The Supreme Court today refused to constitute a Special Investigation Team in Koregaon case

 

The Supreme Court today refused to constitute a Special Investigation Team (SIT) to look into the arrests of lawyers and activists made in connection to the Bhima Koregaon violence.

The judgment was delivered by the Bench of Chief Justice of India Dipak Misra, Justice AM Khanwilkarand Justice DY Chandrachud.

Justice Khanwilkar delivered the majority opinion on behalf of himself and CJI Misra. Justice Chandrachud dissented from the majority.

The majority opinion held that the Court’s earlier order calling for house arrest of the activists and lawyers, will continue to operate for four more weeks.

Justice Khanwilkar held that accused persons do not have a say in which investigating agency should probe the case. He held that this was not a case of arrest merely because of political dissent. Therefore, the plea for an SIT was not entertained, with the accused given the liberty to pursue other appropriate remedies.

However, Justice Chandrachud did not agree with the views of the majority, stating that technicalities should not be allowed to override substantive justice.

Chandrachud J made some scathing observations against the Pune police for their conduct in the matter thus far. He also berated the police for conducting a press conference immediately after the Court had passed an interim order.

He also highlighted the manner in which a letter alleged to have been written by Sudha Bharadwaj was flashed on Republic TV, after the police selectively disclosing details of the probe to the media. This, Justice Chandrachud held, cast a cloud over the fairness of the investigation.

“Voices of opposition cannot be muzzled because it is dissent. Deprivation of liberty cannot be compensated later”, Chandrachud J held.

The acts of the Maharashtra police, he said, raises questions as to whether the investigation can be carried out fairly. Therefore, Chandrachud J felt that an SIT should be constituted to probe the matter.

The verdict was passed in the petition filed by Romila Thapar and four other activists challenging the raids and arrests made by the Maharashtra Police of Sudha BharadwajGautam NavlakhaVaravara RaoVernon Gonsalves, and Arun Ferreira, in connection with the Bhima Koregaon incident.

The Supreme Court had directed the Pune Police to keep the activists/lawyers under house arrest “in their own homes” till further orders, thereby protecting their liberty.

It was contended by the State of Maharashtra that the raids were conducted based on evidence gathered from the computer systems and emails of other accused persons arrested in the same case.

The Court had warned against “cooked up evidence” against the activists in question and had asserted that an SIT will be formed to look into the validity of these raids if the evidence is found to be “cooked up”.

The State of Maharashtra maintained that there was a larger ploy at play in this case and claimed that the arrested activists have links with banned terror outfits some of them “having committed serious offences”.

The Court had remarked that liberty of people cannot be stifled based on conjectures and had asserted that it would “look at the case with hawk’s eyes”.

The Court had demanded for the entire case diary to ascertain the validity of the raids and arrests in the case even as the State of Maharashtra’s submission from the beginning was that the petitioners, in this case, were “strangers” to the case and had no locus standi to challenge the arrests where they were not personally aggrieved.

लोकपाल के अध्यक्ष और इसके सदस्यों के नामों की सिफारिश करने के लिए आठ सदस्यीय एक खोज समिति का गुरुवार को गठन किया गया


 

खोज समिति की नियुक्ति करने वाली चयन समिति में प्रधानमंत्री मोदी, चीफ जस्टिस दीपक मिश्र, लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन, सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता और प्रसिद्ध कानूनविद मुकुल रोहतगी शामिल हैं


केंद्र सरकार ने भ्रष्टाचार रोधी संस्था लोकपाल के अध्यक्ष और इसके सदस्यों के नामों की सिफारिश करने के लिए आठ सदस्यीय एक खोज समिति का गुरुवार को गठन किया. समिति की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई करेंगी.

कार्मिक मंत्रालय (पर्सनल मिनिस्ट्री) द्वारा जारी एक आधिकारिक आदेश के मुताबिक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की पूर्व अध्यक्ष अरुंधति भट्टाचार्य, प्रसार भारती के अध्यक्ष ए सूर्य प्रकाश और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) प्रमुख एएस किरन कुमार खोज समिति के सदस्य हैं.

उनके अलावा इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस सखा राम सिंह यादव, गुजरात पुलिस के पूर्व प्रमुख शब्बीरहुसैन एस खंडवावाला, राजस्थान कैडर के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी ललित के पवार और रंजीत कुमार समिति के अन्य सदस्यों में शामिल हैं. एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि लोकपाल के गठन की दिशा में खोज समिति एक बड़ा कदम है. समिति जल्द ही अपना कामकाज शुरू करेगी.

खोज समिति की नियुक्ति करने वाली चयन समिति में प्रधानमंत्री मोदी, चीफ जस्टिस दीपक मिश्र, लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन और सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता और प्रसिद्ध कानूनविद मुकुल रोहतगी शामिल हैं.

हालांकि, खड़गे पैनल के पूर्ण सदस्य नहीं थे और उन्होंने इस साल पांच बार चयन समिति की बैठक का बहिष्कार किया और जोर देकर कहा था कि वह तब तक ऐसा करना जारी रखेंगे जब तक कि सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता को पैनल में सदस्य की मान्यता दी जाती.

‘महिला-विरोधी’ और ‘अवैध संबंधों’ के लिए लोगों को लाइसेंस प्रदान करेगा.’ स्वाति मालीवाल


दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्लयू) प्रमुख स्वाति मालीवाल ने कहा कि एडल्ट्री को अपराध की श्रेणी से बाहर करने से देश में महिलाओं की पीड़ा और बढ़ने वाली है


एडल्ट्री को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के सुप्रीम कोर्ट के गुरुवार को आए फैसले पर कुछ विशेषज्ञों ने आगाह करते हुए इसे ‘महिला-विरोधी’ बताया और चेतावनी दी कि यह ‘अवैध संबंधों’ के लिए लोगों को लाइसेंस प्रदान करेगा.

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने एडल्ट्री के प्रावधान से संबद्ध भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 497 को सर्वसम्मति से निरस्त कर दिया है. शीर्ष अदालत ने कहा कि यह पुरातन है और समानता के अधिकारों और महिलाओं को समानता के अधिकारों का उल्लंघन करता है.

दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्लयू) प्रमुख स्वाति मालीवाल ने कहा कि एडल्ट्री को अपराध की श्रेणी से बाहर करने से देश में महिलाओं की पीड़ा और बढ़ने वाली है.


Swati Maliwal

@SwatiJaiHind

मैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पूरी तरह असहमत हूं। आज के व्यभिचार पे SC के आदेश ने शादी शुदा लोगों को अवैध सम्बन्ध बनाने का लाइसेंस दे दिया है। फिर शादी की क्या ज़रूरत है?

497 को पुरुष और महिला दोनों के लिए अपराधिक बनाने की जगह गैर आपराधिक ही बना दिया ।महिला विरोधी फैसला है ये।

उन्होंने कहा, ‘एडल्ट्री पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पूरी तरह से असमत हूं. फैसला महिला-विरोधी है. एक तरह से, आपने इस देश के लोगों को शादीशुदा रहते हुए अवैध संबंध रखने का एक खुला लाइसेंस दे दिया है.’ डीसीडब्ल्यू प्रमुख ने पूछा, ‘विवाह (नाम की संस्था) की क्या पवित्रता रह जाती है.’

उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘497 को लैंगिक रूप से तटस्थ बनाने, उसे महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए अपराध करार देने के बजाय इसे पूरी तरह से अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया.’

फैसले को स्पष्ट करने की जरूरत

शीर्ष अदालत के फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता वृंदा अडिगे ने इसे स्पष्ट करने की मांग करते हुए पूछा कि क्या यह फैसला बहुविवाह की भी इजाजत देता है ?

उन्होंने कहा, ‘चूंकि हम जानते हैं कि पुरुष अक्सर ही दो-तीन शादियां कर लेते हैं और तब बहुत ज्यादा समस्या पैदा हो जाती है जब पहली, दूसरी या तीसरी पत्नी को छोड़ दिया जाता है.’

कांग्रेस नेता रेणुका चौधरी ने भी इस मुद्दे पर और अधिक स्पष्टता लाने की मांग करते हुए कहा, ‘यह तीन तलाक को अपराध की श्रेणी में डालने जैसा है. उन्होंने ऐसा किया लेकिन अब पुरुष हमें महज छोड़ देंगे या हमें तलाक नहीं देंगे. वे बहुविवाह या निकाह हलाला करेंगे, जो महिला के तौर पर हमारे लिए नारकीय स्थिति पैदा करेगा. मुझे यह नहीं दिखता कि यह कैसे मदद करेगा. कोर्ट को स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए.’

शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि एडल्ट्री को दीवानी स्वरूप का कृत्य माना जाता रहेगा और यह विवाह विच्छेद के लिए आधार बना रह सकता है. चीफ जस्टिस ने कहा कि कोई सामाजिक लाइसेंस नहीं हो सकता, जो घर बर्बाद करता हो.

वैदिक शिक्षा पद्धति के लिए बोर्ड के गठन पर विचार करेगी केंद्र सरकार: अमित शाह


शिक्षा की वैदिक पद्धति को ही सर्वांगीण विकास का मार्ग दिखाने वाला बताते हुए उन्होंने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार देश के सर्वांगीण विकास के प्रति संकल्पबद्ध होकर काम कर रही है


बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने गुरुवार को कहा कि योगगुरु स्वामी रामदेव ने ‘आचार्यकुलम’ के रूप में वैदिक शिक्षा का विकल्प देकर मैकाले की शिक्षा पद्धति से देश को मुक्ति का मार्ग दिया है और केंद्र सरकार वैदिक शिक्षा पद्धति को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर बोर्ड गठन के प्रस्तावित प्रारूप पर विचार करेगी.

यहां आचार्यकुलम का उद्घाटन करते हुए शाह ने कहा कि केंद्र और प्रदेश की बीजेपी सरकारें स्वामी रामदेव और पतंजलि योगपीठ के इस संकल्प को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध रहेंगी.

शिक्षा की वैदिक पद्धति को ही सर्वांगीण विकास का मार्ग दिखाने वाला बताते हुए उन्होंने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार देश के सर्वांगीण विकास के प्रति संकल्पबद्ध होकर कार्य काम कर रही है.

शाह ने कहा कि अंग्रेजों ने मैकाले शिक्षा पद्धति को लागू कर समाज को बांटने का काम किया था. उन्होंने आश्वासन दिया कि वैदिक शिक्षा पद्धति को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार राष्ट्रीय स्तर पर बोर्ड गठन के प्रस्तावित प्रारूप पर विचार करेगी.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश भैयाजी जोशी ने कहा कि स्वयं रामदेव ने वैदिक शिक्षा प्रणाली और आधुनिक शिक्षा का समन्वय कर क्रांतिकारी कदम उठाया है. उन्होंने कहा कि आचार्य बालकृष्ण की अगुवाई में आचार्यकुलम नये भारत का निर्माण करेगा. स्वामी रामदेव ने केंद्र सरकार से शीघ्र वैदिक शिक्षा बोर्ड गठित किये जाने का आग्रह किया.

आचार्यकुलम के उदघाटन अवसर पर हरिद्वार से सांसद रमेश पोखरियाल निशंक, राज्य सभा सांसद अनिल बलूनी, जूना अखाड़ा के पीठाधीशा महामंडलेशवर स्वामी अवधेशानंद और आचार्य बालकृष्ण ने भी समारोह को संबोधित किया. बीजेपी अध्यक्ष शाह ने पतंजलि अनुसंधान केंद्र सहित फूड पार्क व योगग्राम का निरीक्षण भी किया.

अयोध्या विवाद में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला


नमाज़ पढने के लिए मस्जिद कि ज़रुरत नहीं होती 

29 अक्टूबर से अगर लगातार अयोध्या मामले की सुनवाई चली तो इस पर फैसला जल्द आ सकता है. अगर ऐसा हुआ तो इस फैसले को लेकर सियासत काफी तेज होगी.


दिनेश पाठक:

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान अपने फैसले में मस्‍जिद में नमाज पढ़ने को इस्‍लाम का अभिन्‍न हिस्‍सा मानने से जुड़े मामले को बड़ी बेंच को भेजने से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया कि यह मसला अयोध्‍या मामले से बिल्‍कुल अलग है. कोर्ट ने अयोध्‍या मामले को धार्मिक मानने से भी इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि इस मामले की सुनवाई प्रॉपर्टी डिस्‍प्‍यूट यानी जमीन विवाद के तौर पर ही होगी.

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्षकारों की तरफ से यह दलील दी गई थी कि मस्‍जिद में नमाज करने के मामले पर जल्द निर्णय लिया जाए. कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला 20 जुलाई को ही सुरक्षित रख लिया था. 27 सितंबर को अब इस मामले में कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है.

दरअसल, 1994 में इस्माइल फारूकी के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने फैसला दिया था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है. इसके साथ ही राम जन्मभूमि में यथास्थिति बरकरार रखने का निर्देश दिया गया था, जिससे हिंदू धर्म के लोग वहां पूजा कर सकें.

अयोध्या मामले पर जब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है तो इस बीच मुस्लिम पक्षकारों की तरफ से यह दलील दी गई थी कि 1994 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार के लिए बड़ी बेंच में भेजा जाए. लेकिन, कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया है. कोर्ट के इस फैसले के बाद अब सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले पर सुनवाई में तेजी आई है. कोर्ट ने अगले महीने 29 अक्टूबर से इस मामले की सुनवाई की तारीख भी तय कर दी है. अयोध्या का मामला काफी संवेदनशील रहा है. ऐसे में इस मसले पर सुनवाई को लेकर जब भी कोई चर्चा होती है, इस पर सियासत गरमा जाती है.

अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है, ‘अगर इस मुद्दे को संवैधानिक खंडपीठ को भेजा जाता तो बेहतर होता.’ ओवैसी ने इशारों-इशारों में बीजेपी और संघ पर भी निशाना साधा.

ओवैसी ने भले ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत नहीं किया हो, लेकिन, आरएसएस की तरफ से इस फैसले का स्वागत किया गया है. संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख अरुण कुमार ने कहा है, ‘आज सर्वोच्च न्यायालय ने राम जन्मभूमि मुकदमे में तीन सदस्यीय पीठ के द्वारा 29 अक्टूबर से सुनवाई का निर्णय किया है, इसका हम स्वागत करते हैं और विश्वास करते हैं कि जल्द से जल्द मुकदमे का न्यायोचित निर्णय होगा.’

अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अपनी बात रखते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि यह देश के हित में है अयोध्या विवाद का हल जल्द से जल्द निकाला जाए. इस देश के बहुसंख्यक लोग इसका समाधान चाहते हैं.

विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने भी अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जताई है. आलोक कुमार ने कहा है, ‘मैं संतुष्ट हूं कि एक बाधा को पार कर लिया गया है. राम जन्मभूमि की अपील की सुनवाई के लिए रास्ता साफ हो गया है.’

संघ परिवार की तरफ से आ रही प्रतिक्रिया से साफ है कि अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उनकी उम्मीदें बढ़ गई हैं. हालांकि इस मुद्दे पर बीजेपी और कांग्रेस जैसी राजनीतिक पार्टियां संभलकर चलना चाह रही हैं, क्योंकि, बीजेपी के एजेंडे में पहले से ही राम मंदिर रहा है. बीजेपी के चुनावी घोषणा-पत्र में भी राम-मंदिर है. लेकिन, जब कानून बनाकर राम मंदिर निर्माण की बात आती है तो इस मुद्दे पर बीजेपी का रुख कोर्ट के फैसले पर आकर टिक जाता है. राम मंदिर मुद्दे पर कानून बनाने की मांग हिंदूवादी संगठनों की तरफ से होती आई है. लेकिन, इस मुद्दे पर बीजेपी आपसी बातचीत या कोर्ट के फैसले पर आगे बढ़ने की बात करती रही है. जल्द फैसला आने की उम्मीद ने संघ परिवार के साथ-साथ बीजेपी के लिए भी कुछ मुश्किलें कम कर दी हैं.

2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रामजन्मभूमि वाली जमीन को तीन हिस्सों में बांटकर एक हिस्से को रामलला, एक हिस्सा निर्मोही अखाड़ा और एक वक्फ बोर्ड के लिए देने की बात कही थी. इसे भी बीजेपी और संघ परिवार ने अपनी जीत के तौर पर ही देखा था. अब जबकि कोर्ट की तरफ से 1994 के फैसले को ही बरकरार रखा है, तो आने वाले दिनों में सुनवाई को लेकर संघ परिवार और बीजेपी उत्साहित नजर आ रही है.

2019 का लोकसभा चुनाव अप्रैल-मई में होने वाला है. लेकिन, 29 अक्टूबर से अगर लगातार अयोध्या मामले की सुनवाई चली तो इस पर फैसला जल्द आ सकता है. अगर ऐसा हुआ तो इस फैसले को लेकर सियासत काफी तेज होगी. सुप्रीम कोर्ट का फैसला जो भी हो अयोध्या मुद्दा पर अगर फैसला चुनाव से पहले आ गया तो यह मुद्दा 2019 के महासमर में बड़ा मुद्दा बनकर उभरेगा

कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, कमलनाथ और आईटी विशेषज्ञ प्रशांत पांडे के खिलाफ मामला दर्ज करने के साथ ही जांच के आदेश दे दिए हैं


व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले में कांग्रेस नेताओं के लिए मुसीबत खड़ी होती दिखाई दे रही है.


व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले में कांग्रेस नेताओं के लिए मुसीबत खड़ी होती दिखाई दे रही है. मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की विशेष अदालत ने मध्य प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है.

स्पेशल कोर्ट के जज सुरेश सिंह ने व्यापमं घोटाले में दायर एक परिवाद के आधार पर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, कमलनाथ और आईटी विशेषज्ञ प्रशांत पांडे के खिलाफ मामला दर्ज करने के साथ ही जांच के आदेश दे दिए हैं. इस मामले में बीजेपी के विधि प्रकोष्ठ की ओर से अधिवक्ता संतोष शर्मा ने राजनीतिक मामलों के लिए बनी विशेष अदालत के न्यायाधीश सुरेश सिंह की अदालत में एक परिवाद दाखिल किया था. जिसमें व्यापमं घोटालों में पेश किए गए दस्तावेजों के फर्जी होने की बात कही गई थी. इसमें दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, सिंधिया और प्रशांत पांडे को दस्तावेज पेश करने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया.

मामला दर्ज किए जाने की मांग

इस परिवाद में शर्मा ने बताया कि अदालत को गुमराह करते हुए तीनों कांग्रेस नेताओं ने पांडे के साथ मिलकर व्यापमं घोटाले के मामले में झूठे और फर्जी दस्तावेज पेश किए हैं. जिसके बाद इनके खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज किए जाने की मांग की गई है.

वहीं पिछले दिनों दिग्विजय सिंह ने भोपाल की अदालत में व्यापमं घोटाले को लेकर अपील की थी और साथ ही 27000 पन्नों की चार्जशीट भी दाखिर की थी

राहुल का मज़ा महागठबंधन और यूपीए के एक बड़े सहयोगी ने किरकिरा बना दिया

राफेल डील को लेकर कांग्रेस लगातार मोदी सरकार पर हमले कर रही है. किसी न किसी दिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कुछ नया दावा करते हैं. साथ ही ये भी कहते हैं कि अभी तो शुरुआत है…आगे और मज़ा आएगा. लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष के इस मज़े को विपक्ष के संभावित महागठबंधन और यूपीए के एक बड़े सहयोगी ने किरकिरा बना दिया है. एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने कहा कि राफेल की डील को लेकर पीएम मोदी पर शक नहीं किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि पीएम मोदी की नीयत पर किसी को भी शक नहीं है.

यूपीए की सहयोगी राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार ने मराठी चैनल को इंटरव्यू दिया. इस दौरान उन्होंने राफेल डील पर कांग्रेस की मांग पर सवाल उठाए तो साथ ही कहा कि राफेल की कीमतों को सार्वजनिक करने से सरकार का कोई नुकसान भी नहीं है.

पवार के इस बयान रूपी सर्टिफिकेट की भले ही मोदी सरकार को जरूरत हो या न हो लेकिन इससे राफेल डील को लेकर लगातार मोदी सरकार पर हमला करने वाली कांग्रेस की नीयत पर जरूर सवाल उठने लगेंगे. जिस मुद्दे पर राहुल गांधी पूरे देश में मोदी सरकार के खिलाफ माहौल तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं उसी मुद्दे पर उनके संभावित महागठबंधन और यूपीए के सहयोगियों में जबरदस्त विरोधाभास है. शरद पवार ही राहुल गांधी के आरोपों से इत्तेफाक नहीं रख रहे हैं और वो पीएम मोदी को राफेल डील पर क्लीन चिट दे रहे हैं.

राफेल की सवारी कर राहुल देश के पीएम के लिए जिन शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं उन आरोपों को खुद शरद पवार खारिज कर चुके हैं. ऐसे में राहुल के अमेठी से लेकर भोपाल तक पीएम मोदी के लिए आपत्तिजनक शब्दों के इस्तेमाल से कई सवाल जरूर खड़े होते हैं. क्या बोफोर्स की दलाली के लगे आरोपों का हिसाब-किताब बराबर करने के लिए राहुल गांधी पीएम मोदी को लेकर कुछ भी अनाप-शनाप बोलने की रणनीति पर काम कर रहे हैं?

अगर राहुल भी दूसरे कांग्रेसी नेताओं की तरह इसी तरह मोदी पर निजी हमले को अपनी रणनीतिक कामयाबी मान रहे हैं तो वो साल 2014 के चुनावों से कोई सबक नहीं ले रहे हैं. न सिर्फ 2014 का लोकसभा चुनाव बल्कि गुजरात विधानसभा चुनाव में भी मोदी के खिलाफ कांग्रेसी नेताओं के आपत्तिजनक बयानों ने बीजेपी की ही ताकत बढ़ाने का काम किया था. खुद पीएम मोदी बार बार ये कहते आए हैं कि जितना कीचड़ उछालोगे, उतना ही कमल खिलेगा.

एक तरफ कांग्रेस के लिए जहां एक बड़ी चिंता ये है कि चुनाव से पहले ही बीएसपी जैसे महागठबंधन के संभावित दल अलग अलग चुनाव लड़ रहे हैं तो वहीं एनसीपी जैसी पार्टी के अध्यक्ष पीएम मोदी को राफेल के मामले में क्लीन चिट दे रहे हैं.

शरद पवार के इस बयान के दूरगामी राजनीतिक परिणामों का अभी कांग्रेस को अंदाजा नहीं है. पवार ने राहुल के मिशन 2019 को बड़ा झटका देने का काम किया है. उन्होंने ये भी कहा है कि विपक्ष जिस तरह से राफेल जेट से जुड़ी तमाम तकनीकी जानकारियों को सार्वजनिक करने की मांग कर रहा है उनका कोई औचित्य नहीं है.

मोदी सरकार को सत्ता में आने से रोकने के लिए कांग्रेस महागठबंधन बनाने की रणनीति पर काम कर रही है तो वहीं शरद पवार विपक्ष के महागठबंधन की व्यावहारिकता पर भी सवाल उठा चुके हैं. उन्होंने कहा था कि महागठबंधन में क्षेत्रीय दलों के अपने-अपने जनाधार होने की वजह से चुनाव पूर्व महागठबंधन व्यावहारिक नहीं लगता है. साथ ही उन्होंने पीएम पद के मुद्दे पर कहा था कि पहली जरूरत ये है कि सभी बीजेपी विरोधी दल साथ मिल कर बीजेपी को चुनाव में हराएं और उसके बाद जिसके सबसे ज्यादा सांसद चुने जाएं उसी दल का पीएम बनाया जाए. पवार के इस बयान से राहुल को विपक्ष की तरफ से पीएम प्रोजेक्ट करने की कांग्रेस की कोशिश को भी बड़ा झटका लगा है.

 

अब हालात ये है कि बीएसपी-एसपी जैसी क्षेत्रीय पार्टियां अपने सियासी फायदे के लिए सम्मानजक समझौते और सीटों के नाम पर अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीएसपी ने कांग्रेस का हाथ झटक दिया है तो अब समाजवादी पार्टी भी कांग्रेस से किनारा करने का मन बना रही है.

अब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल के राफेल-राग से अलग पवार के विचार बाकी विपक्षी दलों को भी सोचने पर मजबूर कर सकते हैं. बहरहाल, पवार के बयान से कांग्रेस के लिए शोचनीय स्थिति ये हो गई है कि उसके राफेल पर राजनीतिक हमलों का हश्र अविश्वास प्रस्ताव जैसा न हो.

भाजपा वाले गद्दी पर बैठने के बाद, कैकेयी की तरह भगवान राम को वनवास भेज देते हैं: प्रियंका


बीजेपी के मुंह में ‘राम’ और दिल में ‘नाथूराम’ हैं


कांग्रेस ने अयोध्या से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की पृष्ठभूमि में गुरुवार को बीजेपी पर आस्था के नाम पर राजनीति करने का आरोप लगाया और कहा कि इस विवादित विषय में शीर्ष अदालत की तरफ से जो भी निर्णय आए, उसको सभी लोगों को स्वीकार करना चाहिए.

पार्टी प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने भी आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ पार्टी के मुंह में राम और दिल में नाथूराम हैं. उन्होंने कहा, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का सदैव ये मत रहा है कि राम मंदिर-बाबरी मस्जिद के मामले में न्यायालय का जो भी निर्णय आए, उसे सभी पक्षों को मानना चाहिए और सरकार को उसे लागू करना चाहिए.’

प्रियंका ने कहा, ‘दुर्भाग्य से बीजेपी लगातार 30 सालों से (1992 के बाद) राम मंदिर मुद्दे पर देश की जनता को बरगलाने, बहकाने और बेवकूफ बनाने का षडयंत्र करती आई है. बीजेपी वो पार्टी है, जिसके मुंह में राम और बगल में छुरी, मुंह में राम और दिल में नाथूराम है.’

उन्होंने कहा, ‘1999 के बाद, यानी गत 20 वर्षों में आधा समय बीजेपी की सरकारें देश में रही हैं. वे राम मंदिर का नारा देकर हर बार वोट बटोरते हैं और गद्दी पर बैठने के बाद, कैकेयी की तरह भगवान राम को वनवास भेज देते हैं.’ कांग्रेस प्रवक्ता ने आरोप लगाया, ‘हर चुनाव से 6 महीने पहले इनको वोट बटोरने के लिए भगवान् राम की याद आ जाती है. सत्ता पाने के लिए भगवान राम और सत्ता में आने के बाद भगवान राम को वनवास’ यही असली बीजेपी का चेहरा है.’

राहुल गांधी की कैलाश यात्रा पर कुछ बीजेपी नेताओं के विवादित बयान की ओर इशारा करते हुए प्रियंका ने कहा, ‘इन अधर्मी लोगों ने बार-बार भोले शंकर की भक्ति तक पर सवाल खड़े किए. जब कांग्रेस अध्यक्ष, केदारनाथ धाम की दुर्गम यात्रा और कैलाश मानसरोवर जाते हैं, तब भी बीजेपी के पेट में दर्द होता है. आज जब वह चित्रकूट धाम से अपनी मध्यप्रदेश की यात्रा की शुरूआत कर रहे हैं तो बीजेपी की छटपटाहट और बौखलाहट सभी सीमाएं पार कर गईं हैं.’

उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस की ओर से मैं अनुरोध करूंगी कि बीजेपी के लोग घबराएं नहीं क्योंकि संयम, मर्यादा और ईश्वर की भक्ति- भारतीय सभ्यता का अटूट हिस्सा है. ये जान लें कि अगर आप ईश्वर की भक्ति में भी रुकावट डालेंगें तो पौराणिक मान्यताओं के अनुरूप पाप और श्राप के भागीदार बनेगें. हमारी यही पार्थना है कि ईश्वर आपको सद्बुद्धि दें.’

सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या भूमि विवाद की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत के 1994 के एक फैसले में की गई टिप्पणी से जुड़़ा सवाल पांच सदस्यीय संविधान पीठ को सौंपने से गुरूवार को इंकार कर दिया. शीर्ष अदालत ने 1994 के फैसले में टिप्पणी की थी कि मस्जिद इस्लाम का अंग नहीं है.

शीर्ष अदालत ने 2:1 के बहुमत से अपने फैसले में कहा कि अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में दीवानी वाद का निर्णय साक्ष्यों के आधार पर होगा और 1994 का निर्णय इस मामले में प्रासंगिक नहीं है.

हताश कांग्रेस कि मनोस्थिति बयान करते पोस्टर


बिहार में फॉरवर्ड कहलाने वाली जातियों के नेताओं को तरजीह दी गई थी. बिहार के प्रदेश अध्यक्ष मदनमोहन झा ब्राह्मण हैं. कैंपेन कमेटी के मुखिया अखिलेश प्रसाद सिंह भूमिहार जाति से आते है


बिहार में कांग्रेस बेचारगी के आलम में है. पार्टी की तरफ से लगाए गए पोस्टर में हर नेता की जाति उसकी तस्वीर के आगे लिख दी गई है. कांग्रेस ने हाल में ही राज्य में जंबो संगठन बनाया था. जिसमें बिहार में फॉरवर्ड कहलाने वाली जातियों के नेताओं को तरजीह दी गई थी. बिहार के प्रदेश अध्यक्ष मदनमोहन झा ब्राह्मण हैं. कैंपेन कमेटी के मुखिया अखिलेश प्रसाद सिंह भूमिहार जाति से आते है. इन दोनों जातियों पर कांग्रेस की नजर है.

कांग्रेस आलाकमान ने रणनीतिक तौर पर उच्च जातियों को अपनी ओर खींचने के लिए ये फैसला किया था. यही अगड़ी जातियां बीजेपी की बिहार में धुरी हैं. जिनकी बदौलत प्रदेश में बीजेपी की राजनीतिक हैसियत बढ़ी है. कांग्रेस बिहार में अगड़ी जाति का समायोजन ना कर पाने की वजह से पिछड़ गई. मंडल की राजनीति में लालू-नीतीश जैसे नेताओं का उदय हुआ. बीजेपी के कमंडल की राजनीति में अगड़ी जातियां पार्टी के साथ हो गई हैं. जिनको दोबारा पाले में लाने के लिए कांग्रेस जद्दोजहद कर रही है. लेकिन कांग्रेस की लालू प्रसाद से दोस्ती की वजह से ये संभव नहीं हो पा रहा है.

कांग्रेस के पोस्टर में नेताओं का जातिवार ब्यौरा

कांग्रेस के पोस्टर में सोशल इंजीनियरिंग नजर आ रही है. उससे पार्टी की साख पर सवाल उठ रहा है. गांधी-नेहरू की विरासत की बात करने वाली पार्टी को ये सब करना पड़ रहा है! कांग्रेस बिहार में पस्त हालत में है. पार्टी को मजबूत करने के लिए ये तरीका कांग्रेस के नेताओं के भी समझ से परे है. बिहार कांग्रेस के नेता का कहना है कि रेवड़ी की तरह पद बांटने से वोट नहीं मिलता है. इस तरह का पोस्टर लगाना बेहूदगी है. कांग्रेस की परंपरा से मेल नहीं खाता है.

कांग्रेस भी ये दावा करती है कि सभी जाति मजहब की पार्टी है, लेकिन जिस तरह से धर्म और जाति का प्रचार किया जा रहा है. उससे ये सवाल उठना लाजिमी है कि कांग्रेस किस दिशा की तरफ जा रही है? बिहार में जाति की राजनीति का बोलबाला है. 1989 के बाद से ही रीजनल पार्टियों की सरकार है. कांग्रेस हाशिए पर है. बीजेपी भी रीजनल पार्टियों के सहारे है.

कांग्रेस की हताशा की कहानी

कांग्रेस की ये कोशिश हताशा की कहानी बयां कर रही है. कांग्रेस के पास कोर वोट का अभाव है. कमिटेड लीडर्स की कमी है. जो पार्टी को सेंटर स्टेज पर ले जाने की कोशिश ठीक ढंग से कर सकें. पार्टी के पोस्टर से लग रहा है कि हर जाति का नेता बना दो तो शायद सभी जातियां पार्टी के पीछे खड़ी हो जाएं.

हालांकि ये सब इतना आसान नहीं है. जातियों को जोड़ने के लिए प्रोग्राम तैयार करना होता है. उस जाति के लोगों को जोड़ने के लिए उनके बीच काम करना पड़ेगा. पोस्टर छपवाने से कोई लाभ नहीं होने वाला है. कांग्रेस में बिहार के बड़े नेता सड़क पर उतरकर काम करने से गुरेज कर रहे है. सब किस्मत के भरोसे है. कभी लालू का तो कभी नीतीश का सहारा लिया जा रहा है. लेकिन कांग्रेस धरातल पर ही है.

मंडल की राजनीति में कमजोर

वी.पी. सिंह की मंडल की राजनीति में कांग्रेस लगातार कमजोर होती रही है. बिहार में जनता दल के उदय से पिछड़ी जातियां इन दलों के साथ हो गईं. जनता दल का बीजेपी से जब रिश्ता टूट गया,तो कांग्रेस ने बढ़कर जनता दल को सहारा दिया. जिसके बाद कांग्रेस समय-समय पर लालू प्रसाद को मदद करती रही है. जिससे पार्टी से अगड़ी जातियां भी दूर हो गई हैं. मुस्लिम भी लालू के साथ चला गया है. लालू ने पिछड़े और एमवाई(मुस्लिम – यादव) समीकरण की बदौलत बिहार की राजनीति पर वर्षों तक राज किया.

 

बीजेपी जैसी पार्टियां भी कुछ खास नहीं कर पाई. बीजेपी ने पर्दे के पीछे से समता पार्टी का समर्थन किया और लालू विरोधियों को एकजुट कर दिया. जार्ज फर्नाडिज की पार्टी में नीतीश कुमार और शरद यादव भी थे. जिससे पिछड़ी जातियों की एकजुटता में टूट पड़ गई. नीतीश कुमार के साथ कुर्मी-कोइरी हो गया. बाद में नीतीश कुमार ने अलग पार्टी बना ली और बीजेपी के साथ गठबंधन में नीतीश मुख्यमंत्री बन गए. हालांकि लालू की बिहार की सत्ता चली गई है लेकिन राजनीतिक ताकत में कमी नहीं हैं. कांग्रेस मजबूरी में उनके पीछे खड़ी रही है. जो अब तक जारी है.कांग्रेस ने अपने बूते पर खड़ा होने के लिए गंभीर प्रयास नहीं किया है.

बिहार की जाति में बंटी राजनीति

बिहार में 1989 के बाद से जातिगत राजनीतिक पार्टियों का उदय हुआ है. लालू प्रसाद की आरजेडी यादव जाति के समर्थन पर चल रही है. नीतीश कुमार कुर्मियों के नेता हैं. हालांकि अत्यंत पिछड़ा वर्ग को भी जोड़ने का प्रयास किया है. उपेन्द्र कुशवाहा के पास कोइरी का समर्थन है. रामविलास पासवान दलित और अपनी जाति दुसाध के बल पर टिके हैं. जीतन राम मांझी मुसहर जाति के पैरोकार हैं. बीजेपी के पास अगड़ी जातियों के अलावा वैश्य और कायस्थ का भी साथ है. जहां तक मुस्लिम का सवाल है वो आरजेडी के साथ ज्यादा है. कहीं नीतीश और कांग्रेस का समर्थन भी करता रहा है. लेकिन इस बार कांग्रेस आरजेडी के साथ जाने की संभावना है.

rahul tejaswi

बीजेपी से सीखे सबक

उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने पिछले हफ्ते कुशवाहा, सैनी और मौर्य समाज का सम्मेलन किया. जिसमें पार्टी की इन जातियों के लिए भविष्य में क्या योजना है? ये बताया गया है. ये भी कहा गया कि बीजेपी इन जातियां में किसी को मुख्यमंत्री भी बना सकती है. ये सभी जातियां पहले एसपी-बीएसपी के साथ थीं. बीजेपी ने सही समय पर इन जातियों पर फोकस किया है. जिससे बीजेपी को राजनीतिक लाभ मिला है. इन जातियों के बड़े नेताओं को पार्टी में शामिल कर लिया गया है.

बिहार में भी बीजेपी ने धीरे धीरे कई जातियां में सेंध लगाई है. कांग्रेस को भी इस तरह से नई कार्ययोजना पर चलने की जरूरत है. हालांकि ये काम एक दिन में संभव नहीं है. कांग्रेस को पहले कोर वोट की तलाश करने की जरूरत है. जो अगड़ी जातियां बीजेपी से निराश हैं. कांग्रेस उनसे बीच काम कर सकती है. अगड़ी जातियों के साथ आने से ही कांग्रेस बिहार में आगे बढ़ सकती है. कांग्रेस ने राजनीति के मंडलीकरण के बाद इस बार अगड़ी जातियों पर दांव लगाया है. जिसका नतीजा चुनाव में देखने को मिल सकता है.

 केजरीवाल ने कानून में बदलाव कर शहीद नरेंद्र दहिया को दी श्रद्धांजलि: योगेश्वर शर्मा 

अरविन्द केजरीवाल का फाइल फोटो


  • दो दिन में ही निभाया शहीद परिवार से किया अपना वायदा

  • चुनावी समर के चलते केजरीवाल ने हरियाणा में शहीद दहिया से किया वादा निभाया गौर तलब है की केजरीवाल उसी दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं जहां कुछ वर्ग विशेष के लड़कों ने डॉ॰ नारंग की हत्या कर दी थी।दिल्ली ही में डॉ॰ नारंग का परिवार आज भी केजरीवाल की बाट जोह रहा है। 


पंचकूला,27 सितंबर:

आम आदमी पार्टी के अंबाला लोकसभा व जिला पंचकूला के अध्यक्ष योगेश्वर शर्मा का कहना है कि आप सरंक्षक व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हरियाणा के शहीद नरेंद्र दहिया के परिवार से किया अपना वायदा पूरा कर दिया है। पार्टी ने शहीद के सम्मान में परिवार को 1 करोड़ रुपये की वितीय सहायता व सरकारी नौकरी देने के लिए केबिनेट में प्रस्ताव पास कर दिया है। उन्होंने हरियाणा सरकार से भी इस मामले में सीख लेते हुए तुरंत शहीद के परिवार के लिए कुछ करने को कहा है।

यहां जारी एक ब्यान में योगेश्वर शर्मा ने कहा कि देश लिए शहादत देने वाले शहीदों के सम्मान में दिल्ली मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने पुरे देश में एक बार फिर मिशाल कायम करते हुए मंगलवार को दिल्ली सरकार की केबिनेट बैठक में शहीद नरेंद्र दहिया के परिवार को दिए वायदे को पूरा करने का काम किया। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की अध्यक्षता में हुई इस केबिनेट की बैठक ने शहीद के परिवार को 1 करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता व परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी के प्रस्ताव को बिना किसी देरी के पास कर दिया गया। उन्होंने कहा कि दिल्ली मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल 21 सितम्बर को शहीद के परिवार से मिले थे व उन्हें उक्त सहायता देने  का आश्वासन देकर आये थे। उसी आश्वासन को कल केजरीवाल सरकार ने पूरा किया व आम आदमी पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष नवीन जयहिंद के माध्यम से  आश्वासन को पूरा करने की सूचना भी परिवार को दे दी गई है।

आप के अंबाला लोकसभा के अध्यक्ष योगेश्वर शर्मा ने कहा कि शहीद की शहादत अतुल्य होती है उसे आप कभी भी पैसों में तोल नहीं  सकते। लेकिन जवान के शहीद हो जाने के बाद उसके परिवार को दूसरों का मूंह ताकने के लिए भी तो नहीं छोड़ सकते। परिवार को अनेक समस्यों का सामना करना पड़ता है। सरकार की जिम्मेदरी होती है कि शहीद के बाद उसके परिवार  का ख्याल सरकार रखे। इसलिए हमारी मांग है कि शहीद के परिवार को राष्ट्र का परिवार घोषित किया जाये। योगेश्वर ने कहा  कि पूरे देश में एक मात्र केजरीवाल सरकार ऐसी है जो शहीद के परिवार के पालन-पोषण के लिए  1 करोड़ की वितीय सहायता व परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देती है। और इसके लिए वह ढोंग किये बिना इस काम को पूरा भी करती है। उन्होंने कहा कि यह अन्य सरकारों के लिए भी एक सबक है कि शहीद के परिवार को सहायता अबिलंब मिलनी चाहिए और इसके लिए केजरीवाल की तरह से तत्काल फैसले लेने चाहिए।  योगेश्वर शर्मा ने कहा कि  शहीद पूरे देश का होता है। जब वो सरहद पर होता है तो उसकी कोई जाति ,धर्म या राज्य नहीं होता। उन्होंने कहा कि जिस तरह शहीद नरेंद्र दहिया के साथ हुआ वो पूरे देश को हिला देने वाली घटना है। पाकिस्तान द्वारा किया उनके साथ किया गया कृत्या अमानवीय व शर्मसार करने वाला रहा है। उन्होंने प्रधानमंत्री से सावाल किया है कि 56 इंच का सीना रखनेक वाले मोदी एक सिर के बदले दस सिर कब ला रहे हैं,क्योंकि सीमाओं पर हमारे जवान लगातार शहीद हो रहे हैं और उनके साथ इस तरह का आमानवीय कृत्य भी लगातार हो रहा है। योगेश्वर शर्मा ने कहा कि सभी जनप्रतिनिधियों को एक महीने के लिए पाकिस्तान सीमाओं पर जाना चाहिए ताकि उनको जवानों के दर्द व उनके परिवार के दर्द का पता चले