नंदिता के मंटो कि भागवत से मुलाकात


नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के लेक्चर में जाकर राजनीति पर नजर रखने वाले कई जानकारों को चौंका दिया है


कोरल(पुरनूर)

चंडीगढ़

एक्टर नवाजुद्दीन सिद्दीकी से आज दिल्ली में आरएसएस के मुखिया मोहन भागवत ने मुलाकात की. मोहन भागवत ने आज लोगों के सामने अपना विजन पेश किया. जिसमें नवाज के साथ-साथ अन्नू कपूर, मनीषा कोईराला, अन्नू मलिक जैसे स्टार्स ने भी शिरकत की.

आप तस्वीरों में मनोज तिवारी को भी देख सकते हैं. तो इस कार्यक्रम में नवाज अपनी फिल्म मंटो का प्रमोशन करने गए थे या फिर इसमें उनका अपना प्रमोशन भी छिपा है?

आपको बता दें कि ये कोई फिल्म प्रमोशन स्ट्राटेजी नहीं कही जा सकती क्योंकि मंटो के प्रचार के लिए न तो नवाज को आरएसएस की जरूरत है और न आरएसएस को फिल्मों में कोई खास इंट्रेस्ट. तो फिर नवाज या आरएसएस का कॉमन इंट्रेस्ट क्या हो सकता है? वो आप इस तस्वीर से समझने की कोशिश करें. क्या नवाज के सहारे अल्पसंख्यकों की विरोधी का दाग धोने की कोशिश में है आरएसएस?

फोटोग्राफ्स में आप देख सकते हैं कि नवाजुद्दीन सिद्दीकी मोहन भागवत के साथ सहज नजर आ रहे हैं. नवाज के करीबी सूत्रों के मुताबिक ये मुलाकात बहुत ही हल्के फुल्के माहौल में हुई. नवाज के साथ मोहन भागवत ने ठीक-ठाक वक्त गुजारा. उन्होंने नवाज के काम की तारीफ की और नवाज ने भी उन्हें अपनी फिल्मों के बारे में खुलकर बताया.

मुंबई में नवाज ने छोड़ा मंटो का प्रीमियर

नवाज की फिल्म मंटो का प्रीमियर आज मुंबई के जुहू पीवीआर में रखा गया था जिसमें इंडस्ट्री के तमाम बड़े स्टार्स ने शिरकत की. नवाज को इसकी पूरी जानकारी थी फिर भी उन्होंने इसे मिस करके आरएसएस के कार्यक्रम को ज्यादा तवज्जो दी.

नंदिता हैं बीजेपी की विरोधी

नवाज की फिल्म मंटो रिलीज के लिए तैयार है. इस फिल्म को बनाया है नंदिता दास ने. नंदिता दास लंबे वक्त से बीजेपी के साथ-साथ पीएम मोदी की भी धुर विरोधी रही हैं. मोदी के खिलाफ उनके विचार जानने के लिए आप गूगल कर सकते हैं. जाहिर है आरएसएस के बारे में भी नंदिता के ऐसे ही विचार हैं.

समाजवादी पार्टी के समर्थक रहे हैं नवाज

मुजफ्फरनगर के रहने वाले नवाजुद्दीन सिद्दीकी अखिलेश यादव सरकार की योजनाओं के ब्रांड एंबैसडर रहे हैं. उन्हें इसका इनाम भी मिला जब उनके छोटे भाई सबा सिद्दीकी की बेगम फैजुद्दीन सिद्दीकी को एसपी ने बुढ़ाना नगरपालिका अध्यक्ष पद के लिए अपना उम्मीदवार बनाया. जिसके बाद से ये माना जाने लगा था कि उनका परिवार अखिलेश का फैन है और वो अपना समर्थन उन्हें दे चुका है.

आमिर खान को भी मिला था आरएसएस का साथ

आमिर खान जब देश में असहिष्णुता की बात करके फंस गए थे तो कई कंपनियों के कॉन्ट्रेक्ट से हाथ धोना पड़ा था. आमिर को लोगों ने इतना ट्रोल कर डाला था कि स्नैपडील जैसी कंपनियों ने आमिर से अपनी डील ही रद्द कर दी थी. जिसके बाद आमिर खान ने मोहन भागवत से अवॉर्ड लिया था. जिससे संदेश ये ही गया कि आमिर को अब आरएसएस को सपोर्ट मिल गया है. आप इस फोटो में देख सकते हैं कि मोहन भागवत उन्हें अवॉर्ड दे रहे हैं.

बॉलीवुड में बढ़ चुका है नवाज का कद

नवाज की इस मुलाकात के बाद ये माना जा सकता है कि वो भले ही राजनीति में एंट्री सीधे तौर पर न करें लेकिन अंदरखाने में उन्होंने अपना संदेश साफ दे दिया है कि वो भी अब बॉलीवुड के उन सुपरस्टार्स में शामिल हो चुके हैं जो फिल्मों के साथ साथ सत्ता को भी अपने फेवर में साधकर रखने में माहिर हैं.

गंभीर बीमारी से जूझ रहे पर्रीकर इलाज करवाने दिल्ली गए और कांग्रेस राजभवन


सोमवार को भी कांग्रेस के 14 विधायक राजभवन गए थे. लेकिन तब वहां राज्यपाल मृदुला सिन्हा को न पाकर प्रतिनिधिमंडल सरकार बनाने का दावा पेश करने वाली चिट्ठी वहीं छोड़कर लौट आया था


राज वशिष्ठ

चंडीगढ़:

“चील कौव्वों से भर गया आँगन, कोई उम्मीद मर गयी होगी.”

रामेन्द्र जाखू का यह शेर गोवा कि सियासत पर सटीक बैठता है, मोहन पर्रीकर अपनी बीमारी का इलाज करवाने दिल्ली क्या गए कांग्रेसी राजभवन पहुँच गए और सत्ता पर अपना दावा ठोक दिया. यही इनकी राजनीति है. 

गोवा में सियासी उठापटक का सिलसिला जारी है. सूत्रों के अनुसार कांग्रेस के विधायक सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए आज यानी मंगलवार को एक बार फिर राजभवन जाएंगे.

इससे पहले सोमवार को कांग्रेस के 14 विधायक राजभवन गए थे. लेकिन तब वहां राज्यपाल मृदुला सिन्हा को न पाकर प्रतिनिधिमंडल सरकार बनाने का दावा पेश करने वाली चिट्ठी वहीं छोड़कर लौट आया था.

गोवा कांग्रेस का कहना कि मनोहर पर्रिकर के बीमार रहने से राज्य के विकास के काम पिछले कुछ महीने से ठप पड़ गया है.

बता दें कि गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर पिछले कुछ समय से गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं. उनकी बीमारी को देखते हुए किसी नए को यहां सरकार की कमान देने की अटकलें लगाई जा रही हैं. हालांकि बीजेपी लगातार ऐसी संभावना से इनकार किया है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर बीते रविवार को पर्रिकर को विशेष विमान से दिल्ली लाया गया था. यहां इलाज और चेकअप के लिए उन्हें एम्स में भर्ती कराया गया है.

मनोहर पर्रिकर बीते 7 महीने से 3 बार इलाज के सिलसिले में अमेरिका होकर लौटे हैं.

Reduce Green House gases by using Solar Energy:Dr. Abdul Qayum

17th September 2018:
Green Skill Development Programme on “Sustain and Enhance Technical Knowledge in Solar Energy Systems”sponsored by Ministry of Environment Forest & Climate Change, Govt. of India, is being organised from 17th September, 2018 to 22nd Nov, 2018 (45 days) by ENVIS HUB, Department of Environment, Chandigarh Administration in collaboration with National Institute of Technical Teachers Training and Research, Chandigarh.
 During this program, twenty two participants from different states across the country will be imparted skill development training on different technologies used for harnessing the solar energy as well as installation, operation and maintenance works involved in the various solar energy systems.
The 45 days skill development training programme has been inaugurated by Sh. Debendra Dalai, IFS, Director Environment, S & T and RE and CEO CREST, Chandigarh U.T. on 17th Sept, 2018 at 11:00 am at NITTR, Chandigarh. In his address, Sh. Debendra Dalai, Chief Guest of the function highlighted the importance of skill development of youths. He further elaborated on the importance of Green Skill Development with special emphasis on harnessing solar energy for posterity. The steps taken by Chandigarh administration for popularising the renewable energy were also highlighted by him.
The Guest of Honour Dr. Abdul Qayum, IFS, Deputy Conservator of Forest and Additional Director S & T and RE, stressed upon the need to reduce green house gas emissions through utilisation of solar energy technologies.
Dr SS Pattnaik , Director, NITTTR, Chandigarh enlightened about the key initiatives and innovative activities of the institute and also about the significance of practical skills for enhancing employability in solar energy sector.
 Sh. Vivek Pandey, Scientist “SD” cum ENVIS Coordinator, Chandigarh Administration addressed regarding the role of solar energy systems for reducing carbon footprint and green energy interventions based potential employment areas. In his remarks, he highlighted major initiatives taken up by ENVIS Hub, Chandigarh and its contribution in national environmental protection and awareness.
Dr. Ashok Sharma, CEO Clean Tech Foundation, New Delhi highlighted benefits of Green Technologies and further possibilities in Green Skill development initiatives.
In the end, Professor Sanjay Sharma has explained the details about the program schedule and various facilities to be provided to the students during the course.
Dr. Poonam Syal, Assistant Professor from  NITTTR Chandigarh concluded the inaugural program by presenting the vote of thanks and  offering her best wishes to the participants.

चुनावों से पाहिले सीटों के बटवारे को ले कर दबाव बना रही हैं मायावती


अखिलेश यादव की बेसब्री कांग्रेस को लेकर नहीं बल्कि अपनी बुआ मायावती को लेकर है जिन्हें साथ लेकर वो ‘कैराना’ और ‘नूरपुर’ को 2019 में दोहराना चाहते हैं. लेकिन, उनकी यही बेसब्री लगता है उनपर भारी पड़ रही है


बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने 11 सितंबर को पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों को लेकर बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस को भी निशाने पर लिया था. यूपीए सरकार की आर्थिक नीतियों के बहाने मायावती का कांग्रेस पर हमले के सियासी मायने निकाले जा रहे थे. कहा गया कि मायावती लोकसभा चुनाव और पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन में अपनी हिस्सेदारी को लेकर दबाव बनाने की तैयारी कर रही हैं.

अब पांच दिन बाद ही मायावती ने एक बार फिर हमला बोला है. लेकिन, इस बार उनके निशाने पर महागठबंधन के सभी संभावित सहयोगी हैं. इस बयान को भी दबाव की कोशिश माना जा रहा है.

मायावती की दबाव बनाने की कोशिश !

बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने कहा है ‘कुछ लोग राजनीतिक लाभ लेने के लिए अपना नाम मुझसे जोड़ते हैं. मुझे बुआ कहते हैं.’ भीम आर्मी के संस्थापक और सहारनपुर जातीय हिंसा मामले में आरोपी चंद्रशेखर आजाद ‘रावण’ ने भी जेल से बाहर आने के बाद मायावती को बुआ कहा था. मायावती कहती हैं ‘इन लोगों से मेरा कोई लेना-देना नहीं है. ये सब बीजेपी का गेम प्लान है.’

मायावती ने ‘बुआ-बबुआ’ के संबंधों को सिरे से खारिज कर दिया है लेकिन, उनके बयान का सियासी मतलब इससे कहीं बड़ा माना जा रहा है. क्योंकि चंद्रशेखर आजाद ‘रावण’ से पहले तो यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव उन्हें बुआ कहते रहे हैं.

कई मौकों पर ‘बुआ-बबुआ’ के बीच लड़ाई होती रही है. लेकिन, अब दोनों के मिलकर चुनाव लड़ने को लेकर तैयारी की बात कही जा रही है. ऐसे वक्त में ‘बुआ-बबुआ’ के रिश्ते को खारिज करने के मायावती के बयान ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है.

चंद्रशेखर आजाद ‘रावण’ से क्यों दूर रहना चाहती हैं मायावती?

चंद्रशेखर आजाद ‘रावण’ के साथ मायावती के रिश्ते की बात करें तो उन्हें लगता है कि ‘रावण’ के जेल से बाहर निकलने से उनके वोट बैंक पर असर पड़ेगा. सहारनपुर समेत पश्चिमी यूपी में दलित तबके में भीम आर्मी का असर धीरे-धीरे बढ़ रहा है. चंद्रशेखर आजाद ‘रावण’ अगर एक अलग ताकत के तौर पर अपने-आप को चुनावी राजनीति के केंद्र में लाते हैं या फिर चुनाव मैदान में उतरते हैं तो पूरे इलाके की दलित राजनीति पूरी तरह बदल जाएगी.

‘रावण’ के अलग ताकत के तौर पर चुनाव में आने के बाद इसका सीधा असर मायावती पर पड़ेगा. लेकिन, मायावती नहीं चाहती हैं कि कोई दूसरी ताकत दलित सियासत में उभर कर सामने आए. अपने बुरे दौर में भी मायावती को दलित समाज के एक बड़े तबके का समर्थन मिला हुआ है. ऐसे में किसी नए युवा दलित चेहरे को अगर दलित राजनीति में कोई स्पेस मिल जाता है तो शायद मायावती का वो एकाधिकार खत्म हो जाएगा.

यही वजह है कि बुआ का रिश्ता जोड़ने के बावजूद मायावती ने चंद्रशेखर आजाद ‘रावण’ से दूरी बनाने का फैसला किया है. मायावती नहीं चाहती हैं कि उनके साथ मिलकर या अलग रहकर भी भीम आर्मी इतनी ताकतवर हो जाए जो आगे चलकर बीएसपी को ही चुनौती देने लगे.

मायावती के रुख से अखिलेश की बढ़ी मुश्किलें !

लेकिन, मायावती को सबसे पहले बुआ कहने वाले बबुआ यानी अखिलेश यादव के लिए इस रिश्ते का खारिज होना ज्यादा परेशान करने वाला है. क्योंकि 2017 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद से ही अखिलेश यादव केंद्र की बीजेपी सरकार को हटाने के लिए हर कुर्बानी देने की बात कह रहे हैं. यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव की तरफ से मायावती के साथ गठबंधन करने की मंशा और उसके लिए कुछ कदम पीछे हटने का संकेत पहले ही दिया जा चुका है.

यह अलग बात है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर राहुल के साथ गलबहियां करना अखिलेश यादव को भारी पड़ा था. अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ गठबंधन की गलती को दोहराने के मूड में कतई नहीं दिख रहे. अगर कांग्रेस गठबंधन में शामिल होती भी है तो उसे बेहद कम सीटों पर ही संतोष करना होगा. हो सकता है कि उसे यूपी की 80 सीटों में से दहाई का आंकड़ा भी सीट बंटवारे में नहीं मिले.

ऐसे में अखिलेश यादव की बेसब्री कांग्रेस को लेकर नहीं बल्कि अपनी बुआ  मायावती को लेकर है जिन्हें साथ लेकर वो ‘कैराना’ और ‘नूरपुर’ को 2019 में दोहराना चाहते हैं. लेकिन, उनकी यही बेसब्री लगता है उनपर भारी पड़ रही है.

अखिलेश की अपरिपक्वता पड़ सकती है भारी

वक्त से पहले उनकी तरफ से कदम पीछे खींचने का संकेत उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता का संकेत दे रही है. बीजेपी को हराने के लिए लचीला रुख अपनाने के नाम पर अखिलेश यादव कुछ ज्यादा ही झुक गए हैं. उनके इसी लचीलेपन का फायदा मायावती भी उठाना चाह रही हैं. मायावती की तरफ से गठबंधन को लेकर अभी भी अपने पत्ते नहीं खोले जा रहे हैं.

मायावती ने एक बार फिर से कहा है कि उन्हें अगर सम्मानजनक सीटें नहीं मिलती हैं तो फिर गठबंधन नहीं होगा. मायावती की कोशिश मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस पर दबाव बनाने की है. उनकी तरफ से सम्मानजनक समझौते की बात करना यूपी में लोकसभा चुनाव के वक्त सीटों के बंटवारे से पहले इन तीन राज्यों में भी सीट बंटवारे को लेकर है, जहां कांग्रेस के खाते से बीएसपी कुछ सीटें झटकना चाहती हैं.

मायावती सियासी तौर पर कितनी परिपक्व हैं उसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यूपी में पिछले लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी का खाता भी नहीं खुला था. विधानसभा चुनाव में एसपी से भी काफी कम सीटें मिली और उनकी पार्टी महज 19 सीटों पर सिमट गई थी. फिर भी, ऐन वक्त तक सौदेबाजी करने और दबाव बनाकर रखने की उनकी रणनीति अब अखिलेश को बैकफुट पर ला सकती है.

लगता है अखिलेश यादव भी अपनी गलतियों से नहीं सीख रहे हैं. अखिलेश ने विधानसभा चुनाव 2017 में जनाधार विहीन कांग्रेस के साथ समझौता कर अपने खाते की जो सीटें कांग्रेस को दीं, उससे उनकी ही पार्टी का नुकसान हुआ. अब मायावती के आगे सौदेबाजी करने के बजाए पहले से ही घुटने टेकने की उनकी कोशिश एक बार फिर उनकी पार्टी कैडर्स पर नकारात्मक असर ही डालेगी.

मुलायम सिंह यादव की विरासत को आगे बढ़ाने और उस पर अपना हक जताने वाले अखिलेश यादव भले ही परिवार के भीतर उठापटक में बाजी मार गए हों, लेकिन, अपने पिता से शायद वो सियासी दांव अब तक नहीं सीख पाए हैं, जिसमें तुरुप का पत्ता आखिरी वक्त तक संभाल कर रखा जाता है. वक्त से पहले मुठ्ठी खोलना अखिलेश की उस बेसब्री को दिखा रहा है जो उन्हें बैकफुट पर धकेल सकती है

Left Unity clean sweeps JNUSU poll

The United Left Alliance — comprising left-leaning All India Students’ Association (AISA), Democratic Students Federation (DSF), Student Federation of India (SFI) and All India Students Federation (AISF) — on Sunday swept the Jawaharlal Nehru University Student Union elections with candidates from the coalition winning all central panel posts, a day after violence marred the counting process on campus on Saturday.

The Left Alliance candidate for the presidential post, N Sai Balaji, maintained a steady lead since counting resumed on Sunday and won with 2,151 votes. ABVP’s Lalit Pandey came second (972 votes), followed by BAPSA, RJD and NSUI.

Speaking of his loss, ABVP’s Pandey, said that they are taking the results as a win. Talking to News18, he said, “This is the win of our will. The Left had to form a coalition to defeat us. They had to come together to fight us.”

Even before all the votes were counted, celebrations erupted among the Left Alliance supporters on campus as they inched closer to victory.

Before the results were announced, Balaji asserted that the Left Alliance will fight against fund cuts and seat cuts if they won the elections. “Last year, we organised multiple protests against seat cuts and reservation cuts. However, we were attacked by the Delhi Police for the same,” he added.

“The people who accuse JNU of harbouring anti-national sentiments are themselves working against the country,” he also said.

Left Alliance supporters celebrate win in all central panel posts of the JNUSU. Rahul Satija/101Reporters

Left Alliance supporters celebrate win in all central panel posts of the JNUSU. Rahul Satija/101ReportersFor the JUNSU vice president’s post, Left Alliance’s Sarika Chaudhary won with 2,592 votes, defeating ABVP’s Geeta Sri, who received 1,013 votes. Chaudhary won by 1,579 votes.

In the polls to the general secretary’s position, Left Alliance candidate Aejaz Ahmad clinched victory with 2,426 votes, while ABVP’s Ganesh Gujar had to settle for 1,235 votes. The Left won by a margin of 1,193 votes.

Amutha Jayadeep, a Left alliance candidate, clinched the joint secretary’s post with 2,047 votes, while ABVP’s Venkat Chaubey received only 1,290 votes. Jayadeep won with a lead of 757 votes.

Counting of votes suspended on Saturday

Counting of votes in the JNU students union polls was suspended for over 14 hours on Saturday by election authorities citing “forcible entry” and “attempts to snatch away ballot boxes” at the counting venue, after the ABVP staged protests claiming it was not informed about the start of the process.

The counting, which was suspended at 4 am on Saturday, resumed at 6.30 pm the same day after two teachers from the Grievance Redressal Cell were appointed as observers for the exercise, officials said.

The deadlock at JNU persisted till evening with the ABVP accusing the election authorities of bias towards the Left outfits and threatening to move court.

The Election Committee, however, issued a statement saying it had made the announcement for counting agents to come and was following the rules.

It said, “A malicious lie is being spread on social media and among students that the Election Committee had not made three announcements and went forth with the entry of the counting agents for post of Central Panel for combined schools and Special Centres.”

As per the established norms, no new counting agents can enter the counting venue, once the seal of the boxes is opened.

“The Election Committee had to reject the request of new counting agents being allowed inside the counting venue. A few students had forcibly entered the building and reached the counting venue, thus we had to suspend the counting process,” it said.

The panel also claimed that their members, including women, faced intimidation.

On Sunday, to ensure transparency of counting of votes, constant announcements are being made about the total vote count and the specific vote share for each candidate.

ABVP, Left accuse each other of roughing up members

The RSS-affiliated ABVP and the Left parties indulged in a blame game on Saturday as they accused each other of roughing up their members in the JNU with the Left even alleging that an attempt was made to kidnap one of their woman members outside the university.

The ABVP claimed their members were assaulted between 5-6 pm by members of the Left bloc. “We were 25 in number and they were 250 in number. They assaulted one of our members and he is currently in a hospital. Some of their women members even tore the clothes of some of our women members,” the ABVP claimed.

This happened outside the School Of International Studies where the counting of votes for JNUSU took place.

Meanwhile, the Left members accused the ABVP members of attacking them in the evening and making an attempt to kidnap them around 10.30 pm. “While coming from the police station after registering a complaint against the goons of ABVP who violently attacked us today, a car with four men from which two men with handkerchief tied on their face came with belt, started beating us from all corners,” alleged a woman member of the Left bloc. She also claimed that they were armed.

Meanwhile, the Left also alleged that ABVP members were stationed inside the campus armed with sticks, a charge denied by the ABVP.

Fiery campaigning

Ahead of the elections on Friday, it was a fiery presidential debate with candidates alleging that “anti-national” elements were present on the institute’s campus and the country was turning into “lynchistan”.

In view of the upcoming Lok Sabha elections, JNUSU elections are vital in the political scenario of the nation. Requesting anonymity, some JNU students opined that the university is the core of youth politics and since many young leaders from JNU are currently contributing to national politics, the varsity election would also set the tone for the 2019 Lok Sabha election.

During his presidential debate speech on Wednesday night, Balaji, now the JNUSU president-designate, had said that the country was turning into ‘lynchistan’. “Mobs are allowed to kill people and get away with it as they have the backing of the RSS and the Central Government, and Prime Minister Narendra Modi. The country has been turned into lynchistan,” he had said.

“The year started with violence of Bhima Koregaon and we recently saw the arrests of activists and academics. This government is employing intimidating tactics. Here V-C is destroying the university, which the students have to reclaim,” he said.

Referring to the Supreme Court’s order that decriminalised homosexuality, Balaji had said the “future is rainbow and not saffron”.

Lalit Pandey, the ABVP candidate, alleged that there were “anti-national” elements present on the campus and promised to “fix” them if voted to the post.

The RJD candidate Jayant Kumar — first time RJD fielded a candidate in JNUSU polls — much like the Congress-affiliated NSUI’s nominee, Vikas Yadav, attacked the Centre over reducing funding for higher education, and lowering the number of seats at the Jawaharlal Nehru University (JNU) and scuttling with its reservation policy.

The Birsa Ambedkar Phule Student Association’s (BAPSA) presidential candidate, Thallapelli Praveen, said his party represents the voice of students from oppressed classes on the campus.

High voter turnout

The voter turnout in the keenly contested JNUSU election was 67.8 percent, believed to be the highest in six years. Over 5,000 students cast their votes.

“Since 2012, the elections are being conducted as per the Lyngdoh Committee recommendations. In the last six years, I have not seen such a high voting percentage,” an official had said.

Last year and in 2016, the voting percentage was 59 percent. In 2015, the voting percentage was 55 percent. In 2013 and 2014, the percentage hovered around 55 percent while in 2012, the voter turnout had reached 60 percent.

SFJ has threatened to stop Indian media organisations from overseas coverage

Chandigarh, Sept 16, 2018: Sikhs For Justice (SFJ) has threatened to stop Indian media organisations from overseas coverage citing their alleged propaganda of labelling Referendum 2020 campaigners as terrorists.

Using a new Twitter handle, its leader Gurpatwant Pannun tweeted that Punjabi TV Channel PTC News and news agency ANI would not be allowed to cover programmes in the US, UK and Canada.

Twitter had earlier blocked Pannun’s account.

TV Channel PTC is associated with Badals of Akali Dal.

बीजेपी जानबूझकर पूर्व प्रधानमंत्री नेहरु को निशाने पर ले रही है: कांग्रेस

 

कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी पर पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की स्मृतियों को हटाने की कोशिश करने का आरोप लगाया है. कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी जानबूझकर पूर्व प्रधानमंत्री को निशाने पर ले रही है.

इलाहाबाद में सौंदर्यीकरण संबंधी कार्यों के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू की प्रतिमा को अस्थायी रूप से हटाए जाने को लेकर कांग्रेस ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर निशाना साधा और कहा कि देश के पहले प्रधानमंत्री को इस देश से आत्मा से कभी नहीं हटाया जा सकता. इलाहाबाद की डेवलपमेंट अथॉरिटी ने बताया कि नेहरू की प्रतिमा को वहां से हटाकर उसी रोड पर स्थित एक पार्क में लगाया गया है.

पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने आरोप लगाया, ‘मोदी जी राजनीतिक बदला लेने के लिए अंधे हो चुके हैं वो और योगी आदित्यनाथ पंडित नेहरू की उस हर स्मृति को मिटाना चाहते हैं, जो स्वाधीनता संग्राम और आजाद भारत के निर्माण से जुड़ी है.’

उन्होंने कहा, ‘पूरा देश जानता है कि इलाहाबाद स्वाधीनता संग्राम का सबसे बड़ा प्रतीक है. इलाहाबाद पंडित नेहरू की कर्मस्थली है और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के स्वाधीनता संग्राम की कर्मस्थली है. यह शहर सिर्फ पंडित नेहरू ही नहीं, बल्कि सरदार वल्लभ भाई पटेल हों, महात्मा गांधी, चंद्रशेखर आजाद और कई दूसरे महापुरुषों से भी जुड़ा है.’

कांग्रेस नेता ने कहा, ‘पंडित नेहरू से जुड़ी याददाश्त को धूमिल करने का षड्यंत्र मोदी जी और योगी जी की जोड़ी कर रही है. उनको यह समझ लेना चाहिए कि वे मूर्ति हटाने से इस देश की आत्मा से पंडित नेहरू जी को कभी नहीं हटा पाएंगे.’

उन्होंने कहा, ‘मोदी जी और योगी यह जान लीजिए कि इस देश की जनता आपसे बड़ी है और आपको सजा देगी.’

पार्टी नेता अजय माकन ने भी इस मुद्दे पर मोदी को घेरा. उन्होंने कहा कि ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि नेहरू की मूर्ति हटाई जा रही है. नेहरू बस एक कांग्रेसी नेता नहीं थे वो देश के पहले प्रधानमंत्री थे और सभी राजनीतिक पार्टियों और नागरिकों को उनका सम्मान करना चाहिए

अपनी अपनी लड़ाई में उलझे भाजपा कांग्रेस चुनावों कि तैयारी में


बीजेपी की हालत रादस्थान में पतली है. अमित शाह की नजर वहीं टिकी हुई है. उधर कांग्रेस भी अपनी स्थिति मजबूत बना रही है 


राजस्थान में इस बार अभी तक बारिश चल रही है और बारिश के मौसम की खास मिठाई है घेवर. जयपुर समेत प्रदेश के ज्यादातर शहरों में मिठाई की दुकानों पर आपको घेवर के पहाड़ बने दिख जाएंगे और ताजा गर्म बनते हुए घेवर भी. शहर के हर रास्ते में घेवर की महक आपको ललचाती है, कहीं मलाई घेवर, कहीं मावा घेवर और कहीं केसर घेवर.

जयपुर के एक मशहूर कैटरर्स ने अभी घेवर को लेकर एशिया बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में अपना नाम दर्ज कराया है. ज्ञानजी कैटरर्स ने इस रिकार्ड के लिए 120 किलो वज़न और 6 मीटर व्यास का घेवर बनाया है. वैसे तो रिकॉर्ड बनाने के लिए सिर्फ 20 किलो का घेवर बनाकर भी काम चल सकता था, लेकिन उन्होंने 120 किलो का घेवर बना कर ऐसा रिकॉर्ड बनाया है जिसे तोड़ने में लगता है फिलहाल वक्त लगेगा.

 

जिन लोगों ने कभी घेवर बनते देखा होगा, वे जानते हैं कि घेवर बनाने का काम आसान नहीं होता. उसमें मैदा को खास तौर से तैयार किया जाता है, उसके बाद छोटी सी कटोरी से एक ही रफ्तार से घोल को कढ़ाई में डाल कर घेवर बनता है. इसमें बनाने वाले का अनुभव, हाथ की रफ्तार और बिना रुके काम करना शामिल होता है, इसमें से किसी में भी चूक हुई तो फिर मामला गड़बड़ है.

घेवर बनाने और राजनीति करने में ज्यादा फर्क नहीं

घेवर बनाने की रेसिपी का जिक्र इसलिए किया क्योंकि राजनीति में वो बेहद कारगर साबित हो सकता है. प्रदेश के चुनावों में भी वो ही जीत हासिल कर सकता है जो पार्टी घेवर बनाने वाले कारीगर की तरह से हो, अनुभवी, रफ्तार के साथ बिना रुके काम करने वाली.

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट अपनी पार्टी के लिए पिछले चार साल से संगठन को मजबूत बनाने और चुनावी तैयारी में लगे हैं. पायलट के साथ अनुभवी दिग्गज अशोक गहलोत भी हैं और दूसरे अनुभवी नेता सी पी जोशी हैं. कांग्रेस इन तीनों नेताओं को साथ दिखाने की कोशिश में भी लगी है. आजकल कांग्रेस रैलियों के लिए बस यात्रा कर रही है. इन बसों में नेता साथ-साथ जाते हैं. पिछले दिनों एक फोटो जारी की गई इसमें सचिन पायलट और अशोक गहलोत बस की सीट पर साथ-साथ बैठे हैं और पीछे की सीट पर सी पी जोशी हैं. तीनों के चेहरे से मुस्कराहट गायब थी. फिर दूसरी फोटो जारी की गई जिसमें तीनों के चेहरे पर मुस्कराहट थी.

 

जोशी साल 2008 के विधानसभा चुनाव में बस की पिछली सीट पर ही बैठे रह गए थे और अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बन गए. इस बार ये डर पायलट को भी है कि कहीं फिर से बाजी अशोक गहलोत के हाथ ना लग जाए. हालांकि, दिल्ली में बैठे पार्टी आलाकमान ने गहलोत को निर्देश दिया कि उनकी जरूरत केंद्रीय राजनीति में है.

पायलट और गहलोत में से ड्राइवर कौन?

करौली की रैली में बस के अटकने के बाद पायलट मोटरसाइकिल पर अशोक गहलोत को पीछे बिठाकर ले गए, यह फोटो भी जारी हुई. इस फोटो का बहुत से लोग अलग-अलग मायने निकाल रहे हैं कि क्या पायलट ने गहलोत को बैकसीट पर बिठा दिया है या फिर पायलट ही ड्राइवर बनेंगे, गहलोत की गाड़ी को सीएम आवास तक पहुंचाने के लिए. कांग्रेस ने इस बार के लिए 200 सीटों वाली विधानसभा में अपने लिए 135 सीटों का लक्ष्य रखा है. हालांकि, अभी उसके सिर्फ 21 विधायक हैं और 2008 में भी 96 विधायक चुनकर आए थे जब जोड़-तोड़कर सरकार बनाई थी. पिछले लोकसभा चुनाव में यहां कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी, यदि इस बार प्रदेश में सरकार बनती हैं तो उसका फायदा आम चुनावों में भी होगा.

बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी इस हफ्ते जयपुर में थे. शाह ने कांग्रेस पर हमला बोला कि कांग्रेस आलाकमान अभी तक सीएम उम्मीदवार तय नहीं कर पाया है तो पायलट ने जवाब दिया कि शाह तो अपनी पसंद का प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष भी नहीं बनवा पाए. इस साल होने वाले राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को सबसे मुश्किल मुकाबला राजस्थान में लग रहा है, इसलिए अमित शाह राजस्थान पर फोकस किए हुए हैं. उन्होंने वसुंधरा सरकार को अंगद का पांव कहा है, जिसे कोई हिला नहीं सकता, लेकिन संगठन और सरकार के भीतर परिवार में जो महाभारत चल रहा है, उससे अमित शाह अनजान नहीं हैं.

अनुभवी राजनेता के तौर पर सीएम वसुंधरा राजे ने चुनावी मौसम में घोषणाओं की भरपूर बारिश कर दी है. पेट्रोल और डीजल की कीमत से वैट कम कर दिया है. सरकारी कर्मचारियों का डीए बढ़ा दिया है. एक करोड़ बीपीएल लोगों को मुफ्त में मोबाइल बांटे जा रहे हैं. राजे की हरसंभव कोशिश है कि वो राजस्थान के चुनावी इतिहास का रिकॉर्ड तोड़कर इस बार दोबारा सरकार बना लें, वरना वहां हर बार सरकार बदल जाती है. बीजेपी अध्यक्ष शाह की चिंता राजस्थान के विधानसभा चुनावों के साथ-साथ उसके बाद होने वाले आम चुनावों की है यदि सरकार फिर से नहीं बनी तो आम चुनाव में पिछली बार की तरह सभी 25 संसदीय सीटों पर बीजेपी का कब्जा होना मुश्किल होगा.

फर्जी वोटरों की परेशानी अलग से

एक और मुश्किल है इन चुनावों में अभी जयपुर के जिला निर्वाचन अधिकारी ने किसी संस्था के माध्यम से सर्वेक्षण कराया, तो पता चला है कि अकेले जयपुर शहर में एक लाख 13 हजार फर्जी वोटर हैं, हर विधानसभा सीट पर तीन से 13 हजार तक फर्जी वोटर. ये फर्जी वोट चुनावी नतीजों को बदलने में अहम भूमिका अदा कर सकते हैं, खासतौर से विधानसभा चुनावों में, क्योंकि इनमें जीत का अंतर ज्यादा नहीं होता.

राजस्थान सरकार और कांग्रेस में भी ज्यादातर नेता छात्र राजनीति से आए हैं. अशोक गहलोत खुद एनएसयूआई के अध्यक्ष रह चुके हैं. विश्वविद्यालयों और कालेज छात्रसंघ के बहुत से नेता राजनीति में सक्रिय हैं, लेकिन हाल में हुए इन छात्र संगठनों के चुनावों में विद्यार्थी परिषद और एनएसयूआई के मुकाबले में निर्दलीय उम्मीदवारों ने ज्यादा जीत हासिल की है. ये नतीजे दोनों पार्टियों के लिए चिंता का सबब हो सकते हैं.

चुनावों में एक और अहम चीज होती है चुनावी खर्च के लिए जरूरी पैसा. बीजेपी को तो फिलहाल कोई दिक्कत नहीं दिखती, लेकिन कांग्रेस को इसके लिए मशक्कत करनी पड़ रही है. राजस्थान में आमतौर पर कहा जाता है कि मकान बनाने और बेटी के ब्याह में पैसा तय बजट से ज्यादा ही खर्च होता है, ये बात अब चुनावों के लिए भी कही जा सकती है.

 

CBI dismissed the charges Rahul Made against its officer


At the time the case against Mr. Nirav Modi and Mr. Mehul Choksi was instituted, A.K.Sharma was not the supervisory officer, it says


The CBI on Saturday dismissed the allegations made against it by Congress president Rahul Gandhi’s in the Vijay Mallya case as baseless.

“As has been stated a number of times earlier, the decision to change the Look-out Circular (LoC) against Vijay Mallya was taken because at the time there was not sufficient grounds for the CBI to detain and arrest him,” said the CBI in response to media queries.

Through his Twitter handle, Mr. Gandhi had accused the CBI of having quietly aided Mr. Mallya’s escape by downgrading the LoC against him. He also held the then Joint Director, A.K. Sharma, a Gujarat cadre official, responsible for the change in LoC.

The CBI, in response, said the decision was taken at the appropriate level as part of the process and not individually by the officer as alleged.

The CBI said that it received complaint against diamond merchants Nirav Modi and Mehul Choksi from the Punjab National Bank almost a month after they left the country.

“Therefore, the question of any CBI officer having any hand in their fleeing the country does not arise. Prompt action was taken by the CBI in the case after the complaint was received from the bank,” the premier investigating agency said.

At the time the case against Mr. Nirav Modi and Mr. Mehul Choksi was instituted, Mr. Sharma was not the supervisory officer.

‘Swachhata Hi Seva Movement’ launched by PM


Prime Minister Narendra Modi took part in a Swachh Bharat Abhiyan at a school in New Delhi on Saturday where he spoke to students about the need for cleanliness of the surroundings.


Prime Minister Narendra Modi launched ‘Swachhata Hi Seva Movement’ and took part in a Swachh Bharat Abhiyan at a school in New Delhi on Saturday where he spoke to students about the need for cleanliness of the surroundings.

Speaking to students of Baba Saheb Ambedkar Higher Secondary School located in Delhi’s Paharganj, the PM highlighted the achievements of the Swachh Bharat Abhiyan which was launched on 2 October 2014.

At the school, the students enthusiastically told the PM that they will follow the path of Babasaheb Bhimrao Ambedkar.

“Let us strengthen the Swachh Bharat Mission,” the PM wrote on Twitter, adding, “Joined the ‘Swachhata Hi Seva Movement’ at the Baba Sahib Ambedkar Secondary School in Paharganj, Delhi. This school’s campus was bought by the venerable Dr. Ambedkar to ensure children from poor families get quality education.”

The PM also took the broom to sweep the premises. He collected the trash strewn around the premises and disposed them off in a proper manner.

Launching the ‘Swachhata Hi Seva Movement’ today, the PM hailed the immense contribution of India’s ‘Nari Shakti’ (women power) in the Swachh Bharat Mission.

“The contribution of India’s Nari Shakti (women power) in the Swachh Bharat (clean India) Mission is immense,” Modi said while launching the movement dedicated as a tribute to Mahatma Gandhi.

“Youngsters are ambassadors of social change. The way they have furthered the message of cleanliness is commendable. The youth are at the forefront of a positive change in India,” Modi said.

Highlighting the success of the clean India mission, Modi said, “The Swachhta coverage is now above 90 per cent which used to be 40 per cent four years ago. This happened in just four years.

“The credit for the success of Swachhata Abhiyan goes to the people of this nation and not the government alone,” he said, adding that over nine crore toilets have been built in last four years and over 4.5 lakh villages have been declared as open defecation free.

Modi also stressed that by only building toilets India won’t become clean.

“Cleanliness is a habit in which one has to indulge himself everyday and change in behaviour is also required,” he said.

The PM also described river Ganga as our “culture, heritage and identity” and urged people to contribute towards cleaning it.

“And banks of River Ganga becoming open defecation free shall be an important stage towards maintaining the purity of the river,” Modi said.