नवरात्रि महत्व

सनातन धर्म के बहुत से ऐसे पर्व हैं जिनमें रात्रि शब्द जुड़ा हुआ है। जैसे शिवरात्रि और नवरात्रि। साल में चार नवरात्रि होती है। चार में दो गुप्त नवरात्रि और दो सामान्य होती है। सामान्य में पहली नवरात्रि चैत्र माह में आती है जबकि दूसरी अश्विन माह में आती है। चैत्र माह की नवरात्रि को बड़ी नवरात्रि और अश्विन माह की नवरात्रि को छोटी या शारदीय नवरात्रि कहते हैं। आषाढ और माघ मास में गुप्त नवरात्रि आती है। गुप्त नवरात्रि तांत्रिक साधनाओं के लिए होती है जबकि सामान्य नवरात्रि शक्ति की साधना के लिए।

धर्म/संस्कृति डेस्क, चंडीगढ़:

1. नवरात्रि में नवरात्र शब्द से ‘नव अहोरात्रों (विशेष रात्रियां) का बोध’ होता है। ‘रात्रि’ शब्द सिद्धि का प्रतीक माना जाता है। भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है। यही कारण है कि दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र आदि उत्सवों को रात में ही मनाने की परंपरा है। यदि, रात्रि का कोई विशेष रहस्य न होता तो ऐसे उत्सवों को रात्रि न कह कर दिन ही कहा जाता। जैसे- नवदिन या शिवदिन, परंतु हम ऐसा नहीं कहते हैं। शैव और शक्ति से जुड़े धर्म में रात्रि का महत्व है तो वैष्णव धर्म में दिन का। इसीलिए इन रात्रियों में सिद्धि और साधना की जाती है। (इन रात्रियों में किए गए शुभ संकल्प सिद्ध होते हैं।)

2. यह नवरात्रियां साधना, ध्यान, व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, तंत्र, त्राटक, योग आदि के लिए महत्वपूर्ण होती है। कुछ साधक इन रात्रियों में पूरी रात पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर आंतरिक त्राटक या बीज मंत्रों के जाप द्वारा विशेष सिद्धियां प्राप्त करने का प्रयास करते हैं, क्योंकि इस दिनों प्रकृति नई होना प्रारंभ करती है। इसलिए इन रात्रियों में नव अर्थात नया शब्द जुड़ा हुआ है। वर्ष में चार बार प्रकृति अपना स्वरूप बदलकर खुद को नया करती हैं। बदलाव का यह समय महत्वपूर्ण होता है। वैज्ञानिक दृष्‍टिकोण से देखें तो पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा काल में एक वर्ष की चार संधियां होती हैं जिनमें से मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। ऋतुओं की संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियां बढ़ती हैं। ऐसे में नवरात्रि के नियमों का पालन करके इससे बचा भी जा सकता है।

3. वैसे भी रात्रि में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं। जैसे यदि आप ध्यान दें तो रात्रि में हमारी आवाज बहुत दूर तक सुनाई दे सकती है परंतु दिन में नहीं, क्योंकि दिन में कोलाहल ज्यादा होता है। दिन के कोलाहल के अलावा एक तथ्य यह भी है कि दिन में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे बढ़ने से रोक देती हैं।

4. रेडियो इस बात का उदाहरण है कि रात्रि में उनकी फ्रीक्वेंसी क्लियर होती है। ऐसे में ये नवरात्रियां तो और भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि इस समय हम ईथर माध्यम से बहुत आसानी से जुड़कर सिद्धियां प्राप्त कर सकते हैं। हमारे ऋषि-मुनि आज से कितने ही हजारों-लाखों वर्ष पूर्व ही प्रकृति के इन वैज्ञानिक रहस्यों को जान चुके थे।

5. रेडियो तरंगों की तरह ही हमारे द्वारा उच्चारित मंत्र ईथर माध्यम में पहुंचकर शक्ति को संचित करते हैं या शक्ति को जगाते हैं। इसी रहस्य को समझते हुए संकल्प और उच्च अवधारणा के साथ अपनी शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजकर साधन अपनी कार्यसिद्धि अर्थात मनोकामना सिद्धि करने में सफल रहते हैं। गीता में कहा गया है कि यह ब्रह्मांड उल्टे वृक्ष की भांति हैं। अर्थात इसकी जड़े उपर हैं। यदि कुछ मांगना हो तो ऊपर से मांगों। परंतु वहां तक हमारी आवाज को पहुंचेने के लिए दिन में यह संभव नहीं होता है यह रात्रि में ही संभव होता है। माता के अधिकतर मंदिरों के पहाड़ों पर होने का रहस्य भी यही है।

राज्यपाल की चिट्ठी पर मुख्यमंत्री ने एक ही मारा लेकिन सॉलिड मारा : शिवसेना

कोरोना लॉकडाउन की वजह से बंद पड़े धार्मिक स्थलों को खोलने के लिए बीजेपी ने महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। महाराष्ट्र में सिद्धिविनायक मंदिर समेत अन्य मंदिरों को खोलने की मांग को लेकर भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं का मंगलवार को मुंबई में प्रदर्शन जारी है। इस बीच महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने भी मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखा और मंदिरों को खोलने को कहा है। कोश्यारी ने उद्धव ठाकरे पर तंज कसा कि आप अचनाक सेक्युलर कैसे हो गए? जबकि आप इस शब्द से नफरत करते थे। कोश्यारी की चिट्ठी पर उद्धव ठाकरे का भी जवाब आया है। उद्धव ठाकरे ने चिट्ठी के जवाब में कहा है कि मुझे हिन्दुत्व पर आपसे सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है।  लेकिन दूसरी ओर अगले साल मुंबई में निकाय चुनाव भी होने हैं। एक सीनियर बीजेपी नेता का कहना है कि ये चुनाव एक तरीके से अगले विधानसभा चुनाव का मिनी रेफेरेंडम होगा। इस चुनाव में बीजेपी और शिवसेना की लोकप्रियता का अंदाजा लग जाएगा। मंदिरों को लगातार बंद रखने का मुद्दा शिवसेना को चुनाव में भारी पड़ेगा।

मुंबई(ब्यूरो):

महाराष्ट्र के गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी द्वारा मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लिखे गए खत पर बवाल मच चुका है। मंदिरों को न खोलने के लिए गवर्नर ने उद्धव ठाकरे को सेकुलरिजम पर स्टैंड की याद दिलाई है। सीएम उद्धव ने भी कह दिया कि उन्हें किसी से हिंदुत्व का पाठ सीखने की जरूरत नहीं। महाराष्ट्र सरकार ने मंदिर नहीं खोले। लेकिन सरकार के इस कदम से बीजेपी को यह उम्मीद जग चुकी है कि वो हिंदुत्व के मुद्दे पर शिवसेना को घेर सकती है।

क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि भले ही उद्धव ठाकरे कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार की अगुआई कर रहे हैं लेकिन समय-समय पर हिंदुत्व के एजेंडे को दोहराते भी रहते हैं। इससे उनकी दोनों सहयोगी पार्टियों को परेशानी भी होती है। गौरतलब है कि उद्धव ठाकरे राम मंदिर के शिलान्यास कार्यक्रम का भी हिस्सा बनना चाहते थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर का शिलान्यास किया था। अब यह भी कहा जा रहा है कि उद्धव ठाकरे अगले नवंबर महीने में अयोध्या की यात्रा कर सकते हैं। पर पालघर में हुई साधुओं की निर्मम हत्या और उसकी संदेहास्पद जांच के बाद क्या उद्धव ठाकरे को अयोध्या के संत समाज द्वारा स्वीकार भी जाएगा?

‘सामना’ के लेख से शिव सेना ने किया राज्यपाल कोशियारी पर तीखा हमला :

शिवसेना ने सामना में लिखा है, ‘’राज्यपाल के पद पर आसीन व्यक्ति को कैसा व्यवहार नहीं करना चाहिए, यह भगत सिंह कोश्यारी ने दिखा दिया है। श्रीमान कोश्यारी कभी संघ के प्रचारक या बीजेपी के नेता रहे भी होंगे; लेकिन आज वे महाराष्ट्र जैसे प्रगतिशील राज्य के राज्यपाल हैं, लगता है वे इस बात को अपनी सुविधानुसार भूल गए हैं। महाराष्ट्र के बीजेपी के नेता रोज सुबह सरकार की बदनामी करने की मुहिम शुरू करते हैं। यह समझा जा सकता है; लेकिन उस मुहिम की कीचड़ राज्यपाल अपने ऊपर क्यों उड़वा लेते हैं? बीजेपी महाराष्ट्र में सत्ता गंवा चुकी है। यह बड़ी पीड़ा है; लेकिन इससे हो रहे पेटदर्द पर राज्यपाल द्वारा हमेशा लेप लगाने में कोई अर्थ नहीं। यह पीड़ा आगामी चार साल तो रहने ही वाली है। लेकिन बीजेपी का पेट दुख रहा है इसलिए संवैधानिक पद पर विराजमान व्यक्ति को भी प्रसव पीड़ा हो, ये गंभीर है. लेकिन उस प्रसव पीड़ा का मुख्यमंत्री ठाकरे ने उपचार किया है।’’

हर कुछ समय अंतराल पर हिंदुत्व की बात करते हैं उद्धव

टाइम्स ऑफ इंडिया पर प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक एक बीजेपी विधायक का कहना है-उद्धव चाहते हैं कि वह हर कुछ समय पर हिंदुत्व की बात कर बीजेपी की काट निकाल सकते हैं। लेकिन ये उनका धोखा है। वो एक ही समय में दो राग नहीं गा सकते। अगर उन्होंने कांग्रेस-एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई है तो उनको ‘सेकुलर’ एजेंडे पर बने रहना चाहिए। और हिदुत्व पर सिर्फ जुगलबाजी करने से बाज आना चाहिए।’

अगले साल निकाय चुनाव होगा मिनी रेफरेंडम, घेरने की तैयारी में बीजेपी

इन सबके बीच अगले साल मुंबई में निकाय चुनाव भी होने हैं। एक सीनियर बीजेपी नेता का कहना है कि ये चुनाव एक तरीके से अगले विधानसभा चुनाव का मिनी रेफेरेंडम होगा। इस चुनाव में बीजेपी और शिवसेना की लोकप्रियता का अंदाजा लग जाएगा। मंदिरों को लगातार बंद रखने का मुद्दा शिवसेना को चुनाव में भारी पड़ेगा।

‘फिल्म बंधु’ की तैयारियों ने ज़ोर पकड़ा

ऐसा कहा जा रहा है की जो युवा उत्तर क्षेत्र से मुंबई की ओर जाता है अपने स्पाने साकार करने उसको उसको यह ऊँची नाक वाले मुम्बैअंस….. स्वीकार नही करते जिस वजह से यह युवा खुद को अकेला महसूस करता है……. और इस बात का उदहारण सुशांत सिंह राजपूत को रखा जा रहा है। फिल्मी दुनिया में सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में मचे तूफान के बीच यूपी में फिल्म सिटी बनाए जाने को लेकर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बॉलीवुड के तमाम अहम चेहरों और फिल्म प्रोड्यूसरों के साथ महत्वपूर्ण बैठक की और इस बैठक के बाद ऐलान किया कि ग्रेटर नोएडा में फिल्म सिटी का निर्माण होगा। अब देखना यह होगा की हिन्दी पट्टी के नाम पर यह एक क्षेत्रीय सिनेमा न बन कर रह जाये।

  • नोएडा फ़िल्मसिटी का निर्माण ……..
  • फ़िल्म उद्योग क्षेत्र में न बने क्षेत्रीय मत भेद के लिए जरिया…..

कोरल ‘पुरनूर’, चंडीगढ़ – 22 सितंबर

उत्तर प्रदेश (यूपी) के नोएडा में फिल्म सिटी के निर्माण के लिए कवायद तेज हो गई है और इसके लिए ख़ुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पहल कर रहे हैं। इसी क्रम में उन्होंने अपने लखनऊ स्थित सरकारी आवास से ही भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के कलाकारों से बातचीत की, जिनमें कई फिल्म निर्देशक, अभिनेता-अभिनेत्री और संगीतकार शामिल थे। सीएम योगी ने इस दौरान फिल्म सिटी को लेकर सभी की राय जानी और सभी को काफी ध्यान से सुना।

इस बैठक में सुपरस्टार रजनीकांत की बेटी सौंदर्या, फिल्म निर्देशक विवेक अग्निहोत्री, अभिनेता अनुपम खेर व परेश रावल, गायक अनूप जलोटा, कैलाश खेर व उदित नारायण और गीतकार मनोज मुंतसिर शामिल थे। इस बैठक में वरिष्ठ वयोवृद्ध कहानीकार के विजयेंद्र प्रसाद भी शामिल हुए, जिन्होंने ‘बाहुबली’, ‘बजरंगी भाईजान’ और ‘मणिकर्णिका’ जैसी सुपरहिट फिल्मों की कहानियाँ लिखी हैं। वो देश के सबसे बड़े निर्देशकों में से एक एसएस राजामौली के पिता हैं।

फिल्म उद्योग से जुड़े विनोद बच्चन और ‘तान्हाजी’ के निर्देशक ओम राउत भी इस बैठक में शामिल हुए। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए इन दिग्गज फ़िल्मी हस्तियों ने सीएम योगी के समक्ष अपनी बात रखी, जो अधिकारियों की पूरी टीम के साथ उनलोगों को सुन रहे थे। बताते चलें कि नोएडा, यमुना एक्सप्रेस-वे अथॉरिटी और ग्रेटर नोएडा प्रशासन की तरफ से सीएम योगी को जमीन की उपलब्धता का पूरा ब्यौरा भेज दिया गया है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सभी सम्बद्ध लोगों से राय लेकर ये तय करेंगे कि इन तीनों स्थलों में से फिल्म सिटी के निर्माण कहाँ किया जाए। मुंबई सहित सभी फिल्म इंडस्ट्री के कलाकारों ने इस घोषणा का स्वागत किया है। मंगलवार (सितम्बर 22, 2020) को हुई बैठक में राजू श्रीवास्तव भी मौजूद रहे। उत्तर प्रदेश में फिल्म सिटी के निर्माण से हिंदी पट्टी को ज्यादा प्रमुखता मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।

सतीश कौशिक ने कहा कि ज्यादा से ज्यादा सिनेमा हॉल्स बनाने से ये होगा कि जो फ़िल्में बनेगी, वो लोगों तक अच्छे तरीके से पहुँचेंगी। वहीं अनूप जलोटा ने कहा कि हिंदी पट्टी के जो महान लोग हैं, उनपर इधर और फ़िल्में बन सकती हैं जो मुंबई में नहीं हो पाता। उन्होंने कहा कि ये फिल्म सिटी कमाल की बनेगी और दूसरी से अच्छी बनेगी क्योंकि यहाँ दक्षिण से भी लोग आ जाएँगे। राजू श्रीवास्तव ने भी अपने चुटकुलों के जरिए अपनी बात रखी।

गौतमबुद्ध नगर जिले में प्रस्तावित फिल्म सिटी को लेकर मंगलवार को ‘फिल्म बंधु’ के पदाधिकारियों और अनेक फिल्मी हस्तियों के साथ बैठक के दौरान मुख्यमंत्री ने कहा कि फिल्म उद्योग को उत्तर प्रदेश से जो अपेक्षाएं हैं उन्हें पूरा करने में यह राज्य कहीं ना कहीं चूक कर रहा था. योगी आदित्यनाथ ने कहा कि नोएडा में प्रस्तावित अत्याधुनिक फिल्म सिटी के जरिए उस चूक को सुधारा जाएगा. सीएम योगी ने कहा कि फिल्म सिटी के निर्माण के लिए जो क्षेत्र प्रस्तावित किया गया है वह राजा भरत के हस्तिनापुर के आसपास का इलाका है. यह फिल्म सिटी भारत की पहचान का प्रतीक बनेगी. मुख्यमंत्री ने कहा कि यह सिर्फ फिल्म सिटी तक ही सीमित नहीं रहेगी, बल्कि हम वहां विश्व स्तरीय इलेक्ट्रॉनिक सिटी देने जा रहे हैं और फाइनेंशियल सिटी भी प्रस्तावित करने जा रहे हैं, जहां से हर प्रकार की आर्थिक एवं वित्तीय गतिविधियों का संचालन किया जा सके.

हमने ‘द ताशकंद फाइल्स’ और ‘बुद्धा इन अ ट्रैफिक जाम’ जैसी फ़िल्में बना चुके विवेक अग्निहोत्री से बात की, जो इस बैठक में न सिर्फ मौजूद थे बल्कि उन्होंने सीएम योगी को अपने विचारों से भी अवगत कराते हुए कई सुझाव दिए। उन्होंने कहा कि काफी कुछ करने की घोषणाएँ तो बहुत लोग करते हैं लेकिन सीएम योगी ने इन चीजों से आगे बढ़ते हुए घोषणाओं को जल्द से जल्द अमल में लाने की प्रक्रिया शुरू की है।

विवेक अग्निहोत्री ने बताया कि वो उनलोगों में थे, जिन्हें यूपी सरकार की तरफ से सबसे पहले ही इस बैठक के लिए आमंत्रित किया गया था। उन्होंने कहा कि सीएम योगी ने सभी उपस्थित हस्तियों से उनके सुझाव माँगे, जिसके बाद ववेक अग्निहोत्री ने बैठक में कहा कि मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री में हिंदी पट्टी की कहानियाँ ठीक से नहीं आ पाती हैं और यहाँ से फिल्म इंडस्ट्री में जाने वालों को मुंबई ही जाना पड़ता है, जिसमें से अधिकतर इतना खर्च करने में सक्षम नहीं हैं।

बकौल विवेक अग्निहोत्री, उन्होंने बैठक में कहा कि ऐसे प्रतिभाशाली युवाओं को संघर्ष करने के लिए मुंबई जाने की बाध्यता ख़त्म हो जाएगी और वो यहीं फिल्म इंडस्ट्री में अपना करियर बना सकेंगे। उन्होंने आगे कहा कि एक राजनीतिक समस्या भी खड़ी हो गई है, जिसमे एक गिरोह विशेष के लोगों का आधिपत्य भी टूटेगा क्योंकि गाँवों से जो लोग आएँगे, वो ग्रामीण जगत की अच्छी कहानियाँ लेकर आएँगे, जिन्हें मुंबई के शहरी मानसिकता वाले फ़िल्मकार पसंद नहीं करते।

उन्होंने कहा कि वो पिछले 7 वर्षों से इसके लिए संघर्ष कर रहे थे और उन्होंने कई लोगों को इससे जोड़ा है। उन्होंने बताया कि सीएम योगी ने सभी लोगों की बातों को न सिर्फ ध्यान से सुना, बल्कि सकारात्मक प्रतिक्रिया भी दी। कई अन्य लोगों ने भी अपनी राय रखी। किसी ने यूपी में सिनेमा हॉल्स बढ़ाने की व्यवस्था करने की बात की तो किसी ने सिनेमा को लेकर एक यूनिवर्सिटी बनाने का सुझाव दिया। यूपी में वीएफएक्स के लिए सेंटर बनाने की भी माँग उठी।

विवेक अग्निहोत्री ने बैठक में सीएम योगी के रुख के बारे में बात करते हुए कहा कि वो कम से कम समय में उत्तर प्रदेश में फिल्म सिटी बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं और इसके लिए 1000 एकड़ की भूमि की व्यवस्था किए जाने की बात भी कही गई है। सीएम योगी ने स्पष्ट किया है कि ये फिल्म सिटी अंतरराष्ट्रीय स्तर का होगा। इसके लिए पूरी योजना तैयार कर ली गई है। बैठक में उपस्थित लोगों को नक्शों और डायग्राम्स के जरिए इसका पूरा ब्लूप्रिंट दिखाया गया।

इसके लिए ब्लूप्रिंट बनाने से आगे भी कदम बढ़ा दिया गया है और अधिकारियों को इस काम के लिए लगा भी दिया गया है। फिल्म सिटी के निर्माण के सम्बन्ध में निर्देशक मधुर भंडारकर और भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार रहे रवि किशन ने सीएम आवास जाकर योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की थी। सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद से ही बॉलीवुड में प्रतिभाओं को दबाने की बातें चल रही है, जिसके आलोक में इस फिल्म सिटी की घोषणा से सभी उत्साहित हैं।

जल्द ही इस फिल्म सिटी के लोकेशन को लेकर घोषणा होगी। सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद कई लोगों ने आवाज़ उठाई थी कि यूपी-बिहार जैसे राज्यों से मुंबई जाने वालों को वहाँ उचित सम्मान नहीं मिलता है और कई तो वहाँ के माहौल में घुल-मिल भी नहीं पाते हैं। जिस तरह से बॉलीवुड में ड्रग्स के जंजाल को लेकर एक के बाद एक खुलासे हो रहे हैं, यूपी में फिल्म सिटी से हिंदी पट्टी को एक नई पहचान मिलनी तय है।

फ़िरोज़ शाह गंधी – भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी सरकार के वित्त मंत्री पर पड़े थे भारी

1958 की बात है. लोकसभा का सत्र चल रहा था. इसी दौरान ट्रेजरी बेंच पर बैठे एक सांसद के बोलने की बारी आई. वह जो कहने वाला था उससे नैतिकता के ऊंचे आदर्शों का दावा करने वाली जवाहर लाल नेहरू सरकार हिलने वाली थी.

चंडीगढ़(ब्यूरो):

सांसद ने बोलना शुरू किया. उसने आरोप लगाया कि भारतीय जीवन बीमा निगम यानी एलआईसी ने कुछ ऐसी कंपनियों के बाजार से कहीं ज्यादा कीमत पर करीब सवा करोड़ रु के शेयर खरीदे हैं जिनकी हालत पतली है. ये कंपनियां कलकत्ता के एक कारोबारी हरिदास मूंदड़ा की थीं. सत्ताधारी पार्टी के ही सांसद की तरफ से हुए इस हमले से विपक्ष और आलोचकों को मानो मनमांगी मुराद मिल गई थी.

इससे सकते में आए तत्कालीन वित्तमंत्री टीटी कृष्णमचारी ने पहले तो इससे सीधे इनकार किया. लेकिन यह सांसद अपनी बात पर अड़ा था. आखिर हाईकोर्ट के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अगुआई में एक जांच आयोग बना. आरोप सच साबित हुए. कृष्णमचारी को इस्तीफा देना पड़ा. यह नेहरू सरकार की साफ-सुधरी छवि पर एक बड़ी चोट थी. इस राजनेता का नाम था फीरोज गांधी. विडंबना यह थी कि फीरोज जवाहर लाल नेहरू के दामाद थे.

लेकिन ऐसा काम उन्होंने पहली बार नहीं किया था. जो फीरोज गांधी को जानते थे उनके लिए यह बात अजूबा भी नहीं थी. भारत के सबसे ताकतवर परिवार के इस दामाद को नेहरू की नीतियों के प्रति अपने विरोध के लिए ही जाना जाता था.

फीरोज जहांगीर गंधी (गांधी नहीं) का जन्म 12 सितंबर 1912 को मुंबई (तब बंबई) के एक पारसी परिवार में हुआ था. मुंबई के कई पारसियों की तरह यह परिवार भी गुजरात से यहां आया था. पेशे से मरीन इंजीनियर उनके पिता जहांगीर फरदून भरुच से ताल्लुक रखते थे जबकि उनकी मां रतिमाई सूरत से थीं.

फीरोज के जन्म के कुछ समय बाद ही पहला विश्व युद्ध छिड़ गया. इसके चलते उनके पिता को लंबे समय तक समुद्री यात्राएं करनी पड़तीं. इस वजह से उन्होंने परिवार को इलाहाबाद भेज दिया जहां उनकी बहन शिरीन रहती थीं. शिरीन शहर के एक अस्पताल में सर्जन थीं. इस तरह फीरोज का बचपन इलाहाबाद में ही बीता.

इंदिरा गांधी से मुलाकात

1930 में शहर में कांग्रेस का एक धरना था. कमला नेहरू और इंदिरा गांधी सहित कांग्रेस की कई महिला कार्यकर्ताएं इसमें हिस्सा ले रही थीं. संयोग से यह उसी कॉलेज के बाहर हो रहा था जहां से फीरोज ग्रेजुएशन कर रहे थे. बताते हैं कि तेज धूप में कमला नेहरू बेहोश हो गईं और इस दौरान फीरोज ने उनकी मदद की. आजादी के लिए लड़ने वाले लोगों का जज्बा देखकर अगले ही दिन उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और आजादी के आंदोलन में शामिल हो गए. उसी साल फीरोज गांधी को जेल की सजा हुई और उन्होंने फैजाबाद जेल में 19 महीने गुजारे. तब इलाहाबाद जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष लाल बहादुर शास्त्री भी इसी जेल में थे. बताते हैं कि इसी दौरान उन्होंने अपना नाम बदलकर फीरोज गंधी से फीरोज गांधी रख लिया था. जेल से छूटने के बाद फीरोज तब के यूनाइटेड प्रोविंस (उत्तर प्रदेश) में किसानों के अधिकारों के लिए चल रहे आंदोलन में शामिल हुए. इसमें उन्होंने जवाहर लाल नेहरू के साथ करीब से काम किया. इस दौरान उन्हें फिर दो बार जेल हुई.

फीरोज ने 1933 में पहली बार इंदिरा के सामने शादी करने का प्रस्ताव रखा था. लेकिन इंदिरा और उनकी मां कमला नेहरू ने इससे इनकार कर दिया. तब इंदिरा सिर्फ 16 साल की थीं और इस इनकार के पीछे उनकी मां का यही तर्क था. बाद के वर्षों में फीरोज की नेहरू परिवार से करीबी बढ़ती गई. खासकर कमला नेहरू से. टीबी के चलते जब कमला नेहरू को नैनीताल के पास भोवाली सैनटोरियम में रखा गया तो इस दौरान फीरोज ही उनके साथ रहे. यह 1934 की बात है. बाद में हालत बिगड़ने पर जब उन्हें यूरोप भेजा गया तो भी फीरोज उनके साथ थे. 28 फरवरी 1936 को जब कमला नेहरू ने दम तोड़ा तो फीरोज उनके सिरहाने ही बैठे थे.

शादी

इसके बाद फीरोज और इंदिरा की घनिष्ठता बढ़ती गई. मार्च 1942 में उन्होंने शादी कर ली. बताते हैं कि जवाहर लाल नेहरू इस शादी के खिलाफ थे और उन्होंने महात्मा गांधी से कहा था कि वे इंदिरा को समझाएं. अगस्त 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इस दंपत्ति को जेल में भेज दिया गया. तब उनकी शादी को छह महीने भी नहीं हुए थे. फीरोज एक साल तक इलाहाबाद की नैनी सेंट्रल जेल में रहे.

इसके बाद के पांच साल इस दंपत्ति के लिए पारिवारिक व्यस्तताओं के साल रहे. फीरोज और इंदिरा के दो बच्चे हुए. 1944 में राजीव का जन्म हुआ और 1946 में संजय का. आजादी के बाद फीरोज और इंदिरा बच्चों के साथ इलाहाबाद चले गए. फीरोज द नेशनल हेराल्ड के प्रबंध निदेशक बन गए. यह अखबार उनके ससुर जवाहर लाल नेहरू ने ही शुरू किया था.

1952 में जब भारत में पहली बार आम चुनाव हुए तो फीरोज गांधी उत्तर प्रदेश के रायबरेली से सांसद चुने गए. तब तक इंदिरा दिल्ली आ गई थीं और इस दंपत्ति के बीच मनमुटाव की चर्चाएं भी होने लगी थीं. हालांकि इंदिरा ने रायबरेली आकर पति के चुनाव प्रचार की कमान संभाली थी.

अपनी ही सरकार के खिलाफ आवाज

जल्द ही फीरोज अपनी ही सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वाली एक असरदार शख्सियत बन गए. 1955 में उनके चलते ही उद्योगपति राम किशन डालमिया के भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ. यह भ्रष्टाचार एक जीवन बीमा कंपनी के जरिये किया था. इसके चलते डालमिया को कई महीने जेल में रहना पड़ा. इसका एक नतीजा यह भी हुआ कि अगले ही साल 245 जीवन बीमा कंपनियों का राष्ट्रीयकरण करके एक नई कंपनी बना दी गई. इसे आज हम एलआईसी के नाम से जानते हैं.

यानी एक तरह से फीरोज गांधी को राष्ट्रीयकरण की प्रक्रिया शुरू होने के पीछे की वजह भी कहा जा सकता है. उन्होंने टाटा इंजीनियरिंग एंड लोकोमोटिव (टेल्को) के राष्ट्रीयकरण की भी मांग की थी. उनका तर्क था कि यह कंपनी सरकार को जापानियों से दोगुनी कीमत पर माल दे रही है. इसके चलते उनका अपना पारसी समुदाय भी उनके खिलाफ हो गया था. लेकिन उन्होंने इसकी परवाह नहीं की. यही वजह थी कि उनकी प्रतिष्ठा हर पार्टी और वर्ग में थी.

1957 में फीरोज गांधी रायबरेली से दोबारा चुने गए. 1958 में उन्होंने नेहरू सरकार को वह झटका दिया जिसका जिक्र लेख की शुरुआत में हो चुका है.

लोकप्रिय राजनेता होने के बावजूद फीरोज गांधी अपने आखिरी दिनों में अकेले पड़ गए थे. उनके दोनों बेटे राजीव और संजय गांधी अपनी मां के साथ प्रधानमंत्री निवास में ही रहते थे. आठ सितंबर 1960 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया.

एक हिस्सा भी इस आदमी का इस्पात अगर मेरी रीढ़ में हो ….. पिता को पुत्र की श्रद्धांजलि

कहते हैं कि जब पुत्र को पिता के नाप का जूता आने लगे तो उन्हें मित्र हो जाना चाहिए। इस बहुश्रुत पारंपरिक बुद्धिमत्ता में बहुत बड़ा मनोवैज्ञानिक सत्य छुपा है। बढ़ते हुए पुत्र और पिता के बीच एक भय का रिश्ता होता है। इस भय का मतलब डर नहीं होता। इस भय में पिता की ओर से अनुशासन और पुत्र की ओर से सम्मान होता है। लाख प्यार-मुहब्बत के बावजूद यह हल्की सी औपचारिकता पिता और पुत्र के बीच में होती है जो अक्सर मां और पुत्र के बीच नहीं होती। इसका मतलब यह नहीं होता कि पुत्र अपने पिता को कम चाहता है। हां यह जरूर है कि बचपन में वह पिता को उस तरह समझ नहीं पाता। जैसे-जैसे पुत्र बड़ा होता है वह पिता को ज्यादा-ज्यादा समझने लगता है क्योंकि पिता के जूतों में उसके पैर आने लगते हैं। यानी एक पुरुष दूसरे पुरुष की जगह अपने को रखकर सोचने की स्थिति में आ जाता है।

राजविरेन्द्र वसिष्ठ, चंडीगढ़ :

आज सहसा ही इवान तुर्गनेव रूसी साहित्यकार के नॉवल ‘पिता और पुत्र’ की याद आ गयी। याद आया की किस प्रकार हर पिता अपने पुत्र में अपने ख्वाबों की पूर्ति के ख्वाब सँजोता है, वह किस प्रकार पाने अनुभवों को अपने पुत्र से सांझा करना चाहता है ‘मौन रह कर’। अपने बेटे की हर उठान पर खुद से घबराता पिता कि कहीं उसे (बेटे को) उसी की नज़र न लग जाये, एस सोच मन ही मन खुश होता है पर ऊपर से कठोर बना रहता है। ‘

मेरे मित्र विवेक वत्स को पित्र शोक हुआ है । मैं उन्हे कभी मिल नहीं पाया । मैंने उन्हे जाना विवेक के शब्दों से। उसकी वाणी से। जब भी वह अपने पिता की बात करता तो उसकी वाणी का ओज सहसा ही प्रेरित करता कि ऊनहे मिलूँ। पर दैवयोग। उनकी बात करते करते विवेक की आँखों में गर्व दिखता था। सच में कई बार ईर्ष्या होती उनका प्यार अनुभव कर । विवेक मूझे हमेशा कहता कि तू बजारोव/ बगारोफ (‘पिता और पुत्र’ का एक पात्र) न बन। तू है नहीं, 3 साल पहले अपने पिता को खोने के बाद मैंने समझी।

आज जब विवेक के पिता का समाचार मिला तो सब कुछ जो वह अपने पिता के बारे में बोलता था वह सब दिमाग में घूम गया। उसने जो शब्द आज अपने पिता के लिए कहे वह मेरे हृदय में हमेशा अंकित रहेंगे।

मैं आज अपने मित्र के दु:ख में द्खि हूँ, पर वहाँ मैं नि:शब्द हूँ जिसे अपने पिता पर इतना गर्व हो उसे सांत्वना – मेरे बस की नहीं। जिन शब्दों में उसने पाने पिता को याद किया उन्हे शब्द्श: प्रस्तुत कर रहा हूँ: दिवंगत आत्मा को यही हमारी श्रद्धांजलि होगी।

सीधी पीठ, छह फ़ीट क़द, सिर थोड़ा आगे झुका कर चलना, बैल जैसी ताक़त और वैसे ही आँख में आँख डाल कर सींग मारने की आदत.
डूंगर कालेज जैसे नामी college से law करने के बावजूद बीस साल प्राइमरी स्कूल के बच्चों को पढ़ाया, क्यूँकि इस से उनकी आत्मा को शांति मिलती है.
पहला केस, खुद का लड़ा emergency में, क्यूँकि सत्ता को भी सींग मारने थे.

गंगोत्री, जमनोत्री और केदारनाथ का सफ़र पैदल, बग़ैर एक फूटी कौड़ी के जेब में, भूखे और कई दिन नंगे पैर भी.

शैव मत पर किताब लिख कर राहुल संस्कृत्ययन जैसे बौद्ध से उसकी भूमिका लिखवा कर सब शैव मठों से लड़ाई मोल ली.

Cancer care and nursing पर चार किताबें लिखीं इस वकील ने जो मशहूर था तो “गुरुजी” के नाम से.

बेटी की विदाई की कविता गाता था तो सब की हिचकियाँ बंध जाती थीं. और हज़ारों की भीड़ को, अतिशयोक्ति नहीं सचमुच, हज़ारों की भीड़ को चार चार घंटे अपने भाषणों से बांध के रखता था.

इतने बड़े जूतों वाला ये आदमी, मेरे पिता, कल सुबह की चाय के बाद चले गए.
एक लम्बी भरपूर ज़िंदगी.
एक हिस्सा भी इस आदमी का इस्पात अगर मेरी रीढ़ में हो …..

ऋषिकुलम आश्रम से जुड़े बच्चे बने पौधों के संरक्षक

जयपुर – 5 सितम्बर :

क्षेत्र में प्रदूषण को कम करने व परिवेश में हरियाली एवं सुन्दरता को बढ़ाने के उदेश्य से आज गरीब बच्चों की निःशुल्क शिक्षा के लिए कार्य करने वाली प्रमुख संस्था ह्यूमन लाइफ फाउंडेशन जयपुर द्वारा सघन पौधारोपण कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इसके कार्यक्रम के अंतर्गत आज फाउंडेशन द्वारा संचालित ऋषिकुलम आश्रम, लक्ष्मीपुरा बीलवा के आसपास की बस्ती, घर, मंदिर एवं सार्वजानिक स्थानों पर करीब १०० वृक्ष लगाये गये.

कार्यक्रम के आयोजक ह्यूमन लाइफ फाउंडेशन के फाउंडर हेमराज चतुर्वेदी ने बताया कि वृक्षों के बिना मानव समाज की कल्पना नहीं की जा सकती इसलिए फाउंडेशन द्वारा हरवर्ष वृक्षारोपण किया जाता है, आज के कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए ऋषिकुलम के कार्यकर्ताओं द्वारा कई दिनों पूर्व आसपास के बच्चों को हरियाली एवं पौधों का महत्त्व घर घर जाकर समझाया और हरएक बच्चे को एक पौधा लगाकर उसकी सार-संभार करने की जिम्मेदारी निभाने के लिए प्रेरित किया. फिर बच्चों को पौधे उपलब्ध करने की जिम्मेदारी अनीश जैन व यतीश पाल सिंह को दी. वे हर वर्ष सैकड़ों वृक्ष लगते हैं .फाउंडेशन की इस योजना को सुनकर बच्चे बहुत प्रसन्न हुए और इसीलिए आज 75 बच्चों द्वारा अपने स्वयं के संरक्षण में एक एक पौधा अपने घर, मंदिर अथवा सार्वजानिक स्थानों पर लगाया गया.

कार्यक्रम से पूर्व आज सर्वप्रथम एतियात बरतते हुए कार्यक्रम के मुख्यअतिथि अनीश जैन द्वारा सभी आगंतुकों को मास्क वितरित किये गये और सभी को कोरोना महामारी से बचाव के लिए साबुन से बार बार हाथ साफ करते रहने एवं सामाजिक दुरी बनाये रखने के लिए प्रेरित किया और इसके बाद अनीश जैन के साथ बच्चों व कार्यकर्ताओं द्वारा ऋषिकुलम आश्रम में 5 फल व छायादार पौधे लगाये तत्पश्चात सभी बच्चों को एक एक पौधे का वितरण किया. बच्चों ने वह पौधा उचित स्थान पर लगाया और देखभाल की जिम्मेदारी ली. श्री अनीश जैन ने बच्चों को वृक्ष की देखभाल की सामाजिक जिम्मेदारी अच्छे से निभाने के लिए प्रेरित करते हुए कहा कि व्यक्ति में जिम्मेदारी का भाव बचपन से ही शुरू होता है.

अंत में हेमराज चतुर्वेदी द्वारा सभी बच्चों को नेक कार्य करने के लिए धन्यवाद दिया. इस मौके पर, रेखा चतुर्वेदी, जयप्रकाश, रोहित, कृष्णा मीणा हरिनारायण मीणा सहित फाउंडेशन के कई कार्यकर्त्ता उपस्थित थे.

स्वतन्त्रता दिवस विशेष कविता

“राष्ट्रीय अखंडता”

राष्ट्र की अखंडता में एकता का वास हो,
कोकिला की कूक-सी मधुरता का आभास हो |
आपस की वैरता को छोड़कर निकलना है,
देशधर्मी आस्था को लेकर के चलना है ||

भारती ने स्वप्न में क्या कहा था अब सुनो,
जल गया ये देश बस नफरतो की आग में,
आग की वो राख अब दुलार उर्वरक बने,
हर उपज माँ भारती की राष्ट्र सेवक बने ||

राष्ट्र की अखंडता में एकता का वास हो,
कोकिला की कूक-सी मधुरता का आभास हो |

सैन्य शक्ति हो प्रबल, माँ भारती की फौज की,
वीर गाथा स्मरण रहे, देश पर शहीद की |
राष्ट्र का हर नागरिक राष्ट्र का गौरव बने,
दीप ज्योत ऐसी हो, जो राष्ट्र को रोशन करे ||

राष्ट्र की अखंडता में एकता का वास हो,
कोकिला की कूक-सी मधुरता का आभास हो |

सभ्यता और संस्कृति की सेविका हु मानकर,
सेवा में तटस्थ भाव देश भक्ति जानकर |
सीमा की सुरक्षाओ का भार ओढना है अब,
दुश्मनों की चाल का जवाब देना है अब ||

राष्ट्र की अखंडता में एकता का वास हो,
कोकिला की कूक-सी मधुरता का आभास हो |

भूमिका चौबीसा
(अधिवक्ता, जिला एवं सेशन न्यायालय, उदयपुर, राजस्थान)

|| वन्दे मातरम् ||
|| जय हिन्द ||

सुशांत सिंह की मौत/ आत्म हत्या/ हत्या के मामले की जांच अब सीबीआई को

सुशांत सिंह राजपूत आत्महत्या मामले की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI)को सौंप दी गई है.केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि बिहार सरकार ने CBI जांच की सिफारिश की थी. केंद्र ने स्वीकार किया और जांच को CBI के हवाले कर दिया.

नई दिल्ली (ब्यूरो) – 05 अगस्त:

सुशांत सिंह राजपूत केस में बिहार सरकार ने मंगलवार को सीबीआई जांच की सिफारिश केंद्र को भेजी थी. अब केंद्र ने बिहार सरकार की ये सिफारिश मंजूर कर ली है. सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के वकील ने बताया कि उन्होंने सुशांत केस की जांच सीबीआई को ट्रांसफर कर दी है. अब इस केस की सीबीआई जांच करेगी. बता दें, लंबे समय से सोशल मीडिया पर इस केस की सीबीआई से जांच कराने की मांग हो रही थी.

सुशांत केस की होगी सीबीआई जांच

केंद्र सरकार के वकील SG तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि मामले की जांच सीबीआई से कराने की बिहार सरकार की सिफारिश मान ली गई है. रिया की तरफ से वकील श्याम दीवान ने कहा है कि एसजी की तरफ से जो कहा गया, यहां वह मामला नहीं है, ऐसे में अदालत रिया की याचिका पर गौर करे. श्याम दीवान (रिया के वकील) ने सभी मामले पर रोक लगाने की मांग की. श्याम दीवान ने कहा कि एफआईआर ज्यूरिसडिक्शन के मुताबिक नहीं है. ऐसे में अदालत पूरे मामले पर रोक लगाए.

बिहार पुलिस मुंबई पहुंची और खुद जाकर पूछताछ करने लगी. जबकि उनके क्षेत्राधिकार में यह नहीं आता, जबकि मुंबई पुलिस पहले से पूरी कार्रवाई कर रही है. रिया के वकील श्याम दीवान ने कहा बिहार में दर्ज FIR को मुम्बई ट्रांसफर किया जाना चाहिए. श्याम दीवान ने दलील देते हुए कहा कि सुशांत की मौत के मामले में मुंबई पुलिस अब तक 59 लोगों की गवाही दर्ज कर चुकी है.

जस्टिस ऋषिकेश राय ने कहा कि सुशांत काफी टैलेंटेड और उभरते हुए कलाकार थे और उनकी रहस्यमयी तरीके से मौत हो जाना चौंकाने वाला है. जस्टिस ऋषिकेश राय ने कहा कि यह जांच का विषय है.

बता दें कि सुशांत सिंह राजपूत की 14 जून को मौत हो गई. उन्होंने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी थी. सुशांत की मौत के बाद से हर कोई सीबीआई जांच की मांग कर रहा था.

संस्मरण : सन 1992 की अयोध्या जी की यात्रा

5 अगस्त 2020 को जब राम मंदिर का शिलान्यास किया आ रहा है तो 1992 के आरसेवकों को अपने बीते दिनों की याद आह्लादित कर रही है। शास्त्री देवशंकर ने अपने संस्मरणों को डेमोक्रेटिकफ्रंट॰कॉम से सांझा किया।

शास्त्री देवशंकर चौबीसा, उदयपुर:

सन 1992 में मेरी पोस्टिंग सागवाड़ा में थी, वहां हम कनकमल जी भाईसाहब के सानिध्य में कार सेवा के लिए रवाना हुए। सागवाड़ा से हम बस द्वारा बांसवाड़ा के स्वयंसेवकों को साथ लेते हुए रतलाम पहुंचे। रतलाम से हमने रात को ट्रेन पकड़ी थी, जैसे ही ट्रेन में चढ़े ऐसा लगा कि जितने भी कारसेवक आ रहे थे, वह सभी अपने परिवार के लोग हैं, जगह नहीं थी, ऊपर-नीचे खचाखच ट्रेन भरी हुई थी। मैं जब ट्रेन के ऊपर सवारियों को बैठे हुए देखता तो ऐसा लगता है कि कैसे बैठते होंगे, परन्तु जब मैं स्वयं ट्रेन के ऊपर बैठा तो रामलला के भक्तो के मध्य बहुत ही आनंददायक माहौल था। “जय श्री राम” के नारे और गीतों को गाते हुए अयोध्याजी पहुंचे।

कनक जी के सानिध्य में हमने अपना अभियान जारी रखा, जैसा जैसा निर्देश मिलता रहा वैसे हम कार्य करते रहें। प्रातः काल से लेकर के विभिन्न संतो, महंतों और नेताओं के भाषण चल रहे थे और उनको सुन रहे थे और यह तय हुआ था कि सबसे पहले कौन जाएगा, सबसे आगे कौन खड़ा रहेगा, इसके लिए रात्रि में बैठक भी हुई थी। ऐसी स्थिति में जिस दिन ढांचा गिरा उस दिन ना तो भूख लग रही थी ओर ना ही प्यास लग रही थी, केवल एक ही लक्ष्य था और उसके लिए हम सभी वहां मैदान में डटे हुए थे। हमारी जरूरत पड़ जाए और हम भगवान श्रीराम और देश के लिए काम आये।

शाम को 5:00 बजे राष्ट्रपति शासन लग गया था। वहां ऐसी स्थिति में रात को पता चला कि सुबह जल्दी उठते ही सुबह 4:00 बजे हमको उठा दिया गया और कहा कि यहां अयोध्याजी में कर्फ्यू लग चुका है तुरंत जितना जल्दी हो सकता है अयोध्याजी खाली करने के आदेश मिले। साथ ही पुलिस की घोषणा भी हो रही थी कि आप तुरंत अयोध्याजी खाली करें। लेकिन प्रातः कालीन 4:00 बजे अपना आवास छोड़कर के निकले थे पुलिस वालों ने हमको रोका, परंतु माइक से मजिस्ट्रेट घोषणा की, कि जो कारसेवक घर की तरफ जा रहे हैं उन्हें किसी प्रकार से परेशान नहीं किया जाए और हमने वहाँ से ट्रेन पकड़ी। बाराबंकी में मुस्लिमों ने ट्रेन को रोका और पथराव किया। परन्तु हमारे साथ कुछ ऑर्मी के जवान थे, उन्होंने मुकाबला किया हवाई फायरिंग कर उन लोगों को भगाया । फिर धीरे से ट्रेन रवाना हुई ऐसे करते-करते हम घर पहुंचे।

जो हमने उठाया था एक लक्ष्य लेकर पहुंचे थे वह कल साकार होता दिख रहा है, भगवान श्रीराम का जन्म स्थान पर इस भव्य मंदिर के निर्माण के लिए 1992 में जो कुछ किया था वह अपनी आंखों से होता हुआ हम देख रहे हैं ।

मां तो मां होती है

।।कविता।।

मां तो मां होती है
मां तो मां होती है चाहे किसी गरीब कि या अमीर कि हो।
मां का जिस घर मे आदर होता है उस घर मैं खुशिया कम नहीं होती मां का हाथ जिसके सिर पर होता
उस पर बुरे साये काअसर नही होता।
मां कि दुआएं जहा होती है ,
वहां अमगंल नही होता है।
मां जिस घर मै होती वह घर स्वर्ग से कम नहीं होता।
मां का आशीर्वाद हो साथ वहां जीवन मे कोई कष्ट नहीं आता।
मां तो मां होती हैं चाहे रकं कि या राजा की हो।
मां हसते हसते निवाला बच्चे को खिलाती है।
चाहे वह भुख से तडप रही हो।
मां पुजा मे भी भगवान से बच्चों के लिए ही दुआ मांँगती है ।
मां तो मां होती है मां से बडा कोई ईश्वर नहीं ।
मां के सामने तो ईश्वर भी झुका है
तो हम किया है।
मां के प्रेम को पाने के लिए तो, ईश्वर ने भी जन्म मरण को पाया।
तो हम तो बडे़ भाग्यशाली हैं,
कि हमें ईश्वर के रूप में मां मिली।
मां तो मां होतीहै मां तो मां होती है।

अपनी लेखनी
अधिवक्ता भावना नागदा
(अपनी मां को समर्पित)