भाजपा के कुत्तों ने भी देश कि आज़ादी में कोई बलिदान नहीं दिया: खड्गे


21 जुलाई 1942 को नितांत गरीब और दलित परिवार में जन्मे खड़गे ने 1969 में कांग्रेस ज्वाइन की और उनके परिवार का भी देश कि आज़ादी से कोई लेना देना नहीं.

खड्गे पैदा ज़रूर एक गरीब परिवार में हुए पर सूत्रों कि मानें तो उनके अकूत दौलत का अनुमान लगाना बहुत ही मुश्किल है. सूत्रों के अनुसार आज वह खरबों पति हैं.

शायद कांग्रेसी कुत्ता शब्द का प्रयोग निर्विवादित ढंग से करते हैं.


देश के 5 राज्यों में होने वाले विधानसभा और वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव के मद्देनजर विभिन्न दलों के नेताओं के बयान अब तीखे होते नजर आ रहे हैं. आरोप-प्रत्यारोप लगाने का सिलसिला तेजी से शुरू हो गया है. इसी क्रम में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने बीते गुरुवार को बीजेपी और आरएसएस को निशाने पर लिया. खड़गे ने महाराष्ट्र में एक रैली को संबोधित करते हुए बीजेपी और आरएसएस के ऊपर तीखा हमला किया.

कांग्रेस ने देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया

कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि देश की आजादी के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और बीजेपी के नेताओं के घर के एक कुत्ते ने भी अपना बलिदान नहीं दिया है. कांग्रेस महासचिव खड़गे महाराष्ट्र के जलगांव जिले में पार्टी की जन संघर्ष यात्रा के दूसरे चरण की शुरुआत के लिए आयोजित एक रैली को यहां संबोधित कर रहे थे. खड़गे ने कहा- ‘हम लोगों (कांग्रेस) ने देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया है. इंदिरा गांधी ने देश की एकता- अखंडता के लिए बलिदान दिया. राजीव गांधी ने देश के लिए अपना जीवन कुर्बान कर दिया. मुझे बताइए कि देश की आजादी के लिए भाजपा और संघ (नेताओं) के घर का एक कुत्ता भी कुर्बान हुआ है.’

बीजेपी पर संविधान के साथ छेड़छाड़ करने का लगाया आरोप

खड़गे ने पूछा- ‘हमें बताइए देश की आजादी के लिए आपके कौन से लोग जेल गए हैं.’  रैली में अपने संबोधन के दौरान खड़गे ने बीजेपी के ऊपर संविधान के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस पार्टी उनके मंसूबे को कामयाब नहीं होने देगी. कांग्रेस के नेता इसके लिए अपनी आखिरी सांस तक लड़ेंगे. आपको बता दें कि केंद्र समेत देश के 20 से ज्यादा राज्यों में बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस पार्टी के कई नेता पहले भी इस तरह का बयान देते रहे हैं. कांग्रेस के दिग्गज नेता मणिशंकर अय्यर हों या सांसद शशि थरूर, कई नेताओं ने इससे पहले भी बीजेपी नेताओं के खिलाफ तीखे और विवादित बयान दिए हैं.

घटी में भाजपा के 13 उम्मीदवारों की निर्विरोध जीत के साथ ही निकाय पर पार्टी का नियंत्रण पक्का हो गया है.


शोपियां जिले के स्थानीय निकाय में बीजेपी के 13 उम्मीदवारों की निर्विरोध जीत के साथ ही निकाय पर पार्टी का नियंत्रण पक्का हो गया है


दक्षिण कश्मीर के आतंकवाद प्रभावित शोपियां जिले के स्थानीय निकाय में बीजेपी के 13 उम्मीदवारों की निर्विरोध जीत के साथ ही निकाय पर पार्टी का नियंत्रण पक्का हो गया है.

राज्य के प्रमुख दलों नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी ने संविधान के अनुच्छेद 35ए को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिए जाने के मद्देनजर चुनाव का बहिष्कार किया है और आतंकवादी समूहों की धकमियों के कारण अन्य लोग भी चुनावी प्रक्रिया से दूरी बनाए हुए हैं.

सुरक्षा बलों और आतंकवादियों के बीच तमाम मुठभेड़ों के साक्षी रहे शोपियां जिला में 17 सदस्यीय स्थानीय निकाय हैं. इनमें से बीजेपी ने 13 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे जबकि चार सीटों पर किसी ने नामांकन नहीं भरा.

इससे पहले चुनाव अधिकारियों ने बुधवार को बताया था कि, शोपियां नगर समिति के 13 वार्ड के लिए हमें सिर्फ एक-एक नामांकन मिला है जबकि चार अन्य पर किसी ने नामांकन नहीं भरा है.

जीत पर क्या बोली भाजपा

राज्य बीजेपी ने इसे ‘ऐतिहासिक जीत’बताया है. जम्मू-कश्मीर बीजेपी प्रमुख रविंद्र रैना ने कहा ‘हमारा लक्ष्य सभी का विकास है और सभी लोगों के साथ न्याय करेंगे. हम बहुत खुश हैं.’

बीजेपी नेता रैना ने नेकां और पीडीपी पर निशाना साधते हुए कहा कि शहरी स्थानीय निकाय चुनावों का बहिष्कार कर दोनों दलों ने ‘लोकतांत्रिक प्रक्रिया का मजाक’ बनाया है.

यह पूछने पर कि क्या शोपियां से जीतने वाले उम्मीदवारों में कोई कश्मीरी पंडित भी है, रैना ने कहा, सभी 13 लोग स्थानीय मुसलमान हैं

उत्पाद शुल्क के नाम पर मोदी ने 13 लाख करोड़ लूटे: सुरजेवाला


कांग्रेस का मानना है कि टैक्स मोदी के जेब में जाते है.

सरकार ने रूपये 2.50 कि कटौती कि है, और राज्य सरकारों से भी उम्मीद जताई है कि वह भी 2.50 रूपये की कटौती करें कुल मिला कर उपभोक्ता को 5 रूपये कि राहत मिले. कांग्रेस शासित राज्य इस पर क्या फैसला लेंगे इस पर सुरजेवाला मौन हैं. 

कांग्रेस ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने हजारों घाव देने के बाद अब बैंडएड लगाया है और जनता को बेवकूफ बनाने की कोशिश की है.


सरकार के जरिए पेट्रोल-डीजल की कीमतों में 2.50 रुपए प्रति लीटर की कटौती किए जाने पर कांग्रेस ने दावा किया कि आगामी विधानसभा चुनाव में हार सामने देखकर और जनता की भारी नाराजगी की वजह से नरेंद्र मोदी सरकार ने पेट्रोलियम उत्पादों के दाम में नाममात्र कमी की है. पार्टी ने यह भी आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने हजारों घाव देने के बाद अब बैंडएड लगाया है और जनता को बेवकूफ बनाने की कोशिश की है. पार्टी का कहना है कि 29 देशों को सस्ता पेट्रोल और डीजल क्यों बेच रहे हैं?

कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, ‘पांच राज्यों में चुनावी हार को सामने देख और जनता के भयंकर गुस्से से घबराकर मोदी सरकार ने मामूली मात्रा में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में उत्पाद शुल्क कम करने की घोषणा की. मोदी जी आप जनता का बेवकूफ अब नहीं बना सकते. आपको पेट्रोल-डीजल की लूट पर जवाब देना पड़ेगा.’ उन्होंने सवाल किया, ‘पिछले 52 महीने में मोदी सरकार ने केंद्रीय उत्पाद शुल्क के नाम पर देश की जनता की जेब काटकर 13 लाख करोड़ क्यों लूटा? उत्पाद शुल्क में 52 महीने में 12 बार इजाफा क्यों किया?’

सुरजेवाला ने कहा, ‘मोदी जी और जेटली जी, क्या आप भूल गए कि कच्चे तेल की कीमत कांग्रेस सरकार में औसतन 100 डॉलर प्रति बैरल से अधिक रही. 2008 में जब कांग्रेस की सरकार थी और जब आप गैस सिलेंडर और पेट्रोल पंप पर विरोध करते थे तो कच्चे तेल की कीमत 147 डॉलर प्रति बैरल तक गई. आज तो 86 डॉलर पहली बार पहुंची है और आप आज ही दुहाई दे रहे हैं.’ उन्होंने कहा, ‘जब 107 डॉलर कच्चे तेल की कीमत थी तो पेट्रोल की कीमत 71 रुपया 41 पैसे प्रति लीटर थी और डीजल की कीमत 55 रुपया 49 पैसे लीटर थी, जो आज क्रमश: 84 रुपया और 75 रुपया को पार कर गई है. इसका जवाब कब देंगे?’

सुरजेवाला ने कहा, ‘मोदी जी ये जवाब देना पड़ेगा कि जहां आप भारत के लोगों के ऊपर अनाप-शनाप पेट्रोल और डीजल की कीमतों का बोझ डाल रहे हैं, आप 29 देशों को सस्ता पेट्रोल और डीजल क्यों बेच रहे हैं?’ उन्होंने कहा, ‘मई, 2014 में गैस सिलेंडर 414 रुपए का था और मोदी सरकार में इसे 879 रुपए का कर दिया गया. इसका मतलब यह है कि 52 महीने में 414 रुपए का सिलेंडर 879 रुपए का किया है, 465 रुपए का इजाफा. 465 रुपये 52 महीने में बढ़ा दिए, 112 प्रतिशत से भी अधिक कीमतों में इजाफा.’

व्यवस्था के तहत कटौती

सरकार ने पेट्रोल-डीजल की कीमतों में एक व्यवस्था के तहत 2.50 रुपए प्रति लीटर कटौती की घोषणा की. इसमें 1.50 रुपए की कमी उत्पाद शुल्क में कटौती से हुई है, जबकि पेट्रोलियम का खुदरा कारोबार करने वाली सरकारी कंपनियों को एक रुपए प्रति लीटर का बोझ वहन करने के लिए कहा गया है.

BSP से गठबंधन न होने से कांग्रेस पर नहीं पड़ेगा असर: कमलनाथ


मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने कहा कि मायावती ऐसी 50 सीटें मांग रहीं थीं जहां उनके वोट न के बराबर है, ऐसे में इससे कांग्रेस को ही नुकसान होता


मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कमलनाथ ने कहा है कि बीएसपी के साथ गठबंधन नहीं होने से हमारी पार्टी पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, हमारी तैयारी पूरी है. पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि समाजवादी पार्टी (एसपी) से हमारी बातचीत चल रही है और हो सकता है कि कांग्रेस-एसपी का गठबंधन राज्य में देखने को मिले.

कमलनाथ ने कहा कि बहुजन समाजवादी पार्टी (बीएसपी) उन सीटों की मांग कर रही थी जहां उसका वोट बैंक लगभग न के बराबर है. उन्होंने कहा कि मायावती की पार्टी ऐसी लगभग 50 सीटों की मांग कर रही थी. ऐसी सीटें उन्हें देने से कांग्रेस को बड़ा नुकसान होता और इसका सीधा लाभ बीजेपी को मिलता.

बीएसपी से मध्य प्रदेश में गठबंधन नहीं हो पाने और मायावती के आरोप पर कमलनाथ ने यह जरूर कहा कि वो दिग्विजय सिंह से पूछेंगे कि उन्होंने ऐसा क्या कहा था. कमलनाथ ने साफ किया कि गठबंधन नहीं होने से कांग्रेस पर कोई असर नहीं पड़ने वाला और राज्य की जनता समझदार है. वो सोच-समझकर फैसला लेगी.



राज्य में कांग्रेस-एसपी गठबंधन को लेकर मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि मैंने कुछ दिन पहले ही अखिलेश यादव से बात की थी. हमारी बातचीत जारी है.

बुधवार को बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने कहा था कि दिग्विजय सिंह जो बीजेपी के एजेंट हैं. उन्होंने स्टेटमेंट दिया है कि मायावती को केंद्र की तरफ से प्रेशर है इसलिए वह गठबंधन करना नहीं चाहतीं. यह निराधार है. दिग्विजय सिंह जैसे कांग्रेसी नेता नहीं चाहते कि कांग्रेस-बीएसपी का गठबंधन हो. वह सीबीआई, ईडी की तरह डरे हुए हैं.

वहीं मायावती के आरोपों को खारिज करते हुए दिग्विजय सिंह ने कहा कि मैं पहले ही साफ कर चुका हूं कि मैं मायावती का सम्मान करता हूं. मैं कांग्रेस और बीएसपी के बीच गठबंधन का समर्थक हूं. छत्तीसगढ़ में गठबंधन को लेकर बात हो रही थी लेकिन वो (मायावती) इसके लिए तैयार नहीं हुईं. मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस और बीएसपी के बीच गठबंधन को लेकर बातचीत चल रही थी लेकिन यहां उन्होंने 22 सीटों पर अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया.

माया मोह से परे कांग्रेस भाजपा कि राह आसान करती हुई


बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने साफ कर दिया है, ‘कांग्रेस पार्टी के रवैये को देखते हुए अब हमारी पार्टी कांग्रेस पार्टी के साथ किसी भी कीमत पर मिलकर चुनाव नहीं लड़ेगी.’


बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने साफ कर दिया है, ‘कांग्रेस पार्टी के रवैये को देखते हुए अब हमारी पार्टी कांग्रेस पार्टी के साथ किसी भी कीमत पर मिलकर चुनाव नहीं लड़ेगी.’ पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले बीएसपी सुप्रीमो मायावती का यह ऐलान सियासी हलचल मचाने वाला है. हलचल विपक्षी खेमे में कहीं ज्यादा है, क्योंकि इस ऐलान के बाद बीएसपी ने मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान में कांग्रेस के साथ किसी भी सहमति की संभावना को सिरे से खारिज कर दिया है.

लेकिन, इस ऐलान का मतलब सिर्फ विधानसभा चुनावों तक ही नहीं है. मायावती के इस ऐलान में दिख रही तल्खी से साफ है कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में भी वो कांग्रेस को पटखनी देने की पूरी कोशिश करेंगी यानी यूपी में भी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन की संभावना भी अब खत्म हो गई है.

मायावती की गुगली से कांग्रेस चित

 

मायावती ने कांग्रेस पर उनकी पार्टी बीएसपी को खत्म करने का आरोप लगाया है. उनके मुताबिक, कांग्रेस पार्टी के नेताओं के रवैये से लगता है कि वे लोग बीजेपी को सत्ता से हटाने के लिए गंभीर होने के बजाए, बीएसपी को ही खत्म करने में ज्यादा दिलचस्पी रखते हैं. मायावती का आरोप है कि बदनामी मोल लेने के बावजूद भी बीएसपी ने बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस का साथ दिया लेकिन, बदले में कांग्रेस ने बीजेपी की तरह ही हमेशा दगा दिया है और पीठ में छुरा घोंपने का काम किया है.

मायावती के हमले में कांग्रेस को चारों खाने चित करने की तैयारी है क्योंकि जो कांग्रेस बीजेपी पर जातिवादी और साम्प्रदायिक होने का आरोप लगाती रही है, अब मायावती ने सीधे कांग्रेस पर भी वही आरोप लगा दिए हैं.

बीएसपी सुप्रीमो मायावती की तरफ से किया गया कांग्रेस पर वार बीजेपी के लिए राहत है, कांग्रेस के लिए बाधक है, जबकि, खुद बीएसपी सुप्रीमो मायावती के लिए एक अगले लोकसभा चुनाव से पहले खुल कर खेलने का मौका है, यानी बंधन मुक्त मायावती जो कि आने वाले दिनों में अपने हिसाब से सौदा भी कर सकें और हालात के हिसाब से सियासी गोटी भी फिट कर सकें.

बीजेपी के लिए राहत

बात पहले बीजेपी की करें तो पार्टी मायावती के इस कदम से राहत की सांस ले रही है. कम-से-कम उन प्रदेशों में बीजेपी के लिए फिलहाल राहत है जहां कांग्रेस के साथ उसकी सीधी टक्कर है. मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी सत्ता में है और विधानसभा चुनाव में उसे एक साथ कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.

एंटीइंकंबेंसी फैक्टर के अलावा एससी-एसटी एक्ट के विरोध में बीजेपी के परंपरागत वोटर रहे सवर्ण समाज के विरोध ने पार्टी को परेशान कर दिया है. ऐसे वक्त में कांग्रेस के साथ बीएसपी के गठबंधन से पूरा का पूरा माहौल बदल सकता था. लेकिन, ऐसा हो न सका. बीजेपी के लिए यह राहत भरी बात है. तीसरी ताकत के तौर पर मायावती का मैदान में उतरना इन राज्यों में बीजेपी को फायदा पहुंचाने वाला रहेगा.

2013 के विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में बीएसपी को 6.29 फीसदी, छत्तीसगढ़ में 4.30 फीसदी जबकि राजस्थान में 3.40 फीसदी था. ऐसे में कांग्रेस के साथ बीएसपी का वोट प्रतिशत जुड़ जाने पर यह आंकड़ा बीजेपी के लिए परेशान कर सकता था. खासतौर से छत्तीसगढ़ में और भी ज्यादा परेशानी हो सकती थी जहां कांग्रेस और बीजेपी के बीच वोट प्रतिशत का अंतर महज एक से डेढ़ फीसदी का ही रहा था.

महागठबंधन की कोशिशों को झटका

बात अगर कांग्रेस की करें तो कांग्रेस के लिए अब मायावती का रुख बड़ा बाधक बन सकता है. खासतौर से कांग्रेस ने जिस तरह महागठबंधन बनाने के लिए विपक्षी एकता की बात की थी, उससे देश भर में एक माहौल बनाने की कोशिश हो रही थी. यह कोशिश बीजेपी विरोधी सभी दलों को साथ रखकर चलने की थी. लेकिन, मायावती ने कांग्रेस की इन सभी उम्मीदों पर फिलहाल पानी फेर दिया है.

कांग्रेस के लिहाज से यूपी में एसपी-बीएसपी के साथ गठबंधन करना ज्यादा जरूरी था. लेकिन, न ही मायावती और न ही अखिलेश यादव की तरफ से कांग्रेस को लेकर उत्साह दिखाया जा रहा है. कांग्रेस अगर यूपी में महागठबंधन नहीं बना पाई तो फिर लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता की उसकी कोशिश परवान नहीं चढ़ पाएगी. मायावती की गुगली से कांग्रेस इस वक्त बुरी तरह से फंस गई है, क्योंकि कांग्रेस के ही जातिवादी-साम्प्रदायिक तीर से मायावती ने उसे घेर दिया है.

मायावती 

अब, बात मायावती की करें तो वो कांग्रेस पर पूरी तरह से ठीकरा फोड़ रही हैं. मायावती को पता है कि उनपर सीबीआई और ईडी जैसी जांच एजेंसियों के डर से कांग्रेस से दूर रहने के का आरोप लगेगा. कांग्रेस इन आरोपों को लगाकर बीजेपी के साथ मायावती की मिली-भगत का आरोप लगाएगी, लिहाजा, पहले से ही कांग्रेस पर उनका प्रहार शुरू हो गया है.

लेकिन, हकीकत यही है कि मायावती ने बड़ा सियासी दांव खेला है. मायावती ने मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनाव में अपनी उपेक्षा के बहाने कांग्रेस को कायदे से किनारे लगा दिया है. मायावती को इन राज्यों के विधानसभा चुनावों से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. लेकिन, यूपी में लोकसभा चुनाव से पहले उनकी तरफ से जो दांव खेला गया है, उससे कांग्रेस खेमे में हड़कंप है. अगर एसपी के साथ बीएसपी का गठबंधन बन भी जाता है तो उस हालात में चुनाव बाद भी मायावती अलग अपना फैसला लेने के लिए स्वतंत्र होगी. लेकिन, चुनाव से पहले गठबंधन बनने से मायावती के लिए गठबंधन का ठप्पा लगा रहेगा जिससे बीएसपी के मुकाबले फायदा कांग्रेस को ही होगा.

 

 

पेट्रोल डीजल पर केंद्र ने 2.50 रुपये की रिलीफ दी और राज्यों से भी इतनी ही कटौती करने की गुजारिश की


हमने देश मे तेल की कीमत घटाने के की प्रयास किये।

पेट्रोल और डीजल पर 2.50 रुपये की राहत देंगे।


आज वित्त मंत्री ने पत्रकार वार्ता में बताया कि वित्त मंत्रालय पेट्रोल और डीजल पर 2.50 रुपये की राहत देगा.

तेल की बढ़ती कीमतों से राहत देने के लिए केंद्र सरकार ने पेट्रोल और डीजल की कीमत में 2.50 रुपये कटौती की घोषणा की है। जेटली ने कहा, ‘आज अंतरमंत्रालयी बैठक में हमने तय किया कि एक्साइज ड्यूटी 1.50 रुपये घटाया जाएगा। इसके अलावा ऑइल मार्केटिंग कंपनियां (ओएमसी) एक रुपया घटाएंगी। केंद्र सरकार की तरफ से हम 2.50 रुपये प्रति लीटर तुरंत उपभोक्ताओं को राहत देंगे।’ वित्त मंत्री ने राज्यों से भी इतनी ही कटौती करने की गुजारिश की है ताकि ग्राहकों को 5 रुपये की राहत मिले। वित्त मंत्री ने कहा कि कटौती से एक्साइज रेवेन्यू में इस साल 10,500 करोड़ रुपये का प्रभाव पड़ेगा।

बोले पिछले 4 साल में कच्चा तेल की कीमत सबसे ज्यादा। अमेरिका में ब्याज दर बढ़ने का असर पड़ा। शेयर बाजार में गिरावट है। हमारी घरेलू आर्थिक स्तिथि मजबूत। महंगाई के आंकड़े हमारे पक्ष में है।

Justice Ranjan Gogoi is 46th CJ India.


President Ram Nath Kovind administered the oath to Justice Gogoi at a ceremony which took place in Rashtrapati Bhavan’s Darbar Hall.

Justice Gogoi’s father Sh. Keshab Chandra Gogoi was a Chief minister under the Indian National Congress regime in the state of Assam in the year 1982.


Justice Ranjan Gogoi took oath as the as the 46th Chief Justice of India on Wednesday as he succeeded Justice Dipak Misra.

President Ram Nath Kovind administered the oath to the 63-year-old Justice Gogoi at a ceremony which took place in Rashtrapati Bhavan’s Darbar Hall.

Justice Gogoi’s father Sh. Keshab Chandra Gogoi was a Chief minister under the Indian National Congress regime in the state of Assam in the year 1982.

Justice Gogoi will have a tenure of a little over 13 months and would retire on November 17, 2019.

He was appointed as a judge of the Supreme Court on April 23, 2012.

Born on November 18, 1954, Justice Gogoi was enrolled as an advocate in 1978. He practised in the Gauhati High Court on constitutional, taxation and company matters.

He was appointed as a permanent judge of the Gauhati High Court on February 28, 2001. On September 9, 2010, he was transferred to the Punjab and Haryana High Court.

He was appointed as Chief Justice of Punjab and Haryana High Court on February 12, 2011.

Justice Gogoi was one of the four Supreme Court judges who had revolted against CJI Misra earlier this year. The other three were Justice J. Chelameswar, Justice Madan B. Lokur and Justice Kurian Joseph.

In an unprecedented move, the four senior-most judges of the apex court had held a press conference in January this year raising, among other things, questions over assigning cases to different judges by the CJI.

Earlier in September, CJI Misra had recommended Justice Gogoi as his successor as per the established practice of naming for the post the senior-most judge after the CJI.

The appointment of members of the higher judiciary is governed by the Memorandum of Procedure, which says “appointment to the office of the Chief Justice of India should be of the senior-most judge of the Supreme Court considered fit to hold the office”.

The protocol stipulates that the law minister will, at an appropriate time, seek recommendation of the outgoing CJI for the appointment of a successor. Once the CJI makes the recommendation, the law minister puts it before the Prime Minister who then advises the President on the matter.

After President Ramnath Kovind signed warrants of Justice Gogoi’s appointment , a notification was issued announcing his appointment.

कांग्रेस का एक ही नारा है- मोदी को हटाना है, अब चाहे पाकिस्तान हटा दे या माओवादी हटा दें: पात्रा


बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि भीमा कोरेगांव मामले में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला आया है, उससे पूरी तरह से कांग्रेस पार्टी का पर्दाफाश हो गया है


भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी मामले में विपक्ष के हमलों के बीच शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बीजेपी ने कहा कि शीर्ष अदालत के फैसले से कांग्रेस पार्टी का पर्दाफाश हो गया है. पार्टी ने कांग्रेस अध्यक्ष से सवाल किया कि राहुल गांधी आप बार-बार राष्ट्रद्रोहियों के साथ खड़े क्यों नज़र आते हैं?

बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि भीमा कोरेगांव मामले में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला आया है, उससे पूरी तरह से कांग्रेस पार्टी का पर्दाफाश हो गया है. उन्होंने कहा, ‘इस मामले में आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला, राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्र हित की जीत है.’

पात्रा ने कहा कि ऐसे लोग जो राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ काम करते हैं, उन्हें यह चुनने की छूट नहीं है कि वे किस प्रकार की जांच का सामना करेंगे और कानून कब और कैसे काम करेगा.

बीजेपी प्रवक्ता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला देश की जीत है. यह फैसला कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करने का काम करती है. उन्होंने कहा कि अपने निजी स्वार्थ के लिए राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी आज देश को कुचलने और राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने के लिए भी तैयार हैं.

पात्रा ने सवाल किया, ‘राहुल जी आप बार-बार राष्ट्रद्रोहियों के साथ खड़े क्यों नज़र आते हैं?’ उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस का एक ही नारा है- मोदी को हटाना है, अब चाहे पाकिस्तान हटा दे या माओवादी हटा दें, लेकिन देश की जनता राष्ट्र सुरक्षा और मोदी के साथ है.

सुप्रीम कोर्ट ने भीमा-कोरेगांव हिंसा प्रकरण के सिलसिले में पांच कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के मामले में हस्तक्षेप करने से शुक्रवार को इनकार करने के साथ ही इन गिरफ्तारियों की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने का आग्रह भी ठुकरा दिया. महाराष्ट्र पुलिस ने इन कार्यकर्ताओं को पिछले महीने गिरफ्तार किया था परंतु शीर्ष अदालत के अंतरिम आदेश पर उन्हें घरों में नजरबंद रखा गया था.

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने 2:1 के बहुमत के फैसले से इन कार्यकर्ताओं की तत्काल रिहाई के लिए इतिहासकार रोमिला थापर और अन्य की याचिकायें ठुकरा दीं.

The Supreme Court today refused to constitute a Special Investigation Team in Koregaon case

 

The Supreme Court today refused to constitute a Special Investigation Team (SIT) to look into the arrests of lawyers and activists made in connection to the Bhima Koregaon violence.

The judgment was delivered by the Bench of Chief Justice of India Dipak Misra, Justice AM Khanwilkarand Justice DY Chandrachud.

Justice Khanwilkar delivered the majority opinion on behalf of himself and CJI Misra. Justice Chandrachud dissented from the majority.

The majority opinion held that the Court’s earlier order calling for house arrest of the activists and lawyers, will continue to operate for four more weeks.

Justice Khanwilkar held that accused persons do not have a say in which investigating agency should probe the case. He held that this was not a case of arrest merely because of political dissent. Therefore, the plea for an SIT was not entertained, with the accused given the liberty to pursue other appropriate remedies.

However, Justice Chandrachud did not agree with the views of the majority, stating that technicalities should not be allowed to override substantive justice.

Chandrachud J made some scathing observations against the Pune police for their conduct in the matter thus far. He also berated the police for conducting a press conference immediately after the Court had passed an interim order.

He also highlighted the manner in which a letter alleged to have been written by Sudha Bharadwaj was flashed on Republic TV, after the police selectively disclosing details of the probe to the media. This, Justice Chandrachud held, cast a cloud over the fairness of the investigation.

“Voices of opposition cannot be muzzled because it is dissent. Deprivation of liberty cannot be compensated later”, Chandrachud J held.

The acts of the Maharashtra police, he said, raises questions as to whether the investigation can be carried out fairly. Therefore, Chandrachud J felt that an SIT should be constituted to probe the matter.

The verdict was passed in the petition filed by Romila Thapar and four other activists challenging the raids and arrests made by the Maharashtra Police of Sudha BharadwajGautam NavlakhaVaravara RaoVernon Gonsalves, and Arun Ferreira, in connection with the Bhima Koregaon incident.

The Supreme Court had directed the Pune Police to keep the activists/lawyers under house arrest “in their own homes” till further orders, thereby protecting their liberty.

It was contended by the State of Maharashtra that the raids were conducted based on evidence gathered from the computer systems and emails of other accused persons arrested in the same case.

The Court had warned against “cooked up evidence” against the activists in question and had asserted that an SIT will be formed to look into the validity of these raids if the evidence is found to be “cooked up”.

The State of Maharashtra maintained that there was a larger ploy at play in this case and claimed that the arrested activists have links with banned terror outfits some of them “having committed serious offences”.

The Court had remarked that liberty of people cannot be stifled based on conjectures and had asserted that it would “look at the case with hawk’s eyes”.

The Court had demanded for the entire case diary to ascertain the validity of the raids and arrests in the case even as the State of Maharashtra’s submission from the beginning was that the petitioners, in this case, were “strangers” to the case and had no locus standi to challenge the arrests where they were not personally aggrieved.

हताश कांग्रेस कि मनोस्थिति बयान करते पोस्टर


बिहार में फॉरवर्ड कहलाने वाली जातियों के नेताओं को तरजीह दी गई थी. बिहार के प्रदेश अध्यक्ष मदनमोहन झा ब्राह्मण हैं. कैंपेन कमेटी के मुखिया अखिलेश प्रसाद सिंह भूमिहार जाति से आते है


बिहार में कांग्रेस बेचारगी के आलम में है. पार्टी की तरफ से लगाए गए पोस्टर में हर नेता की जाति उसकी तस्वीर के आगे लिख दी गई है. कांग्रेस ने हाल में ही राज्य में जंबो संगठन बनाया था. जिसमें बिहार में फॉरवर्ड कहलाने वाली जातियों के नेताओं को तरजीह दी गई थी. बिहार के प्रदेश अध्यक्ष मदनमोहन झा ब्राह्मण हैं. कैंपेन कमेटी के मुखिया अखिलेश प्रसाद सिंह भूमिहार जाति से आते है. इन दोनों जातियों पर कांग्रेस की नजर है.

कांग्रेस आलाकमान ने रणनीतिक तौर पर उच्च जातियों को अपनी ओर खींचने के लिए ये फैसला किया था. यही अगड़ी जातियां बीजेपी की बिहार में धुरी हैं. जिनकी बदौलत प्रदेश में बीजेपी की राजनीतिक हैसियत बढ़ी है. कांग्रेस बिहार में अगड़ी जाति का समायोजन ना कर पाने की वजह से पिछड़ गई. मंडल की राजनीति में लालू-नीतीश जैसे नेताओं का उदय हुआ. बीजेपी के कमंडल की राजनीति में अगड़ी जातियां पार्टी के साथ हो गई हैं. जिनको दोबारा पाले में लाने के लिए कांग्रेस जद्दोजहद कर रही है. लेकिन कांग्रेस की लालू प्रसाद से दोस्ती की वजह से ये संभव नहीं हो पा रहा है.

कांग्रेस के पोस्टर में नेताओं का जातिवार ब्यौरा

कांग्रेस के पोस्टर में सोशल इंजीनियरिंग नजर आ रही है. उससे पार्टी की साख पर सवाल उठ रहा है. गांधी-नेहरू की विरासत की बात करने वाली पार्टी को ये सब करना पड़ रहा है! कांग्रेस बिहार में पस्त हालत में है. पार्टी को मजबूत करने के लिए ये तरीका कांग्रेस के नेताओं के भी समझ से परे है. बिहार कांग्रेस के नेता का कहना है कि रेवड़ी की तरह पद बांटने से वोट नहीं मिलता है. इस तरह का पोस्टर लगाना बेहूदगी है. कांग्रेस की परंपरा से मेल नहीं खाता है.

कांग्रेस भी ये दावा करती है कि सभी जाति मजहब की पार्टी है, लेकिन जिस तरह से धर्म और जाति का प्रचार किया जा रहा है. उससे ये सवाल उठना लाजिमी है कि कांग्रेस किस दिशा की तरफ जा रही है? बिहार में जाति की राजनीति का बोलबाला है. 1989 के बाद से ही रीजनल पार्टियों की सरकार है. कांग्रेस हाशिए पर है. बीजेपी भी रीजनल पार्टियों के सहारे है.

कांग्रेस की हताशा की कहानी

कांग्रेस की ये कोशिश हताशा की कहानी बयां कर रही है. कांग्रेस के पास कोर वोट का अभाव है. कमिटेड लीडर्स की कमी है. जो पार्टी को सेंटर स्टेज पर ले जाने की कोशिश ठीक ढंग से कर सकें. पार्टी के पोस्टर से लग रहा है कि हर जाति का नेता बना दो तो शायद सभी जातियां पार्टी के पीछे खड़ी हो जाएं.

हालांकि ये सब इतना आसान नहीं है. जातियों को जोड़ने के लिए प्रोग्राम तैयार करना होता है. उस जाति के लोगों को जोड़ने के लिए उनके बीच काम करना पड़ेगा. पोस्टर छपवाने से कोई लाभ नहीं होने वाला है. कांग्रेस में बिहार के बड़े नेता सड़क पर उतरकर काम करने से गुरेज कर रहे है. सब किस्मत के भरोसे है. कभी लालू का तो कभी नीतीश का सहारा लिया जा रहा है. लेकिन कांग्रेस धरातल पर ही है.

मंडल की राजनीति में कमजोर

वी.पी. सिंह की मंडल की राजनीति में कांग्रेस लगातार कमजोर होती रही है. बिहार में जनता दल के उदय से पिछड़ी जातियां इन दलों के साथ हो गईं. जनता दल का बीजेपी से जब रिश्ता टूट गया,तो कांग्रेस ने बढ़कर जनता दल को सहारा दिया. जिसके बाद कांग्रेस समय-समय पर लालू प्रसाद को मदद करती रही है. जिससे पार्टी से अगड़ी जातियां भी दूर हो गई हैं. मुस्लिम भी लालू के साथ चला गया है. लालू ने पिछड़े और एमवाई(मुस्लिम – यादव) समीकरण की बदौलत बिहार की राजनीति पर वर्षों तक राज किया.

 

बीजेपी जैसी पार्टियां भी कुछ खास नहीं कर पाई. बीजेपी ने पर्दे के पीछे से समता पार्टी का समर्थन किया और लालू विरोधियों को एकजुट कर दिया. जार्ज फर्नाडिज की पार्टी में नीतीश कुमार और शरद यादव भी थे. जिससे पिछड़ी जातियों की एकजुटता में टूट पड़ गई. नीतीश कुमार के साथ कुर्मी-कोइरी हो गया. बाद में नीतीश कुमार ने अलग पार्टी बना ली और बीजेपी के साथ गठबंधन में नीतीश मुख्यमंत्री बन गए. हालांकि लालू की बिहार की सत्ता चली गई है लेकिन राजनीतिक ताकत में कमी नहीं हैं. कांग्रेस मजबूरी में उनके पीछे खड़ी रही है. जो अब तक जारी है.कांग्रेस ने अपने बूते पर खड़ा होने के लिए गंभीर प्रयास नहीं किया है.

बिहार की जाति में बंटी राजनीति

बिहार में 1989 के बाद से जातिगत राजनीतिक पार्टियों का उदय हुआ है. लालू प्रसाद की आरजेडी यादव जाति के समर्थन पर चल रही है. नीतीश कुमार कुर्मियों के नेता हैं. हालांकि अत्यंत पिछड़ा वर्ग को भी जोड़ने का प्रयास किया है. उपेन्द्र कुशवाहा के पास कोइरी का समर्थन है. रामविलास पासवान दलित और अपनी जाति दुसाध के बल पर टिके हैं. जीतन राम मांझी मुसहर जाति के पैरोकार हैं. बीजेपी के पास अगड़ी जातियों के अलावा वैश्य और कायस्थ का भी साथ है. जहां तक मुस्लिम का सवाल है वो आरजेडी के साथ ज्यादा है. कहीं नीतीश और कांग्रेस का समर्थन भी करता रहा है. लेकिन इस बार कांग्रेस आरजेडी के साथ जाने की संभावना है.

rahul tejaswi

बीजेपी से सीखे सबक

उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने पिछले हफ्ते कुशवाहा, सैनी और मौर्य समाज का सम्मेलन किया. जिसमें पार्टी की इन जातियों के लिए भविष्य में क्या योजना है? ये बताया गया है. ये भी कहा गया कि बीजेपी इन जातियां में किसी को मुख्यमंत्री भी बना सकती है. ये सभी जातियां पहले एसपी-बीएसपी के साथ थीं. बीजेपी ने सही समय पर इन जातियों पर फोकस किया है. जिससे बीजेपी को राजनीतिक लाभ मिला है. इन जातियों के बड़े नेताओं को पार्टी में शामिल कर लिया गया है.

बिहार में भी बीजेपी ने धीरे धीरे कई जातियां में सेंध लगाई है. कांग्रेस को भी इस तरह से नई कार्ययोजना पर चलने की जरूरत है. हालांकि ये काम एक दिन में संभव नहीं है. कांग्रेस को पहले कोर वोट की तलाश करने की जरूरत है. जो अगड़ी जातियां बीजेपी से निराश हैं. कांग्रेस उनसे बीच काम कर सकती है. अगड़ी जातियों के साथ आने से ही कांग्रेस बिहार में आगे बढ़ सकती है. कांग्रेस ने राजनीति के मंडलीकरण के बाद इस बार अगड़ी जातियों पर दांव लगाया है. जिसका नतीजा चुनाव में देखने को मिल सकता है.