तो क्या अब दाग अच्छे हैं ????


  • अब कानून तोड़ने वालों को होगी कानून बनाने कि आज़ादी

  • 1581 जन प्रतिनिधि आपराधिक मामलों में संलिप्त

  • राजनेताओं पर 3045 आपराधिक मामले दर्ज


25 सितम्बर, सारिका, पुरनूर :

उच्चतम न्यायालय ने अपने हाथ बंधे होने का हवाला देते हुए कहा कि राजनैतिक पार्टियाँ ही अपने दागी नेताओं को चुनाव लड़ने से रोकना चाहें तो रोक सकतीं हैं. इसके लिए नयायपालिका कि कुछ सीमाएं हैं इस लिए विधानपालिका ही इस पर क़ानून बना सकती है.

यह बात नयायपालिका उस समय कह रही है जबकि चुनाव टिकट बाँटने में अब समय नहीं बचा है.

उच्चतम न्यायलय ने ओउप्चारिकता निभाते हुए राजनैतिक नैतिकता पर सिर्फ भाषण दिया और कहा कि राजनैतिक अप्रधिकर्ण एक रिवाज बन गया है जो कि बहुत चिंता जनक है.

राज्य इस राजनैतिक आपराधिक व्यवस्था का शिकार न हों इसके लिए राजनैतिक पार्टियाँ ही तय करें कि क्या वह अपने दागी छवि वाले नेताओं को चुनावी मैदान  में उतारना चाहतीं हैं या नहीं, साथ ही उन्होंने कहा कि राजनैतिक  पार्टियाँ अपे दागी नताओं को और उनके खिलाफ चल रहे मामलों का पूरा ब्यौरा अपनी website पर डालें.

यह फैसला सुप्रीम कोरट के ही २००२ के फैसले का एक्सटेंशन है.

आपको बता दें राजनेताओं के विरूद्ध 1581 आपराधिक मामले विभिन्न न्यायालयों में लंबित हैं. ज़यादा मामले महिलाओं के प्रति अपराध के हैं.

आमतोर पर इन मामलों में केवल 40% मामलों ही में सजा हो पाती है उसी में भी यदि सजा 2 वर्ष से कम है तो उसी समय जमानत भी मिल जाती है. अन्य आपराधिक मामलों में केवल 30% मामलों ही में सज़ा हो पाती है. ऐसी स्थिति में न्याय पालिका कैसे सोच सकती है कि देश को स्वास्थ्य विधानपालिका मिल सकती है.

न्यायपालिका के 5 न्यायाधीशों कि बेंच ने फैसला लिया कि आरोप तय होने पर चुनाव लड़ने पर रोक लगाना सही नहीं.

आपको बता दें अब तक दो साल से अधिक कि सज़ा होने पर ही चुनाव लड़ने पर रोक का प्रावधान था, इसके अतिरिक्त कुछ ख़ास किस्म के आपराधिक मामलों में दो वर्ष से कम कि सजायाफ्ता नेताओं पर भी रोक लगाए जाने का प्रावधान था.

अब सवाल यह है कि बहुत से सामजिक मामलों में स्वयं संज्ञान लेने और पुराणी परम्पराओं को तोड़ने वाले बड़े फैसले सुनाने वाली न्यायपालिका के हाथ इन मामलों में कैसे बंध जाते हैं. पाने द्वारा ही अपराधी घोषित करने के बावजूद देश को आपराधि के हाथ सोंप देना और अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ना कहाँ तक तर्कसंगत है?  अपराधी राजनीतिज्ञों के मामलों में अपने बंधे हाथों का हवाला देते हुए न्यायलय ने गेंद संसद के पाले में दाल दी. अब देखना यह है कि संसद इस मामले में क्या करती है, क्योंकि कुछ राज्यों में तो चुनाव आचार संहिता लागो होने वाली है. ऐसे में तो कोई अध्यादेश भी जारी नहीं किया जा सकता है. सबसे बड़ी बात यदि राजनैतिक दल चाहते तो नौबत यहाँ तक आती ही क्यों? उससे भी ऊपर राजनैतिक दल स्वच्छ और स्वास्थ्य छवि वाले नेता कहाँ से लाय्न्गी.

यह मसला विधान पालिके में फैंकने कि बजाय न्यायालय ने अपने विवेक से फैसला देता तो सर्वदा मानी होता क्योंकि क़ानून कि नज़र में अपराधी अब देश कि बागडोर संभालेंगे.

संविधान सरंक्षक के बंधे हाथ हज़म नहीं हो रहे.

कर्नाटक के मंत्री डीके शिवकुमार और अन्य के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का एक मामला दर्ज


जांच एजेंसी ने शिवकुमार, नयी दिल्ली स्थित कर्नाटक भवन में कर्मचारी हनुमनथैया और अन्य के खिलाफ धन शोधन रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के तहत मामला दर्ज किया है


प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कर्नाटक के मंत्री डीके शिवकुमार और अन्य के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का एक मामला दर्ज किया है. अधिकारियों ने बताया कि यह मामला कथित कर चोरी और हवाला लेनदेन मामले के आधार पर दर्ज किया गया है.

अधिकारियों ने बताया कि जांच एजेंसी ने शिवकुमार, नयी दिल्ली स्थित कर्नाटक भवन में कर्मचारी हनुमनथैया और अन्य के खिलाफ धन शोधन रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के तहत मामला दर्ज किया है.

कथित कर चोरी और करोड़ों रूपए के हवाला लेनदेन के मामले में इस साल की शुरुआत में आयकर विभाग ने बेंगलुरू की एक विशेष अदालत में उनके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया था. यह मामला उसी आरोप पत्र के आधार पर दर्ज किया गया है.

आरोपियों को जल्दी ही समन भेजा जा सकता है:

आरोपियों के बयान दर्ज करने के लिए एजेंसी उन्हें जल्द ही समन भेज सकती है. आयकर विभाग ने शिवकुमार और उनके सहयोगी एसके शर्मा पर तीन अन्य लोगों की मदद से आय से अधिक धन नियमित तौर पर हवाला माध्यमों के जरिए लाने – ले जाने का आरोप लगाया है.

अन्य आरोपी- सचिन नारायण, अंजनेय हनुमनथैया और एन राजेंद्र हैं.

आयकर विभाग ने आरोप लगाया कि सभी पांचों आरोपियों ने कर चोरी की साजिश रची.

विभाग ने कहा कि बीते अगस्त में नयी दिल्ली और बेंगलुरू में छापेमारी के दौरान करीब 20 करोड़ रूपए की अवैध संपत्ति बरामद की गई, जिसका शिवकुमार से सीधा संबंध है.

पेट्रोल 55 और डीजल 50 रुपए लीटर मिलेगा: गडकरी


केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘हमारा पेट्रोलियम मंत्रालय एथेनॉल बनाने के लिए पांच प्लांट लगा रहा है, एथेनॉल लकड़ी और नगर निगम के कचरे से बनाया जाएगा’


पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों के बीच सड़क और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने बायोफ्यूल के उपयोग का तरीका सुझाया है. गडकरी ने कहा, मैं 15 वर्षों से कह रहा हूं कि किसान और आदिवासी बायोफ्यूल बना सकते हैं. जिससे हवाई जहाज तक उड़ सकता है. हमारी नई तकनीक से बनी गाड़ियां किसानों और आदिवासियों द्वारा बनाए गए एथेनॉल से चल सकती हैं.

इसी के साथ उन्होंने पेट्रोल और डीजल के बढ़ते दामों का भी जिक्र किया. सोमवार को एक सभा को संबोधित करते हुए नितिन गडकरी ने कहा, हम पेट्रोल और डीजल के आयात पर 8 लाख करोड़ रुपए खर्च करते हैं. पेट्रोल की कीमत में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. डॉलर की तुलना में रुपए की कीमत घट रही है.’

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ANI

एथेनॉल है पेट्रोल-डीजल का विकल्प

केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘हमारा पेट्रोलियम मंत्रालय एथेनॉल बनाने के लिए पांच प्लांट लगा रहा है. एथेनॉल लकड़ी और नगर निगम के कचरे से बनाया जाएगा. इसके बाद डीजल की कीमत 50 रुपए प्रति लीटर और पेट्रोल का विकल्प 55 रुपए प्रति लीटर पर उपलब्ध होगा.’

दरअसल पिछले कुछ दिनों से पेट्रोल और डीजल की कीमतों में लगातार वृद्धि हुई है. और फिलहाल पेट्रोल और डीजल के दाम अब तक के सबसे उच्चतम कीमत पर पहुंच गए हैं. इसके चलते सोमवार को कांग्रेस ने बंद का आयोजन भी किया था.

Aero Show to remain in Bengaluru


Following the controversy over a proposed move to shift the venue of the Aero India, the Ministry of Defence confirmed on Saturday that the mega airshow will be held in its traditional venue of Bengaluru in Karnataka.


Following the controversy over a proposed move to shift the venue of the biennial Aero India show, the Ministry of Defence confirmed on Saturday that the mega airshow will be held in its traditional venue of Bengaluru in Karnataka.

“The Government has decided to hold the Aero India 2019 in Bengaluru from 20 to 24 February 2019,” the MoD said in a statement.

The Defence Ministry’s decision thus ends uncertainty over the venue of the 12th edition of Aero India. It was speculated that the venue may be shifted out of Karnataka especially after Uttar Pradesh Chief Minister Yogi Adityanath made a request to Defence Minister Nirmala Sitharaman in August to select Lucknow as the venue for the mega event.

Besides Uttar Pradesh, the Defence Ministry had indicated that it was examining requests from a number of states including Gujarat, Rajasthan, Odisha and Tamil Nadu.

Political leaders in Karnataka had protested against any move to shift the Aero India out of the state.

Deputy Chief Minister of Karnataka G Parameshwara called the “plan” unfortunate and alleged that the Centre was trying to end Bengaluru’s dominance in the defence sector.

“Plan to snatch Aero India Show away from Bengaluru in favour of Lucknow is very unfortunate. We have been conducting it successfully since 1996. This comes after HAL was snubbed for Rafael deal. Centre seems to be keen on ending Bengaluru’s dominance in the defence sector,” he said on Twitter on 3 August.

After Adityanath’s argument that bringing the Aero India to Lucknow will give a fillip to the proposed defence corridor in Uttar Pradesh, Karnataka Chief Minister HD Kumaraswamy wrote to Prime Minister Narendra Modi arguing in favour of Bengaluru.

“Bengaluru being the hub for defence and aviation majors of the country is certainly the most suitable place to conduct the show,” he had said in the letter.

Meanwhile, the Defence Ministry said that the five-day event will combine a major trade exhibition for the aerospace and defence industries with public air shows.

“Besides global leaders and big investors in aerospace industry, the show will also see participation by think-tanks from across the world,” the government said.

Stating that the Aero India will provide a unique opportunity for exchange of information, ideas and new developments in the aviation industry, the government said that it will give a “fillip to the domestic aviation industry it would further the cause of Make in India”

Karnataka local body polls: Congress edges past BJP | JD(S) comes third


Karnataka Chief Minister HD Kumaraswamy hailed the victory of the coalition parties of Janata Dal (Secular) and Congress following the results of the elections for urban local bodies in the state

On Monday, results for 2,662 of the 2,709 seats were declared with the Congress securing 982 seats and the BJP 929 in the elections that were held on 31 August.

The JD(S) came a distant third with 375 seats and others, including 329 independents, bagging the rest of the seats.


Less than four months after the Assembly election, the Congress on Monday won the most seats in Karnataka’s 105 urban local bodies, pushing the BJP to the second spot, and voicing confidence that a Congress-JD(S) combine will sweep the Lok Sabha polls.

“The Congress winning 982 of the 2,662 civic body seats across the State shows people’s confidence in the party and our coalition government with the Janata Dal-Secular (JD-S),” State Congress President Dinesh Gundu Rao told reporters here.

“The Congress cannot be written off in Karnataka any more. We (Congress and JD-S) will have a pre-poll alliance for the Lok Sabha elections which we are confident of winning,” Mr. Rao added.

In the polls for urban bodies across 22 of the State’s 30 districts held on August 31, the Congress has won 982 of the total 2,662 seats. The Bharatiya Janata Party (BJP) came second with 929 seats while the JD-S remained far behind with 375 seats.

Independents bagged 329 seats, the Bahujan Samaj Party (BSP) 13 and other regional parties and fringe outfits won 34 seats.

While the Congress won majority seats in 10 districts, it was looking at an alliance with JD-S in a few regions to keep the BJP out of power, as it did in the Assembly election in May which threw up a hung verdict, Mr. Rao said.

Even as the BJP won majority seats in seven districts including the coastal districts of Udupi and Dakshina Kannada, the JD-S and Congress tie-up will control most of the urban bodies in the State.

In the Assembly election, of the 224 constituencies, the BJP won 104 seats, the Congress 80 and JD-S along with BSP (38).

JD-S leader and Chief Minister H.D. Kumaraswamy termed Monday’s results a victory for the coalition government.

“The outcome shows that JD-S and Congress have won the trust of not just the rural electorate but urban voters as well,” Mr. Kumaraswamy told reporters here.

The BJP, on the other hand, blamed the JD-S and Congress for its poor showing.

“The BJP should have won more seats but we could not perform the way we wanted to because of the Congress-JD-S coalition,” BJP State unit President B.S. Yeddyurappa told reporters here.

But the BJP is confident of winning a majority in the Lok Sabha election, he said.

The BJP performed well in its traditional bastions of coastal districts while the Congress retained its position in its strongholds of northern districts.

Polling took place last Friday across 22 districts of the State spread over 29 city municipalities, 53 town municipalities, 23 town panchayats and 135 wards of three city corporations — Mysuru, Shivamogga and Tumakuru.

The polling in 45 seats of Kodagu district’s civic bodies has been postponed due to heavy rains and floods.

In the 2013 elections held for 4,976 seats, the Congress won 1,960 seats, while BJP and JD-S won 905 seats each while Independents bagged the remaining 1,206 seats.

कर्नाटक में 105 स्थानीय निकाय के चुनावों के नतीजे सोमवार को


सोमवार को वोटों की गिनती होगी. काउंटिंग सुबह 8 बजे से शुरू हो जाएगी. उम्मीद है कि नतीजे रात तक घोषित हो जाएंगे. इन चुनावों में EVM का इस्तेमाल किया गया था

इस चुनाव में 2662 सीटों के लिए 9121 उम्मीदवारों की किस्मत दांव पर लगी है


कर्नाटक में सत्ताधारी जेडीएस और कांग्रेस का गठबंधन निकाय चुनाव में जारी रहेगा. एक स्थानीय नेता ने कहा ‘यह गठबंधन बीजेपी को सत्ता से बाहर करने के लिए है.’

पार्टी नेता ने बताया ‘वैसे तो हमें निकाय चुनावों में पूर्ण बहुमत मिलेगा. यदि ऐसी स्थिति होती है कि बहुमत नहीं मिलता तो हम लोग नगर निगम में भी एक साथ आएंगे. इसका एक उदाहरण मई 12 को हुए विधानसभा चुनाव में भी सभी देख चुके हैं.’

कर्नाटक में 105 स्थानीय निकाय के चुनावों के नतीजे सोमवार को आनेवाले हैं. इस चुनाव में 2662 सीटों के लिए 9121 उम्मीदवारों की किस्मत दांव पर लगी है. इस चुनाव के नतीजे कांग्रेस और जेडीएस के लिए चुनौती बन सकते हैं. हालांकि बीजेपी इस चुनाव में उम्मीद जता रही है कि उसे फायदा हो सकता है.

बता दें कि इस चुनाव में कई उम्मीदवारों को पार्टियों ने टिकट नहीं दी थी इसलिए वह निर्दलीय चुनाव लड़े थे. सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस ने सबसे ज्यादा लोगों को चुनाव से बेदखल कर दिया था क्योंकि इन लोगों पर पार्टी के अनुशासन को तोड़ने का आरोप था.

भारी बारिश होने की वजह से कई इलाकों में वोटिंग पर भी असर पड़ा था. स्कूल और कॉलेजों को भी बंद कर दिया गया था. हालांकि शांति के साथ चुनाव संपन्न करने के लिए भारी सुरक्षा की व्यवस्था की गई थी.

गौरतलब है कि इन चुनावों के नतीजे सियासी पार्टियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि 2019 के चुनाव नजदीक हैं, ऐसे में वोटों का गिरता या बढ़ता हुआ ग्राफ पार्टियों की आगामी रणनीति की दिशा तय करेगा.

सोमवार को वोटों की गिनती होगी. काउंटिंग सुबह 8 बजे से शुरू हो जाएगी. उम्मीद है कि नतीजे रात तक घोषित हो जाएंगे. इन चुनावों में EVM का इस्तेमाल किया गया था.

स्टेट इलेक्शन कमीशन के मुताबिक, 2,662 नगर वार्ड, 29 शहर नगर पालिकाओं, 53 शहर नगर पालिकाओं, 23 नगर पंचायत और 135 कॉर्पोरेशन वार्ड पर वोटिंग हुई थी. जेडीएस निकाय चुनावों में कांग्रेस का समर्थन करने के लिए तैयार है. यह समर्थन बीजेपी को सत्ता से बाहर करने के लिए किया जा रहा है. सभी सीटों पर 8,340 उम्मीदवार थे. वहीं कांग्रेस के 2,306, बीजेपी के 2,203 और 1,397 जेडीएस के थे.

Sudha Bhardwaj denies Maharashtra police’s claims, terms letter “concocted”, “fabricated”

Sudha-Bhardwaj


At a press conference in Mumbai on Friday, the Maharashtra Police said that Bharadwaj had written a letter to a certain “Comrade Prakash”.


Activist Sudha Bharadwaj, who was arrested along with four others on 28 August, rejected the Maharashtra Police’s accusation that the accused had “clear links” with Maoists. In a hand-written statement issued on 1 September, Bharadwaj, who is currently under house arrest, said the police had “totally concocted” a letter to implicate her.

“It is a totally concocted letter fabricated to criminalise me and other human rights lawyers, activists and organisations,” the letter read.

Bharadwaj’s statement was shared through her lawyer Vrinda Grover.

At a press conference in Mumbai on Friday, the Maharashtra Police said that Bharadwaj had written a letter to a certain “Comrade Prakash”. The police had also read out passages from seized letters allegedly establishing the links between the Naxals and those arrested.

Bharadwaj, a visiting professor of Law-Poverty and tribal rights at the National Law University (NLU), Delhi, said that the purported letter shown by the police is a “mixture of innocuous”.

She claimed a number of human rights lawyers, activists and organisations were deliberately named to cast a stigma over them, obstruct their work and incite hatred against them.

“I categorically state that I have never given Rs 50,000 to hold any programme in Moga. Nor do I know any Comrade Ankit who is in touch with Kashmiri separatists,” she wrote.

The activist, who is also the general secretary of People’s Union for Civil Liberties (PUCL) in Chhattisgarh, said that she knows Gautam Navlakha as “a senior and respected human rights activist whose name has been mentioned in a manner to criminalise and incite hatred against him”.

Navlakha is journalist and civil rights activist who is also involved with PUCL. He has also served as a convener for International People’s Tribunal for Human Rights and Justice in Kashmir. He was picked up by the Pune Police from New Delhi on the same day as the other four.

Early this week, the police raided the homes of activists and lawyers from five states – Varavara Roa in Hyderabad, Vernon Gonsalves and Arun Ferreira in Mumbai, Bharadwaj in Fariadabad and Navalakha in Delhi. All five were arrested.

Lawyers of the arrested activists slammed the Pune Police for trying to indulge in media trial by publicly sharing sensitive information that is part of investigation.

“What police has done today in the press conference is wrong. Even defence lawyers do not have access to these documents, which the police claim as evidence against accused persons. It is clear that the police is indulging in media trial to put pressure on the judiciary,” Rohan Nahar, lawyer for P Varavara Rao, was quoted as saying by Indian Express.

Vernon Gonsalves’ lawyer Tosif Shaikh, too, backed the “media trial” claim stating that the police does not have strong evidence to prove allegations.

On Friday, ADG (Law and Order), Maharashtra Police, Parambir Singh said at a press conference in Mumbai that the arrests were made only after “we were confident that clear links have been established”.

“Evidence clearly establishes their roles with Maoists,” he said adding that letters exchanged between the activists point to the plotting of a “Rajiv Gandhi-like” incident

तरुण सागर जी के ब्रह्मलीन होने की खबर सुनकर आहत हूं: अनिल विज

 

 

अम्बाला- जैन मुनि तरुण सागर जी के निधन पर हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने व्यक्त किया शोक।

अम्बाला- विज ने कहा समाज को सही दिशा दिखाने में हमेशा याद किया जायेगा तरुण सागर जी का योगदान।

अम्बाला- विज ने कहा- तरुण सागर जी के ब्रह्मलीन होने की खबर सुनकर आहत हूं।

स्थिर सरकार, योग्य कार्यपालिका ने बदली बस्तर की तस्वीर, विकास ने यहाँ तो पैर पसार ही दिये


पिछले कई सालों से छत्तीसगढ़ की गिनती देश के नक्सल प्रभावित राज्यों में पहले नंबर पर की जाती है.


पिछले कई सालों से छत्तीसगढ़ की गिनती देश के नक्सल प्रभावित राज्यों में पहले नंबर पर की जाती है. कुछ समय पहले तक राज्य के बस्तर, दंतेवाड़ा, जगदलपुर, बीजापुर, सुकमा, राजनांदगांव, कांकेर सहित लगभग 16 जिलों में नक्सलियों का खुलमखुल्ला तांडव चलता था. केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार भी नक्सलियों के सामने लाचार, विवश और बेसहारा बन कर यह सब देखते रहते थे.सारी मशीनरी नक्सलियों के सामने घुटने टेक देती थी.

30-40 साल बाद एक बार फिर से वही हाथ उठने लगे हैं, एक बार फिर से बंदूकों से गोलियां गरजने लगी हैं, लेकिन अब बंदूकों से निकलने वाली गोलियों की दिशा बदल गई है. जो आदिवासी पहले कभी नक्सली बन कर राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल हुआ करते थे, वही नक्सली अब छत्तीसगढ़ पुलिस में भर्ती हो कर दूसरे लोगों की जान की रक्षा करने में लग गए हैं. ये वही लोग हैं जो बाकी बचे-खुचे नक्सलियों के खिलाफ भी अब काल बन कर सामने खड़े हो गए हैं. ये लोग समाज की मुख्यधारा में वापस लौट कर समाज के लिए कुछ कर गुजरने की तमन्ना पाले हुए हैं.

जो लोग कुछ साल पहले तक नक्सली जुल्म का शिकार थे वो अब सहकारी समिति के माध्यम से पॉस्चराइजेशन प्लांट में दूध बेच कर पैसे कमा रहे हैं. इसके अलावा परम्परागत जैविक खेती कर चावल पैदा कर रहे हैं और मुंबई और चेन्नई जैसे बड़े व्यापारिक हब को निर्यात भी कर रहे हैं.

जिन सड़कों पर कभी आदिवासी महिलाएं सिर पर लकड़ी लेकर जाती थीं वही महिलाएं अब बेहतरीन सड़कों पर सार्वजनिक यातायात के जरिए गैस का सिलेंडर लेकर जाते हुए देखी जा सकती हैं. गांव की दुकानों और बाजारों में पहले जो वीरानी छाई रहती थी, उन दुकानों और बाजारों में अब रौनक रहती है.

दंतेवाड़ा जिले के बोमड़ा पारा ब्लॉक के जावंगा गांव की एक महिला बुड़िया, गांव की खूबसूरत सड़क के किनारे खड़ी होकर टूटी-फूटी हिंदी में बात करते हुए कहती हैं, मैं अब घर पर ही ज्यादा काम करने लगी हूं. अभी पति के साथ साइकिल से गांव से बाजार आई हूं. पति के साथ खेती में सहयोग करती हूं. दो बच्चे हैं, पांच साल का बेटा है और सात साल की बेटी. दोनों बच्चे स्कूल गए हैं, इसलिए हमलोग बाजार में सामान खरीदने आए हैं. पति जैविक खेती करते हैं. पति का भी सहकारी समिति में कुछ काम था इसलिए हमलोग दोनों एक साथ बाजार आए हैं.’

बुड़िया से पत्रकारों  ने सवाल किया कि आपके लिए राज्य के सीएम रमन सिंह ने क्या-क्या काम किया है तो उस पर बुडिया कहती हैं, ‘राशन अब समय पर मिलने लगा है. पहले हमलोग राशन लेने नहीं जाते थे. अपने खेत का उपजा हुआ चावल ही खाते थे. लेकिन, अब हमें सरकार की तरफ से मदद मिलने लगी है. गांव में बिजली भी आ गई है. 20 से 22 घंटे बिजली रहती है. गांव में ही पानी भी पहुंचने वाला है. कलेक्टर साहेब अक्सर गांव आते रहते हैं. पानी लाने के लिए हमें अब दूर नहीं जाना पड़ता है.’

आतंक की त्रासदी में दशकों जीने को मजबूर ये लोग अब अपने दम पर खड़े हो रहे हैं. छत्तीसगढ़ देश का अकेला ऐसा राज्य है, जिसमें अनाज का उत्पादन ही नहीं, उत्पादकता भी बढ़ी है. यानी लागत कम, अनाज ज्यादा. यहां के युवाओं को बीपीओ के जरिए रोजगार मुहैया कराया जा रहा है. यहां के युवा किसी भी दूसरे शहर के लड़के-लड़कियों की तरह फर्राटेदार अंग्रेजी में बात करते मिल जाते हैं.

दंतेवाड़ा के एक बीपीओ में काम करने वाली और दंतेवाड़ा के ही पीजी कॉलेज से एमए पास मीना सेनापति कहती हैं, ‘पहले मेरी कम्यूनिकेशन स्किल अच्छी नहीं थी. मैंने 45 दिनों की बीपीओ ट्रेनिंग ली. मेरे बातचीत करने का तरीका बेहतर हुआ है. मुझे 8 हजार की नौकरी भी मिल गई है.’

दंतेवाड़ा के इसी बीपीओ में काम करने वाली नीता देशमुख कहती हैं, ‘मैं ग्रेजुएट हूं. दंतेवाड़ा में गीदम एक जगह है वहां की रहने वाली हूं. सात महीने पहले मैं इस बीपीओ में आई थी, तब मुझे कुछ नहीं आता था. मेरा सपना था कि मैं वेब डिजायनर बनूं, लेकिन पैसे की कमी के कारण मेरा सपना पूरा नहीं हो रहा था. लेकिन अब मुझे आठ हजार रुपए मिलते हैं, जिससे मैं अपना सपना पूरा कर सकती हूं. पापा राजमिस्त्री का काम करते हैं. मैं चार बहनों में दूसरे नंबर पर हूं. दो बहन की शादी हो चुकी है.’

इसी तरह बछेली की रहने वाली कांति नाग, दंतेवाड़ा की रहनेवाली निधि बैरागी और रवि प्रकाश बीपीओ में काम कर अपना सपना पूरा करना चाहते हैं. इन युवाओं को सरकार की तरफ से रोजगार मुहैया कराया जा रहा है. फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली हिना सिंह, जिनके पिता नौकरी करने सालों पहले कर्नाटक से दंतेवाड़ा आ गए थे, कहती हैं, ‘मैं एक ट्यूटर हूं. पिछले 21 सालों से ट्यूशन पढ़ाती आ रही हूं. इस बीपीओ के जरिए मुझे फिक्स्ड सैलेरी मिल रही है. पति ड्राइवर का काम करते हैं. यहां से छूटने पर मैं 10वीं क्लास तक के बच्चों को पढ़ाती भी हूं.’

दूसरी तरफ दिव्यांग बच्चों के लिए भी दंतेवाड़ा में एक शानदार मुकबधिर स्कूल चलाया जा रहा है. हाल ही में इस स्कूल में देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ने दौरा किया था. यहां पढ़ने वाली दंतेवाड़ा के कुआकोंडा ब्लॉक के माड़ेंदा गांव की हड्मा हंस कर कहती हैं, ‘बहरेपन का इलाज नहीं होने पर भी वे इशारों में बात कर लेती थीं पर अब सरकारी इलाज के बाद यह फायदा हुआ है कि दूसरे उनके बारे में क्या कह रहे हैं यह सुन सकती हूं. आम लोगों की तरह संवाद कर सकती हूं.’

आज से कुछ साल पहले तक छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के सातों जिलों बस्तर, दंतेवाड़ा, जगदलपुर, बीजापुर, सुकमा, राजनांदगांव, कांकेर जिले का नाम सुनते ही लोगों के मन में भय तारी हो जाता था. कहा जाता था अगर एक तरफ से कोई हिंसक जानवर हमला करे और दूसरी तरफ से नक्सली तो लोग पहले की तरफ भागना पसंद करते थे. यही सोच कर कि जानवर तो सिर्फ एक झटके में मारेगा. तड़पना तो नहीं पड़ेगा.

सालों बाद आज स्थानीय अखबारों में खबर देखने को मिलती है कि इस अप्रतिमरूप से प्राकृतिक सौन्दर्य समेटे हाथ-से-हाथ न दीखने वाले जंगल से घिरे अमुक गांव मे एक-दो नक्सलियों ने मोबाइल छीन लिया. दरअसल स्थानीय मीडिया भी अब नक्सली और औसत अपराधी को समानार्थी समझने लगा है. यह स्थिति चरम वामपंथ जो पिछले 60 सालों में ‘राज्य-पोषित शोषण को हथियार से खत्म करने’ के नाम पर देश के 10-12 राज्यों में लंपटवादी आतंक का पर्याय बन गया था, अब पता चला कि सड़क-छाप गुंडई के रूप में अंतिम सांसें गिन रहा है.

यह सब कुछ संभव कैसे हुआ !

कुछ साल पहले छत्तीसगढ़ सरकार ने अपनी कुछ प्रचार सामग्री (बुकलेट) छापी, जो बाहर से आने वाले किसी भी स्वतंत्र विश्लेषक को उपलब्ध होती है, लेकिन चूंकि यह सरकारी ज्ञान होता है, जिस पर सहज विश्वास करना मुश्किल होता है, लिहाजा तस्दीक के लिए हमारी टीम हाईवे के पास के गांव में निकल गई. सड़क के पास ही कुछ आदिवासी महिलाएं गैस सिलिंडर के साथ दिखीं. उनके चेहरे पर खुशी देखने को मिली. इन महिलाओं से पूछने की कोशिश की तो टूटी-फूटी हिंदी में कहती हैं, ‘सरकार ने दिया है. जलाना आता है का जवाब हंस कर देती हैं, घर जा कर किसी से पूछेंगे.

कैसे स्वतंत्र रूप से काम कर रहा है प्रशासन?

इस राज्य में एक व्यक्ति और एक पार्टी का शासन पिछले 15 साल से जारी है. छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ सालों से युवा आईइएस और आईपीएस अधिकारियों में इस बात की होड़ लगी है कि कौन विकास के नए विचार अमल में लाता है या कौन कानून व्यवस्था को ज्यादा दुरुस्त करता है. विकास के 31 पैरामीटर्स पर कौन जिलाधिकारी इस माह किससे आगे या पीछे रह गया है, इसकी समीक्षा की जाती है. साथ ही, अधिकारियों को तबादले की चाबुक से डराने का खेल यहां नहीं चलता.

सौरभ कुमार सिंह

चार साल से भी ज्यादा समय से दंतेवाड़ा में तैनात 2009 बैच के आईएएस अधिकारी और जिले के डीएम सौरभ कुमार सिंह हमसे बात करते हुए कहते हैं, ‘मेरा मानना है कि एक आईएएस अधिकारी को काम करने के लिए बिहार, छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे राज्य ही बने हैं. ये ऐसे राज्य हैं, जहां पर काम करने की संभावना सबसे ज्यादा हैं. किसी भी स्तर के अधिकारी को अगर सच में कुछ कर के दिखाना है तो दो चीजें होनी चाहिए, पहली काम करने के लिए ऐसी परिस्थितियां होनी चाहिए, जो आपके काम को प्रमोट करें. जिसके लिए पोलिटिकल स्टेबलिटी होना बहुत ही आवश्यक है. दूसरा, एक ऐसा एनवायरमेंट होना चाहिए जिससे आप एक निश्चित समय-सीमा में काम कर दिखा सकें. हम अगर बात करें साल 2015 या 2016 की तो जिले में संस्थागत प्रसव रेट 38 प्रतिशत था. आज की तारिख में यह 78 प्रतिशत है. अब महिलाएं अस्पताल में जाकर प्रसव करा रही हैं. ये सब तभी संभव हो पाता है जब आपको एक अच्छा प्लेटफॉर्म मिले. ये सब छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में ही आपको करने को मिलेगा. ’

सौरभ कुमार सिंह आगे कहते हैं, ‘दंतेवाड़ा में प्राइवेट सेक्टर में पिछले छह महीने में रोजगार डबल हो गए हैं. अगर जिले में योजनाओं की बात करें तो यहां पर एससीए या भारत सरकार की होम मिनिस्ट्री के जरिए जो पैसा आता है उससे कहीं अधिक पैसा दंतेवाड़ा जिले को माइनिंग फंड से मिलता है, जिसमें राज्य शासन ने जो नियम बनाए हैं उसमें ज्यादातर अधिकार जिले के कलेक्टर को दिए हैं. उसी के समकक्ष जिले में जो बड़ी इंडस्ट्री चल रही जैसे एनएमडीसी के सीएसआर का पैसा भी आता है. इन पैसों के इस्तेमाल का अधिकार राज्य शासन ने कलेक्टर को दे रखा है. मेरा मानना है कि सबके अंदर कुछ न कुछ कर के दिखाने की चाहत होती है चाहे वह नेता हों या अधिकारी. हम साल में एक हजार युवक और युवतियों को नौकरी देने का काम करते हैं तो इसमें हमें कौन रोक सकता है. हजारों महिलाओं को सिलाई की ट्रेनिंग दी जाती है ताकि ली कूपर और रेमंड जैसी कंपनियों से उनके पास सिलाई के ऑफर आ रहे हैं तो इसमें कौन रोक सकता है. चाहे नेता हों या जनता हो या फिर कोई और लोग सकारात्मक चीजों के साथ जुड़ना चाहते हैं.’

‘दंतेवाड़ा जिले में हमलोग यही काम कर रहे हैं. जिले में एक जैविक कैफे चल रहा है, जो किसानों की एक कंपनी चला रही है. हमको हरियाणा, पंजाब की तरह उत्पादकता में नहीं जाना है बल्कि अपने उत्पाद को अलग बनाना है. अगर रोजगार की बात करें तो हम गुरुग्राम और नोएडा से कंपेयर नहीं कर सकते हैं, पर अगर यहां के युवाओं को हम 8 हजार रुपए दे कर रोजगार दे रहे हैं तो क्या यह कम है. जिले की 150 महिला समूह ऑटो चला रही हैं. हमने सड़कें तो बना दी लेकिन लोगों के आय का लेवल इतना नहीं है कि वह ऑटो खरीद सकें. उनको हम ऑटो प्रोवाइड कर रहे हैं. 210 महिला समूह एक अलग जाति का कड़कनाथ मुर्गे का प्रजनन कर रहे हैं.’

दंतेवाड़ा के डीएम जहां जिले में विकास के नए आयाम स्थापित कर रहे हैं वहीं जिले के एसपी डॉ. अभिषेक पल्लव नक्सलियों के मंसूबे को तहस-नहस कर नक्सलियों को मुख्यधारा में जोड़ने का काम कर रहे हैं. और यह सब तब शायद संभव नहीं होता अगर राज्य सरकार के द्वारा युवा पुलिस अधिकारियों के लिए रणनीतिक परिवर्तन न किया होता.

इस प्रश्न पर कि सड़कों पर इस बीहड़ जंगल में भी पुलिस नहीं दिखाई दे रही है और क्या कहीं यह आत्ममुग्धता तो नहीं है या फिर पुलिस का अभाव है, दंतेवाडा के युवा पुलिस अधीक्षक डॉ. अभिषेक पल्लव कहते हैं, ‘नहीं अब पुलिस आप को ही नहीं, नक्सलियों को भी दिखाई नहीं देती बस उन्हें गोली की आवाज सुनाई देती है और उनके समझने के पहले वे इसका शिकार हो चुके होते हैं. आपको बता दें कि सीआरपीएफ छत्तीसगढ़ में 2003-04 में आई. इससे पहले हमलोग यहां की भाषा को नहीं जानते थे. यहां के लोगों के कल्चर के बारे में हमलोगों को पता नहीं रहता था. छत्तीसगढ़ पुलिस में भी जो लोग थे वह छत्तीसगढ़ के दूसरे हिस्सों के थे. स्थानीय भागादारी बढ़ाने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने काफी काम किया है. इसमें एक है सरेंडर और रिहैब पॉलिसी, जिसके अंदर कोई भी ग्रामीण या नक्सली सरेंडर करता है या पुलिस को मदद करता जिससे हम दूसरे नक्सलियों को पकड़ पाते हैं. ऐसे लोगों को एसपी के रिकंमडेशन पर आईजी सिपाही के तौर पर भर्ती कर लेते हैं. धीरे-धीरे काफी नक्सलियों ने सरेंडर किया है. अगर बात सिर्फ दंतेवाड़ा जिले की करें तो यहां पर 70 से 80 सिपाही सरेंडर्ड नक्सली हैं.’

अभिषेक पल्लव

अभिषेक पल्लव आगे कहते हैं, ‘राज्य सरकार ने कुछ साल पहले डिस्टिक रिजर्व ग्रुप के नाम से एक लोकल ग्रुप बनाया. इसमें बस्तर निवासियों को अपने जिले में ही पुलिस की नौकरी करने के लिए पद निकाले गए थे. ऐसे 200 पद दंतेवाड़ा जिले में भी रिलिज किए गए थे. ये दो ग्रुप हैं, जिससे लोकल लोग हमलोगों को मिलते हैं. हमारी इस नीति को सीआरपीएफ ने भी हाल ही में आजमाया है. पहली बार सीआरपीएफ ने बस्तरिया बटालियन के लिए 750 बस्तर के ही युवक और युवतियों को नियुक्त किया. हमारे लिए लोकल लोगों का पुलिस में आना काफी फायदेमंद रहा. इन लोगों और उनके परिवार के जरिए हमें काफी सूचनाएं मिलती हैं. इनकी सटीक सूचनाओं और नक्सलियों के काम करने की गतिविधि को उन्हीं के अंदाज में जवाब दे रहे हैं.

दंतेवाड़ा के रहने वाले योगेश मानवी, जो आठवीं पास हैं, 1998 में ही नक्सली बन गए थे. साल 2012 में आत्मसमर्पण के बाद आज 25 हजार की पगार पर छत्तीसगढ़ पुलिस में नौकरी कर रहे हैं. इसी तरह परशुराम आलमी 2007 में नक्सली बन गए थे. साल 2015 में सरेंडर के बाद छत्तीसगढ़ पुलिस में नक्सलियों को खत्म करने या मुख्यधारा में लौटने में मदद कर रहे हैं. आलमी पढ़े-लिखे नहीं हैं. इसी तरह 5वीं पास पोडिया तेलम 2001 में नक्सली बन गए थे. 2014 में समाज की मुख्यधारा में लौट कर परिवार का जीवन यापन कर रहे हैं.

सुरक्षा सिद्धांतों में इस रणनीति को अदृष्टिगोचर सिक्योरिटी कहते हैं. पहले जहां जंगल के ऊंचे टीलों से ये जवानों को शिकार बनाते थे. आज पुलिस का उन ठिकानों पर कब्जा है. डरकर नक्सली या तो मौत के डर से मुख्यधारा में जुड़ने लगे हैं या फिर अंदर जंगलों में तिल-तिल कर मर रहे हैं. अब अदिवासियों पर भी उनका खौफ नहीं रहा है और सामूहिक रूप से उन्हें नकारने की क्षमता भी आ गई है. पुलिस अधीक्षक से यह मुलाकात अचानक ही थी लेकिन बड़े भरोसे से उन्होंने कहा ‘आप जहां हैं सिर्फ थोड़ी दूर घने जंगलों में नजर डालें आपको पुलिस की अदृश्य लेकिन सतर्क मुश्तैदी का एहसास हो जाएगा. और यह बात तब सच लगी जब उनके साथ हमारी टीम घने जंगलों से चित्रकोट तक का सफर किया.

कुलमिलाकर कुछ साल पहले तक राज्य के नक्सल प्रभावित 16 से 18 जिलों में लोकतंत्र नाम की कोई चीज नहीं थी. खासकर बस्तर संभाग के सभी जिलों में रहने वाले आदिवासियों के जीवन को समझने वाला दूर-दूर तक कोई दिखाई नहीं देता था. इसका कारण था कि यहां पर नक्सलियों के द्वारा एक समानांतर सरकार चलाई जाती थी, लेकिन समय बदला, सरकार बदली और ब्यूरोक्रेसी ने भी अपनी जिम्मेदारी को बखुबी निभाया,जिसका नतीजा आज पूरे देश के सामने है. इन इलाकों में न केवल नक्सली घटनाओं में कमी आई बल्कि इन इलाकों के लोगों के जीवन स्तर से लेकर शिक्षा और स्वरोजगार में भी काफी सुधार देखने को मिल रहा है.

‘मन की बात’ का 47वां संस्करण

 

मोदी ने रविवार को आकाशवाणी अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 47वें संस्करण में देशवासियों को संबोधित करते हुए कहा कि सुशासन को मुख्य धारा में लाने के लिए देश सदा वाजपेयी का आभारी रहेगा।

प्रधानमंत्री ने कहा कि वाजपेयी ने भारत को नई राजनीतिक संस्कृति दी और बदलाव लाने का प्रयास किया। इस बदलाव को उन्होंने व्यवस्था के ढांचे में ढालने की कोशिश की जिसके कारण भारत को बहुत लाभ हुआ हैं और आगे आने वाले दिनों में बहुत लाभ होने वाला सुनिश्चित है।

उन्होेंने कहा कि भारत हमेशा 91वें संशोधन अधिनियम 2003 के लिए अटल जी का कृतज्ञ रहेगा। इस बदलाव ने भारत की राजनीति में दो महत्वपूर्ण परिवर्तन किए। पहला यह कि राज्यों में मंत्रिमंडल का आकार कुल विधानसभा सीटों के 15 प्रतिशत तक सीमित किया गया। दूसरा यह कि दल-बदल विरोधी कानून के तहत तय सीमा एक-तिहाई से बढ़ाकर दो-तिहाई कर दी गयी। इसके साथ ही दल-बदल करने वालों को अयोग्य ठहराने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश भी निर्धारित किए गए।

प्रधानमंत्री ने कहा कि कई वर्षों तक भारी भरकम मंत्रिमंडल गठित करने की राजनीतिक संस्कृति ने ही बड़े-बड़े “जम्बो” मंत्रिमंडल कार्य के बंटवारे के लिए नहीं बल्कि राजनेताओं को खुश करने के लिए बनाए जाते थे। वाजपेयी ने इसे बदल दिया। इससे पैसों और संसाधनों की बचत हुई। इसके साथ ही कार्यक्षमता में भी बढ़ोतरी हुई।

मोदी ने कहा कि यह अटल जी दीर्घदृष्टा ही थे, जिन्होंने स्थिति को बदला और हमारी राजनीतिक संस्कृति में स्वस्थ परम्पराएं पनपी। अटल जी एक सच्चे देशभक्त थे। उनके कार्यकाल में ही बजट पेश करने के समय में परिवर्तन हुआ। पहले अंग्रेजों की परम्परा के अनुसार शाम को पांच बजे बजट प्रस्तुत किया जाता था क्योंकि उस समय लन्दन में संसद शुरू होने का समय होता था। वर्ष 2001 में अटल जी ने बजट पेश करने का समय शाम पांच बजे से बदलकर सुबह 11 बजे कर दिया।

मोदी ने कहा कि वाजपेयी के कारण ही देशवासियों को ‘एक और आज़ादी’ मिली। उनके कार्यकाल में राष्ट्रीय ध्वज संहिता बनाई गई और 2002 में इसे अधिसूचित कर दिया गया। इस संहिता में कई ऐसे नियम बनाए गए जिससे सार्वजनिक स्थलों पर तिरंगा फहराना संभव हुआ। इसी के कारण अधिक से अधिक भारतीयों को अपना राष्ट्रध्वज फहराने का अवसर मिल पाया। इस तरह से उन्होंने प्राण प्रिय तिरंगे को जनसामान्य के क़रीब कर दिया। उन्होेंने कहा कि वाजपेयी ने चुनाव प्रक्रिया और जनप्रतिनिधियों से संबंधित प्रावधानों में साहसिक कदम उठाकर बुनियादी सुधार किए।

प्रधानमंत्री ने कहा कि इसी तरह आजकल आप देख रहे हैं कि देश में एक साथ केंद्र और राज्यों के चुनाव कराने के विषय में चर्चा आगे बढ़ रही है। इस विषय के पक्ष और विपक्ष दोनों में लोग अपनी-अपनी बात रख रहे हैं। ये अच्छी बात है और लोकतंत्र के लिए एक शुभ संकेत भी। मैं जरुर कहूंगा कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए, उत्तम लोकतंत्र के लिए अच्छी परम्पराएं विकसित करना, लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए लगातार प्रयास करना, चर्चाओं को खुले मन से आगे बढ़ाना, यह भी अटल जी को एक उत्तम श्रद्धांजलि होगी।

वाजपेयी के योगदान का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने गाज़ियाबाद से कीर्ति, सोनीपत से स्वाति वत्स, केरल से भाई प्रवीण, पश्चिम बंगाल से डॉक्टर स्वप्न बनर्जी और बिहार के कटिहार से अखिलेश पाण्डे के सुझावाें का जिक्र किया।