‘सती अनुसूया’ जयंती

भगवान विष्णु के अवतार दत्तात्रेय के जन्म के बारे में कथा के अनुसार सती अनुसूया की कोख से ब्रह्मा जी के अंश से चंद्रमा, विष्णु जी के अंश से दत्तात्रेय और शिव जी के अंश से दुर्वासा मुनि ने जन्म लिया था।

डेमोक्रेटिक फ्रंट, धर्म डेस्क, चंडीगढ़ – 20 अप्रैल :

सती अनुसुया को पतिव्रता धर्म के लिए जाना जाता है। इस वर्ष इनकी जयंती 20 अप्रैल 2022 को मनाई जाएगी। देवी अनुसुईया की पवित्रता और उनका साध्वी रुप सभी विवाहित महिलाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत रहा है। देवी अनुसुईया जयंती के अवसर पर मंदिरों में विशेष पूजा आरती की जाती है। विवाहित महिलाएं इस दिन के व्रत का पालन कर, सती अनुसुईया के दिखाए मार्ग पर चलने का संकल्प लेती है। देवी अनुसुईया प्रसन्न होकर अपने भक्तों के दुख दूर करती हैं और उन्हें अखंड सौभाग्यवती होने का वर देती है। भारत वर्ष के उतराखंड राज्य में देवी अनुसुईया का एक प्रसिद्ध व प्राचीन मंदिर है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह वहीं स्थान है जहां माता देवी की परीक्षा त्रिदेवों ने ली थी। माता अनुसुईया के जन्मदिवस के अवसर पर स्त्रियां अपने वैवाहिक स्त्री धर्म का पालन करते हुए सती अनुसुईयां जयंती का पूजन करती है।

यह माना जाता है कि उत्तराखंड में स्थित माता अनुसुईया के मंदिर में रात्रि में जप और जागरण करने की परंपरा है। इस मंदिर में निसंतान दंपत्ति जप और जागरण कर पूजा अर्चना कर संतान कामना करते है। यह जप-तप, अनुष्ठान शनिवार की रात्रि में करने का प्रावधान है। इस मंदिर को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है कि इस मंदिर में त्रिदेव माता की परीक्षा लेने के लिए बालक रुप में आए थे और तीनों देवों ने देवी से भोजन कराने की प्रार्थना की। देवी ने अपने सतीत्व से त्रिदेवों को पहचान लिया, इससे त्रिदेव असली रुप में आ गए। माता अनुसुईया से भगवान शिव दुर्वासा के रुप में मिले थे।

दक्ष प्रजापति की चौबीस कन्याओं में से एक थी अनुसूया जो मन से पवित्र एवं निश्छल प्रेम की परिभाषा थीं इन्हें सती साध्वी रूप में तथा एक आदर्श नारी के रूप में जाना जाता है. अत्यन्त उच्च कुल में जन्म होने पर भी इनके मन में कोई अंह का भाव नहीं था.

इनका संपूर्ण जीवन ही एक आदर्श रहा है. पौराणिक तथ्यों के आधार की यदि बात की जाए तो माता सीता जी भी इनके तेज से बहुत प्रभावित हुई थी तथा उनसे प्राप्त भेंट को सहर्ष स्वीकार करते हुए नमन किया. अनुसूया जी का विवाह ब्रह्मा जी के मानस पुत्र परम तपस्वी महर्षि अत्रि जी के साथ हुआ था. अपने सेवा तथा समर्पित प्रेम से इन्होंने अपने पति धर्म का सदैव पालन किया.

कहा जाता है कि देवी अनसुया बहुत पतिव्रता थी जिस कारण उनकी ख्याती तीनों लोकों में फैल गई थी. उनके इस सती धर्म को देखकर देवी पार्वती, लक्ष्मी जी और देवी सरस्वती जी के मन में द्वेष का भाव जागृत हो गया था. जिस कारण उन्होंने अनसूइया कि सच्चाई एवं पतीव्रता के धर्म की परिक्षा लेने की ठानी तथा अपने पतियों शिव, विष्णु और ब्रह्मा जी को अनसूया के पास परीक्षा लेने के लिए भेजना चाहा.

भगवानों ने देवीयों को समझाने का पूर्ण प्रयास किया किंतु जब देवियां नहीं मानी तो विवश होकर तीनो देवता ऋषि के आश्रम पहुँचे. वहां जाकर देवों ने सधुओं का वेश धारण कर लिया और आश्रम के द्वार पर भोजन की मांग करने लगे. जब देवी अनसूया उन्हें भोजन देने लगी तो उन्होंने देवी के सामने एक शर्त रखी की वह तीनों तभी यह भोजन स्वीकार करेंगे जब देवी निर्वस्त्र होकर उन्हें भोजन परोसेंगी. इस पर देवी चिंता में डूब गई वह ऎसा कैसे कर सकती हैं. अत: देवी ने आंखे मूंद कर पति को याद किया इस पर उन्हें दिव्य दृष्टि प्राप्त हुई तथा साधुओं के वेश में उपस्थित देवों को उन्होंने पहचान लिया. तब देवी अनसूया ने कहा की जो वह साधु चाहते हैं वह ज़रूर पूरा होगा किंतु इसके लिए साधुओं को शिशु रूप लेकर उनके पुत्र बनना होगा.साधुओं का अपमान न हो इस डर से घबराई अनुसूइया ने पति का स्मरण कर कहा कि यदि मेरा पतिव्रत्य धर्म सत्य है तो ये तीनों साधु 6 मास के शिशु हो जाएं। इस बात को सुनकर त्रिदेव शिशु रूप में बदल गए जिसके फलस्वरूप माता अनसूइया ने देवों को अनुसूइया ने माता बनकर त्रिदेवों को स्तनपान  भोजन करवाया. इस तरह तीनों देव माता के पुत्र बन कर रहने लगे.

इस पर अधिक समय बीत जाने के पश्चात भी त्रिदेव देवलोक नहीं पहुँचे तो पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती जी चिंतित एवं दुखी हो गई  तब नारद ने त्रिदेवियों को सारी बात बताई। त्रिदेवियां ने अनुसूइया से क्षमा याचना की। तब अनुसूइया ने त्रिदेव को अपने पूर्व रूप में ला दिया। प्रसन्नचित्त त्रिदेवों ने देवी अनुसूइया को उनके गर्भ से पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। तब ब्रह्मा अंश से चंद्र, शंकर अंश से दुर्वासा व विष्णु अंश से दत्तात्रेय का जन्म हुआ।

इस पर तीनों देवियों ने सती अनसूइया के समक्ष क्षमा मांगी एवं अपने पतियों को बाल रूप से मूल रूप में लाने की प्रार्थना की ऐस पर माता अनसूया ने त्रिदेवों को उनका रूप प्रदान किया और तभी से वह मां सती अनसूइया के नाम से प्रसिद्ध हुई. स्त्रियां मां सती अनसूया से पतिव्रता होने का आशिर्वाद पाने की कामना करती हैं. प्रति वर्ष सती अनसूइया जी जयंती का आयोजन किया जाता है. इस उत्सव के समय मेलों का भी आयोजन होता है. रामायण में इनके जीवन के विषय में बताया गया है जिसके अनुसार वनवास काल में जब राम, सीता और लक्ष्मण जब महर्षि अत्रि के आश्रम में जाते हैं तो अनुसूया जी ने सीता जी को पतिव्रत धर्म की शिक्षा दी थी

‘सावधान, यह मजाक नहीं है’ बेंगलुरु DPS समेत 6 स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी, मचा हड़कंप, सर्च ऑपरेशन जारी

बेंगलुरु के छह स्कूलों में उस वक्त अफरातफरी मच गई, जब वहां बम की धमकी वाला ईमेल आया। मिली जानकारी के मुताबिक, सभी छह स्कूलों में इस वक्त एग्जाम चल रहे हैं। इस बीच सुबह 11 बजे वहां ईमेल आया कि स्कूल परिसरों में बम प्लांट किये गए हैं। इसके बाद तुरंत पुलिस मौके पर पहुंच गई।

बेंगलुरू. 

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में 6 स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी मिली है। ये धमकी ईमेल के जरिए दी गई है। इसमें कहा गया है कि स्कूलों में बेहद शक्तिशाली बम लगाए गए हैं। धमकी भरे ईमेल मिलने के बाद स्कूलों को खाली करा लिया गया है। बम स्क्वॉड और लोकल पुलिस संदिग्ध बम की तलाश में जुट गई है। पुलिस कमिश्नर कमल पंत ने बताया कि यह पूरी जांच के बाद ही पता चलेगा कि किसी ने झांसा देने के लिए तो यह सब नहीं किया है।

फिलहाल सर्च ऑपरेशन में कहीं से कोई विस्फोटक सामग्री नहीं मिली है। पुलिस का कहना है कि अबतक यह एक फर्जी संदेश लग रहा है। पुलिस ने बताया है कि कोरोना संक्रमण कम होने की वजह से अब सभी स्कूल खुले हुए हैं और जिन 6 स्कूलों में ईमेल आए वहां फिलहाल एग्जाम चल रहे हैं। खबरों के मुताबिक, जिन स्कूलों को धमकी मिली है, उन्हें खाली कराया जा रहा है। स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के अलावा टीचर्स और बाकी स्टाफ को भी निकाला जा रहा है। पैरंट्स से अपने बच्चों को ले जाने के लिए कहा गया है।

समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, बेंगलुरु शहर के कई स्कूलों को एक धमकी भरा मेल मिला है। इसमें कहा गया है कि ‘बेहद शक्तिशाली बम’ स्कूल में लगा दिया गया है। बेंगलुरु पुलिस ने जानकारी दी है कि शहर के कई स्कूलों को इस तरह का मेल मिला है। इन विद्यालयों में तलाशी जारी है। इसके अलावा जांच में बॉम्ब स्क्वॉड की भी मदद ली जा रही है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, दिल्ली पब्लिक स्कूल, गोपालन इंटरनेशनल, न्यू एकेडमी स्कूल, सेंट विंसेंट पॉल स्कूल, इंडियन पब्लिक स्कूल और एबेनेजर इंटरनेशनल स्कूल को सुबह 10.15 से लेकर 11 बजे के बीच धमकी भरे ई-मेल मिले हैं। फिलहाल, पुलिस मेल की सच्चाई पता चलाने के लिए विस्तृत जांच कर रही है। खास बात है कि ये ई-मेल अलग-अलग समय और अलग-अलग IDs से भेजे गए थे।

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, मेल में लिखा है, ‘एक बहुत ही शक्तिशाली बम आपके स्कूल में लगाया गया है। सावधान हो जाएं, यह मजाक नहीं है, एक बहुत ही ताकतवर बम आपके स्कूल में प्लांट किया गया है, तत्काल पुलिस को सूचित करें, आपके समेत सैकड़ों जिंदगियों को भुगतना पड़ सकता है, देर मत करो, अब सब आपके हाथों में है।’

यूपी – हिमाचल के बाद हरियाणा में जबरन धर्मांतरण पर 10 साल तक की सजा, ₹5 लाख तक जुर्माना: विधानसभा से बिल पारित, कॉन्ग्रेस ने किया विरोध

जबरन धर्मांतरण साबित होने पर अधिकतम दस साल कैद व न्यूनतम पाँच लाख रुपए का जुर्माना होगा। इसके अलावा यदि शादी के लिए धर्म छिपाया जाता है तो 3 से 10 साल तक की जेल और कम से कम 3 लाख रुपए जुर्माना लगेगा। वहीं सामूहिक धर्म परिवर्तन के संबंध में 5 से 10 साल तक की जेल और कम से कम 4 लाख रुपए के जुर्माने का प्रावधान है। इस विधेयक के तहत किया गया प्रत्येक अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती होगा।

चंडीगढ़ संवाददाता, डेमोक्रेटिक फ्रंट(ब्यूरो) – 22 मार्च :

हरियाणा विधानसभा ने बल, अनुचित प्रभाव अथवा लालच के जरिए धर्मांतरण कराने के खिलाफ एक विधेयक मंगलवार को पारित किया। कांग्रेस ने विधेयक पर विरोध जताया और सदन से बर्हिगमन किया। विधानसभा में चार मार्च को पेश किया गया यह विधेयक मंगलवार को चर्चा के लिए लाया गया। इसके मुताबिक, साक्ष्य पेश करने की जिम्मेदारी आरोपी की होगी।

सरकार ने जबरन धर्मांतरण के विरुद्ध विधेयक में कड़े प्रावधान किए हैं। हरियाणा गैर-कानूनी धर्मांतरण रोकथाम विधेयक, 2022 (Haryana Prevention of Unlawful Conversion of Religion Bill, 2022) के मुताबिक, अगर लालच, बल या धोखाधड़ी के जरिए धर्म परिर्वतन किया जाता है तो एक से पाँच साल तक की सजा और कम से कम एक लाख रुपए के जुर्माना का प्रावधान है।

विधेयक के मुताबिक, जो भी नाबालिग या महिला अथवा अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति का धर्म परिवर्तन कराता है या इसका प्रयास करता है तो उसे कम से कम चार साल जेल का सजा मिलेगी, जिसे बढ़ाकर 10 साल और कम से कम तीन लाख रुपए का जुर्माना किया जा सकता है।

जबरन धर्मांतरण साबित होने पर अधिकतम दस साल कैद व न्यूनतम पाँच लाख रुपए का जुर्माना होगा। इसके अलावा यदि शादी के लिए धर्म छिपाया जाता है तो 3 से 10 साल तक की जेल और कम से कम 3 लाख रुपए जुर्माना लगेगा। वहीं सामूहिक धर्म परिवर्तन के संबंध में 5 से 10 साल तक की जेल और कम से कम 4 लाख रुपए के जुर्माने का प्रावधान है। इस विधेयक के तहत किया गया प्रत्येक अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती होगा।

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने विधेयक पर बोलते हुए कहा कि इसका उद्देश्य किसी धर्म के साथ भेदभाव करना नहीं है। यह केवल जबरन धर्मांतरण के मामलों में काम करेगा। विधेयक में उन विवाहों को अवैध घोषित करने का प्रावधान है, जो पूरी तरह से एक धर्म से दूसरे धर्म में धर्मांतरण के उद्देश्य से किए गए हों। 

मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछले 4 सालों में जबरन धर्मांतरण के 127 मामले दर्ज हुए हैं। धर्मांतरण एक बड़ी समस्या है। कोई अपनी इच्छा से कानूनी तरीके से अपना धर्म बदल सकता है, लेकिन अवैध धर्मांतरण के लिए अधिनियम पारित किया गया है।

वहीं नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि मौजूदा कानूनों में ही जबरन धर्मांतरण कराए जाने पर सजा का प्रावधान है, ऐसे में एक नया कानून लाए जाने की कोई जरूरत नहीं थी। कॉन्ग्रेस की वरिष्ठ नेता किरण चौधरी ने कहा कि यह विधेयक एक एजेंडे के साथ लाया गया है। इसका उद्देश्य समुदायों के बीच विभाजन को गहरा करना है, जो कि ‘अच्छा विचार’ नहीं है।

बता दें कि हरियाणा कैबिनेट ने धर्मांतरण रोकथाम विधेयक 2022 को पहले ही इजाजत दे दी थी। 4 मार्च 2022 को गृह मंत्री अनिल विज ने इस संबंध में विधानसभा में बिल पेश किया था। विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने राज्य सरकार के इस कदम की सराहना की थी। वीएचपी के संयुक्त महामंत्री सुरेंद्र जैन ने कहा था कि इस बिल से राज्य सरकार ने अपने दृढ़ संकल्प को दिखाया है। उल्लेखनीय है कि इससे पहले उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में यह कानून बन चुका है।  

हिजाब पर फैसला देने वाले जजों को मिली ‘Y’ सुरक्षा

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा कि हमने हिजाब पर फैसला देने वाले तीनों जजों को वाई श्रेणी की सुरक्षा देने का फैसला किया है। इसके साथ मुख्यमंत्री ने डीजी और आईजी को विधानसौधा पुलिस स्टेशन में दर्ज शिकायत की गहन जांच करने का निर्देश दिया है। जिसमें कुछ लोगों ने जजों को जान से मारने की धमकी दी थी।

डेमोक्रेटिक फ्रंट, बेंगलुरु:

  कर्नाटक सरकार ने मुस्लिम छात्राओं को स्कूल और कॉलेज की कक्षाओं में हिजाब पहनने की अनुमति देने वाली याचिका के खिलाफ फैसला सुनाने वाली विशेष पीठ का हिस्सा रहे उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सुरक्षा कड़ी करने का फैसला किया है। कर्नाटक सरकार का फैसला पड़ोसी राज्य तमिलनाडु के कुछ तबकों से जजों को जान से मारने की धमकियों के मद्देनजर आया है। मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने रविवार को कहा कि हिजाब मुद्दे पर फैसला देने वाले उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को वाई-श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की जाएगी।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, धमकी देने वालों के खिलाफ विधानसौधा थाने में शिकायत दर्ज करवाई गई है। कुछ ही दिन पहले सोशल मीडिया पर तमिलनाडु के मदुरै का एक वीडियो वायरल हुआ था। इस वीडियो में तमिलनाडु तौहीद जमात का सदस्य कोवई रहमतुल्लाह खुलेआम हिजाब पर फैसला सुनाने वाले जजों को धमकाता दिखा था। वीडियो में वो कह रहा था, “अगर जजों को कुछ होता है तो उसके जिम्मेदार वो खुद होंगे। झारखंड में मॉर्निंग वॉक के दौरान गलत फैसला देने वाले जज की हत्या हुई थी।”

इस बीच बेंगलुरु पुलिस ने जजों को धमकाने के मामले में कार्रवाई करते हुए कोवई रहमतुल्लाह और जमाल मोहम्मद उस्मानी को गिरफ्तार कर लिया है। रिपोर्ट के मुताबिक, इन दोनों को तमिलनाडु के अलग-अलग हिस्सों से पकड़ा गया है। इन दोनों आरोपितों पर अलग-अलग क्षेत्रों में FIR दर्ज हुई है। दोनों की गिरफ्तारी शनिवार (19 मार्च) की रात में हुई है।

जनवरी 2022 में शुरू हुए हिजाब विवाद स्कूलों से होकर कर्नाटक हाईकोर्ट तक पहुँच गया था। हाईकोर्ट में तीन जजों की पीठ ने अपने फैसले में हिजाब को इस्लाम का जरूरी हिस्सा मानने से इंकार कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ कई मुस्लिम संगठनों ने 17 मार्च (गुरुवार) को बंद बुलाया था।

यूक्रेन में बमबारी में एक भारतीय छात्र की मौत हुई है

यूक्रेन में बमबारी में एक भारतीय छात्र की मौत हुई है। विदेश मंत्रालय ने इसकी पुष्टि की है। कर्नाटक के हावेरी के इस भारतीय स्‍टूडेंट नवीन शेखरप्‍पा की मौत उस समय हुई जब रूसी सैनिकों ने मंगलवार को एक सरकारी बिल्डिंग को विस्‍फोट कर उड़ा दिया।

नयी दिल्ली(ब्यूरो), डेमोरेटिक फ्रंट :

रूस-यूक्रेन के बीच छिड़े युद्ध में एक भारतीय छात्र की मौत हो गई है। विदेश मंत्रालय की ओर से इसकी पुष्टि की गई है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया कि खारकीव में रूसी सेना की ओर से की गई गोलीबारी में भारतीय छात्र की मौत हो गई है। उन्होंने बताया कि, वह मृत छात्र के परिवार से संपर्क में हैं। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो खारकीव में जिस छात्र की जान गई है, उसका नाम नवीन शेखरप्पा था। वह कर्नाटक के चलागेरी का रहने वाला था और फिलहाल यूक्रेन में पढ़ाई कर रहा था। उसकी उम्र 21 साल बताई गई है। 

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता आरिंदम बागची ने ट्वीट में कहा, “गहरे दुख के साथ हम पुष्टि करते हैं कि आज सुबह खार्किव में गोलाबारी में एक भारतीय छात्र की जान चली गई। मंत्रालय उनके परिवार के संपर्क में है। हम परिवार के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करते हैं।”

उन्होंने बताया कि वे लगातार रूस और यूक्रेन के राजदूतों से उन भारतीयों को सुरक्षित निकालने की माँग दोहरा रहे हैं जो अब भी खार्किव और अन्य संघर्ष क्षेत्रों में हैं। यही कार्रवाई रूस और यूक्रेन में भारतीय राजदूतों द्वारा भी की जा रही है।

बता दें कि बागची के ट्वीट छात्र का नाम नहीं बताया गया है। लेकिन न्यूज रिपोर्ट के अनुसार, मृतक छात्र की पहचान नवीन के तौर पर हई है। वह चौथे वर्ष के छात्र थे और भारत के कर्नाटक निवासी थे। कथिततौर पर रूसी सेना ने उन्हें सुपर मार्केट के सामने गोली मारी। एपीएन न्यूज के अनुसार, जिस समय नवीन पर गोली चलाई गई उस समय वह Lviv के स्टेशन जा रहे थे ताकि वहाँ से पश्चिमी सीमा पहुँच सकें।

नवीन को गोली लगने के बाद बाकी छात्र घबरा कर मदद की गुहार लगा रहे हैं। इस बीच, चेन्नई में नवीन के माता-पिता ने फँसे छात्रों को खार्किव से बाहर निकालने के लिए रूसी दूतावास की मदद माँगी है। उनका कहना है कि रूस खार्किव सीमा से सिर्फ 30 किमी दूर है।

उल्लेखनीय है भारतीय नागरिकों की सुरक्षित वापसी के लिए भारत सरकार ने प्रयास तेज किए हुए हैं। आज ही खबर आई है कि भारत सरकार ने इस मिशन पर एयरफोर्स को साथ आने को कहा है। इस फैसले का मकसद यही है कि सारे भारतीय सही सलामत अपने घर को लौट आएँ। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार भारतीय वायु सेना आज से ऑपरेशन गंगा में कई सी -17 विमान तैनात कर सकती है।

बेंगलुरु के कॉलेज ने सिख लड़की को पगड़ी हटाने को कहा

हिजाब विवाद मामले में दिन भर चली सुनवाई के बाद कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी ने कहा, ‘हम यह स्पष्ट कर रहे हैं कि चाहे वह डिग्री या स्नातक कॉलेज हो, जहां वर्दी निर्धारित है, वहां उसका पालन किया जाना चाहिए। ’ कर्नाटक उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश के बाद राज्य के एक कॉलेज ने अमृतधारी सिख लड़की को पगड़ी हटाने के लिए कहा है। … इन लड़कियों ने मांग की कि सिख समुदाय समेत किसी भी धर्म की लड़की को धार्मिक चिह्न धारण करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। सूत्रों के अनुसार, लड़की के परिवार का कहना है कि उनकी बेटी पगड़ी नहीं हटाएगी और वे कानूनी राय ले रहे हैं, क्योंकि उच्च न्यायालय और सरकार के आदेश में सिख पगड़ी का उल्लेख नहीं है। गौरतलब है कि कर्नाटक हाई कोर्ट ने बुधवार को कहा था कि यदि किसी शिक्षा संस्‍थान ने ड्रेस कोड तय किया है, तो स्‍टूडेंट्स को उसका पालन करना चाहिए।  

डेमोक्रेटिक फ्रंट, बाइङ्ग्लोरु (ब्यूरो) :

कर्नाटक में बुर्के पर चल रहे विवाद के बीच एक सिख छात्रा को पगड़ी उतारने के लिए कहे जाने का मामला सामने आया है। घटना बेंगलुरु के माउंट कार्मेल पीयू कॉलेज की है। रिपोर्टों के अनुसार कॉलेज प्रशासन ने हाई कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए सिख छात्रा से पहली बार 16 फरवरी 2022 को पगड़ी उतारने को कहा गया था। बताया जा रहा है कि छात्रा के पगड़ी पहनने से कॉलेज प्रशासन को कोई आपत्ति नहीं थी। लेकिन हिजाब पहनने वाली छात्राओं के विरोध के कारण उन्हें यह कदम उठाना पड़ा।

कॉलेज के अधिकारियों ने कहा कि 16 फरवरी को जब दोबारा शैक्षणिक संस्थान खुले तो उन्होंने छात्रों को अदालत के आदेश के बारे में सूचित किया। हालांकि, पूर्व-विश्वविद्यालय शिक्षा उप निदेशक ने इस सप्ताह के शुरुआत में कॉलेज के अपने दौरे के दौरान, हिजाब में कॉलेज आयी लड़कियों के एक समूह को अदालत के आदेश के बारे में सूचित किया और उनसे इसका पालन करने के लिए कहा। इन लड़कियों ने मांग की कि सिख समुदाय समेत किसी भी धर्म की लड़की को धार्मिक चिह्न धारण करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

जिस सिख छात्रा को पगड़ी उतारने को कहा गया, वह छात्र संगठन की अध्यक्ष भी है। छात्रा के परिवार ने अब कर्नाटक सरकार और हाई कोर्ट से निर्देश जारी करने की माँग की है। छात्रा के पिता का नाम गुरचरण सिंह है जो IT कम्पनी में बड़े अधिकारी हैं। उन्होंने पगड़ी हटाने से साफ मना कर दिया है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा, “मेरी बेटी को अब तक कॉलेज में किसी भी भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ा है। लेकिन हाई कोर्ट के आदेश के बाद अब परिस्थितियाँ विषम हैं। कोर्ट के आदेश में कहीं भी सिख पगड़ी का जिक्र नहीं हुआ है। हम इस मामले में सिख समुदाय और वकीलों के सम्पर्क में हैं। हमने कॉलेज प्रशासन से भी बेटी को पगड़ी के साथ पढ़ाई करने की अनुमति देने की माँग की है।”

वहीं कॉलेज प्रशासन ने इस मामले में छात्रा और उनके परिजनों से मिल कर हाई कोर्ट के निर्देशों का हवाला दिया है। कॉलेज के प्रवक्ता ने बताया, “हमने सभी छात्र-छात्राओं को 16 फरवरी को ही कोर्ट के आदेश से अवगत करवा दिया था। इसके बाद गतिविधियाँ सामान्य रहीं। मंगलवार को प्री-यूनिवर्सिटी एजुकेशन (नॉर्थ) के डिप्टी डायरेक्टर कॉलेज आए थे। वहाँ पर हिजाब पहने लड़कियों का समूह खड़ा था। उन्होंने सभी लड़कियों को ऑफिस में बुला कर उच्च न्यायालय से आदेश से अवगत करवाया।”

कॉलेज प्रवक्ता ने आगे कहा, “हमें सिख पगड़ी पहनने वाली छात्रा से कोई आपत्ति नहीं थी। लेकिन हिजाब वाली लड़कियों ने सिख लड़की के पगड़ी पहनने पर आपत्ति जताई। उन्होंने किसी भी लड़की के किसी भी धार्मिक चिन्ह का विरोध किया। ऐसे में हमने लड़की के पिता से फोन पर बात कर के उन्हें ई मेल भी किया। सिख छात्रा के पिता ने पगड़ी को अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बताया, लेकिन जब दूसरी लड़कियों ने सभी को एक जैसे नियम की बात कही तब हमने उन्हें इससे अवगत करवाया।” डिप्टी डायरेक्टर जी श्रीराम के मुताबिक, “हमें इस मामले को और आगे नहीं बढ़ाना चाहिए। हाई कोर्ट के आदेश का पालन किया जाएगा। लड़कियाँ अब मान गईं हैं। किसी को कोई दिक्कत नहीं है।”

उच्च न्यायालय ने वर्दी में हिजाब नामंजूर किए, कहा है कि सभी छात्रों को स्कूलों की यूनिफॉर्म से जुड़े नियमों का पालन करना होगा

कर्नाटक में जारी हिजाब विवाद के बीच हाई कोर्ट ने टिप्पणी की है। इसमें कोर्ट ने कहा है कि सभी छात्रों को स्कूलों की यूनिफॉर्म से जुड़े नियमों का पालन करना होगा। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा है कि शिक्षकों पर यह नियम लागू नहीं होगा।

कोर्ट ने इस केस की सुनवाई को गुरुवार तक के लिए टाल दिया है। उम्मीद लगाई जा रही है कि अगली सुनवाई के दौरान इस केस में कुछ अहम फैसला लिया जा सकता है। आपको बता दें कि बीते दिन ही कोर्ट ने कहा था कि वह इस केस को इसी सप्ताह में खत्म करना चाहते हैं।

मंगलवार की सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता ने इस आरोप को खारिज कर दिया कि हिजाब पहनने की अनुमति नहीं देना संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है। नवदगी ने दलील दी, ‘कोई भेदभाव नहीं है। जैसा अनुच्छेद 15 के तहत दावा किया गया है. ये आरोप बेबुनियाद हैं।’ अनुच्छेद 15 के तहत धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव पर रोक है।

कोर्ट ने पिछली सुनवाई के दौरान कहा था कि हम इस मामले को इसी सप्ताह खत्म करना चाहते हैं। इस सप्ताह के अंत तक इस मामले को खत्म करने के लिए सभी प्रयास करें।

कर्नाटक में हिंदू युवक की हत्या के बाद 3 गिरफ्तार

गृह मंत्री अर्गा ज्ञानेंद्र ने कहा, “हमने 3 लोगों को गिरफ्तार किया है। मेरी जानकारी के अनुसार, इस हत्या में 5 लोग शामिल हैं। पूछताछ चल रही है। बहुत जल्द हम हत्या से संबंधित जानकारी प्राप्त करेंगे और जाँच के बाद ही कुछ कह पाएँगे।” गृहमंत्री ने कहा कि पुलिस को कुछ पुख्ता सबूत मिले हैं और घटना में शामिल लोगों को जल्द गिरफ्तार किया जाएगा।

कर्नाटक के शिवमोगा जिले में रविवार रात हुई बजरंग दल कार्यकर्ता की हत्या मामले में अब तक 3 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है। राज्य के गृह मंत्री अरागा ज्ञानेंद्र ने बताया है कि इस मामले में 5 आरोपी हैं, जांच जारी है। जल्द ही सभी आरोपी सलाखों के पीछे होंगे। उन्होंने कहा कि हर्ष की हत्या के बाद इलाके में तनाव बना हुआ है, फिलहाल 2-3 दिनों के लिए कानून-व्यवस्था का ध्यान रखना होगा।

गृह मंत्री अर्गा ज्ञानेंद्र ने कहा, “हमने 3 लोगों को गिरफ्तार किया है। मेरी जानकारी के अनुसार, इस हत्या में 5 लोग शामिल हैं। पूछताछ चल रही है। बहुत जल्द हम हत्या से संबंधित जानकारी प्राप्त करेंगे और जाँच के बाद ही कुछ कह पाएँगे।” गृहमंत्री ने कहा कि पुलिस को कुछ पुख्ता सबूत मिले हैं और घटना में शामिल लोगों को जल्द गिरफ्तार किया जाएगा।

हर्षा की हत्या के बाद बता दें सोशल मीडिया पर JusticeForHarsha ट्रेंड कर रहा है। इस ट्वीट में सोशल मीडिया यूजर्स हर्षा के लिए इंसाफ माँग रहे हैं। साथ ही उन हिंदू चेहरों को याद कर रहे हैं जिन्हें पिछले सालों में कट्टरपंथियों ने मौत के घाट उतारा।

हर्षा की हत्या

गौरतलब है कि कर्नाटक में चल रहे हिजाब विवाद के बीच वहाँ शिवमोगा क्षेत्र में 26 वर्षीय बजरंग दल कार्यकर्ता हर्षा की हत्या का मामला प्रकाश में आया था। ये घटना रविवार (20 फरवरी 2022) रात करीब 9 बजे घटी थी। इलाके में तनाव देखते हुए पुलिस ने वहाँ सुरक्षा बढ़ा दी है। 

शिवमोगा में हर्षा की चाकुओं से गोद कर हत्या के बाद उपद्रवियों ने क्षेत्र में कई जगह गाड़ियों में तोड़फोड़ की। उनमें आग लगाई, जिसे बाद में फायर ब्रिगेड द्वारा बुझवाया गया। पुलिस ने स्थिति कंट्रोल करने के लिए इलाके में 144 लगाई हुई है। कॉलेजों में भी सोमवार का अवकाश घोषित है।

श्रीराम नाम जपते-जपते हुए हर्षा की मौत

बजरंग दल कार्यकर्ता की हत्या के बाद उनकी बहन ने कहा, “मेरा छोटा भाई मर गया क्योंकि वो जय श्रीराम बोलता था। वो गया क्योंकि वो हिंदू हर्षा था। कल रात वह खाना खाने गया। करीब साढ़े 8 बढ़े हमें एक वीडियो आई और लोगों ने बताया कि मेरा भाई मार दिया गया है। विश्वास नहीं होता कि लोग इतने क्रूर कैसे हो जाते हैं। क्या उनके पास बच्चे नहीं है। मैं प्रार्थना करती हूँ कि हिंदू-मुस्लिम समुदाय का हर युवा अच्छा बच्चा बने। बाकी का भूल जाओ। “

कर्नाटक हाईकोर्ट में राज्य सरकार ने कहा- इस्लाम की अनिवार्य प्रथा नहीं है हिजाब

कर्नाटक सरकार ने शुक्रवार को कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष तर्क दिया कि हिजाब पहनना इस्लाम की एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है और शैक्षणिक संस्थाओं में इसके उपयोग को रोकना धार्मिक स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन नहीं है। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि हिजाब अनुच्छेद 19(1) के तहत मौलिक अधिकार का हिस्सा है और इसपर प्रतिबंध उसका उल्लंघन है। हमारा मानना है कि ऐसा नहीं है।” राज्य सरकार ने हाई कोर्ट से कहा कि उसके अनुसार हिजाब पहनना इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है और साथ ही इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत मौलिक अधिकार का हिस्सा नहीं है।

  • 2002 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक निजी स्कूल की छात्राओं को हिजाब पहन क्लास में जाने की नहीं दी अनुमति
  • 1984 में सुप्रीम कोर्ट ने तांडव नृत्य को आनंद मार्गियों के धार्मिक रीति-रिवाजों का अनिवार्य हिस्सा नहीं माना
  • एम अजमल खान बनाम चुनाव आयोग मामले में मद्रास हाई कोर्ट ने वोटर आईडी पर हिजाब में फोटो को खारिज किया

डेमोक्रेटिक फ्रंट, कर्नाटका(ब्यूरो) :

कर्नाटक हिजाब विवाद का हल शुक्रवार को भी नहीं हो सका। लेकिन इस बीच कर्नाटक सरकार की ओर से एटॉर्नी जनरल (AG) प्रभुलिंग नवदगी ने बेंच के सामने यह दलील रखी गई कि हिजाब इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक प्रथा नहीं है। मामले की अगली सुनवाई 21 फरवरी को होगी। उधर कर्नाटक के स्कूल-कॉलेज में शुक्रवार को भी हिजाब पहनकर आने वालों को एंट्री नहीं दी गई।

सबसे बड़ा सवाल है कि क्या हिजाब इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है? अलग-अलग वक्त पर कुछ ऐसे ही सवालों पर उच्च न्यायपालिका फैसले सुना चुकी है। अदालती आदेशों के आईने में देखें तो मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है, नौकरी के लिए दाढ़ी जरूरी नहीं है, तीन तलाक भी इस्लाम का हिस्सा नहीं है। तो आखिर हिजाब पर इतनी बहस क्यों? आइए सिलसिलेवार ढंग से समझते हैं कि धार्मिक स्वतंत्रता पर संविधान क्या कहता है और धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़े विवादों पर उच्च न्यायपालिका के कुछ लैंडमार्क जजमेंट्स में क्या कहा गया है।

कर्नाटक में हिजाब पर क्यों मचा है बवाल ?

आगे बढ़ने से पहले यह समझना जरूरी है कि कर्नाटक में हिजाब को लेकर आखिर घमासान क्यों मचा है। ताजा विवाद की शुरुआत इस साल की शुरुआत में हुई जब कुछ सरकारी शिक्षण संस्थाओं में कुछ छात्राएं हिजाब पहनकर आने लगीं। संस्था ने जब इसकी अनुमति नहीं दी तो हिजाब के समर्थन में अन्य जगहों पर भी स्टूडेंट्स के प्रदर्शन शुरू हो गए। हिजाब के विरोध में स्टूडेंट्स का एक दूसरा समूह भगवा गमछा, स्कार्फ और स्टोल पहनकर प्रदर्शन करने लगा। दलील दी कि अगर हिजाब को इजाजत दी जाती है तो हमें भी भगवा गमछा पहनकर कॉलेज आने की इजाजत दी जाए। कई जगहों पर स्टूडेंट्स के दोनों समूह आमने-सामने आने लगे। इस बीच राज्य सरकार ने 5 फरवरी को आदेश दिया कि किसी भी शैक्षणिक संस्थान में स्टूडेंट हिजाब या भगवा गमछा, स्कार्फ पहनकर नहीं आ सकते।राज्य सरकार ने कर्नाटक शिक्षा कानून 1983 के सेक्शन 133 (2) को लागू करते हुए कहा है कि सरकारी शिक्षण संस्थानों में सभी स्टूडेंट ड्रेस कोड का पालन करेंगे। निजी स्कूल प्रशासन अपनी पसंद के आधार पर ड्रेस को लेकर फैसला ले सकते हैं। हिजाब पर बैन के खिलाफ कुछ स्टूडेंट ने कर्नाटक हाई कोर्ट का रुख किया। बुधवार को हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने मामले को सुनवाई के लिए लार्जर बेंच को रेफर कर दिया।

अधिकारों पर क्या कहता है संविधान ?

अब समझते हैं कि हिजाब से जुड़े ताजा विवाद में मूल अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का क्या ऐंगल है। संविधान का अनुच्छेद 19 (1) (a) कहता है कि सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति की आजादी है। लेकिन संविधान में ये भी कहा गया है कि ये अधिकार असीमित नहीं है। आर्टिकल 19(2) कहता है कि सरकार आर्टिकल 19 के तहत मिले अधिकारों पर कानून बनाकर तार्किक पाबंदियां लगा सकती है। इसी अनुच्छेद में कहा गया है कि भारत की संप्रभुता, अखंडता के हितों, राष्ट्रीय सुरक्षा, दोस्ताना संबंधों वाले देशों से रिश्तों, पब्लिक ऑर्डर, नैतिकता, कोर्ट की अवमानना, किसी अपराध के लिए उकसावा के मामलों में आर्टिकल 19 के तहत मिले अधिकारों पर सरकार प्रतिबंध लगा सकती है।

संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार –

भारतीय संविधान में अनुच्छेद 25 से अनुच्छेद 28 तक धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की व्यवस्था है। सबसे पहले बात अनुच्छेद 25 की जो सभी नागरिकों को अंतःकरण की और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता देता है। लेकिन ये पूर्ण स्वतंत्रता नहीं है, इस पर शर्तें लागू हैं। आर्टिकल 25 (A) कहता है- राज्य पब्लिक ऑर्डर, नैतिकता, स्वास्थ्य और राज्य के अन्य हितों के मद्देनजर इस अधिकार पर प्रतिबंध लगा सकता है। संविधान ने कृपाण धारण करने और उसे लेकर चलने को सिख धर्म का अभिन्न हिस्सा माना है।

अनुच्छेद 26 में धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता का जिक्र है। इसके तहत पब्लिक ऑर्डर, नैतियकता और स्वास्थ्य के दायरे में रहते हुए हर धर्म के लोगों को धार्मिक क्रिया-कलापों को करने, धार्मिक संस्थाओं की स्थापना करने, चलाने आदि का इधिकार है। अनुच्छेद 27 में इस बात की व्यवस्था है कि किसी व्यक्ति को कोई ऐसा टैक्स देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता तो किसी खास धर्म का पोषण हो रहा हो। अनुच्छेद 28 के तहत कहा गया है कि पूरी तरह सरकार के पैसों से चलने वाले किसी भी शिक्षा संस्थान में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती। राज्यों द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थाओं में लोगों की सहमति से धार्मिक शिक्षा दी जा सकती है (जैसा मदरसा, संस्कृत विद्यालय आदि) लेकिन ये शिक्षा सरकार की तरफ से निर्देशित पाठ्यक्रम के अनुरूप होने चाहिए। इन संवैधानिक प्रावधानों को देखने से साफ हो जाता है कि सरकार को धार्मिक आस्था और विश्वास की रक्षा करनी ही होगी। लेकिन अगर कोई धार्मिक गतिविधि पब्लिक ऑर्डर, नैतिकता या स्वास्थ्य के खिलाफ है तो लोगों के व्यापक हितों के लिए ऐसी गतिविधियों पर रोक लगाई जा सकती है (मसूद आलम बनाम पुलिस कमिश्नर, 1956)।

अधिकारों से जुड़े विवादों के अदालतों में जाने की वजह –

बात चाहे आर्टिकल 19 की हो आर्टिकल 25 की। संविधान में ही ये प्रावधान है कि ये अधिकार असीमित या पूर्ण नहीं हैं। कई स्थितियों में इन अधिकारों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है, मसलन पब्लिक ऑर्डर, नैतिकता, स्वास्थ्य वगैरह। लेकिन ये कैसे तय होगा कि किसी गतिविधि या धार्मिक रिवाज से पब्लिक ऑर्डर को कैसे खतरा है या नैतिकता के खिलाफ कैसे है…? यही वजह है कि अधिकारों पर बंदिश से जुड़े नियम या कानून के मामले अक्सर उच्च न्यायपालिका में पहुंचते हैं ताकि उनकी न्यायिक समीक्षा हो सके।

कोई रिवाज या प्रतीक धर्म का अनिवार्य हिस्सा या नहीं, क्या कहते हैं फैसले ?

मौजूदा हिजाब विवाद अपनी तरह का कोई पहला मामला नहीं है। कोई धार्मिक अनुष्ठान, रिवाज या प्रतीक संबंधित धर्म का अभिन्न हिस्सा है या नहीं, इससे जुड़े तमाम विवाद समय-समय पर उच्च न्यायपालिका के सामने आते रहे हैं।

रतिलाल पानचंद गांधी बनाम बॉम्बे प्रांत और अन्य (1954) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि राज्य आर्थिक, व्यावसायिक या राजनैतिक चरित्र के उन मामलों को भी रेग्युलेट कर सकता है जो धार्मिक प्रथाओं से जुड़े हुए हों। कोर्ट ने कहा कि राज्य के पास सामाजिक सुधार और समाज कल्याण के लिए कानून बनाने का अधिकार है भले ही ये धार्मिक प्रथाओं में दखल हो।

सवाल ये भी है कि कानूनी हिसाब से ‘धर्म’ को आखिर कैसे परिभाषित किया जाना चाहिए? हिंदू रिलिजियस एंडाउमेंट्स मद्रास के कमिश्नर बनाम लक्ष्मींद्र तीर्थ स्वामियार श्री शिरूर मठ (1954) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इसका जवाब दिया है। कोर्ट ने कहा कि धर्म के तहत वो सभी संस्कार, अनुष्ठान, प्रथाएं आएंगी जो किसी धर्म के लिए ‘अभिन्न’ हैं।

इस्लाम में नमाज के लिए मस्जिद अनिवार्य नहीं –

एम इस्माइल बनाम भारत सरकार (1995) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है और मुस्लिम किसी भी जगह पर, यहां तक कि खुले स्थान में भी नमाज पढ़ सकते हैं।

तांडव नृत्य धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं
आज जिस तरह हिजाब के समर्थन में दलील दी जा रही है कि ये संविधान में मिले धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों के अनुकूल है। उसी तरह कभी शैव संप्रदाय से जुड़े आनंद मार्गियों ने भी जुलूस निकालने, नरमुंड (खोपड़ी) के कंकालों और त्रिशूल के साथ तांडव नृत्य के सार्वजनिक प्रदर्शन को आर्टिकल 25 के तहत अपना मौलिक अधिकार बताया था। 1984 में सुप्रीम कोर्ट ने आनंद मार्गियों का ये दावा ठुकरा दिया। आनंद मार्ग की स्थापना 1955 में हुई थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि तांडव नृत्य मूल रूप से आनंद मार्गियों के लिए अनिवार्य नहीं था। इसे तो आनंद मार्ग के संस्थापक आनंद मूर्ति ने 1966 में धार्मिक अनुष्ठान का जरूरी हिस्सा बनाया।

1984 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘आनंद मार्ग एक हालिया बना संप्रदाय है और तांडव नृत्य उसके धार्मिक संस्कारों में और भी बाद में जोड़ा गया। ऐसे में यह संदिग्ध है कि तांडव नृत्य को आनंद मार्गियों के धार्मिक अनुष्ठान का अनिवार्य हिस्सा माना जाए।’ 2004 में भी सुप्रीम कोर्ट ने आनंद मार्गियों को सार्वजनिक तौर पर तांडव नृत्य की इजाजत से इनकार किया।

तांडव नृत्य का मामला एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। दरअसल कलकत्ता हाई कोर्ट ने तांडव नृत्य को आनंद मार्गी संप्रदाय का अनिवार्य हिस्सा ठहरा दिया। लेकिन 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए कहा कि तांडव नृत्य को अनिवार्य धार्मिक प्रथा नहीं कहा जा सकता है।

दाढ़ी इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं –

2016 में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि दाढ़ी रखना इस्लामिक रीति-रिवाजों का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। मामला एयर फोर्स के एक कर्मचारी से जुड़ा था जिसे फोर्स ने दाढ़ी रखने की वजह से डिस्चार्ज कर दिया था। याचिकाकर्ता आफताब अहमद अंसारी को 2008 में एयर फोर्स ने दाढ़ी रखने की वजह से डिस्चार्ज कर दिया था। अंसारी ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। उन्होंने दलील दी कि संविधान में मिले धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत दाढ़ी रखना उनका मौलिक अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने अंसारी की याचिका खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा कि एयर फोर्स में धार्मिक आधार पर अफसर दाढ़ी नहीं बढ़ा सकते। नियम अलग हैं और धर्म अलग। दोनों एक-दूसरे में हस्तक्षेप नहीं कर सकते।

तीन तलाक भी इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं –

तलाक-ए-बिद्दत (तीन तलाक) मामले में भी सुप्रीम कोर्ट के सामने ये सवाल उठा कि ये इस्लाम का अभिन्न अंग है या नहीं। सर्वोच्च अदालत ने तीन तलाक को इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं माना और इसे गैरकानूनी और असंवैधानिक करार दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ज्यादातर मुस्लिम देशों तक में तीन तलाक की प्रथा खत्म हो चुकी है। इसे कोई ऐसी प्रथा नहीं कह सकते तो मजहब का अनिवार्य हिस्सा हो।

हिजाब पर पहले के अदालती फैसलों में क्या ?

नदा रहीम बनाम सीबीएसई मामला –

हिजाब का मामला भी अलग-अलग समय पर अलग-अलग अदालतों में उठ चुका है। ऐसा ही एक मामला नदा रहीम बनाम सीबीएसई (2015) का है। दरअसल सीबीएसई ने ऑल इंडिया प्री-मेडिकल टेस्ट (AIPMT) टेस्ट के लिए ड्रेस कोड लागू करते हुए स्टूडेंट्स को आदेश दिया था कि वे एग्जाम के लिए हल्के कपड़े पहने जो पूरी बांह के न हों, बड़े बटन, बैज या फूल वगैरह न लगे हों, जूते के बजाय स्लिपर पहनकर आएं। दो लड़कियों ने इस ड्रेस कोड को केरल हाई कोर्ट में चुनौती दी। सीबीएसई ने हाई कोर्ट को बताया कि उसका ड्रेस कोड सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुरूप में है जिसने एग्जाम में बड़े पैमाने पर नकल और अनुचित साधनों के इस्तेमाल के बाद 2015-16 AIPMT एग्जाम को रद्द कर दिया था। हाई कोर्ट ने इस मामले में दोनों याचिकाकर्ता छात्राओं को हिजाब पहनकर एग्जाम में बैठने की अनुमति दो दी लेकिन सीबीएसई के नियम को भी सही ठहराया। कोर्ट ने कहा कि धार्मिक मान्यता की वजह से जो लोग निर्धारित ड्रेस कोड से इतर कपड़े पहनकर एग्जाम देना चाहते हों वे सेंटर पर कम से कम आधा घंटा पहले पहुंचें ताकि उनकी सही से जांच हो सके।

आमना बशीर बनाम सीबीएसई –
एक साल बाद इसी परीक्षा के लिए सीबीएसई ड्रेस का मामला फिर केरल हाई कोर्ट पहुंचा। आमना बशीर बनाम सीबीएसई (2016) मामले में जस्टिस ए. मुहम्मद मुस्ताक की सिंगल-जज बेंच ने हिजाब को इस्लाम का अभिन्न हिस्सा तो बताया लेकिन सीबीएसई के नियमों को रद्द नहीं किया। कोर्ट ने सीबीएसई को निर्देश दिया कि अगर कोई हिजाब पहनकर एग्जाम देना चाहे तो उसे इजाजत दी जाए लेकिन अनुचित साधनों की जांच के लिए ऐसे स्टूडेंट्स की अतिरिक्त तलाशी हो सकती है। कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 25 के तहत हिजाब पहनने के अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए।

ऊपर के दोनों ही मामलों में फैसला सिंगल-बेंच जज का था और इस फैसले को बड़ी बेंच या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं दी गई। लिहाजा इन फैसलों का महत्व मोटे तौर पर एग्जाम के लिए ड्रेस कोड तक सीमित है।

वोटर आईडी कार्ड पर तस्वीर को लेकर मद्रास हाई कोर्ट का फैसला

हिजाब इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है या नहीं, ये मामला 2006 में भी मद्रास हाई कोर्ट के सामने आया था। एम अजमल खान बनाम इलेक्शन कमिशन ऑफ इंडिया मामले में कोर्ट ने कहा कि अगर मान भी लिया जाए कि पर्दा इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है तब भी ये अधिकार पब्लिक ऑर्डर, नैतिकता या स्वास्थ्य की शर्तों के अधीन है।

दरअसल, चुनाव आयोग की तरफ से फोटो वोटर आईडी को अनिवार्य किए जाने के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका डाली गई थी। एक मुस्लिम व्यक्ति ने याचिका डाली थी। उसने दावा किया कि फोटो वोटर आईडी उनकी धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाता है। इसके पीछे दलील दी गई कि वोटर आईडी पर महिलाओं की बिना हिजाब या पर्दा वाली तस्वीर होगी। तस्वीर को अजनबी भी देख सकेंगे। कुरान में इस बात की मनाही है।

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, ‘सूडान के एक जाने-माने विद्वान हसन अल तुराबी ने पर्दा से जुड़ीं कुरान की आयतों की व्याख्या की है…कुरान में पैगंबर मोहम्मद की पत्नियों के लिए पर्दा करने का जिक्र है (ताकि पैगंबर मोहम्मद के कमरे की निजता बनी रहे क्योंकि उनके यहां तमाम लोगों का लगातार आना-जाना लगा रहता था)। पैगंबर की पत्नियां ऐसे कपड़े पहनती थीं कि चेहरे और हाथों समेत उनके शरीर का कोई भी हिस्सा किसी पुरुष को नहीं दिखता था। हालांकि, बाकी सभी मुस्लिम महिलाओं को इन बंदिशों से आजादी मिली हुई थी।’

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा ”कनाडाई लेखक सैयद मुमताज अली और राबिया मिल्स ने अपने निबंध में समझाया है, ‘कुरान के चैप्टर 33 की आयात नंबर 53 में हिजाब से जुड़ा आदेश सिर्फ ‘एतमाद करने वालों की माताओं’ (Mothers of the believers) यानी ‘पैगंबर की बीवियों’ पर लागू होता है। वहीं कुरान के चैप्टर 33 की आयत नंबर 55 में लिखी बातें सभी मुस्लिम महिलाओं पर लागू होती है। इस आयत में किसी भी तरह के हिजाब (पर्दा) का कोई जिक्र नहीं है। इसमें सिर्फ वक्षस्थल को पर्दे से ढकने और गरिमामयी कपड़ों की बात की गई है। इसलिए भारतीय शैली के पर्दा सिस्टम (पूरे चेहरे को ढंकने वाला नकाब) की प्रथा ठीक नहीं है।”

हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था, ‘अगर यह मान भी लिया जाए कि पर्दा इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है तब भी आर्टिकल 25 ही साफ कर देता है कि ये अधिकार पब्लिक ऑर्डर, नैतिकता या पब्लिक हेल्थ के अधीन है। इसके अलावा संविधान के भाग-3 के दूसरे प्रावधान भी हैं…हमें यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं है कि चुनाव आयोग का निर्देश (वोटर आईडी पर अनिवार्य तस्वीर) अनुच्छेद 25 का उल्लंघन नहीं करता है।’

फातिमा तस्नीम बनाम केरल राज्य : हिजाब पहन स्कूल जाने की इजाजत नहीं-

केरल हाई कोर्ट में 2018 में भी हिजाब का मामला उठा। दरअसल, केरल के एक क्रिश्चियन स्कूल में पढ़ने वाली दो लड़कियों ने स्कूल के ड्रेस कोड को चुनौती देते हुए कहा था कि उन्हें हेड स्काफ के साथ-साथ पूरी बांह की टी-शर्ट पहनकर क्लास अटेंड करने दिया जाए। फातिमा तस्नीम बनाम केरल राज्य के मामले में हाई कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि अगर दो अधिकारों में टकराव हो तो किसी व्यक्ति विशेष के हित के ऊपर व्यापक हितों को तरजीह दी जानी चाहिए। हाई कोर्ट ने कहा कि इस मामले में व्यापक हित संस्थान के मैनेजमेंट का जुड़ा है। अगर मैनेजमेंट को अपनी संस्था को चलाने के लिए पूरी छूट नहीं दी गई तो ये उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा। दरअसल, इस मामले में क्रिश्चियन स्कूल को भी आर्टिकल 30 के तहत अल्पसंख्यकों को मिले शिक्षा संस्थाओं को चलाने का अधिकार था। लिहाजा मामला अधिकारों के टकराव का था। एक तरफ याचिकाकर्ता छात्राओं का अधिकार तो दूसरी तरफ स्कूल प्रशासन का अधिकार। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अगर अधिकारों में प्राथमिकता तय करने की बात होगी तो किसी व्यक्ति के हितों के ऊपर व्यापक हितों को तरजीह मिलनी चाहिए।

फातिमा हुसैन बनाम भारत एजुकेशन सोसाइटी केस, हिजाब को इजाजत नहीं –

बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी फातिमा हुसैन सैयद बनाम भारत एजुकेशन सोसाइटी (2002) के मामले में एक छात्रा को सिर पर स्कार्फ बांधकर स्कूल में जाने की इजाजत नहीं दी। सिर पर स्कार्फ बांधना उस निजी स्कूल के ड्रेस कोड का उल्लंघन था।

कर्नाटक में हिजाब विवाद के बीच फिर से खुले स्कूल, हाईकोर्ट में चल ही सुनवाई

1 जनवरी को, उडुपी के एक कॉलेज की 6 छात्राओं ने कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) द्वारा तटीय शहर में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में भाग लिया था, जिसमें कॉलेज के अधिकारियों ने उन्हें हिजाब पहनकर कक्षा में प्रवेश से वंचित कर दिया था। इसके चार दिन बाद जब उन्होंने कक्षाओं में हिजाब पहनने की प्रमुख अनुमति का अनुरोध किया था, जिसकी अनुमति नहीं थी। कॉलेज के प्रिंसिपल रुद्रे गौड़ा ने कहा था कि तब तक छात्राएं हिजाब पहनकर कैंपस में आती थीं और स्कार्फ हटाकर कक्षा में प्रवेश करती थीं। रुद्रे गौड़ा ने कहा था कि संस्था में हिजाब पहनने पर कोई नियम नहीं था और चूंकि पिछले 35 वर्षों में कोई भी इसे कक्षा में नहीं पहनता था। इस मांग के साथ आए छात्राओं को बाहरी ताकतों का समर्थन प्राप्त था।

मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने अपनी प्रतिक्रिया दी है,”“अदालत जो निर्णय देगा उसे हम स्वीकार करेंगे, लेकिन तब तक पूरे राज्य में यूनिफार्म नियम लागू किया जाए।”

डेमोक्रेटिक फ्रंट बैंगलुरु(ब्यूरो) :

कर्नाटक का हिजाब विवाद ऐसा तूल पकड़ा की यह राज्य के साथ देश और राजनीति तक फैल गया। कर्नाटक के कालेजों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने के बाद खूब विरोध हुआ, जिस पर अभी भी राजनीतिक बयानबाजी और विरोध प्रदर्शन जारी है। विवाद का माहौल इतना बिगड़ गया कि देश में अलग-अलग जगहों पर हिजाब मामले को लेकर गर्माहट बढ़ गई है। इन सबके बीच, कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने सोमवार यानी की आज से राज्य के 10वीं तक स्कूल खोलने की घोषणा कर दी। राज्य में हो रहे विरोध प्रदर्शन के बीच, सभी छात्र स्कूल जाते हुए नजर आए।

वहीं, कुछ जगह स्कूलों में हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश के अनुसार, हिजाब वाली छात्राओं को परिसर में प्रवेश नहीं देने पर अभिभावकों को स्कूल शिक्षकों में बहस भी देखने को मिली। हालांकि, स्कूल प्रबंधन ने सभी को हिजाब उतारने के बाद ही परिसर और कक्षाओं में प्रवेश दिया

उधर, सावधानी बरतते हुए रविवार को ही उडुपी जिला प्रशासन ने सभी हाई स्कूल, और उनके आसपास के क्षेत्रों में धारा-144 (Section 144) लागू कर दी थी। यह आदेश 14 फरवरी को सुबह छह बजे से 19 फरवरी की शाम छह बजे तक प्रभावी रहेगा। सरकार और जिला प्रशासन की ओर से पर्याप्त सुरक्षा बंदोबस्त किए गए हैं। वहीं, मुख्यमंत्री ने राज्य में शांति व्यवस्था कायम रहने की उम्मीद जताई है। 

यह कदम एहतियात के तौर पर उठाया गया है, क्योंकि राज्य में हिजाब बनाम भगवा गमछे का विवाद सियासी और धार्मिक रंग लेता जा रहा था। इससे पहले राज्य सरकार ने स्कूलों को बंद रखने का आदेश दिया हुआ था। घोषित छुट्टियां के पूरी होने के बाद अब सोमवार को स्कूल फिर से खुल गए हैं। 

उधर, हुबली में कर्नाटक के सीएम बसवराज बोम्मई ने रविवार को मीडिया से बातचीत में कहा कि राज्य में सोमवार से 10वीं तक के स्कूल खुलेंगे। मैंने डीसी, एसपी और स्कूल प्रशासन को शांति समिति की बैठक आयोजित करने के निर्देश दिए हैं। वहीं, उच्च कक्षाओं और डिग्री कॉलेजों के स्कूल स्थिति की समीक्षा के बाद फिर से खोले जाएंगे। 

इससे पहले रविवार को उडुपी के डीसी एम कूर्मा राव ने जिला पुलिस अधीक्षक को सभी हाई स्कूलों के आसपास 200 मीटर के दायरे में धारा 144 लगाने का आदेश दिया था। आदेश के अनुसार, स्कूल परिसर के आसपास पांच या अधिक सदस्यों के एकत्रित होने की अनुमति नहीं है। विरोध-प्रदर्शन और रैलियों सहित सभी प्रकार की सभाओं पर प्रतिबंध लगाया गया है। वहीं, नारे लगाने, गाने बजाने और भाषण देने पर सख्ती से रोक है।

इससे पहले राज्य के प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मंत्री बीसी नागेश ने बताया था कि हाईस्कूल की कक्षाएं सोमवार, 14 फरवरी से शुरू कराई जाएंगी। जबकि, प्री यूनिवर्सिटी और डिग्री कॉलेजों को वापस से खोलने पर सरकार सोमवार को फैसला कर सकती है। प्री-यूनिवर्सिटी और डिग्री कॉलेज फिलहाल, 15 फरवरी तक बंद रहेंगे। 

हिजाब और ड्रेस कोड मामले को लेकर कर्नाटक उच्च न्यायालय में अगली सुनवाई सोमवार, 14 फरवरी को होनी है। इससे पहले गुरुवार, 10 फरवरी को हुई सुनवाई में हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी कर फैसला आने तक स्कूल-कॉलेजों में हिजाब समेत अन्य धार्मिक कपड़े पहनने पर रोक लगा दी थी। साथ ही हाईकोर्ट ने स्कूल-कॉलेज पुन: खोलने को कहा था।