सम्झौता ब्लास्ट में फैसला किसी भी वक्त
आज 11 मार्च 2019 को बारह साल पुराने सम्झौता ब्लास्ट मामले पर किसी भी समय पंचकुला की विशेष आईएनए अदालत में फैसला सुनाया जा सकता है। मुख्य आरोपी असीमानंद और तीन अन्य आरोपी भी कोर्ट परिसर में पहुँच चुके हैं।
समझौता एक्सप्रेस ट्रेन में 18 फरवरी 2007 को पानीपत के पास धमाका हुआ, इसमें 68 की मौत हुई थी एनआइए ने कुल 224 गवाहों को पेश किया, जबकि बचाव पक्ष ने कोई गवाह नहीं पेश किया, 6 मार्च को इस केस की सुनवाई पूरी हुई
पानीपत के दीवाना स्टेशन के नजदीक 12 साल पहले हुए समझौता ट्रेन ब्लास्ट मामले में पंचकूला की विशेष एनआईए कोर्ट सोमवार को अपना फैसला सुना सकती है।6 मार्च को इस केस की सुनवाई पूरी हो गई थी। मामले में मुख्य आरोपी स्वामी असीमानंद, लोकेश शर्मा, कमल चौहान और राजिंद्र चौधरी है। हालांकि कुल 8 आरोपी थे, जिनमें से 1 की मौत हो चुकी है, जबकि तीन को भगोड़ा घोषित किया जा चुकाहै।
दिल्ली से लाहौर जा रही समझौता एक्सप्रेस ट्रेन में 18 फरवरी 2007 को पानीपत के दीवाना रेलवे स्टेशन के पास धमाका हुआ था। इस धमाके में दो बोगियों में आग लग गई थी, जिसमें 68 लोग जिंदा जल गए थे। मरने वालों में ज्यादातार पाकिस्तान के रहने वाले थे।
पुलिस को घटनास्थल से दो सूटकेस बम मिले, जो फट नहीं पाए थे। 20 फरवरी, 2007 को प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों के आधार पर पुलिस ने दो संदिग्धों के स्केच जारी किए। ऐसा कहा गया कि ये दोनों लोग ट्रेन में दिल्ली से सवार हुए थे और रास्ते में कहीं उतर गए। इसके बाद धमाका हुआ।
15 मार्च 2007 को हरियाणा पुलिस ने इंदौर से दो संदिग्धों को गिरफ्तार किया। यह इन धमाकों के सिलसिले में की गई पहली गिरफ्तारी थी। पुलिस इन तक सूटकेस के कवर के सहारे पहुंच पाई थी। ये कवर इंदौर के एक बाजार से घटना के चंद दिनों पहले ही खरीदे गए थे।
26 जुलाई 2010 को मामला एनआइए को सौंपा गया था। इसके बाद स्वामी असीमानंद को मामले में आरोपी बनाया गया। एनआइए ने 26 जून 2011 को पांच लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। पहली चार्जशीट में नाबा कुमार उर्फ स्वामी असीमानंद, सुनील जोशी, रामचंद्र कालसंग्रा, संदीप डांगे और लोकेश शर्मा का नाम था। आरोपियों पर आईपीसी की धारा (120 रीड विद 302) 120बी साजिश रचने के साथ 302 हत्या, 307 हत्या की कोशिश करना समेत, विस्फोटक पदार्थ लाने, रेलवे को हुए नुकसान को लेकर कई धाराएं लगाई गई।
एनआइए ने मामले में कुल 224 गवाहों को पेश किया, जबकि बचाव पक्ष ने कोई गवाह नहीं पेश किया। केवल अपने दस्तावेज और कई फैसलों की कॉपी ही कोर्ट में पेश की। इस मामले में कोर्ट की ओर से पाकिस्तानी गवाहों को पेश होने के लिए कई बार मौका दिया गया, लेकिन वह एक बार भी कोर्ट में नहीं आए।