मुख्यमंत्री खेत संरक्षण योजना किसानों के लिए एक वरदान साबित होगी

 

मंडी 15 जुलाई 2018 :- हिमाचल प्रदेश में अधिकतर लोग गांवों में रहते हैं और उनकी आर्थिकी कृषि पर निर्भर है । किसानों की कड़ी मेहनत के बाद उनकी फसलों को जंगली जानवर तथा बेसहारा पशु काफी नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे उनका खेतीबाड़ी के प्रति रूझान घट रहा था । अब किसानों के लिए उम्मीद की किरण साबित हो रही है मुख्यमंत्री खेत संरक्षण योजना, जिसमें 35 करोड़ रूपये का बजट प्रावधान प्रदेष सरकार द्वारा बाड़बंदी के लिए किया गया है ।
मुख्यमंत्री खेत संरक्षण योजना के तहत सौर उर्जा संचालित बाड़बंदी ;सोलर फैंसिंग द्ध का प्रावधान है । इसमें फैंसिग वायर होती हैं और बीच में छोटे-छोटे स्प्रिंग लगे होते हैं । तार सोलर कंटोलिंग सिस्टम से जुड़ी होती है । जब कोई जानवर इसको छूता है अथवा तथा इसके अंदर घुसने की कोषिष करता है तो तारों और स्प्रिंग पर दवाब पड़ने की वजह से करंट लगता है तथा हूटर बज जाता है । करंट का झटका जानलेवा नहीं होता, क्योंकि यह केवल सौर डीसी पावर कम एम्पीयर पर काम करता है । जानवर डर के कारण पीछे हट जाता है तथा पुनः सोलर फैंसिंग के समीप नहीं आता । सोलर फैसिंग जानवरों व मनुष्यों दोनों के लिए सुरक्षित है ।
योजना का लाभ लेने के लिए किसानों को समीप के कृषि कार्यालय में विषयवाद विशेषज्ञ के पास उपलब्ध प्रपत्र को भरकर देना होता है, जिसके साथ जमीन की नकल भी देनी पड़ती है । उसके बाद इसे स्वीकृति के लिए उप निदेषक, कृषि कार्यालय में भेजा जाता है । स्वीकृति प्रदान होने के बाद अधिकृत कम्पनी आकर प्राक्कलन तैयार करके किसान को सूचित करती है । यदि किसान सरकार द्वारा चलाई गयी योजना के तहत कुल लागत का 20 प्रतिषत राषि देने को तैयार हैं तो किसान को इसका डाफट बनाकर कृषि विभाग को देना होता है, उसके बाद कम्पनी किसान की भूमि पर सोलर फैंसिंग लगाने की प्रक्रिया आरंभ कर देती है और शेष राषि प्रदेष सरकार वहन करती है अगर किसान तीन या तीन से अधिक संख्या में सामूहिक तौेर पर बाड़बंदी करवाना चाहें तो उन्हें 15 प्रतिषत राषि जमा करवानी पड़ती है तथा 85 प्रतिषत राषि सरकार द्वारा दी जाती है ।
मण्डी जिला में भी किसानों द्वारा मुख्यमंत्री खेत संरक्षण योजना का लाभ उठाया जा रहा है तथा बेसहारा पषुओं, बंदरों तथा सूअरों की समस्या से निजात पाकर वे अपनी खेती का संरक्षण कर रहे हैं। दं्रग विधानसभा क्षेत्र के तहत पधर उपमंडल में योजना का लाभ उठाकर किसान अपनी खेती का संरक्षण कर रहे हैं । उपमंडल में अभी तक योजना के तहत 35 आवेदन प्राप्त हुए हैं, जिनमें से 29 को स्वीकृति प्रदान हो चुकी है और इनमें से तीन पूर्ण रूप से तैयार हो चुके हैं तथा शेष का कार्य प्रगति पर है ।
पशुओं से फसलों को होने वाले नुकसान को कम करने से फसलों को वास्तविकता में ही मुख्यमंत्री खेत संरक्षण योजना किसानों के लिए एक वरदान साबित होगी तथा किसान का पुनः खेतीबाड़ी की ओर रूझान बढ़ेगा ।

चांदमामा पत्रिका के मालिकों पर रू 812 करोड़ की धोखाधड़ी का आरोप


जियोडेसिक के तीन डायरेक्टर्स किरन प्रकाश कुलकर्णी, प्रशांत मुलेकर, पंकज श्रीवास्तव और फर्म के सीए दिनेश जाजोडिया को गिरफ्तार कर लिया गया है.


बच्चों की मैग्जीन चंदामामा को खरीदने वाली कंपनी जियोडेसिक लिमिटेड और उसके वरिष्ठ अधिकारी मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा, प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग की निगरानी में हैं. चेन्नई आधारित कंपनी पर 812 करोड़ रुपए की लॉन्ड्रिंग का आरोप है.

जियोडेसिक के तीन डायरेक्टर्स किरन प्रकाश कुलकर्णी, प्रशांत मुलेकर, पंकज श्रीवास्तव और फर्म के सीए दिनेश जाजोडिया को गिरफ्तार कर लिया गया है. ईडी के मुताबिक फर्म पर 125 मिलियन डॉलर की लॉन्डरिंग का आरोप है.

बता दें कि जून 2014 में बॉम्बे हाईकोर्ट के आधिकारिक लिक्वीडेटर ने जियोडेसिक लिमिटेड की संपत्तियों पर कब्जा कर लिया था क्योंकि फर्म करीब एक हजार करोड़ रुपए का भुगतान नहीं कर सकी थी.

बी नागी रेड्डी और चक्रपाणि द्वारा स्थापित चंदामामा का पहला अंक जुलाई 1947 में तेलुगू और तमिल में प्रकाशित हुआ था. इसके बाद 1990 में यह 13 भाषाओं में प्रकाशित हुई जिसमें सिंधी, सिन्हली और संस्कृत शामिल है.

मार्च 2007 में आर्थिक घाटे में चल रही चंदामामा में जियोडेसिक लिमिटेड ने बी विश्वनाथ रेड्डी से 10 करोड़ रुपए में 94 फीसदी हिस्सेदारी ले ली, जोकि नागी रेड्डी के पुत्र थे. इसके बाद जियोडेसिक लिमिडेट ने चंदामामा का नवीनीकरण करने और उसका डिजिटलीकरण करने के लिए मेलोन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर राज रेड्डी और उनकी टीम की मदद ली.

बाद में इस मैग्जीन को आईआईटी बॉम्बे के प्रोफेसर जीवी श्रीकुमार द्वारा डिजाइन करके दोबारा लॉन्च किया गया. 2008 में प्रसिद्ध अभिनेता अमिताभ बच्चन ने मुंबई में 60वीं वर्षगांठ के मौके पर चंदामामा का नया संस्करण लॉन्च किया था.

एक देश एक चुनाव के समर्थक हैं रजनीकान्त


उनका कहना है कि इससे राजनीतिक पार्टियों का समय और खर्च दोनों ही बचेगा


एक ओर जहां तमिलनाडु के ज्यादातर राजनीतिक दल केंद्र की ‘एक भारत, एक चुनाव’ की योजना का विरोध कर रहे हैं. तो वहीं दूसरी तरफ हाल ही में राजनीति में एंट्री करने वाले सुपरस्टार रजनीकांत इसका समर्थन कर रहे हैं.

रविवार को मीडिया से बात करते हुए रजनीकांत ने कहा कि एक भारत, एक चुनाव केंद्र सरकार की अच्छी मुहीम है. उनका कहना है कि इससे राजनीतिक पार्टियों का समय और खर्च दोनों ही बचेगा. मीडिया से बातचीत करते समय सुपरस्टार से राजनेता बने रजनीकांत ने अन्य मुद्दों पर भी अपने विचार साझा किए.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक उन्होंने तमिलनाडु के शिक्षा मंत्री की सराहना करते हुए कहा कि वह काफी अच्छा काम कर रहे हैं. रजनीकांत ने कहा कि दूसरे राज्यों की तुलना में तमिलनाडु में शिक्षा का स्तर काफी बेहतर है. हालांकि आगामी लोकसभा चुनाव में उतरने के सवाल पर उन्होंने अभी कुछ कहने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि इस पर फैसला बाद में लिया जाएगा.

रजनीकांत ने हाल ही मे अपनी राजनीतिक पार्टी बनाई है. पार्टी के निर्माण के दौरान ही उन्होंने कहा था कि आगामी चुनाव में उनकी पार्टी और वह चुनाव लड़ सकते हैं. फिलहाल पार्टी की तैयारियों के बारे में उन्होंने अपने इरादे साफ नहीं किए हैं.

देश में फर्जी वैल्यूअर्स के कारण हो रहे बैंक घोटाले!


  • पंजाब-हरियाणा में फैले हैं दर्जनों फर्जी वैल्यूअर्स

  • उत्तरी भारत के वेल्यूअर्स ने केंद्र सरकार की नीतियों पर उठाए सवाल


चंडीगढ़, 15 जुलाई। देशभर में आए दिन हो रहे बैंक घोटालों के लिए कथित तौर पर फर्जी वैल्यूअर्स जिम्मेदार हैं जो अज्ञानता के चलते चल-अचल संपत्ति की वैल्यू तय करके इस तरह के घोटालों को कारण बन रहे हैं। इन फर्जी वैल्यूअर्स के लिए सीधे तौर पर केंद्र सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं। 
यह दावा पैन-इंडिया वैल्यूअर्स फैडरेशन के राष्ट्रीय महासचिव कपिल अरोड़ा ने आज यहां देशभर के करीब एक दर्जन राज्यों से आए हुए प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। रविवार को यहां आयोजित वैल्यूअर्स की बैठक में पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, हिमाचल, गुजरात समेत कई राज्यों के प्रतिनिधि शामिल हुए।
कपिल अरोड़ा व रमनदीप सिंह ने केंद्र सरकार के कारपोरेट अफेयर्स मंत्रालय द्वारा जारी किए गए कंपनी रूल्स पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा कि हजारों प्रतिनिधियों द्वारा भेजी गई आपत्तियों पर विचार-विमर्श के बगैर ही नियमों को जारी कर दिया गया। केंद्र सरकार के यही नियम देश में बैंकिंग और वित्तीय भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं। 
उन्होंने कहा कि इस समय पंजाब में जहां 500, हरियाणा में 850, दिल्ली में 1500, उत्तराखंड में 150 तथा हिमाचल में करीब 60 वैल्यूअर्स सरकारी मान्यता प्राप्त हैं वहीं इन राज्यों में वास्तविक संख्या के मुकाबले 15 फीसदी फर्जी वैल्यूअर्स पैदा भी सक्रिय हो गए हैं। जिनके पास अनुभव नहीं होने के कारण वह चल-अचल संपत्ति की गलत वैल्यू बताकर बैंक घोटालों के लिए बड़ा कारण बन रहे हैं। एनबीसी के नियमों का उलंघन करके कार्य करने वाले इन वैल्यूअर्स के कारण ही बैंकों में एनपीए बढ़ रहा है। क्योंकि एनपीए के बाद ऐसी संपत्तियां फर्जी व अवांछित पाई जाती हैं।
पैन-इंडिया वैल्यूअर्स फैडरेशन की पंजाब इकाई के महासचिव मोहित जैन तथा हरियाणा के इंजीनियर सुनील पुरी ने बताया कि इस समय पंजाब व हरियाणा समेत देश के कई राज्यों में बैंकों द्वारा फर्जी डिग्री वाले वैल्यूअर्स को इंपैनल किया गया है। इसके लिए केंद्र सरकार की नीतियां ही जिम्मेदार हैं। उन्होंने बताया कि यह पूरी तरह से तकनीकी कार्य है जिसे सरकारी पंजीकृत वैल्यूअर सिर्फ ग्रैजुएट इंजीनियर, आर्किटैक्ट और टाऊन प्लान अपने दस के प्रैक्टिकल अनुभव के साथ ही कर सकते हैं। दूसरी तरफ सरकार के नए नियमों के बाद महज 50 घंटे के प्रशिक्षण व महज एक निजी संस्था द्वारा आयोजित परीक्षा देने वाले लोग वैल्यूअर बन रहे हैं। जिस कारण इस क्षेत्र में लगातार गिरावट आ रही है। चंडीगढ़ के कर्नल श्रीराम बख्शी व एसोसिएशन के अध्यक्ष कुलवंत सिंह राय ने कहा कि सरकार ने बगैर सुझाव लिए ही नया कानून पास कर दिया है। केंद्र सरकार को इस नियम में संशोधन करके आम जनता के साथ हो रही लूट को खत्म करना चाहिए। इस अवसर पर पैन-इंडिया वैल्यूअर्स की राजस्थान इकाई के दीपक सूद, बिहार के इंजीनियर संजीव कुमार, दिल्ली एनसीआर के प्रतिनिधि एच पी मित्तल, उत्तराखंड के प्रतिनिधि सौरभ सुमन समेत कई प्रतिनिधियों ने केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए नय नियम के विरूद्ध अपनी आवाज उठाई। 

ताल भी सकता है राज्यसभा के उपसभापति का चुनाव


राज्यसभा के उपसभापति के चुनाव को लेकर सबकी नजर इस पर है कि क्या बीजेपी अपनी सहयोगी पार्टियों को मना पाएगी या उनके सामने झुकेगी वहीं दूसरी तरफ विपक्षी एकता के दावे की भी परीक्षा है


भारतीय संसद के उच्च सदन के उपसभापति की जगह खाली है और फिलहाल उस जगह को भरने की संभावना दिख नहीं रही है. वर्तमान उपसभापति पीजे कुरियन का कार्यकाल 30 जून को समाप्त हो चुका है और उनकीजगह नए उपसभापति की चयन प्रक्रिया संसद के आगामी सत्र के बीच में होनी है. लेकिन समस्या ये है कि इस सदन में सत्तारूढ़ दल बीजेपी के पास बहुमत नहीं है और ना ही विपक्षी दलों के पास सही आंकड़े हैं.

यही वजह है कि उपसभापति के चयन को लेकर मामला फंसा हुआ है. कांग्रेस नेता और राज्यसभा के उपसभापति पीजे कुरियन का कार्यकाल जब समाप्त हुआ तो कांग्रेस ने उन्हें दोबारा मनोनीत नहीं किया है. बीजेपी की कोशिश है कि उच्च सदन का उपसभापति उनकी पार्टी का हो. लेकिन दोनों ही दलों को पास बहुमत नहीं है और यही वजह से वो पार्टी के किसी सदस्य के नाम को आगे नहीं कर पा रहे हैं. आमतौर से उपसभापति के कार्यकाल समाप्त होने के बाद आगामी संसद सत्र में चुनाव करा दिया जाता है. फिलहाल मानसून सत्र 18 जुलाई से शुरू होकर 10 अगस्त तक चलेगा.

भारत में संसद के दो सदन होते हैं, एक लोकसभा और दूसरा राज्यसभा. लोकसभा के सदस्यों को जनता मतदान करके चुनती है जबकि राज्यसभा के सदस्यों को राज्यों के चुने गए विधायक निर्वाचित करते हैं. ऐसे में राष्ट्रीय कानूनों और बिल में राज्यों की भी अप्रत्यक्ष रूप से भागीदारी बन जाती है.

राज्यसभा का उपसभापति

राज्यसभा की अध्यक्षता देश के उपराष्ट्रपति करते हैं. अभी वैंकेय्या नायडू उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के अध्यक्ष हैं. उपराष्ट्रपति का चुनाव लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य मिलकर करते हैं. अध्यक्ष ही सभापति होते हैं और एक उपसभापति भी होते हैं, जिसे राज्यसभा के सदस्य मिलकर चुनते हैं.

सभापति के ना होने पर उपसभापतिराज्यसभा का कार्यभार संभालते हैं. अध्यक्ष या उपसभापति सदन की अध्यक्षता करता है, उसका काम नियमों के हिसाब से सदन को चलाना होता है. किसी भी बिल को पास कराने के लिए वोटिंग हो रही है तो उसकी देखरेख भी ये ही करते हैं. ये किसी भी राजनीतिक पार्टी का पक्ष नहीं ले सकते हैं. सदन में हंगामा होने या किसी भी और कारण से सदन को स्थगित करने का हक अध्यक्ष या उपसभापति को ही होता है. किसी सदस्य के इस्तीफा को मंज़ूर या नामंज़ूर करने का अधिकार अध्यक्ष का उपसभापति को ही होता है. नामंज़ूर करने की स्थिति में वो सदस्य सदन से इस्तीफा नहीं दे सकता है.

राज्यसभा में संख्या का गणित

राज्यसभा में 67 सांसदों के साथ बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है लेकिन बदले हालात में तेलगु देशम पार्टी का उससे नाता तोड़ने और शिव सेना के साथ रिश्ते खराब होने के बाद बीजेपी के लिए उपसभापति पद के चुनाव का सामना कर पाना आसान नहीं रह गया.

कांग्रेस पार्टी की सदस्य संख्या 51 रह गई है. लेकिन विपक्षी एकता के बदले हालात में तृणमूल कांग्रेस के 13, समाजवादी पार्टी के 6, टीडीपी 6, डीएमके के 4, बीएसपी के 4, एनसीपी के 4 सीपीएम के 4, सीपीआई के 1 और अन्य गैर बीजेपी पार्टियों की सदस्य संख्या को मिला दें तो वे बीजेपी पर भारी पड़ रहे हैं. हालांकि 13 सदस्यों वाली एआईएडीएमके बीजेपी के साथ जाएगी. ऐसे आसार हैं लेकिन 9 सदस्यों वाला बीजू जनतादल और शिव सेना समेत कुछ और दल अगर तटस्थता बनाए रखते हैं तो इससे विपक्षी पलड़ा भारी होना तय है.

अभी तक कांग्रेस के उम्मीदवार ही राज्यसभा के उपसभापति बनते थे. सिर्फ एक बार ये पद विपक्षी दल के पास गया था. अभी पिछले 41 सालों से कांग्रेस के पास डिप्टी स्पीकर का पद है और पिछले 66 सालों में से 58 सालों तक यह पद उसी के पास रहा है.

लेकिन बीजेपी की कोशिश है कि इस बार उपसभापति का पद उनकी पार्टी के पास जाए. बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी भी इस पद पर बीजेपी का उम्मीदवार का चयन चाहते हैं. उपसभापति के चुनाव के मुद्दे पर दोनों पार्टियों में बैठकों का दौर जारी है. हाल फिलहाल राज्यसभा में सदन के नेता अरुण जेटली के घर पर इस मुद्दे को लेकर बैठक भी बुलाई गई, जिसमें पार्टी अध्यक्ष अमित शाह सहित वरिष्ठ नेताओं ने भी शिरकत की.

इसी बैठक में सुझाव आया कि एनडीए के किसी घटक दल से उपसभापति का नाम आगे किया जाए और उसपर आम सहमति बनाने की कोशिश की जाए. हालांकि शिरोमणि अकाली दल के सदस्य नरेश गुजराल के नाम पर चर्चा की गई. मगर उनके नाम पर भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के बीच सहमति नहीं बन पाई है.

वहीं कांग्रेस की तरफ से केरल से ही पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पीसी चाको का नाम उछला है. कांग्रेस का कहना है कि पीसी चाको से ज्यादा अनुभवी उम्मीदवार विपक्ष में नहीं हैं. चाको पहले भी राज्यसभा पैनल के सदस्य रहे हैं. मनमोहन सरकार के कार्यकाल में वे टूजी घोटाले की जांच के लिए बनी संसदीय समिति के चेयरमैन रहे चुके हैं. इस बात के संकेत हैं कि राहुल गांधी उन्हें उपसभापति पद का दावेदार बनाने के लिए उन्हें केरल से पार्टी की ओर से राज्यसभा उम्मीदवार घोषित कर दें.

21 जून को केरल की तीन राज्यसभा पर चुनाव होना है इनमें पीजे कुरियन भी शामिल हैं जो सदस्यता से रिटायर हो जाएंगे. 140 सदस्यों वाली केरल विधानसभा में केरल में मौजूदा समीकरणों के हिसाब से 22 सदस्यों वाली विपक्षी कांग्रेस पार्टी आईयूएमएल, केरल कांग्रेस (मणि) और केरल कांग्रेस (जे) के साथ मिलकर एक ही सदस्य को राज्यसभा में भेज सकती है.

सूत्रों का कहना है कि अगर एनडीए संख्याबल जुटाने में विफल रहता है, तो चुनाव को अगले शीतकालीन सत्र के लिए टाला जाए जा सकता है. हालांकि विपक्ष सत्र की शुरूआत में ही नए उपसभापति के चुनाव की मांग उठा सकता है.

चुनाव को अगले सत्र के लिए टालने के पीछे बीजेपी की दलील है कि संविधान में भी नए उपसभापति के चुनाव को लेकर कोई तय समय सीमा नहीं है. यह उपराष्ट्रपति यानी सभापति के विवेक पर निर्भर करता है. सूत्रों का कहना है कि यूपीए दौर में डा. रहमान खान के अवकाश प्राप्त करने के चार महीने बाद चुनाव हुआ था. खान दो अप्रैल को रिटायर हुए थे, लेकिन चुनाव के लिए मानसून सत्र का इंतजार किया गया था. उस समय 8 अगस्त को सत्र बुलाया गया था और उपसभापति का चुनाव 21 अगस्त को हुआ था.

लोकसभा चुनाव अगले साल होने वाले हैं. ऐसे में हर संसद और राज्य के हर चुनाव को सरकार की कार्यशैली और कूटनीति की परीक्षा के रूप में देखा जाता है. एक तरफ सबकी नजर इस पर है कि क्या बीजेपी अपनी सहयोगी पार्टियों को मना पाएगी या उनके सामने झुकेगी वहीं दूसरी तरफ विपक्षी एकता के दावे की भी परीक्षा है. क्या कांग्रेस अपने सहयोगी दलों के लिए ये पद छोड़ देगी और सालों से चली आ रही परंपरा को तोड़ देगी. मामला यहीं पर अटका है. राज्यसभा में सीटों का गणित किसी के भी पक्ष में नहीं है इसलिए पेंच फंसा हुआ है.

लोकतन्त्र का मज़ाक बनाने वाले कुमारस्वामी को गठबंधन जहर लगने लगा


कुमारस्वामी ने कहा, आप सभी यहां मेरे लिए खड़े हैं, आप सभी खुश हैं कि आपका एक भाई राज्य का मुख्यमंत्री बन गया है लेकिन मैं इससे बिल्कुल भी खुश नहीं हूं. गठबंधन वाली सरकार का दर्द पता है


कर्नाटक के मुख्यमंत्री और जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी बेंगलुरु में एक सभा के दौरान मंच पर सबके सामेने रो पड़े. उनकी बातों में गठबंधन सरकार का दर्द साफ झलका.

गठबंधन सरकार चलाने का दबाव बयां करते हुए सीएम कुमारस्वामी ने कहा, ‘आप सभी यहां मेरे लिए खड़े हैं, आप सभी खुश हैं कि आपका एक भाई राज्य का मुख्यमंत्री बन गया है लेकिन मैं इससे बिल्कुल भी खुश नहीं हूं. गठबंधन वाली सरकार का दर्द पता है. मैं विश्वकांत बन गया हूं और इस सरकार के दर्द को भी निगल लिया है.’

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि मैं चाहूं तो अभी इसी वक्त इस्तीफा दे सकता हूं.

उधर, प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री जी. परमेश्वर ने कुमारस्वामी के इस बयान पर काफी सधी टिपप्णी की और कहा, ‘वे (कुमारस्वामी) ऐसा कैसे कह सकते हैं? उन्हें जरूर खुश होना चाहिए, किसी भी मुख्यमंत्री को खुश होना चाहिए क्योंकि इसी में हमारी भी खुशी है.’

इस वीडियो में कोडागू के एक लड़के को यह कहते सुना जा रहा है कि इस जिले में भारी बारिश के बाद सड़कें बह गई हैं लेकिन मुख्यमंत्री को इसकी फिक्र नहीं है. जिले के तटीय इलाकों में मछुआरे भी मुख्यमंत्री से नाराज हैं क्योंकि उनका कर्ज माफ नहीं हुआ है.

कुमारस्वामी ने अपने भाषण में कहा, कर्ज माफ कराने के लिए पिछले एक महीने से मैं अधिकारियों को किस कदर मना रहा हूं, इस बारे में कोई नहीं जानता. अब वे चाहते हैं कि अन्ना भाग्य स्कीम के तहत 5 किलो चावल के बदले 7 किलो चावल बांटे जाएं. अब आप ही बताएं कि इसके लिए मैं 2500 करोड़ रुपए कहां से लाऊं? टैक्स लगाने को लेकर भी मेरी आलोचना हो रही है. इन सबके बावजूद मीडिया कह रहा है कि मेरी कर्ज माफी योजना में कोई साफगोई नहीं है. अगर मैं चाहूं तो मात्र दो घंटे में मुख्यमंत्री पद छोड़ सकता हूं.

मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने आगे कहा, चुनाव से पहले मैं जहां-जहां गया, वहां लोग तो काफी जुटे लेकिन वोट मुझे नहीं दिया. मुझे तो भगवान ने सीएम बनाया है, इसलिए वे ही तय करेंगे कि मुझे कितने दिन इस कुर्सी पर रहना है.

यासीन मालिक ओर सलहूद्दीन, महबूबा की दरकती राजनैतिक ज़मीन के आखिरी सहारे


आज यासीन मलिक अलगाववादी नेता है जो कि नजरबंद है जबकि सैयद सलाहुद्दीन मोस्ट वांटेड आतंकी है. महबूबा मुफ्ती इन दोनों का नाम लेकर घाटी की अवाम के सामने विक्टिम कार्ड खेलना चाहती हैं


जम्मू-कश्मीर में चार साल पहले सियासी गठबंधन के रूप में उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव का मिलन हुआ था. लेकिन रिश्तों की जमी बर्फ ज्यादा नहीं पिघल सकी और अचानक गठबंधन का ग्लेशियर ही टूट गया. बीजेपी के राष्ट्रवाद के नाम पर पीडीपी से समर्थन वापस लेने के बाद अब महबूबा मुफ्ती ने कश्मीर के अलगाववादियों के प्रति हमदर्दी के आखिरी पत्ते भी खोल दिये. महबूबा मुफ्ती ने मोदी सरकार को धमकी दी है कि अगर उनकी पार्टी पीडीपी को तोड़ने की कोशिश हुई तो घाटी में 1987 की तरह नए सैयद सलाहुद्दीन और यासीन मलिक पैदा हो जाएंगे.

सवाल उठता है कि महबूबा की जुबान से सियासी दर्द के बहाने यासीन मलिक और सैयद सलाहुद्दीन के फसाने क्यों निकले? क्या महबूबा अब बंदूक के खौफ से भारत के लोकतंत्र को डराना चाहती हैं?

महबूबा मुफ्ती ने वो दो नाम लिये जो साल 1987 के चुनाव के बाद घाटी की फिज़ा में दहशत बन गए थे. घाटी में 90 के दशक की दहशत के दौर को महबूबा मुफ्ती अब दोबारा याद दिलाकर दोहराने की धमकी दे रही हैं. लेकिन वो ये भूल रही हैं कि उनकी सियासत के सफर की उम्र से ज्यादा कश्मीर को लेकर देश की सरकारों का अनुभव है. बंदूकों की दहशत से न कभी देश की सेना डरी और न सरकारें झुकी हैं.

दरअसल अपनी पार्टी पर कमजोर हो रही पकड़ के लिये महबूबा केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहरा कर खुद का सियासी भविष्य सुरक्षित कर रही हैं. लेकिन सवाल उठता है कि वो सियासी बदले के लिये कश्मीर को कैसे दांव पर लगा सकती हैं? पीडीपी के अंदरूनी मामलों को लेकर महबूबा कश्मीर के दहशतगर्दों के नाम की धमकी क्यों दे रही हैं?

देश की कौन सी राजनीतिक पार्टी ऐसी नहीं रही जो कि कभी टूटी या फिर उसे छोड़कर लोग गए न हों. खुद महबूबा मुफ्ती के वालिद मुफ्ती मोहम्मद सईद ने भी कांग्रेस की निष्ठा भुलाकर जनता दल का दामन थामा था. बाद में उन्होंने भी अपनी अलग पार्टी पीडीपी का गठन किया.

पार्टियों की विचारधारा मजबूत हो तो टूट-फूट से पार्टी का वजूद खत्म नहीं होता है. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के दौर में भी कांग्रेस टूटी थी. लेकिन उसके बावजूद उन्होंने चुनाव में जोरदार जीत हासिल की. इसी तरह शरद पवार, नारायण दत्त तिवारी, अर्जुन सिंह जैसे दिग्गज नेता भी कांग्रेस छोड़कर गए लेकिन उसके बावजूद कांग्रेस की सेहत पर असर नहीं पड़ा. उसने साल 2003 का लोकसभा चुनाव जीतकर सत्ता में वापसी की. महबूबा मुफ्ती शायद ये सोच कर सहम उठी हैं कि उनकी पार्टी के बागी विधायकों के टूटने से पार्टी ही खत्म हो जाएगी. ऐसी सोच उनके सियासी अनुभव की अपरिपक्वता को ही दर्शाता है.

आज अगर पीडीपी के भीतर महबूबा विरोधी सुर उठ रहे हैं तो इसकी जिम्मेदार वो खुद हैं. विरासत में मिली पार्टी की कमान थामने में उनकी प्रशासनिक कमजोरी इसके लिये जिम्मेदार है. वो इसका ठीकरा केंद्र पर नहीं फोड़ सकतीं.

पीडीपी नेता इमरान अंसारी अगर बागी होकर अलग मोर्चे का एलान कर रहे हैं तो ये पार्टी का अंदरूनी मामला है. अलगाववादी नेता सज्जाद लोन अगर पीडीपी के बागी नेताओं पर नजर गड़ाए हुए हैं तो महबूबा मुफ्ती को अपने नेताओं में उनके प्रति भरोसा जगाना चाहिये. लेकिन राजनीति के दांवपेंच में पिछड़ने पर उनके बयान उनकी हताशा और अलगाववादियों के प्रति हमदर्दी का सबूत ही बनते जा रहे हैं.

अलगाववादियों के प्रति हमदर्दी की वजह से महबूबा मुफ्ती की देश में नकारात्मक छवि ही बनती जा रही है. कभी वो कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान से बातचीत करने का विवादास्पद बयान देती हैं तो कभी वो पत्थरबाजों के खिलाफ सेना की कार्रवाई पर सेना के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा देती हैं.

महबूबा मुफ्ती ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत साल 1987 के जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव का जिक्र किया. ये वो चुनाव था जो विवादों से घिरा था. इस चुनाव को लेकर केंद्र सरकार पर नतीजों को प्रभावित करने और सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग के आरोप लगे थे. उस वक्त जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस का गठबंधन था. नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 40 सीटें तो कांग्रेस ने 26 सीटें जीती थीं. जबकि मुख्य विपक्षी दल रहे मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट को केवल 4 सीटें मिली. इसी चुनाव में सैयद सलाहुद्दीन चुनाव हार गया था. चुनाव हारने के बाद जहां सैयद सलाहुद्दीन ने आतंक की राह पकड़ी तो यासीन मलिक जैसे युवाओं ने हथियार थाम कर घाटी में कहर बरपा दिया.

ऐसे में सवाल उठता है कि अपने सियासी फायदे के लिये क्या महबूबा भी अब कश्मीरी युवकों को बहका कर यासीन मलिक और सैयद सलाहुद्दीन बनाना चाहती हैं?

आज यासीन मलिक अलगाववादी नेता है जो कि नजरबंद है जबकि सैयद सलाहुद्दीन मोस्ट वांटेड आतंकी है. महबूबा मुफ्ती इन दोनों का नाम लेकर घाटी की अवाम के सामने विक्टिम कार्ड खेलना चाहती हैं. लेकिन वो ये भूल रही हैं कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में बंदूक पर हमेशा बैलेट भारी पड़ा है. पिछली बार के विधानसभा चुनावों में रिकॉर्डतोड़ वोटिंग प्रतिशत इसकी बानगी है. हुर्रियत कान्फ्रेंस जैसे अलगाववादी धड़ों के चुनाव बाहिष्कार के बावजूद जम्मू-कश्मीर में रिकॉर्ड वोटिंग हुई. ये साबित करता है कि घाटी की अवाम खुद को हिंदुस्तान की लोकतांत्रिक व्यवस्था का न सिर्फ हिस्सा मानती है बल्कि भरोसा भी जताती है.

पीडीपी नेताओं ने बीजेपी के साथ सरकार बनाने की बात की


पेड्डार ने कहा, जब हमारे दिवंगत नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद बीजेपी के साथ सरकार बना सकते हैं, तो हम क्यों नहीं बना सकते


 

पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के विधायक अब्दुल मजीद पेड्डार ने शनिवार को साफ कर दिया कि बीजेपी के साथ गठजोड़ कर जम्मू- कश्मीर में नई सरकार बन सकती है. पेड्डार ने यह भी कहा कि पीडीपी के कुल 28 में से 18 विधायक बीजेपी से हाथ मिलाने की फिराक में हैं.

पेड्डार ने  कहा, जब हमारे दिवंगत नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद बीजेपी के साथ सरकार बना सकते हैं, तो हम क्यों नहीं बना सकते. पेड्डार महबूबा मुफ्ती के इस बात का जवाब दे रहे थे जिसमें उन्होंने कहा था कि पीडीपी विधायक तोड़े गए तो इसके गंभीर नतीजे होंगे.

पेड्डार ने कहा, जम्मू-कश्मीर की अवाम ने हमें छह साल के लिए चुना लेकिन दुर्भाग्य है कि तीन साल गुजरने के बाद भी कुछ नहीं हुआ. अब अगले तीन साल के लिए हम जनता को अच्छा प्रशासन देना चाहते हैं. हमारी कोशिश एक ऐसी सरकार बनाने की है जो लोगों को परेशानियों से उबार सके.

पेड्डार ने ट्रिब्यून से कहा, संख्या के बारे में बात न करें. उन्हें 44 विधायक चाहिए, हमारे पास 51 हैं. हमारे साथ पूरी संख्या है. इंशा अल्लाह, हम सरकार बनाएंगे.

दूसरी ओर, महबूबा मुफ्ती के हालिया बयान कि पार्टी को तोड़ा गया तो और ज्यादा उग्रवादी पैदा होंगे, के खिलाफ उन्हीं की पार्टी के पांच नेता लामबंद हो गए हैं. इनमें तीन विधायक हैं और दो विधान परिषद के सदस्य हैं.

इन नेताओं का आरोप है कि वे काफी पहले से पार्टी अध्यक्ष और उनकी वंशवाद की राजनीति के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं. इन नेताओं में जावेद हुसैन बेग, इमरान अंसारी, अब्दुल मजीद पेड्डार, यासिर रेशी और सैफुद्दीन भट्ट का नाम शामिल है. शनिवार को भी इन नेताओं ने पार्टी अध्यक्ष के खिलाफ अपनी बात रखी.

राम माधव ने भी महबूबा के बयान पर कहा कि महबूबा अपनी पार्टी के आन्तरिक मसलों को खत्म करने की बजाय दिल्ली पर आरोप मढ़ रही हैं और आतंक के नाम पर धमकी दे रही हैं. बीजेपी किसी पार्टी को तोड़ने की कोशिश नहीं कर रही है.

महबूबा के सलाउद्दीन वाले बयान पर माधव ने कहा कि केंद्र सरकार और सुरक्षा बलों के पास इतनी ताकत है कि वह घाटी के सभी आतंकियों और उन लोगों को बेअसर कर सकते हैं जो महबूबा के बयान के बाद आतंकी बनने की राह में हैं.

महबूबा ने कहा, अगर दिल्ली (केंद्र सरकार) ने 1987 की तरह यहां की अवाम के वोट पर डाका डाला, अगर इस किस्म की तोड़-फोड़ की कोशिश की, तो इससे और सलाहुद्दीन और यासिन मलिक पैदा होंगे. उन्होंने आगे कहा कि अगर दिल्लीवालों ने पीडीपी को तोड़ने का प्रयास किया इसका नतीजा बहुत ज्यादा खतरनाक होगा. आपको बता दें कि सलाहुद्दीन हिजबुल मुजाहिद्दीन का सरगना है. जब कि यासिन मलिक अलगाववादी नेता है.

पीडीपी चीफ के इस बयान पर कांग्रेस ने कहा है कि महबूबा मुफ्ती की कथनी और करनी में अंतर नहीं होना चाहिए. जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि राज्य में अनिश्चितता का माहौल है. वहीं बीजेपी जम्मू-कश्मीर के अध्यक्ष रवींद्र रैना ने कहा है कि बीजेपी तोड़ फोड़ की राजनीति नहीं कर रही है और न ही पीडीपी में फूट डाल रही है.

अगली लोकसभा के गठन के बाद संसद के नए भवन के निर्माण के प्रस्ताव पर अमल हो सकेगा: सुमित्रा महाजन


संसद भवन के लिए स्थान भी सुझाए गए हैं. इनमें से एक वर्तमान संसद परिसर में ही प्लॉट नंबर 118 है


सुमित्रा महाजन ने कहा, ‘संसद के नए भवन के निर्माण के विषय पर शहरी विकास मंत्रालय के साथ दो बैठक हुई हैं. हमने नए भवन के लिए कुछ वैकल्पिक स्थलों के बारे में भी सुझाव दिया है.’

उन्होंने कहा कि अब तो चुनावी साल में प्रवेश कर गए हैं. लोकसभा चुनाव में ज्यादा समय नहीं बचा है. ‘उम्मीद करते हैं कि अगली लोकसभा के गठन के बाद संसद के नए भवन के निर्माण के प्रस्ताव पर अमल हो सकेगा.’

लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि आवश्यकताओं के अनुरूप वर्तमान संसद भवन छोटा पड़ रहा है. सदस्यों ने भी कहा है कि उन्हें बैठने में दिक्कत होती है, लेकिन इस भवन में सीटों की संख्या नहीं बढ़ा सकते. उन्होंने कहा कि अगली जनगणना के बाद अगर सदस्यों की संख्या बढ़ाने का विषय आया, तो इस पर अमल में समस्या आएगी.

सुमित्रा महाजन ने कहा कि संसद भवन 100 साल पुराना हो चुका है, इसकी मरम्मत कराने में भी डर लगता है. हालांकि रखरखाव और मरम्मत के काफी कार्य हुए हैं. अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने नौ दिसंबर 2015 को तत्कालीन शहरी विकास मंत्री एम वैंकेया नायडू को पत्र लिखा था.

उन्होंने लिखा था कि वर्तमान भवन ग्रेड 1 हेरिटेज बिल्डिंग है और यह पुराना हो रहा है. मरम्मत में बाधाएं आने के साथ ही स्टाफ के काम में भी दिक्कत आने लगी है. इसके चलते नए भवन की जरूरत महसूस की जा रही है .

संसद भवन के लिए स्थान भी सुझाए गए हैं. इनमें से एक वर्तमान संसद परिसर में ही प्लॉट नंबर 118 है. हालांकि यहां नए भवन के निर्माण पर कुछ सुविधाओं और सेवाओं को स्थानांतरित करना पड़ेगा. दूसरा स्थान राजपथ के दूसरी ओर है.

संसद भवन का निर्माण साल 1921 में शुरू हुआ था. निर्माण पूरा होने के बाद यहां वर्ष 1927 से कामकाज शुरू हुआ. उस समय सुरक्षाकर्मियों, कर्मचारियों और मीडियाकर्मियों की संख्या और संसदीय गतिविधियां सीमित थीं, लेकिन समय के साथ इनमें इजाफा हुआ है.

बॉम्बे हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज अभय एम थिप्से के कांग्रेस में शामिल


 

महाराष्ट्र के एक रिटायर्ड जज के कांग्रेस में शामिल होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जजों के उस पैनल से हटा दिया जिसे महाराष्ट्र सरकार और स्टेट को-ऑपरेटिव बैंक के बीच के विवाद को सुलझाने की जिम्मेदारी दी गई थी.

प्रदेश सरकार द्वारा बॉम्बे हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज अभय एम थिप्से के कांग्रेस में शामिल होने की जानकारी मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला लिया है.

थिप्से को महाराष्ट्र सरकार और स्टेट को-ऑपरेटिव बैंक के बीच राजकोषीय विवाद की मध्यस्थता करने के लिए मनोनीत किया गया था लेकिन बीते जून को देश में ‘बढ़ते फासीवाद और असहिष्णुता’ से लड़ने के लिए उन्होंने कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर ली. यहां तक की थिप्से के स्वागत में राहुल गांधी ने एक फॉर्मल पार्टी का आयोजन भी करवाया था.

अब जब इस बात की खबर जजों के बेंच को लगी तो उन्होंने स्टेट कॉउंसल से कई सवाल जवाब किए और उस लेटर की मांग की जिसमें थिप्से के कांग्रेस ज्वाइन करने की बात लिखी हो. जजों को वो लेटर हैंडओवर की गई जिसमें लिखा था कि जस्टिस अभय एम थिप्से ने कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर ली है. ऐसे में उनकी जगह हम पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस एस.जे.वसीफदार को बेंच में शामिल कर रहे हैं. लेटर मिलने के बाद जजों ने मुस्कुराते हुए इसे बहुत विरले ही होने वाली घटना करार दिया.