगी मिटाने के लिए मध्यप्रदेश में प्रद्युमान सिंह लोधी को भाजपा में शामिल करवा लिया गया। बीजेपी में शामिल होने से पहले प्रद्युम्न सिंह लोधी पहले श्यामला हिल्स स्थित उमा भारती के बंगले पहुंचे और वहां पर मुलाकात के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मिलने सीएम हाउस गए. सीएम हाउस में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें मिठाई खिलाई और बीजेपी में उनका स्वागत किया. इसके बाद सभी नेता बीजेपी प्रदेश मुख्यालय पहुंचे और वहां विधिवत रूप से प्रद्युम्न सिंह लोधी ने बीजेपी ज्वाइन कर ली.

दिल्ली(ब्यूरो):

मध्य प्रदेश में एक और कांग्रेस विधायक प्रद्युम्न सिंह लोधी ने इस्तीफा देकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का दामन थाम लिया है. इसके साथ ही अब उन्हें रविवार को नागरिक आपूर्ति निगम का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है. वहीं निर्दलीय कोटे से विधायक प्रदीप जायसवाल को मध्य प्रदेश राज्य खनिज निगम का अध्यक्ष बनाया गया है.

एक तरफ जहां राजस्थान में सियासत गर्मा रही है तो वहीं मध्य प्रदेश में कांग्रेस नेताओं का बीजेपी में शामिल होने का सिलसिला अभी भी चल रहा है. कांग्रेस के विधायक रहे प्रद्युम्न सिंह लोधी आज ही बीजेपी में शामिल हुए हैं. वहीं बीजेपी में आने के साथ ही लोधी को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया है.

उमा भारती की नाराजगी का असर?

प्रद्युम्न सिंह लोधी का बीजेपी में शामिल होना कांग्रेस को झटका देने से ज्यादा उमा भारती की नाराजगी को दूर करने के तौर पर देखा जा रहा है. दरअसल हाल ही में हुए मंत्रिमंडल विस्तार में उमा भारती की नाराजगी सामने आई थी. उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा को एक संदेश भेजते हुए मंत्रिमंडल में जातिगत और क्षेत्रीय संतुलन ना होने की वजह से नाराजगी जाहिर की थी. माना जा रहा है कि उमा की इसी नाराजगी को दूर करने के लिए बड़ा मलहरा से विधायक प्रद्युम्न सिंह लोधी को बीजेपी में शामिल कराया गया है. खुद उमा भारती भी इस सीट से विधायक रह चुकी हैं.

इसके साथ ही उन्हें नागरिक आपूर्ति निगम का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है. प्रद्युम्न सिंह लोधी कांग्रेस की तरफ से बड़ा मलहरा क्षेत्र के विधायक रहे हैं. हालांकि उन्होंने विधायकी से अपनी इस्तीफा प्रोटेम स्पीकर रामेश्वर शर्मा को सौंप दिया है और स्पीकर रामेश्वर शर्मा ने लोधी का इस्तीफा मंजूर भी कर लिया है.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मौजूदगी में लोधी ने बीजेपी ज्वॉइन की है. इससे पहले मार्च में कांग्रेस के 22 ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था. जिसके बाद कमलनाथ सरकार गिर गयी थी. वहीं लोधी के बीजेपी में शामिल होने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ट्वीट के माध्यम से उनका अभिनंदन किया.

प्रदीप जायसवाल खनिज निगम के अध्यक्ष

इसके अलावा निर्दलीय कोटे से विधायक प्रदीप जायसवाल को मध्य प्रदेश राज्य खनिज निगम का अध्यक्ष बनाया गया है. प्रदीप जायसवाल शिवराज सरकार को समर्थन दे रहे हैं. इससे पहले वो निर्दलीय कोटे से कमलनाथ सरकार में खनिज मंत्री थे लेकिन कमलनाथ के इस्तीफा देते ही बीजेपी को समर्थन दे दिया था.

अब 25 सीटों पर होगा उपचुनाव

प्रद्युम्न सिंह लोधी ने बीजेपी में शामिल होने से पहले विधानसभा के प्रोटेम स्पीकर रामेश्वर शर्मा को अपना इस्तीफा सौंप दिया था. बीजेपी में औपचारिक तौर पर उनके शामिल होने के कुछ वक्त पहले ही विधानसभा सचिवालय की ओर से उनका इस्तीफा मंजूर कर लिया गया. और बड़ा मलहरा सीट को रिक्त घोषित कर दिया गया है. इस सीट के खाली होने के बाद अब मध्य प्रदेश में 24 के बजाय 25 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव होगा. इससे पहले कांग्रेस के 22 विधायक इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हुए थे, जबकि दो सीटें विधायकों के निधन की वजह से खाली हुई हैं.

सचिन द्वारा 30 विधायकों और कुछ निर्दलियों के साथ के दावे के साथ अल्पमत में गहलोत सरकार

राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार पर संकट गहराता जा रहा है। अपने गुट के विधायकों सहित बागी सुर लेकर दिल्ली पहुँचे उप-मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने पुराने कॉन्ग्रेसी नेता व साथी ज्योतिरादित्य सिंधिया से मुलाकात की। यह मुलाकात दिल्ली में रविवार (12 जुलाई, 2020) को तब हुई जबकि आज के ही दिन शाम में सचिन पायलट और राहुल गाँधी की मुलाकात होनी थी। पार्टी के सूत्रों की मानें तो राहुल गांधी ने पायलट से फोन पर बात कर सचिन को समझा दिया था और यह भी दावा किया गया की पायलट राहुल की बात मान गए हैं और अगले दिन गहलोत के घर होने वाली बैठक में सुरजेवाला और माकन के साथ शामिल होंगे। सचिन ने बैठक में न शामिल होने की बात कह कर पार्टी के दावे की पोल खोल दी। इधर सचिन खेमे से यह दावा किया जा रहा है की कॉंग्रेस के 30 विधायक और कुछ स्वतंत्र विधायक भी उनके साथ हैं। इस दावे के साथ ही गहलोत की सरार अल्पमत में आ जाती है।

राजविरेन्द्र वसिष्ठ, चंडीगढ़:

राजस्थान में अशोक गहलोत की अगुवाई वाली कॉन्ग्रेस सरकार का संकट गहरा गया है। उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने अपने साथ 30 विधायकों के होने का दावा किया है। सूत्रों के अनुसार सोमवार को कॉन्ग्रेस विधायक दल की बैठक में भी वे शामिल नहीं होंगे।

मुख्यमंत्री गहलोत ने आज (जुलाई 12, 2020) रात पार्टी के विधायकों और मंत्रियों की बैठक बुलाई थी। इसमें 90 विधायकों के उपस्थित होने का दावा किया जा रहा है। कॉन्ग्रेस विधायक राजेंद्र गुड्डा ने कुछ बीजेपी विधायक के भी साथ होने की बात कही है।

पार्टी सूत्रों से जानकारी मिली है कि पायलट कल यानी सोमवार (जुलाई 13, 2020) की सुबह होने वाली कॉन्ग्रेस विधायक दल की बैठक में शामिल नहीं होंगे। पायलट के नजदीकी सूत्रों का कहना है कि 30 से ज्यादा कॉन्ग्रेस विधायक और कुछ निर्दलीय विधायक पायलट के समर्थन में हैं। यदि उनका दावा सही है तो कॉन्ग्रेस सरकार अल्पमत में आ चुकी है।

बैठक सुबह 10.30 बजे मुख्यमंत्री गहलोत के आवास पर होगी। सभी विधायकों को जयपुर पहुँचने को कहा गया है। इस बैठक में वरिष्ठ कॉन्ग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला, अजय माकन और अविनाश पांडे भी शामिल होंगे। ये यहाँ पर विधायकों से बातचीत करेंगे।

राजस्थान में सत्ताधारी कॉन्ग्रेस सरकार के लिए संकट के बादल गहराते जा रहे हैं। विधायकों की खरीद-फरोख्त के मामले में एसओजी (विशेष संचालन समूह) की ओर से पूछताछ के लिए बुलाए जाने के बाद राज्य के उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट विधायकों के साथ दिल्ली पहुँचे हैं।

पायलट के नाराज होने की वजह विधायकों की खरीद-फरोख्त के मामले में स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) का नोटिस बताया जा रहा है। एसओजी ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत समेत अन्य मंत्रियों को भी नोटिस भेजा है। हालाँकि, सीएम ने कहा है कि यह सामान्य प्रक्रिया है। नोटिस के बाद पायलट समर्थक विधायक नाराज हैं। उनका कहना है कि सरकार ने सभी हदें पार कर दी हैं और अब अशोक गहलोत के साथ काम करना असंभव है।

गौरतलब है कि करीब पौने दो साल पहले राजस्थान में सत्ता में आई कॉन्ग्रेस 23 दिन पहले राज्यसभा चुनाव के बाद पूरी तरह सुरक्षित नजर आ रही थी। खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पार्टी आलाकमान आश्वस्त थे कि उनकी सरकार के पास पूरा बहुमत है और पाँच साल कोई मुश्किल होने वाली नहीं है, लेकिन गहलोत सरकार अब संकट से घिरती नजर आ रही है।

गहलोत और पार्टी आलाकमान की मुश्किलें उपमुख्यमंत्री व प्रदेश कॉन्ग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट व उनके समर्थकों ने बढ़ा दी हैं। रविवार को दिनभर जयपुर से लेकर दिल्ली तक कॉन्ग्रेस की गतिविधियाँ तेज रहीं। गहलोत की दिन में कई बार राष्ट्रीय संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल, वरिष्ठ नेता अहमद पटेल व राष्ट्रीय महासचिव अविनाश पांडे से बात हुई। गहलोत से बात होने के बाद पांडे ने पायलट से भी संपर्क करने का प्रयास किया, लेकिन बात नहीं हो सकी।

बता दें कि अशोक गहलोत सुबह से ही अपने आवास पर कॉन्ग्रेस के विधायकों और मंत्रियों से मिल रहे हैं। सभी मंत्रियों और विधायकों को कहा गया है कि वह अपने क्षेत्र को छोड़कर जयपुर पहुँचे। इससे पहले कपिल सिब्बल ने अपनी ही पार्टी पर तंज कसते हुए कहा था कि क्या कॉन्ग्रेस तभी जागेगी, जब उसके अस्तबल से घोड़े चले जाएँगे?

वहीं पायलट अपने पुराने साथी ज्योतिरादित्य सिंधिया से मिले थे। जिसके बाद सिंधिया ने राजस्थान की सियासी हालात को निराशाजनक बताते हुए कहा था कि कॉन्ग्रेस में काबिलियत की कद्र नहीं है। बताया जा रहा है कि पूर्व कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने सचिन पायलट को मिलने के लिए बुलाया था लेकिन वो नहीं पहुँचे। अब दोनों की फोन पर बातचीत हो रही है। राहुल गाँधी के दफ्तर के अधिकारियों का कहना है कि दोनों नेताओं की फोन पर ही बातचीत हो रही है।

इससे पहले अशोक गहलोत खेमे के अधिकारियों ने सचिन पायलट के बीजेपी के साथ संपर्क में होने का भी आरोप लगाया था। हालाँकि फिलहाल अभी तक कुछ साफ नहीं हो पाया है। इस मामले में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने कहा कि तमाम घटनाक्रम, इस बात का सबूत हैं कि कॉन्ग्रेस के भीतर अंतर्कलह चरम पर है। मुख्यमंत्री खुद गृहमंत्री हैं और विभाग के मुखिया को एक साधारण  डिप्टी एसपी द्वारा नोटिस दिया जाना ताज्जुब की बात है।

इससे पहले पायलट ने शनिवार देर रात दिल्ली में अहमद पटेल से मुलाकात की थी। पायलट ने अहमद पटेल से मुलाकात के बाद रविवार को कॉन्ग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी व राहुल गाँधी को साफ संदेश पहुँचा दिया था कि गहलोत उन्हें साइडलाइन करने में जुटे हैं, जिसे वे स्वीकार नहीं करेंगे।

कहीं सिंधिया पायलट की राह न हों लें छत्तीसगढ़ के सिंहदेव

रविरेन्द्र वशिष्ठ, चंडीगढ़:

राजस्‍थान के डिप्‍टी सीएम सचिन पायलट की नाराजगी बरकरार है. इसी वजह से वह सोमवार सुबह 10.30 बजे होने वाली कांग्रेस विधायक दल की बैठक में शामिल नहीं होंगे. जबकि पायलट के नजदीकी लोगों ने कहा कि 30 विधायकों के उनके समर्थन में आने से सरकार अल्पमत में है.

राजस्थान की कॉन्ग्रेस सरकार पर संकट के बादल घने होने के साथ ही एक बार फिर छत्तीसगढ़ को लेकर भी अटकलों का बाजार गर्म है। वैसे मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ की कॉन्ग्रेस सरकारों की आतंरिक कलह से अकाल मौत के कयास उस दिन ही लगने शुरू हो गए थे, जब 2018 के विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद तीनों राज्यों के लिए राहुल गाँधी ने मुख्यमंत्री फाइनल किया था। वैसे बात करें तो नाम सोनिया और प्रियंका ने चुने थे राहुल तो अपने युवा साथियों के पक्ष में थे लेकिन सोनिया राहुल के समकक्ष किसी भी युवा को एक सक्षम प्रशासक के तौर पर स्थापित होते नहीं देख सकतीं।

जिस तरह मध्य प्रदेश में ज्योतिदारित्य सिंधिया अपनी उपेक्षा से आहत थे, उसी तरह राजस्थान में भी सचिन पायलट को अपनी मेहनत की मलाई अशोक गहलोत को सौंपा जाना खटक रहा था। छत्तीसगढ़ में टीएस सिंहदेव को खुद के छले जाने का अहसास हो रहा था। पहल सिंधिया ने की। अब लपटें पायलट के खेमे से निकल रही है और सोशल मीडिया में सिंहदेव के भी जल्द धधकने के दावे किए जा रहे हैं।

यह सच है कि सियासी बाजियाँ सोशल मीडिया के पोस्ट के हिसाब से नहीं चली जातीं। लेकिन, यह भी उतना सच है कि सियासी गलियारों में अटकलों का बाजार तभी गर्म होता है, जब खिचड़ी पक रही होती है। हालाँकि सिंहदेव अभी भी इन दावों को खारिज कर रहे हैं। पहले भी खारिज किया था।

मध्य प्रदेश में सिंधिया की बगावत के बाद उन्होंने कहा भी था, “लोग दावे करते रहें लेकिन मैं भाजपा में शामिल नहीं होऊँगा। सौ जीवन मिलने के बाद भी मैं उस विचारधारा से कभी नहीं जुड़ूँगा। जो व्यक्ति मुख्यमंत्री नहीं बन पाने के कारण भाजपा में शामिल होता है, उसे कभी सीएम नहीं बनना चाहिए।”

लेकिन, हम सब जानते हैं कि नेता बयानों के हिसाब से नहीं चलते। वे फैसले अपने सियासी भविष्य को देखकर करते हैं। कॉन्ग्रेस में ये बगावत मुख्यमंत्री बनने की भी नहीं है। यदि ऐसा होता तो शिवराज की जगह सिंधिया को मध्य प्रदेश का सीएम होना था।

असल में यह आत्मसम्मान बचाने की लड़ाई है। हाईकमान लगातार इनकी उपेक्षा कर रहा है। पार्टी जिस तरीके से चलाई जा रही उससे इनकी असहमति है। जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने से लेकर चीन से सीमा विवाद तक के मसलों पर पार्टी स्टैंड ने कई नेताओं को असहज कर रखा है। सबसे बड़ी बात अपने-अपने राज्य के डिप्टी सीएम होने के बावजूद न तो पायलट की सरकार में सुनी जाती है और न सिंहदेव की।

लिहाजा इनके पास विकल्प सीमित हैं। या तो अपनी ही सरकार में उपेक्षित बने रहे या फिर उस रास्ते चलें जो सिंधिया ने चुना। राजस्थान में सियासी घटनाक्रम जिस तरह से चल रहे हैं उससे स्पष्ट है कि पायलट ने फैसला कर लिया है।

खबरों के अनुसार, राजस्थान के कॉन्ग्रेस के 24 विधायक हरियाणा और दिल्ली स्थित होटलों में पहुँच गए हैं। भयभीत राज्य सरकार ने सभी सीमाओं को सील कर दिया है। ऊपरी तौर पर तो कहा जा रहा है कि ये कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप को रोकने के लिए ये फैसला लिया गया है, लेकिन इसे कॉन्ग्रेस के भीतर भारी अंदरूनी फूट को दबाने और विधायकों को बाहर जाने से रोकने के प्रयासों के रूप में देखा जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि अधिकतर कॉन्ग्रेस विधायकों का फोन स्विच ऑफ है।

इधर मुख्यमंत्री गहलोत ने भी आज रात पार्टी विधायकों और मंत्रियों की बैठक बुलाई। पायलट के अहमद पटेल से भी मिलने की खबरे हैं। ऐसे में पूरी राजनीतिक तस्वीर स्पष्ट होने में मध्य प्रदेश की तरह ही कुछ वक्त लग सकता है।

यहाँ यह भी गौर करने वाली बात है कि पायलट ने अचानक से सियासी पारा तब चढ़ाया है, जब प्रदेश सरकार को गिराने की कथित साजिशों के मद्देनजर पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) ने उन्हें और गहलोत को बयान जारी करने का नोटिस भेजा है। साथ ही कुछ कॉल रिकॉर्ड भी हैं जो बताते हैं कि कॉन्ग्रेस में खेमेबंदी जोरों पर है।

ऐसे ही एक कॉल के दौरान बातचीत में यह बात सामने आई कि महेन्द्रजीत सिंह मालवीय पहले उप मुख्यमंत्री के साथ थे, अब उन्होंने पाला बदल लिया है। ऐसे में पायलट को यह भी चिंता सता रही होगी कि अब और देरी करने पर गहलोत एक-एक कर उनके समर्थकों को तोड़ उन्हें अलग-थलग कर सकते हैं।

पर उनके इस कदम ने छत्तीसगढ़ कॉन्ग्रेस की आंतरिक कलह को भी चर्चा में ला दिया है। सिंहदेव ने बीते महीने ही विधानसभा चुनाव के वक्त जारी कॉन्ग्रेस के जन-घोषणा पत्र में किए गए वादे पूरे नहीं होने को लेकर सरकार से नाराज होने के संकेत दिए थे। उन्होंने ट्वीट कर कहा था, “सभी बेरोज़गार शिक्षा कर्मियों, विद्या मितान, प्रेरकों एवं अन्य युवाओं की पीड़ा से मैं बहुत दुखी और शर्मिंदा हूँ।”

यही कारण है कि सोशल मीडिया में उनको लेकर भी पोस्ट की भरमार है। जैसा कि जशपुर के रहने वाले विवेकानंद झा लिखते हैं, “माना कि ठाकुर के हाथ नजर नहीं आते। पर ये हाथ न होते तो जय-वीरू जेल से आजाद न होते। सूत्रों की मानें तो ठाकुर भी जल्द ज्वाइन करेंगे जय-वीरू को।”

ठाकुर यानी टीएस सिंहदेव। वे सरगुजा के राजा भी हैं। मुख्यमंत्रियों का ऐलान करते हुए राहुल गाँधी ने सिंधिया और पायलट को भविष्य बताकर संकेत दिया था कि आगे उन्हें भी मौका मिल सकता है। पर 67 साल के सिंहदेव को लेकर ऐसा कोई भरोसा उन्होंने भी नहीं दिया था। सो, सिंहदेव भी जानते ही होंगे कि उनके पास सिंधिया और पायलट के उलट मौके भी सीमित ही हैं।