माँ भगवती के लाडले भजन गायक ‘नरेंद्र चंचल’ नहीं रहे, वह 80 वर्ष के थे

नरेंद्र चंचल की मां कैलाशवती भी भजन गाया करती थीं। मां के भजन सुनते- सुनते उनकी रुचि भक्ति संगीत में बढ़ी. नरेंद्र चंचल की पहली गुरु उनकी मां ही थीं , इसके बाद चंचल ने प्रेम त्रिखा से संगीत सीखा, फिर वह भजन गाने लगे। नरेंद्र चंचल ने अपनी गायकी से बॉलीवुड में एक खास पहचान बनाई थी. उनकी गायकी का सफर राज कपूर के समय ही शुरू हुआ था। फिल्म ‘बॉबी’ में उनके द्वारा गाया गाना ‘बेशक मंदिर मस्जिद तोड़ो’ काफी मशहूर हुआ था. इसके बाद उन्होंने कई फिल्मों में गाने गाए, लेकिन उन्हें पहचान मिली फिल्म ‘आशा’, में गाए माता के भजन ‘चलो बुलावा आया है’ से जिसने रातोरात उन्हें मशहूर बना दिया। हाल ही में नरेंद्र चंचल ने कोरोनावायरस महामारी को लेकर गाना गाया था जो काफी वायरल भी हुआ था।

मुंबई/ चंडीगढ़:

प्रसिद्ध भजन गायक नरेंद्र चंचल का निधन हो गया है| 80 वर्ष की आयु में उन्होने अपनी अंतिम सांस ली है| बताया जाता है कि नरेंद्र चंचल काफी समय से अस्वस्थ चल रहे थे और आज उन्होने इस दुनिया को अलविदा कह दिया| वहीँ नरेंद्र चंचल के निधन से भजन भूमि और धार्मिक क्षेत्र और भजन गायकों के साथ-साथ उनके भजनों का रसपान करने वालों में शोक की लहर दौड़ गई है| चंचल की आवाज बेहद अलग थी और वह अपनी गायकी में एक अलग और उम्दा स्थान रखते थे|

उनके निधन की खबर सामने आते ही इंडस्ट्री में शोक की लहर है। सभी उन्हें श्रद्धांजली दे रहे हैं। उनके निधन पर देश के प्रधानमंत्री ने भी शोक व्यक्त किया है।

मशहूर सिंगर दलेर मेहंदी ने ट्वीट कर उनके निधन पर शोक जताया साथ ही उन्हें श्रद्धांजली भी अर्पित की।

उनके अलावा हरभजन सिंह ने भी नरेंद्र चंचल के निधन पर शोक व्यक्त किया है।

बतादें कि, नरेंद्र चंचल का जन्म 16 अक्टूबर, 1940 को अमृतसर के नामक मंडी में एक धार्मिक पंजाबी परिवार में हुआ था। 22 जनवरी, 2021 को उनका निधन हो गया। वह एक धार्मिक माहौल में बड़े हुए, जिसने उन्हें भजन और आरती गाने के लिए प्रेरित किया। नरेंद्र चंचल ने हिंदी फिल्मों में भजन दिए जो कि सुपर से सुपरहिट रहे| नरेंद्र चंचल का ”चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है’ गाना बेहद सुपरहिट रहा और भक्तों के बेहद करीब| नरेंद्र चंचल के शो भी होते थे जहाँ उनके मुख से भजन सुनने के लिए लोगों का ताँता लग जाता था| चंचल एक भक्त और भगवान के मिलन का एक समा बांध देते थे| बेहतरीन भजनों के लिए नरेंद्र चंचलको हमेशा याद किया जायेगा|

गुजरात कि राजनीति में ‘KHAM’ से कॉंग्रेस को जीत दिलाने वाले सोलंकी का 94 वर्ष कि आयु में निधन

बिहार में कभी लालू प्रसाद यादव ने ‘भूरा बाल (भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण, लाला) साफ़ करो’ का नारा दिया था और बाद में स्वजातीय यादव तथा मुस्लिम वोटरों को मिलाकर ‘माय’(MY) नामक जिताऊ समीकरण गढ़ा था। ठीक उसी प्रकार माधवसिंह सोलंकी ने ‘खाम'(KHAM) गढ़ा था। KHAM यानी Kshatriya, Harijan, Adivasi and Muslim (क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम)। इसे राजनैतिक समीकरण मनवा कर इन वोटों को बांटा गया था। इस समीकरण के बलबूते माधव सिंह सोलंकी के नेतृत्व में 1980 के विधानसभा चुनावों में कॉन्ग्रेस ने 182 में 149 सीटें जीती थी। उस समय भाजपा को केवल 9 सीटें मिली थी।

  • कांग्रेस के वरिष्ठ नेता माधव सिंह सोलंकी का 94 साल की आयु में निधन
  • KHAM जातिगत राजनीति या यूं कहें कि बांटो ओर राज करो कि नीति की बदौलत चार बार रहे थे गुजरात के मुख्यमंत्री,
  • नरसिम्हा राव सरकार में विदेश मंत्री भी रह चुके थे सोलंकी

गुजरात/नईदिल्ली:

गुजरात में 2017 के विधानसभा चुनावों के दौरान ‘खाम (KHAM)’ थ्योरी की खूब चर्चा हुई थी। ‘भूरा बाल साफ करो’ और ‘तिलक, तराजू और तलवार-उनको मारो जूते चार’ जैसे नारों को सुनकर बड़ी हुई पीढ़ी के ज्यादातर लोगों ने उससे पहले इस राजनीतिक फॉर्मूले के बारे में कम ही सुना था। आज यानी 9 जनवरी 2021 को अचानक से फिर से इस फॉर्मूले का यशगान हो रहा है। कारण, इसके जनक माधव सिंह सोलंकी का निधन हो गया है।

माधव सिंह सोलंकी गुजरात के मुख्यमंत्री रहे थे। लंबे समय से बीमार चल रहे थे। नरसिम्हा राव वाली कॉन्ग्रेस सरकार में विदेश मंत्री रहे थे। गुजरात कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी कई मौकों पर सॅंभाल चुके थे। उनके बेटे भरत सिंह सोलंकी भी गुजरात कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष और मनमोहन सिंह की दूसरी सरकार में मंत्री रह चुके हैं।

लंबे समय से राजनीतिक वनवास काट रहे माधव सिंह सोलंकी आखिरी बार चर्चा में तीन साल पहले यानी गुजरात चुनावों के वक्त ही आए थे। लेकिन अपनी राजनीतिक औकात की वजह से नहीं। अतीत में एक समीकरण गढ़कर सत्ता हासिल करने के कारण। असल में नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद राज्य में पहला विधानसभा चुनाव हो रहा था। हार्दिक पटेल की अगुवाई में राज्य में हिंसक आंदोलन हो चुका था। जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर भी अपनी-अपनी जातीय गोटी फिट करके बैठे थे। ऐसे में कॉन्ग्रेस के टुकड़ों पर पलने वाले पूरे लिबरल गैंग ने यह हवा जोर-शोर से चलाई थी कि इन सबके बलबूते चुनावों में कॉन्ग्रेस वही चमत्कार करने जा रही है, जैसा कभी उसके लिए माधव सिंह सोलंकी ने ‘खाम’ का प्रयोग कर किया था।

2017 के चुनावों के नतीजे क्या रहे और कैसे कॉन्ग्रेस का प्रोपेगेंडा ध्वस्त हुआ, ये सब जानते हैं। अब जानते हैं कि ‘खाम’ का मतलब क्या है? KHAM यानी Kshatriya, Harijan, Adivasi and Muslim (क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम) वोटर। इस समीकरण के बलबूते माधव सिंह सोलंकी के नेतृत्व में 1980 के विधानसभा चुनावों में कॉन्ग्रेस ने 182 में 149 सीटें जीती थी। उस समय भाजपा को केवल 9 सीटें मिली थी।

यह कोई राजनीति का अनूठा प्रयोग नहीं था। कॉन्ग्रेस और तमाम क्षेत्रीय दल हिंदुओं को जाति में बाँट और मुस्लिमों को साध कर अतीत में कई बार सफलता हासिल कर चुके हैं। मसलन, बिहार में कभी लालू प्रसाद यादव ने ‘भूरा बाल (भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण, लाला) साफ़ करो’ का नारा दिया था और बाद में स्वजातीय यादव तथा मुस्लिम वोटरों को मिलाकर ‘माय’ (MY) नामक जिताऊ समीकरण गढ़ा था।

ये राजनीतिक फॉर्मूले असल में मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति की उपज होते हैं। हिंदू घृणा से पैदा होते हैं। इनसे भले तात्कालिक तौर पर राजनीतिक सफलता मिल जाती है, लेकिन ऐसे राजनीतिक प्रयोग हिंदुओं को बड़ा नुकसान पहुँचाने के मकसद से ही किए जाते हैं। लालू-राबड़ी के दौर की जातीय हिंसा इसी का नतीजा थी। इसी तरह माधव सिंह सोलंकी ने ‘खाम’ के बलबूते भले एक चुनाव में प्रचंड बहुमत हासिल कर लिया था, लेकिन उसके बाद गुजरात को भी जातीय हिंसा का दौर देखना पड़ा था। हिंदुओं के खिलाफ समुदाय विशेष की हिंसा तेज हो गई थी। बाद के दौर में जब राज्य में बीजेपी मजबूत हुई, खासकर नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री बनने के बाद यह दौर थमा और गुजरात ने विकास के अपने मॉडल के तौर पर देश और दुनिया में चर्चा हासिल की।

NDTV ने भी सोलंकी को याद किया

यही कारण है कि माधव सिंह सोलंकी को श्रद्धांजलि देते हुए ‘खाम’ का यशगान करने वाले चेहरे वही हैं, जो इस देश में सेकुलरिज्म के नाम पर मुस्लिम तुष्टिकरण के पैरोकार रहे हैं। याद रखिएगा हेडलाइन में यह लिख देने से कि ‘बनाया ऐसा रिकॉर्ड जो मोदी-शाह भी नहीं तोड़ पाए’ किसी माधव सिंह सोलंकी का राजनीतिक कद ऊँचा नहीं हो जाता है। बल्कि यह हमें उन राजनीतिक साजिशों के प्रति आगाह करते हैं, जिनका एक ही मकसद होता है: हिन्दुओं को बाँटो, मुस्लिमों को पालो।

केवड़िया से लौटे विधान सभा अध्‍यक्ष ने पत्रकारों के साथ साझा किए अनुभव

  • पीठासीन अधिकारियों ने देखी विकास की नई मिसाल
  • गुजरात में आधे समय में पूरी हुई करोड़ों की परियोजनाए हरियाणा में भी दोहराए जा सकते हैं अभिनव प्रयोग
  • केवड़िया से लौटे विधान सभा अध्‍यक्ष ने पत्रकारों के साथ साझा किए अनुभव
  • लोकतंत्र के तीन स्‍तंभों और विधायी विषयों पर हुए विमर्श का दिया विवरण

पंचकूलाए 30 नवंबर:

गुजरात के केवड़िया में आयोजित देश के विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों का 80वां सम्‍मेलन विधायी कार्यों पर व्‍यापक विमर्श के साथ.साथ विकास के अभिनव प्रयोगों के लिए भी याद किया जाएगा। इस सम्‍मेलन के निमित्‍त पीठासीन अधिकारी विकास की गति दोगुनी करने के तौर तरीकों से भी रूबरू हुए। सम्‍मेलन से लौटे हरियाणा विधान सभा के अध्‍यक्ष ज्ञान चंद गुप्‍ता ने अपने अनुभव सोमवार को मीडिया के साथ साझा किए। पंचकूला के सेक्‍टर.1 स्‍थित पीडब्‍ल्‍यूडी गेस्‍ट हाउस में आयोजित प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए उन्‍होंने बताया इस सम्‍मेलन में लोकतंत्र के तीनों स्‍तंभों के बीच सामंजस्‍य और अधिकार क्षेत्र को लेकर विस्‍तृत विचार विमर्श हुआ।

ज्ञान चंद गुप्‍ता ने बताया कि इस सम्‍मेलन में देश के राष्‍ट्रपतिए उपराष्‍ट्रपति और प्रधानमंत्री की उपस्‍थिति पर अनेक महत्‍वपूर्ण संवैधानिक विषयों पर मंथन हुआ। ष्सशक्‍त लोकतंत्र के लिए विधायिकाए कार्यपालिका और न्‍यायपालिका में आदर्श समन्‍वयष् विषय पर दो दिन गहन विमर्श हुआ। इस विमर्श में देश भर के विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों ने भागीदारी की। ज्ञान चंद गुप्‍ता ने कहा कि इस सम्‍मेलन के साथ ही विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों के लिए केवड़िया भ्रमण की भी व्‍यवस्‍था की गई थी। इस भ्रमण के दौरान केवड़ियां में विकास के लिए हो रहे अभिनव प्रयोगों से परिचित करवाया गया। उन्‍होंने बताया कि केवड़िया में 17 एकड़ में स्‍थापित ष्आरोग्‍य वनष् आधुनिक विकास और प्राचीन ज्ञान की जीती जागती मिसाल है। इस आयोग्‍य वन में 5 लाख जीवन उपयोगी औषधियां विकसित की गई हैंए जो हमारे पारंपरिक स्‍वास्‍थ्‍य विज्ञान पर आधारित है। इस वन की सबसे बड़ी विशेषताए जिसे पीठासीन अधिकारियों को सबसे ज्‍यादा प्रभावित कियाए वह थी उसकी निर्माण अवधि। ज्ञान चंद गुप्‍ता ने बताया इस विशाल आरोग्‍य वन के निर्माण के लिए छह माह की समयावधि तय की गई थीए जबकि इसे मात्र 89 दिन में पूरा कर दिया गया। उन्‍होंने कहा कि विकास की गति को दोगुना करने का यह अभिनव प्रयोग है। पीठासीन अधिकारियों ने गुजरात के अधिकारियों से उन तौर तरीकों पर भी विमर्श कियाए जिनके कारण इतना भव्‍य पार्क आधे समय में बनाया जा सका। गुप्‍ता ने पत्रकारों को बताया कि ऐसे प्रयोग हरियाणा में भी किए जा सकते हैं। ऐसा होने से विकास की बड़ी परियोजनाएं आधे समय में पूरी की जा सकेंगी।

इसके साथ ही पीठासीन अधिकारियों के सम्‍मेलन में लोकतंत्रिक मूल्‍यों के प्रति आम जनमानस को जागरूक करने के लिए देश के चार भागों में लोकतंत्र उत्‍सव आयोजित किए जाएंगे। इन उत्‍सवों में सभी विधान सभा और विधान परिषदों के सदस्‍यों के साथ.साथ आम जन को सम्‍मिलित किया जाएगा। केवड़िया सम्‍मेलन में विधान मंडलों को वित्‍तीय अधिकार देने का मसला भी उठा। अनेक विधानसभा अध्‍यक्षों ने कहा कि प्रदेश के सभी वित्‍त विधेयक विधायी निकायों द्वारा की पारित किए जाते हैंए इसके बावजूद उन्‍हें अपने खर्चों के लिए कार्यपालिका की ओर देखना पड़ता है। इसलिए विधान मंडलों को वित्‍तीय शक्‍तियां देने की मांग उठी। इसके साथ ही सम्‍मेलन में संविधान और मौलिक कर्तव्‍यों पर भी संकल्‍प पारित किया गया। इसमें इस बात पर जोर दिया गया कि हम सभी अपने अधिकारों का लाभ उठाते हुए अपने कर्तव्‍यों का भी ईमानदारी के साथ निर्वहन करें। देश में उत्‍कृष्‍ट सांसद की तर्ज पर उत्‍कृष्‍ट  विधान मंडल पुरस्‍कार स्‍थापित किए जाने पर भी सहमति बनी।

नहीं रहे कॉंग्रेस के संकटमोचन अहमद पटेल

अहमद पटेल को लेकर सुबह से हर कॉन्ग्रेसी नेता अपना दुख प्रकट कर रहा है. सोनिया गाँधी खुद उनके निधन को अपने लिए एक बड़ा नुकसान बता रही हैं. उनका कहना है कि उन्होंने एक वफादार सहयोगी और दोस्त खोया है. लेकिन, क्या यह शब्द काफी हैं इस कथन को साबित करने के लिए कि वरिष्ठ नेता अहमद पटेल की कॉन्ग्रेस में गाँधी परिवार के सदस्यों जितनी पैठ थी?

  • अहमद पटेल का 71 साल की उम्र में निधन
  • अहमद पटेल 8 बार सांसद रहे, लेकिन मंत्री नहीं बने
  • पटेल को कांग्रेस का संकट मोचक माना जाता था

नयी दिल्ली(bयूरो):

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और गांधी परिवार के करीबी रहे अहमद पटेल का निधन हो गया है. कांग्रेस का उन्हें चाणाक्य कहा जाता था. पार्टी के लिए साधन जुटाने का काम हो या किसी संकट से किसी को उबारने का काम हो इसमें अहमद पटेल माहिर थे. इसीलिए अहमद पटेल ने अपने सियासी जीवन में मंत्री बनने के बजाय खुद के कांग्रेस पार्टी के बैकडोर मैनेजर की भूमिका में रखा. उन्होंने दुनिया से ऐसे समय में अलविदा कहा है जब कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार को उनकी खासी जरूरत थी. 

सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल कांग्रेस में बेहद ताकतवर असर रखने वाले नेता होने के बावजूद खुद को लो-प्रोफाइल रखते थे. अहमद पटेल अपने युवा अवस्था में क्रिकेट खेलने के दौरान भले ही फ्रंटफुट पर आकर बैटिंग करना पसंद करते थे, लेकिन सियासत में बैकडोर में यानी पर्दे के पीछे रह कर काम करना पसंद करते थे. गांधी परिवार के अलावा किसी को नहीं पता कि उनके दिमाग में क्या रहता था. 2004 से 2014 तक केंद्र की सत्ता में कांग्रेस के रहते हुए अहमद पटेल की राजनीतिक ताकत सभी ने देखी है. 

अहमद पटेल तीन बार लोकसभा और पांच बार राज्यसभा सदस्य रहे. इस दौरान इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ काम किया. उनके सियासी सफर में छह बार केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी. इंदिरा और राजीव ने अपनी कैबिनेट में अहमद पटेल को लेना चाहा, लेकिन उन्होंने सरकार के बजाय संगठन में काम करना पंसद किया. इसके बाद सोनिया के राजनीतिक सलाहकार बने तो फिर बैकडोर मैनेजर की अपनी भूमिका तय कर ली. वो खुद भी कहा करते थे, ‘मैं सिर्फ सोनिया गांधी के एजेंडे पर अपनी पूरी ईमानदारी से काम करता हूं.’

कांग्रेस के तालुका पंचायत अध्यक्ष के पद से करियर शुरू करने वाले पटेल की कांग्रेस में तूती बोलती थी. कांग्रेस संगठन ही नहीं बल्कि सूबे से लेकर केंद्र तक में बनने वाली सरकार में कांग्रेस नेताओं का भविष्य भी अहमद पटेल तय करते थे. 2005 में चाहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा के हरियाणा के सीएम बनाने का फैसला रहा हो या फिर पृथ्वीराज चौव्हाण को महाराष्ट्र की सत्ता सौंपनी हो. ऐसे कई उदाहारण मिल जाएंगे, जहां अहमद पटेल की छाप साफ दिखाई दी. कांग्रेस के सहयोगी दलों से बात करनी हो या फिर वरिष्ठ नेताओं को साधकर रखने का काम हो, यह काम अहमद पटेल बाखूबी तरीके से किया करते थे. 

अहमद पटेल हर मिलने वाले को मनोवैज्ञानिक नजर से देखते हैं. उनका यही हुनर उन्हें ‘किंगमेकर’ बना रखा था. केंद्र में यूपीए सरकार में पार्टी की बैठकों में सोनिया जब भी ये कहतीं कि वो सोचकर बताएंगी, तो मान लिया जाता कि वो अहमद पटेल से सलाह लेकर फैसला करेंगी. यहां तक कि यूपीए 1 और 2 के ढेर सारे फैसले पटेल की सहमति के बाद लिए गए. यही नहीं कांग्रेस की कमान भले ही गांधी परिवार के हाथों में रही हो, लेकिन अहमद पटेल के बिना पत्ता भी पार्टी में नहीं हिलता था. यानी रिमोट उन्हीं के पास रहता था. इस तरह से कांग्रेस सरकार हो या फिर पार्टी, दोनों के बीच संतुलन बनाकर रखते थे. 

कांग्रेस में कुछ भी बिगड़ने पर भले सबसे पहले अहमद को निशाना बनाया जाता हो, लेकिन सोनिया गांधी का भरोसा उन पर हमेंशा कायम रहा. यही वजह रही कि कांग्रेस के छोटे और बड़े सभी नेताओं के साथ वो मिलते और उनकी बात को सुनते थे. अहमद पटेल को श्रद्धांजलि देते हुए कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह ने ट्वीट किया है. दिग्विजय सिंह ने कहा है, ‘अहमद पटेल नहीं रहे. एक अभिन्न मित्र विश्वसनीय साथी चला गया. हम दोनों सन 77 से साथ रहे. वे लोकसभा में पहुंचे, मैं विधानसभा में. हम सभी कांग्रेसियों के लिए वे हर राजनीतिक मर्ज की दवा थे. मृदुभाषी, व्यवहार कुशल और सदैव मुस्कुराते रहना उनकी पहचान थी.’

अहमद पटेल के निधन पर कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि मैंने एक सहयोगी को खो दिया है, जिसका पूरा जीवन कांग्रेस पार्टी को समर्पित था. उनकी ईमानदारी और समर्पण, कर्तव्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता, हमेशा मदद करने की कोशिश, उदारता… उनमें यह सभी दुर्लभ गुण थे, जो उन्हें दूसरों से अलग करते थे. वहीं, प्रियंका गांधी ने ट्वीट करते हुए कहा, ‘अहमद जी न केवल एक बुद्धिमान और अनुभवी सहकर्मी थे, जिनसे मैं लगातार सलाह और परामर्श के लिए मुखातिब थी बल्कि वे एक ऐसे दोस्त थे जो हम सभी के साथ खड़े रहे. दृढ़, निष्ठावान और अंत तक भरोसेमंद रहे. उनका निधन एक विशाल शून्य छोड़ देता है. उनकी आत्मा को शांति मिले.’

कॉन्ग्रेस पार्टी की जमीन पर संगठन के तौर पर मौजूदगी ही नहीं है : चिदंबरम

चिदंबरम ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा कि पार्टी को बिहार में इतनी ज्यादा सीटों पर चुनाव नहीं लड़ना चाहिए था. कांग्रेस के पास गिरती अर्थव्यवस्था और कोरोनावायरस संकट के मुद्दे थे, लेकिन पार्टी उसपर भी कैंपेनिंग करके अच्छी मौजूदगी नहीं जता पाई, इस पर सवाल पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि ‘मुझे गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक के उपचुनावों की चिंता ज्यादा है. यह नतीजे दिखाते हैं कि या तो पार्टी की जमीन पर संगठन के तौर पर मौजूदगी ही नहीं है, या फिर बहुत ज्यादा कम हुई है।’ उन्होंने कहा, ‘बिहार में, आरजेडी-कांग्रेस के पास जीतने का मौका था। जीत के इतने करीब होने के बावजूद हम क्यों हारे, इस पर बहुत ही गहराई से विचार करने की जरूरत है। याद कीजिए, कांग्रेस को राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड जीते हुए बहुत ज्यादा वक्त नहीं हुआ है।’

चंडीगढ़/नयी दिल्ली :

हाल ही में हुए बिहार विधानसभा चुनावों और कई राज्यों के उपचुनावों में लचर प्रदर्शन के बाद कॉन्ग्रेस पार्टी को अपने ही दिग्गज नेताओं से तीखी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। इस कड़ी में कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल के बाद अब यूपीए सरकार में वित्त मंत्री रहे पी चिदंबरम ने बयान दिया है। उन्होंने कॉन्ग्रेस के नीतिगत ढाँचे की आलोचना करते हुए कहा कि पार्टी के प्रदर्शन में पिछले कुछ समय से लगातार गिरावट ही आई है। उन्होंने कहा कि कॉन्ग्रेस को इतना साहसी बनना होगा कि गिरावट के उन कारणों को पहचाने और उन पर काम करे। 

कॉन्ग्रेस नेता पी चिदंबरम की तरफ से यह प्रतिक्रिया बिहार विधानसभा और मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश उपचुनाव में दयनीय प्रदर्शन के बाद सामने आई है। चिदंबरम ने कहा कि कॉन्ग्रेस ने अपनी संगठनात्मक क्षमता से ज़्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा। एक दैनिक को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कॉन्ग्रेस के प्रदर्शन पर खुल कर आलोचना की। चिदंबरम ने कहा कि उपचुनाव इस बात प्रमाण हैं कि कॉन्ग्रेस की संगठनात्मक दृष्टिकोण से कोई पकड़ नहीं रह गई है। इतना ही नहीं जिन राज्यों में उपचुनाव हुए हैं उनमें कॉन्ग्रेस कमज़ोर ही हुई है। 

सनद रहे :

महागठबंधन की हार अपना नज़रिया रखते हुए कॉन्ग्रेस नेता ने कहा कि महागठबंधन के जीतने की उम्मीदें थीं फिर भी हम जीतते जीतते हार गए। इन तमाम आलोचनात्मक दलीलों के बाद कॉन्ग्रेस पार्टी के लिए आशावादी नज़र आते हुए उन्होंने कहा कि कुछ ही समय पहले कॉन्ग्रेस ने हिन्दी बेल्ट 3 राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनावों में जीत हासिल की थी। 

इसके बाद एआईएमआईएम और सीपीआई (एमएल) का उल्लेख करते हुए चिदंबरम ने कहा कि छोटे दल अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं क्योंकि इनकी ज़मीनी स्तर पर पकड़ बेहद मजबूत है। कॉन्ग्रेस, राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन की सबसे कमज़ोर कड़ी साबित हुई है। पार्टी को तमाम तरह के बदलावों की ज़रूरत है और ऐसे बदलाव नहीं होने की सूरत में राजनीतिक नुकसान बढ़ता ही जाएगा। 

पार्टी की तरफ से तीखी प्रतिक्रिया आई:

लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने एक निजी चैनल से बातचीत में वरिष्ठ कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल के हाल के विवादित बयान पर नाराज़गी जताते हुए कहा ”जिन नेताओं को लगता है की कांग्रेस उनके लिए सही पार्टी नहीं है वे नई पार्टी बना सकते हैं. अगर वे चाहें तो किसी दूसरी पार्टी को ज्वाइन कर सकते हैं. कांग्रेस में रहकर इस तरह की लज्जाजनक बयानबाज़ी से पार्टी की विश्वसनीयता कमज़ोर होती है.” अधीर रंजन चौधरी ने आगे कहा “कपिल सिब्बल पार्टी की स्थिति से नाखुश हैं. क्या वे बिहार या उत्तर प्रदेश गए थे चुनाव अभियान में? बिना ज़मीन पर पार्टी के लिए काम किए बगैर इस तरह के बयान देने का कोई मतलब नहीं है.”  

अंत में कॉन्ग्रेस नेता ने कहा कि पार्टी ने अपनी संगठनात्मक क्षमता से ज़्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा। यह एक बड़ा कारण था कि कॉन्ग्रेस इतनी कम सीटों पर जीत हासिल हुई जबकि भाजपा और उसके सहयोगी दल पिछले 20 वर्षों से चुनाव जीत रहे हैं। पार्टी को सिर्फ 45 उम्मीदवार उतारने चाहिए थे, शायद तब बेहतर नतीजे हासिल होते। इसके ठीक पहले कॉन्ग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने भी संगठन के शीर्ष नेतृत्व पर कई सवाल खड़े किए थे। 

उनका कहना था कि हार दर हार के बाद पार्टी के नेतृत्व ने इस प्रक्रिया को अपनी नियति मान कर स्वीकार कर लिया। कपिल सिब्बल के इस बयान पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सलमान खुर्शीद ने आलोचना की थी। इन्होंने यहाँ तक कह दिया था कि पार्टी के भीतर रह कर पार्टी को नुकसान पहुँचाने वाले नेता खुद बाहर चले जाएं। इसके अलावा लोकसभा में कॉन्ग्रेस के नेता प्रतिपक्ष अधीर रंजन ने भी कपिल सिब्बल के बयान पर प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने कहा था कि कपिल सिब्बल को पार्टी छोड़ ही देनी चाहिए।     

नंदीग्राम का नायक शुभेन्दु अधिकारी बागी क्यूँ, देखें क्या रंग लाती है चुनावी बयार?

कभी नंदीग्राम में ममता बनर्जी के लिए सिपाही की भूमिका निभाने वाले शुभेंदु अधिकारी आखिर अब बागी क्यों हो गए हैं? शुभेंदु ने बुधवार को हल्दिया में एक सहकारी समिति की ओर से आयोजित कार्यक्रम में कहा कि ‘मैं कड़ी मेहनत से ऊंचाई तक पहुंचा हूं. मैं निर्वाचित नेता हूं. मैं चयनित या नामित नेता नहीं हूं।’ उनका यह बयान सहकारी समिति में अध्यक्ष निर्वाचित होने के बाद सामने आया। माना जा रहा है कि ऐसा करके शुभेंदु अधिकारी पार्टी के नीति नियंताओं पर निशाना साधा है। उस रैली में शुभेंदु ने कहा था कि पत्रकार और राजनैतिक पर्यवेक्षक मेरे राजनीतिक कार्यक्रम की घोषणा करने के लिए मेरा इंतजार कर रहे हैं। वे मुझे उन बाधाओं के बारे में बात करते हुए सुनना चाहते हैं जो मैं झेल रहा हूं और जो रास्ता मैं लेने जा रहा हूं। मैं इस पवित्र मंच से अपने राजनीतिक कार्यक्रम की घोषणा नहीं करूंगा। 

राजविरेन्द्र वसिष्ठ, चंडीगढ़/हल्दिया (प बंगाल) :

पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव है, मगर सियासी सरगर्मियां अभी से ही तेज हो गई हैं। एक ओर जहां भारतीय जनता पार्टी ने अपनी तैयारियां तेज कर दी है, दूसरी ओर ममता बनर्जी के सबसे करीबी माने जाने वाले दिग्गज टीएमसी नेता शुभेंदु अधिकारी ने बगावत की आवाज बुलंद कर दी है। चुनाव सिर पर है, मगर पश्चिम बंगाल सरकार में परिवहन मंत्री शुभेंदु अधिकारी ने बागी तेवर अपना कर ममता बनर्जी को एक नई टेंशन दे दी है। यह टेंशन भी ऐसी है कि ममता की करीब 20 सीटें प्रभावित हो सकती हैं। राजनीतिक गलियारों में ऐसी चर्चा है कि पूर्वी मिदनापुर जिले से आने वाले शुभेंदु अधिकारी टीएमसी से नाराज चल रहे हैं और ऐसे में वह पार्टी का साथ छोड़कर भाजपा में भी शामिल हो सकते हैं। फिलहाल, शुभेंदु अपना सियासी पत्ता नहीं खोल रहे हैं। 

कभी नंदीग्राम में ममता बनर्जी के लिए सिपाही की भूमिका निभाने वाले शुभेंदु अधिकारी आखिर अब बागी क्यों हो गए हैं? ऐसा क्या हो गया है कि वो लगातार पार्टी बीते कुछ समय से पार्टी के खिलाफ अप्रत्यक्ष तौर पर आवाज बुलंद कर रहे हैं? क्यों टीएमसी उन्हें मनाने में जुटी है? ऐसे कई सवाल हैं जो न सिर्फ बंगाल, बल्कि देश की राजनीतिक गलियारों में भी तैर ही हैं। दरअसल, शुभेंदु बंगाल में काफी ताकतवर राजनीतिक परिवार से आते हैं। उनका प्रभाव न सिर्फ उनके क्षेत्र पर है, बल्कि पूर्वी मिदनापुर के अलावा आस-पास के जिलों में भी उनका राजनीतिक दबदबा है। 

राजनीतिक पंडितों की मानें तो शुभेंदु अधिकारी ममता बनर्जी के भतीजे और लोकसभा सांसद अभिषेक बनर्जी से नाराज चल रहे हैं। इसके अलावा, जिस तरह से प्रशांत किशोर ने बंगाल में संगठनात्मक बदलाव किया है, उससे भी वह नाखुश हैं। साथ ही शुभेंदु अधिकारी चाहते हैं कि पार्टी कई जिलों की 65 विधानसभा सीटों पर उनकी पसंद के उम्मीदवारों को मैदान में उतारे। पिछले साल लोकसभा चुनाव में भाजपा के सामने बुरे प्रदर्शन ने टीएमसी को एक तरह से झटका दिया और विधानसभा चुनाव के लिए चेताया। यही वजह है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के साथ हाथ मिलाया। बताया जाता है कि ममता बनर्जी ने भतीजे और सांसद अभिषेक बनर्जी के कहने पर ही प्रशांत किशोर के साथ हाथ मिलाया। 

इसके बाद प्रशांत किशोर ने बंगाल में आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए कई स्तर पर संगठनात्मक बदलाव किया है। इस बदलाव से शुभेंदु अधिकारी नाखुश बताए जाते है। शुभेंदु को ऐसा महसूस होता है कि उनकी पार्टी में अब उपेक्षा हो रही है। यहां ध्यान देने वाली बात है कि पूर्वी मिदनापुर में ही नंदीग्राम आता है, जहां जमीन अधिग्रहण विरोधी आंदोलन ने ममता बनर्जी की पार्टी के सत्ता में पहुंचने की राह तैयार की थी। इस आंदोलन में शुभेंदु ने सेनापति की भूमिका निभाई थी और जो कभी लेफ्ट का गढ़ हुआ करता था, वहां शुभेंदु ने टीएमसी का राज स्थापित करवाया था। 

शुभेंदु अधिकारी की नाराजगी टीएमसी को बहुत भारी पड़ सकती है, इस बात का अंदाजा खुद ममता बनर्जी और प्रशांत किशोर को भी है। यही वजह है कि जैसे ही शुभेंदु की नाराजगी की खबर मीडिया में जोर-शोर से आई, प्रशांत किशोर और ममता उन्हें मनाने में जुट गए। एक ओर जहां ममता ने टीएमसी नेताओं और कार्यकर्ताओं को शुभेंदु अधिकारी के खिलाफ बयानबाजी से मना किया है, वहीं दूसरी ओर खुद शुभेंदु अधिकारी को मनाने बीते दिनों प्रशांत किशोर उनके घर पहुंचे थे। हालांकि, प्रशांत किशोर की यह कोशिश बेकार गई, क्योंकि उस दिन शुभेंदु से उनकी मुलाकात नहीं हो पाई। बता दें कि 2019 में राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 18 सीटें जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने भी शुभेंदु अधिकारी को एक तरह से पार्टी में आने का ऑफर दिया है। भाजपा ने कहा है कि अधिकारी अगर पाला बदलने को लेकर गंभीर हैं तो उनके लिए पार्टी दरवाजे खुले हैं। बता दें कि चुनाव से पहले और बाद में कई टीएमसी नेता भाजपा में शामिल हुए हैं। 

दो बार सांसद रह चुके शुभेंदु अधिकारी का परिवार राजनीतिक तौर पर काफी मजबूत है। पूर्वी मिदनापुर को कभी वामपंथ का गढ़ माना जाता था मगर शुभेंदु ने अपनी रणनीतिक कौशल से बीते कुछ समय में इसे टीएमसी का किला बना दिया है। अगर वह टीएमसी से बाहर होते हैं तो ममता बनर्जी को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं। यही वजह है कि पार्टी उन्हें मनाने में जुटी है। शुभेंदु अधिकारी के भाई दिब्येंदु तमलुक से लोकसभा सदस्य हैं, जबकि तीन भाई-बहनों में सबसे छोटे सौमेंदु कांथी नगर पालिका के अध्यक्ष हैं। उनके पिता सिसिर अधिकारी टीएमसी के सबसे वरिष्ठ लोकसभा सदस्य हैं, जो कांथी निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं।

नंदीग्राम भारत के पश्चिमी बंगाल राज्य के पूर्व मेदिनीपुर जिला का एक ग्रामीण क्षेत्र है। यह क्षेत्र, कोलकाता से दक्षिण-पश्चिम दिशा में 70 कि॰मी॰ दूर, औद्योगिक शहर हल्दिया के सामने और हल्दी नदी के दक्षिण किनारे पर स्थित है। यह क्षेत्र हल्दिया डेवलपमेंट अथॉरिटी के तहत आता है। 2007 में, पश्चिम बंगाल की सरकार ने सलीम ग्रूप को ‘स्पेशल इकनॉमिक ज़ोन’ नीति के तहत, नंदीग्राम में एक ‘रसायन केन्द्र’ (केमिकल हब) की स्थापना करने की अनुमति प्रदान करने का फ़ैसला किया। ग्रामीणों ने इस फ़ैसले का प्रतिरोध किया जिसके परिणामस्वरूप पुलिस के साथ उनकी मुठभेड़ हुई जिसमें 14 ग्रामीण मारे गए और पुलिस पर बर्बरता का आरोप लगा।

नंदीग्राम आंदोलन की लहर पर सवार होकर शुभेंदु 2019 में तमलुक सीट से लोकसभा चुनाव जीते थे। इसके बाद वह 2014 भी वह जीते। बंगाल विधानसभा चुनाव में जीतने के बाद उन्हें ममता कैबनिनेट में परिवहन मंत्री बनाया गया। बताया जाता है कि न सिर्फ पूर्वी मेदनीपुर जिला बल्कि मुर्शिदाबाद और मालदा में भी उन्होंने कांग्रेस को कमजोर करने और टीएमसी को मजबूत करने के लिए काम किया है। क्योंकि वह ग्रासरूट लेवल के नेता हैं, इसलिए बीते कुछ समय में उनकी स्वीकार्यता भी काफी बढ़ी है। उन्हें मेदिनीपुर, झारग्राम, पुरुलिया, बांकुरा और बीरभूम जिलों में टीएमसी के आधार का विस्तार करने का भी श्रेय दिया जाता है। इस तरह से राजनीतिक पंडितों का मानना है कि शुभेंदु अगर टीएमसी से अलग होते हैं तो इसका असर करीब 20 सीटों पर दिख सकता है। यानी शुभेंदु बंगाल में ममता की करीब 20 सीटें खराब करने की क्षमता रखते हैं। 

शुभेंदु अधिकारी की ममता बनर्जी से बगावत की तस्वीर उस वक्त सामने आई, जब गुरुवार को ट्रांसपोर्ट मंत्री शुभेंदी ने पूर्व मिदनापुर के नंदीग्राम में एक रैली को संबोधित किया, जहां आज से 13 साल पहले पार्टी कार्यकर्ता की हत्या कर दी गई थी। इसी की याद में हुए कार्यक्रम में नंदीग्राम में शुभेंदु ने सभा को संबोधित किया। बता दें कि इसी नंदीग्राम की घटना ने ममता बनर्जी को बंगाल की कुर्सी तक पहुंचाया था। उस रैली में शुभेंदु ने कहा था कि पत्रकार और राजनैतिक पर्यवेक्षक मेरे राजनीतिक कार्यक्रम की घोषणा करने के लिए मेरा इंतजार कर रहे हैं। वे मुझे उन बाधाओं के बारे में बात करते हुए सुनना चाहते हैं जो मैं झेल रहा हूं और जो रास्ता मैं लेने जा रहा हूं। मैं इस पवित्र मंच से अपने राजनीतिक कार्यक्रम की घोषणा नहीं करूंगा। 

सोमनाथ मंदिर ने ही राम मंदिर की राह खोली: प्रधानमंत्री

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिवसीय गुजरात दौरे पर हैं। पीएम मोदी के गुजरात दौरे का आज दूसरा दिन है। आज पीएम मोदी ने स्टैच्यू ऑफ यूनिटी पर सरदार पटेल को नमन कर पुष्पांजलि अर्पित की। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केवड़िया में राष्ट्रीय एकता दिवस परेड का निरीक्षण किया और परेड की सलामी ली। इस परेड़ में देश की सभी सुरक्षा एजेंसियों के जवान शामिल है। परेड से पहले पीएम मोदी ने सुरक्षा एजेंसियों के जवानों को राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा की शपथ दिलाई। सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार के संस्मरणों को याद करते हुए प्रधान मंत्री ने नहरु – कॉंग्रेस के हिन्दू विरोधी चेहरे को उजागर किया, उन्होने बताया की उन दिनों नहरु ने पत्र-त्रिकाओं साथ सरदार पटेल तो थे, लेकिन नेहरू ने इसे व्यक्तिगत आस्था की बात बताते हुए फंड्स देने से ही इनकार कर दिया था। जब उन्हें कहीं से सूचना मिली कि सौराष्ट्र सरकार इसके लिए वित्त की व्यवस्था कर रही है, तो उन्होने पत्र लिख नाराजगी जताई। नेहरू ने तो कैबिनेट बैठक तक बुला कर डॉ प्रसाद को इसमें शामिल न होने को कहा था।

गुजरात/दिल्ली :

भारत के प्रथम उप-प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की जन्मतिथि को पूरा देश ‘एकता दिवस’ के रूप में मनाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार (अक्टूबर 31, 2020) को इस अवसर पर गुजरात के केवडिया में स्थित ‘स्टेचू ऑफ यूनिटी’ पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। देश के एकीकरण में उनके योगदानों को याद करते हुए पीएम मोदी ने याद दिलाया कि कैसे उन्होंने सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था।

पीएम मोदी ने कहा कि सोमनाथ के पुनर्निर्माण से सरदार पटेल ने भारत के सांस्कृतिक गौरव को लौटाने का जो यज्ञ शुरू किया था, उसका विस्तार देश ने अयोध्या में भी देखा है। साथ ही उन्होंने इसे वर्तमान से जोड़ते हुए कहा कि आज देश राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का साक्षी बना है और भव्य राम मंदिर को बनते भी देख रहा है। गुजरात के सौराष्ट्र में पश्चिमी समुद्र तट पर स्थित सोमनाथ को पीएम मोदी ने उत्तर प्रदेश के सरयू किनारे स्थित अयोध्या से जोड़ा।

ये इसीलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका जिक्र कर के पीएम मोदी ने इशारों ही इशारों में ये भी बता दिया कि इस्लामी आक्रांताओं द्वारा ध्वस्त किए गए मंदिरों के जीर्णोद्धार को लेकर दशकों से कॉन्ग्रेस का रुख समान ही रहा है। गुजरात के स्वतंत्रता सेनानी, लेखक और बाद में केंद्रीय कैबिनेट का हिस्सा बनने वाले कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए दिन-रात एक कर दिया था।

जब सरदार पटेल के प्रयासों के बाद मंदिर का निर्माण शुरू हुआ तो भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को इसके उद्घाटन के लिए निमंत्रण भेजा गया, जिस पर नेहरू बिफर गए। उन्होंने डॉक्टर प्रसाद को पत्र लिख कर कहा कि वो किसी ‘संप्रदाय को बढ़ावा देने’ वाले कार्यक्रम में शामिल न हों। हालाँकि, डॉ प्रसाद ने इसे पश्चिमी भारत की सभ्यता का प्रतीक बताया और कार्यक्रम का हिस्सा बने, पर इस कार्यक्रम को सेंसर कर दिया गया।

पत्र-पत्रिकाओं में इससे जुड़ी खबरें छपने ही नहीं दी गईं। केएम मुंशी के साथ सरदार पटेल तो थे, लेकिन नेहरू ने इसे व्यक्तिगत आस्था की बात बताते हुए फंड्स देने से ही इनकार कर दिया था। जब उन्हें कहीं से सूचना मिली कि सौराष्ट्र सरकार इसके लिए वित्त की व्यवस्था कर रही है, तो उन्होने पत्र लिख नाराजगी जताई। नेहरू ने तो कैबिनेट बैठक तक बुला कर डॉ प्रसाद को इसमें शामिल न होने को कहा था।

आज राम मंदिर को लेकर भी कमोबेश कॉन्ग्रेस का यही रुख है। रामसेतु को लेकर तो पार्टी की सरकार ने कोर्ट में ये तक कह दिया था कि राम का कोई अस्तित्व ही नहीं है। वहीं जब मंदिर का शिलान्यास हो गया तो प्रियंका गाँधी बधाई देते हुए राम-राम की रट लगाने लगीं। सरदार पटेल को श्रद्धांजलि देते हुए पीएम मोदी ने याद दिलाने की कोशिश की है कि कैसे कॉन्ग्रेस आज़ादी के बाद से ही हिन्दुओं की आस्था के बीच में रोड़ा बन कर खड़ी है

इस दौरान पीएम मोदी ने कहा कि आज भारत की भूमि पर नज़र गड़ाने वालों को मुँहतोड़ जवाब मिल रहा है। आज का भारत सीमाओं पर सैकड़ों किलोमीटर लंबी सड़कें बना रहा है, दर्जनों ब्रिज, अनेक सुरंगें बना रहा है। अपनी संप्रभुता और सम्मान की रक्षा के लिए आज का भारत पूरी तरह तैयार है। उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भर देश ही अपनी प्रगति के साथ साथ अपनी सुरक्षा के लिए भी आश्वस्त रह सकता है। इसलिए, आज देश रक्षा के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बनने की ओर बढ़ रहा है और इतना ही नहीं, सीमाओं पर भी भारत की नज़र और नज़रिया अब बदल गया है।

पीएम मोदी ने पाकिस्तान संसद के वायरल वीडियो पर कहा कि पिछले दिनों पड़ोसी देश से जो खबरें आई हैं, जिस प्रकार वहाँ की संसद में सत्य स्वीकारा गया है, उसने इन लोगों के असली चेहरों को देश के सामने ला दिया है। उन्होंने याद दिलाया कि अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए, ये लोग किस हद तक जा सकते हैं, पुलवामा हमले के बाद की गई राजनीति, इसका बड़ा उदाहरण है। पीएम मोदी ने आगे कहा:

“आज यहाँ जब मैं अर्धसैनिक बलों की परेड देख रहा था, तो मन में एक और तस्वीर थी। ये तस्वीर थी पुलवामा हमले की। देश कभी भूल नहीं सकता कि जब अपने वीर बेटों के जाने से पूरा देश दुखी था, तब कुछ लोग उस दुख में शामिल नहीं थे, वो पुलवामा हमले में अपना राजनीतिक स्वार्थ देख रहे थे। देश भूल नहीं सकता कि तब कैसी-कैसी बातें कहीं गईं, कैसे-कैसे बयान दिए गए। देश भूल नहीं सकता कि जब देश पर इतना बड़ा घाव लगा था, तब स्वार्थ और अहंकार से भरी भद्दी राजनीति कितने चरम पर थी। मैं ऐसे राजनीतिक दलों से आग्रह करूँगा कि, देश की सुरक्षा के हित में, हमारे सुरक्षाबलों के मनोबल के लिए, कृपा करके ऐसी राजनीति न करें, ऐसी चीजों से बचें। अपने स्वार्थ के लिए, जाने-अनजाने आप देशविरोधी ताकतों की हाथों में खेलकर, न आप देश का हित कर पाएँगे और न ही अपने दल का।”

प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें ये हमेशा याद रखना है कि हम सभी के लिए सर्वोच्च हित- देशहित है। जब हम सबका हित सोचेंगे, तभी हमारी भी प्रगति होगी, उन्नति होगी। उन्होंने याद दिलाया कि आज के माहौल में, दुनिया के सभी देशों को, सभी सरकारों को, सभी पंथों को, आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होने की बहुत ज्यादा जरूरत है। शांति-भाईचारा और परस्पर आदर का भाव ही मानवता की सच्ची पहचान है। उन्होंने कहा कि आतंकवाद-हिंसा से कभी भी, किसी का कल्याण नहीं हो सकता।

इसी क्रम में हाल ही में ये भी खबर आई थी कि मध्य प्रदेश के रायसेन में बेतवा नदी के किनारे भोजपुर गाँव में स्थित शिव मंदिर (उत्तर का सोमनाथ) का पुराना वैभव फिर से लौट कर आने वाला है क्योंकि केंद्र सरकार ने इसके बचे हुए निर्माण-कार्य को पूरा करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। राजा भोज ने इस्लामी आक्रांता महमूद गजनवी से बदला लेने के बाद इस मंदिर का निर्माण कराया था। विजय के बाद इस मंदिर का निर्माण हुआ। भोपाल से भोजपुर की दूरी 32 किलोमीटर है।

एकता दिवस राष्ट्रपति से लेकर स्कूल के विद्यार्थियों ने ली शपथ

प्रथम गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म दिवस 31 अक्टूबर को हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। देशभर में पटेल के जन्म दिवस को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। शहर के कलेक्टोरेट में सुबह 10ः30 बजे अधिकारियों-कर्मचारियों को सामूहिक रूप से शपथ दिलाई जाएगी। इसी दिन राज्य पुलिस और अन्य वर्दीधारी बलों तथा अन्य एजेंसियों के माध्यम से शाम के समय मार्च पास्ट का आयोजन भी किया गया। इस कार्यक्रम में कोरोना योद्धा जैसे डॉक्टर, स्वास्थ्य कर्मी, सफाई कर्मी आदि को आमंत्रित किया गया। हालांकि विद्यालय अभी पूरी तरह खुले नहीं हैं लेकिन चंडीगढ़ के विद्यार्थियों ने भी अपने अपने घरों में ऑन लाइन अपने अध्यापकों के साथ शपथ ली।

गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल का गुरुवार को निधन हो गया, वे 92 वर्ष के थे

अहमदाबाद

गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल का गुरुवार को निधन हो गया है। वो 92 साल के थे। गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल से पीएम नरेंद्र मोदी का पुराना रिश्ता था। पीएम मोदी उन्हें अपना राजनीतिक गुरु मानते थे। कहा जाता है कि नरेंद्र मोदी जब-जब गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे तब चुनाव जीतने के बाद केशुभाई का आशीर्वाद लेने जरूर जाते थे। इस दौरान पीएम मोदी उन्हें मिठाई भी खिलाते थे।

बात 2019 के लोकसभा चुनाव की करें तो इस दौरान जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के अडालज में शिक्षण भवन और विद्यार्थी भवन का शिलान्यास करने के लिए मंच पर पहुंचे थे तो वहां गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल पहले से मौजूद थे। इस पर पीएम मोदी सभी से हाथ मिलाते हुए उनके पास आए तो उन्होंने झट से झुककर केशुभाई पटेल के पैर छू लिए थे। इस दौरान सभी की नजरें दोनों की मुलाकात पर टिक गईं थीं।

केशुभाई पटेल की जगह नरेंद्र मोदी बने थे गुजरात के सीएम

साल 2001 में बीजेपी ने केशुभाई पटेल की जगह नरेंद्र मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बना दिया था क्योंकि भूकंप के बाद केशुभाई सरकार पर प्रशासनिक अक्षमता के आरोप लग रहे थे।

फिर भी मोदी मानते थे अपना गुरु

गुजरात की सियासत में केशुभाई पटेल के लिए इसे बड़ा झटका माना गया था। इसके चलते उनके और नरेंद्र मोदी के रिश्ते में खटास भी आ गई थी लेकिन फिर भी मोदी उन्हें अपना गुरु ही मानते थे।

केशुभाई ने 2012 में BJP से अलग होकर बनाई थी नई पार्टी

केशुभाई 1980 से 2012 तक बीजेपी का हिस्सा थे। 1995 में उन्हीं के नेतृत्व में गुजरात में बीजेपी की सरकार बनी थी। हालांकि 2012 में बीजेपी से अलग होकर उन्होंने गुजरात परिवर्तन पार्टी बनाई थी। तब उन्होंने मोदी की सार्वजनिक मंच सेआलोचना भी की थी।

केशुभाई पटेल के बेटे के निधन पर मिलने गए पीएम मोदी

2019 से पहले गुजरात के सीएम विजय रूपाणी के शपथग्रहण समारोह में भी दोनों साथ में दिखे थे। साल 2017 में ही केशुभाई पटेल के बेटे प्रवीण के निधन पर पीएम मोदी उनसे मुलाकात करने उनके आवास गए थे।

नवरात्रि महत्व

सनातन धर्म के बहुत से ऐसे पर्व हैं जिनमें रात्रि शब्द जुड़ा हुआ है। जैसे शिवरात्रि और नवरात्रि। साल में चार नवरात्रि होती है। चार में दो गुप्त नवरात्रि और दो सामान्य होती है। सामान्य में पहली नवरात्रि चैत्र माह में आती है जबकि दूसरी अश्विन माह में आती है। चैत्र माह की नवरात्रि को बड़ी नवरात्रि और अश्विन माह की नवरात्रि को छोटी या शारदीय नवरात्रि कहते हैं। आषाढ और माघ मास में गुप्त नवरात्रि आती है। गुप्त नवरात्रि तांत्रिक साधनाओं के लिए होती है जबकि सामान्य नवरात्रि शक्ति की साधना के लिए।

धर्म/संस्कृति डेस्क, चंडीगढ़:

1. नवरात्रि में नवरात्र शब्द से ‘नव अहोरात्रों (विशेष रात्रियां) का बोध’ होता है। ‘रात्रि’ शब्द सिद्धि का प्रतीक माना जाता है। भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है। यही कारण है कि दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र आदि उत्सवों को रात में ही मनाने की परंपरा है। यदि, रात्रि का कोई विशेष रहस्य न होता तो ऐसे उत्सवों को रात्रि न कह कर दिन ही कहा जाता। जैसे- नवदिन या शिवदिन, परंतु हम ऐसा नहीं कहते हैं। शैव और शक्ति से जुड़े धर्म में रात्रि का महत्व है तो वैष्णव धर्म में दिन का। इसीलिए इन रात्रियों में सिद्धि और साधना की जाती है। (इन रात्रियों में किए गए शुभ संकल्प सिद्ध होते हैं।)

2. यह नवरात्रियां साधना, ध्यान, व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, तंत्र, त्राटक, योग आदि के लिए महत्वपूर्ण होती है। कुछ साधक इन रात्रियों में पूरी रात पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर आंतरिक त्राटक या बीज मंत्रों के जाप द्वारा विशेष सिद्धियां प्राप्त करने का प्रयास करते हैं, क्योंकि इस दिनों प्रकृति नई होना प्रारंभ करती है। इसलिए इन रात्रियों में नव अर्थात नया शब्द जुड़ा हुआ है। वर्ष में चार बार प्रकृति अपना स्वरूप बदलकर खुद को नया करती हैं। बदलाव का यह समय महत्वपूर्ण होता है। वैज्ञानिक दृष्‍टिकोण से देखें तो पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा काल में एक वर्ष की चार संधियां होती हैं जिनमें से मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। ऋतुओं की संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियां बढ़ती हैं। ऐसे में नवरात्रि के नियमों का पालन करके इससे बचा भी जा सकता है।

3. वैसे भी रात्रि में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं। जैसे यदि आप ध्यान दें तो रात्रि में हमारी आवाज बहुत दूर तक सुनाई दे सकती है परंतु दिन में नहीं, क्योंकि दिन में कोलाहल ज्यादा होता है। दिन के कोलाहल के अलावा एक तथ्य यह भी है कि दिन में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे बढ़ने से रोक देती हैं।

4. रेडियो इस बात का उदाहरण है कि रात्रि में उनकी फ्रीक्वेंसी क्लियर होती है। ऐसे में ये नवरात्रियां तो और भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि इस समय हम ईथर माध्यम से बहुत आसानी से जुड़कर सिद्धियां प्राप्त कर सकते हैं। हमारे ऋषि-मुनि आज से कितने ही हजारों-लाखों वर्ष पूर्व ही प्रकृति के इन वैज्ञानिक रहस्यों को जान चुके थे।

5. रेडियो तरंगों की तरह ही हमारे द्वारा उच्चारित मंत्र ईथर माध्यम में पहुंचकर शक्ति को संचित करते हैं या शक्ति को जगाते हैं। इसी रहस्य को समझते हुए संकल्प और उच्च अवधारणा के साथ अपनी शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजकर साधन अपनी कार्यसिद्धि अर्थात मनोकामना सिद्धि करने में सफल रहते हैं। गीता में कहा गया है कि यह ब्रह्मांड उल्टे वृक्ष की भांति हैं। अर्थात इसकी जड़े उपर हैं। यदि कुछ मांगना हो तो ऊपर से मांगों। परंतु वहां तक हमारी आवाज को पहुंचेने के लिए दिन में यह संभव नहीं होता है यह रात्रि में ही संभव होता है। माता के अधिकतर मंदिरों के पहाड़ों पर होने का रहस्य भी यही है।