एनआरसी मुद्दा ममता के विरोध में टीएमसी अध्यक्ष ओर 2 नेताओं ने दिया इस्तीफा


इस्तीफा देने वाले तीन नेताओं में से एक गोलाघाट से पार्टी के नेता दिगंता सैकिया ने असमी विरोधी रुख अपनाने को लेकर बनर्जी के खिलाफ मामला दर्ज कराने की भी धमकी दी


तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी)  की असम इकाई के अध्यक्ष द्विपेन पाठक और दो अन्य प्रमुख नेताओं ने एनआरसी के अंतिम मसौदे के प्रति पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी के रुख के खिलाफ गुरुवार को पार्टी से इस्तीफा दे दिया. तृणमूल कांग्रेस के रुख पर असम के कई दलों और संगठनों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है.

पाठक का इस्तीफा बंगाली बहुल बराक घाटी में सिलचर हवाई अड्डे पर तृणमूल कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल के पहुंचने और पुलिस द्वारा उन्हें बाहर निकलने से रोके जाने के कुछ ही घंटे के अंदर आया. बनर्जी के निर्देश पर प्रतिनिधिमंडल असम गया था.

ANI


इस्तीफा देने वाले तीन नेताओं में से एक गोलाघाट से पार्टी के नेता दिगंता सैकिया ने असमी विरोधी रुख अपनाने को लेकर बनर्जी के खिलाफ मामला दर्ज कराने की भी धमकी दी. असम में सत्तारूढ़ बीजेपी और अन्य दलों ने कहा है कि बराक घाटी में तृणमूल का कोई अस्तित्व नहीं है.

पूर्व विधायक पाठक ने कहा कि राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के प्रकाशन के बाद उन्होंने पार्टी नेताओं को असम की जमीनी हकीकत से अवगत कराया था और बनर्जी से राज्य में प्रतिनिधिमंडल नहीं भेजने की अपील की थी.

असम में तृणमूल का कोई अस्तित्व नहीं

2011-2016 तक तृणमूल के विधायक रहे पाठक ने कहा, ‘पार्टी ने मेरे सुझाव पर ध्यान नहीं दिया और यहां की जमीनी स्थिति समझने से इनकार कर दिया. इस पृष्ठभूमि में मेरे लिए उस पार्टी में बने रहना संभव नहीं है जो असमी भावना को महत्व नहीं देती.’ उन्होंने कहा, ‘असम में तृणमूल का कोई अस्तित्व नहीं है.’

पार्टी के दो नेताओं- प्रदीप पचानी और दिगंता सैकिया ने भी यह कहते हुए पार्टी छोड़ दी कि वे उस पार्टी में नहीं बने रहना चाहते हैं जो मूल असमी लोगों की पहचान से समझौता करना चाहती है.

ब्रह्मपुत्र घाटी के चारैदेव और सोनितपुर जिलों में छात्र संगठनों ने बनर्जी के पुतले फूंके. उन्होंने तृणमूल और पार्टी सुप्रीमो बनर्जी को असम के मामले में दखल नहीं देने की चेतावनी दी.

इस बीच बराक घाटी के करीमगंज उत्तरी के विधायक कमलख्या डि पुरकायस्थ ने कहा, ‘तृणमूल की एनआरसी के बारे में कई गलत धारणाएं हैं और उन्हें (प्रतिनिधिमंडल को) आने देना चाहिए था ताकि मसौदे के बारे में उनकी गलतफहमियां दूर होती.’

अमित शाह का बंगाल दौरा, आखिर राज़ क्या है?


अमित शाह हर हाल में ममता के मजबूत किले को ध्वस्त करना चाहते हैं, लोकसभा चुनाव के लिए राज्य की कुल 42 में से 22 से ज्यादा सीटों को जीतने का लक्ष्य लेकर चलने वाले बीजेपी अध्यक्ष के लिए बार-बार दौरा करना जरूरी भी है


बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह 11 अगस्त को पश्चिम बंगाल जाने की तैयारी में हैं. शाह को रैली की इजाजत मिल गई है. टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन ट्वीट कर इस बारे में जानकारी भी दी. उनकी तरफ से शाह के बंगाल में स्वगात किया गया, लेकिन, कटाक्ष के साथ.

टीएमसी सांसद ने ट्वीट कर कहा ‘बीजेपी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह नर्वस हैं. तीन अगस्त को होने वाले उनके कार्यक्रम को फौरन इजाजत दे दी गई थी. अब 11 अगस्त के कार्यक्रम के लिए सिर्फ एक खत भेजा गया और अनुमति दे दी गई. शांति और सौहार्द की धरती पर यात्रा मंगलमय हो. बंगला प्रेम…..आपका पड़ोसी.’


Derek O’Brien


टीएमसी सांसद के इस कटाक्ष से बीजेपी और टीएमसी के बीच जारी तकरार की झलक मिल जाती है. पलटवार तो बीजेपी की तरफ से भी हुआ है. लेकिन, अमित शाह के कार्यक्रम को लेकर जिस तरह से बवाल मचा हुआ है, उससे साफ है कि पश्चिम बंगाल बीजेपी और टीएमसी के बीच अखाड़े में तब्दील हो गया है.

एनआरसी के मुद्दे पर टीएमसी और बीजेपी के बीच तकरार के बीच बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के कोलकाता दौरे का जैसे ही ऐलान हुआ वैसे ही सियासी बवाल मच गया था. कोलकाता की रैली को सफल बनाने के लिए बीजेपी युवा मोर्चा लगा हुआ है. लेकिन, इस रैली को लेकर पहले प्रशासन की तरफ से इजाजत नहीं दी गई थी. लेकिन, जैसे ही अमित शाह की तरफ से कहा गया कि भले ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाए लेकिन, वो पश्चिम बंगाल के दौरे पर जाएंगे, वैसे ही राज्य प्रशासन की तरफ से रैली की इजाजत दे दी गई.

क्यों बार-बार पश्चिम बंगाल का दौरा कर रहे हैं अमित शाह

लेकिन, सवाल है कि आखिरकार बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का पश्चिम बंगाल दौरा इतना ज्यादा क्यों हो रहा है. इसके पीछे उत्तर एक ही है शाह की नजर पश्चिम बंगाल पर है. हर हाल में वो ममता बनर्जी के मजबूत किले को ध्वस्त करना चाहते हैं. लोकसभा चुनाव के लिए राज्य की कुल 42 में से 22 से ज्यादा सीटों को जीतने का लक्ष्य लेकर चलने वाले बीजेपी अध्यक्ष के लिए ऐसा करना जरूरी भी है.

उन्हें भी पता है कि काफी मेहनत के बाद राज्य में उन्होंने लेफ्ट और कांग्रेस को पछाड़कर बीजेपी को नंबर दो की हैसियत में ला खड़ा किया है, लेकिन, टीएमसी को मात देकर नंबर वन की हैसियत में आने के लिए उन्हें काफी मेहनत करने की जरूरत है. लिहाजा वो बार-बार पश्चिम बंगाल पहुंचकर राज्य में पार्टी कार्यकर्ताओं को उत्साहित भी कर रहे हैं. नेताओं के साथ बैठकर रणनीति को अंजाम भी दे रहे हैं.

11 अगस्त को उनकी रैली से पहले पिछले 27 और 28 जून को भी शाह का पश्चिम बंगाल का दौरा हुआ था. उस दौरान भी उन्होंने राज्य में पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर रणनीति पर चर्चा की थी, उन्हें जीत का गुरु-मंत्र भी दिया था. इस दौरे में 28 जून को पुरुलिया में उनकी रैली और उसमें उमड़ी भीड़ चर्चा का कारण रही. पुरुलिया की रैली से पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव को लेकर अमित शाह ने परोक्ष रूप से शंखनाद भी कर दिया है.

अमित शाह के पिछले साल के दौरे पर भी हुई थी जमकर राजनीति

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पिछले साल सितंबर में भी पश्चिम बंगाल के दौरे पर थे. अमित शाह का यह दौरा तीन दिनों तक चला था. उस वक्त 11,12 और 13  सितंबर तक अमित शाह का दौरा चला था. इस दौरान अमित शाह ने बुद्धिजीवियों और उद्योगपतियों के साथ बैठक की थी. इसके अलावा पार्टी कार्यकर्ताओं को भी संबोधित किया था. शाह की रैली को लेकर भी उस वक्त राजनीति जमकर हुई थी. नेताजी इंडोर स्टेडियम में अमित शाह को बैठक करने की अनुमति नहीं मिली थी. जिसके चलते कई दूसरे जगहों पर उन्हें कार्यक्रम करना पडा था.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने इसके पहले अप्रैल 2017 में भी पश्चिम बंगाल का दौरा किया था. इस दौरान शाह ने तीन दिन का दौरा किया था, जिसमें मुख्य फोकस उत्तरी बंगाल था. उस वक्त उत्तरी बंगाल के आठ जिलों के पदाधिकारियों के साथ उन्होंने बैठक कर राज्य में पार्टी को मजबूत करने की रणनीति पर चर्चा की थी.

बीजेपी के एजेंडे में टॉप पर पश्चिम बंगाल

दरअसल, बीजेपी के 2019 के एजेंडे में पश्चिम बंगाल काफी उपर है. पार्टी ने इसके लिए जमीनी स्तर पर तैयारी भी काफी हद तक कर ली है. ममता बनर्जी के खासमखास रहे मुकुल रॉय को बीजेपी ने अपने पाले में पहले ही ला दिया है. उनके आने के बाद जमीनी स्तर पर पार्टी के नेताओं-कार्यकर्ताओं की टीम तैयार करने में बीजेपी को काफी मदद मिल रही है. बीजेपी को इसका फायदा भी मिला है. खासतौर से पंचायत चुनाव में पार्टी की सफलता ने लोकसभा चुनाव को लेकर उम्मीदें बढ़ा दी हैं.

राज्य की राजनीति के हिसाब से बीजेपी को भी ध्रुवीकरण की राजनीति काफी हद तक रास आ रही है. टीएमसी को भी लगता है कि ध्रुवीकरण की राजनीति से उसे अल्पसंख्यक मतों का फायदा होगा. तभी तो एनआरसी के मुद्दे पर ममता बनर्जी और बीजेपी दोनों आमने-सामने हैं. ऐसे वक्त में अमित शाह का कोलकाता का दौरा माहौल को और गरमाने वाला है. क्योंकि बीजेपी के कई नेता इस मुद्दे पर बंगाल में भी असम की ही तरह एनआरसी को लेकर चर्चा छेड़ चुके हैं.

“She is nothing but a ‘chameleon’ who is changing her colours”: Adhir Ranjan

New Delhi:

A day after Mamata Banerjee met Sonia Gandhi and Rahul Gandhi, West Bengal Congress chief Adhir Ranjan Chowdhury called the TMC supremo a “chameleon” and accused her of hankering after the prime minister’s post.

In a no-holds-barred attack on the West Bengal chief minister, Chowdhury alleged that Banerjee is acting like a “Trojan Horse” and trying to divide a “united opposition” by floating the idea of a federal front, and urged leaders of various parties not to trust her.

“Her single objective is to be the prime minister of India. She is hankering after the post of prime minister. She is having a ‘Deve Gowda-syndrome and Gujral-syndrome’,” he said.

File image of Congress MLA Adhir Ranjan Chowdhary

Chowdhury also accused Banerjee of trying to “finish” and “eliminate” the Congress in West Bengal on one hand and seeking the party’s support for the 2019 Lok Sabha elections on the other.

“She is nothing but a ‘chameleon’ who is changing her colours. She is an unreliable, unpredictable politician and Congress and other leaders should not trust her at all,” he told PTI.

“Mamata Banerjee is a dictator and is now trying to project herself as a ‘female monk’. She is trying to eliminate the Congress in West Bengal by not allowing us to either vote or stand in elections and our leaders are put behind bars. It seems that doing politics in Bengal is a crime,” he said adding “we are the victims of politics of elimination in the state”.

The PCC chief, who has been a staunch Mamata-baiter, said she is trying to extract as many seats as possible in Bengal so that she can stake her claim for the prime minister’s post in the 2019 Lok Sabha elections.

Chowdhury said Banerjee is thinking that she will become the prime minister with the support of the other opposition parties and that is why she is declining to offer the Congress any seats in Bengal.

He said at a time when Rahul Gandhi is talking of uniting the entire opposition, “Mamata Banerjee is trying to create a divide in the opposition ranks” by talking of a third front.

“She is only trying to suit herself,” he said. Accusing Banerjee of adopting “double standards”, the Congress leader said on one hand she is talking of 40 lakh people who were left out in Assam NRC, on the other she is putting up barricades on the state borders.

He also recalled how Mamata Banerjee moved an adjournment motion in Parliament in 2005 against illegal immigrants in Bengal and demanded she clarify her stand on the issue.

Banerjee Wednesday met leaders of various parties in the national capital including UPA chairperson Sonia Gandhi and Congress president Rahul Gandhi as part of efforts to forge an anti-BJP front .

“We discussed the political situation. We discussed how the opposition can together take on the BJP because it knows that it will not come back to power,” she had said after the nearly 30-minute meeting with the Gandhis.

Banerjee said she also discussed the NRC issue as 40 lakh people have not been included in it and “genuine voters have been kept out”.

Mamta sees an opportunity in NRC row

 

Mamata Banerjee is playing with fire. As a serving chief minister and a senior political leader with a rising national profile, her words carry weight. And also consequences. In the political controversy over publishing of the second National Register of Citizens (NRC) draft, she finds an opportunity to strengthen TMC’s foothold beyond West Bengal into Assam. She should be careful.

Her repeated inflammatory and irresponsible remarks may destabilise a sensitive issue that lies at the crossroads of a long-standing socio-economic and ethno-cultural tension between India’s smaller indigenous communities in the North East and illegal migrants from Bangladesh who have trooped into the country on a massive scale for over a half a century.

Unchecked and sustained infiltration has raised both demographic and national security challenges. Scholars have pointed out that insurgency movements in North East, especially Assam, ‘rose on a response to illegal immigration’ and the large-scale infiltration of chiefly Muslim immigrants has given rise to Pakistan’s ISI-sponsored Islamist militancy in the state (The Contours of Assam Insurgency by Dinesh Kotwal, Research Fellow, Institute for Defence Studies and Analysis).

File image of West Bengal chief minister Mamata Banerjee.

In their March 2016 paper, ‘Socio-Economic and Political Consequence of Illegal Migration into Assam from Bangladesh‘, professors J Das and D Talukdar wrote: “The flow of immigrants started during the rule of the British and continues till today due to the pull and push factors. The deportation of illegal migrants becomes difficult due to the lack of strong law and political will, as illegal migrants are used as a vote bank by different political parties. The data provided in the study indicates that if necessary steps are not taken immediately, Assam, the elder sister of North East India would lose its identity from the map of India very soon.”

Sanjay Bhardwaj, Assistant Professor, Centre for South Asian Studies, JNU, points out in his paper for CLAWS Journal citing various sources that “the growth rates of the Muslim population, according to the 2001 census, are the highest precisely in the districts that share a border with, or lie close to the border with Bangladesh, for example, in Assam, this is particularly in Dhubri, Barpeta, Karimganj, and Hailakandi.”

The 1998 report on ‘Illegal Migration in Assam’ submitted to the President of India by the then Assam Governor Lt Gen SK Sinha pointed out that the “Muslim population of Assam has shown a rise of 77.42 percent in 1991 from what it was in 1971. The Hindu population has risen by nearly 41.89 percent in this period… As per the 1991 census, four districts (Dhubri, Goalpara, Barpeta and Hailakandi) have become Muslim-majority districts. Two more districts (Nowgaon and Karimganj) should have become so by 1998 and one district (Morigaon) is fast approaching this population.”

The Assam Governor report also shed light on the historical background of infiltration, mentioned the case for ‘lebensraum‘ (living space) made by Bangladesh politicians and intellectuals, and held as contributing factors the action of some political parties ‘(who) have been encouraging and even helping illegal migration, with a view to building vote banks.’

The prolonged infiltration and subsequent demographic changes sparked an existential fear among Assam’s Ahoms, Bodos, Koch Rajbonshis, Santhalas, Kukis and many other smaller tribes and communities, and in the 1970s, a prolonged, grassroot-level student agitation in Assam took shape that resulted in the loss of over a hundred lives. It eventually led to the signing of the Assam Accord between the Rajiv Gandhi-led Congress government in 1985 and leaders of the Assam movement.

The Accord holds that all illegal aliens who entered the state between January 1966 and March 1971 would be disenfranchised for ten years, and those who came after March 1971 would be deported.

In the Sarbananda Sonowal versus Union of India case in 2005, a three-judge Supreme Court bench of Justices RC Lahoti, GP Mathur and PK Balasubramanyan had observed that:

“22. The dangerous consequences of large scale illegal migration from Bangladesh, both for the people of Assam and more for the nation as a whole, need to be emphatically stressed. No misconceived and mistaken notions of secularism should be allowed to come in the way of doing so.
23. As a result of population movement from Bangladesh, the spectre looms large of the indigenous people of Assam being reduced to a minority in their home State. Their cultural survival will be in jeopardy, their political control will be a weakened and their employment opportunities will be undermined….”

Further, the Supreme Court also observed that: “(5.8) Foreigners who came to Assam on or after 25 March, 1971 shall continue to be detected, deleted and expelled in accordance with law. Immediate and practical steps shall be taken to expel such foreigners.” 

In his seminal book ‘Sons of the Soil: Migration and Ethnic Conflict in India (Princeton University Press, 08-Mar-2015)’, American scholar Myron Weiner — whose area of expertise included internal and international migration, ethnic conflict, political demography, among others — pointed out that “if we accept the 1891 census estimate that one-fourth of the population of the Brahmaputra Valley was then of migrant origin, we can estimate that the migrant population (and its descendants) in 1971 was more like 8.5 million, as against an ‘indigenous’ population of 6.5 million.”

It is in this context that the Supreme Court in 2013 ordered an upgradation of National Register of Citizens (NRC) to detect cases of illegal immigration from Bangladesh. The process of verification was held between May 2015 and 31 August, 2015, involving 3.29 crore people and included “house-to-house field verification, determination of authenticity of documents, family tree investigations in order to rule out bogus claims of parenthood and linkages and separate hearings for married women.”

Such an elaborate, painstaking arrangement to scrutinise and quantify the alien population in Assam, that carries judicial sanction, was preceded by a sustained, organic mass movement. The exercise is necessary for national security and preserving the identity and social fabric of a multi-cultural, multi-ethnic state that has fallen prey to a campaign of petty politics, obfuscation and deliberate misinformation.

Speaking to the media outside the Parliament building on Wednesday, the West Bengal chief minister claimed the “NRC will destroy relationship between India and Bangladesh. Out of 40 lakh people whose names are not in the list of NRC, only 1 percent could be illegal infiltrators.”

Mamata had earlier warned of a ‘bloodbath’ and “civil war in the country” over NRC and conflated an issue of illegal migration of aliens with free movement of Indian citizens across India.



Mamata also claimed that ‘people are being isolated through a game plan… It’s a plan to throw out Bengali speaking people and Biharis.’

BSP chief Mayawati has joined in. She claimed that the publication of NRC — that vetted 1.9 crore citizens in the first draft and 2.89 crore in the second (out of 3.29 crore applicants) — is ‘anarth‘, and “a catastrophe that would bring more grief to the minorities and the disadvantaged in an election year.”

The debate over NRC is spurious. Nobody has said that this is the final draft, and no one has said that those whose names have not found mention in the second draft will be ‘forcefully evicted’. The BJP has clarified its stand. Party president Amit Shah has said that the second draft isn’t final, there will be enough opportunities for objections and cross-verifications. Names of only those who have not been able to prove their citizenship have been kept out. It is to be noted that under the Foreigners Act, the burden of proof for citizenship lies on the persons claiming to be a citizen.

Union home minister Rajnath Singh has said that it isn’t a “final draft”. Assam chief minister Sonowal and the state home ministry has clarified that ‘based on this draft, no reference case will be sent to the foreigners’ tribunal or put in a detention centre.”

An NRC Seva Kendra in Assam. File image. 

Finally, the Supreme Court has said that those excluded from the list ‘must get a fair chance’ and the draft cannot form the basis of coercive action.An NRC co-ordinator has told The Indian Expressin an interview that “people will get another chance to prove their credentials. Then we will come out with a final NRC. The NRC process will be over then. Even after that, whether a person is an illegal migrant or not is something that can be decided only by judicial scrutiny and that is through a certain set of codes, which has been established in Assam… called the Foreigners Tribunal.”

What, then, is the fuss all about?

The political storm created by some cynical leaders is an attempt to muddy the waters where fishing for minority votes becomes easier. Take Mamata’s revolving stance. In 2005, as TMC chief, she led the charge against Bangladeshi immigrants entering the state of West Bengal and accused the Left Front government of making them part of the voter’s list. To mark her protest, she had thrown a sheaf of papers at the deputy Speaker, and later sent her resignation through an officer of the House.

The Congress has been caught on a sticky wicket, unable to extricate its name from the authorship of the Assam Accord or NRC draft. It has resorted to technicalities to create obstructions in the process and appears to be walking a tightrope. Its difficulties won’t cease with the news that a Wikileaks cable caught Sonia Gandhi vowing to amend the Foreigners Act to create a backdoor entry for illegal aliens.

As reported by Yatish Yadav in Firstpost, the cable, ‘dated 16 February 2006, authored by a US consulate officer in Kolkata had alleged that then Congress president Sonia Gandhi, campaigning for the May 2006 state Assembly election in Assam, in a brazen appeal to the Muslims, offered to amend the Foreigners Act to prevent deportation of illegal Bangladeshi immigrants.’

These positions are unfortunate but not inexplicable. The political process in India is now a perfection of the art of subverting democracy, and not even national security or sovereignty are off the table in exchange for votes. The TMC, BSP, or Congress, for instance, sense in the struggle for Assam’s identity an opportunity to consolidate their minority vote banks. For Mamata, there is the added incentive of extending TMC’s reach in Assam by tapping into the Muslim vote bank and squeezing Congress or AIUDF’s space. Her ambition arises out the sense of security that she feels about her position in Bengal. 2019 isn’t far away and her eyes are fixed firmly on the prime minister’s chair.

Navjot Singh Sidhu accepts Imran Khan’s invitation, says he sees a ray of hope in him

Photo: Rakesh Shah


Congress leader and former cricketer Navjot Singh Sidhu accepted PTI leader Imran Khan’s invitation to attend his oath-taking ceremony as the new Prime Minister of Pakistan. The Punjab Cabinet minister said that he understands the foreign policy of India and that Imran Khan’s invitation is just a personal one, not political.


Punjab Cabinet minister and former cricketer Navjot Singh Sidhu on Thursday said that it’s a huge honour for him to be invited to the oath-taking ceremony of Pakistan Tehreek-e-Insaf (PTI) leader Imran Khan. The Congress leader further lauded the character of Imran Khan and said that he sees a ray of hope in the soon-to-be Pakistan Prime Minister. Khan’s swearing-in ceremony as Pakistan PM is scheduled to be held on August 11.

After winning the Pakistan general elections 2018 with a massive difference from the closest rivals Pakistan Muslim League – Nawaz (PMLN), PTI’s Imran Khan invited a host of prominent personalities from India to attend his swearing-in ceremony. Some of the high-profile names in his guest are Sunil Gavaskar Kapil Dev, Navjot Singh Sidhu and Aamir Khan.

Imran Khan’s invitation to the Indian persons has raised several eyebrows but Navjot Singh Sidhu in his usual style downplayed any political intentions of PTI leader from the invitation.

While speaking to media, Navjot Singh Sidhu reiterated that he respects the foreign policy of the Indian government and the country, but it is a mere personal invitation from the former Pakistani cricketer.

“Imran has risen from the scratch in politics and he has exhibited great character. I see a ray of hope in him. Men of genius are admired, men of power are feared, but men of character are trusted. Khan Sahab is a man of character. He can be trusted. Sportsmen build bridges, break barriers, unite people” added Sidhu.

Elsewhere, another high-profile invitee Aamir Khan has said that he will not be going to Pakistan for any oath-taking ceremony. The Bollywood superstar explained that he has not received any invitation from anybody.

In the recently held Pakistan elections, PTI won 115 of the 269 seats in the National Assembly but fell short of 12 seats to reach the majority mark of 137. Nevertheless, PTI emerged as the single largest party in the electoral mandate and now the party leader Imran Khan would take oath as Pakistan’s Prime Minister on August 11.

 

हरियाणा सरकार ने 26 आईपीएस व 4 एचपीएस के किए तबादले


हरियाणा सरकार ने सात जिलों के एसपी समेत सरकार ने 26 आइपीएस और चार एचपीएस अधिकारियों के तबादला आदेश जारी किए हैैं।


चंडीगढ़, 2 अगस्त, 2018

अजय कुमार

हरियाणा सरकार ने पुलिस प्रशासन में भारी फेरबदल किया है। सात जिलों के एसपी समेत सरकार ने 26 आइपीएस और चार एचपीएस अधिकारियों के तबादला आदेश जारी किए हैैं। जिन जिलों के एसपी बदले गए हैैं, उनमें अंबाला, सोनीपत, यमुनानगर, हिसार, कुरुक्षेत्र, हांसी और नारनौल शामिल हैैं। आइजी स्तर के पांच अधिकारियों, दो डीआइजी और कई डीसीपी को भी बदला गया है। अब जल्द ही प्रशासनिक अधिकारियों की भी तबादला सूची आने की संभावना है।

आइआरबी भौंडसी के आइजी सीएस राव को हरियाणा पुलिस अकादमी मधुबन में आइजी और आइजी (सिक्योरिटी) हनीफ कुरैशी को आइआरबी भौंडसी में आइजी बनाकर भेजा गया है। जेल विभाग के आइजी डा. एम रविकिरण को पंचकूला पुलिस मुख्यालय में आइजी (प्रशासन), स्टेट क्राइम ब्यूरो के आइजी सौरभ सिंह को आइजी (सिक्योरिटी) का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया है।

स्टेट क्राइम ब्यूरो की आइजी डा. राजश्री सिंह को नेशनल हाइवे ट्रैफिक की आइजी का अतिरिक्त कार्यभार दिया गया। सीआइडी के डीआइजी वाई पूर्ण कुमार को जेल विभाग का डीआइजी लगाया गया। सोनीपत के एसपी-कम-डीआइजी सतेंद्र कुमार गुप्ता को सीआइडी में डीआइजी नियुक्त किया गया।

हरियाणा आम्र्ड फोर्स अंबाला में पहली बटालियन के कमांडेंट अशोक कुमार अब अंबाला के नए एसपी होंगे। नूंह की एसपी नाजनीन भसीन को मानेसर में आइआरबी की चौथी बटालियन की कमांडेंट का अतिरिक्त जिम्मा सौंपा गया है। सिरसा एसपी हामिद अख्तर को एआइजी (प्रशासन) का अतिरिक्त कार्यभार मिला है।

नाम मौजूदा पोस्टिंग नई पोस्टिंग
सुलोचना कुमारी गुरुग्राम में डीसीपी ट्रैफिक गुरुग्राम इस्ट की डीसीपी
संगीता कालिया भौंडसी में आइआरबी की पहली बटालियन की कमांडेंट स्टेट क्राइम ब्यूरो की एसपी का अतिरिक्त कार्यभार
अभिषेक जोरवाल अंबाला के एसपी पंचकूला डीसीपी
मनीष चौधरी हिसार एसपी पंचकूला पुलिस मुख्यालय में महिलाओं के विरुद्ध अपराध एसपी
प्रतीक्षा गोदारा पुलिस जिला हांसी की एसपी सोनीपत एसपी
राजेंद्र कुमार मीणा पंचकूला डीसीपी हरियाणा आम्र्ड फोर्स अंबाला में पहली बटालियन का कमांडेंट
दीपक गहलावत गुरुग्राम के डीसीपी एसपी (कानून एवं व्यवस्था)
सुमेर प्रताप सिंह एसपी (कानून एवं व्यवस्था) हरियाणा पुलिस अकादमी करनाल में एसपी। नेशनल हाइवे ट्रैफिक करनाल के एसपी का अतिरिक्त कार्यभार भी
लोकेंद्र सिंह फरीदाबाद सेंट्रल के डीसीपी फरीदाबाद में ट्रैफिक डीसीपी का अतिरिक्त कार्य
राजेश कुमार हिसार के एडिशनल एसपी मानेसर डीसीपी
कुलदीप सिंह इस्ट गुरुग्राम के डीसीपी एसपी यमुनानगर
शिवचरण बल्लभगढ़ के डीसीपी हिसार के एसपी
सुरेंद्र पाल सिंह एसपी स्टेट क्राइम ब्यूरो एसपी कुरुक्षेत्र
वीरेंद्र विज फरीदाबाद में ट्रैफिक डीसीपी एसपी हांसी
धीरज सेतिया सीएम फ्लाइंग के एसपी एसपी रेलवे
कमलदीप गोयल एसपी नारनौल सीएम फ्लाइंग में एसपी
मोहिंदर कुमार मानेसर के डीसीपी हरियाणा विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड में एसपी
विनोद कुमार एसपी रेलवे एसपी नारनौल
राजेश कुमार अंबाला में एडिशनल एसपी डीएसपी बल्लभगढ़
कुलविंद्र सिंह आइआरबी मानेसर की चौथी बटालियन के कमांडेंट गुरुग्राम पुलिस कमिश्नरी में डीसीपी

मुजफ्फरपुर दुष्कर्म मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने लिया स्वतः संज्ञान

 

बिहार के मुजफ्फरनगर में बालिका आश्रय गृह में बच्चियों से दुष्कर्म का मामला:-

– सुप्रीम कोर्ट ने मामले में बिहार सरकार, TISS, राष्ट्रीयक्षण आयोग और केंद्रीय महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय को नोटिस जारी कर जवाब मांगा।
– सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया को निर्देश जारी किया है कि मामले में न तो बच्चियों के इंटरव्यू ले और न ही उनकी धुंधली तस्वीर tv पर दिखाए।
– कोर्ट ने मामले में वकील अपर्णा भट्ट को एमिकस नियुक्त किया।

पूरे मामले में केंद्र और बिहार सरकार से मांगा जवाब।

हिंसा मामले में 6 व्यक्तियों को बरी किये जाने का विस्तृत फैसला: SIT की जांच पर बड़ा सवाल


पंचकूला जिला एवं सत्र न्यायाधीश ऋतु टैगोर ने इस मामले में कहा कि जांच अधिकारी ने जांच के दौरान लापरवाही बरती. कोर्ट ने अपने फैसले में सबूतों की कमी का भी हवाला दिया है.


25 अगस्त 2017 वो तारीख है जब पंचकूला जल उठा था. ये वो काला दिन था जब हिंसा की आग में जल रहे पंचकूला में कई लोगों की जान चली गई, जिसके बाद शुरू हुई मामले की जांच में एसआईटी ने कई लोगों की आरोपी बनाया. लेकिन अब एसआईटी की जांच खुद सवालों के घेरे में है. दरअसल, पंचकूला हिंसा मामले की एफआईआर नंबर 362 के सभी 6 आरोपियों को पंचकूला जिला कोर्ट ने बरी कर दिया था. लेकिन कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस मामले में लापरवाही बरती गई है.

पंचकूला जिला एवं सत्र न्यायाधीश ऋतु टैगोर ने इस मामले में कहा कि जांच अधिकारी ने जांच के दौरान लापरवाही बरती. कोर्ट ने अपने फैसले में सबूतों की कमी का भी हवाला दिया है. कोर्ट का कहना था कि जांच अधिकारी की आम जनता के केस में न जुड़ने संबंधी साधारण-सी टिप्पणी बताती है कि उन्होंने आमजन के केस से जुड़ने के महत्व को पूरी तरह से अनदेखा किया और जांच में लापरवाही बरती.

पंचकुला हिंसा:  दंगा भड़काने के मामले में कोर्ट ने 6 आरोपियों को किया बरी

जज ने ये भी कहा कि इससे ये स्पष्ट होता है कि अभियोजन पक्ष ने संदेह से अलग कोई भी अच्छे और विश्वसनीय तथ्य पेश नहीं किए जिससे कि आरोपियों पर मामला साबित हो पाता और ये सभी आरोपियों को संदेह का लाभ देने का बिल्कुल सही मामला बनता है. कोर्ट ने कहा कि जांच अधिकारी इन आरोपियों का डेरे से जुड़ाव और 25 अगस्त को पंचकूला में मौजूदगी भी साबित नहीं कर पाए. पुलिस को ज्यादा श्रम शक्ति का इस्तेमाल करना चाहिए. लेकिन पुलिस ने FIR दायर करने के लिए मैनुअल मोड अपनाया.

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FIR दर्ज करने में दो दिन की देरी होने के लिए पुलिस ने जो जवाब दिया है उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता. ऐसे में बचाव पक्ष की दलील कहीं ना कहीं सही लगती है कि मामले को जल्द निपटाने के लिए पुलिस ने दूसरे मामलों में फंसे आरोपियों को झूठे तौर पर फंसाया.

शरणार्थियों को पहचान पत्र देने पर नाखुश है जम्मू-कश्मीर सियासत

 

काश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में महबूबा मुफ़्ती हों या ओमर अब्दुल्ला दोनों ही कश्मीरी विस्थापितों के लिए कुछ भी करने से गुरेज करते रहे। अलगाववादियों या यह कहें के विभाजन करियों के दबाव में आ कर कभी उन्होने कश्मीरी पंडितों के लिए की ब्यान भी नहीं दिया करना तो दूर की कौड़ी रही। यही हालात देश के विभाजन के बाद घाटी ओर जम्मू क्षेत्र में सीमा पार से आए शरणार्थियों के लिए राजी सरकारों के रहे। 1947 से आज तक यह परिवार राजी ओर राष्ट्र के योगदान में एक अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं, परंतु यह हिन्दू परिवार हैं इसी कार्न इनकी कोई सुनवाई राजी में आज तक नहीं हुई। अब मोदी सरकार ने इनकी सुध ली तो घाटी के नुमाइंदों के यह बात अच्छी नहीं लगी। भाजपा – पीडीपी गठबंधन टूटने की वजहों में यह भी एक हो सकती है।

जम्मू- कश्मीरः पश्चिमी पाकिस्तान से पलायन कर जम्मू- कश्मीर पहुंचे शरणार्थियों के लिए 2000 करोड़ रुपये के पैकेज के बाद अब इस मामले में एक और विवाद उठ खड़ा हुआ है। इन शरणार्थियों को डोमिसाइल सर्टिफिकेट यानि मूल निवास प्रमाण पत्र जारी करने के खिलाफ अलगावादियों ने प्रदर्शन का ऐलान किया है। वहीं अलगावादियों के साथ-साथ राज्य के कई विपक्षी दल भी सरकार के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार का यह कदम ना सिर्फ इन शरणार्थियों को कश्मीर में बसाने की कोशिश है, बल्कि इससे उन्हें राज्य की स्थाई नागरिकता दे दी जाएगी।

इन आरापों के बाद सरकार ने साफ किया कि इन शरणार्थियों को डोमिसाइल नहीं, बल्कि केवल पहचान पत्र दिए गए हैं, ताकि 1947 के बाद जम्मू कश्मीर आए इन पाकिस्तानी शरणार्थियों को नौकरियां मिलने में आसानी हो। राज्य की महबूबा सरकार की ओर से जारी बयान में डोमिसाइल सर्टिफिकेट देने की खबरों को गलत बताया है। राज्य सरकार के पूर्व प्रवक्ता एवं शिक्षा मंत्री नईम अख्तर ने बयान में कहा, ‘ऐसा लग रहा है कि जान-बूझकर एक मुहिम चलाई जा रही है, जिसका मकसद राज्य सरकार की छवि और राज्य के हालात को बिगाड़ना है।

न्यायाइक राजवंश के विरुद्ध लाम बंद सरकार


सवाल है कि क्या अब भी सुप्रीम कोर्ट इस सच को स्वीकार कर समय रहते हुए सुधार का काम शुरू करेगा या नहीं.


मोदी सरकार ने आते ही कार्यकारी व्यवस्था में बदलाव लाने के प्रयास किए जिसमें “न्यायिक राजवंश” को भेदना भी शामिल था। 2016 से सरकार ओर कोलेजियम में इसी बात को ले कर खींच तान चल रह है। हो न हो चार न्यायाधीशों की पत्रकार वार्ता के पीछे यह भी एक वजह हो सकती है। सरकार द्वारा कई नामों को नकारने के बावजूद कोलेजियम अपने कुछ चहेतों के नाम बार बार सर्वोच्च नयायालय के नयायाधीश पद हेतु भेज रहा रहा है। सरकार द्वारा इलाहाबाद उच्च नयायालय की ओर से  भेजे गए नामों को सार्वजनिक करना सरकार के इस राजवंशीय प्रणाली के प्रति उसके पक्षको स्थापित करता है।

2013 में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय कॉलेजियम ने उच्च न्यायालय (हाईकोर्ट) में जज के तौर पर नियुक्ति के लिए आठ वकीलों का नाम भेजा था. हाईकोर्ट के उस कॉलेजियम में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (अब सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश) ए.के. सिकरी, जस्टिस जसबीर सिंह और जस्टिस एस.के. मित्तल शामिल थे. इसी कॉलेजियम ने उच्च न्यायालय में जज के तौर पर नियुक्ति के लिए 8 वकीलों के नाम की सिफारिश की थी.

जिन वकीलों के नाम की अनुशंसा की गई थी, उसमें मनीषा गांधी (भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ए.एस. आनंद की बेटी), गिरीश अग्निहोत्री (पूर्व न्यायमूर्ति एमआर अग्निहोत्री के पुत्र), विनोद घई, बीएस राणा (न्यायमूर्ति एस.के. मित्तल के पूर्व जूनियर), गुरमिंदर सिंह और राजकरन सिंह बरार (न्यायमूर्ति जसबीर सिंह के पूर्व जूनियर), अरुण पल्ली (पूर्व न्यायमूर्ति पी.के. पल्ली के बेटे) और एच एस सिद्धू (पंजाब के अतिरिक्त महाधिवक्ता) के नाम शामिल थे.

न्यायिक राजवंश

कॉलेजियम से इन नामों को मंजूरी मिलने के तुरंत बाद ही, 1000 वकीलों ने राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश को एक हस्ताक्षरित ज्ञापन भेजा. इसमें कॉलेजियम की सिफारिशों को लेकर गंभीर सवाल उठाए गए थे.

 

 

ज्ञापन में कहा गया था- ‘पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के कॉलेजियम ने जिस तरह न्यायाधीश के रूप में प्रोन्नति के लिए 8 वकीलों के नामों की सिफारिश की है, वह भारतीय न्यायपालिका की आजादी और अखंडता को खतरे में डालती है. इस तरह के नामों की सिफारिश करने के पीछे जो कारण हैं, वह कॉलेजियम के फैसले पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा करते हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि नामों का चुनाव करते वक्त उम्मीदवार की योग्यता और सत्यनिष्ठा के अलावा अन्य चीजों पर विचार किया गया. अब ऐसे वकीलों के नामों की सिफारिश करना, जो पूर्व न्यायाधीशों और मुख्य न्यायाधीशों के बेटे, बेटियां, रिश्तेदार और जूनियर हैं, एक परंपरा और सुविधा का विषय बन गया है.’

यह ज्ञापन मनीषा गांधी के नाम चयन में बरती गई गंभीर कोताही की ओर इशारा करता है. इस बारे में ज्ञापन में लिखा है, ‘जिनकी एकमात्र योग्यता यह है कि वह पूर्व सीजेआई ए.एस. आनंद की बेटी हैं. वह साल 2012 में केवल 36 केसेज (मामलों) में अदालत में उपस्थित हुईं. उसमें दो सीआरएम, आठ सीडब्ल्यूपी और अन्य 26 कंपनी अपील थे. 2013 से वह आज तक केवल सात कंपनी अपील में ही अदालत में उपस्थित हुईं. हाल ही में उन्हें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय का अतिरिक्त महाधिवक्ता (एडिशनल एडवोकेट-जनरल) नियुक्त किया गया, ताकि कॉलेजियम जज बनाने के लिए उनके नाम पर विचार कर सके.’

गौरतलब है कि न्यायमूर्ति एस.के. मित्तल उच्च न्यायालय के कॉलेजियम का हिस्सा थे, फिर भी उन्होंने खुद से प्रत्यक्ष तौर पर जुड़े व्यक्तियों की सिफारिश की. जाहिर है, ऐसे निर्णय हितों के टकराव और निर्णय प्रक्रिया में शुचिता की कमी जैसे गंभीर मुद्दे को उठाते हैं.

इस मुद्दे पर शोर मचने के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने छह नामों को खारिज कर दिया और पल्ली और सिद्धू के नाम पुनर्विचार के लिए वापस भेज दिए. यह मामला न्यायिक नियुक्ति की वर्तमान सबसे बड़ी समस्या में से एक को उजागर करता है. सरल शब्द में इसे ‘न्यायिक राजवंश’ कहा जा सकता है. इसे एक ऐसा कॉलेजियम भी कहा जा सकता है, जो सिर्फ अपने रिश्तेदारों, दोस्तों, पूर्व सहयोगियों और जूनियरों की नियुक्ति करने का काम करता है.

तमाम आलोचनाओं और व्यक्तिगत संबंधों के कारण होने वाली नियुक्तियों के स्पष्ट मामलों के सामने आने के बावजूद, यह परंपरा पिछले कुछ दशकों में बढ़ गई है. क्योंकि अवमानना के डर से लोग भाई-भतीजावाद के उदाहरणों को सामने लाने से हिचकते हैं.

केन्द्र सरकार का सख्त रुख

 

हालांकि, नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली वर्तमान सरकार इस प्रवृत्ति को रोकना चाहती है और इसके लिए प्रयासरत भी है. जून 2016 में पहली बार, केंद्र सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के लिए 44 न्यायाधीशों की नियुक्ति पर रोक लगा दी थी. ये नाम उच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा भेजे गए थे. जिन 44 नामों की सिफारिश की गई थी, उनमें से कम से कम सात नाम सेवारत या सेवानिवृत्त पूर्व न्यायाधीशों से संबंधित थे.

बुधवार को टाइम्स ऑफ इंडिया में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है. इसके मुताबिक, फरवरी में इलाहाबाद उच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा भेजे गए 33 नामों की उम्मीदवारी का मूल्यांकन करने के बाद, केंद्र सरकार ने पाया है कि इन 33 नामों में से कम से कम 11 नाम सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायाधीशों से संबंधित है. विभिन्न संवैधानिक विशेषज्ञों और कानूनी दिग्गजों ने इस मुद्दे पर बहस करते हुए कहा है कि किसी को भी न्यायिक कार्य में आने से सिर्फ इसलिए प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता, क्योंकि उम्मीदवार के परिवार का कोई सदस्य न्यायाधीश है. लेकिन, उन्होंने इस पर भी जोर दिया है कि लोगों के बीच विश्वास सुनिश्चित करने के लिए सिफारिश प्रक्रिया में अधिक से अधिक पारदर्शिता अपनाई जाए.

लेकिन सुधार की सभी बातों और सुझावों के बावजूद, उच्च न्यायपालिका ने इस मोर्चे पर कोई खास काम नहीं किया है. 2016 में फ़र्स्टपोस्ट के साथ एक बातचीत में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील अनुपम गुप्ता ने एक महत्वपूर्ण बिंदु पर बात की थी. उन्होंने बताया कि कैसे 2015 के एनजेएसी फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने इस समस्या को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया. हालांकि, इसने ‘हितों के टकराव’ सिद्धांत (न्यायिक नियुक्तियों में कार्यपालिका की भागीदारी के संबंध में) की ऐसी व्याख्या कर दी, जो किसी भी ज्ञात न्यायशास्र सीमा से परे है.

अब, इलाहाबाद उच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा भेजी गई सूची में न्यायाधीशों के रिश्तेदारों के नामों को सार्वजनिक करके, केंद्र ने ‘एलीफैंट इन रूम’ (एक ऐसी समस्या, जिस पर कोई बात नहीं करना चाहता) वाली कहावत की कलई खोल दी है. सवाल है कि क्या अब भी सुप्रीम कोर्ट इस सच को स्वीकार कर समय रहते हुए सुधार का काम शुरू करेगा या नहीं.