कानून या फिर बिल लाकर महज माहौल बनाने की तैयारी हो रही है या फिर मंदिर बनेगा


पार्टी की रणनीति देखकर यही लग रहा है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का परिणाम ही राम मंदिर मुद्दे पर अगले कदम और अगली रणनीति तय करेगा.


बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए प्राइवेट मेंबर बिल लाने का ऐलान कर दिया है. राज्यसभा सांसद सिन्हा ने प्राइवेट मेंबर बिल लाने की बात कहते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव, सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी और बीएसपी सुप्रीमो मायावती समेत कई विपक्षी पार्टी के नेताओं को चुनौती देते हुए उनका स्टैंड पूछा है.


Prof Rakesh Sinha

@RakeshSinha01

जो लोग @BJP4India @RSSorg को उलाहना देते रहते हैं कि राम मंदिर की तारीख़ बताए उनसे सीधा सवाल क्या वे मेरे private member bill का समर्थन करेंगे ? समय आ गया है दूध का दूध पानी का पानी करने का .@RahulGandhi @yadavakhilesh @SitaramYechury @laluprasadrjd @ncbn


बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा की तरफ से किए गए इस ऐलान के बाद से मंदिर मुद्दे पर सियासत गरमा गई है. आखिरकार राकेश सिन्हा ने इस तरह का बयान क्यों दिया. क्या राकेश सिन्हा ने अपनी मर्जी से बयान दिया या फिर उनके पीछे बीजेपी की भी सोच है या फिर संघ के लाइन को ही आगे बढ़ाते हुए सिन्हा ने एक कदम आगे बढ़ा दिया है.

सिन्हा को संघ का समर्थन!

दरअसल, राकेश सिन्हा संघ विचारक हैं. मीडिया में सघ की बात प्रमुखता से रखने वाले राकेश सिन्हा को संघ के आलाकमान का वरदहस्त प्राप्त है. संघ के समर्थन की बदौलत ही उन्हें राज्यसभा भेजा गया है. ऐसे में उनकी तरफ से प्राइवेट मेंबर बिल के जरिए अयोध्या में राम मंदिर के मुद्दे पर रास्ता साफ करने के लिए कदम उठाए जाने के पीछे संघ का ही हाथ माना जा रहा है.

गौरतलब है कि सरसंघचालक मोहन भागवत ने विजयादशमी की अपनी सालाना बैठक में साफ-साफ शब्दों में सरकार से अयोध्या विवाद के समाधान करने और वहां राम मंदिर का मार्ग प्रशस्त करने के लिए रुकावटों को दूर करने के लिए कानून बनाने की मांग कर दी है. संघ परिवार के मुखिया की तरफ से आए इस बयान के बाद भगवा ब्रिगेड इस मुद्दे पर अब और आक्रामक हो गया है.

वीएचपी और साधु-संतों का कड़ा रुख

विश्व हिंदू परिषद यानी वीएचपी के अलावा साधु-संतों ने भी अपना रुख कड़ा कर लिया है. संतों की उच्चाधिकार समिति की बैठक में पहले ही इस बात का ऐलान किया जा चुका है कि राम मंदिर निर्माण के लिए कानून बनाने की मांग को लेकर देश भर में जनजागरण कार्यक्रम चलाने के अलावा उनकी तरफ से सांसदों को उनके ही संसदीय क्षेत्र में मिलकर उन्हें ज्ञापन सौंपा जाएगा. वीएचपी के साथ मिलकर साधु-संतों की योजना हर राज्य मे गवर्नर से भी मिलने की है. आखिर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर भी कानून बनाने की मांग की जाएगी.

दूसरी तरफ, संतों के एक वर्ग ने 3 और 4 नवंबर को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में राम मंदिर निर्माण के लिए माहौल बनाने के लिए एक सम्मेलन करने जा रहा है. यह सम्मेलन अखिल भारतीय संत समिति की तरफ से कराया जा रहा है जिसका नेतृत्व जगद्गुरू रामानंदाचार्य हंसदेवाचार्य जी कर रहे हैं. संतों की मांग है कि सरकार कानून बनाकर या फिर अध्यादेश के जरिए अयोध्या में भव्य मंदिर निर्माण का रास्ता साफ करे.

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की तरफ से राम मंदिर-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद मामले की सुनवाई अगले साल जनवरी तक टाल देने के बाद आरएसएस, वीएचपी और कई दूसरे हिंदू संगठनों की तरफ से केंद्र की मोदी सरकार पर राम मंदिर के लिए अध्यादेश लाने का दबाव बनाया जा रहा है.

भागवत के बयान से भगवा ब्रिगेड को मिला मौका

खासतौर से मोहन भागवत के बयान ने बीजेपी के उन नेताओं को भी खुलकर बोलने का मौका दिया है जो इस मुद्दे पर प्रखर रहे हैं. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह से लेकर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने भी राम मंदिर के मुद्दे पर बयान देकर माहौल गरमा दिया है.

बीजेपी के राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा के अलावा बीजेपी के यूपी के अंबेडकर नगर से लोकसभा सांसद हरिओम पांडे ने भी प्राइवेट मेंबर बिल लाने की बात कही है. प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कहा है कि इस बार अयोध्या में दीवाली के दौरान वे राम मंदिर निर्माण से जुड़ी अच्छी खबर लेकर जाएंगे.

उधर, शिवसेना ने भी इस मसले पर सहयोगी बीजेपी पर दबाव बढ़ा दिया है. शिवसेना पहले से ही राम मंदिर मुद्दे को लेकर बीजेपी सरकार पर निशाना साध रही है. शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे 25 नवंबर को अयोध्या भी जा रहे हैं.शिवसेना नेता संजय राउत का कहना है कि ठाकरे अयोध्या पहुंचकर मोदी जी और बीजेपी सरकार को राम मंदिर निर्माण के लिए याद दिलाएंगे. शिवसेना का मानना है कि अगर कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगे तो हमें एक हजार साल इंतजार करना पड़ेगा. ऐसे में जल्द से जल्द कानून के जरिए सरकार इस मसले पर आगे बढ़े.

विपक्षी दलों का बीजेपी पर हमला

लेकिन, विपक्षी दलों की तरफ से इस मुद्दे पर बीजेपी पर प्रहार हो रहा है. विपक्षी दल अगले चुनाव को ध्यान में रखकर मूल मुद्दे से ध्यान हटाने की कोशिश के तौर पर मंदिर मुद्दे को देख रहे हैं. बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा के ऐलान पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला ने कहा है कि राम या अल्लाह वोट करने नहीं आएगें, जनता को ही वोट करना होगा.

उधर, कांग्रेस ने इस मुद्दे पर बीजेपी पर राजनीति करने का आरोप लगाया है. कांग्रेस प्रवक्ता आलोक शर्मा ने कहा है कि ‘कांग्रेस का स्टैंड क्लीयर है, हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानेंगे. राकेश सिन्हा यह नौटंकी बंद करें.’ॉ

सरकार के लिए सहयोगियों को साधना मुश्किल

लेकिन, बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपनी ही सहयोगी दलों से है. सहयोगी जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार का कहना है कि, ‘अगर न्यायपालिका समाधान का रास्ता खोज रही हो तो उस पर ज्यादा भरोसा करना चाहिए.’

संघ परिवार, साधु-संतों, सहयोगी शिवसेना के अलावा अपनी ही पार्टी के सांसदों की मांग के बाद बीजेपी पर भी राम मंदिर मुद्दे को लेकर दबाव बन रहा है. लेकिन, जेडीयू जैसी सहयोगी की तरफ से आ रहे बयान और गठबंधन की राजनीति की मजबूरी को बीजेपी भी समझ रही है. पार्टी प्रवक्ता संबित पात्रा के इस बयान में इस बात की झलक भी मिल रही है.

पात्रा ने इस मसले पर कहा, ‘प्राइवेट मेंबर बिल पार्लियामेंट की संपत्ति होती है, भविष्य में इस विषय पर बिल संसद में आएगा, इसपर मैं अभी से टिप्पणी करूं यह उचित नहीं होगा. मगर इसमें कोई संशय नहीं है कि जहां तक राम मंदिर निर्माण का सवाल है बीजेपी एक मात्र ऐसी पॉलिटिकल पार्टी है जिसने 1989 के पालनपुर के कांक्लेव में यह प्रतिज्ञा की है कि मंदिर का निर्माण हमारा लक्ष्य है, यह हमारा ध्येय है, हमारा लक्ष्य है और यह हमेशा ध्येय रहेगा.’

संबित पात्रा के बयान से साफ है कि बीजेपी के सांसद भले ही प्राइवेट मेंबर बिल की बात करें लेकिन, अभी पार्टी की तरफ से इस मुद्दे को गरमाए रखने से उसे ही फायदा होगा. पार्टी की तरफ से पात्रा ने आधिकारिक तौर पर इस बिल के पक्ष में कुछ नहीं कहा, लेकिन, उनकी तरफ से विपक्षी दलों को राम विरोधी दिखाना बीजेपी की रणनीति को दिखा रहा है.

विपक्ष पर पात्रा का प्रहार

पात्रा ने विपक्षी दलों को कठघड़े में खड़ा करते हुए कहा, ‘अगर आप एक सूची बनाएं और एक तरफ यह लिखें की मंदिर बनाने वाले और दूसरी तरफ लिखें मंदिर नहीं बनाने वाले, तो मंदिर बनाने वालों में विश्व हिंदू परिषद, संघ, बीजेपी और साधु-संतों का नाम आएगा. लेकिन, मंदिर नहीं बनाने वालों में पहले कांग्रेस का नाम आएगा, जिसने राम के वजूद को ही नकारा है. समाजवादी पार्टी का नाम आएगा, बीएसपी का नाम आएगा और इसके अलावा वो तमाम विपक्षी पार्टी जो हमारी उलाहना करने का काम कर रही हैं उन सबका नाम आएगा.’

हालांकि सूत्र बता रहे हैं कि संघ परिवार की तरफ से मुद्दा गरमाए जाने के बावजूद बीजेपी की तरफ से इस मुद्दे पर आगे बढ़ना आसान नहीं होगा, क्योंकि पार्टी को अपने सहयोगियों को भी साधना है. पार्टी की रणनीति देखकर यही लग रहा है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का परिणाम ही राम मंदिर मुद्दे पर अगले कदम और अगली रणनीति तय करेगा.

राम मंदिर पर प्राइवेट बिल ला सकती है बीजेपी: राकेश सिन्हा


राकेश सिन्हा ने एक ट्वीट किया है. जिसमें राम मंदिर पर प्राइवेट मेंबर बिल लाने के बारे में कहा गया है


नयी दिल्ली, 1 नवम्बर, 2018:

चुनावी मौसम के बीच एक बार राम मंदिर का मुद्दा गरमा गया है. राम मंदिर को लेकर बीजेपी पर कांग्रेस लगातार निशाना साधती रही है. इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर पर सुनवाई जनवरी तक के लिए टाल दी है. अब इस मुद्दे पर बीजेपी को विपक्ष लगातार घेर रहा है.

राज्यसभा सांसद और संघ विचारक राकेश सिन्हा ने एक ट्वीट किया है. जिसमें राम मंदिर पर प्राइवेट मेंबर बिल लाने के बारे में कहा गया है. सिन्हा ने पूछा है कि अगर बीजेपी राम मंदिर पर प्राइवेट मेंबर बिल लेकर आती है तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, लालू यादव, सीताराम येचुरी और मायावती का स्टैंड क्या होगा? सिन्हा ने विपक्ष के नेताओं को इस पर अपना स्टैंड साफ करने के लिए कहा है.


Prof Rakesh Sinha

@RakeshSinha01

Will @RahulGandhi @SitaramYechury @laluprasadrjd Mayawati ji support Private member bill on Ayodhya? They frequently ask the date ‘तारीख़ नही बताएँगे ‘ to @RSSorg @BJP4India ,now onus on them to answer


सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर मुद्दे पर सुनवाई अगले साल जनवरी तक के लिए टाल दी है. मामले की सुनवाई टलने के बाद साधु-संतों में भी नाराजगी देखने को मिल रही है.

मंगलवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए अध्यादेश लाने के विकल्प को नकारा नहीं है. उन्होंने कहा कि अगर इस मुद्दे को सर्वसम्मति से हल नहीं किया जा सकता है, तो फिर दूसरे विकल्पों को भी खंगाला जा सकता है.

Kejri all set to encash his government’s record in education and health sectors


Shun the party that sought votes in the name of temple and mosques and support the one which worked for building schools and hospitals.

I want to invite Manohar Lal Khattar to select three poorly managed Mohalla Clinics in Delhi and then let me choose two of the best dispensaries in Haryana

Necessary action would be taken soon against Khaira.


Sarika Tiwari, Chandigarh,1 November, 2018:

Delhi Chief Minister and convener of AAP Arvind Kejriwal is all set to encash his government’s record in education and health sectors in the national capital to the voters in Haryana.

Kejriwal took a dig at the BJP while appealing to the people of Haryana to shun the party that sought votes in the name of temple and mosques and support the one which worked for building schools and hospitals.

Kejriwal promised to emulate the Mohalla Clinic model of Delhi in Haryana if the AAP was voted to power in the next assembly election. Haryana will go to the polls next year.

He also slammed Haryana Chief Minister Manohar Lal Khattar for calling Mohalla Clinics as Halla clinics. Arvind Kejriwal said he has challenged Khattar to accompany him to visit Haryana’s dispensaries on November 12 to find out how different Mohalla Clinics are. “Manohar Lal Khattar has accepted my challenge to visit Mohalla Clinics. Now I am challenging him to accompany me to the state’s dispensaries on Number 12. I will also be writing a letter to the chief minister,” said Arvind Kejriwal.

Kejriwal accused former Chief Ministers of using the name of castes ,to seek votes but the Aam Aadmi Party talks about power, water, roads and health services.

“I want to invite Manohar Lal Khattar to select three poorly managed Mohalla Clinics in Delhi and then let me choose two of the best dispensaries in Haryana. Let us see which one is better. You give me a date, I will come to receive you on Delhi border and then on Number 12, I will be visiting your dispensaries,” said Arvind Kejriwal

“It is the internal issue of party which will be resolved soon” told Arvind Kejriwal While replying about the issues raised by the ousted AAP leader Sukhpal Singh Khaira Kejriwal said necessary action would be taken soon against Khaira.

There is an abnormal increase in pollution level after October 25 said Kejriwal. This is nothing else but due to stubble burning in Punjab.
Showing the satellite images of stubble burning in Punjab , he said the incidents of stubble burning were more in Punjab this year than in Haryana.
Accusing the Punjab government for failing to control stubble burning of the harvested paddy crop, Arvind Kejriwal told that the pollution level had deteriorated in the national capital after October 25.

The images show stubble burning in Bathinda, Amritsar and other districts in Punjab. In Haryana, this is limited to north Haryana in the areas around Ambala district.

He said the government and pollution control authorities in Punjab need to take the menace of stubble burning more seriously to find a lasting solution to the annual problem that was causing severe air pollution in Delhi.

“Neither vehicular pollution has increased in Delhi after October 25 nor more industries have been set up and neither there has been a dust build up. The air quality has deteriorated due to stubble burning in Punjab,” he said.

He said Haryana Chief Minister Manohar Lal Khattar had earlier assured him of lesser stubble burning in Haryana this year and the satellite images showed that stubble burning was indeed less in that state this time.

“I met Union Environment Minister Harsh Vardhan a few months back to discuss this problem. He assured me that the problem will be curbed as ‘Happy Seeder’ machines will be provided to panchayats to get rid of the crop residue. However, nothing has happened,” he pointed out.

Agrarian states Punjab and Haryana are expecting bumper procurement of over 250 lakh tonnes of paddy this Kharif season.

The Congress, INLD and BJP have ruled Haryana for 52 years. Nothing has changed on the ground,” he said.

The successive governments in Haryana whether Congress, Indian National Lok Dal (INLD) and Bharatiya Janata Party (BJP). All have all failed to deliver on development. Schools, roads, hospitals and other infrastructure are in a bad shape.
He urged the masses of Haryana to vote for AAp for revolutionary changes in the direction of development.

“We have brought revolutionary changes in Delhi in three years. It is being discussed at the global level. I have travelled in recent days to villages in Haryana. We have been to schools. They are in dilapidated condition,” he said.

राहुल गांधी ग्रामोफोन की तरह अटक गए हैं, लोग उनके दावों का मजाक उड़ाते हैं: मोदी


डिजिटल इंडिया का विपक्ष की आलोचना के बारे में एक सवाल के जवाब में मोदी ने कहा कि कांग्रेस के लोग जिन जिन मुद्दों पर जोर जोर से झूठ बोलने लगे तब समझना चाहिए कि हम अपने काम में सफल रहे हैं


कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के दावों पर तंज कसते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को कहा कि ग्रामोफोन की तरह उनकी पिन अटक गई है जिसके कारण वह ऐसी बचकानी बाते कर रहे हैं और लोग उनके दावों का मजाक उड़ाते हैं.

मोदी ने कहा कि इनको समझ नहीं आ रहा है कि वक्त बदल गया है, जनता को मूर्ख समझना बंद करें. ‘इस प्रकार की बचकानी बातें किसी के गले नहीं उतरती है और लोग मजाक उड़ाते हैं.’

बीजेपी के एक कार्यकर्ता द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के आरोपों के बारे में पूछे जाने पर प्रधानमंत्री ने कहा कि इसकी चिंता न करें. पहले ग्रामोफोन के रिकार्ड में पिन अटक जाती है तो कुछ ही शब्द बार बार सुनाई देती है. ऐसे ही कुछ लोग भी होते हैं जिनकी पिन अटक जाती है. एक ही चीज दिमाग में भर जाती है जो बार बार एक ही बात बोलते हैं. ऐसे में इन बातों का मजा उठाना चाहिए, आनंद लेना चाहिए.

मोदी ने कहा, ‘चुनाव की आपाधापी में इन चीजों का आनंद उठाएं.’

प्रधानमंत्री ने ‘मेरा बूथ, सबसे मजबूत’ कार्यक्रम के तहत नरेंद्र मोदी ऐप के जरिए मछलीशहर, महासमंद, राजसमंद, सतना, बैतूल के बीजेपी कार्यकर्ताओं से संवाद के दौरान कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि जितना कीचड़ उछालोगे, उतना कमल खिलेगा. कांग्रेस को सच नहीं, झूठ पर भरोसा है.

सत्ता में आने पर मध्यप्रदेश में मोबाइल फोन बनाने के बारे में कांग्रेस अध्यक्ष के बयान के संबंध में पूछे जाने पर मोदी ने सवाल किया, ‘मोबाइल का आविष्कार क्या 2014 के बाद हुआ था? 2014 के पहले भी मोबाइल थे, जिन लोगों ने इतने साल राज किया, उनके समय में सिर्फ दो ही मोबाइल फैक्टरियां क्यों थीं?’

कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने इतने साल शासन किया उनके समय में सिर्फ दो मोबाइल फैक्टरियां थी और पिछले चार सालों में 100 से ज्यादा कंपनियां मोबाइल फोन बना रही हैं.

वन रैंक, वन पेंशन लागू करने के राहुल गांधी के बयान के संदर्भ में प्रधानमंत्री ने कहा कि आज ये लोग वन रैंक, वन पेंशन की बातें कर रहे हैं. दशकों से यह मामला लंबित था, तब क्यों कुछ नहीं किया. ‘जब हमने वन रैंक, वन पेंशन लागू कर दी, तब जाकर वे कह रहे हैं कि हम देंगे.’

कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि इतने दशकों तक इनकी सरकार रही, सेना के जवान 40 सालों से मांग कर रहे थे, उसे सुनने की फुर्सत नहीं थी. जब हमने इसे कर दिया तब परेशान हो रहे हैं.

उल्लेखनीय है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने हाल ही में उनसे मिलने गए सेवानिवृत्त सैनिकों के एक समूह से कहा कि सत्ता में आने पर कांग्रेस ’वन रैंक, वन पेंशन’ (ओआरओपी) के मु्द्दे पर किए अपने सभी वादों को पूरा करेगी. इससे पहले राहुल ने भोपाल में आयोजित कार्यकर्ता संवाद के दौरान कहा था, ‘आपके हाथ में जो मोबाइल है, वह ‘मेड इन चाइना’ है, यदि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो हम ‘मेड इन मध्य प्रदेश’ मोबाइल बनाएंगे.

डिजिटल इंडिया का विपक्ष की आलोचना के बारे में एक सवाल के जवाब में मोदी ने कहा कि कांग्रेस के लोग जिन जिन मुद्दों पर जोर जोर से झूठ बोलने लगे तब समझना चाहिए कि हम अपने काम में सफल रहे हैं.

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज डिजिटल इंडिया कदम कदम पर सुदूर गांव तक लोगों की मदद को खड़ा है. डिजिटल इंडिया के माध्यम से लोगों के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन आ रहा है.

उन्होंने कहा कि जब लोग और सरकार मिलकर काम करते हैं तभी सकारात्मक परिणाम आता है. सरकार कहती है कि पराली मत जलाओ, पराली मत जलाओ. लेकिन यह जनभागीदारी से ही संभव होगा.

गरीबी उन्मूलन के अपने सरकार के प्रयासों का उल्लेख करते हुए मोदी ने कहा कि पहले की सरकारों की सबसे बड़ी गलती यह थी कि उनके लिये गरीबी शब्द चुनावी वोट बैंक का हिस्सा थी और उनके राजनीतिक फायदे में थी. उन्होंने कहा कि उनकी सरकार गरीब कल्याण के कार्य में जुटी है.

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मैं लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का हमेशा से ही आग्रही रहा हूं. सरकार भी इसी दिशा में काम कर रही है.’ उन्होंने कहा कि आज कॉमन सर्विस सेंटर के माध्यम से करोड़ों भारतीयों का न सिर्फ जीवन आसान हुआ है, बल्कि उनका भविष्य भी संवर रहा है.

मोदी ने कहा कि पहले अगर किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करनी होती थी, तो गांव में इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. लेकिन आज वाई-फाई और ऑनलाइन स्टडी ने युवाओं की इस सबसे बड़ी परेशानी का हल कर दिया है.

उन्होंने कहा कि मनरेगा की योजना तो पहले से चली आ रही है. लेकिन पहले क्या होता था. अपने पैसे लेने के लिए कई-कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता था. ऊपर से बिचौलिया भी कुछ पैसे मार लेता था, लेकिन आज टेक्नोलॉजी की मदद से मजदूरी आसानी से मिल जाती है. आज छात्रों के खाते में छात्रवृति पहुंच जाती है.

प्रधानमंत्री ने अपने संवाद के दौरान गुजरात में सरदार बल्लभभाई पटेल की प्रतिमा राष्ट्र को समर्पित करने का उल्लेख किया और कहा कि यह उनके मन को संतोष देने वाला पल था.

मोदी ने नरेंद्र मोदी एप के जरिए पार्टी कोष में चंदा एकत्र करने के अभियान का भी जिक किया.

पटेल की मूर्ति पर मायावती ने भाजपा आरएसएस को घेरा


गुजरात में ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ के अनावरण के बाद बीएसपी प्रमुख मायावती ने बुधवार को कहा कि बीएसपी सरकार के समय बने स्मारकों को ‘फिजूलखर्ची’ बताने के लिए बीजेपी और आरएसएस को बहुजन समाज के लोगों से माफी मांगनी चाहिए.


मायावती ने भारत के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि देते हुए एक बयान में कहा, लगभग तीन हजार करोड़ रुपए की लागत से बनी पटेल की ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ प्रतिमा का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गुजरात में अनावरण के बाद बीजेपी और आरएसएस के उन सभी लोगों को बहुजन समाज के लोगों से माफी मांगनी चाहिए जो बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर सहित दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों में जन्में महान संतों, गुरुओं व महापुरुषों के सम्मान में बीएसपी सरकार द्वारा लखनऊ और नोएडा में निर्मित भव्य स्थलों, स्मारको, पार्कों को फिजूलखर्ची बताकर इसकी जबर्दस्त आलोचना किया करते थे.’

बीजेपी ने पटेल को क्षेत्रवाद में बांध दिया

मायावती ने कहा, ‘वैसे तो पटेल अपनी बोल-चाल, रहन-सहन व खान-पान में पूर्ण रूप से भारतीयता व भारतीय संस्कृति की एक मिसाल थे. लेकिन उनकी भव्य प्रतिमा का नामकरण हिंदी और भारतीय संस्कृति के नजदीक होने के बजाय स्टैच्यू ऑफ यूनिटी जैसा अंग्रेजी नाम रखना कितनी राजनीति है, यह देश की जनता अच्छी तरह से समझ रही है.’

उन्होंने कहा कि पटेल विशुद्ध रूप से भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के पोषक थे लेकिन उनकी प्रतिमा पर विदेशी निर्माण की छाप उनके समर्थकों को हमेशा सताती रहेगी. बीएसपी प्रमुख ने कहा कि आंबेडकर की तरह पटेल एक राष्ट्रीय व्यक्ति थे और उनका सम्मान भी था लेकिन बीजेपी और उसकी केंद्र सरकार ने उन्हें क्षेत्रवाद की संकीर्णता में बांध दिया है.

उन्होंने कहा कि देश की जनता यह भी नहीं समझ पा रही है कि बीजेपी को यदि वाकई पटेल के नाम पर राजनीति करने के बजाय उनसे सही मायने में लगाव होता तो गुजरात में अपने लम्बे शासन के दौरान उनकी ऐसी भव्य प्रतिमा क्यों नहीं बनाई.

तालिबानी दौर में प्रवेश कर चुकी है नक्सली विचारधारा, अपने गढ़ में सड़कों को दुश्मन मानते हैं नक्सली


दूरदर्शन कैमरापर्सन अच्युतानंद साहू की हत्या ने यहां पत्रकारों के लिए मौत का डर बहुत करीब ला दिया है- खासकर उन लोगों के लिए जो छत्तीसगढ़ राज्य के बाहर से असाइनमेंट पर माओवादी युद्धक्षेत्र में जाते हैं


छत्तीसगढ़ में एक पत्रकार की हत्या नक्सलवाद और भारत सरकार के बीच चल रही लड़ाई में नया मोड़ है. कश्मीरी आतंकवादियों और उत्तर-पूर्व के विद्रोहियों के उलट छत्तीसगढ़ के माओवादियों ने कभी पत्रकारों को सीधे निशाना नहीं बनाया है- अतीत में दो उदाहरणों को छोड़कर. लेकिन मंगलवार सुबह दूरदर्शन कैमरापर्सन अच्युतानंद साहू की हत्या ने यहां पत्रकारों के लिए मौत का डर बहुत करीब ला दिया है- खासकर उन लोगों के लिए जो छत्तीसगढ़ राज्य के बाहर से असाइनमेंट पर माओवादी युद्धक्षेत्र में जाते हैं. साहू के अलावा, दो पुलिसकर्मी- सब इंस्पेक्टर रूद्र प्रताप और असिस्टेंट कांस्टेबल मंगलू की मौत हो गई.

कभी वह वामपंथी चरमपंथियों (एलडब्ल्यूई) की विचारधारा ही थी, जो उन्हें दूसरे आतंकवादी गुटों से अलग करती थी, क्योंकि मीडिया में उनके खिलाफ आलोचनाओं के बावजूद अतीत में कभी भी पत्रकारों पर हमला नहीं किया गया था. नक्सल आज भी खुद को बौद्धिक रूप से सर्वश्रेष्ठ और अपनी ‘क्रांतिकारी’ विचारधारा के लिए कठोरता से प्रतिबद्ध मानते हैं.

लेकिन ऐसा लगता है कि विचारधारा का अंत हो गया है. संघर्ष क्षेत्र बस्तर पर करीबी नजर डालने पर- यह हमें दो स्थानीय पत्रकारों- नेमिचंद जैन और साई रेड्डी की याद दिलाता है, जिन्हें 2013 में माओवादियों ने बेरहमी से मार डाला था. स्थानीय हिंदी दैनिक समाचार पत्रों के लिए काम करने वाले संवाददाता जैन की फरवरी में सुकमा जिले के तोंगपाल में, जबकि हिंदी पत्रकार रेड्डी की दिसंबर में बीजापुर जिले के बसगुडा में हत्या की गई थी.

माओवादियों ने दावा किया था कि पत्रकारों की इसलिए हत्या की गई क्योंकि क्योंकि वे ‘पुलिस के खबरी’ थे- यह एक ऐसी सफाई है जो हमेशा एलडब्ल्यूई कैडर द्वारा दी जाती है, जब वो हमला कर किसी निर्दोष नागरिक या आदिवासी ग्रामीण की हत्या करते हैं या जन अदालत के नाम से मशहूर अपनी ‘कानून की अदालत’ में मुकदमा चलाते हैं.

साई रेड्डी के मामले में, सीपीआई (माओवादी) की दक्षिण क्षेत्रीय समिति ने दिसंबर 2013 में एक बयान जारी किया था और 51 वर्षीय वरिष्ठ पत्रकार की हत्या को न्यायसंगत ठहराते हुए आरोप लगाया था कि वह दक्षिण बस्तर से सीपीआई (माओवादी) का खात्मा करने के लिए पुलिस के साथ मिलकर काम कर रहे थे. 27 सितंबर 2017 को बीजापुर प्रेस क्लब में तीस सेकेंड की एक ऑडियो क्लिप जारी की गई थी, जिसमें एक कथित बातचीत में एक पुरुष आवाज जंगल में माओवादी घटनाओं की रिपोर्टिंग करने जाने वाले पत्रकारों को मार डालने की धमकी दे रही है. हालांकि, इस ऑडियो क्लिप की प्रामाणिकता की पुष्टि नहीं की जा सकी.

उस जगह का मैप जहां पत्रकार पर हमला हुआ.

दंतेवाड़ा के पुलिस अधीक्षक अभिषेक पल्लव और दूरदर्शन के कैमरा असिस्टेंट मोर मुकुट शर्मा के अनुसार जब अच्युतानंद साहू अपने दल के साथ निलवाया जंगल में सड़क से आगे बढ़ रहे थे और अपने असाइनमेंट के सिलसिले में शूटिंग कर रहे थे, तो माओवादियों ने उन पर गोलीबारी शुरू कर दी.

माओवादियों और तालिबानियों में कोई फर्क नहीं है

एलडब्ल्यूई पर काम कर रहे विशेषज्ञ अब माओवादियों को तालिबान आतंकवादियों जैसा ही मानते हैं. आतंकवाद विरोधी विश्लेषक अनिल कांबोज ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया, “माओवादियों ने अपनी विचारधारा को बहुत पीछे छोड़ दिया है. वे तालिबान आतंकवादियों से अलग नहीं हैं और उन्हीं के रास्ते पर चल रहे हैं. असल में माओवादी विकास विरोधी हैं. वे चाहते हैं कि स्थानीय लोग शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं, विकास और आधुनिक सुविधाओं से वंचित रहें जिससे कि वे उन पर शासन कर सकें.” वह कहते हैं, “अब माओवादी पत्रकारों को निशाना बना रहे हैं क्योंकि वे उनके खिलाफ और उनके असली मकसद के बारे में लिख रहे हैं. नक्सलियों पर सवाल उठाने वाला कोई भी शख्स उनका दुश्मन है.

सरेंडर कर चुके 28 वर्षीय माओवादी ने फ़र्स्टपोस्ट के साथ एक खास बातचीत में कहा था, ‘मुझे लगता है कि लोग धीरे-धीरे क्रांति की माओवादी विचारधारा के पीछे के झूठ को समझने लगे हैं. यह सिर्फ निर्दोषों का विनाश और हत्या है. हमारी आदिवासी आबादी नक्सली आंदोलन से कुछ हासिल नहीं कर रही है क्योंकि हम उनके द्वारा उनके छिपे मकसद के लिए इस्तेमाल किए जा रहे हैं. अब माओवादी नेता लुटेरे बन चुके हैं.

हताशा में उठाया कदम

विशेषज्ञों के अलावा, छत्तीसगढ़ सरकार भी गहराई से महसूस करती है कि माओवादियों ने दूरदर्शन टीम पर हताशा में हमला किया है, क्योंकि वे दंतेवाड़ा जिले के पलनार गांव से 19 किमी दूर निलवाया वन क्षेत्र में सड़क निर्माण स्थल को सुरक्षा दे रहे थे. अशांत क्षेत्रों में सड़कों के निर्माण की रक्षा सुरक्षा बलों के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है.

छत्तीसगढ़ पुलिस के विशेष महानिदेशक (नक्सल विरोधी अभियान) डीएम अवस्थी कहते हैं, ‘सरकार के विकास एजेंडे को ध्यान में रखते हुए, पिछले तीन वर्षों में बस्तर में तेजी से सड़कों का निर्माण हुआ है. सुरक्षा बलों के दबाव के साथ इस फैक्टर ने माओवादियों को रक्षात्मक स्थिति में धकेल दिया है. आज का हमला हताशा की कार्रवाई है क्योंकि माओवादी सामली से निलवाया तक सड़क के निर्माण का विरोध कर रहे हैं. हमें घटनास्थल से एक पोस्टर मिला है कि जिसमें चेतावनी दी गई है कि उन लोगों को मौत की सजा दी जाती है, जो जनविरोधी काम करते हैं. उन्होंने मौके पर घेराबंदी की और पत्रकार को गोली मार दी.’

दंतेवाड़ा से जगरगुंडा (सुकमा में) की सड़क का विस्तार मौत का फंदा साबित हुआ है. यहां 2017 में भी माओवादियों ने भेज्जी और बुरकापाल में सड़क निर्माण की सुरक्षा में तैनात सुरक्षा बलों पर हमला किया गया था. जाहिर है कि पुलिस और सुरक्षा बलों के बाद, नक्सली गढ़ों में बनाई गई सड़कें माओवादियों के सबसे बड़े दुश्मन के रूप में उभरी हैं. छत्तीसगढ़ में बड़ी संख्या में एलडब्ल्यूई कैडर ने सड़क निर्माण की रक्षा के लिए तैनात सीआरपीएफ जवानों को मार डाला है या आईईडी धमाकों से सड़कों को बर्बाद कर दिया है.

एलडब्लूई सुरक्षा बलों, उनके वाहन, सड़क निर्माण में लगे कर्मचारियों को निशाना बनाने और बस्तर डिवीजन में अशांत क्षेत्रों में निर्मित सड़कों को नुकसान पहुंचाने के लिए आईईडी का इस्तेमाल कर रहे हैं. पिछले कुछ वर्षों में, सीआरपीएफ कर्मियों के हताहत होने की अधिकांश घटनाएं सड़क निर्माण सुरक्षा के दौरान हुई हैं.

इंजेरम-भेज्जी रोड, डोर्नपाल-जागरगुंडा रोड, बीजापुर-बसगुडा रोड इत्यादि जैसी कुछ सड़कों को ‘खूनी सड़क’ कहा जाता है क्योंकि इन सड़कों के निर्माण के दौरान बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मियों और मजदूरों की हत्या हुई थी. सुकमा जिले में डोर्नपाल-जागरगुंडा रोड पर सबसे अधिक मौतें हुई हैं.

‘केंद्रीय सुरक्षा बलों और पुलिस के कई जवान इंजेरम-भेज्जी रोड के 20 किलोमीटर के विस्तार में शहीद हो चुके हैं. छत्तीसगढ़ पुलिस में बस्तर रेंज के महानिरीक्षक विवेकानंद कहते हैं, “सुकमा से कोंटा तक 76 किलोमीटर लंबे सीमेंट-कंक्रीट रोड का निर्माण एक दशक से अधिक समय तक लटका रहा है, जो अब पूरा हो रहा है.’

यह चुनाव ना होने देने की कोशिश भी हो सकती है

डीएम अवस्थी का कहना है, ‘आज के हमले का छत्तीसगढ़ में आगामी विधानसभा चुनाव के साथ कुछ लेना-देना नहीं है. हमले का मकसद चुनाव रोकना नहीं था, बल्कि सड़क निर्माण का विरोध करना था.’ लेकिन, बस्तर में स्थानीय लोग पुलिस के दावे को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं. एक पखवाड़ा पहले ही माओवादियों ने बस्तर में मतदान का बहिष्कार करने की चेतावनी जारी की थी. 27 अक्टूबर को, माओवादियों ने बीजापुर में सीआरपीएफ के माइन प्रोटेक्शन वाहन (एमपीवी) को धमाके से उड़ा दिया था, जिसमें चार सुरक्षाकर्मी मारे गए.

बस्तर में काम करने वाले एक पत्रकार नाम न छापने की शर्त के साथ कहते हैं, ‘सड़क निर्माण हमेशा एक गंभीर मुद्दा रहा है क्योंकि माओवादी पुरजोर तरीके से विकास का विरोध करते हैं और नहीं चाहते कि दूरदराज के गांवों को जोड़ने वाली सड़कों का निर्माण हो. इसके अलावा, माओवादी छत्तीसगढ़ में चुनाव में गड़बड़ी करना चाहते हैं. उन्होंने पहले से ही चेतावनियां जारी कर दी हैं और ग्रामीणों से 12 नवंबर के मतदान का बहिष्कार करने या नतीजे भुगतने के लिए कहा है. ऐसा पहले भी हुआ है.’

प्रतीकात्मक तस्वीर

यहां तक कि 2013 में पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों से पहले इंटेसिजेंस ब्यूरो (आईबी) ने चेतावनी दी थी कि छत्तीसगढ़ के माओवादियों ने एलटीटीई से मानव बम बनाने के लिए प्रशिक्षण लिया है और इसका इस्तेमाल चुनाव रैलियों के दौरान राजनीतिक नेताओं को निशाना बनाने के लिए किया जा सकता है.

अतीत में बस्तर में नक्सलियों के खिलाफ अभियान का नेतृत्व करने वाले अनिल कांबोज कहते हैं, ‘चुनावों से पहले, माओवादियों ने इस तरह आईईडी विस्फोटों के माध्यम से आतंक पैदा करने और सुरक्षा बलों पर हमला कर मीडिया का ध्यान खींचने व अपनी ताकत दिखाने के लिए हमला किया है.’

सरदार पटेल की मूर्ति के लोकार्पण

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को सरदार वल्लभ भाई पटेल की विश्वविक्रमी प्रतिमा का लोकार्पण किया.

उन्होंने कहा कि “ये मेरा सौभाग्य कि मुझे बतौर प्रधानमंत्री सरदार पटेल की इस प्रतिमा ‘स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी’ को देश को समर्पित करने का मौक़ा मिला.”

देश को एक सूत्र में बांधने वाले आज़ाद भारत के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की आज 143वीं जयंती है.

इस अवसर पर गुजरात के गवर्नर, सूबे के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी, भाजपा के अध्यक्ष अमित भाई शाह और कुछ विदेशी अतिथि भी मौजूद थे.

सरदार पटेल की इस मूर्ति की ऊंचाई 182 मीटर है जो कि दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है.

लोकार्पण कार्यक्रम की शुरुआत सरदार पटेल की विशाल मूर्ति की डिजिटल प्रस्तुति से हुई. इसके बाद भारतीय वायु सेना के विमानों ने प्रतिमा के ऊपर से फ़्लाई पास्ट किया.

अपने भाषण से पहले नरेंद्र मोदी ने सरदार पटेल की प्रतिमा के शिल्पकार बताये जा रहे राम सुतार और उनके पुत्र अनिल सुतार को भी मंच पर आमंत्रित किया.

नरेंद्र मोदी ने कहा कि सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भारत को ‘एक भारत, अखंड भारत’ बनाने का पुण्य काम किया.

अपने संबोधन की शुरुआत नरेंद्र मोदी ने दो नारों के साथ की. उन्होंने कहा, “मैं बोलूंगा सरदार पटेल और आप मेरे साथ बोलेंगे अमर रहें.”

इसके बाद उन्होंने कहा, “देश की एकता, जिंदाबाद-जिंदाबाद.”

विरोध प्रदर्शन

लेकिन आज भी इस इलाके के कुछ लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया. भारतीय ट्राइबल पार्टी और भिलीस्तान टाइगर सेना के कार्यकर्ताओं ने डेडियापाडा-राजपिपला सड़क मार्ग को ब्लॉक कर दिया.

ट्राइबल नेता प्रफ़ुल्ल वसावा ने बीबीसी को बताया, “स्टैच्यू के आस-पास के इलाक़ों में बुलाया गया बंद कामयाब रहा है. हमने आसमान में काले गुब्बारे छोड़कर अपना विरोध दर्ज किया है.”

डेडियापाडा के एक किसान गुरजी गुलाबसिंह ने कहा कि उन्हें तो पास के डैम से पानी तक नहीं मिलता. आम जीवन जीना मुश्किल होता है. क्योंकि हम खेतीबाड़ी के लिए बारिश पर निर्भर हैं.

पढ़िए, नरेंद्र मोदी के भाषण की मुख्य बातें:

  • नर्मदा नदी के किनारे पर खड़े होकर मुझे ये कहने में बहुत गर्व हो रहा है कि आज पूरा देश सरदार पटेल की स्मृति में राष्ट्रीय एकता दिवस मना रहा है.
  • भारत सरकार ने भारत के स्वर्णिम पुत्र को सम्मान देने का काम किया है.
  • हम आजादी के इतने साल तक एक अधूरापन लेकर चल रहे थे, लेकिन आज भारत के वर्तमान ने सरदार के विराट व्यक्तित्व को उजागर करने का काम किया है. आज जब धरती से लेकर आसमान तक सरदार साहब का अभिषेक हो रहा है, तो ये काम भविष्य के लिए प्रेरणा का आधार है.
  • इस प्रतिमा को बनाने के लिए हमने हर किसान के घर से लोहा और मिट्टी ली. इस योगदान को देश याद रखेगा.
  • किसी भी देश के इतिहास में ऐसे अवसर आते हैं, जब वो पूर्णता का अहसास कराते हैं. आज वही पल है जो देश के इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो जाता है, जिसे मिटा पाना मुश्किल है.
  • सरदार साहब का सामर्थ्य तब भारत के काम आया था जब माँ भारती साढ़े 500 से ज़्यादा रियासतों में बंटी थी. दुनिया में भारत के भविष्य के प्रति घोर निराशा थी. निराशावादियों को लगता था कि भारत अपनी विविधताओं की वजह से ही बिखर जाएगा.
  • सरदार पटेल में कौटिल्य की कूटनीति और शिवाजी के शौर्य का समावेश था.
  • कच्छ से कोहिमा तक, करगिल से कन्याकुमारी तक आज अगर बेरोकटोक हम जा पा रहे हैं तो ये सरदार साहब की वजह से है. ये उनके संकल्प से ही संभव हो पाया है.

Image result for सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति का अनावरण

  • सरदार साहब ने संकल्प न लिया होता, तो आज गीर के शेर को देखने के लिए, सोमनाथ में पूजा करने के लिए और हैदराबाद चार मीनार को देखने के लिए हमें वीज़ा लेना पड़ता.
  • सरदार साहब का संकल्प न होता, तो कश्मीर से कन्याकुमारी तक की सीधी ट्रेन की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी.
  • ये प्रतिमा, सरदार पटेल के उसी प्रण, प्रतिभा, पुरुषार्थ और परमार्थ की भावना का प्रकटीकरण है.
  • ये प्रतिमा भारत के अस्तित्व पर सवाल उठाने वालों को ये याद दिलाने के लिए है कि ये राष्ट्र शाश्वत था, शाश्वत है और शाश्वत रहेगा.
  • प्रतिमा की ये ऊंचाई, ये बुलंदी भारत के युवाओं को ये याद दिलाने के लिए है कि भविष्य का भारत आपकी आकांक्षाओं का है, जो इतनी ही विराट हैं. इन आकांक्षाओं को पूरा करने का सामर्थ्य और मंत्र सिर्फ और सिर्फ एक ही है- ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’.
  • स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी हमारे इंजीनियरिंग और तकनीकि सामर्थ्य का भी प्रतीक है. बीते क़रीब साढ़े तीन वर्षों में हर रोज़ कामगारों ने, शिल्पकारों ने मिशन मोड पर काम किया है. राम सुतार जी की अगुवाई में देश के अद्भुत शिल्पकारों की टीम ने कला के इस गौरवशाली स्मारक को पूरा किया है.
  • आज जो ये सफ़र एक पड़ाव तक पहुँचा है, उसकी यात्रा 8 वर्ष पहले आज के ही दिन शुरू हुई थी. 31 अक्तूबर 2010 को गुजरात के अहमदाबाद शहर में मैंने इसका विचार सबके सामने रखा था.
  • जब ये कल्पना मन में चल रही थी, तब मैं सोच रहा था कि यहां कोई ऐसा पहाड़ मिल जाए जिसे तराशकर मूर्ति बना दी जाए. लेकिन वो संभव नहीं हो पाया, फिर इस रूप की कल्पना की गई.
  • सतपुड़ा और विंध्य के इस अंचल में बसे आप सभी जनों को प्रकृति ने जो कुछ भी सौंपा है, वो अब आधुनिक रूप में आपके काम आने वाला है.
  • देश ने जिन जंगलों के बारे में कविताओं के ज़रिए पढ़ा, अब उन जंगलों, उन आदिवासी परंपराओं से पूरी दुनिया प्रत्यक्ष साक्षात्कार करने वाली है.
  • सरदार साहब के दर्शन करने आने वाले टूरिस्ट सरदार सरोवर बांध, सतपुड़ा और विंध्य के पर्वतों के दर्शन भी कर पाएंगे.
  • कई बार तो मैं हैरान रह जाता हूँ, जब देश में ही कुछ लोग हमारी इस मुहिम को राजनीति से जोड़कर देखते हैं. सरदार पटेल जैसे महापुरुषों, देश के सपूतों की प्रशंसा करने के लिए भी हमारी आलोचना होने लगती है. ऐसा अनुभव कराया जाता है मानो हमने बहुत बड़ा अपराध कर दिया है.
  • आज देश के लिए सोचने वाले युवाओं की शक्ति हमारे पास है. देश के विकास के लिए, यही एक रास्ता है, जिसको लेकर हमें आगे बढ़ना है.
  • देश की एकता, अखंडता और सार्वभौमिकता को बनाए रखना, एक ऐसा दायित्व है, जो सरदार साहब हमें देकर गए हैं.
  • हमारी जिम्मेदारी है कि हम देश को बांटने की हर तरह की कोशिश का पुरज़ोर जवाब दें. इसलिए हमें हर तरह से सतर्क रहना है. समाज के तौर पर एकजुट रहना है.

India moves up to 77th rank in Ease of Doing Business Index


It was ranked 100 last year and 130 in 2016 and 2015. When Modi government took over in 2014, it was ranked 142 among 190 nations.


Curtsy “The Hindu”

India jumped 23 ranks in the World Bank’s Ease of Doing Business Index 2018 to 77. It ranked 100 in the 2017 report.

The Index ranks 190 countries across 10 indicators ranged across the life cycle of a business from ‘starting a business’ to ‘resolving insolvency’.

“India’s strong reform agenda to improve the business climate for small and medium enterprises is bearing fruit. It is also reflected in the government’s strong commitment to broaden the business reforms agenda at the state and now even at the district level,” said Junaid Ahmad, World Bank Country Director in India in a press release. “Going forward, a continuation of this effort will help India maintain its goal of strong and sustained economic growth and we look forward to recording these successes in the years ahead.”

Source: Indian Govt

“The improvement in rankings is excellent news for India, and good news for the business community,” Commerce Minister Suresh Prabhu said at a press conference. “I’m sure we will continue to improve it more and more.”

Mr. Prabhu said that there were several initiatives by the government in the works that would further ease doing business, such as enabling export and import using only a mobile phone.

“The government will get out of business and allow people to conduct their business,” the Commerce Minister added.

Finance Minister Arun Jaitley pointed out that, since the World Bank sets May 1 as the deadline for measurement, there are several initiatives taken by the government that will only reflect in next year’s rankings including the effects of the Insolvency and Bankruptcy Code and the full effect of the Goods and Services Tax.

He noted that, despite the sharp improvement India has made in several of the categories in the Index, there were others such as registering a property, starting a business, taxation, insolvency, and enforcing a contract where a lot of work still needs to be done.

Photo: Twitter/@wb_research

“During the past year, India made Starting a Business easier by fully integrating multiple application forms into a general incorporation form,” the World Bank said in a release. “India also replaced the value added tax with the Goods and Services Tax (GST) for which the registration process is faster in both Delhi and Mumbai, the two cities measured by the Doing Business report. In addition, Mumbai abolished the practice of site inspections for registering companies under the Shops and Establishments Act. As a result, the time to start a business has been halved to 16 days, from 30 days.”

India moved from rank 184 in 2014 to 52 in 2018 in the construction permits category, 137 to 24 in getting electricity, 126 to 80 in trading across borders, 156 to 121 in paying taxes, 137 to 108 in resolving Insolvency, 186 to 163 in enforcing contracts, 158 to 137 in starting a business, and 36 to 22 in getting credit.

“The upward movement in India’s ranking is as expected,” Vishwas Udgirkar, Partner, Deloitte India said in a note. “This has been on back of overall reforms driven by the government, and to a large extent, use of digital and technology leading to process improvement. The country is on the right track in adopting technology and innovations in business processes. Government efforts to this end are laudable. Government’s thrust on infrastructure development to promote trade and business, especially logistics and supply chain centred initiatives, as also overall fiscal reforms including bankruptcy code, are showing results.”

सरदार पटेल जयंती-राष्ट्रीय एकता दिवस

भारत की आजादी एक लंबे राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संघर्ष का नतीजा थी। इसे हासिल करने के लिए महात्मा गांधी , जवाहर लाल नेहरू , भगत सिंह से लेकर सुभाषचंद्र बोस सभी ने अपनी-अपनी तरह से योगदान दिया है । आम जनता ने भी आजादी की जंग में अपना खून पसीना एक किया। सभी किसी न किसी तरह से भारत की सत्ता पर स्वदेशी हुकूमत देखना चाहते थे।

15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो गया।

देश पर एकीकरण का एक भयावह खतरा मंडरा रहा था जिसे न जवाहर लाल नेहरू कर पाते और न राष्ट्रपिता महात्मा गांधी। सरदार बल्लभ भाई पटेल की दृढ़ इच्छा शक्ति, लौह जैसे इरादे के बूते भारत आजाद और संगठित हुआ। आज जिस अखंड और एक भारत को हम देख रहे हैं यह पूरा भारत हम सबको इसी शख्स का दिया हुआ ऐसा अनमोल तोहफा है, जिसकी हम कभी कल्पना भी नहीं कर सकते। लौह जैसे इरादों के चलते पटेल लौह पुरूष के नाम से पूरे भारत में लोकप्रिय रहे। दरअसल, भारत की आजादी के बाद सबसे बड़ा और चुनौतीपूर्ण काम था रियासत में खंड-खंड रूप से बंटे, राजे-रजवाड़ों के छोटी-छोटी सल्तनों की हुकूमतों के अहंकार में डूबे हिंदुस्तान को एक करना कोई आसान काम नहीं था। अंग्रेज भारत को आजाद तो कर गए, लेकिन उन्होंने देश का बंटवारा भी कर दिया । पाकिस्तान के बनाने का निर्णय अंग्रेजों द्वारा अधिकृत लार्ड माउंटबेटन कर गए, लेकिन वे हिंदुस्तान को अखंड बनाने वाली 536 छोटी-बड़ी रियासतों को लेकर चुप्पी साध गए। उस समय नेहरू के लिए भी रियासतों को एक करना सबसे बड़ी और गंभीर चुनौती थी, जिसकी जिम्मेदारी उन्होंने सरदार बल्लभ भाई पटेल को सौंपी । इस तरह एक दृढ़ इच्छाशक्ति के कुशल संगठक, शानदार प्रशासक, पटेल के लिए 500 से ज्यादा राजाओं को आजाद भारत में शामिल करना आसान नहीं था। वे उन्हें नई कांग्रेस सरकार के प्रतिनिधि के रूप में इस बात के लिए राजी करने का प्रयास करना चाह रहे थे कि वे भारत की कांग्रेस सरकार के अधीन आ जाए। जिस तरह से उन्होंने हैदराबाद, जूनागढ़ जैसी रियासतों को एक किया वह काबिले तारीफ था।

सन् 1947 में स्वतंत्र होने के बाद भारत स्वतंत्र रियासतों में बंटा हुआ था। 15 अगस्त 1945 को जापान आत्म समर्पण कर दिया था, तब माउण्टबैटन सेना के साथ बर्मा के जंगलों में थे। इसी वर्षगांठ को यादगार बनाने के लिए माउण्टबैटन ने 15 अगस्त 1947 को भारत की आजादी के लिए तय किया था। वास्तव में, माउण्टबैटन ने जो प्रस्ताव भारत की आजादी को लेकर जवाहरलाल नेहरू के सामने रखा था उसमें ये प्रावधान था कि भारत के 565 रजवाड़े भारत या पाकिस्तान में किसी एक में विलय को चुनेंगे और वे चाहें तो दोनों के साथ न जाकर अपने को स्वतंत्र भी रख सकेंगे। इन 565 रजवाड़ों जिनमें से अधिकांश प्रिंसली स्टेट (ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य का हिस्सा) थे में से भारत के हिस्से में आए रजवाड़ों ने एक-एक करके विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए, या यूँ कह सकते हैं कि सरदार वल्लभ भाई पटेल तथा वीपी मेनन ने हस्ताक्षर करवा लिए। भोपाल के लोगों को भारत संघ का हिस्सा बनने के लिए बाद में दो साल और इंतजार करना पड़ा था। तब सरदार पटेल ने कोई 600 देशी रियासतों को भारत में मिलाकर भारत को एक सूत्र में बांधा और भारत को मौजूदा स्वरूप दिया। एक कुशल प्रशासक होने के कारण कृतज्ञ राष्ट्र उन्हें ’लौह पुरुष‘ के रूप में भी याद करता है।सरदार पटेल तब अंतरिम सरकार में उपप्रधानमंत्री के साथ देश के गृहमंत्री थे। भोपाल का विलय सबसे अंत में भारत में हुआ। भारत संघ में शामिल होने वाली अंतिम रियासत भोपाल इसलिए थी क्योंकि पटेल और मेनन को पता था कि भोपाल को अंतत: मिलना ही होगा। भोपाल का विलय सबसे अंत में भारत में हुआ। भारत संघ में शामिल होने वाली अंतिम रियासत भोपाल इसलिए थी क्योंकि पटेल और मेनन को पता था कि भोपाल को अंतत: मिलना ही होगा। जूनागढ़ पाकिस्तान में मिलने की घोषणा कर चुका था तो काश्मीर स्वतंत्र बने रहने की। जूनागढ़, काश्मीर तथा हैदराबाद तीनों राज्यों को सेना की मदद से विलय करवाया गया किन्तु भोपाल में इसकी आवश्यकता नहीं पड़ी। 26 अक्टूबर को कश्मीर पर पाकिस्तान का आक्रमण हो जाने पर वहाँ के महाराजा हरी सिंह ने उसे भारतीय संघ में मिला दिया। पाकिस्तान में सम्मिलित होने की घोषणा से जूनागढ़ में विद्रोह हो गया जिसके कारण प्रजा के आवेदन पर राष्ट्रहित में उसे भारत में मिला लिया गया। वहाँ का नवाब पाकिस्तान भाग गया। 1948 में पुलिस कार्रवाई द्वारा हैदराबाद भी भारत में मिल गया। इस प्रकार रियासतों का अन्त हुआ और पूरे देश में लोकतन्त्रात्मक शासन चालू हुआ। इसके एवज़ में रियासतों के शासकों व नवाबों को भारत सरकार की ओर से उनकी क्षतिपूर्ति हेतु निजी कोष प्रिवीपर्स दिया गया।

भोपाल का विलय:- भोपाल स्टेट की नींव रखी मुग़ल फ़ौज के एक अफ़ग़ान पश्तून फौजी दोस्त मोहम्मद खान ने। आगे चलकर 1818 में यह अंग्रेज़ो के अधीन आगया और 1818 से 1947 तक यह अंग्रेज़ो की सुरक्षा में रहा। 1857 को भोपाल स्टेट के मौलवियों ने स्टेट की नीतियों के खिलाफ जाकर अंग्रेज़ो के खिलाफ जिहाद का फतवा देदिया और लगातार तात्या तोपे, टोंक के नवाब और रानी लक्ष्मी बाई से संपर्क में रहे। यह मौलवी घर घर में अपनी बात पहुंचाने के लिए चपाती पर सन्देश लिखने लगे। उस वक़्त की रानी सिकंदर जहां बेगम को जब पता लगा तो उन्होंने चपातियों के वितरण पर प्रतिबन्ध लगा दिया। मार्च 1948 में यह स्टेट भी इंडिया में ले लिया गया।भोपाल के लोगों को भारत संघ का हिस्सा बनने के लिए बाद में दो साल और इंतजार करना पड़ा था। जूनागढ़: जूनागढ़ पाकिस्तान में मिलने की घोषणा कर चुका था पाकिस्तान में सम्मिलित होने की घोषणा से जूनागढ़ में नवाब के विरुद्ध बहुत विद्रोह हो गया वहाँ का नवाब पाकिस्तान भाग गया। जिसके कारण प्रजा के आवेदन पर राष्ट्रहित में उसे भारत में मिला लिया गया।
 हैदराबाद:- 1798 में हैदराबाद के तहत एक राजसी राज्य बन ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के आधिपत्य में जाना जाता है । एक सहायक गठबंधन करके यह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए अपनी विदेश का नियंत्रण सौंप दिया था। 1903 में बरार राज्य के क्षेत्र अलग और मध्य प्रांतों में विलय कर दिया गया था। 1948 में हैदराबाद के लिए तो बाकायदा उन्हें सेना की एक टुकड़ी भेजनी पड़ी। पुलिस कार्रवाई द्वारा हैदराबाद भी भारत में मिल गया।
कश्मीर समस्या:- कश्मीर रियासत पंडित नेहरू ने स्वयं अपने अधिकार में लिया हुआ था, परंतु इतिहासकारों की मानें तो सरदार पटेल कश्मीर में जनमत संग्रह तथा कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने पर बेहद क्षुब्ध थे, और हम कम से कम इस बात में यकीं कर सकतेहैं कि पटेल होते तो कश्मीर समस्या का आज इस तरह से विकराल नहीं हो सकती थी। बावजूद नि:संदेह सरदार पटेल द्वारा यह 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य था। भारत की यह रक्तहीन क्रांति थी। महात्मा गांधी ने सरदार पटेल को इन रियासतों के बारे में लिखा था, “रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे।”
सरदार पटेल की जयंती:31 अक्टूबर को सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती के रूप में मनाया जाता है। भारत में वर्ष 2014 में पहली बार राष्ट्रीय एकता दिवस मनाया गया। देश के पहले गृहमंत्री और उपप्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल को महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के समकक्ष खड़ा करने के अभियान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार आगे बढ़ा रहे हैं।इसी क्रम में सरकार ने सरदार पटेल की जयंती 31 अक्तूबर को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया है। इस दिन देशभर में एकता दौड़ का आयोजन किया जाएगा, जिसमें प्रधानमंत्री खुद भी दौड़ लगा सकते हैं।इसके अलावा ऐसी भी संभावना जताई जा रही है कि प्रधानमंत्री इसी दिन आकाशवाणी के जरिए मन की बात के तहत जनता से अपना दूसरा संवाद भी कर सकते हैं। केंद्र की सत्ता में आने से पहले से ही पीएम मोदी सरकार पटेल की विरासत को लेकर कांग्रेस से दो दो चार हाथ कर रहे हैं। उन्होंने गुजरात में सरदार पटेल की प्रतिमा बनाने के लिए बाकायदा हर गांव से लोहा इकट्ठा करने का अभियान छेड़ा था।उन्होंने प्रस्ताव रखा है कि सरदार पटेल की इस प्रतिमा को दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिमा के तौर पर स्थापित किया जाएगा। मोदी ने कांग्रेस पर सरदार पटेल के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाया था। साथ ही जवाहर लाल नेहरू पर भी सवाल खड़े किए थे।

बेनीवाल का उदय बीजेपी के लिए अच्छी खबर क्यों है?


माना जा रहा है कि नतीजा कुछ भी हो, बीजेपी लोकसभा चुनाव नए नेता के साथ लड़ेगी. नया नेता राजे की जगह लेगा


जाट लीडर हनुमान बेनीवाल के नेतृत्व में राजस्थान तीसरे मोर्चे का उदय देख रहा है. यह पिछले तमाम महीनों में बीजेपी के लिए सबसे अच्छी खबर है. नई पार्टी न सिर्फ आने वाले विधान सभा चुनाव में, बल्कि अगले साल लोक सभा चुनाव में भी बीजेपी के लिए मददगार साबित होगी.

बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) मुख्य तौर पर ऐसे पूर्व बीजेपी नेताओं का एक साथ आना है, जो मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के नेतृत्व में अपने लिए कोई भविष्य नहीं देखते. इन लोगों का सामूहिक लक्ष्य खुद को ऐसी जगह ले जाना है, जहां से वो कांग्रेस और राजे दोनों को नुकसान पहुंचा सकते हैं. उनकी राजनीति का खेल कुछ ऐसा है, जहां राजे को खत्म किया जा सके और राजस्थान में नया पावर सेंटर बनकर बीजेपी में वापसी की जा सके.

वोट एकजुट करने की कोशिश

आने वाले विधानसभा चुनाव में, इनकी उम्मीद बीजेपी के खिलाफ वोट को एकजुट करने की है. इस तरह वे कांग्रेस को नुकसान पहुंचाएंगे. बेनीवाल और उनके समर्थकों को लगता है कि वे त्रिशंकु विधान सभा में अच्छे नंबर के साथ आएं. इसके बाद वे किंग मेकर्स बन जाएं. ठीक वैसे ही, जैसे कर्नाटक में एचडी कुमारस्वामी ने किया. अगर ऐसा होता है, तो उनकी पहली पसंद राजे रहित बीजेपी होगी.

तीसरे मोर्चे में एकमात्र अहम नेता बेनीवाल हैं. अहम होने की वजह उनका जाट नेता होना है. जाटों के बारे में माना जाता है कि वे एकजुट होकर एक पार्टी को  वोट देते हैं. राजस्थान में पुरानी कहावत है -जाट की रोटी, जाट का वोट, पहले जाट को. अभी जाटों के पास ऐसा कोई नेता नहीं है, जिसकी पूरे राजस्थान में धमक हो. बेनीवाल का लक्ष्य उसी खालीपन को भरना और निर्विवाद तौर पर जाटों का नेता बनने का है. राज्य में जाटों की तादाद करीब 12 से 14 फीसदी है, बेनीवाल इन्हीं को एकजुट करना चाहते हैं.

यह ऐसा इलेक्शन है, जिसे एंटी इनकंबेंसी के अंडर करंट की तरह से देखा जा रहा है, जो राजे के खिलाफ है. ऐसे में जाटों के लिए स्वाभाविक पसंद कांग्रेस है. बेनीवाल के होने से समुदाय के पास एक और विकल्प होगा, जो कांग्रेस के नुकसान पहुंचाएगा. लेकिन बेनीवाल के लिए चुनौती होगी जाटों को कांग्रेस से दूर रखना. वो इसकी कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने पूर्व मुख्य मंत्री अशोक गहलोत पर हमला बोला है. गहलोत को जाटों में नापसंद किया जाता है. माना जाता है कि उन्होंने कांग्रेस में जाट नेताओं को खत्म कर दिया. हालांकि सचिन पायलट के उभरने से यह रणनीति नाकाम रह सकती है. जाटों के लिए पायलट क्लीन स्लेट की तरह शुरुआत कर रहे हैं. ऐसे में गहलोत के लिए जाटों का गुस्से का कोई मतलब नहीं बचता.

क्या है समस्या

तीसरे मोर्चे के लिए एक और समस्या है बड़े स्तर पर सामाजिक गठबंधन का अभाव. बिहार में लालू यादव या उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के पास मुसलमानों सहित कुछ और जातियों, समुदायों का समर्थन रहा है. लेकिन यहां बेनीवाल के साथ अकेले जाट हैं. ऐसे में 12 से 14  फीसदी वोट किसी उम्मीदवार को हराने में काम आ सकते हैं, लेकिन वे अपने उम्मीदवार को इलेक्शन नहीं जिता सकते.

इसके अलावा, जब भी राजस्थान में कोई ताकतवर समुदाय एक साथ आता दिखता है, तो उसके खिलाफ काउंटर पोलराइजेशन या जवाबी ध्रुवीकरण होने लगता है. समस्या तब नहीं होती, अगर नए फ्रंट के बाकी नेताओं का बड़ा आधार होता. लेकिन बेनीवाल के साथी, जैसे घनश्याम तिवाड़ी अपनी खुद की सीट जीतने की क्षमता नहीं रखते. ऐसे में सिर्फ एक अहम नेता को आगे रखकर नैया पार करना आसान नहीं होगा.

हां, लंबे समय में बेनीवाल के उदय से बीजेपी को फायदा होगा. माना जा रहा है कि नतीजा कुछ भी हो, बीजेपी लोकसभा चुनाव नए नेता के साथ लड़ेगी. नया नेता राजे की जगह लेगा. संभावना है कि बीजेपी या तो राजपूत या ब्राह्मण को नए चेहरे के तौर पर पेश करेगी. अगर बेनीवाल नए नेतृत्व के साथ पार्टी से जुड़ते हैं, तो बीजेपी एक बड़ा सामाजिक गठजोड़ बनाने में कामयाब होगी. ऐसे में उसका वोट बेस विधान सभा चुनावों के मुकाबले काफी बड़ा होगा.