55 सीटें, बहुत होतीं हैं लेकिन क्या भाजपा इनमें से आधी भी हासिल कर पाएगी???
नई दिल्ली:
राज्यसभा (Rajya Sabha) की 55 सीटों के लिए 26 मार्च को चुनाव होना है. इस चुनाव में भाजपा के कई बड़े नेता राज्यसभा के रास्ते संसद पहुंचने की जुगत में हैं. नेताओं में बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और झारखंड से राज्यसभा पहुंचने की होड़ सबसे ज्यादा है. इन राज्यों से कई पूर्व मुख्यमंत्री भी इस बार राज्यसभा जाने की कतार में खड़े हैं. छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रमन सिंह, मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास और मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती भी राज्यसभा की रेस में है. इसे लेकर भाजपा में लॉबिंग शुरू हो गई है, लेकिन भाजपा नामांकन से एक-दो दिन पहले यानी कि 11 मार्च के आस-पास उम्मीदवारों की लिस्ट जारी करेगी. 13 मार्च नामांकन की आखिरी तारीख है.
इन नामों की हो रही चर्चा
हालांकि सूत्र बताते हैं कि मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को अभी फिलहाल राज्य में अपनी पार्टी की सरकार की वापसी की संभावना दिख रही है, इसलिए उनकी इच्छा केंद्र में आने की नहीं है. लेकिन पार्टी सूत्रों के मुताबिक ये भी तय है कि अगर पार्टी ने फैसला ले लिया तो देवेंद्र फडणवीस, शिवराज सिंह चौहान और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास राज्यसभा पहुंचेंगे.
इसके अलावा भाजपा के कई बड़े नेता राज्यसभा में फिर से वापसी चाहते हैं. इसके लिए वे लगातार पार्टी नेताओं से संपर्क में हैं. मध्य प्रदेश से राज्यसभा सांसद प्रभात झा फिर से राज्यसभा में आना चाहते हैं. इसके अलावा मध्य प्रदेश से ही भाजपा के तेजतर्रार महासचिव राम माधव को भी राज्यसभा में लाए जाने की चर्चा है.
पूर्व केंद्रीय मंत्री और दिल्ली के नेता विजय गोयल का भी राजस्थान से राज्यसभा का कार्यकाल खत्म हो रहा है. वे भी दोबारा राज्यसभा में आने के लिए जोर लगा रहे हैं. हालांकि, खबरों के मुताबिक राजस्थान से राज्यसभा के 3 सांसद जो रिटायर हो रहे हैं उनमें से किसी की भी वापसी राज्यसभा में नहीं होगी. ओडिशा में राज्य सभा की तीन सीटों में से बीजू जनता दल को दो और भाजपा को एक सीट मिलनी है. ओडिशा से भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विजयंत पांडा को राज्यसभा भेजा जा सकता है. ओडिशा में एक सीट पर भाजपा को विजय मिलेगी, जिसमें पार्टी को बीजू जनता दल से सहयोग लेना पड़ेगा. महाराष्ट्र से भी भाजपा को 2 सीटें मिल रही हैं, जिसमें देवेंद्र फडणवीस के नाम की चर्चा है. वहीं दूसरी सीट केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले को जा सकती है.
बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री और अमित शाह दोनों ही अठावले को राज्यसभा में लाना चाहते हैं. भाजपा के एक महामंत्री का कहना है कि, इस मुद्दे पर अभी पार्टी में कोई चर्चा नहीं हुई है. अंतिम फैसला तो भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं को ही करना है.
बिहार में जदयू और भाजपा गठबंधन को राज्य सभा चुनाव में तीन सीट मिलने की उम्मीद है. बिहार से सीपी ठाकुर और वयोवृद्ध नेता आरके सिन्हा फिर से दावेदारी पेश कर रहे हैं. लेकिन इन दोनों की वापसी की संभावना नहीं दिखती है. बिहार में भाजपा नया चेहरा ला सकती है. यह भी हो सकता है कि केंद्र की राजनीति में रसूख रखने वाले बिहारी नेताओं को इस बार राज्यसभा में जाने का मौका मिले.
तृणमूल कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए मुकुल रॉय भी लंबे समय से राज्यसभा जाने का इंतजार कर रहे हैं. पश्चिमी बंगाल में पांच राज्यसभा सीटों पर चुनाव होने वाला है. लेकिन राज्य विधानसभा की गणित की वजह से इन सभी सीटों पर तृणमूल के उम्मीदवार ही विजयी होंगे. लिहाजा मुकुल रॉय को अभी और भी इंतजार करना होगा.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2020/03/bjp-parliamentary-party-meeting_b9241648-0a2f-11e8-ba67-a8387f729390.jpg542960Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2020-03-05 15:05:292020-03-05 15:07:03राज्य सभा की 55 सीटों के लिए दंगल शुरू
राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा कहाँ हैं? वास्तविक रूप में इनके हाथ में संविधान है, दिल में वारिस पठान है, आज ये स्पष्ट हो गया है, क्योंकि इनमें से एक भी व्यक्ति निकलकर कोई वारिस पठान पर सफाई नहीं मांग रहा है. संबित पात्रा ने कहा, “जब मंच के पीछे पाकिस्तान को ऑक्सीजन देने की बात होती है, और मंच के आगे संविधान और तिरंगा पकड़ने का नाटक किया जाता है, तो कभी-कभी हकीकत मुंह से निकल जाती है.”
चंडीगढ़ :
नागरिकता संशोधन के खिलाफ लड़ाई ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ तक पहुंच गई है. जो लड़ाई जिन्ना वाली आजादी से शुरू हुई थी वो चिकन नेक काटने से होते हुए छीन कर लेंगे आजादी के बाद अब पाकिस्तान जिंदाबाद तक पहुंच गई है. मंच भी वही था जहां से 15 करोड़ वाली धमकी दी गई थी, जहां से हिंदुओं को हिलाने की धमकी दी गई थी. जहां से 15 करोड़ को 100 करोड़ वाला दंगा प्लान बताया गया था उसी मंच के पाकिस्तान जिंदाबाद का वायरस मुल्क में फैलाने की कोशिश की गई. सवाल ये है कि ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ वाला वायरस हिदुस्तान में कब तक बर्दाश्त करेगा.
हालांकि, ओवैसी ने तुरंत मंच पर ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ कहने वाली लड़की को रोका लेकिन सवाल अभी भी वहीं बना हुआ है. देशद्रोह के लिए जिस मंच से उकसाया और भड़काया जाएगा, उस मंच से ऐसी ही चीजें निकलकर आना स्वाभाविक है. बीजेपी ने आरोप लगाया है कि मंच के पीछे पाकिस्तान को ऑक्सीजन दी जाती है, इसलिए तिरंगे और देशभक्ति वाली एक्टिंग ज्यादा समय तक नहीं चल पाई और सच्चाई सामने आ गई.
बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “कहां हैं राहुल गांधी? कहां हैं प्रियंका जी? वास्तविक रूप में इनके हाथ में संविधान है, दिल में वारिस पठान है, आज ये स्पष्ट हो गया है, क्योंकि इनमें से एक भी व्यक्ति निकलकर कोई वारिस पठान पर सफाई नहीं मांग रहा है. पात्रा ने कहा, “जब मंच के पीछे पाकिस्तान को ऑक्सीजन देने की बात होती है, और मंच के आगे संविधान और तिरंगा पकड़ने का नाटक किया जाता है, तो कभी-कभी हकीकत मुंह से निकल जाती है.”
उधर, कांग्रेस नेता हुसैन दलवई का कहना है कि जिन्ना इस तरह से ही बातें करते थे और उनको इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि इस देश में जिन्ना अभी पैदा नहीं होगा. ना जिन्ना को हिंदू मानेगा ना मुसलमान मानेगा. केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “जो लोग देशद्रोही नारे लगा रहे हैं, क्योंकि उनको कुछ राजनीतिक पार्टियों का समर्थन मिल रहा है.” शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत का कहना है कि आपके मंच पर ऐसी व्यक्ति आती है और नारे देती है उसका मतलब आपने इस देश में ज़हर घोल दिया है.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2020/02/Amulya-Bengaluru.jpg500700Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2020-02-21 14:30:072020-02-21 14:32:07पहले 15 करोड़ अब ‘पाकिस्तान ज़िंदाबाद’ AIMIM हर कदम बे-नकाब होती हुई
भारत में अवैध घुसपैठिए से किसको फायदा हो रहा है, ये घुसपैठिए किसके वोट बैंक बने हुए हैं। अभी हाल में पश्चिम बंगाल में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने दावा किया कि बंगाल में तकरीबन 50 लाख मुस्लिम घुसपैठिए हैं, जिनकी पहचान की जानी है और उन्हें देश से बाहर किया जाएगा। बीजेपी नेता के दावे में अगर सच्चाई है तो पश्चिम बंगाल में मौजूद 50 घुसपैठियों का नाम अगर मतदाता सूची से हटा दिया गया तो सबसे अधिक नुकसान किसी का होगा तो वो पार्टी होगी टीएमसी को होगा, जो एनआरसी का सबसे अधिक विरोध कर रही है और एनआरसी के लिए मरने और मारने पर उतारू हैं।
नयी दिल्ली
असम एनआरसी के बाद पूरे भारत में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) बनाने की कवायद भले ही अभी पाइपलाइन में हो और इसका विरोध शुरू हो गया है, लेकिन क्या आपको मालूम है कि भारत के सरहद से सटे लगभग सभी पड़ोसी मुल्क मसलन पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका जैसे देशों में नागरिकता रजिस्टर कानून है।
पाकिस्तान में नागरिकता रजिस्टर को CNIC, अफगानिस्तान में E-Tazkira,बांग्लादेश में NID, नेपाल में राष्ट्रीय पहचानपत्र और श्रीलंका में NIC के नाम से जाना जाता है। सवाल है कि आखिर भारत में ही क्यों राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC)कानून बनाने को लेकर बवाल हो रहा है। यह इसलिए भी लाजिमी है, क्योंकि आजादी के 73वें वर्ष में भी भारत के नागरिकों को रजिस्टर करने की कवायद क्यों नहीं शुरू की गई। क्या भारत धर्मशाला है, जहां किसी भी देश का नागरिक मुंह उठाए बॉर्डर पार करके दाखिल हो जाता है या दाखिल कराया जा रहा है।
भारत में अवैध घुसपैठिए से किसको फायदा हो रहा है, ये घुसपैठिए किसके वोट बैंक बने हुए हैं। अभी हाल में पश्चिम बंगाल में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने दावा किया कि बंगाल में तकरीबन 50 लाख मुस्लिम घुसपैठिए हैं, जिनकी पहचान की जानी है और उन्हें देश से बाहर किया जाएगा। बीजेपी नेता के दावे में अगर सच्चाई है तो पश्चिम बंगाल में मौजूद 50 घुसपैठियों का नाम अगर मतदाता सूची से हटा दिया गया तो सबसे अधिक नुकसान किसी का होगा तो वो पार्टी होगी टीएमसी को होगा, जो एनआरसी का सबसे अधिक विरोध कर रही है और एनआरसी के लिए मरने और मारने पर उतारू हैं।
बीजेपी नेता के मुताबिक अगर पश्चिम बंगाल से 50 लाख घुसैपठियों को नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया तो टीएमसी प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के वोट प्रदेश में कम हो जाएगा और आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कम से कम 200 सीटें मिलेंगी और टीएमसी 50 सीटों पर सिमट जाएगी। बीजेपी नेता दावा राजनीतिक भी हो सकता है, लेकिन आंकड़ों पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि उनका दावा सही पाया गया है और असम के बाद पश्चिम बंगाल दूसरा ऐसा प्रदेश है, जहां सर्वाधिक संख्या में अवैध घुसपैठिए डेरा जमाया हुआ है, जिन्हें पहले पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकारों ने वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया।
ममता बनर्जी अब भारत में अवैध रूप से घुसे घुसपैठियों का पालन-पोषण वोट बैंक के तौर पर कर रही हैं। वर्ष 2005 में जब पश्चिम बंगला में वामपंथी सरकार थी जब ममता बनर्जी ने कहा था कि पश्चिम बंगाल में घुसपैठ आपदा बन गया है और वोटर लिस्ट में बांग्लादेशी नागरिक भी शामिल हो गए हैं। दिवंगत अरुण जेटली ने ममता बनर्जी के उस बयान को री-ट्वीट भी किया, जिसमें उन्होंने लिखा, ‘4 अगस्त 2005 को ममता बनर्जी ने लोकसभा में कहा था कि बंगाल में घुसपैठ आपदा बन गया है, लेकिन वर्तमान में पश्चिम बंगाल में वही घुसपैठिए ममता बनर्जी को जान से प्यारे हो गए है।
क्योंकि उनके एकमुश्त वोट से प्रदेश में टीएमसी लगातार तीन बार प्रदेश में सत्ता का सुख भोग रही है। शायद यही वजह है कि एनआरसी को लेकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सबसे अधिक मुखर है, क्योंकि एनआरसी लागू हुआ तो कथित 50 लाख घुसपैठिए को बाहर कर दिया जाएगा। गौरतलब है असम इकलौता राज्य है जहां नेशनल सिटीजन रजिस्टर लागू किया गया। सरकार की यह कवायद असम में अवैध रूप से रह रहे अवैध घुसपैठिए का बाहर निकालने के लिए किया था। एक अनुमान के मुताबिक असम में करीब 50 लाख बांग्लादेशी गैरकानूनी तरीके से रह रहे हैं। यह किसी भी राष्ट्र में गैरकानूनी तरीके से रह रहे किसी एक देश के प्रवासियों की सबसे बड़ी संख्या थी।
दिलचस्प बात यह है कि असम में कुल सात बार एनआरसी जारी करने की कोशिशें हुईं, लेकिन राजनीतिक कारणों से यह नहीं हो सका। याद कीजिए, असम में सबसे अधिक बार कांग्रेस सत्ता में रही है और वर्ष 2016 विधानसभा चुनाव में बीजेपी पहली बार असम की सत्ता में काबिज हुई है। दरअसल, 80 के दशक में असम में अवैध घुसपैठिओं को असम से बाहर करने के लिए छात्रों ने आंदोलन किया था। इसके बाद असम गण परिषद और तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के बीच समझौता हुआ। समझौते में कहा गया कि 1971 तक जो भी बांग्लादेशी असम में घुसे, उन्हें नागरिकता दी जाएगी और बाकी को निर्वासित किया जाएगा।
लेकिन इसे अमल में नहीं लाया जा सका और वर्ष 2013 में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। अंत में अदालती आदेश के बाद असम एनआरसी की लिस्ट जारी की गई। असम की राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर सूची में कुल तीन करोड़ से अधिक लोग शामिल होने के योग्य पाए गए जबकि 50 लाख लोग अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाए, जिनमें हिंदू और मुस्लिम दोनों शामिल हैं। सवाल सीधा है कि जब देश में अवैध घुसपैठिए की पहचान होनी जरूरी है तो एनआरसी का विरोध क्यूं हो रहा है, इसका सीधा मतलब राजनीतिक है, जिन्हें राजनीतिक पार्टियों से सत्ता तक पहुंचने के लिए सीढ़ी बनाकर वर्षों से इस्तेमाल करती आ रही है। शायद यही कारण है कि भारत में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर जैसे कानून की कवायद को कम तवज्जो दिया गया।
असम में एनआरसी सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद संपन्न कराया जा सका और जब एनआरसी जारी हुआ तो 50 लाख लोग नागरिकता साबित करने में असमर्थ पाए गए। जरूरी नहीं है कि जो नागरिकता साबित नहीं कर पाए है वो सभी घुसपैठिए हो, यही कारण है कि असम एनआरसी के परिपेच्छ में पूरे देश में एनआरसी लागू करने का विरोध हो रहा है। लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि भारत में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर नहीं होना चाहिए। भारत में अभी एनआरसी पाइपलाइन का हिस्सा है, जिसकी अभी ड्राफ्टिंग होनी है। फिलहाल सीएए के विरोध को देखते हुए मोदी सरकार ने एनआरसी को पीछे ढकेल दिया है।
पूरे देश में एनआरसी के प्रतिबद्ध केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कह चुके हैं कि 2024 तक देश के सभी घुसपैठियों को बाहर कर दिया जाएगा। संभवतः गृहमंत्री शाह पूरे देश में एनआरसी लागू करने की ओर इशारा कर रहे थे। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि देश के विकास के लिए बनाए जाने वाल पैमाने के लिए यह जानना जरूरी है कि भारत में नागरिकों की संख्या कितनी है। पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में, वहां के सभी वयस्क नागरिकों को 18 वर्ष की आयु तक पहुंचने पर एक यूनिक संख्या के साथ कम्प्यूटरीकृत राष्ट्रीय पहचान पत्र (CNIC) के लिए पंजीकरण करना होता है। यह पाकिस्तान के नागरिक के रूप में किसी व्यक्ति की पहचान को प्रमाणित करने के लिए एक पहचान दस्तावेज के रूप में कार्य करता है।
इसी तरह पड़ोसी मुल्क अफगानिस्तान में भी इलेक्ट्रॉनिक अफगान पहचान पत्र (e-Tazkira) वहां के सभी नागरिकों के लिए जारी एक राष्ट्रीय पहचान दस्तावेज है, जो अफगानी नागरिकों की पहचान, निवास और नागरिकता का प्रमाण है। वहीं, पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश, जहां से भारत में अवैध घुसपैठिए के आने की अधिक आशंका है, वहां के नागरिकों के लिए बांग्लादेश सरकार ने राष्ट्रीय पहचान पत्र (NID) कार्ड है, जो प्रत्येक बांग्लादेशी नागरिक को 18 वर्ष की आयु में जारी करने के लिए एक अनिवार्य पहचान दस्तावेज है।
सरकार बांग्लादेश के सभी वयस्क नागरिकों को स्मार्ट एनआईडी कार्ड नि: शुल्क प्रदान करती है। जबकि पड़ोसी मुल्क नेपाल का राष्ट्रीय पहचान पत्र एक संघीय स्तर का पहचान पत्र है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति के लिए विशिष्ट पहचान संख्या है जो कि नेपाल के नागरिकों द्वारा उनके बायोमेट्रिक और जनसांख्यिकीय डेटा के आधार पर प्राप्त किया जा सकता है।
पड़ोसी मुल्क श्रीलंका में भी नेशनल आइडेंटिटी कार्ड (NIC) श्रीलंका में उपयोग होने वाला पहचान दस्तावेज है। यह सभी श्रीलंकाई नागरिकों के लिए अनिवार्य है, जो 16 वर्ष की आयु के हैं और अपने एनआईसी के लिए वृद्ध हैं, लेकिन एक भारत ही है, जो धर्मशाला की तरह खुला हुआ है और कोई भी कहीं से आकर यहां बस जाता है और राजनीतिक पार्टियों ने सत्ता के लिए उनका वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करती हैं। भारत में सर्वाधिक घुसपैठियों की संख्या असम, पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड में बताया जाता है।
भारत सरकार के बॉर्डर मैनेजमेंट टास्क फोर्स की वर्ष 2000 की रिपोर्ट के अनुसार 1.5 करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठ कर चुके हैं और लगभग तीन लाख प्रतिवर्ष घुसपैठ कर रहे हैं। हाल के अनुमान के मुताबिक देश में 4 करोड़ घुसपैठिये मौजूद हैं। पश्चिम बंगाल में वामपंथियों की सरकार ने वोटबैंक की राजनीति को साधने के लिए घुसपैठ की समस्या को विकराल रूप देने का काम किया। कहा जाता है कि तीन दशकों तक राज्य की राजनीति को चलाने वालों ने अपनी व्यक्तिगत राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कारण देश और राज्य को बारूद की ढेर पर बैठने को मजबूर कर दिया। उसके बाद राज्य की सत्ता में वापसी करने वाली ममता बनर्जी बांग्लादेशी घुसपैठियों के दम पर मुस्लिम वोटबैंक की सबसे बड़ी धुरंधर बन गईं।
भारत में नागरिकता से जुड़ा कानून क्या कहता है?
नागरिकता अधिनियम, 1955 में साफ तौर पर कहा गया है कि 26 जनवरी, 1950 या इसके बाद से लेकर 1 जुलाई, 1987 तक भारत में जन्म लेने वाला कोई व्यक्ति जन्म के आधार पर देश का नागरिक है। 1 जुलाई, 1987 को या इसके बाद, लेकिन नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2003 की शुरुआत से पहले जन्म लेने वाला और उसके माता-पिता में से कोई एक उसके जन्म के समय भारत का नागरिक हो, वह भारत का नागरिक होगा। नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2003 के लागू होने के बाद जन्म लेने वाला कोई व्यक्ति जिसके माता-पिता में से दोनों उसके जन्म के समय भारत के नागरिक हों, देश का नागरिक होगा। इस मामले में असम सिर्फ अपवाद था। 1985 के असम समझौते के मुताबिक, 24 मार्च, 1971 तक राज्य में आने वाले विदेशियों को भारत का नागरिक मानने का प्रावधान था। इस परिप्रेक्ष्य से देखने पर सिर्फ असम ऐसा राज्य था, जहां 24 मार्च, 1974 तक आए विदेशियों को भारत का नागरिक बनाने का प्रावधान था।
क्या है एनआरसी और क्या है इसका मकसद?
एनआरसी या नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन बिल का मकसद अवैध रूप से भारत में अवैध रूप से बसे घुसपैठियों को बाहर निकालना है। बता दें कि एनआरसी अभी केवल असम में ही पूरा हुआ है। जबकि देश के गृह मंत्री अमित शाह ये साफ कर चुके हैं कि एनआरसी को पूरे भारत में लागू किया जाएगा। सरकार यह स्पष्ट कर चुकी है कि एनआरसी का भारत के किसी धर्म के नागरिकों से कोई लेना देना नहीं है इसका मकसद केवल भारत से अवैध घुसपैठियों को बाहर निकालना है।
एनआरसी में शामिल होने के लिए क्या जरूरी है? एनआरसी के तहत भारत का नागरिक साबित करने के लिए किसी व्यक्ति को यह साबित करना होगा कि उसके पूर्वज 24 मार्च 1971 से पहले भारत आ गए थे। बता दें कि अवैध बांग्लादेशियों को निकालने के लिए इससे पहले असम में लागू किया गया है। अगले संसद सत्र में इसे पूरे देश में लागू करने का बिल लाया जा सकता है। पूरे भारत में लागू करने के लिए इसके लिए अलग जरूरतें और मसौदा होगा।
एनआरसी के लिए किन दस्तावेजों की जरूरत है?
भारत का वैध नागरिक साबित होने के लिए एक व्यक्ति के पास रिफ्यूजी रजिस्ट्रेशन, आधार कार्ड, जन्म का सर्टिफिकेट, एलआईसी पॉलिसी, सिटिजनशिप सर्टिफिकेट, पासपोर्ट, सरकार के द्वारा जारी किया लाइसेंस या सर्टिफिकेट में से कोई एक होना चाहिए। चूंकि सरकार पूरे देश में जो एनआरसी लाने की बात कर रही है, लेकिन उसके प्रावधान अभी तय नहीं हुए हैं। यह एनआरसी लाने में अभी सरकार को लंबी दूरी तय करनी पडे़गी। उसे एनआरसी का मसौदा तैयार कर संसद के दोनों सदनों से पारित करवाना होगा। फिर राष्ट्रपति के दस्तखत के बाद एनआरसी ऐक्ट अस्तित्व में आएगा। हालांकि, असम की एनआरसी लिस्ट में उन्हें ही जगह दी गई जिन्होंने साबित कर दिया कि वो या उनके पूर्वज 24 मार्च 1971 से पहले भारत आकर बस गए थे।
क्या NRC सिर्फ मुस्लिमों के लिए ही होगा?
किसी भी धर्म को मानने वाले भारतीय नागरिक को CAA या NRC से परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। एनआरसी का किसी धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। यह भारत के सभी नागरिकों के लिए होगा। यह नागरिकों का केवल एक रजिस्टर है, जिसमें देश के हर नागरिक को अपना नाम दर्ज कराना होगा।
क्या धार्मिक आधार पर लोगों को बाहर रखा जाएगा?
यह बिल्कुल भ्रामक बात है और गलत है। NRC किसी धर्म के बारे में बिल्कुल भी नहीं है। जब NRC लागू किया जाएगा, वह न तो धर्म के आधार पर लागू किया जाएगा और न ही उसे धर्म के आधार पर लागू किया जा सकता है। किसी को भी सिर्फ इस आधार पर बाहर नहीं किया जा सकता कि वह किसी विशेष धर्म को मानने वाला है।
NRC में शामिल न होने वाले लोगों का क्या होगा?
अगर कोई व्यक्ति एनआरसी में शामिल नहीं होता है तो उसे डिटेंशन सेंटर में ले जाया जाएगा जैसा कि असम में किया गया है। इसके बाद सरकार उन देशों से संपर्क करेगी जहां के वो नागरिक हैं। अगर सरकार द्वारा उपलब्ध कराए साक्ष्यों को दूसरे देशों की सरकार मान लेती है तो ऐसे अवैध प्रवासियों को वापस उनके देश भेज दिया जाएगा।
आभार, Shivom Gupta
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2020/01/nrcn-1578736214-1579523229.jpg338600Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2020-01-22 02:49:502020-01-22 02:49:53जब छोटे-छोटे पड़ोसी मुल्कों में हैं नागरिकता रजिस्टर कानून! भारत में ही NRC का विरोध क्यों?
‘आप वास्तव में सावरकर नहीं हैं. सच तो यह है कि तुम सच्चे गांधी भी नहीं हो.’ डायरेक्टर योगेश सोमन
काँग्रेस के दबाव में काम करना उद्धव ठाकरे की सावरकर व हिन्दू विरोध की राजनीति के आगे नतमस्त्क होना ही दर्शाता है। अब जब भी चुनाव होंगे तो वह अपना कौन सा चेहरा ले कर मैदान में कूदेंगे, प्रखर हिन्दू वादी का या फिर सौम्य छद्म सेकुलर का।
कभी बीजेपी के साथ सत्ता का सुख भोग रही शिवसेना सरकार में अपने सहयोगी दल कांग्रेस एनसीपी के हाथों कठपुतली बन चुकी है. यही वजह है कि वह ऐसे मामले पर खुलकर विरोध भी नहीं कर पा रही है. ठाकरे सरकार एक तरफ सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट के खिलाफ बोलने वालों को अच्छे-अच्छे पद बांट रही है तो वहीं दूसरी तरफ वो अब कांग्रेस एनसीपी के खिलाफ बोलने वालों पर ऐक्शन लेने के मूड में दिखाई दे रही है.
नयी दिल्ली(ब्यूरो):
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के बयान की निंदा करना मुंबई यूनिवर्सिटी में एकेडमी ऑफ आर्ट के डायरेक्टर योगेश सोमन को भारी पड़ा. योगेश सोमन ने वीर सावरकर को लेकर दिए राहुल गांधी के एक बयान की निंदा की थी. दरअसल राहुल गांधी ने झारखंड में चुनाव प्रचार के दौरान रेप की बढ़ती घटनाओं को लेकर रेप कैपिटल वाला बयान दिया था जिसके बाद बीजेपी और सहयोगी दलों ने मांग की थी कि राहुल गांधी इस बयान पर माफी मांगें.
माफी की मांग पर जवाब देते हुए राहुल गांधी ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा था, ‘मेरा नाम राहुल सावरकर नहीं, राहुल गांधी है. मैं माफी नहीं मांगूंगा.’ सावरकर को लेकर राहुल गांधी के इसी बयान पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए योगेश सोमन ने 14 दिसंबर को सोशल मीडिया पर अपना एक वीडियो पोस्ट किया था. इस वीडियो में सोमन ने कहा था कि, ‘आप वास्तव में सावरकर नहीं हैं. सच तो यह है कि तुम सच्चे गांधी भी नहीं हो.’
इस पोस्ट को लेकर कांग्रेस एवं वामदलों से जुड़े छात्र संगठन सोमन की बर्खास्तगी की मांग पर अड़े थे. आखिरकार महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे सरकार के गठन के बाद मुंबई यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर सुहास पेडेनकर ने राहुल गांधी के खिलाफ बयान करने पर योगेश सोमन को जबरन छुट्टी पर भेजने के अलावा इस मामले में एक जांच कमेटी का भी गठन किया. यह जांच कमेटी सोमन पर लगे तमाम आरोपों की जांच करेगी.
हालांकि इस पूरे विवाद पर योगेश सोमन ने जी मीडिया से अपना पक्ष रखते हुए कहा कि “पहले मैं सारे तथ्य जांच कमेटी के सामने रखूंगा और फिर मीडिया से बात करूंगा.” योगेश सोमन के खिलाफ इस कार्रवाई को बीजेपी ने दुर्भाग्यपूर्ण बताया. बीजेपी ने शिवसेना, कांग्रेस, एनसीपी से सवाल किया है कि योगेश सोमन के खिलाफ की गई कार्रवाई असहिष्णुता नहीं तो क्या है?
लेकिन राज्य सरकार इस कार्रवाई को सही ठहरा रही है. ठाकरे सरकार में कैबिनेट मंत्री नवाब मलिक ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार मे कार्यरत अधिकारी किसी दल या संगठन के विचार को प्रमोट करेंगे तो सरकार कठोर कार्रवाई करेगी. उसे सरकारी नौकरी छोड़नी पड़ेगी. इस पूरे मामले में सावरकर की विचारधारा में यकीन रखने वाली शिवसेना ने चुप्पी साध रखी है. जाहिर है कि कभी बीजेपी के साथ सत्ता का सुख भोग रही शिवसेना सरकार में अपने सहयोगी दल कांग्रेस एनसीपी के हाथों कठपुतली बन चुकी है. यही वजह है कि वह ऐसे मामले पर खुलकर विरोध भी नहीं कर पा रही है.
ठाकरे सरकार एक तरफ सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट के खिलाफ बोलने वालों को अच्छे-अच्छे पद बांट रही है तो वहीं दूसरी तरफ वो अब कांग्रेस एनसीपी के खिलाफ बोलने वालों पर ऐक्शन लेने के मूड में दिखाई दे रही है.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2020/01/डायरेक्टर-योगेश-सोमन.jpg168300Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2020-01-15 14:25:492020-01-15 14:28:34राहुल विरोध, एकेडमी ऑफ आर्ट के डायरेक्टर योगेश सोमन को भारी पड़ा, भेजे गए लंबी छुट्टी पर
विधानसभा चुनावाें में साल दर साल भाजपा से अलग हाेती गई सहयोगी दलों की राह 2005 में सहयोगी दल को 18, 2009 में 14, 2014 में 8 व 2019 में सीटाें पर नहीं हुआ समझाैता
प्रशांत किशोर ने बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर एक बड़ा बयान दिया है. पीके ने कहा है कि जेडीयू को बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए। यह भाजपा से किनारा करने के संकेत हैं, वैसे भी 2014 चुनाव जीतने के बाद ही से मोदी प्रशांत की दोस्ती में खटास आ चुकी है, यह नहीं बंगाल विजय का सपना देखने वाली भाजपा के लिए पीके और ममता की दोस्ती भी मुश्किल खड़ी कर सकती हैभाजपा ने यदि आपण रणनीति नहीं बदली तो सभी राज्य धीरे धीरे भाजपा मुक्त हो जाएँगे।
नयी दिल्ली(ब्यूरो):
जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और चर्चित रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर एक बड़ा बयान दिया है. प्रशांत किशोर ने कहा है कि जेडीयू को बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए. प्रशांत किशोर ने कहा है कि विधानसभा चुनावों में जेडीयू हमेशा से बीजेपी से बहुत बड़ी पार्टी रही है और इसी के आधार पर आगे भी रहेगी. प्रशांत किशोर ने कहा कि बिहार में जेडीयू हमेशा से बड़े भाई की भूमिका में रही है.
प्रशांत किशोर ने ये भी कहा कि विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के चेहरे पर लड़ा जाना चाहिए. इतना ही नहीं, जेडीयू उपाध्यक्ष ने साफ कर दिया कि बिहार में जेडीयू की सरकार है. बीजेपी उसकी सहयोगी पार्टी है.
प्रशांत किशोर ने कहा, ‘अगर 2010 के विधानसभा चुनाव को देखा जाए जिसमें जेडीयू और बीजेपी ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था तो यह अनुपात 1:1.4 था. अगर इसमें इस बार मामूली बदलाव भी हो, तो भी यह नहीं हो सकता कि दोनों दल समान सीटों पर चुनाव लड़ें. जेडीयू अपेक्षाकृत बड़ी पार्टी है जिसके करीब 70 विधायक हैं जबकि बीजेपी के पास करीब 50 विधायक हैं.
प्रशांत किशोर के बयान को जेडीयू ने सही ठहराया है. जेडीयू नेता श्याम रजक ने कहा है कि, आगामी विधानसभा चुनाव में जेडीयू की बड़ी भूमिका में होगी. हालांकि ये अभी तय नहीं हुआ है. उधर, बीजेपी नेता नंद किशोर यादव ने कहा कि प्रशांत किशोर कोई पार्टी के अधिकारी नहीं हैं. हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष ने साफ कर दिया है कि, हम बिहार में मिलकर चुनाव लड़ेंगे. इसके बाद कुछ कहने की जरूरत नहीं है.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/12/prashant-kishor-83_5.jpg450980Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-12-31 07:12:402019-12-31 07:12:42झारखंड और महराष्ट्र के बाद बिहार से विलुप्त हो सकती है भाजपा
नागरिकता बिल पर पिछले 5-6 दिनों से जो विनाश भारत में देखने को मिल रहा है वह सुनियोजित ढंग से फैलाया जा रहा है। पहले पहल हिंसक प्रदर्शन बंगाल में ममता बेनर्जी के संरक्षण में रेलवे सम्पत्तियों की तोड़फोड़ से शुरू हुआ जिसमें पुलिस अकर्मण्यता का बचाव ममता बेनर्जी ने यह कह कर किया की रेलवे संपत्तियाँ केंद्र की ज़िम्मेदारी हैं न की राज्य की। और फिर ममता खुद मैदान में उतर आई और केंद्र की सत्ता को ही मानने से इंकार करते हे सीधे संयुत राष्ट्र की देख रेख में जनमत संग्रह की मांग रख दी। अब बात करते हैं काँग्रेस की, दिल्ली में चल रहे शांति पूर्वक धरना प्रदर्शन के हिंसक होने से मात्र एक शाम पहले प्रियंका वाड्रा धरना स्थल पर जा कर अपना समर्थन देने की बात कहतीं हैं और अगले ही दिन शांत छात्र प्रदर्शन हिंसक से विनाशक हो जाता है। सारे प्रकरण में एक बात साफ है की केवल मुस्लिम बहुल इलाके ही में हिंसक प्रदर्शन हुए। अब एक दूसरी बात, भाजपा शासित प्रदेश ही हिंसक प्रदर्शनों की चपेट में हैं, छतीसगढ़, राजस्थान, मध्यप्रदेश या फिर पंजाब जहां कांग्रेस का शासन है, वहाँ के नागरिकों को इस बिल से कोई परेशानी नहीं है यही वह राज्य हैं जहां इस मामले में पूर्ण शांति है। और तो और काश्मीर भी शांत है। इससे इस सारे फसाद में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष काँग्रेस का हाथ होने की संभावना अधिक जान पड़ती है :- चाचा चंडीगढ़िया
सतर्कता के रूप में, इलाके में पुलिस बंदोबस्त भी तैनात किया गया है. अहमदाबाद के लाल दरवाजा सिटी कॉलेज के सामने से बिल का विरोध कर रहे 5 छात्रों को हिरासत में लिया गया है. सभी पांच छात्र एनएसयूआई के कार्यकर्ता है. लाल दरवाजा और सीटी इलाकों में पुलिस का कड़ा बंदोबस्त किया गया है.
दिल्ली(ब्यूरो):
नागरिकता बिल पर गुजरात के बनासकांठा में प्रदर्शनकारियों ने जमकर उत्पात मचाया. पुलिसवालों की गाड़ियों को घर लिया. उसे हिलाया. गुस्से में प्रदर्शनकारी ने गाड़ी को धक्का दिया और उसे गिराने की कोशिश की. एक और वीडियो अहमदाबाद का सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है जिसमें प्रदर्शनकारी पुलिसकर्मियों से मारपीट कर रहे हैं.
इतनी ही नहीं, गुजरात के कई जिलों में नागरिकता कानून को लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहा है. वड़ोदरा में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता और नेताओ द्वारा नागरिकता कानून के विरोध में प्रदर्शन किया गया है लेकिन खुद पार्टी प्रमुख विनोद शाह को इस बिल के बारे में जानकारी नहीं है. मीडिया ने जब उनसे CAA को लेकर सवाल किया तो उन्होंने कहा की मुझे बिल के बारे में कोई जानकारी नहीं है. वडोदरा के मांडवी इलाके में भी नागरिकता बिल के खिलाफ विरोध देखा गया. मांडवी इलाके में व्यापारियों ने बंद का एलान किया है. व्यापारियों ने इलाके की तमाम दुकाने बंद कर अपना विरोध दिखाया है. वही अन्य क्षेत्रों में बंद का कोई असर नहीं देखा गया है.
अहमदाबाद की बात करें तो वह भी नागरिकता बिल का विरोध किया गया है. विरोध के चलते शहर के ढालगरवाड और त्रण दरवाजा इलाके को संपूर्ण रूप से बंद कर दिया गया है. व्यापारियों द्वारा सम्पूर्ण तोर पर दुकाने बंद की गई हैं. सतर्कता के रूप में, इलाके में पुलिस बंदोबस्त भी तैनात किया गया है. अहमदाबाद के लाल दरवाजा सिटी कॉलेज के सामने से बिल का विरोध कर रहे 5 छात्रों को हिरासत में लिया गया है. सभी पांच छात्र एनएसयूआई के कार्यकर्ता है. लाल दरवाजा और सीटी इलाकों में पुलिस का कड़ा बंदोबस्त किया गया है.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/12/gujarat-protest.jpg363647Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-12-19 17:23:452019-12-19 17:55:13गुजरात में CAA के विरोध में की गई तोड़फोड़, NSUI के 5 कार्यकर्ता गिरफ्तार
नई दिल्ली/रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान सुबह 7 बजे से जारी है. चुनाव नक्सल प्रभावित 6 जिलों की 13 विधानसभा सीटों पर हो रहा है, लिहाजा सुरक्षा की दृष्टि से मतदान प्रकिया दोपहर 3 बजे तक ही चलेगी. मतदान प्रकिया में भाग लेने के लिए सुबह से पोलिंग बूथों पर लोग कतार में लगे देखे गए.
सुबह 7.17 बजे चतरा के पोलिंग बूथ संख्या 472 पर अच्छी संख्या में मतदाता वोट डालने के लिए आए.
गुमला बिशनपुर विधानसभा क्षेत्र में मतदान जारी है. यहां के मतदाताओं में उत्साह देखा जा रहा है. इस विधानसभा सीट पर मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी प्रत्याशी अशोक उरांव और झामुमो प्रत्याशी और वर्तमान विधायक चमरा लिंडा के बीच है.
सुबह 7 बजे लोहरदगा के एक पोलिंग बूथ पर मतदाता लाइन में लगे देखे गए.
मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के अनुसार, पहले चरण में 6 जिलों के 13 विधानसभा सीटों पर 189 अभ्यर्थियों के बीच मुकाबला है, जिसमें 174 पुरुष और 15 महिला अभ्यर्थी हैं. चुनाव में कुल 3783055 मतदाता अपने मत का प्रयोग करेंगे. मतदान के लिए 4892 केंद्र बनाए हैं. दिव्यांग मतदाताओं की संख्या 49007 है.
सबसे अधिक 28 उम्मीदवार भवनाथपुर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. पहले चरण के चुनावी मैदान में खड़े प्रमुख उम्मीदवार स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव और पूर्व मंत्री भाजपा नेता भानुप्रताप शाही शामिल हैं.
प्रथम चरण में 8199 बैलट यूनिट, 6117 कंट्रोल यूनिट और उतनी ही वीवीपैट मीशनों का मतदान प्रक्रिया में इस्तेमाल हो रहा है. सभी मतदान केंद्रों में 1262 वेबकास्टिंग का व्यवस्था कर रखी है. पहले चरण में 121 महिला बनाए गए हैं, जिन्हें महिलाओं द्वारा संचालित किया जा रहा है. वहीं, 417 आदर्श मतदान केंद्र भी बनाए गए हैं. वहीं, 80 साल से ज्यादा आयु के कुल मतदाताओं की संख्या 43836 है.
इन विधानसभा क्षेत्रों में वोट डाले जा रहे हैं : चतरा, गुमला, विशुनपुर, लोहरदगा, मनिका, लातेहार, पांकी, डाल्टेनगंज, विश्रामपुर, छतरपुर, हुसैनाबाद, गढ़वा और भवनाथपुर
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/11/assembly-Election.jpg387511Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-11-30 03:25:232019-11-30 03:25:26झारखंड विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान सुबह 7 बजे से जारी
छठ पूजा सूर्य, उषा, प्रकृति,जल, वायु और उनकी बहन छठी मइया को समर्पित है ताकि उन्हें पृथ्वी पर जीवन की देवतायों को बहाल करने के लिए धन्यवाद और कुछ शुभकामनाएं देने का अनुरोध किया जाए। छठ में कोई मूर्तिपूजा शामिल नहीं है। त्यौहार के अनुष्ठान कठोर हैं और चार दिनों की अवधि में मनाए जाते हैं।
हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी से सप्तमी तिथि तक छठ महाव्रत मनाया जाता है। इसमें भगवान सूर्यदेव की पूजा होती है। इस बार छठ पूजा 13 नवंबर, 2018 को है। छठ व्रत खासतौर पर पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है।
छठ पर छठी मैया के जयकारे के साथ आराधना की जाती है। बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश राज्यों में यह प्रमुख तौर पर मनाया जाता है…
छठ व्रत कथा
दिवाली के 6 दिन बाद छठ मनाया जाता है। छठ के महाव्रत को करना अत्यंत पुण्यदायक है। छठ व्रत सबसे महत्त्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि को होता है। सूर्योपासना का यह महापर्व चार दिनों तक मनाया जाता है। छठ पर्व के लिए कई कथाएं प्रचलित हैं, किन्तु पौराणिक शास्त्रों में इसे देवी द्रोपदी से जौड़कर देखा जाता है। मान्यता है कि जब पांडव जुए में अपना सारा राजपाट हार गए, तब द्रौपदी ने छठ का व्रत रखा था। द्रोपदी के व्रत के फल से पांडवों को अपना राजपाट वापस मिल गया था। इसी तरह छठ का व्रत करने से लोगों के घरों में समृद्धि और सुख आता है। छठ मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश सहित कई क्षेत्रों में छठ का महत्व है।
छठ पूजा या सूर्य षष्ठी या छठ व्रत में सूर्य भगवान की पूजा होती है और धरती पर लोगों के सुखी जीवन के लिए सूर्य देव के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है। सूर्य देव को ऊर्जा और जीवन शक्ति का देवता माना जाता है। इसलिए छठ पर्व पर समृद्धि के लिए पूजा की जाती है।
सूर्य की पूजा से विभिन्न बीमारियों का इलाज संभव है। सूर्य पूजा के साथ स्नान किया जाता है। इससे कुष्ठ रोग जैसी गंभीर रोग भी दूर हो जाते हैं। छठ पर्व परिवार के सदस्यों और मित्रों की लंबी उम्र और समृद्धि के लिए भी मनाया जाता है।
छठ व्रत पूजा विधि
छठ देवी भगवान सूर्यदेव की बहन हैं। जिनकी पूजा के लिए छठ मनाया जाता है। छठी मैया को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना की जाती है। छठी मैया का ध्यान करते हुए लोग मां गंगा-यमुना या किसी नदी के किनारे इस पूजा को मनाते हैं। इसमें सूर्य की पूजा अनिवार्य है साथ ही किसी नदी में स्नान करना भी।इस पर्व में पहले दिन घर की साफ सफाई की जाती है। छठ पर्व पर गांवों में अधिक सफाई देखने को मिलती है। छठ के चार दिनों तक शुद्ध शाकाहारी भोजन किया जाता है, दूसरे दिन खरना का कार्यक्रम होता है, तीसरे दिन भगवान सूर्य को संध्या अर्घ्य दिया जाता है और चौथे दिन भक्त उदियमान सूर्य को उषा अर्घ्य देते हैं। छठ के दिन अगर कोई व्यक्ति व्रत को करता है तो वह अत्यंत शुभ और मंगलकारी होता है। पूरे भक्तिभाव और विधि विधान से छठ व्रत करने वाला व्यक्ति सुखी और साधनसंपन्न होता है। साथ ही निःसंतानों को संतान प्राप्ति होती है।
छठ अनुष्ठान विधि
छठ के दिन सूर्योदय में उठना चाहिए। व्यक्ति को अपने घर के पास एक झील, तालाब या नदी में स्नान करना चाहिए। स्नान करने के बाद नदी के किनारे खड़े होकर सूर्योदय के समय सूर्य देवता को नमन करें और विधिवत पूजा करें। शुद्ध घी का दीपक जलाएं और सूर्य को धुप और फूल अर्पण करें।
छठ पूजा में सात प्रकार के फूल, चावल, चंदन, तिल आदि से युक्त जल को सूर्य को अर्पण करें। सर झुका कर प्रार्थना करते हुए
ॐ घृणिं सूर्याय नमः, ॐ घृणिं सूर्य: आदित्य:, ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय, सहस्त्रकिरणाय मनोवांछित फलं देहि देहि स्वाहा, या फिर ॐ सूर्याय नमः 108 बार बोलें।
अपनी सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन कराएं।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/11/The_origin.jpg400570Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-11-03 07:01:532019-11-03 12:53:58छठ पूजा 2019 भव्यता के साथ संपन्न
इतिहास के पटल पर आज 31 अक्तूबर का दिन खास तौर पर दर्ज़ हो गया जब आज आधी रात से जम्मू कश्मीर का राज्य के रूप में अस्तित्व समाप्त हो गया ।
यह पहला मौका है जब एक राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में
बदल दिया गया हो। आज आधी रात से फैसला लागू होते ही देश में राज्यों की संख्या 28 और केंद्र शासित प्रदेशों
की संख्या नौ हो गई है।
आज जी सी मुर्मू और आर के माथुर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के प्रथम उपराज्यपाल के तौर पर बृहस्पतिवार को शपथ लेंगे।
श्रीनगर और
लेह में दो अलग-अलग शपथ ग्रहण समारोहों का आयोजन किया जाएगा। जम्मू-कश्मीर हाई
कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल दोनों को शपथ दिलाएंगी।
सरकार ने अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को दिए
गए विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में
बांटने का फैसला किया था, जिसे संसद ने अपनी मंजूरी दी। इसे लेकर देश में खूब सियासी
घमासान भी मचा।
भाजपा ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में जम्मू-कश्मीर को दिया गया विशेष राज्य का
दर्जा खत्म करने की बात कही थी और मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के 90 दिनों के भीतर ही इस वादे
को पूरा कर दिया। इस बारे में पांच अगस्त को फैसला किया गया।
सरदार पटेल की
जयंती पर बना नया इतिहास
सरदार पटेल को देश की 560 से अधिक रियासतों का भारत संघ में विलय का श्रेय है। इसीलिए उनके जन्मदिवस को ही इस जम्मू कश्मीर के विशेष अस्तित्व को समाप्त करने के लिए चुना गया। देश में 31 अक्टूबर का दिन राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाएगा। आज पीएम मोदी गुजरात के केवडिया में और अमित शाह दिल्ली में अगल-अलग कार्यक्रमों में शिरकत करेंगे। कश्मीर का राज्य के रूप में अस्तित्व समाप्त हो गया। इसके साथ ही दो केंद्रशासित प्रदेशों का दर्जा मध्यरात्रि से प्रभावी हो गया है। नए केंद्र शासित प्रदेश के रूप में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख अस्तित्व में आए हैं।
जम्मू और कश्मीर में आतंकियों की बौखलाहट एक बार फिर सामने आई है. आतंकियों ने
कुलगाम में हमला किया है, जिसमें 5 मजदूरों की मौत हो गई है. जबकि एक घायल है. मारे गए सभी मजदूर कश्मीर से बाहर
के हैं. जम्मू और कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद से घाटी में ये सबसे बड़ा आतंकी हमला है. आतंकियों की
कायराना हरकत से साफ है कि वे कश्मीर पर मोदी सरकार के फैसले से बौखलाए हुए हैं और
लगातार आम नागरिकों को निशाना बना रहे हैं.
जम्मू और कश्मीर पुलिस ने कहा कि सुरक्षा बलों
ने इस इलाके की घेराबंदी कर ली है और बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान चल रहा है.
अतिरिक्त सुरक्षा बलों को बुलाया गया है. माना जा रहा है कि मारे गए मजदूर पश्चिम
बंगाल के थे.
ये हमला ऐसे समय हुआ है जब यूरोपियन यूनियन के 28 सांसद कश्मीर के दौरे पर हैं. सांसदों के दौरे
के कारण घाटी में सुरक्षा काफी कड़ी है. इसके बावजूद आतंकी बौखलाहट में किसी ना
किसी वारदात को अंजाम दे रहे हैं. डेलिगेशन के दौरे के बीच ही श्रीनगर और दक्षिण
कश्मीर के कुछ इलाकों में पत्थरबाजी की घटनाएं सामने आईं.
जम्मू एवं से अनुच्छेद-370 हटने के बाद यूरोपीय संघ के 27 सांसदों के कश्मीर
दौरे को लेकर कांग्रेस सहित विपक्षी दलों द्वारा सवाल उठाने पर भारतीय जनता पार्टी
ने जवाब दिया है. पार्टी का कहना है कि कश्मीर जाने पर अब किसी तरह की रोक नहीं
है. देसी-विदेशी सभी पर्यटकों के लिए कश्मीर को खोल दिया गया है, और ऐसे में विदेशी
सांसदों के दौरे को लेकर सवाल उठाने का कोई मतलब नहीं है.
भाजपा प्रवक्ता शहनवाज हुसैन ने कहा, ‘कश्मीर जाना है तो
कांग्रेस वाले सुबह की फ्लाइट पकड़कर चले जाएं. गुलमर्ग जाएं, अनंतनाग जाएं, सैर करें, घूमें-टहलें. किसने
उन्हें रोका है? अब तो आम पर्यटकों के लिए भी कश्मीर को खोल दिया गया है.’शहनवाज हुसैन ने कहा कि जब कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटा था, तब शांति-व्यवस्था के लिए एहतियातन कुछ कदम जरूर
उठाए गए थे, मगर हालात सामान्य होते ही सब रोक हटा ली गई.
उन्होंने कहा, ‘अब हमारे पास कुछ छिपाने को नहीं, सिर्फ दिखाने को है.’
भाजपा प्रवक्ता ने कहा, ‘जब कश्मीर
में तनाव फैलने की आशंका थी, तब बाबा बर्फानी के दर्शन को
भी तो रोक दिया गया था. यूरोपीय संघ के सांसद कश्मीर जाना चाहते थे. वे पीएम मोदी
से मिले तो अनुमति दी गई. कश्मीर को जब आम पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है तो
विदेशी सांसदों के जाने पर हायतौबा क्यों? विदेशी
सांसदों के प्रतिनिधिमंडल के कश्मीर जाने से पाकिस्तान का ही दुष्प्रचार खत्म
होगा.’
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/06/jammudivision.jpg711831Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-10-30 23:52:292019-10-30 23:52:32अब देश में होंगे 28 राज्य और 9 केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर अब राज्य नहीं
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई नवंबर की 17 तारीख को रिटाइर हो
रहे हैं उन्हें छह महत्त्वपूर्ण मामलों में फैसला सुनाना है। सुप्रीम कोर्ट में
इस समय दिवाली की छुट्टियां चल रही हैं और छुट्टियों के बाद अब काम 4 नवंबर को शुरू होगा।
अयोध्या बाबरी मस्जिद मामला, राफल समीक्षा मामला , राहुल पर अवमानना मामला, साबरिमाला , मुख्य न्यायाधीश पर यौन उत्पीड़न का मामला
और आर टी आई अधिनियम पर फैसले आने हैं।
अयोध्या-बाबरी मस्जिद का मामला इन सभी
मामलों में सर्वाधिक चर्चित है अयोध्या-बाबरी मस्जिद का मामला। पांच जजों की
संवैधानिक पीठ इस मामले की सुनवाई पूरी कर चुकी है और 16 अक्टूबर को अदालत ने
इस मामले में फैसला सुरक्षित रखा। इस पीठ की अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई
ही कर रहे हैं। इस विवाद में अयोध्या, उत्तर प्रदेश में स्थित 2 .77 एकड़ विवादित
जमीन पर किसका हक़ है, इस बात का फैसला होना है। हिन्दू पक्ष ने कोर्ट में कहा कि यह
भूमि भगवान राम के जन्मभूमि के आधार पर न्यायिक व्यक्ति है। वहीं मुस्लिम पक्ष का
कहना था कि मात्र यह विश्वास की यह भगवान राम की जन्मभूमि है, इसे न्यायिक व्यक्ति
नहीं बनाता। दोनों ही पक्षों ने इतिहासकारों, ब्रिटिश शासन के दौरान बने भूमि दस्तावेजों, गैज़ेट आदि के आधार
पर अपने अपने दावे पेश किये है। इस सवाल पर कि क्या मस्जिद मंदिर की भूमि पर बनाई
गई? आर्किओलॉजिकल सर्वे
ऑफ इंडिया की रिपोर्ट भी पेश की गई।
रफाल समीक्षा फैसला मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई
की अध्यक्षता में एसके कौल और केएम जोसफ की पीठ के 10 मई को रफाल मामले
में 14 दिसंबर को दिए गए
फैसले के खिलाफ दायर की गई समीक्षा रिपोर्ट पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। यह
मामला 36 रफाल लड़ाकू विमानों
के सौदे में रिश्वत के आरोप से संबंधित है। इस समीक्षा याचिका में याचिकाकर्ता
एडवोकेट प्रशांत भूषण और पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी ने
मीडिया में लीक हुए दस्तावेजों के आधार पर कोर्ट में तर्क दिया कि सरकार ने फ्रेंच
कंपनी (Dassault) से 36 फाइटर जेट खरीदने के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण सूचनाओं को छुपाया
है। कोर्ट ने इस मामले में उन अधिकारियों के विरुद्ध झूठे साक्ष्य देने के सन्दर्भ
में कार्रवाई भी शुरू की जिन पर यह आरोप था कि उन्होंने मुख्य न्यायाधीश को गुमराह
किया है। 10 अप्रैल को अदालत ने इस मामले में द हिन्दू आदि अखबारों में लीक
हुए दस्तावेजों की जांच करने के केंद्र की प्रारंभिक आपत्तियों को दरकिनार कर दिया
था। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने दलील दी थी कि ये दस्तावेज सरकारी गोपनीयता
क़ानून का उल्लंघन करके प्राप्त किए गए थे, लेकिन पीठ ने इस प्रारंभिक आपत्तियों को यह
कहते हुए खारिज कर दिया कि साक्ष्य प्राप्त करने में अगर कोई गैरकानूनी काम हुआ है
तो यह इस याचिका की स्वीकार्यता को प्रभावित नहीं करता।
राहुल गांधी के “चौकीदार चोर है”
बयान पर दायर अवमानना याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा रफाल सौदे की
जांच के लिए गठित मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने राहुल
गांधी के खिलाफ मीनाक्षी लेखी की अवमानना याचिका पर भी फैसला सुरक्षित रखा। राहुल
गांधी ने रफाल सौदे को लक्ष्य करते हुए यह बयान दिया था कि “चौकीदार चोर
है।” कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी इस टिपण्णी के लिए माफी मांग ली
थी।
सबरीमाला समीक्षा फैसला सुप्रीम कोर्ट की
संवैधानिक पीठ ने सबरीमाला मामले में याचिकाकर्ताओं को एक पूरे दिन की सुनवाई देने
के बाद समीक्षा याचिका पर निर्णय को फरवरी 6 को सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट के
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गोगोई की अध्यक्षता में न्यायमूर्ति खानविलकर, न्यायमूर्ति नरीमन, न्यायमूर्ति
चंद्रचूड और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की संविधान पीठ ने इस मामले में
याचिकाकर्ताओं की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले में
ट्रावनकोर देवस्वोम बोर्ड, पन्दलम राज परिवार और कुछ श्रद्धालुओं ने 28 दिसंबर 2018 को याचिका
दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सभी उम्र की महिलाओं को सबरीमाला
मंदिर में प्रवेश की इजाजत दे दी थी। याचिकाकर्ताओं ने इस मामले में अपनी दलील में
यह भी कहा था कि संवैधानिक नैतिकता एक व्यक्तिपरक टेस्ट है और आस्था के मामले में
इसको लागू नहीं किया जा सकता। धार्मिक आस्था को तर्क की कसौटी पर नहीं कसा जा
सकता। पूजा का अधिकार देवता की प्रकृति और मंदिर की परंपरा के अनुरूप होना चाहिए।
यह भी दलील दी गई थी कि फैसले में संविधान के अनुच्छेद 17 के तहत ‘अस्पृश्यता’ की परिकल्पना को
सबरीमाला मंदिर के सन्दर्भ में गलती से लाया गया है और इस क्रम में इसके ऐतिहासिक
सन्दर्भ को नजरअंदाज किया गया है।
मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय आरटीआई के
अधीन सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता में
पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने 4 अप्रैल को सीजेआई कार्यालय के आरटीआई अधिनियम के अधीन होने को
लेकर दायर याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट
के सेक्रेटरी जनरल ने दिल्ली हाईकोर्ट के जनवरी 2010 के फैसले के खिलाफ
चुनौती दी थी। दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि सीजेआई का कार्यालय
आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 2(h) के तहत ‘सार्वजनिक प्राधिकरण’है। वित्त अधिनियम 2017 की वैधता पर
निर्णय ट्रिब्यूनलों के अधिकार क्षेत्र और स्ट्रक्चर पर डालेगा प्रभाव राजस्व बार
एसोसिएशन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 10 अप्रैल को अपना फैसला सुरक्षित रखा। इस
याचिका में वित्त अधिनियम 2017 के उन प्रावधानों को चुनौती दी गई है, जिनकी वजह से
विभिन्न न्यायिक अधिकरणों जैसे राष्ट्रीय हरित अधिकरण, आयकर अपीली अधिकरण, राष्ट्रीय कंपनी
क़ानून अपीली अधिकरण के अधिकार और उनकी संरचना प्रभावित हो रही है। याचिकाकर्ता की
दलील थी कि वित्त अधिनियम जिसे मनी बिल के रूप में पास किया जाता है, अधिकरणों की संरचना
को बदल नहीं सकता।
यौन उत्पीडन मामले में सीजेआई के खिलाफ
साजिश मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के खिलाफ यौन उत्पीडन के आरोपों की साजिश की जांच
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज न्यायमूर्ति एके पटनायक ने की और जांच में क्या सामने
आता है, इसका इंतज़ार किया जा
रहा है। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, आरएफ नरीमन और दीपक गुप्ता की पीठ ने न्यायमूर्ति पटनायक को
एडवोकेट उत्सव बैंस के दावों के आधार पर इस मामले की जांच का भार सौंपा था। उत्सव
बैंस ने कहा था कि उनको किसी फ़िक्सर, कॉर्पोरेट लॉबिस्ट, असंतुष्ट
कर्मचारियों ने सीजेआई के खिलाफ आरोप लगाने के लिए एप्रोच किया था। ऐसा समझा जाता
है कि न्यायमूर्ति पटनायक ने इस जांच से संबंधित अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को
सौंप दी है।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/06/12gogoi.jpg671670Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-10-30 22:58:432019-10-31 00:29:51आठ दिन और छ्ह फैसले
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