30 ओक्टुबर तक कम से कम 15 सीटें दे कांग्रेस: हीरालाल अलावा

हीरालाल अलावा


  • उन्होंने कहा, ‘अगर 30 अक्टूबर तक चुनावी गठबंधन पर हमारी कांग्रेस से सहमति नहीं बनी, तो हम आगामी चुनावों में अपने नेताओं को निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर उतारेंगे

  • 230 विधान सभा सीटों में से मात्र 15 सीटों की मांग क्या कांग्रेस ठुकरा देगी?

  • वहीं जयस की सहयोगी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) ने इस नए संगठन को आगाह किया है कि वह कांग्रेस से चुनावी तालमेल हर्गिज न करे.सीटें


 

कांग्रेस से चुनावी गठबंधन की कोशिश में जुटे संगठन जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) ने मध्यप्रदेश के प्रमुख विपक्षी दल से कम से कम 15 विधानसभा सीटें मांगी हैं. इसके साथ ही, कांग्रेस को अल्टीमेटम देते हुए कहा है कि वह तीन दिन के भीतर इस प्रस्तावित तालमेल पर फैसला कर ले.

शनिवार को जयस के राष्ट्रीय संरक्षक हीरालाल अलावा ने इंदौर प्रेस क्लब में एक कार्यक्रम के दौरान कहा, ‘चुनावी गठबंधन के लिए कांग्रेस से हमारी चर्चा जारी है. हम मालवा-निमाड़ अंचल की कम से कम 15 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ा करना चाहते हैं. हम चाहते हैं कि कांग्रेस इन सीटों पर अपने उम्मीदवार नहीं उतारे और हमें समर्थन दे.’

उन्होंने कहा, ‘अगर 30 अक्टूबर तक चुनावी गठबंधन पर हमारी कांग्रेस से सहमति नहीं बनी, तो हम आगामी चुनावों में अपने नेताओं को निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर उतारेंगे.’ अलावा ने बताया कि वह धार जिले के कुक्षी विधानसभा क्षेत्र से खुद चुनाव लड़ना चाहते हैं और जयस ने चुनावी गठबंधन की चर्चाओं के दौरान कांग्रेस से उसके कब्जे वाली यह सीट भी मांगी है.

चुनाव आयोग में पंजीकृत नहीं है जयस, जीजीपी ने दी चेतावनी

उन्होंने कहा, ‘कुक्षी क्षेत्र हमारे संगठन का गढ़ है. इसलिए इस सीट पर हमारा स्वाभाविक दावा है.’ गौरतलब है कि वर्ष 2013 के विधानसभा चुनावों में कुक्षी सीट से कांग्रेस उम्मीदवार सुरेंद्र सिंह बघेल ‘हनी’ ने अपने नजदीकी प्रतिद्वन्द्वी को 42,768 मतों से पराजित किया था.

‘अबकी बार, आदिवासी सरकार’ का चुनावी नारा देने वाला जयस हालांकि एक राजनीतिक दल के रूप में चुनाव आयोग में अभी पंजीकृत नहीं है. लेकिन उसकी अलग-अलग सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार उतारकर इन्हें समर्थन देने की योजना है. इस बीच, जयस की सहयोगी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) ने इस नए संगठन को आगाह किया है कि वह कांग्रेस से चुनावी तालमेल हर्गिज न करे.

कांग्रेस देती है लॉलीपॉप

समाजवादी पार्टी से चुनावी गठबंधन करने वाली जीजीपी के राष्ट्रीय महासचिव बलबीर सिंह तोमर ने कार्यक्रम में कहा, ‘कांग्रेस हम जैसे छोटे सियासी दलों को उसी तरह अपने पास बुलाती है. जैसे छोटे बच्चों को लॉलीपॉप दिखाकर ललचाया जाता है. कांग्रेस छोटे दलों को खत्म करने का षड्यंत्र रच रही है.’

उन्होंने कहा, ‘हमने कांग्रेस की चुनावी लॉलीपॉप की तरफ देखना बंद कर दिया है. मैं जयस से भी कहना चाहता हूं कि वह भी कांग्रेस की इस लॉलीपॉप की तरफ न देखे.’ तोमर ने कहा, ‘हम कांग्रेस के पास (चुनावी गठबंधन की) भीख मांगने नहीं गए थे बल्कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ हमारे पास (चुनावी गठबंधन की) भीख मांगने आए थे. क्योंकि उनकी पार्टी राज्य की सत्ता से पिछले 15 साल से वनवास में है.’

‘अयप्पा भक्तों’ के साथ भाजपा अडिग चट्टान की तरह खड़ी है: अमित शाह


शाह ने कहा कि केरल की लेफ्ट सरकार सबरीमाला के श्रद्धालुओं का दमन कर रही है


केरल के कन्नौर जिले में स्थित बीजेपी के नए दफ्तर का उद्धघाटन करने पहुंचे पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने वहां मौजूद अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए सबरीमाला विवाद पर आयप्पा भक्तों की भावनाओं को नज़र में रखते हुए कहा कि केरल की लेफ्ट सरकार सबरीमाला के श्रद्धालुओं का दमन कर रही है.

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह पहली बार है जब पार्टी ने खुलकर श्रद्धालुओं को अपना समर्थन दिया है.

शाह ने कहा कि कोर्ट को ऐसा फैसला ही नहीं देना चाहिए, जिसे लागू ना किया जा सके. कार्यक्रम में अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए शाह ने कहा, ‘आज केरल में धार्मिक विश्वास और राज्य सरकार की क्रूरता के बीच संघर्ष चल रहा है. सरकार ने 2000 से ज्यादा श्रद्धालुओं, और बीजेपी, आरएसएस के कार्यकर्ताओं को जेल में ठूंस दिया है. बीजेपी भगवान अयप्पा के भक्तों के साथ चट्टान की तरह खड़ी है, लेफ्ट सरकार सचेत रहे.’

शाह यहां पार्टी के नए कार्यालय का उद्धघाटन करने के बाद कई कार्यक्रमों में शिरकत करेंगे. इसके अलावा वह ‘बलिदान स्मृति कार्यक्रम’ का भी उद्धघाटन करेंगे.

स्वामी सानंद (जी डी अग्रवाल) के बलिदान की स्मृति में और संत गोपाल दास के तप के लिए सामूहिक प्रार्थना

गंगा-भक्त स्वामी सानंद (जी डी अग्रवाल)

गंगा की आस्था-पवित्रता बनाए रखने के लिए गंगा-भक्त स्वामी सानंद (जी डी अग्रवाल) ने 111 दिन अनशन के बाद शरीर का त्याग कर दिया. गंगा भक्त के इस बलिदान के स्मृति में और संत गोपाल दास (121वां दिन अनशन) के तप के लिए 21 अक्टूबर दिन रविवार को उत्तर प्रदेश के अधिकांश जिलों में सामूहिक प्रार्थना, यज्ञ-हवन, आरती, सभा इत्यादि का आयोजन हो रहा है. लखनऊ में भी गांधी प्रतिमा हज़रतगंज पर शाम 4 से 6 सामूहिक प्रार्थना किया गया. इसमें शहर के दर्जनों गणमान्य नागरिक शामिल हुए.

आलोक ने कहा कि गंगा केवल नदी नहीं है यह भारतीय सभ्यता संस्कृति का तप है, मूल है जो आस्था पर टिकी है. गंगा पर संकट का मतलब पूरी भारतीय सभ्यता संस्कृति पर संकट से है. अतहर ने गंगा पर जी डी अग्रवाल का बलिदान बेकार नहीं जाएगा. पूरा समाज एकजुट होकर जी डी अग्रवाल की इच्छा को पूरा करेगा. संतोष परिवर्तक ने गंगा और उसके लिए हो रहे बलिदानों पर स्वलिखित कविता सुनाई. कार्यक्रम में लाल बहादुर राय, इमरान, नायब इमाम टीले वाली मस्जिद, उषा विश्वकर्मा, आफरीन, मोहित, प्रदीप पाण्डेय, हरिभान यादव इत्यादि लोग शामिल हुए.

ऐसा लगता है कि सरकार ने तय कर लिया है कि वह प्रत्यक्ष उदाहरण से अंग्रेजी राज के जुल्मों की याद दिलाएगी। चंडीगढ़ पीजीआई में भी संथारा की घोषणा कर चुके संत गोपाल दास जी पर प्रशासन के अत्यचार जारी हैं। 18 अक्टूबर की आधी रात में पीजीआई पहुंचाए गए संत गोपालदास जी ने फिर से एलोपैथिक ट्रीटमेंट न लेने का अपना प्रण दोहराया साथ ही कहा कि यदि सरकार को बहुत जरूरी लगे तो यूनानी या आयुर्वेद चिकित्सा कर सकती है। उनकी देखभाल के लिए बनी पीजीआई मेडिकल टीम ने इस सब पर अपनी रिर्पोट बनाते हुए सन्त जी को दिल्ली एम्स रेफर करने की सलाह दी। लेकिन पीजीआई के निदेशक ने इसकी अनुमति नहीं दी। इसके बाद चंडीगढ़ प्रशासन एक बड़े अमले के साथ पीजीआई पहुंचा, सन्त जी के सहयोगियों को बाहर किया और फोर्स फीडिंग शुरू कर दी। सन्त जी ने यथाशक्ति इसका विरोध करते हुए अपनी नाक में ठूंसी गई नली निकाल कर बाहर फेंक दी। इसके बाद प्रशासन ने उनके दोनों हाथ ही बांध दिये। अस्पताल में उपस्थित सूत्रों के अनुसार सन्त जी के साथ पहले से ही हरिद्वार से चार पुलिस कर्मियों की ड्यूटी थी अब चंडीगढ़ पुलिसकर्मियों की ड्यूटी भी लगा दी है। एक 40 किलो वजनी कृशकाय हो चुके सन्त के साथ यह व्यवहार सरकार के डर की गहराई ही दर्शाता है। -राजेश बहुगुणा

Promoting Hindi language is my duty: Pankaj Tripathi

Pankaj-Tripathi


Generally, I don’t use common Hindi words while communicating. I use a bit difficult Hindi words on set.


Pankaj Tripathi says he is a Hindi cinema actor so, promoting the Hindi language is his duty.

“Being a responsible citizen of India and coming from a Hindi medium school, I believe it’s my responsibility and duty to teach and correct Hindi. While shooting for Shakeela biopic, my director Indrajit Lankesh used to tell me to speak in Hindi with him so that his Hindi could improve,” Pankaj said in a statement.

“Generally, I don’t use common Hindi words while communicating. I use a bit difficult Hindi words on set. Crew members often used to ask me the meaning of those Hindi words. They were excited to learn meaning of new Hindi words. It wasn’t difficult communicating with Bengaluru crew members on sets of Shakeela biopic. I am a Hindi cinema actor, promoting Hindi language is my duty,” he added.

The film is based on South Indian glamour actress Shakeela.

सबरीमाला मंदिर को लेकर दिए गए बयान की आलोचना होने के बाद केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने सफाई दी है


केरल के सबरीमाला मंदिर को लेकर दिए गए बयान की आलोचना होने के बाद केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने सफाई दी है


केरल के सबरीमाला मंदिर को लेकर दिए गए बयान की आलोचना होने के बाद केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने सफाई दी है. उन्होंने कहा कि सबरीमाला के संबंध में मेरे बयान पर चर्चा हो रही है. ऐसे में मैं अपने बयान पर बयान देना चाहती हूं. एक हिंदू के नाते और एक पारसी से शादी करने के चलते मुझे अग्नि मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं है.

उन्होंने आगे कहा कि मैं पारसी समुदाय, उनके पुजारियों का सम्मान करती हूं. लेकिन दो पारसी बच्चों की मां होने के नाते वहां पूजा करने के अधिकार के लिए मैं कोर्ट नहीं गई. ऐसे ही मासिकधर्म वाली पारसी महिलाएं या फिर गैरपारसी महिलाएं किसी अग्नि मंदिर में प्रवेश नहीं करती. ये दो तथ्यात्मक बयान हैं. बाकी सब प्रोपेगेंडा और मेरे खिलाफ चलाया जा रहा एजेंडा है

उन्होंने कहा, ‘जहां तक किसी दोस्त के घर खून से सने सैनिटरी पैड को ले जाने वाले मेरे बयान को लेकर मुझ पर निशाना साधा जा रहा है. तो मैं ये बताना चाहती हूं कि मुझे अब तक कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिला है, जिसने ऐसा किया हो.’

इससे पहले केंद्रीय मंत्री ने कहा था कि पूजा करने के अधिकार का यह मतलब नहीं है कि आपको अपवित्र करने का भी अधिकार प्राप्त है. उन्होंने कहा था, ‘मैं सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ बोलने वाली कोई नहीं हूं, क्योंकि मैं एक कैबिनेट मंत्री हूं. लेकिन यह साधारण-सी बात है क्या आप माहवारी के खून से सना नैपकिन लेकर चलेंगे और किसी दोस्त के घर में जाएंगे. आप ऐसा नहीं करेंगे.’

उन्होंने कहा था, ‘क्या आपको लगता है कि भगवान के घर ऐसे जाना सम्मानजनक है? यही फर्क है. मुझे पूजा करने का अधिकार है लेकिन अपवित्र करने का अधिकार नहीं है. यही फर्क है कि हमें इसे पहचानने तथा सम्मान करने की जरुरत है.’ स्मृति ब्रिटिश हाई कमीशन और आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की ओर से आयोजित ‘यंग थिंकर्स’ कान्फ्रेंस में बोल रही थी.

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 28 सितंबर को मंदिर में माहवारी आयु वर्ग (10 से 50 वर्ष) की महिलाओं के प्रवेश पर लगा प्रतिबंध हटा दिया था. सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ प्रदर्शनों के चलते महिलाओं को सबरीमला मंदिर में जाने से रोक दिया गया.

भाजपा के स्टार प्रचारकों की सूची में आडवाणी नहीं


बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में होने वाले प्रचार के लिए 40 स्टार प्रचारकों की सूची जारी की है, इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से लेकर कई केंद्रीय मंत्री, सांसद बीजेपी के पक्ष में समर्थन जुटाएंगे


चुनावों के मद्देनजर अब हर पार्टी कमर कस कर तैयार हो गई है. जीत के लिए सभी पार्टियों ने पुरजोर मेहनत करना शुरू कर दिया है. पार्टी अपने स्टार प्रचारकों की मदद से चुनाव में अपना परचम लहराने की कोशिश करती है और ऐसे में साल 2013 के चुनावों तक अटल-आडवाणी कमल निशान मांग रहा है हिंदुस्तान, का नारा लगाने वाली बीजेपी ने इस चुनाव में लालकृष्ण आडवाणी को अपने स्टार प्रचारकों की सूची में भी शामिल नहीं किया है.

बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में होने वाले प्रचार के लिए 40 स्टार प्रचारकों की सूची जारी की है. इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से लेकर कई केंद्रीय मंत्री, सांसद बीजेपी के पक्ष में समर्थन जुटाएंगे. हालांकि बीजेपी की इस लिस्ट में पार्टी के मार्गदर्शक मंडल के नेता लालकृष्ण आडवाणी को जगह नहीं मिली है. आपको बता दें कि इससे पहले भी यूपी विधानसभा चुनाव प्रचार में लालकृष्ण आडवाणी को जगह नहीं दी गई थी. यूपी विधानसभा चुनाव में लालकृष्ण आडवाणी के साथ साथ विनय कटियार, ओम प्रकाश सिंह, सूर्यप्रताप शाही, लक्ष्मीकांत बाजपेई, रमापति राम त्रिपाठी के नाम भी हटा दिए गए थे. गवर्नर होने के चलते सूची से बाहर हुए कल्याण सिंह की जगह उनके बेटे राजबीर सिंह को दे दी गई थी.

अन्य स्टार प्रचारकों में केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, नितिन गडकरी, शिवराज सिंह चौहान, उमा भारती, स्मृति इरानी, धर्मेंद्र प्रधान, जुएल उरांव, रविशंकर प्रसाद, जेपी नड्डा, योगी आदित्यनाथ, रघुवर दास, देवेंद्र फडनवीस, डॉ. रमन सिंह, डॉ. अनिल जैन, सौदान सिंह, सरोज पांडेय, मनोज तिवारी, विष्णुदेव साय, अर्जुन मुंडा, बृजमोहन अग्रवाल, अभिषेक सिंह, दिनेश कश्यप, रमेश बैस, धरमलाल कौशिक, हुकुमचंद नारायण यादव, रामकृपाल सिंह, हेमा मालिनी, पवन साय, रामप्रताप सिंह, चंदुलाल साहू, कमलभान सिंह, लखनलाल साहू, कमलादेवी पाटले, रणविजय सिंह जूदेव, रामविचार नेताम और फग्गन सिंह कुलस्ते शामिल हैं.

सत्ता विमुख दलों में हाशिये पर जाते मुस्लिम नेता


कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद ने हाल ही में यह कह सियासी तूफान मचा दिया है कि अब उनकी पार्टी के हिंदू नेता कार्यक्रमों में बुलाने से डरने लगे हैं.


कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद ने हाल ही में यह कह सियासी तूफान मचा दिया है कि अब उनकी पार्टी के हिंदू नेता कार्यक्रमों में बुलाने से डरने लगे हैं. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के एक कार्यक्रम में वहां के छात्रों से मुखातिब आज़ाद ने कहा कि पहले उन्हें अपने कार्यक्रमों में बुलाने वालों में 95 फीसदी हिंदू हुआ करते थे. अब सिर्फ 20 फीसदी हिंदू ही उन्हें बुलाते हैं. पिछले चार साल में देश में ऐसा माहौल बन गया है कि वोट कटने के डर से हिंदू नेता मुस्लिम नेताओं को अपने कार्यक्रमों में बुलाने से कन्नी काटने लगे हैं.

आज़ाद के इस बयान पर बीजेपी ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए इसे हिंदुओं का अपमान करार दिया. बीजेपी इसे लेकर कांग्रेस पर हमालावर हो गई है. कांग्रेस प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा है कि ऐसा बयान देकर आज़ाद ने हिंदुओं को नीचा दिखाने की कोशिश की है. बीजेपी ऐसे ही मुद्दों की तलाश में रहती है जिससे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हो और उसे चुनावी फायदा पहुंचे. पाच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. इनमें से तीन में बीजेपी की सरकारें हैं. राजस्थान और मध्य प्रदेश में मुसलमान करीब 10 फीसदी हैं, इन राज्यों में बीजेपी आज़ाद के इस बयान को बड़ा मुद्दा बनाकर ध्रुवीकरण कर सकती है.

आज़ाद कांग्रेस के कद्दावर नेता हैं. वो उन गिने-चुने नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के साथ काम किया है और अब राहुल गांधी के साथ उनके बेहद करीबी और विश्वास पात्र नेताओं की हैसियत से उनकी टीम मे शामिल हैं. पार्टी में उनकी हैसियत और अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा में विपक्ष बनाया गया हैं. लिहाज़ा यह नहीं माना जा सकता कि पार्टी और देश राजनीतिक मिजाज को समझने में उसे किसी तरह की चूक हुई होगी. जो उन्होंने महसूस किया बोल दिया. शायद यह बात कहने का समय उन्होंने गलत चुना है.

आजम खान

आजाद की हिम्मत की दाद देनी होगी कि इतने संवेदनशील मुद्दे पर उन्होंने मुंह खोला. और बगैर लाग लपेट साफ बात की. समाज को आईना दिखाया. हो सकता है कि उनका यह बयान राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के लिए नुकसान का सबब बन जाए. पिछले साल गुजरात चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी ने यह कह कर बाजी पलट दी थी कि अगर कांग्रेस जीती तो अहमद पटेल को मुख्यमंत्री बनाएगी. पाकिस्तान अहमद पटेल को मुख्यमंत्री बनाना चाहता है. यह सच्चाई है कि इस प्रचार के बाद गुजरात में बीजेपी के पक्ष में ध्रुवीकरण हुआ था. इससे बीजेपी को चुनाव जीतने में काफी मदद मिली था.

गुजरात का यह प्रयोग इस बात का सबूत है कि तेजी से बदलते भारत में मुसलमानों के खिलाफ नफरत नित नए आयाम ले रही है. इसकी शुरुआत कब हुई यह तो रिसर्च का विषय है. लेकिन यह बात पक्के तौर पर कही जा सकती है कि जब से बीजेपी ने हिंदुत्व को खुले रूप से अपने एजेंडे में शामिल किया है तब से राजनीतिक परिदृश्य से मुसलमान कम होते गए हैं. साल 2014 में केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद राजनीति में मुसलमान लुप्तप्राय प्राणी बन गए हैं. सिर्फ कांग्रेस ही क्यों मुसलमानों के दम पर राजनीति करने वाली सपा, बसपा, राजद, जदयू और रालोद जैसी पार्टियों ने अपने मुस्लिम चेहरों पर नकाब डाल दिया है.

कांग्रेस ने गुजरात के पिछले तीन विधानसभा चुनावों में अहमद पटेल को छोड़कर किसी दूसरे मुस्लिम नेता प्रचार में नहीं भेजा. कांग्रेस आलाकमान को डर रहता है कि ज्यादा मुस्लिम चेहरे दिखेंगे तो कांग्रेस को नुकसान होगा. इस बार कर्नाटक के चुनाव में भी कांग्रेस ने मुस्लिम नेताओं को दूर रखा था. चुनावी नतीजे आने के बाद वहां सरकार बनाने के लिए गुलाम नबी आज़ाद के बड़ी ज़िम्मेदारी ज़रूर दी गई. राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस के मुस्लिम नेताओं को अलग रखा गया है. ज़ाहिर है कांग्रेस मुस्लिम नेताओं को चुनाव प्रचार में नहीं भेजकर धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण की गुंजाइश कम करना चाहती है.

कांग्रेस में टिकटों के बंटवारे में भी इस बात का खास ख्याल रखा जाता है कि कहीं मुसलमानों को ज्यादा टिकट देने से उसका हिंदू वोट बैंक न खिसक जाए. गुजरात के पिछले तीन चुनाव के आंकड़े देखिए कांग्रेस 6-7 से ज्यादा टिकट मुसलमानों को नहीं देती. इसी तरह राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी पिछले तीन चुनावों में कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवारों का आंकड़ा दहाई के अंक को नहीं छूता. इन राज्यों में मुसलमानों की आबादी 10 फीसदी है.

अहमद पटेल

इस हिसाब से देखें तो कांग्रेस को इन राज्यों में कम से कम 15-20 मुस्लिम उम्मीदवार उतारने चाहिए. लेकिन हिंदू जनाधार खिसकने का डर कांग्रेस को ऐसा करने से रोकता है.

मुसलमानों का डर दिखाकर सिर्फ बीजेपी ही राजनीतिक फायदा नहीं उठाती. कांग्रेस इस इस खेल की माहिर रही है. कांग्रेस मौका मिलने अब भी नहीं चूकती. साल 2011 में असम के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने अनौपचारिक रूप से यही प्रचार किया था कि अगर हिंदुओं ने उस वोट नहीं दिया तो बदरुद्दीन अजमल राज्य के मुख्यमंत्री बन जाएंगे. तब असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर चलकर ही अपनी सत्ता बचाई थी. ये खुली सच्चाई है. अब यही काम बीजेपी खुलेआम कर रही है.

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी ने राजनीति में धर्म का ऐसा तड़का लगाया था कि उसकी खुशबू राजनीतिक माहौल में रच बस गई है. पीएम बनने बाद मोदी ने देश विदेश के प्रसिद्ध मंदिरों में सार्वजनिक रूप से विशेष पूजा करके देश के बहुंसख्यंक समाज के बीच एक मजबूत हिंदू नेता की छवि बना ली है. इसकी काट कांग्रेस और बाकी पार्टियां ढूंढ ही नहीं पा रहीं. अब राहुल गांधी भी मंदिर-मंदिर चक्कर लगा कर खुद को मोदी से बेहतर हिंदू साबित करने में जुटे हैं. वहीं अखिलेश और मुलायम कभी कृष्ण को राम से बड़ा भगवान बताकर उनकी मूर्ती लगवाने की बात करते हैं तो कभी विष्णु भगवान की मूर्ती लगवाने का ऐलान करते है.

मौजूदा राजनीतिक हालात में बीजेपी को छोड़ हर पार्टी के सामने अपना वजूद बचाने की चुनौती है. ऐसे में मुसलमानों की चिंता के लिए भला किसके पास वक्त बचा है. मुलायम यिंह यादव और अमर सिंह 2009 के लोकसभा चुनाव में हर रोज दाढ़ी वाले मुसलमानों के साथ टीवी चैनलों पर दिखते थे. साल 2012 के विधानसभा चुनावों के दौरान पूरे यूपी में मुलायम, अखिलेश और शिवपाल की हरे चैक के रूमाल और सिर पर मुस्लिम टोपी वाले पोस्टर लगे थे. वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश ने एक भी लंबी दाढ़ी और टोपी वाले मुसलमान को अपने आसपास भी नहीं फटकने दिया. सपा के जन्म से ही उसका चेहरा रहे आज़म खान आज पार्टी में अपनी जगह ढूंढ रहे हैं.

लगभग सभी राजनीतिक दलों में मुस्लिम नेताओं का हालात आज़म खान और गुलाम नबी आज़ाद की तरह होती जा रही है. मायावती ने कभी बसपा में पार्टी की रीढ़ माने जाने वाले नसीमुद्दीन सिद्दीकी को एक झटके से पार्टी से निकाल फेंका था. मुसलमानों के वोटों पर राजनीति करने वाले राजद, जदयू ने भी मौके की नजाकत को देखते हुए अपने मुस्लिम नेताओं को चुपचाप पिछली कतार में बैठा दिया है. ऐसा लगता है कि कभी मुसलमानों के वोट हासिल करने का जरिया रहे ये मुस्लिम नेता उनके लिए आज बोझ बन गए है. आज इस बोझ को कोई ढोना नहीं चाहता.

गुलाम नबी आज़ाद

गुलाम नबी आज़ाद ने जब यह मुद्दा छेड़ ही दिया है तो उनसे भी कुछ सवाल बनते हैं. आज़ाद को खुद से और अपनी पार्टी के बड़े नेताओं से भी पूछना चाहिए कि अगर देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण इस हद तक पहुंच गया है कि मुस्लिम नेताओं की मौजूगी भर से पार्टी के हिंदू वोटर खिसक जाते हैं तो फिर इसका जिम्मेदार कौन है? अगर संघ परिवार और बीजेपी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के नाम पर अपनी सांप्रदायिक सोच को देश के बड़े तबके के बीच ले जाने में कामयाब हुए हैं तो फिर पांच दशकों तक केंद्र की सत्ता और कई दशकों तक राज्यों की सत्ता में रहने के बावजूद कांग्रेस ऐसा माहौल क्यों नहीं पैदा कर पाई जिसमें समाज का कोई तबका किसी दूसरे के मुकाबले खुद को कमतर या असुरक्षित महसूस न करे. इसकी जिम्मेदारी तो किसी न किसी को लेनी होगी. लंबे समय तक सत्ता में रहने वाली कांग्रेस पर इसकी ज्यादा जिम्मेदारी आती है.

CM Raman touched the feet of ‘Yogi’ after filing his nomination


Chhattisgarh Chief Minister Raman Singh filed his nomination papers from Rajnandgaon Assembly constituency on Tuesday, 23 October, in the presence of Uttar Pradesh Chief Minister Yogi Adityanath.


Chhattisgarh Chief Minister Raman Singh filed his nomination papers from Rajnandgaon Assembly constituency on Tuesday, 23 October, in the presence of Uttar Pradesh Chief Minister Yogi Adityanath.

Singh, who is seeking a fourth consecutive term, was also accompanied by his wife, party in-charge for Chhattisgarh Anil Jain and several other leaders and party workers.

According to reports, the 66-year-old Chief Minister touched the feet of the Uttar Pradesh CM who is not only 20 years his junior by age but also has less experience in politics.

Adityanath arrived in Chhattisgarh to canvass support for BJP candidates after cancelling the weekly meeting of the Uttar Pradesh cabinet. He has been extensively campaigning for the saffron camp in election campaigns ever since his elevation as Chief Minister in March 2017.

Singh has contested from Rajanandgaon constituency in the last two elections. Before that, he contested and won from Dongargaon assembly constituency in Rajnandgaon district in the 2004 elections.

Ahead of filing nominations, Singh told reporters, “I have full faith on the strength of party workers and booth-level workers. The BJP has dedicated this election to Atal ji and each party worker has vowed to form the government for the fourth consecutive term with a thumping majority in the state”.

Commenting on Karuna Shukla, niece of former prime minister late Atal Bihari Vajpayee who has been pitted by Congress against Singh, the CM merely said that the Congress “did not get any local candidate”.

On the other hand, Shukla said that Singh has not done anything for the people in Rajnandgaon.

“Dr Raman Singh has served as CM Chhattisgarh for 15 yrs and as the MLA of Rajnandgaon from last 10 yrs but he didn’t do anything for the betterment of people there. So the Congress president sent me to fight for the people of Rajnandgaon,” Shukla was quoted as saying by ANI.

The last day of filing of nominations for the first phase of state assembly polls to be held on November 12 is 23 October. The second phase of the polls for the 90-member Chhattisgarh Assembly will be held on 20 November.

The votes will be counted on 11 December.

अपने लिए सुरक्षित सीट तलाश रही हैं CM वसुंधरा!


वसुंधरा राजे का दूसरी सीट की तलाश करना राजस्थान में बीजेपी के हालात को दिखाता है. हर चुनाव में सरकार को उखाड़ फेंकने का वोटर का फैसला और एंटीइनकंबेंसी की वजह से पार्टी के तमाम नेता इस बार नई सीटें तलाश रहे हैं


जब भी शंका हो, दूसरी सीट देखो. राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे शायद भारतीय राजनीति की इसी, बहुत पुरानी नीति पर काम कर रही हैं. कहा जा रहा है कि वो कोई ऐसी सीट ढूंढ रही हैं, जहां आसानी से चुनाव जीता जा सके. इसकी वजह यह है कि उनके पुराने गढ़ पर कांग्रेस की तरफ से लगातार हमला हो रहा है.

बताया जा रहा है कि वसुंधरा के रडार पर जो 2 सीटें हैं, वो राजाखेड़ा और श्रीगंगानगर हैं. राजाखेड़ा राजस्थान-उत्तर प्रदेश सीमा पर स्थित है. जबकि श्रीगंगानगर पंजाब सीमा से सटा हुआ है. अगर बीजेपी हाईकमान उनके इस फैसले से सहमत होता है, तो राजे 7 दिसंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव में 2 सीटों से भी लड़ सकती हैं.

राजे की परंपरागत सीट झालरापाटन मध्य प्रदेश सीमा पर है. यहां लगातार कांग्रेस की तरफ से जोरदार तरीके से हाई प्रोफाइल कैंपेन हो रहा है. कुछ दिन पहले जब राजे अजमेर में अपनी ताकत दिखा रही थीं, तब कांग्रेस ने राहुल गांधी को रोड शो के लिए मुख्यमंत्री के क्षेत्र में आमंत्रित किया था. बुधवार को एक बार फिर राहुल गांधी झालरापाटन में इलेक्शन रैली और रोड शो के लिए मौजूद होंगे. इस रोड शो में मुख्यमंत्री की सीट का बड़ा क्षेत्र कवर किया जाएगा.

कांग्रेस एक सामान्य रणनीति पर काम कर रही है. वो चुनाव के समय राजे को उनकी अपनी सीट पर समेट देना चाहती है. पार्टी राज्य में बीजेपी के कैंपेन से उन्हें दूर रखना चाहती है. राज्य में वो अकेली ऐसी नेता हैं, जो भीड़ जुटा सकती हैं. ऐसे में कांग्रेस के गेम प्लान का अहम हिस्सा यही है कि सीएम को उनके ही विधानसभा क्षेत्र में बांधकर रख दिया जाए.

वसुंधरा राजे पर इस बार के चुनाव में बीजेपी को जिताकर लगातार दूसरी बार सरकार बनवाने की चुनौती है

वसुंधरा राजे तीन दशक से चुनाव नहीं हारी हैं. उन्होंने 9 चुनाव जीते हैं

राजस्थान की राजनीति में राजे ऐसे चंद नेताओं में हैं, जिन्होंने तीन दशक से चुनाव नहीं हारा है. इस दौरान उनके पूर्ववर्ती और समकालीन नेता जैसे भैरों सिंह शेखावत और अशोक गहलोत भी हार चुके हैं. लेकिन राजे का रिकॉर्ड बिल्कुल बेदाग है. उन्होंने अब तक 9 चुनाव जीते हैं, 5 लोकसभा और 4 विधानसभा के. मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने अपनी झालावाड़ लोकसभा सीट बेटे दुष्यंत सिंह के लिए छोड़ दी थी. वहां उनकी जबरदस्त पकड़ बरकरार है और कोई चुनौती देने वाला नहीं है. लेकिन 2018 के चुनाव अलग हो सकते हैं, क्योंकि राज्य में एंटीइनकंबेंसी बढ़ती जा रही है और राजे सरकार की लोकप्रियता गिरती जा रही है. तमाम ओपिनियन पोल इशारा कर रहे हैं कि सचिन पायलट और अशोक गहलोत की लोकप्रियता राजे से लगभग दोगुनी है. इसके अलावा, झालरापाटना में राजे की जीत में जातीय समीकरण से मदद मिलती थी. लेकिन अब राजपूतों में गुस्सा है. सवर्ण उनसे नाखुश हैं. यह दोनों ही बीजेपी के पारंपरिक वोटर हैं.

कई मायने में राजे के खिलाफ गुस्सा लगभग वैसा ही है, जैसा हिमाचल प्रदेश में प्रेम कुमार धूमल ने झेला है. नाराजगी काफी कुछ उनकी छवि और प्रदर्शन को लेकर है, न कि पार्टी को लेकर. कैंपेन के दौरान स्लोगन में नजर आ रहा है कि राजे को राजनीति में सबक सिखाने की बात है. भले ही वोटर नरेंद्र मोदी को पसंद कर रहा है.

राजे का दूसरी सीट की तलाश करना राज्य में बीजेपी के हालात को दिखाता है. हर चुनाव में सरकार को उखाड़ फेंकने का वोटर का फैसला और एंटीइनकंबेंसी की वजह से तमाम बीजेपी नेता इस बार नई सीटें तलाश रहे हैं. लेकिन, संभव है कि बीजेपी इस तरह का फैसला करे, जिसमें सीटें बदलने की इजाजत न हो. इसकी वजह यही होगी कि जिस सीट पर जिसने जैसा काम किया है, वही अपने भविष्य की जिम्मेदारी ले.

क्या वसुंधरा के पर कतरकर पार्टी डैमेज कंट्रोल कर पाएगी?


पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे ज्यादा परेशानी राजस्थान में ही हो रही है.


पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे ज्यादा परेशानी राजस्थान में ही हो रही है. राज्य में बीजेपी की सीधी लड़ाई कांग्रेस से है लिहाजा किसी तीसरे मोर्चे की ताकत नजर नहीं आ रही है. भले ही घनश्याम तिवाड़ी जैसे बीजेपी के पुराने दिग्गज अलग से मैदान में ताल ठोक रहे हों या फिर दलित वोटों की जुगत में लगी बीएसपी भी मैदान में क्यों न उतर आई हो, लेकिन, मुकाबले के केंद्र में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ही हैं.

बीजेपी की कोशिश, लड़ाई के केंद्र में हों मोदी

2018 के इस मुकाबले में मजबूत दावेदार बनकर उभरी कांग्रेस ने पांच साल की वसुंधरा सरकार के काम को आधार बनाकर हमला बोलना शुरू किया है. पलटवार बीजेपी की तरफ से भी हो रहा है, लेकिन, बीजेपी की कोशिश 2018 की इस लड़ाई के केंद्र से वसुंधरा को हटाकर मोदी को लाने की है. बीजेपी चाहती है कि पांच साल की लड़ाई महज वसुंधरा राजे बनाम सचिन पायलट न बनकर मोदी बनाम राहुल की लड़ाई के तौर पर सामने आए.

टीम अमित शाह की रणनीति के केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं जिनके साढ़े चार साल के काम-काज को आधार बनाकर बीजेपी 2019 की बड़ी लड़ाई के पहले 2018 में भी राजस्थान के रेगिस्तान में अपनी कंटीली राह को कुछ हद तक आसान बनाना चाहती है.

बीजेपी के रणनीतिकारों को लगता है कि अगर लड़ाई मोदी बनाम राहुल की हो तो फिर बीजेपी को काफी हद तक राहत मिल सकती है, वरना राजस्थान में इस बार पार्टी के लिए अपना किला बचाना मुश्किल लग रहा है.

अमित शाह की सियासी बिसात

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने राजस्थान को लेकर विशेष ‘गेम प्लान’ भी तैयार किया है. इसके लिए उन्होंने खुद सबसे ज्यादा फोकस राजस्थान पर किया है. शाह के लगातार हो रहे राजस्थान दौरे और वहां हर संभाग में जाकर पार्टी संगठन को चुस्त करने की कवायद इस बात का प्रतीक है. वसुंधरा राजे से नाराज पार्टी नेताओं को साथ लाने की कोशिश भी हो रही है. संघ और संगठन में समन्वय के साथ-साथ बूथ स्तर पर पार्टी को मजबूत करने पर जोर दिया जा रहा है.

माइक्रो मैनेजमेंट के माहिर खिलाड़ी अमित शाह खुद पूरे मामले पर नजर रख रहे हैं. बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने फ़र्स्टपोस्ट के साथ बातचीत में कहा, ‘भले ही राज्य में बीजेपी ने कई नेताओं और प्रभारियों को जिम्मेदारी दी है, लेकिन, खुद अमित शाह की हर पहलू पर नजर है.’

इसके अलावा राज्य में चुनाव प्रभारी केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर को बनाया गया है, जबकि अविनाश राय खन्ना पहले से ही प्रभारी की भूमिका में काम कर रहे हैं. ये दोनों नेता राज्य में पार्टी की चुनावी रणनीति को लेकर लगातार बैठक भी कर रहे हैं और उम्मीदवारों के चुनाव में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.

राज्यसभा सांसद मदनलाल सैनी अभी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं, हालांकि पार्टी आलाकमान केंद्रीय मंत्री और जोधपुर से सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाह रहा था, लेकिन, मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के विरोध के चलते मदन लाल सैनी को प्रदेश की कमान सौंपकर बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की गई. पार्टी आलाकमान ने चुनावी साल में विवाद खत्म करने के लिए ऐसा कर दिया. लेकिन, बाद में गजेंद्र सिंह शेखावत को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाकर संकेत साफ दे दिया गया कि पार्टी आलाकमान की पसंद गजेंद्र सिंह शेखावत ही हैं.

भरोसेमंद नेताओं के भरोसे आलाकमान !

हालांकि इन लोगों के अलावा भी बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने संगठन के दूसरे नेताओं को मैदान में उतार दिया है. बीजेपी के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री वी सतीश, केंद्रीय मंत्री और बीकानेर से सांसद अर्जुन राम मेघवाल, पार्टी महासचिव भूपेंद्र यादव और राजस्थान में संगठन मंत्री चंद्रशेखर भी लगातार चुनावी तैयारी में लगे हुए हैं जिनसे मिले फीडबैक के आधार पर पार्टी आगे की रणनीति बना रही है.

राजस्थान में संगठन मंत्री चंद्रशेखर कुछ महीने पहले ही राजस्थान में संगठन को दुरुस्त करने की जिम्मेदारी दी गई है. इसके पहले वे पश्चिमी यूपी के संगठन का काम देख रहे थे. चंद्रशेखर को राजस्थान भेजने के पीछे भी बीजेपी आलाकमान का मकसद वसुंधरा की नकेल कसना था.

इसके अलावा वसुंधरा राजे की काट के लिए प्रदेश के दो राजपूत नेताओं केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को भी मैदान में उतारा है. इस तरह बीजेपी आलाकमान ने अपने तरीके से राजस्थान में पार्टी संगठन और चुनावी रणनीति में वसुंधरा की मनमानी को रोकने की पूरी तैयारी कर ली है.

नहीं चलेगी महारानी की मनमानी !

राजस्थान में पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के 200 में से 162 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि कांग्रेस महज 21 सीटों पर ही सिमट कर रह गई थी. उस वक्त मोदी लहर का असर राजस्थान में भी दिखा था. लेकिन, इस बार इस तरह की कोई लहर नहीं दिख रही है. बल्कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ माहौल जरूर दिख रहा है.बीजेपी की कोशिश है डैमेज कंट्रोल करने की. पार्टी को इस बात का अंदाजा है, क्योंकि इस साल हुए अजमेर और अलवर लोकसभा के उपचुनाव और मांडलगढ़ के विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था. इसे मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ गुस्से के तौर पर देखा गया था.

अब पार्टी आलाकमान ने डैमेज कंट्रोल करने के लिए ही पहले वसुंधरा के हाथों में चुनाव की पूरी कमान सौंपने के बजाए कई नेताओं को अपने तरीके से चुनाव अभियान की कमान सौंपी है. दूसरी तरफ अब तैयारी हो रही है कई मौजूदा विधायकों के टिकट काटने की.

बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, इस बार 162 विधायकों में से एक तिहाई से ज्यादा विधायकों के टिकट भी कट जाएं तो बहुत आश्चर्य नहीं होना चाहिए. पार्टी एंटीइंबेंसी फैक्टर को कम करने के लिए इस तरह की तैयारी कर रही है. इसके लिए पार्टी आलाकमान ने हर विधायक की रिपोर्ट मंगाई है, जिसके आधार पर ही टिकट का फैसला होगा.

बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, हर मौजूदा विधायक को टिकट उनके परफॉरमेंस और रिपोर्ट कार्ड के आधार पर ही तय होगा, भले ही वो विधायक कितने भी दिनों से अपने क्षेत्र से विधायक क्यों न हो ? सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी इस बाबत अपनी मंशा से पार्टी नेताओं को अवगत करा दिया है.

हालांकि, इसके पहले विधानसभा चुनाव या फिर लोकसभा चुनाव में वसुंधरा राजे की ही मनमानी चलती रही है, क्योंकि वहां प्रदेश अध्यक्ष भी अबतक उन्हीं के गुट के रहे हैं. लेकिन, अब पहली बार वसुंधरा पार्टी के अंदर ही घिर गई हैं. महारानी की मनमानी इस बार अब नहीं चलने वाली है. पार्टी आलाकमान जीताऊ उम्मीदवार और उम्मीदवार के रिपोर्ट कार्ड के आधार पर ही फैसला करेगा.

पार्टी की नजर लोकसभा चुनाव पर

2014 के लोकसभा चुनाव में राजस्थान की सभी 25 सीटें बीजेपी की झोली में आई थीं. लोकसभा चुनाव से पहले हुए विधानसभा चुनाव का असर लोकसभा में भी देखने को मिला था. इस लिहाज से बीजेपी के लिए अब विधानसभा का चुनाव काफी अहम हो गया है. पार्टी आलाकमान को अंदाजा है कि अगर विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन ज्यादा खराब हुआ तो फिर उसका असर लोकसभा चुनाव में भी पड़ सकता है.

पार्टी की तरफ से इसी रणनीति के तह तैयारी हो रही है, जिसमें पहले तैयारी सरकार बनाने की होगी. लेकिन, बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, अगर सरकार नहीं बन पाई तो भी पार्टी मजबूत विपक्ष के तौर पर राज्य में अपने –आप को जिंदा रखे, वरना कांग्रेस की एकतरफा जीत और पार्टी की एकतरफा हार का असर सीधे लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा.

सूत्रों के मुताबिक, अगर राजस्थान में सरकार नहीं बन पाई तो बीजेपी वसुंधरा को किनारे करने की तैयारी करेगी. हो सकता है कि पार्टी उन्हें विधानसभा में नेताप्रतिपक्ष का पद न दे. लोकसभा चुनाव से पहले अगर ऐसा पार्टी नहीं भी कर पाई तो इतना तय है कि फिर वो अपने हिसाब से नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति कर लोकसभा चुनाव की तैयारी करेगी. उस वक्त कमजोर हो चुकी वसुंधरा राजे को नजरअंदाज कर गजेंद्र सिंह शेखावत जैसे युवा चेहरे को कमान सौंपी जा सकती है.