कभी राहुल के राजनैतिक गुरु रहे दिग्गी राजा अब अपनी ही पार्टी में हाशिये पर


दिग्विजय खुद कहते हैं कि उनका नाम मध्य प्रदेश में जो भी सीएम के तौर पर ले रहा है, वो उनका और पार्टी का हितैषी नहीं हो सकता है. लेकिन दिग्विजय सिंह के ये बयान पूरी तरह राजनीतिक हैं, इससे इनकार नहीं किया जा सकता. परंतु पार्टी उन्हें खास तवज्जो दिखाई देती नहीं दिख रही है.


दिग्विजय सिंह अक्सर अपने बयानों के कारण चर्चा में रहते हैं. उनके बयान और विवाद का चोली दामन का रिश्ता रहा है. लेकिन अपने खास अंदाज में बात करने वाले दिग्विजय सिंह अपनी बातों को सामने रखने में तनिक भी संकोच नहीं करते. खासकर तब जब बीजेपी को किसी मसले पर घेरना हो तो ऐसा मौका गंवाना उन्हें गवारा नहीं है. वैसे हाल की गतिविधियों से पता चलता है कि कांग्रेस पार्टी उनसे किनारा करने लगी है. लेकिन ये दिग्विजय सिंह हैं, जो अपने एक के बाद दूसरे बयानों से मीडिया की सुर्खियां बटोरने में पिछड़ते नहीं हैं.

भले ही वो सोशल मीडिया में ट्रोल हों या फिर टीवी या अखबारों में उनके बयान को लेकर कड़ी प्रतिक्रिया हो. लेकिन दिग्गी राजा सुर्खियों में न रहें ये ज्यादा दिन तक हो नहीं सकता. बीजेपी पर अटैक करने में वो कई बार जल्दबाजी दिखा चुके हैं.

इन दिनों वो सोशल मीडिया पर एक ट्वीट करने के चलते खूब चर्चा में हैं. इस ट्वीट में उन्होंने योगी आदित्यनाथ को यूपी में जर्जर हो रहे स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए आड़े हाथों लिया है. वैसे उन्होंने जिस फोटोग्राफ का चयन ट्वीट में किया है, उसमें एंबुलेंस के ऊपर तेलगु में शब्द लिखे हुए हैं. इस सच्चाई के सामने आने पर सोशल मीडिया में फेक फोटोग्राफ इस्तेमाल करने को लेकर उनकी खूब खिंचाई हो रही है.

लेकिन दिग्विजय सिंह कभी भी इसकी परवाह नहीं करते. वो कहते हैं कि मोदी, शाह, बीजेपी और संघ का विरोधी वो शुरू से रहे हैं. और आगे भी देश को तोड़ने वाली ताकतों के खिलाफ लड़ते रहेंगें. लेकिन बसपा सुप्रीमो मायावती ने उन्हें बीजेपी और आरएसएस का एजेंट करार देकर डिफेंसिव कर दिया है.

दरअसल मायावती ने यह आरोप लगा दिया है कि छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं होने की वजह दिग्विजय सिंह हैं और वो आरएसएस और बीजेपी के एजेंट के रूप में कांग्रेस पार्टी के अंदर कार्य कर रहे हैं. इस बयान से तिलमिलाए दिग्विजय सिंह ने कहा कि वो हमेशा से कांग्रेस और बीएसपी गठबंधन के पक्षधर रहे हैं और वो मायावती का सम्मान करते हैं. वो राहुल गांधी को अपना नेता मानते हैं और कोई भी काम उनकी मर्जी के बगैर नहीं करते हैं.

दिग्विजय सिंह ने बीएसपी पर आरोप लगाते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में तालमेल करने में बीएसपी ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई, वहीं मध्यप्रेदश में जब बात चल ही रही थी, उसी दरमियान बीएसपी ने अपने 22 उम्मीदवार घोषित कर दिए. इतना ही नहीं आरोप-प्रत्यारोप के दौर में दिग्विजय सिंह ने मायावती पर आरोप लगाया कि वो सीबीआई के डर से गठबंधन में शामिल नहीं हो रही हैं. जाहिर है इस बयान से तिलमिलाई मायावती ने गठबंधन नहीं होने का सारा ठीकरा दिग्विजय के मत्थे फोड़ा और उनके बहाने कांग्रेस को भी आड़े हाथों लिया.

कांग्रेस के भीतर भी हाशिए पर खड़े दिग्विजय सिंह

दिग्विजय सिंह अपने ऊपर लगे इन आरोपों का जवाब खुद को संघ और बीजेपी का धुर विरोधी बताते हुए देते हैं. जाहिर है सालों से बीजेपी के खिलाफ मुखर रहे दिग्विजय के ऊपर मायावती ने संघ और बीजेपी का एजेंट बताकर उनकी राजनीतिक साख की जड़ें हिलाने की कोशिश की है. जिसने दिग्गी राजा को थोड़ा डिफेंसिव कर दिया है.

वैसे इन दिनों दिग्विजय सिंह पार्टी के भीतर भी हाशिए पर दिखाई पड़ने लगे हैं. उन्हें पार्टी अध्यक्ष ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी में जगह न देकर सबको चौंका दिया है. पार्टी के इतने बड़े कद्दावर नेता को कांग्रेस के होर्डिंग और कट आउट में जगह नहीं दिया जा रहा है. भोपाल में संपन्न हुई रैली में पार्टी के पोस्टर में सिंधिया, कमलनाथ, और कांतिलाल भूरिया जैसे नेताओं को जगह दिया गया लेकिन दिग्विजय सिंह नदारद रहे. जाहिर है इसके बाद प्रदेश में उनकी अहमियत को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं.

वैसे दिग्विजय सिंह कांग्रेस के नेताओं में वो पहले शख्स हैं, जिन्होंने राहुल गांधी को नेतृत्व देने को लेकर सबसे पहले आवाज बुलंद करना शुरू किया था. माना जा रहा था कि राहुल राजनीतिक शह और मात का खेल दिग्विजय सिंह की देख रेख में सीख रहे थे. इतना ही नहीं भट्ठा परसौल में राहुल के किसान प्रेम को लेकर जो सुर्खियां बटोरी गई थी. उसका सारा क्रेडिट भी दिग्विजय सिंह ने ही लिया. लेकिन हाल के कई डेवलपमेंट पार्टी के भीतर उनकी कमजोर होती पकड़ को साफ बयां कर रही हैं.

ऐसे में दिग्विजय सिंह का नीतीश कुमार पर जोरदार हमला कई मायनों में अखबार की सुर्खियों से ज्यादा कुछ लग नहीं रहा है. दिग्विजय सिंह ने हाल के अपने बयान में नीतीश कुमार को सत्ता का भूखा करार दिया है, साथ ही ये भविष्यवाणी कर डाली है कि नीतीश लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए की हार के खतरे को भांप कर यूपीए गठबंधन में शामिल होंगे.

सवाल उनके इस बयान को लेकर गंभीरता का है. ये महज राजनीतिक है या फिर आने वाले समय में होने वाली राजनीतिक गोलबंदी की भविष्यवाणी. वैसे जानकार इसे राजनीतिक टीका टिप्पणी से ज्यादा कुछ खास तवज्जो नहीं देते हैं.

ऐसा इसलिए भी है क्योंकि कांग्रेस की वर्तमान टीम में दिग्विजय सिंह का रोल नीति निर्धारक के तौर पर तो बिल्कुल नहीं दिखता है. मध्य प्रदेश में 10 साल सीएम के पद पर कार्य कर चुके दिग्विजय सिंह के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ की जोड़ी भारी पड़ने लगी है. कभी नक्सल के ऊपर कांग्रेस सरकार के एक्शन की हवा निकाल देने वाले दिग्विजय सिंह के लिए उनकी अपनी छवि ही उन्हें भारी पड़ने लगी है.

गोवा में सरकार नहीं बनने का जिम्मेदार उन्हें ठहराया जा रहा है. उन पर आरोप था कि उनकी निष्क्रियता के चलते पार्टी सरकार बनाने से चूक गई. इतना ही नहीं उन पर बीजेपी के आगे झुक जाने का भी आरोप लगा क्यूंकि दिग्विजय वहां के प्रभारी थे. वैसे दिग्विजय खुद कहते हैं कि उनका नाम मध्य प्रदेश में जो भी सीएम के तौर पर ले रहा है, वो उनका और पार्टी का हितैषी नहीं हो सकता है. लेकिन दिग्विजय सिंह के ये बयान पूरी तरह राजनीतिक हैं, इससे इनकार नहीं किया जा सकता. परंतु पार्टी उन्हें खास तवज्जो दिखाई देती नहीं दिख रही है.

पाकिस्तान ने 18 अंतर्राष्ट्रीय सहायता संगठनों को कामकाज समेटने के लिए दिया 60 दिनों का वक्त

 

पाकिस्तान ने 18 अंतर्राष्ट्रीय सहायता संगठनों को बंद करने के आदेश दिए है. जिससे देश के उन सबसे जरूरतमंद लोगों के सामने सहायता मिलने का खतरा पैदा हो गया है जिन्हें ये संगठन मदद उपलब्ध कराते थे. अंतरराष्ट्रीय सहायताकर्मियों ने यह जानकारी दी.

सरकार की एक सूची के अनुसार जिन सहायता समूहों को बंद करने के आदेश दिए गए है उनमें से ज्यादातर अमेरिका के है जबकि बाकी ब्रिटेन के है. सरकार के ताजा आदेश में जिन सहायता समूहों को बंद करने के आदेश दिए गए है उनमें वर्ल्ड विजन यूएस, कैथोलिक रिलीफ सर्विस यूएस, इंटरनेशनल रिलीफ और डेवल्पमेंट यूएस, एक्शनएड यूके और डेनिश रिफ्यूजी काउंसिल, डेनमार्क आदि हैं.

पाकिस्तान की नई सरकार से इस संबंध में कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण नहीं आया है और गृह मंत्रालय के जरिए जारी किए गए आदेश से सहायता समूहों को बंद किए जाने से संबंधित सवालों का कोई जवाब नहीं दिया गया है. सूचना मंत्रालय और विदेश मंत्रालय ने प्रतिक्रिया के लिए एपी के अनुरोधों का कोई जवाब नहीं दिया.

प्लान इंटरनेशनल के कंट्री निदेशक इमरान युसूफ शामी ने बताया कि संगठनों को अपना कामकाज समेटने के लिए 60 दिनों का समय दिया गया है. प्लान इंटरनेशनल को बताया गया कि उसके पंजीकरण से इनकार कर दिया गया है. इस संगठन का मुख्यालय ब्रिटेन में है और यह एक वैश्विक संगठन है जो शिक्षा और बच्चों के अधिकारों पर ध्यान केन्द्रित करता है. शामी ने कहा कि इन समूहों के बंद होने से पाकिस्तान के जरूरतमंद लोगों को ठेस पहुंचेंगी.

अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत एस 400 डील कर दुनिया को ये संदेश देने में कामयाब हो गया कि  कूटनीतिक, समारिक और कारोबारी हितों के लिए हर दोस्त जरूरी होता है


ट्रंप के अप्रत्याशित रवैये को देखते हुए अमेरिका ये तय नहीं कर सकता कि भारत के लिए उसका कारोबारी और सामरिक दोस्त कौन होगा

भारत और अमेरिका के बीच बढ़ती करीबी का ये मतलब नहीं कि भारत और रूस के बीच दूरियां बन गईं

भारत और रूस के बीच सामरिक करारों का सिलसिला कई दशकों पुराना है. ये वक्त के थपेड़ों के बावजूद नहीं बदला. इस पर सोवियत संघ के टूटने का असर नहीं पड़ा


भारत-रूस के रिश्तों को 70 साल हो गए हैं. सत्तर साल पुराने रिश्तों में एस 400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की डील को निर्णायक माना जा सकता है. इसकी बड़ी वजह ये है कि भारी अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत ने रूस के साथ इस करार पर मुहर लगाई. एस 400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम भारत के लिए अहम रक्षा कवच है. भारत ने अमेरिका की खुली नाराजगी के बावजूद रूस के साथ इस पर करार किया.

भारत ने अमेरिका की उस चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया जिसमें सहयोगी देशों को ये ताकीद किया गया है कि वो रूस के साथ किसी भी तरह का लेन-देन न करें. अमेरिका ने आगाह किया कि रूस के साथ बड़ा सौदा करने वाले देश को प्रतिबंध भुगतने पड़ सकते हैं. लेकिन भारत ने न तो अमेरिकी चेतावनियों की परवाह की और न ही प्रतिबंधों की.

सवाल उठता है कि अमेरिका के साथ तमाम सामरिक, आर्थिक, कूटनीतिक साझेदारी के बावजूद भारत रूस के साथ सैन्य डील करने को क्यों राजी हुआ? खासतौर से तब जबकि चीन और पाकिस्तान के साथ भी रूस की नजदीकियां बढ़ी हैं. तो वहीं सवाल ये भी उठता है कि आखिर अमेरिका चाहता क्या है?  एक तरफ भारत पर ईरान से तेल न खरीदने का अमेरिकी दबाव है तो दूसरी तरफ रूस के साथ लेन-देन पर भी अमेरिकी तेवर.

दरअसल, ट्रंप के शासनकाल में अमेरिका की विदेश नीति में ट्रंप-नीति ही अबतक हावी दिखी है. चाहे वो उत्तर कोरिया का मामला हो या फिर रूस का. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों से उलट राय रखते हैं. वो कभी रूस को अच्छा दोस्त मानते हैं तो कभी अमेरिकी चुनावों में रूस की दखलंदाजी से इनकार करते हैं. वो अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में रूसी हैकिंग को लेकर अपनी ही खुफिया एजेंसियों के दावों को खारिज कर देते हैं. वो जी-7 देशों से रूस को समूह में शामिल करने की मांग करते हैं. तो वहीं दूसरी तरफ रूस के साथ किसी भी तरह के लेन-देन के लिए सहयोगी देशों को धमकाते हैं. ऐसे में ट्रंप के अप्रत्याशित रवैये को देखते हुए अमेरिका ये तय नहीं कर सकता कि भारत के लिए उसका कारोबारी और सामरिक दोस्त कौन होगा.

मौजूदा परिवेश को देखते हुए एक बार फिर विश्व दो ध्रुवीय व्यवस्था के बीच बंटा हुआ दिखाई दे रहा है. इसमें एक तरफ अमेरिका और पश्चिमी देश हैं तो दूसरी तरफ रूस और चीन हैं. हाल ही में रूस ने दुनिया का सबसे बड़ा सैन्य अभ्यास कर खुद के महाशक्ति होने के दावे को पुख्ता किया. रूस के साथ इस सैन्य अभ्यास में चीन भी शामिल था. चीन के साथ अमेरिका का ट्रेड वॉर छिड़ा हुआ है तो दक्षिणी चीन सागर में चीन और अमेरिका के युद्धपोत एक दूसरे के सामने आ खड़े हुए हैं.

मध्य-पूर्व में सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद को अपदस्थ करने की अमेरिकी कोशिशों को रूस ने नाकाम कर दिया. असद सरकार की हिफाज़त में रूस खड़ा हुआ है तो ईरान के साथ भी रूस है वहीं अमेरिकी शह पर सऊदी अरब सीरिया के मामले में रूस और ईरान के खिलाफ है तो इस्रायल भी ईरान को धमका रहा है. इन सबसे थोड़े ही दूर पाकिस्तान अब रूस के भीतर अमेरिका जैसी दोस्ती तलाश रहा है.

पाकिस्तान चाहता है कि जितनी जल्दी अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी हो जाए ताकि दक्षिण एशिया में अमेरिका का प्रभुत्व कम हो सके. अमेरिकी फटकार के बाद अब पाकिस्तान चीन और रूस में अपना भविष्य देख रहा है. लेकिन दिलचस्प ये है कि सऊदी अरब के साथ खड़ा पाकिस्तान रूस के साथ रिश्तों का समीकरण बनाने में जुटा हुआ है जबकि सीरिया के मामले में रूस और सऊदी अरब आमने-सामने हैं.

तेजी से बदलते दुनिया के कूटनीतिक और सामरिक माहौल में भारत को भी अपने हित के लिए निडर हो कर फैसला लेने का हक है. उसी के चलते अब भारत ने अमेरिका के साथ रिश्तों की नई पहचान बनाने के बावजूद पुराने मित्र रूस को भुलाया नहीं है.

सत्तर साल के दरम्यान भारत के लिए रूस दोस्ती की हर परीक्षा में खरा उतरा है. वो रूस ही था जिसने 22 जून 1962 को वीटो का इस्तेमाल करते हुए कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत का समर्थन किया था. उस वक्त कश्मीर को भारत से छीन कर पाकिस्तान को देने की साजिश के तहत भारत के खिलाफ प्रस्ताव पेश किया गया था जिस पर रूस ने पानी फेर दिया था. वो रूस ही है जो भारत की एनएसजी में दावेदारी के समर्थन में खड़ा रहा है. ये तक माना जाता है कि डोकलाम मुद्दे पर भी रूस पर्दे के पीछे से भारत के साथ ही खड़ा था.

भारत के रूस के साथ सांस्कृतिक और सामाजिक रिश्ते भी हैं. ये रिश्ते सिर्फ आर्थिक समझौतों पर आधारित कभी नहीं रहे. भारत के औद्योगीकरण में रूस की साझेदारी, तकनीक और योगदान ने भारत के विकास में बड़ी भूमिका निभाई है. कारखानों, डैम, पॉवर प्लांट, परमाणु संयंत्र और अनुसंधान केंद्र का निर्माण बिना रूस की मदद के संभव नहीं था. रूस हमेशा ही भारत के साथ सैन्य और अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोगी रहा.

रूस की ही मदद से भारत ने साल 1975 में आर्यभट्ट के रूप में पहला सैटेलाइट लॉन्च किया था तो रूस की ही मदद से भारत ने ब्रह्मोस जैसी सुपरसोनिक मिसाइल बनाई. भारतीय थल सेना में टी-20 और टी-72 जैसे टैंक रूस निर्मित हैं तो सुखोई और मिग-21 जैसे लड़ाकू विमान रूस की देन हैं. भारत और रूस के बीच सामरिक करारों का सिलसिला कई दशकों पुराना है. ये वक्त के थपेड़ों के बावजूद नहीं बदला. इस पर सोवियत संघ के टूटने का असर नहीं पड़ा.

हालांकि बीच में अमेरिका और भारत की बढ़ती नजदीकी ने पाकिस्तान को रूस की तरफ उम्मीदों से देखने को मजबूर किया. पाकिस्तान ने रूस से लड़ाकू विमान और टैंक खरीदने की दिली ख्वाहिश का इजहार कर सैन्य आपूर्ति को लेकर अमेरिका पर निर्भरता को कम करने की कोशिश की. उधर रूस भी अफगानिस्तान से भविष्य में अमेरिकी सेना की वापसी की संभावनाओं को देखते हुए मध्य एशिया में तालिबानी खतरे के मद्देनजर पाकिस्तान के साथ रिश्तों को मजबूती देना चाहता है. हालांकि इन रिश्तों की बुनियाद साल 1949 में ही पड़ गई होती अगर उस वक्त पाकिस्तान के नेता लियाकत अली खान सोवियत संघ के न्योते को कबूल कर गए होते.

भले ही पाकिस्तान और रूस के बीच सामरिक संबंधों के जरिए नए समीकरण बन रहे हों लेकिन आजतक रूस के किसी भी राष्ट्रपति ने पाकिस्तान का दौरा नहीं किया है. साल 2007 में रूस के प्रधानमंत्री ने पाक का दौरा किया था. पहली दफे ऐसा हुआ है कि रूस ने पाकिस्तान के साथ मिलकर आतंकवाद के मुद्दे पर सितंबर 2016 में सैन्य अभ्यास किया है. लेकिन पाकिस्तान के साथ रूस की हालिया नजदीकी के पीछे दरअसल अमेरिका के लिए संदेश है. इसके ये मायने नहीं हैं कि रूस पाकिस्तान की कीमत पर भारत से दूर हो गया है. ठीक उसी तरह भारत और अमेरिका के बीच बढ़ती करीबी का ये मतलब नहीं कि भारत और रूस के बीच दूरियां बन गईं.

समय के साथ बदलते हालातों के चलते हर देश अपनी प्राथमिकताओं को बदलने के लिए स्वतंत्र है. आज एनएसजी यानी परमाणु आपूतिकर्ता समूह में शामिल होने के लिए भारत को रूस के साथ अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के देशों के भी समर्थन की जरूरत है. एनएसजी की सदस्यता में चीन सबसे बड़ा रोड़ा है. ऐसे में भारत सिर्फ किसी एक देश पर भी निर्भर नहीं हो सकता है. इसी तरह डिफेंस के मामले में भी भारत सिर्फ रूस या अमेरिका पर निर्भर नहीं रह सकता है. भारत अब रूस के अलावा फ्रांस और इजराइल जैसे देशों के साथ रक्षा करार कर रहा है.

अमेरिका के साथ भारत का अब 10 अरब डॉलर से ज्यादा का डिफेंस कारोबार हो रहा है. भारत को अपनी सुरक्षा के लिए बड़े पैमाने पर हथियारों और आधुनिक रक्षा तकनीक की जरूरत है. ऐसे में भारत अमेरिका को खारिज नहीं कर सकता है. सत्तर साल में पहली दफे ऐसे हालात बने हैं जब अमेरिका ने आतंक के मुद्दे पर पाकिस्तान की भूमिका को लेकर भारत का समर्थन किया. पहली दफे ये हुआ कि अमेरिका ने पाकिस्तान को आतंकी अड्डे खत्म करने और आतंकियों को गिरफ्तार करने को कहा. अमेरिका का भारत के साथ बदला रुख दरअसल चीन और पाकिस्तान की बढ़ती नजदीकी का भी नतीजा है. बदलते हालात में किरदार वही हैं बस देशों के नाम और भूमिकाएं बदल रही हैं. नए समीकरणों में आज अमेरिका भारत का खुल कर समर्थन कर रहा है. एनएसजी में भारत की दावेदारी और संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी सीट के लिए अमेरिका समर्थन कर रहा है.

बहरहाल, अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत एस 400 डील कर दुनिया को ये संदेश देने में कामयाब हो गया कि  कूटनीतिक, समारिक और कारोबारी हितों के लिए हर दोस्त जरूरी होता है.

ईरान से अब पेट्रो डॉलर के बदले रूपये में व्यापार होगा


‘ईरान तेल के लिए पूर्व में रुपए का भुगतान लेता रहा है. वह रुपए का उपयोग औषधि और अन्य जिंसों के आयात में करता है. इस तरह की व्यवस्था पर काम जारी है.’ 

भारत की ईरान से करीब 2.5 करोड़ टन कच्चे तेल के आयात की योजना है 


 

भारत ने अमेरिकी पाबंदी के बावजूद ईरान से तेल व्यापार का पहला साफ संकेत दिया है. सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों ने पश्चिम एशियाई देश से 12.5 लाख टन कच्चे तेल के आयात के लिए अनुबंध किया है और वे डॉलर की जगह रुपए में व्यापार की तैयारी कर रहे हैं.

उद्योग के शीर्ष सूत्र ने कहा कि इंडियन ऑयल कारपोरेशन (आईओसी) और मैंगलोर रिफाइनरी एंड पेट्रोरसायन लि. (एमआरपीएल) ने नवंबर में ईरान से आयात के लिए 12.5 लाख टन तेल के लिए अनुबंध किया किया है. उसी माह से ईरान के तेल क्षेत्र पर पाबंदी शुरू होगी. अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने पिछले महीने कहा था कि प्रतिबंध के मामले में कुछ छूट देने पर विचार किया जाएगा लेकिन यह साफ किया कि यह सीमित अवधि के लिए होगी.

सूत्रों के मुताबिक आईओसी ईरान से जो तेल आयात कर रहा है वह सामान्य है. उसने 2018-19 में 90 लाख टन ईरानी तेल के आयात की योजना बनाई थी. मासिक आधार पर यह 7.5 लाख टन बैठता है. ईरान पर अमेरिकी पाबंदी चार नवंबर से शुरू होगी.

सूत्रों ने कहा कि भारत और ईरान चार नवंबर के बाद रुपए में व्यापार पर चर्चा कर रहे हैं. एक सूत्र ने कहा, ‘ईरान तेल के लिए पूर्व में रुपए का भुगतान लेता रहा है. वह रुपए का उपयोग औषधि और अन्य जिंसों के आयात में करता है. इस तरह की व्यवस्था पर काम जारी है.’ उसने कहा कि अगले कुछ सप्ताह भुगतान व्यवस्था पर चीजें साफ हो जाएगी.

वास्तविक मात्रा हो सकती है कम

सूत्रों के मुताबिक आईओसी और एमआरपीएल जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की तेल रिफाइनरी कंपनियां तेल आयात के लिए ईरान को भुगतान को लेकर यूको बैंक या आईडीबीआई बैंक का उपयोग कर सकती हैं. भारत की ईरान से करीब 2.5 करोड़ टन कच्चे तेल के आयात की योजना है जो 2017-18 में आयातित 2.26 करोड़ टन से अधिक है. हालांकि वास्तविक मात्रा कम हो सकती है क्योंकि रिलायंस इंडस्ट्रीज जैसी कंपनियां पूरी तरह तेल खरीद बंद कर चुकी हैं. अन्य भी पाबंदी को देखते हुए खरीद घटा रही हैं.

50, 000 करोड़ कि अनुमानित राशि के मालिक “दलित नेता” दलितों के लिए दो गज ज़मीन कि मांग कर बुरे फंसे.


50, 000 करोड़ कि अनुमानित राशि के मालिक “दलित नायक” दलितों के लिए दो गज ज़मीन कि मांग कर बुरे फंसे. 

अप्रैल 2018 का संसद भवन का वाकया आपकी नज़र:


जाति के नाम पर आरक्षण एक अभिशाप है। देश के विकास में बाधा डालनेवाले और देश में असमानता लाने वाले जातिवाद आरक्षण के वजह से आज भारत दुनिया में ही पिछड़ा हुआ देश है। अपने राजनैतिक मुनाफे के लिए आरक्षण का उपयॊग करने वाले नेता गण वास्तव में संविधान और अंबेडकर जी का अपमान कर रहे हैं। खुद अंबेडकर जी ने कहा था की जाति के आधार पर आरक्षण केवल दस साल के लिए ही रहना चाहिए और जो दलित आरक्षण का लाभ उठाकर सक्षम होता है उसे दूसरॊं की सहायता करना चाहिए तांकि  उसका भी उत्थान हो।

लेकिन कांग्रेस पिछले 60 साल से देश के साथ गद्दारी कर रही है और आज भी जाति के नाम पर न केवल वॊट मांग रही है अपितु एक दूसरों को लड़वा भी रही है। कांग्रेस के दलित नायक मल्लिकार्जुन जो हमेशा मोदी सरकार पर निशाना साधते हैं, उनकी संपत्ति के बारे में जानेंगे तो आपके हॊश उड़ जाएंगे।

खड्गे ने प्रधानमंत्री मोदी जी के सामने हाथ जोड़ते हुए, आखों में आँसू लाते हुए गिड गिडाया था और कहा था ” इस देश में दलितों को दो गज ज़मीन दे दीजिए तांकि वे भी गौरव से अपना जीवन यापन कर सके”

 

उसी जगह पर मात्र 15 मिनिट के अंदर मॊदी ने खड्गे के सामने उनके संपत्ति से जुड़ा दस्तावेज़ दिखाया और सारा कच्चा चिटठा खॊल दिया। उस दस्तावेज़ के अनुसार ‘दलित नायक’ की संपत्ति का ब्यॊरा कुछ इस प्रकार है:

पीएम मोदी ने दिया राहुल-खड़गे को करारा जवाब, बेनामी संपत्ति पर ‘चेतावनी’

कर्नाटक के बन्नेरघट्टा रॊड में 500 करोड़ का एक बड़ा कांपलेक्स खड्गे के नाम पर है।
चिक्कमगलूरु ज़िले में 300 एकड़ काफी एस्टेट जिसकी कुल कीमत करीब 1000 करोड़ रुपये हैं।
चिक्कमगलूरु ज़िले में ही एक घर है जिसकी कीमत 50 करोड़ है।
बेंगलूरु के केंगेरी में 40 एकड़ की फार्म हाऊस है।
बेंगलूरु के एम.एस.रामय्या कॉलेज के पास इनके नाम पर एक इमारत है जिसकी कीमत 25 करोड़ रूपए हैं।
बेंगलूरु के ही आर. टि. नगर में एक बड़ा बंगला है।
बल्लारी रॊड में 17 एकड़ ज़मीन है।
बेंगलूरु के इंद्रा नगर में तीन मंजिला बंगला है ।
बेंगलूरु के सदाशिव नगर में दो और बंगले इनके नाम पर है।

इसके अलावा इनके और इनके रिश्तेदारों के नाम पर देश के महा नगर जैसे मैसूरु, गुलबर्गा, चेन्नई, गॊवा, पूना, नागपुर, मुम्बई और देश की राजधानी दिल्ली तक में रियल एस्टेट कि संपत्ति है जो 1000 करोड़ रुपए की कीमत की है। खडग देश की जनता को उल्लू समझते होगें कि वे जानते नहीं कि दलित -दलित का नाम जप कर खड्गे ने इतनी संपत्ती कहां से और कैसे बनाई। कुल मिलाकर खड्गे के पास 50,000 करोड़ से भी ज्यादा की संपत्ति है। 1980 से रेवेन्यू मिनिस्टर रह चुके खड्गे ने SC बेकलोग उद्योग की चयन प्रक्रिया में भी खूब घॊटाला किया है और अपने अधिकारॊं का दुरुपयॊग करते हुए खूब पैसा ऐंठा है।

दलितों का नाम इस्तेमाल कर के कांग्रेस के दलित नायक खड्गे ने देश का पैसा लूटा है। अगर खड्गे को दलितों से इतना ही प्यार है तो वो अपनी सारी संपत्ति गरीब दलितों को दे और उनका उद्धार करे किसी को इससे कॊई आपत्ति नहीं लेकिन दलित कार्ड का उपयॊग कर मॊदी सरकार को बदनाम करने का काम ना ही करे तो उनके लिए ही अच्छा है।

भाजपा के कुत्तों ने भी देश कि आज़ादी में कोई बलिदान नहीं दिया: खड्गे


21 जुलाई 1942 को नितांत गरीब और दलित परिवार में जन्मे खड़गे ने 1969 में कांग्रेस ज्वाइन की और उनके परिवार का भी देश कि आज़ादी से कोई लेना देना नहीं.

खड्गे पैदा ज़रूर एक गरीब परिवार में हुए पर सूत्रों कि मानें तो उनके अकूत दौलत का अनुमान लगाना बहुत ही मुश्किल है. सूत्रों के अनुसार आज वह खरबों पति हैं.

शायद कांग्रेसी कुत्ता शब्द का प्रयोग निर्विवादित ढंग से करते हैं.


देश के 5 राज्यों में होने वाले विधानसभा और वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव के मद्देनजर विभिन्न दलों के नेताओं के बयान अब तीखे होते नजर आ रहे हैं. आरोप-प्रत्यारोप लगाने का सिलसिला तेजी से शुरू हो गया है. इसी क्रम में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने बीते गुरुवार को बीजेपी और आरएसएस को निशाने पर लिया. खड़गे ने महाराष्ट्र में एक रैली को संबोधित करते हुए बीजेपी और आरएसएस के ऊपर तीखा हमला किया.

कांग्रेस ने देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया

कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि देश की आजादी के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और बीजेपी के नेताओं के घर के एक कुत्ते ने भी अपना बलिदान नहीं दिया है. कांग्रेस महासचिव खड़गे महाराष्ट्र के जलगांव जिले में पार्टी की जन संघर्ष यात्रा के दूसरे चरण की शुरुआत के लिए आयोजित एक रैली को यहां संबोधित कर रहे थे. खड़गे ने कहा- ‘हम लोगों (कांग्रेस) ने देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया है. इंदिरा गांधी ने देश की एकता- अखंडता के लिए बलिदान दिया. राजीव गांधी ने देश के लिए अपना जीवन कुर्बान कर दिया. मुझे बताइए कि देश की आजादी के लिए भाजपा और संघ (नेताओं) के घर का एक कुत्ता भी कुर्बान हुआ है.’

बीजेपी पर संविधान के साथ छेड़छाड़ करने का लगाया आरोप

खड़गे ने पूछा- ‘हमें बताइए देश की आजादी के लिए आपके कौन से लोग जेल गए हैं.’  रैली में अपने संबोधन के दौरान खड़गे ने बीजेपी के ऊपर संविधान के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस पार्टी उनके मंसूबे को कामयाब नहीं होने देगी. कांग्रेस के नेता इसके लिए अपनी आखिरी सांस तक लड़ेंगे. आपको बता दें कि केंद्र समेत देश के 20 से ज्यादा राज्यों में बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस पार्टी के कई नेता पहले भी इस तरह का बयान देते रहे हैं. कांग्रेस के दिग्गज नेता मणिशंकर अय्यर हों या सांसद शशि थरूर, कई नेताओं ने इससे पहले भी बीजेपी नेताओं के खिलाफ तीखे और विवादित बयान दिए हैं.

चंडीगढ़ में पेट्रोल – डीज़ल आधी रात से 4 रूपये सस्ता

 

केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने गुरुवार को पेट्रोल-डीजल पर 2.50 रुपए कम करने का फैसला किया था. इसके साथ वित्त मंत्री ने सभी राज्यों से भी कीमतें कम करने के लिए कहा था. केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद कई राज्यों ने कीमतें कम करने के लिए पेट्रोल-डीजल पर 2.50 रुपए कम कर दिए थे. जिसके बाद कीमतों में कुल 5 रुपए की गिरावट आई थी.

शुक्रवार को चंडीगढ़ प्रशासन ने पेट्रोल-डीजल पर 1.50 रुपए कम कर दिए हैं. नई कीमतें आधी रात से लागू होगी. इस फैसले के बाद चंडीगढ़ में पेट्रोल-डीजल कुल 4 रुपए सस्ता हो जाएगा.

केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद कुछ राज्य ऐसे भी थे जहां की राज्य सरकारों ने कीमतें कम करने से इनकार कर दिया था. शुक्रवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी कीमतें कम करने से मना कर दिया. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा ‘हमने पहले से ही ईंधन की कीमतें कम कर दी हैं लेकिन हमारे पास चुकाने के लिए कर्ज है. केंद्र सरकार ने पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाए हैं हमने नहीं. मैं राहुल गांधी के बयान का समर्थन करती हूं- अर्थव्यवस्था पहले से ही टूट गई है और सरकार को तुरंत जाना चाहिए.’

कठुआ रेप केस सीबीआई को सोंपने की याचिका ख़ारिज

जस्टिस यू यू ललित और जस्टिस चंद्रचुड़ की बेंच ने कठुआ केस सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच से मना किया
आरोपियों ने सीबीआई जांच की मांग की थी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा सीबीआई जांच के लिए आधार नही
आरोपी ट्रायल कोर्ट में रखे अपनी बात

घटी में भाजपा के 13 उम्मीदवारों की निर्विरोध जीत के साथ ही निकाय पर पार्टी का नियंत्रण पक्का हो गया है.


शोपियां जिले के स्थानीय निकाय में बीजेपी के 13 उम्मीदवारों की निर्विरोध जीत के साथ ही निकाय पर पार्टी का नियंत्रण पक्का हो गया है


दक्षिण कश्मीर के आतंकवाद प्रभावित शोपियां जिले के स्थानीय निकाय में बीजेपी के 13 उम्मीदवारों की निर्विरोध जीत के साथ ही निकाय पर पार्टी का नियंत्रण पक्का हो गया है.

राज्य के प्रमुख दलों नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी ने संविधान के अनुच्छेद 35ए को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिए जाने के मद्देनजर चुनाव का बहिष्कार किया है और आतंकवादी समूहों की धकमियों के कारण अन्य लोग भी चुनावी प्रक्रिया से दूरी बनाए हुए हैं.

सुरक्षा बलों और आतंकवादियों के बीच तमाम मुठभेड़ों के साक्षी रहे शोपियां जिला में 17 सदस्यीय स्थानीय निकाय हैं. इनमें से बीजेपी ने 13 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे जबकि चार सीटों पर किसी ने नामांकन नहीं भरा.

इससे पहले चुनाव अधिकारियों ने बुधवार को बताया था कि, शोपियां नगर समिति के 13 वार्ड के लिए हमें सिर्फ एक-एक नामांकन मिला है जबकि चार अन्य पर किसी ने नामांकन नहीं भरा है.

जीत पर क्या बोली भाजपा

राज्य बीजेपी ने इसे ‘ऐतिहासिक जीत’बताया है. जम्मू-कश्मीर बीजेपी प्रमुख रविंद्र रैना ने कहा ‘हमारा लक्ष्य सभी का विकास है और सभी लोगों के साथ न्याय करेंगे. हम बहुत खुश हैं.’

बीजेपी नेता रैना ने नेकां और पीडीपी पर निशाना साधते हुए कहा कि शहरी स्थानीय निकाय चुनावों का बहिष्कार कर दोनों दलों ने ‘लोकतांत्रिक प्रक्रिया का मजाक’ बनाया है.

यह पूछने पर कि क्या शोपियां से जीतने वाले उम्मीदवारों में कोई कश्मीरी पंडित भी है, रैना ने कहा, सभी 13 लोग स्थानीय मुसलमान हैं

शान के मुज़िकल शो में शिरकत नहीं कर पाए बाबुल सुप्रियो, साभार ममता पुलिस


सुप्रियो ने कहा, बंगाल में सरकार और पुलिस इतना नीचे गिर चुकी है कि वो संगीत जगत के मेरे मित्रों के शो को रद्द करने की धमकी देती है


केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो ने पश्चिम बंगाल पुलिस पर धमकी देने का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा, ‘आसनसोल में शान और केके का शो चल रहा है. शान ने मुझे शाम 6.30 बजे फोन करके बताया कि पुलिस ने उन्हें सोते समय जगा दिया और धमकी दी कि अगर बाबुल शो देखने आएंगे तो शो का लाइसेंस रद्द हो जाएगा.’

सुप्रियो ने कहा, ‘जब मैंने यह सुना तो फैसला किया कि अब शो में नहीं जाऊंगा और वहां परेशानी नहीं होगी.’ बाबुल सुप्रियो राजनीति में आने से पहले गायक थे इसलिए म्यूजिक इंडस्ट्री से जुड़ाव रखते हैं.

बाबुल ने बंगाल सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, ‘बंगाल में सरकार और पुलिस इतना नीचे गिर चुकी है कि वो न सिर्फ मुझे मेरे ही संसदीय क्षेत्र में आने से रोकती है, बल्कि संगीत जगत के मेरे मित्रों के शो को रद्द करने की धमकी भी देती है! बंगाल सरकार का बस यही काम रह गया है की मुझे आसनसोल आने से रोका जाए?’

कुछ दिन पहले शान ने ट्वीट करके लिखा था, लव यू भाई. मैं आसनसोल आ रहा हूं और 3 अक्टूबर को आपसे मिलूंगा, आशा है कि आप हमें मिलेंगे.

Shaan&KK’s concert is underway at Asansol. Shaan called me at 6:30 pm to say that Police woke him up from sleep, threatening to cancel license to the show if I go to watch it. I’ve decided not to attend the show so that no problems are created there: Babul Supriyo, BJP (3.10.18)