त्रिवेंद्र रावत की पत्नी 1996 से एक ही स्कूल में पदस्थ है : RTI


प्रदेश में जहाँ एक अकेली (विधवा) अध्यापिका को 20 साल की नौकरी के बाद भी मन चाहि पोस्टिंग नहीं मिलती और वह मुख्यमंत्री के गुस्से का शिकार हो कर प्रताड़ित और निलंबित की जाती है, वहीँ मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की पत्नी श्री मति सुनीता रावत 1996 (22 साल) से देहरादून के अजबपुर के स्कूल में कार्यरत है.


 

उत्तराखंड के a त्रिवेंद्र सिंह रावत की पत्नी के ट्रांसफर मामले में एक आरटीआई कार्यकर्ता ने नई कड़ियां जोड़ दी हैं. आरटीआई कार्यकर्ता प्रवीण शर्मा का कहना है कि उन्होंने जब मुख्यमंत्री की पत्नी सुनीता रावत की पोस्टिंग के बारे में जानना चाहा, तो जवाब बहुत ही चौंकाने वाला था. उन्होंने कहा कि सुनीता रावत अपने प्रमोशन के बाद भी पिछले 22 सालों से देहरादून में ही काम कर रही हैं. प्रवीण का कहना है कि उन्हें यह कागजात हासिल करने के लिए कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ा.

आरटीआई कार्यकर्ता के मुताबिक सीएम रावत की पत्नी साल 2008 में ट्रांसफर होने के बाद भी देहरादून के अजबपुर के स्कूल में काम कर रही हैं. आरटीआई कार्यकर्ता के मुताबिक वह 1996 से देहरादून के इस स्कूल में पदस्थ हैं. मालूम हो कि शुक्रवार को सीएम रावत की जनसभा में एक महिला ने यह मामला उठाया था, जिसके बाद यह सभी की नजरों में आ गया.

ये था पूरा मामला

मालूम हो कि एक महिला शिक्षिका उत्तरा पंत पिछले 20 साल से उत्तरकाशी के एक प्राइमरी स्कूल में तैनात हैं और लंबे समय से अपने ट्रांसफर की मांग कर रही हैं. लेकिन लगातार मांगने पर भी ट्रांसफर ना मिलने के बाद गुस्सा होकर महिला शिक्षिका ने सीएम रावत के जनता दरबार में अपना दुख जाहिर किया. इसी दौरान उन्होंने कहा था कि सीएम रावत की पत्नी सुनीता रावत ट्रांसफर के बाद भी पिछले 20 सालों से देहरादून में काम कर रही हैं.

सर्वेक्षण ने खिलाये कान्ग्रेस के चेहरे

 

 

देश की राजनीतिक मूड पर एक थिंक टैंक द्वारा किये गए एक हालिया सर्वेक्षण ने बीजेपी विरोधी खेमे को बहुत उत्साहित कर दिया है. यह सर्वे बताता है कि पिछले कुछ महीनों में नरेंद्र मोदी की रेटिंग में तेज गिरावट आई है, जबकि राहुल गांधी की अपनी लोकप्रियता में सुधार किया है.

नरेंद्र मोदी को ले कर पैदा हुई निराशा मध्य भारत में अधिक स्पष्ट है. ऐसा लगता है कि प्रौढावस्था में प्रवेश कर चुके लोग और मध्यम वर्ग, वादे और अब तक किए गए काम के बीच के अंतर को ले कर सबसे अधिक परेशानी महसूस कर रहे हैं. हालांकि, यह नहीं मालूम है कि ये फीडबैक कैसे प्राप्त हुआ है. लेकिन, बीजेपी और पार्टी का सोशल मीडिया हैंडल इससे इनकार कर रहे हैं. उन्होंने इस सर्वे को राजनीति से प्रेरित और धूर्ततापूर्ण बता कर खारिज कर दिया है. हालांकि, कोई भी नरेंद्र मोदी के असली समर्थकों के बीच पैदा हो रही प्रारंभिक निराशा को समझ सकता है.

सहज विकल्प?

कई तटस्थ पर्यवेक्षक राहुल 2.0 के राजनीतिक यात्रा में आई गति को ले कर कौतूहल की स्थिति में है. राहुल गांधी को जिस तरह से गुजरात चुनाव के बाद से संदर्भित किया जा रहा है और कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद उनके नए अवतार की चर्चा हो रही है, उसे लेकर ऐसे पर्यवेक्षक आश्चर्यचकित भी है. विश्लेषक नरेंद्र मोदी के कमजोर होते आभामंडल के कारणों को समझ सकते हैं, फिर भी वे राहुल गांधी की बढ़ती राजनीतिक चमक की व्याख्या कर पाने में असमर्थ है, इन तथ्यों के बावजूद कि राहुल गांधी लगातार गलतियां करते है और उनमें राजनीतिक परिपक्वता की स्पष्ट कमी है.

यह सच है कि पिछले कुछ समय से नरेंद्र मोदी कई विपरीत परिस्थितियों से जूझ रहे है, विभिन्न राज्यों में बीजेपी सरकारों के खिलाफ एंटी-इनकमबेंसी का माहौल है. फिर भी, राहुल गांधी अभी तक वो राजनीतिक कद नहीं बना पाए है, जो उन्हें नरेंद्र मोदी का सहज विकल्प बना सके. दरअसल, ममता बनर्जी जैसी क्षेत्रीय क्षत्रप बीजेपी के खिलाफ एक मजबूत विपक्ष बनाने की कोशिश कर रही हैं. उन्होंने साफ कहा है कि अगर महागठबंधन अगले लोकसभा में सरकार बनाने की स्थिति में आता है, तो ऐसी स्थिति में कांग्रेस खुद को इसका सहज लीडर नहीं मान सकती है.

2014 में, नरेंद्र मोदी ‘चेंज’ (बदलाव) और ‘अच्छे दिन’ के संदेश के साथ मतदाताओं के पास गए थे. इसके विपरीत, राहुल गांधी सिवाए मोदी, बीजेपी और आरएसएस की खिंचाई करने के अलावा कोई भी वैकल्पिक दृष्टिकोण पेश नहीं कर सके है. राहुल गांधी ये काम ‘डिफ़ॉल्ट सेटिंग’ के आधार पर करते है और वह भी आधा सच या अपमानजनक आरोपों के साथ. इसलिए, ये सवाल अभी भी है कि आखिर राहुल गांधी के पक्ष में ऐसी क्या चीज है, जो काम कर रही है?

एंग्री यंगमैन!

राहुल गांधी का सबसे बेहतर और बुद्धिमतापूर्ण निर्णय ये रहा है कि उन्होंने खुद को कम्युनिकेशन, पीआर और सोशल मीडिया विशेषज्ञों की एक टीम को सौंप दिया है. कहा जाता है कि इस टीम का नेतृत्व सैम पित्रोदा जैसे शुभचिंतक कर रहे हैं. कांग्रेस में अब एक एनालिटिक्स सेल है. कैम्ब्रिज एनॉलिटिका प्रकरण के जरिए आम लोगों ने भी इस तथ्य को जाना और समझा. यह संभव है कि यह अन्य पेशेवर चुनाव रणनीतिकारों के साथ काम कर रहा हो. राहुल जाहिर तौर पर एक स्क्रिप्ट के हिसाब से अभिनय कर रहे हैं. आलोचकों को भले उनके इस अभिनय और कंटेंट में गलती मिली हो, लेकिन इसने प्रभाव डालना शुरू कर दिया है, कम से कम गुजरात और कर्नाटक से तो यह साबित हो ही रहा है.

हालांकि, उनके मंदिर दौरे और दलितों को लुभाने के तरकीबों का नतीजा सामने आना बाकी है. लेकिन उनकी गढ़ी गई एंग्री यंग मैन की छवि, मोदी पर अपने धनी दोस्तों के लिए लोगों का विश्वास तोड़ने के आरोप से कुछ हद तक उन पर असर हो रहा है, जिन्होंने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में लगातार चार बार से बीजेपी को वोट दिया था. कुल मिला कर वे उच्च स्तर की ऊर्जा प्रदर्शित कर रहे है, गंभीरता दिखा रहे है. नतीजतन, इससे वे पुराने वफादार कांग्रेसी भी प्रभावित हो रहे हैं, जिन्होंने कभी उनसे आस छोड़ दी थी.

कुछ लोगों को राहुल गांधी का सोशल मीडिया पर होना एलिट लग सकता है. यह शायद अंग्रेजी बोलने वाले सुसंस्कृत शहरी मतदाताओं के बीच पारंपरिक कांग्रेस मतदाताओं की मान्यता हो. एक चतुराई भरे कदम के तौर पर अब जनता तक पहुंचने के लिए व्हाट्सएप पर वायरल कैंपेन का उपयोग किया जा रहा है.

सत्ता के लिए कुछ भी करेगा

मोदी के फैसले से उपेक्षित कई पुराने कांग्रेस समर्थक मीडिया भी साथ आ गया है. बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व पर भ्रष्टाचार के आरोप के लिए ‘स्कूप्स’ पैदा किए जा रहे है. नरेंद्र मोदी के साथ नीरव मोदी की तुकबंदी एक नई चतुराई है, जो पहले कांग्रेस में नहीं दिखती थी.

इसके अलावा, इसने पार्टी के पुरानी इको-सिस्टम को सक्रिय किया है. उनके बीच बीजेपी को हराने की इच्छा इतनी जबरदस्त है कि बीजेपी को उस ‘बुराई’ के रूप में चित्रित किया गया है, जिसे हर कीमत पर समाप्त किया जाना चाहिए. उस उद्देश्य को पाने के लिए मायावती या लालू यादव के भ्रष्टाचार को भी नजरअंदाज किया जा सकता है. कर्नाटक में अवसरवादी कदम उठाए जा सकते है और शपथ ग्रहण के मौके पर सीपीआईएम और तृणमूल, बीएसपी और एसपी, जेडीयू और आरजेडी जैसे दुश्मन एक साथ एक मंच पर आ सकते है.

आक्रामक कांग्रेस, रक्षात्मक बीजेपी

कांग्रेस के पास हमेशा से वफादारों की एक फौज रही है. खासतौर पर सेवानिवृत्त नौकरशाह, खुफिया अधिकारी, राजनयिक और शिक्षाविद, जो अपने पुनरुत्थान के लिए कांग्रेस को समर्थन दे कर खुश है. इसके अलावा, कानूनी जगत में भी कांग्रेस का एक बड़ा आधार है. इसका लोया मामले, ज्यूडिसियरी रिवॉल्ट और सीजेआई के खिलाफ महाभियोग में अच्छा इस्तेमाल किया गया था. इससे बीजेपी विरोधी भावनाओं को मजबूती देने में मदद की थी.

राहुल की एक कमजोरी वाला क्षेत्र है, राजनीतिक कौशल. लेकिन, यहां अहमद पटेल, गुलाम नबी आजाद और अशोक गहलोत जैसे पुराने परिवार के शुभचिंतक उनके आसपास घूमते दिखाई देते है, जैसाकि गुजरात और कर्नाटक में दिखा. दिग्विजय सिंह को हटा दिया गया है लेकिन कमलनाथ आगे आए हैं. ये आराम से कहा जा सकता है कि शतरंज की ये चाल निश्चित रूप से सोनिया गांधी के इशारे पर चली गई होंगी.

अब भी मोदी अकेले

इसके विपरीत, बीजेपी कैंपेन लड़खड़ा रहा है. वे कांग्रेस की नकारात्मक प्रचार को भेद नहीं पा रहे है और न ही सरकार की उपलब्धियों की मार्केटिंग कर पा रहे है. ऐसा लगता है कि बीजेपी के सोशल मीडिया सेल ने 2014 में दिखाए गए उत्साह को खो दिया है. वे अक्सर रक्षात्मक नजर आने लगे हैं.

ट्रोल-सेना से मदद नहीं मिलती हैं. वे कभी-कभी बीजेपी के खिलाफ ही काम कर जाते है और निष्पक्ष आवाज पर आक्रमण करने लगते है. ताजा उदाहरण वरिष्ठ नेता और नरेंद्र मोदी कैबिनेट की सबसे सफल मंत्री सुषमा स्वराज का है. उज्ज्वला जैसी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की सफलता का विज्ञापन भी अब संतृप्ति की अवस्था तक पहुंच चुका है, जहां से इसका प्रभाव अब घटने लगा है.

यह सब 1975 के आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी सरकार के सरकारी प्रोपेगेंडा जैसा दिखने लगा है. चूंकि सरकार अब चुनाव के नजदीक पहुंच गई है, इसलिए अब पूरी जिम्मेवारी प्रधानमंत्री और प्रधानमंत्री कार्यालय पर आ गई है. 2014 में मोदी अकेले चैलेंजर थे. यूपीए सरकार के खराब रिकॉर्ड को देखते हुए, वह आशा की किरण और मसीहा नजर आ रहे थे. अब मोदी को शासन और अभियान, दोनों का प्रबंधन करना है.

नरेंद्र मोदी पूरे राजनीतिक खेल को हमेशा से एक नए स्तर पर ले जाते रहे हैं. वे मीडिया की बजाए सीधे मतदाताओं तक पहुंचते है. मन की बात, नमो एप्प पर पार्टी कार्यकर्ताओं और सरकारी योजना के लाभार्थियों से बात या वेबिनार (वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग) के जरिए, वे सीधे मतदाताओं तक पहुंचते हैं. अब, इस सब के जरिए मोदी स्थिति को अपने अनुकूल बना पाते है या नहीं, इसका पता 2019 में ही चलेगा. जाहिर है, वे एक राजनेता है, उनके पास तुरुप के कई पत्ते हो सकते है.

फिलहाल, एक सर्वेक्षण चुनाव परिणाम तय नहीं करता है. खेल अभी शुरू हुआ है.

क्या कश्मीर पाकिस्तान को देने को राज़ी थे सरदार पटेल?

 

सोज़ का कहना था कि अगर पाकिस्तान भारत को हैदराबाद देने के लिए तैयार होता, तब सरदार पटेल को भी पाकिस्तान को कश्मीर देने में कोई दिक़्क़त नहीं होती.

सोज़ ने ये दावा अपनी किताब ‘कश्मीर: ग्लिम्प्स ऑफ़ हिस्ट्री एंड द स्टोरी ऑफ़ स्ट्रगल’ में किया है. इस किताब में बंटवारे की बहुत सी घटनाओं का उल्लेख किया गया है.

लेकिन क्या सरदार पटेल का वास्तव में कश्मीर पाकिस्तान को देने का विचार था?


क्या सोज़ के दावे में कोई सच्चाई है?

सोज़ अपनी किताब में लिखते हैं, पाकिस्तान के ‘कश्मीर ऑपरेशन’ के इंचार्ज सरदार हयात ख़ान को लॉर्ड माउंटबेटन ने सरदार का प्रस्ताव पेश किया.

प्रस्ताव के अनुसार, सरदार पटेल की शर्त थी कि अगर पाकिस्तान हैदराबाद दक्कन को छोड़ने के लिए तैयार है तो भारत भी कश्मीर पाकिस्तान को देने के लिए तैयार है. (पेज 199, कश्मीर: ग्लिम्प्स ऑफ़ हिस्ट्री एंड द स्टोरी ऑफ़ स्ट्रगल)

हयात ने इस संदेश को पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाक़त अली ख़ान तक पहुँचाया.

तब प्रधानमंत्री लियाक़त अली ख़ान ने कहा, “मैं पागल नहीं हूं कि कश्मीर और उसके पत्थरों के लिए एक ऐसे क्षेत्र (हैदराबाद) को जाने दूं जो पंजाब से भी ज़्यादा बड़ा है.”

सरदार कश्मीर देने को राज़ी थे


सोज़ ने अपनी किताब में कश्मीर और इसके इतिहास के विशेषज्ञ ए.जी. नूरानी के एक लेख का भी ज़िक्र किया है.

इस लेख का नाम ‘अ टेल ऑफ़ टू स्टोरीज़’ है जिसका ज़िक्र करते हुए लिखा गया है: 1972 में एक आदिवासी पंचायत में पाकिस्तान के राष्ट्रपति ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने कहा था कि सरदार जूनागढ़ और हैदराबाद के बदले में कश्मीर देने को तैयार थे. (पेज 199, कश्मीर: ग्लिम्प्स ऑफ़ हिस्ट्री एंड द स्टोरी ऑफ़ स्ट्रगल)

भारत के पूर्व गृह सचिव और सरदार के क़रीबी सहयोगी रहे वी.पी. मेनन ने भी कहा था कि शुरुआत में सरदार कश्मीर को पाकिस्तान देने को राज़ी थे.

मेनन अपनी किताब ‘इंटिग्रेशन ऑफ़ द इंडियन स्टेट’ में लिखते हैं, तीन जून 1947 को रियासतों को यह विकल्प दिया गया था कि वह चाहें तो पाकिस्तान के साथ विलय कर सकते हैं या भारत के साथ.

कश्मीर एक ऐसा मुस्लिम बहुल प्रांत था जिस पर हिंदू राजा हरि सिंह का शासन था. साफ़तौर पर हरि सिंह के लिए किसी को चुनना आसान नहीं था.

इस मामले को सुलझाने के लिए लॉर्ड माउंटबेटन ने महाराजा हरि सिंह के साथ चार दिन बिताए थे.

लॉर्ड माउंटबेटन ने महाराजा से कहा था कि सरदार पाकिस्तान के साथ जाने के कश्मीर के फ़ैसले का विरोध नहीं करेंगे. (पेज 394, इंटिग्रेशन ऑफ़ द इंडियन स्टेट)

गुहा ने भी दावे पर हामी भरी


इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने सोज़ की किताब के दावों पर सहमति जताई है.

ट्विटर पर गुहा ने लिखा: कश्मीर पाकिस्तान को देने को लेकर पटेल को कोई दिक़्क़त नहीं थी.

गुहा इसमें जोड़ते हुए कहते हैं कि सरदार की आत्मकथा में राजमोहन गांधी ने भी इसका ज़िक्र किया है.

राजमोहन गांधी अपनी किताब ‘पटेल: अ लाइफ़’ में लिखते हैं, 13 सितंबर 1947 तक पटेल के कश्मीर को लेकर अलग विचार थे.

सरदार ने भारत के पहले रक्षा मंत्री बलदेव सिंह को लिखे पत्र में भी कुछ ऐसा ही लिखा है. वह अपने पत्र में लिखते हैं कि कश्मीर अगर किसी दूसरे राष्ट्र का शासन अपनाता है तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है.

राजमोहन गांधी अपनी किताब में लिखते हैं, जब पाकिस्तान ने जूनागढ़ के नवाब के विलय के निवेदन को स्वीकार कर लिया केवल तभी कश्मीर को लेकर सरदार के विचार में बदलाव आया.

‘आप पाकिस्तान नहीं जा रहे’

सरदार के बदले विचार पर भी राजमोहन गांधी लिखते हैं.

“26 अक्तूबर 1947 को नेहरू के घर पर एक बैठक हुई थी. कश्मीर के दीवान मेहर चंद महाजन ने भारतीय सेना की मदद के लिए कहा था.

महाजन ने यह भी कहा कि अगर भारत इस मांग पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देता है तब कश्मीर जिन्ना से मदद के लिए कहेगा.

नेहरू यह सुनकर गुस्से में आ गए और उन्होंने महाजन को चले जाने को कहा.

उस वक़्त सरदार ने महाजन को रोका और कहा, “महाजन, आप पाकिस्तान नहीं जा रहे हैं.” (पेज 439, पटेल: अ लाइफ़)

गुजराती भाषा में सरदार पटेल पर ‘सरदार: साचो मानस साची वात’ लिखने वालीं उर्विश कोठारी ने बीबीसी से बात की.

उन्होंने कहा, “रजवाड़ों के विलय के दौरान सरदार कश्मीर का भारत का अंग बनने को लेकर ज़्यादा गंभीर नहीं थे.”

उर्विश कहते हैं, “इसकी मुख्यतः दो वजहें थीं. पहली उस राज्य का भूगोल और दूसरा राज्य की आबादी.”

उर्विश कोठारी ने विस्तार से कहा, “इस बात का ध्यान रखना ज़रूरी है कि कश्मीर एक सीमाई राज्य था और उसकी अधिकतर जनसंख्या मुसलमान थी. इसी कारण सरदार कश्मीर का भारत में विलय करने को लेकर ज़्यादा हठी नहीं थे लेकिन नेहरू जो ख़ुद कश्मीरी थे वह कश्मीर को भारत में चाहते थे.”

जूनागढ़ विवाद शुरू हुआ

उर्विश कोठारी ने कहा, “कश्मीर के दोनों प्रतिष्ठित नेता महाराजा हरि सिंह और शेख़ अब्दुल्ला नेहरू के दोस्त थे. कश्मीर को लेकर नेहरू के नरम रुख़ का एक यह भी कारण था. उसी समय जूनागढ़ विवाद शुरू हुआ और सरदार कश्मीर मसले में दाख़िल हुए. इसके बाद सरदार ने बिलकुल साफ़तौर पर कहा कि कश्मीर भारत के साथ रहेगा.”

वरिष्ठ पत्रकार हरि देसाई कहते हैं, “शुरुआती दिनों में कश्मीर के पाकिस्तान में जाने से सरदार को कोई समस्या नहीं थी. बहुत से दस्तावेज़ों में यह है भी. जून 1947 में सरदार ने कश्मीर के महाराजा को पत्र लिखा जिसमें उन्होंने कहा कश्मीर के पाकिस्तान में विलय पर भारत आपत्ति नहीं करेगा, लेकिन महाराजा को 15 अगस्त से पहले फ़ैसला लेना होगा.”

उर्विश कोठारी कहते हैं, “हमारे पास दस्तावेज़ हैं जो उन ऐतिहासिक घटनाओं और फ़ैसलों को दर्शाते हैं लेकिन वे फ़ैसले उस विशेष स्थिति में लिए गए थे. राजनेता अपने एजेंडे के लिए उन ऐतिहासिक घटनाओं का केवल आधा सच ही दिखाते हैं. हम निश्चित तौर पर नेहरू या सरदार लिए गए फ़ैसलों का विश्लेषण कर सकते हैं लेकिन हमें उनके इरादों पर शक नहीं करना चाहिए.”

साभार बीबीसी हिंदी

7 फेरों में बंधे कलेक्टर और तहसीलदार

 

बस्तर के सहायक कलेक्टर व प्रशिक्षु आईएएस चंद्रकांत वर्मा व तहसीलदार करिश्मा दुबे शनिवार को शादी के बंधन में बंध गए। रायपुर के समता कॉलोनी स्थित गायत्री मंदिर में शादी पारंपरिक रीति रिवाज के साथ संपन्न हुई।

इस मौके पर परिवार के लोगों के अलावा कई करीबी भी मौजूद थे। वर्मा और करिश्मा ने साथ में पढ़ाई की है और दोनों काफी अच्छे दोस्त रहे हैं, लेकिन अब वो दोस्ती शादी में बदल गई है।

शादी के बंधन में बंधने के बाद रविवार को रायपुर के डीडी नगर में एक रिस्पेशन का कार्यक्रम है, जिसमें छत्तीसगढ़ के कई प्रशासनिक अधिकारी और राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी शामिल होंगे। वर्मा 2017 बैच के होम कैडर के आईएएस हैं।

2017 बैच के छत्तीसगढ़ कैडर के 5 आईएएस में से वर्मा इकलौते होम कैडर के आईएएस हैं। चंद्रकांत पहले राज्य प्रशासनिक सेवा में ही थे, लेकिन बाद में उन्होंने संघर्षों की नई इबारत लिखी और फिर 7 बार नाकाम होने के बाद यूपीएससी में कामयाबी का झंडा बुलंद किया।

2008 बैच के पीएससी में वर्मा बतौर डिप्टी कलेक्टर थे, जबकि करिश्मा 2008 बैच में पीएससी के जरिए तहसीलदार में सेलेक्ट हुई थीं।

पंडरिया में तहसीलदार हैं करिश्मा

करिश्मा दुबे 2008 बैच की तहसीलदार हैं और वर्तमान में पंडरिया में पदस्थ हैं। करिश्मा ने भी बड़े संघर्षों के बाद मुकाम हासिल किया है। इससे पहले करिश्मा ने शिक्षाकर्मी के तौर पर भी ज्वाइनिंग दी थी, लेकिन जब वहां उनका मन नहीं लगा तो महिला बाल विकास विभाग के महिला पर्यवेक्षक के तौर पर भी उनकी पोस्टिंग हुई, वो धमधा में कार्यरत रहीं। शिक्षाकर्मी मोर्चा के प्रांतीय संचालक वीरेंद्र दुबे व अतुल अवस्थी करिश्मा के जीजा हैं।

US upgrades Pakistan on ‘human trafficking index’


The United States has moved Pakistan from a watch list to another group of countries that have taken significant steps to curb human trafficking, says a report released on Friday.


“The government of Pakistan does not fully meet the minimum standards for the elimination of trafficking; however, it is making significant efforts to do so,” says the report released by the US State Department.

“The government demonstrated increasing efforts compared to the previous reporting period, therefore, Pakistan was upgraded to Tier 2.”

The move came two days after an international financial watchdog placed Pakistan on its monitoring list — known as the ‘grey list’— for allowing terrorist groups to collect funds.

“Modern slavery has no place in the world, and I intend to ensure, through diplomatic engagement and increased action, that the United States government’s leadership in combating this global threat is sustained in the years to come,” said US Secretary of State Michael R. Pompeo while releasing the trafficking in persons report.


Report urges Islamabad to increase prosecution, convictions for forced and bonded labour, sex trafficking


Tier 2 on the State Department’s list includes countries that do not fully comply with these minimum standards, but are making significant efforts to bring themselves into compliance while tier 2 watch list includes countries being monitored for compliance.

The report notes that the Pakistan government demonstrated increasing efforts by raising the number of victims it identified and investigations and prosecutions of sex trafficking.

The provincial government of Punjab increased investigations, prosecutions, and convictions for bonded labour, the country’s largest human trafficking problem.

The government of Azad Jammu and Kashmir adopted a law prohibiting bonded labour.

The governments of Khyber Pakhtunkhwa and Sindh reported operating two additional women shelters and three additional child protection units, respectively.

The federal government continued to implement its 2015-20 national strategic framework against trafficking in persons and migrant smuggling.

The report, however, points out the Pakistan government did not meet the minimum standards in several key areas:

Overall government law enforcement efforts on labour trafficking remained inadequate compared with the scale of the problem; Punjab continued to be the only province to report prosecutions and convictions for bonded labour.

Convictions for sex trafficking decreased and the government’s overall convictions remained small compared with the extent of trafficking in Pakistan.

Official complicity in trafficking crimes remained a pervasive problem, yet the government did not report new law enforcement efforts to hold such officials accountable, including failing to investigate serious allegations of trafficking regarding a high-ranking diplomatic official.

Government protection efforts remained inconsistent; only a small number of the total victims identified were referred to assistance services.

The report urges Pakistan to increase prosecutions and convictions, particularly of forced and bonded labour, while strictly respecting due process; pass an anti-trafficking law that criminalises all forms of human trafficking, including sex trafficking of those under 18 without requiring coercive means.

It also urges Pakistan to prescribe penalties commensurate with other serious crimes, such as rape; thoroughly investigate credible allegations of government complicity in trafficking and stringently prosecute and punish officials who are complicit.

Pakistan should also provide additional resources to increase trafficking-specific services for victims, including for men and boys, and ensure victims are not penalised for acts committed as a result of being subjected to trafficking.

The States Department also urges Pakistan to ensure the creation, dissemination, and use of standard operating procedures (SOPs) for victim identification and referral to rehabilitation services at the provincial level; expand ability for freed bonded labourers; to obtain identification documents and gain access to government services.

Pakistan should also take steps to eliminate all recruitment fees charged to workers; issue policies and provide trainings to government officials that clearly distinguish between human trafficking and migrant smuggling.

The report urges Pakistan to strengthen the capacity of provincial governments to address human trafficking, including bonded labour, through training, awareness raising, funding, and encouraging the creation of coordination task forces and the adoption of provincial-level anti-trafficking action plans.

Troller want EAM Swaraj to be beaten up


The barrage of hate directed at External Affairs Minister (EAM) Sushma Swaraj following her intervention in the Lucknow passport row involving an interfaith couple doesn’t seem to be subsiding.


The barrage of hate directed at External Affairs Minister (EAM) Sushma Swaraj following her intervention in the Lucknow passport row involving an interfaith couple doesn’t seem to be subsiding.

Days after Swaraj was forced to turn off the review section of her official Facebook page and expose the haters by ‘liking’ their tweets, the MEA continues to face verbal criticism bordering on the most abhorrent kind on social media.

Such has been the vitriolic hatred of the trolls that even Swaraj’s husband, Swaraj Kaushal, finds himself in the middle of the nastiness.

Earlier on Saturday, the former Governor of Mizoram posted a tweet containing the screenshot of a now-deleted tweet from a user who wanted him to “beat Sushma Swaraj and teach her not to do Muslim appeasement”.

But even after Kaushal, a senior criminal lawyer, called him out, the user didn’t stop posting objectionable tweets. “Somebody needs to set the EAM right” read a tweet posted in response to Swaraj Kaushal’s.

Some body needs to set Sushma right

Addressing Kaushal, the user also wrote that Twitter allows him to say “what I want to say to you”.

On 25 June, Sushma had given back in kind to the trolls who took to social media to call her names. The EAM, who was not present in India at the time when the incident made headlines, was bombarded with a barrage of insensitive remarks by a section which was offended with the transfer of the passport officer at the centre of the row.

The incident dates back to 20 June. A couple, Mohammad Anas Siddiqui and Tanvi Seth, had alleged that a passport officer posted in the Regional Passport Office in Lucknow had asked Anas to convert to Hinduism and pulled up the wife for not changing her name after marriage.

The passport officer, Vikas Mishra, was transferred to Gorakhpur and the couple were issued the passports on Thursday, 21 June.

Mishra later denied the allegations saying he didn’t ask Anas to convert. He said he only followed the procedure and that Tanvi had a different name in her ‘nikahnama’ (wedding certificate), compared to that in her other documents, which was why he had asked for more proof.

Swaraj, who returned from her four-nation tour of Europe on 24 June, posted a message from her official Twitter handle in which she smartly called out those who trolled her.

“I was out of India from 17th to 23rd June 2018. I do not know what happened in my absence. However, I am honoured with some tweets. I am sharing them with you. So I have liked them,” wrote Swaraj.

FATF has formally placed the country on the ‘grey list’ for failing to curb terror funding


The highly-anticipated decision came on Friday night at the concluding session of the week-long plenary of the anti-terror finance watchdog in Paris


In a major setback for Pakistan ahead of the 25 July general election, the Financial Action Task Force (FATF) has formally placed the country on the ‘grey list’ for failing to curb terror funding. India promptly welcomed the decision, hoping Pakistan would now address global concerns relating to terrorism emanating from its territory.

The highly-anticipated decision came on Friday night at the concluding session of the week-long plenary of the anti-terror finance watchdog in Paris.

The global body took the decision on the basis of a monitoring report of the International Cooperation Review Group (ICRG). It came despite Islamabad strongly claiming at the meeting that it had made progress in the majority of areas identified as threat by the terror-financing watchdog.

Pakistan, it is learnt, accepted the grey-listing because even its traditional allies like Saudi Arabia, Turkey and China could not defend it at the meeting. If Islamabad fails to comply with the FATF blueprint, it could be even moved to the blacklist next year

Reacting to the development, India hoped Pakistan would comply with the  FATF’s action plan in a time-bound manner and take credible measures to deal with terrorism.

“Pakistan has given a high-level political commitment to address the global concerns regarding its implementation of the FATF standards for countering terror financing and anti-money laundering especially in respect of UN designated and internationally proscribed terror entities and individuals,’’ External Affairs Ministry spokesperson Raveesh Kumar pointed out.

He observed that the freedom and impunity with which designated terrorists like Hafiz Saeed and entities like the Jamaat-ud-Dawaa, Lashkar-e-Taiba and Jaish-e-Mohammed continue to operate in Pakistan was not in keeping with such commitments.

Meanwhile, China, an ‘all-weather’ ally of Islamabad, declined to comment on Pakistan being placed on the ’grey list’ but heaped praise on the country, saying the world should recognise the enormous efforts and sacrifices it had made to combat terrorism.

The FATF asked Pakistan to complete implementation of the action plans expeditiously and within the proposed timeframes, saying it would closely monitor the implementation of those action plans.

The FATF’s decision could hurt Pakistan economically as the country runs the risk of being downgraded by multilateral financial institutions. Being on the ‘grey list’ could also mean that accessing funds from international markets could become tougher for Pakistan.

The ICRG report showed that Pakistan did show progress on some of major areas of concerns. Pakistan Finance Minister Shamshad Akhtar represented the country at the meeting, strongly refuting the allegation of lax supervision of the financial sector.

About 2,500 pilgrims stranded at Tikri, Udhampur and Ramban due to heavy rainfall


About 2,500 pilgrims were stranded at Tikri, Udhampur and Ramban on the Jammu-Srinagar highway since leaving Jammu on Friday; red alert sounded as Jhelum water crossed the danger mark


Hundreds of Amarnath pilgrims from across the country are stranded in Jammu and the two base camps of the pilgrimage in Kashmir because of heavy rains that have triggered landslides at several places. However, some pilgrims were allowed to proceed to the cave shrine from Baltal and Pahalgam as weather improved in the area.

Heavy rains have lashed the state since 28 June when the pilgrimage started.

About 2,500 pilgrims stranded at Tikri, Udhampur and Ramban on the Jammu-Srinagar highway since yesterday after leaving Jammu under protection of security forces in a convoy were today being moved towards Kashmir as there was a slight improvement in the weather as the sun appeared in the afternoon.

Arun Manhas, additional district magistrate, Jammu district, told the SNS that about 8000 pilgrims were held up here as the fourth batch of yatris was not allowed to proceed to Srinagar this morning because of bad weather. Proper arrangement for their food and shelter has been made in the Yatri Niwas here.

Police said that several small and major landslides have blocked the highway at many places. Men of the Border Roads Organisation (BRO) were engaged in clearing the highway and other roads. More pilgrims are likely to get stranded here by evening as they would not be allowed to proceed ahead due to bad condition of the highway.

Panic prevailed in Kashmir when the Jhelum crossed the danger mark and other rivulets and streams were also in spate. The authorities sounded a red alert in central Kashmir through which the Jhelum flows. However, the situation eased by afternoon when the water level started receding.

In a jibe at former chief minister Mehbooba Mufti, the vice-president of National Conference Omar Abdullah, tweeted; “What was the PDP-BJP government doing after the devastating floods of 2014? What happened to the dredging of the Jehlum? Why was the carrying capacity of the flood channel not increased? Where did the money go?”

Governor NN Vohra convened an emergency meeting at Raj Bhawan to discuss the flood situation and measures to meet any eventuality. Schools across the valley were shut for a day in view of the inclement weather.

The police announced district-wise emergency telephone numbers for information regarding the flood situation and assistance. The flood level at Ram Munshi Bagh in Srinagar crossed the flood declaration of 18 feet and was flowing at 20.87 feet at 10 am, an official of the Irrigation and Flood Control Department said.

In south Kashmir after the water level crossed the flood declaration level of 21 feet at Sangam in Anantnag district of south Kashmir. Following which the flood alert was sounded.

Vijay Mallya “the fugitive economic offender” summoned by Spl PMLA Court India


This is the first time that action has been initiated under the ordinance recently promulgated by the Modi government to deal with fugitive bank loan defaulters.


A special PMLA court in Mumbai on Saturday summoned beleaguered liquor baron Vijay Mallya to appear before it on August 27 on the Enforcement Directorate’s (ED’s) plea seeking action against him under the fugitive economic offenders ordinance in the over ₹9,000 crore bank fraud case.

Special judge M.S. Azmi, dealing with the Prevention of Money Laundering Act (PMLA) cases, issued the notice to Mr. Mallya after taking cognisance of the second ED charge sheet filed against him recently and a subsequent application by it on June 22 seeking a fugitive economic offenders tag.

This is the first time that action has been initiated under the ordinance recently promulgated by the Modi government to deal with fugitive bank loan defaulters.

The agency has also sought immediate confiscation of assets worth around ₹12,500 crore of Mr. Mallya and other fugitive economic offenders, they said.

If Mr. Mallya does not appear before the court, he risks being declared a fugitive economic offender, besides properties linked to him being confiscated.

The court had earlier issued non-bailable warrants against the beleaguered businessman in the two cases filed by the ED.

‘Poster boy’

Mr. Mallya, his now defunct venture Kingfisher Airlines Limited and others availed loans from various banks during the tenure of the UPA-I government and the outstanding amount, including interest, against him is ₹9,990.07 crore at present, the officials said.

Mr. Mallya had recently said that he has become the “poster boy” of bank default and a lightning rod for public anger.

He said he had written letters to both the Prime Minister and the Finance Minister on April 15, 2016 to explain his side of the story.

“No response was received from either of them,” Mr. Mallya, who is based in London, had said in a statement.

“I have been accused by politicians and the media alike of having stolen and run away with ₹9,000 crores that was loaned to Kingfisher Airlines (KFA). Some of the lending banks have also labelled me a wilful defaulter,” he said.

The ED has furnished evidences in its two charge sheets, filed under the Prevention of Money Laundering Act (PMLA) in the past, to make a case for seeking a fugitive offender tag for Mr. Mallya from the court.

Contesting charges in London

Mr. Mallya is contesting the money laundering charges in London after India initiated extradition proceedings against the liquor baron to bring him back to the country.

Both the ED and the Central Bureau of Investigation (CBI) have filed cases for alleged loan default against him.

The Modi government brought the ordinance as “there have been instances of economic offenders fleeing the jurisdiction of Indian courts, anticipating the commencement, or during the pendency, of criminal proceedings”.

The ordinance has provisions for special courts under the Prevention of Money Laundering Act, 2002 to declare a person as a fugitive economic offender and order immediate confiscation of assets.

“A fugitive economic offender is a person against whom an arrest warrant has been issued in respect of a scheduled offence and who has left India so as to avoid criminal prosecution, or being abroad, refuses to return to India to face criminal prosecution,” the government said.

The cases of frauds, cheque dishonour or loan default of over ₹100 crore would come under the ambit of the ordinance.

The measure offers necessary constitutional safeguards in terms of providing hearing to the person through counsel, allowing him time to file a reply, serving notice of summons to him, whether in India or abroad and appeal before a high court.

‘दिल्ली मांगे अपना हक’ नाम से हस्ताक्षर अभियान चलाएगी आआपा


गोपाल राय ने कहा कि पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं होने की वजह से दिल्ली के मतदाताओं के मत की अहमियत अन्य राज्यों के मतदाताओं से कमतर है


दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग को आम आदमी पार्टी (आप) एक अहम राजनीतिक मुद्दा बनाने के लिए व्यापक अभियान की शुरुआत आगामी एक जुलाई से करेगी. इसके लिए पार्टी ने दिल्ली में एक जुलाई को महासम्मेलन का आयोजन कर तीन से 25 जुलाई तक ‘दिल्ली मांगे अपना हक’ नाम से हस्ताक्षर अभियान चलाने का फैसला किया है.

पार्टी की दिल्ली इकाई के संयोजक गोपाल राय ने शुक्रवार को बताया कि सम्मेलन में दिल्ली के सभी मुहल्लों से हर वर्ग के प्रतिनिधि एकत्र होकर इस मांग को पुरजोर तरीके से उठाएंगे. इसके अलावा जनता को इस मामले की गंभीरता से अवगत कराने के लिए हस्ताक्षर अभियान के जरिए जागरूकता अभियान भी चलाया जाएगा जिससे लोग इस पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं होने के कारण विकास कार्यों में आने वाली बाधाओं से अवगत हो सकें. इसमें लगभग 10 लाख लोगों से हस्ताक्षर करवा कर उनकी मांग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक पहुंचाई जाएगी.

उन्होंने कहा कि दिल्ली के विकास कार्यों में आ रही बाधाओं की एकमात्र वजह पूर्ण राज्य का दर्जा न होना है. राय ने कहा कि पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं होने की वजह से दिल्ली के मतदाताओं के मत की अहमियत अन्य राज्यों के मतदाताओं से कमतर है. दिल्ली के मतदाता अपने वोट से ऐसी सरकार चुनते हैं जिसके पास शासन प्रशासन संबंधी पर्याप्त अधिकार नहीं हैं जबकि अन्य राज्यों के मतदाता पूर्ण अधिकार संपन्न सरकार को चुनते हैं.

 

पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग पर मुंह छुपा रही है कांग्रेस और बीजेपी

राय ने कहा कि कांग्रेस और बीजेपी ने समय-समय पर दिल्ली की जनता को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का वादा किया, लेकिन आज जब दिल्ली की जनता पूर्ण राज्य की मांग कर रही है तो दोनों ही पार्टियां मुंह छुपा रही हैं.

पूर्ण राज्य नहीं होने के कारण दिल्ली के छात्रों के साथ हो रहे भेदभाव का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि 90 प्रतिशत अंक पाने के बावजूद दिल्ली के छात्रों को कॉलेजों में दाखिला नहीं मिल पाता है. कमोबेश यही स्थिति रोजगार के मामले में भी है.

उन्होंने कहा कि दिल्ली विधानसभा के पिछले सत्र में भी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का प्रस्ताव सर्व सम्मति से पारित हुआ था. इसमें नई दिल्ली क्षेत्र को छोड़कर बाकी इलाकों में प्रशासनिक जिम्मेदारी दिल्ली सरकार के क्षेत्राधिकार में होने की बात कही गई है. इस अभियान के जरिए केन्द्र सरकार पर जनता की ओर से दबाव बनाने की हरसंभव कोशिश की जाएगी.