अयोध्या मामले पर जनवरी 2019 तक टली सुनवाई इसके राजनैतिक मायने


अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अब सुनवाई को जनवरी 2019 तक के लिए टाल दिया है.


अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अब सुनवाई को जनवरी 2019 तक के लिए टाल दिया है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक जनवरी में ही तय होगा कि इस मामले की नियमित सुनवाई होगी या नहीं. इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एस के कौल और जस्टिस के एम जोसेफ की बेंच में हो रही है जिनकी तरफ से यह फैसला आया है.

इससे पहले 27 सितंबर को सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने 1994 के अपने फैसले पर पुनर्विचार से इनकार कर मस्जिद को इस्लाम का आंतरिक हिस्सा मानने से इनकार कर दिया था. उस वक्त इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर कर रहे थे. सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने 27 सितंबर को अपने फैसले में 2:1 से आदेश दिया था कि अयोध्या मामले की सुनवाई सबूतों के आधार पर होगी. 27 सितंबर के फैसले के बाद 29 अक्टूबर की तारीख तय की गई थी जिसके बाद अब वर्तमान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की बेंच ने जनवरी तक सुनवाई को टाल दिया है.

गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर, 2010 को दिए अपने फैसले में 2:1 के बहुमत से अयोध्या की उस 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया था. इसे फैसले के खिलाफ ही सुप्रीम कोर्ट में सभी पक्षों की तरफ से याचिका दायर की गई है, जिस पर सुनवाई की जानी है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करेगी सरकार ?

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ऐसे वक्त में आया है जबकि संघ परिवार की तरफ से फिर से मंदिर निर्माण को लेकर सरकार पर दबाव बनाया जा रहा है. मोदी सरकार मंदिर निर्माण को लेकर पहले से ही अपना स्टैंड साफ कर चुकी है कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार किया जाएगा या फिर आपसी समहति से ही बीच का रास्ता निकालकर वहां मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त होगा. सरकार के सूत्रों के मुताबिक, सरकार अभी भी अपने उसी स्टैंड पर कायम रहेगी.

लेकिन, इस बीच संघ परिवार का दबाव सरकार पर आने वाला है. संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत की तरफ से इस मामले में कानून बनाने की मांग कर दी गई है. दूसरी तरफ विश्व हिंदू परिषद यानी वीएचपी ने साधु-संतों के साथ मिलकर अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाने को लेकर जनजागरण अभियान पहले ही शुरू कर रखा है. संतों की उच्चाधिकार समिति की बैठक में वीएचपी नेताओं और साधु-संतों ने भव्य मंदिर निर्माण को लेकर सांसदों का उनके संसदीय क्षेत्र में घेराव करने और संसद मे कानून बनाने की मांग को लेकर सांसदों के अलावा हर राज्य में राज्यपालों से मिलकर ज्ञापन सौंपने का कार्यक्रम है. साधु-संत प्रधानमंत्री से मिलकर भी राम मंदिर निर्माण के लिए सरकार की पहल की मांग करने वाले हैं.

बीजेपी के फायरब्रांड नेताओं की बयानबाजी

संघ परिवार के मुखिया की तरफ से जल्द राम मंदिर निर्माण के लिए कानून बनाने की मांग करने के बाद बीजेपी के भीतर भी उन नेताओं को खुलकर अपनी बात रखने का मौका मिल गया है जो राम मंदिर आंदोलन से जुड़े रहे हैं या जो खुलकर हिंदुत्व के मुद्दों को उठाते रहे हैं.

बीजेपी नेता और पूर्व सांसद विनय कटियार ने राम मंदिर आंदोलन मामले में देरी के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने आरोप लगाया है कि कांग्रेस नहीं चाहती कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले राम मंदिर पर कोई फैसला आए जिसके चलते इतनी देरी हो रही है.

उधर केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा है कि हिंदुओं का सब्र अब टूट रहा है. उन्होंने कहा, ‘मुझे भय है कि हिंदुओं का सब्र टूट गया तब क्या होगा?’

विनय कटियार औऱ गिरिराज सिंह के बयान से साफ है कि बीजेपी के भीतर एक बड़ा तबका है जो इस मुद्दे पर संघ परिवार और साधु-संतों की लाइन पर चल रहा है. बीजेपी का यह धड़ा हर हाल में अध्यादेश लाकर या फिर कानून बनाकर राम मंदिर का रास्ता साफ करना चाहता है. लेकिन, फिलहाल सरकार के लिए यह सबसे बड़ी मुश्किल है कि इस मुद्दे पर कानून या अध्यादेश का रास्ता अख्तियार करे.

अब क्या होगा फैसले का असर ?

सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी संगठन और सरकार इस मुद्दे पर काफी संभलकर चल रहे हैं. पांच सालों के अपने काम-काज और बेहतर प्रशासन के मुद्दे पर चुनावी मैदान में उतरने की सोंच रहे सरकार के लोगों को उम्मीद थी कि अगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला चुनाव से पहले आ जाता है तो उन्हें इसका सीधा सियासी फायदा हो सकता है. बीजेपी के रणनीतिकारों को उम्मीद थी कि चुनाव से पहले इस मुद्दे पर फैसला चाहे जो भी हो उस पर हो रहे सियासी ध्रुवीकरण का फायदा उन्हें ही मिलेगा

बीजेपी नेताओं के बयानों से इसकी झलक भी मिल रही थी. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भी राम मंदिर पर बयान आया लेकिन, उसके बाद उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का यह बयान माहौल को ज्यादा गरमाने वाला था जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का फैसला राम मंदिर के विपरीत आने पर भी कानून बनाकर अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की बात की थी.

 

बीजपी नेताओं और संघ परिवार की तरफ से यूपी समेत देश भर में जो माहौल बनाया जा रहा था उसी का परिणाम था कि अचानक राष्ट्रीय स्तर पर यह मसला फिर से उछलने लगा. लेकिन, कोर्ट के फैसले ने उनकी रणनीति पर फिलहाल पानी फेर दिया है.

दूसरी तरफ, कांग्रेस भले ही राम मंदिर मुद्दे पर अदालत के फैसले को मानने की ही बात कर रही थी, लेकिन, वो नहीं चाहती थी कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला चुनावों से पहले हो. कांग्रेस को इस बात का एहसास है कि लोकसभा चुनाव से पहले अयोध्या मुद्दे पर अगर फैसला आ जाता तो फिर फैसला जो भी हो, उस पर नुकसान कांग्रेस को ही होता. कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी दोनों ही सूरत में अयोध्या मसले को अपने हिसाब से भुनाने और ध्रुवीकरण की राजनीति करने में माहिर है, लिहाजा फायदा उसे ही मिलता.

मुस्लिम पक्षकारों की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में कपिल सिब्बल ने भी दलील देकर 2019 के लोकसभा चुनावों तक अयोध्या मामले को टालने की अपील की थी. उसके बाद से ही बीजेपी और संघ परिवार की तरफ से कांग्रेस पर हमला किया जा ता रहा है.

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कांग्रेस के सॉफ्ट हिंदुत्व को काट पाएगी बीजेपी ?

दूसरी तरफ, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इस वक्त चुनावों से पहले सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर हैं. कभी शिवभक्त तो कभी रामभक्त बनकर राहुल गांधी लगातार अपने-आप को ‘हिंदू’ के तौर पर पेश कर रहे हैं. अगर चुनाव से पहले राम मंदिर पर कोई फैसला आता है तो फिर कांग्रेस अध्यक्ष के हिंदुत्व कार्ड की हवा निकल जाएगी और बीजेपी पूरा फायदा ले लेगी. यही डर कांग्रेस को था, लेकिन, सूत्रों के मुताबिक, अब सुनवाई टलने से अंदर खाने कांग्रेस खेमे में खुशी ही है. सूत्रों की मानें तो सर्वोच्च नयायालय में एक कांग्रेसी डीएनए से सराबोर है जो कपिल सिबल के प्रत्येक आदेश का अक्षरश: पालन करेगा और उन्हे फायदा पंहुचाएगा,  भाजपा इस मामले में कुछ भी नहीं कर सकती। राम मंदिर मुद्दे पर उनकी हवा निकाल गयी है।

हालांकि संघ परिवार की तरफ से अभी भी अध्यादेश या कानून के जरिए राम मंदिर मुद्दे पर आगे बढ़ने के लिए दबाव बनाया जाएगा. कुछ लोगों का तर्क यह भी है कि अध्यादेश या कानून पर समर्थन और विरोध की सूरत में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का भी हिंदुत्व कार्ड फ्लॉप हो जाएगा, लेकिन, सरकार इस संवेदनशील मसले पर अध्यादेश शायद ही लाए. ऐसे में संघ परिवार और साधु-संतों का आंदोलन चलता रहेगा जिसके जरिए 2019 तक इस मसले को जिंदा करने की कोशिश की जाती रहेगी.

राम जन्मभूमि पर अध्यादेश लाने पर ओवैसी सरकार को देख लेंगे


सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ओवैसी ने कहा कि बीजेपी कब तक अध्यादेश के नाम पर राम मंदिर मामले में डराती रहेगी

ओवैसीने कहा की सरकारी मर्ज़ी का अध्यादेश नहीं चलेगा देश संविधान से चलेगा 


अयोध्या राम मंदिर मामले पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई जनवरी तक टाल दी है. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई जनवरी में शुरू किए जाने का फैसला दिया है. मामले की नियमित सुनवाई पर फैसला भी अब जनवरी में ही होगा. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद ही अब मामले में अलग-अलग नेताओं का प्रतिक्रिया सामने आ रही है.

 

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने राम मंदिर मामले पर केंद्र सराकर को चुनौती दे डाली है. उन्होंने केंद्र सरकार से कहा कि आप सत्ता में है. अगर हो सके तो राम मंदिर पर अध्यादेस लाकर दिखाइए, उन्होंने कहा कि हर बार सरकार अध्यादेश लाने की धमकी देती है. उन्होंने कहा बीजेपी कब तक अध्यादेश के नाम पर राम मंदिर मामले में डराती रहेगी. ओवैसी ने कहा कि अगर पीएम का 56 इंच का सीना है तो अध्यादेश लाकर दिखाएं.

वहीं उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने फैसले के बाद कहा कि ये कोर्ट का फैसाल है इसलिए मैं इस पर कुछ नहीं कहना चाहता. हालांकि ये अच्छा संकेत नहीं हैं.

दूसरी तरफ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने कहा कि यह एक परिचित कहानी है. हर 5 साल में चुनाव से पहले, बीजेपी राम मंदिर का मुद्दा उठाती है. कांग्रेस पार्टी की स्थिति यह है कि मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के सामने है, सभी को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहिए

सीबीआई विवाद: अस्थाना को सर्वोच्च नयायालय द्वारा गुरुवार तक गिरफ्तारी से राहत


सीबीआई अपने स्पेशल डायरेक्टर के मामले में अब तक अपने जांच पर कायम है जिसमें अस्थाना को 1 नवंबर 2018 तक छुट्टी पर भेज दिया गया है


सीबीआई विवाद में दिल्ली हाई कोर्ट ने आज एक अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा रिश्वत के मामले में घिरे सीबीआई के नंबर दो ऑफिसर राकेश अस्थाना को अगले गुरुवार तक गिरफ्तार नहीं किया जा सकता. दिल्ली उच्च न्यायालय ने सीबीआई विवाद से जुड़े मामले में ये टिप्पणी की है. सीबीआई अपने स्पेशल डायरेक्टर के मामले में अब तक अपने जांच पर कायम है जिसमें अस्थाना को 1 नवंबर 2018 तक छुट्टी पर भेज दिया गया है. जस्टिस नजमी वजीरी की बेंच ने सीबीआई की जांच पर सवाल उठाते हुए कहा कि आखिर क्यों अस्थाना और दूसरे अधिकारियों की एफआईआर पर रिपोर्ट क्यों नहीं जमा की. वहीं हाई कोर्ट ने सीबीआई को गुरुवार से पहले रिपोर्ट फाइल करने का निर्देश दिया है.

दिल्ली उच्च न्यायालय में मनोज प्रसाद के वकील ने कहा कि यह दो हाथी और एक चूहे के बीच की लड़ाई है. बता दें कि मनोज प्रसाद दुबई स्थित एक इंवेस्टमेंट बैंकर हैं जिन पर रिश्वत लेने का आरोप है. मनोज प्रसाद को राकेश अस्थाना केस में 17 अक्टूबर को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था.

सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना और डीएसपी देवेंद्र कुमार के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट में सीबीआई के वकील ने कहा कि उन्हें काउंटर रिप्लाई फाइल करने के लिए थोड़ा और समय चाहिए.

Supreme Court adjourns Ayodhya dispute matter, 3-judge bench led by CJI Gogoi says date of hearing will be fixed in January


70 years, 2 minutes, indefinite date of January 2019

Why if one sees Congress Connection in SC

Sibal is obeyed today

When parties indicate urgency and an early hearing, CJI-led Bench clarifies that it cannot really say when hearing will begin.


A three-judge Bench of the Supreme Court, led by Chief Justice of India (CJI) Ranjan Gogoi, on Monday posted the Ayodhya title suit appeals in January before an appropriate Bench to fix a date for hearing the case.

When parties indicated urgency and an early hearing, the CJI-led Bench clarified that it cannot really say when hearing would begin. It left it to the discretion of the “appropriate Bench” before which the matter would come up on January.

“We have our own priorities… whether hearing would take place in January, March or April would be decided by an appropriate Bench,” the CJI said.

The CJI repeated that all the court was ordering was that the appeals would come up in January first week before a Bench “not for hearing but for fixing the date of hearing”.

On September 27, a three-judge Bench of the court led by then Chief Justice Dipak Misra, in a majority opinion, decided against referring the question ‘whether offering prayers in a mosque is an essential part of Islam’ to a seven-judge Constitution Bench.

With this, the court had signalled that it would decide the appeals like any other civil suit, based on evidence, and pay little heed to arguments about the “religious significance” of the Ayodhya issue and the communal strife it has led to over the past many years.

The Misra Bench’s judgment, authored by Justice Ashok Bhushan on the Bench, directed the hearing in the appeals to start from October 29. This last paragraph in the September 27 judgment led to questions whether the court would deliver a judgment in the appeals before the May 2019 general election.

These appeals are against the September 30, 2010 verdict of the Allahabad High Court to divide the disputed 2.77 acre area among the Sunni Waqf Board, the Nirmohi Akhara and Ram Lalla. The Bench had relied on Hindu faith, belief and folklore.

Lord Ram’s birthplace

The High Court concluded that Lord Ram, son of King Dashrath, was born within the 1,482.5 square yards of the disputed Ramjanmabhoomi-Babri Masjid premises over 900,000 years ago during the Treta Yuga. One of the judges said the “world knows” where Ram’s birthplace was while another said his finding was an “informed guess” based on “oral evidences of several Hindus and some Muslims” that the precise birthplace of Ram was under the central dome.

The final hearings in the Ayodhya appeals began before the Misra Bench, also comprising Justice S. Abdul Nazeer, on December 5 last.

The day happened to be the eve of the 25th anniversary of the demolition of the 15th century Babri Masjid by kar sevaks on December 6, 1992. The appeals were taken up after a delay of almost eight years. They remained shelved through the tenures of eight Chief Justices of India from 2010.

However, the Muslim appellants, a cross-section of Islamic bodies like the Sunni Wakf Board and individuals, had drawn the Bench’s attention to certain paragraphs in a 1994 five-judge Constitution Bench judgment in the Dr Ismail Faruqui case. One of these paragraphs stated that “a mosque is not an essential part of the practice of the religion of Islam and namaz [prayer] by Muslims can be offered anywhere, even in open”.

Mosque and Islam

“So is the mosque not an essential part of Islam? Muslims cannot go to the garden and pray,” their lawyer and senior advocate Rajeev Dhavan had asked the court. He asked the Bench to freeze the Ayodhya appeals’ hearing till this question is referred and decided by a seven-judge Bench.

In their majority view, Chief Justice (retired) Misra and Justice Bhushan refused to send the question to a seven-judge Bench. Their opinion said the observations were made in the context of the Faruqui case which was about public acquisition of places of religious worship. It should not be dragged into the Ayodhya appeals. The minority decision authored by Justice Nazeer dissented with the majority on the Bench, and said this observation about offering prayer in a mosque influenced the Allahabad High Court in 2010. He questioned the haste of the court.

During the maiden Supreme Court hearing of the Ayodhya appeals last year, senior advocate Kapil Sibal suggested to the court to post the Ayodhya hearings after July 15, 2019.

Along with Mr. Sibal, senior advocate Dushyant Dave and Mr. Dhavan argued that the Ayodhya dispute was not just another civil suit. The case covered religion and faith and dates back to the era of King Vikramaditya. It is probably the most important case in the history of India which would “decide the future of the polity”. The appeals would have the court decide “whether this is a country where a mosque can be destroyed”.

“These appeals go to the very heart of our secular and democratic fabric,” Mr. Dhavan had submitted.

Mr. Sibal had alleged the government was using the judiciary to realise its agenda for a Ram mandir assured in the ruling BJP’s 2014 election manifesto.

Modi is the “favourite” prime ministerial candidate of Muslims for 2019

Prime Minister Narendra Modi


On the Ram temple issue, Mr. Hussain said for the BJP, it was a matter of faith and not a poll plank.


Narendra Modi is the “favourite” prime ministerial candidate of Muslims for next year’s Lok Sabha polls as he has dispelled the “fear” that several parties instilled in the community using his name, senior BJP leader Shahnawaz Hussain said on Sunday.

He said the faith in Mr. Modi among Muslims had increased, especially among the women.

“The favourite prime ministerial candidate for Muslims in the 2019 polls is Narendra Modi, because he sees all 132 crore people of the country just as Indians. Other parties have seen them as a vote bank,” Mr. Hussain said.

Muslims account for around 14 per cent of India’s 130 crore population and the community plays a key role in the electoral outcome in a sizeable number of Lok Sabha seats in Uttar Pradesh, Assam, Bihar, West Bengal, Jharkhand, Karnataka, Kerala and Jammu and Kashmir.

Blames Congress for poverty

Mr. Hussain blamed the Congress for the poverty and backwardness of the Muslims in the country, saying the party had done injustice to the community and Modi had given them justice.

“Some people in 2014 used to scare others using Narendra Modi’s name. Today, a large number of people from the Muslim community also feel that he is a man who works day and night. Narendra Modi treats all 132 crore Indians alike,” he said.

Other parties used to take votes from Muslims by spreading the “fear” of Mr. Modi and the BJP and the prime minister had taken out that fear, Mr. Hussain said.

Now they see that Mr. Modi is in power but there is no problem, the BJP leader added.

‘Muslims have full faith’

Not a single statement was made by Mr. Modi against Muslims, he said, adding that the prime minister’s “shamshan-kabristan” statement in the run-up to the Uttar Pradesh Assembly polls last year was “wrongly interpreted” as he had advocated taking care of both.

“In our party, some people may be making (certain) statements, but Muslims have full faith on the statements made by BJP chief Amit Shah and Prime Minister Narendra Modi,” the former Union Minister said.

“Our party president and our prime minister have never given any statement that would hurt Muslims,” he claimed, asserting that the community would back the saffron party big time in the 2019 general election.

Name change

Mr. Hussain also said Allahabad’s name was changed to Prayagraj as “injustice” was done in the past” and now, “justice” had been restored.

“The earlier name was Prayagraj that was changed. To correct that mistake, is it wrong?

“Earlier also, Bangalore’s name was changed to Bengaluru, Madras was changed to Chennai. So, how does history come into this,” he said, rebutting the Congress’s charge that the Modi government was trying to rewrite history.

On the Ram temple issue, Mr. Hussain said for the BJP, it was a matter of faith and not a poll plank.

“From October 29, there will be day-to-day hearing (in the Supreme Court). We are hopeful that this issue will be resolved soon and it will be acceptable to all the people in the country.

“Some people are also demanding that a law be made (for the construction of the temple). Everybody has a right to demand, how can anybody stop that? The government has the right to decide and it has not taken any decision in this regard,” he said.

Upcoming Assembly elections

Talking about the upcoming Assembly elections in five states, the BJP spokesperson exuded confidence that his party would win in Madhya Pradesh, Rajasthan and Chhattisgarh.

“In Mizoram, the government will not be formed without our support and in Telangana, we will emerge as a big party,” he claimed.

Asked if the state polls will be an indicator for the 2019 general election, he said all elections are different, but in state polls also people will not let Prime Minister Modi get weakened.

“When Modi enters the electoral field, people back him,” the 49-year-old leader said.

Mr. Hussain also slammed the Congress for linking the divesting of powers of CBI Director Alok Verma with the Rafale issue, saying two officials are making allegations against each other where does Rafale come into this.

United Lok Sabha fight

He also asserted that the BJP, the Janata Dal (United), the Lok Janshakti Party and the Rashtriya Lok Samta Party will fight the Lok Sabha polls in Bihar together.

He said the alliance with the Nitish Kumar-led JD(U) had boosted the National Democratic Alliance’s (NDA) prospects in Bihar and the coalition was focussed on “Mission 40” — to win all the Lok Sabha seats in the state.

Asked if anti-incumbency would be a factor in Bihar, Mr. Hussain said, “I had lost from Bhagalpur by 8,000 votes and Nitish Kumarji’s candidate was third, getting 1,60,000 votes. Now those votes will be added to the BJP’s kitty…we will fight together and this time, it is Mission 40 — that we win all the 40 seats.”

He also claimed that issues such as rising petrol and diesel prices will not hamper the BJP’s poll prospects, saying the people were aware that the fuel problem was a global one.

The Modi government will come to power with a bigger mandate in 2019, Mr. Hussain asserted.

30 ओक्टुबर तक कम से कम 15 सीटें दे कांग्रेस: हीरालाल अलावा

हीरालाल अलावा


  • उन्होंने कहा, ‘अगर 30 अक्टूबर तक चुनावी गठबंधन पर हमारी कांग्रेस से सहमति नहीं बनी, तो हम आगामी चुनावों में अपने नेताओं को निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर उतारेंगे

  • 230 विधान सभा सीटों में से मात्र 15 सीटों की मांग क्या कांग्रेस ठुकरा देगी?

  • वहीं जयस की सहयोगी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) ने इस नए संगठन को आगाह किया है कि वह कांग्रेस से चुनावी तालमेल हर्गिज न करे.सीटें


 

कांग्रेस से चुनावी गठबंधन की कोशिश में जुटे संगठन जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) ने मध्यप्रदेश के प्रमुख विपक्षी दल से कम से कम 15 विधानसभा सीटें मांगी हैं. इसके साथ ही, कांग्रेस को अल्टीमेटम देते हुए कहा है कि वह तीन दिन के भीतर इस प्रस्तावित तालमेल पर फैसला कर ले.

शनिवार को जयस के राष्ट्रीय संरक्षक हीरालाल अलावा ने इंदौर प्रेस क्लब में एक कार्यक्रम के दौरान कहा, ‘चुनावी गठबंधन के लिए कांग्रेस से हमारी चर्चा जारी है. हम मालवा-निमाड़ अंचल की कम से कम 15 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ा करना चाहते हैं. हम चाहते हैं कि कांग्रेस इन सीटों पर अपने उम्मीदवार नहीं उतारे और हमें समर्थन दे.’

उन्होंने कहा, ‘अगर 30 अक्टूबर तक चुनावी गठबंधन पर हमारी कांग्रेस से सहमति नहीं बनी, तो हम आगामी चुनावों में अपने नेताओं को निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर उतारेंगे.’ अलावा ने बताया कि वह धार जिले के कुक्षी विधानसभा क्षेत्र से खुद चुनाव लड़ना चाहते हैं और जयस ने चुनावी गठबंधन की चर्चाओं के दौरान कांग्रेस से उसके कब्जे वाली यह सीट भी मांगी है.

चुनाव आयोग में पंजीकृत नहीं है जयस, जीजीपी ने दी चेतावनी

उन्होंने कहा, ‘कुक्षी क्षेत्र हमारे संगठन का गढ़ है. इसलिए इस सीट पर हमारा स्वाभाविक दावा है.’ गौरतलब है कि वर्ष 2013 के विधानसभा चुनावों में कुक्षी सीट से कांग्रेस उम्मीदवार सुरेंद्र सिंह बघेल ‘हनी’ ने अपने नजदीकी प्रतिद्वन्द्वी को 42,768 मतों से पराजित किया था.

‘अबकी बार, आदिवासी सरकार’ का चुनावी नारा देने वाला जयस हालांकि एक राजनीतिक दल के रूप में चुनाव आयोग में अभी पंजीकृत नहीं है. लेकिन उसकी अलग-अलग सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार उतारकर इन्हें समर्थन देने की योजना है. इस बीच, जयस की सहयोगी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) ने इस नए संगठन को आगाह किया है कि वह कांग्रेस से चुनावी तालमेल हर्गिज न करे.

कांग्रेस देती है लॉलीपॉप

समाजवादी पार्टी से चुनावी गठबंधन करने वाली जीजीपी के राष्ट्रीय महासचिव बलबीर सिंह तोमर ने कार्यक्रम में कहा, ‘कांग्रेस हम जैसे छोटे सियासी दलों को उसी तरह अपने पास बुलाती है. जैसे छोटे बच्चों को लॉलीपॉप दिखाकर ललचाया जाता है. कांग्रेस छोटे दलों को खत्म करने का षड्यंत्र रच रही है.’

उन्होंने कहा, ‘हमने कांग्रेस की चुनावी लॉलीपॉप की तरफ देखना बंद कर दिया है. मैं जयस से भी कहना चाहता हूं कि वह भी कांग्रेस की इस लॉलीपॉप की तरफ न देखे.’ तोमर ने कहा, ‘हम कांग्रेस के पास (चुनावी गठबंधन की) भीख मांगने नहीं गए थे बल्कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ हमारे पास (चुनावी गठबंधन की) भीख मांगने आए थे. क्योंकि उनकी पार्टी राज्य की सत्ता से पिछले 15 साल से वनवास में है.’

‘अयप्पा भक्तों’ के साथ भाजपा अडिग चट्टान की तरह खड़ी है: अमित शाह


शाह ने कहा कि केरल की लेफ्ट सरकार सबरीमाला के श्रद्धालुओं का दमन कर रही है


केरल के कन्नौर जिले में स्थित बीजेपी के नए दफ्तर का उद्धघाटन करने पहुंचे पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने वहां मौजूद अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए सबरीमाला विवाद पर आयप्पा भक्तों की भावनाओं को नज़र में रखते हुए कहा कि केरल की लेफ्ट सरकार सबरीमाला के श्रद्धालुओं का दमन कर रही है.

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह पहली बार है जब पार्टी ने खुलकर श्रद्धालुओं को अपना समर्थन दिया है.

शाह ने कहा कि कोर्ट को ऐसा फैसला ही नहीं देना चाहिए, जिसे लागू ना किया जा सके. कार्यक्रम में अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए शाह ने कहा, ‘आज केरल में धार्मिक विश्वास और राज्य सरकार की क्रूरता के बीच संघर्ष चल रहा है. सरकार ने 2000 से ज्यादा श्रद्धालुओं, और बीजेपी, आरएसएस के कार्यकर्ताओं को जेल में ठूंस दिया है. बीजेपी भगवान अयप्पा के भक्तों के साथ चट्टान की तरह खड़ी है, लेफ्ट सरकार सचेत रहे.’

शाह यहां पार्टी के नए कार्यालय का उद्धघाटन करने के बाद कई कार्यक्रमों में शिरकत करेंगे. इसके अलावा वह ‘बलिदान स्मृति कार्यक्रम’ का भी उद्धघाटन करेंगे.

Global powers to grant $9-10 billion bailout packages to otherwise a terrorist state, The Pakistan

Hafiz Muhammad Saeed (C), chief of the Islamic charity organisation Jamaat-ud-Dawa (JuD), speaks to supporters during a gathering file photo


Down to just $8.5 billion in foreign exchange reserves, Pakistan, which has been struggling with a failing economy, has just been given a short lease of life in the form of a $3billion deposit and similar quantum of energy support, by Saudi Arabia.

It’s extremely difficult to understand Pakistan as a nation. At one end, its citizenry fully acknowledge that Saeed and his organisation only mean trouble for Pakistan’s already low international reputation, especially at a time when the nation is in dire straits on the economic front


Pakistan is indeed a strange country beyond any sense of rationalism. Only three days ago Human Rights Minister Shireen Mazari presented a strategic conflict resolution model for Jammu and Kashmir with the intent that the international community could get India to negotiate on the alleged dispute.

Since his election to office, Prime Minister Imran Khan has urged India a number of times to engage in talks without offering any commensurate commitment towards cessation of sponsored terror in Jammu and Kashmir or elsewhere in India.

The Financial Action Task Force (FATF), which identifies national-level vulnerabilities with the aim of protecting the international financial system from misuse, has placed Pakistan on its grey list for its failure to take sufficient action to curb financial networks that support and assist terror-related activities.

Down to just $8.5 billion in foreign exchange reserves, Pakistan, which has been struggling with a failing economy, has just been given a short lease of life in the form of a $3billion deposit and similar quantum of energy support, by Saudi Arabia.

Even as Pakistan reportedly seeks a $9-10 billion bailout from the International Monetary Fund (IMF), an organisation majorly controlled by the US, on 26 October, 2018, Pakistan took the decision to lift its internal ban on the JuD and Falah-e-Insaniyat Foundation (FIF), headed by 26/11 mastermind and well-known terrorist leader Hafiz Saeed. Both the organisations and Saeed had been banned by a presidential ordinance after they came on the UN Security Council terror list. Saeed recently challenged the ordinance on grounds that the Khan-led Pakistan Tehreek-e-Insaf (PTI) government has taken no action to convert the ordinance into law within the prescribed 120 days.

The United Nations Security Council had designated JuD as a terrorist organisation under Resolution 1,267 after the Mumbai attacks. In 2014, the US administration had added JuD in the global terrorist organisations’ list.

Though Khan’s government has the option of extending the ordinance for another four months after which if not converted to law by the legislature, the ordinance will lapse, it hasn’t.

Most times, it’s extremely difficult to understand Pakistan as a nation. At one end, its citizenry fully acknowledge that Saeed and his organisation only mean trouble for Pakistan’s already low international reputation, especially at a time when the nation is in dire straits on the economic front. But internally, there is, a fairly large segment which is enamoured by the JuD and FIF’s social activities. The organisation under its original avatar Lashkar-e-Taiba (LeT) was at the forefront of rescue and relief work during the 2008 earthquake in Pakistan-occupied Kashmir and runs several charity organisations which draws to it a degree of emotional support but does not manifest into political dividend.

Since the JuD creates no internal disturbances and largely focuses on terror activities in India (more specifically in Jammu and Kashmir) and to an extent in Afghanistan, it’s supported by the deep state and evokes a positive response from common citizens.

Fund collection drives in the name of jihad in Jammu and Kashmir are extremely popular. However, the reputation it carries internationally, especially after the 26/11 Mumbai Attacks, has placed it on watch lists and constant surveillance. Branded as friendly terrorists in the parlance of Pakistan’s strange internal security environment the JuD’s virulent anti-India stance helps keep it afloat and accepted despite a $10 million bounty on Saeed’s head.

It’s not as if the JuD’s nuisance potential is not recognised by the deep state. A senior retired US Army officer mentioned that when the Pakistan Army Chief was once privately queried on why doesn’t, in the interest of better India-Pak relations, the Pakistan Army stop the JuD from carrying out infiltration into Indian territory, the reply was that: it was a good safety valve to let out the steam. He felt that by being focused towards India, the JuD remained a strategic asset which could otherwise be an immense nuisance internally if restrained from its objectives.

None can, however, explain how Pakistan runs the risk of large scale hostilities with India given that the JuD’s actions lead to events that act as triggers for India to respond militarily.

Pakistan appears convinced that India is unprepared to risk a nuclear conflagration and therefore feels confident that it can continue this policy within India’s limits of tolerance. A greater Indian demonstration of will could act as a restraint on Pakistan’s use of JuD as a strategic asset.

The above notions now appear at risk. Clearly, the combined effect of national financial bankruptcy, FATF monitoring, application for IMF bailout, India’s diplomatic offensive, the lack of any commensurate Chinese initiative for economic bailout, and the questioning about the viability of coercive debt traps in nations partnered by China for the Belt and Road Initiative (BRI) (Pakistan being one of the flag bearers with its CPEC), should place Pakistan under immense pressure. The only explanation for Pakistan remaining fairly unconcerned about the risk it is running for — a potential meltdown financially as well as from a law and order angle — is that it realises its own nuisance potential. Its geostrategic location being such it demands international attention.

The US under President Donald Trump has displayed a higher level of coercive capability against Pakistan but at the end of the day it’s only Pakistan’s cooperation which can stabilise Afghanistan to allow the US to leave with its head held high. Its strategic nuclear assets remain a source of great worry so a meltdown is not something that the international community can ever allow in Pakistan.

The deep state led by the Pakistan Army thus has its stakes high and is willing to run risks. Actions against Saeed and JuD constitute disturbing the internal balance, and drawing down from a proxy war against India — that Pakistan perceives it is winning — is not acceptable. So, nothing is likely to happen on the lapse of the ordinance.

At the most, a second ordinance for another 120 days will be issued and a forced constitutional amendment could well be on the cards to overlook the JuD and 66 other organisations which come under the purview of the ordinance. While many in the Pakistan government will offer oversight as a reason for this lapse with supposed ‘more important’ issues occupying Khan’s mind, it is clear that Saeed, JuD and FIF are strategic assets in more ways than just terrorists aimed at India. They give enough cause for concern to those who worry for Pakistan’s overall nuisance potential especially in the context of the compulsive issue of strategic nuclear assets. The more that threat is subtly played out, the greater the chances of bailout packages being made available. As stated earlier rationality is not something which can be applied in analysing Pakistan.

सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा की छुट्टी जारी रहेगी: सर्वोच्च नयायालय

 

कांग्रेस के आरोप निराधार साबित हुए।

सर्वोच्च नयायालय ने एक अभूतपूर्व फैसला लेते हुए कहा की सीवीसी की अनुशंसा पर निदेशक को अनिश्चितकालीन छुट्टी पर भेजना संवैधानिक है ओर सरकार ने कुछ गलत नहीं किया है।

 

  • अपने फैसले में सर्वोच्च नयायालय ने आगे कहा की सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट जबतक इस मामले में दोबारा सुनवाई नहीं कर लेता तबतक सीबीआई के नए डायरेक्टर एम नागेश्वर राव एक भी नीतिगत फैसला नहीं लेंगे.

 

  • चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि सीवीसी सुप्रीम कोर्ट के एक जस्टिस की देखरेख में 10 दिनों में जांच जारी रखेगी. एम नागेश्वर राव केवल नियमित कार्य करेंगे. उन्होंने कहा कि सीबीआई द्वारा जांच अधिकारिओं के तबादले की सूचि सुप्रीम कोर्ट को सील बंद लिफाफे में 12 नवंबर को दी जाए.

 

  • सीजेआई रंजन गोगोई ने अपने फैसले में कहा कि सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच सीवीसी आज से दो सप्ताह के भीतर पूरा करे. जांच सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज एके पटनायक मामले की जांच करेंगे.

पत्रकार सुरक्षा, पेंशन-आवास योजना को भाजपा घोषणा पत्र में शामिल करवाने के लिए जार राजस्थान के पदाधिकारी व पत्रकार मिले भाजपा नेताओं से


  • राजस्थान में न्यूज वेबसाइट, न्यूज वेबपोर्टल और यू-ट्यूब चैनल को विज्ञापन मान्यता देने के लिए नीति बनाई और सरकार बनने के छह महीने में इसे लागू किया जाए

  • सभी समाचार पत्रों, मीडिया संस्थानों के कार्यालयों को एक ही छत के नीचे लाने के लिए बहुमंजिला मीडिया सेंटर बनाकर उन्हें कार्यालय आवंटित किए जाए


जयपुर:

जर्नलिस्टस एसोसिएशन ऑफ राजस्थान (जार) ने चुनाव घोषणा पत्र में पत्रकार हितों से जुड़े मुद्दों को शामिल करने के लिए आज जार पदाधिकारियों ने भाजपा मुख्यालय में भाजपा नेताओं से मिलकर ज्ञापन दिए। जार के प्रदेश अध्यक्ष राकेश कुमार शर्मा, महासचिव संजय सैनी, वरिष्ठ पत्रकरा ऐश्वर्य प्रधान, जितेन्द्र सिंह राजावत, जयराम शर्मा, मजीठिया वेजबोर्ड आंदोलन में सक्रिय दैनिक भास्कर के शीलेन्द्र उपाध्याय, रीतेश गौत्तम, पिंकसिटी प्रेस क्लब के पूर्व सदस्य रवीन्द्र शर्मा शेखर आदि पत्रकार भाजपा घोषणा कमेटी के अध्यक्ष व पंचायती राज एवं ग्रामीण विकास मंत्री राजेन्द्र राठौड़, कमेटी के सदस्य ओंकार सिंह लखावत से मिले और इन्हें पत्रकारों के हितों से जुड़े मुद्दों को घोषणा पत्र में शामिल करने के लिए ज्ञापन सौंपा। जार प्रतिनिधियों ने राठौड़ व लखावत को पत्रकार आवास योजना, बुजुर्ग पत्रकार पेंशन योजना को लागू करने, पत्रकार सुरक्षा कानून, लघु-मझौले समाचार पत्रों को मासिक विज्ञापन तय करने, डिजिटल पॉलिसी लागू करने समेत अन्य मुद्दों के बारे में बताया। इन सभी मुद्दों को पार्टी के घोषणा पत्र में शामिल करने का आग्रह किया गया। राठौड़ व लखावत ने पत्रकार हितों के मुद्दों पर गंभीरता से विचार करके इन्हें घोषणा पत्र में शामिल करवाने का आश्वासन दिया है।

जर्नलिस्टस एसोसिएशन ऑफ राजस्थान (जार) की ओर से निम्न सुझाव दिए गए।

– देश और प्रदेश में पत्रकारों पर जानलेवा हमले और हत्याएं की घटनाएं काफी होने लगी है। ऐसे में पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए राजस्थान में पत्रकार सुरक्षा कानून बनाया जाए। पत्रकारों पर हमले, धमकियों को गैर जमानती अपराध घोषित किया जाए। पत्रकारिता कार्य के दौरान हमले में हताहत और घायल पत्रकारों को सरकार की तरफ से उचित मुआवजा दे और चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराएं।

-राजस्थान में वयोवृद्ध पत्रकारों की पेंशन योजना बंद है। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने बुजुर्ग पत्रकारों को पेंशन देने की व्यवस्था कर रखी थी। हरियाणा, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे भाजपा शासित राज्यों में भी पत्रकारों को पेंशन दी जा रही है। ऐसे में राजस्थान के पत्रकारों की पेंशन योजना फिर से शुरु की जाए और कम से कम दस हजार पेंशन रखी जाए, जिससे अपनी लेखनी से समाज व देश हित में कार्य करने वाले पत्रकारों का सम्मान व स्वाभिमान बना रहे।

-प्रदेश में पत्रकार आवास योजना के नियम सरल किए जाए। पत्रकार समाज के लिए जिलों में भूखण्ड और फ्लैट हाऊसिंग प्रोजेक्ट को अमल में लाया जाए। जयपुर की नायला पत्रकार आवासीय योजना के सभी सफल आवंटियों को पट्दे देने में आ रही बाधाओं को दूर करके आवंटियों को पट्टे दिलवाए जाए।

-बड़े समाचार पत्रों की तर्ज पर लघु व मझौले समाचार पत्रों (दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक व मासिक) को भी मुद्रणालय यंत्र व कार्यालय स्थापित करने के लिए प्रदेश भर में रियायती दर पर जमीन आवंटन किया जाए। रीको क्षेत्र में डीएलसी दर की बीस फीसदी दर पर जमीन आवंटन के नियम बनाए जाए।

-लघु व मझौले समाचार पत्रों (दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक व मासिक) को रोस्टर प्रणाली से मासिक विज्ञापनों का आवंटन सुनिश्चित किया जाए। साथ ही उक्त समाचार पत्रों के स्थापना दिवस और सरकार-पार्टी के विशेष आयोजनों पर अलग से विज्ञापन दिया जाए।

-वर्तमान युग डिजिटल है। सरकार ने प्रिंट और इलेक्टोनिक मीडिया को विज्ञापन के लिए मान्यता दे रखी है, लेकिन देश और प्रदेश में तेजी से बढ़ते व पसंद किए जा रहे न्यूज वेबसाइट, न्यूज वेबपोर्टल को राजस्थान में मान्यता नहीं है। राजस्थान में न्यूज वेबसाइट, न्यूज वेबपोर्टल और यू-ट्यूब चैनल को विज्ञापन मान्यता देने के लिए नीति बनाई और सरकार बनने के छह महीने में इसे लागू किया जाए।

– सभी समाचार पत्रों, मीडिया संस्थानों के कार्यालयों को एक ही छत के नीचे लाने के लिए बहुमंजिला मीडिया सेंटर बनाकर उन्हें कार्यालय आवंटित किए जाए।

-समाचार पत्रों को पहले रियायती दर पर सरकार न्यूज प्रिंट उपलब्ध कराती थी। इस व्यवस्था को फिर से बहाल किया जाए। क्योंकि न्यूज प्रिंट की लागत बढऩे से अखबार मालिकों के सामने आर्थिक संकट गहराने लगा है।

– पीआईबी कार्ड की तर्ज पर राजस्थान में भी पत्रकारों को एक ही कार्ड बनाकर शासन सचिवालय, मुख्यमंत्री कार्यालय, राजस्थान विधानसभा, पुलिस मुख्यालय, राजभवन व दूसरे सरकारी कार्यालयों में आने-जाने की सुविधा प्रदान की जाए।

-राज्य और राज्य के बाहर सर्किट हाउस व स्टेट गेस्ट हाउस में पत्रकारों के लिए रियायती दरों पर ठहराव की व्यवस्था करना।

-पत्रकार अधिस्वीकरण कार्ड योजना में अधिकाधिक श्रमजीवी पत्रकारों को लाभ मिल सके, इसके लिए अखबारों के तय कोटे को बढ़ाया जाए। डिजिटल मीडिया के पत्रकारों का भी अधिस्वीकरण किया जाए और इसके लिए नियम बनाए जाए।

– मेडिकल क्लेम योजना में अधिस्वीकृत पत्रकारों के साथ गैर अधिस्वीकृत श्रमजीवी पत्रकारों को शामिल करके इन्हें भी लाभांवित किया जाए।

-जेडीए, राजस्थान आवासन मण्डल, नगर निगम, नगर पालिका, नगर परिषद की आवासीय योजना में अधिस्वीकृत पत्रकारों के लिए तय कोटे को दुगुना किया जाए।