16 साल तक सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव रहे अहमद पटेल राहुल गांधी की टीम में शामिल नहीं थे, कांग्रेस में उनके पास कोई पद नहीं था लेकिन राहुल ने पटेल को कोषाध्यक्ष बना कर बड़ी और महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी है
कांग्रेस में अहमद पटेल टीम राहुल में शामिल हो गए हैं. अहमद पटेल ऐसे नेता बन गए हैं जो इंदिरा गांधी के बाद राजीव गांधी-सोनिया गांधी के साथ काम कर चुके है और अब राहुल गांधी के साथ काम करने जा रहें हैं. कांग्रेस अध्यक्ष ने अहमद पटेल को खजांची (कोषाध्यक्ष) का महत्वपूर्ण पद दिया है. कांग्रेस की परंपरा के मुताबिक कोषाध्यक्ष का पद नंबर दो की हैसियत रखता है. ऐसे में अहमद पटेल अाधिकारिक तौर पर पार्टी में राहुल गांधी के बाद नंबर टू हो गए हैं. हालांकि अभी कल तक उनके भविष्य को लेकर संशय बना हुआ था.
टीम राहुल में अहमद पटेल अभी बिना पद के चल रहे थे. कांग्रेस की वर्किंग कमेटी में जरूर उनको राहुल गांधी ने मनोनीत किया था. लेकिन पार्टी में कोई काम उनके जिम्मे नहीं था. पटेल एक जमाने में सोनिया गांधी के सबसे विश्सनीय सहयोगियों में थे. अहमद पटेल की जबान को सोनिया गांधी की बात समझी जाती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है. राहुल गांधी की टीम सब फैसले खुद ही कर रही है. लेकिन अहमद पटेल की इस टीम में शामिल होना उनकी उपयोगिता को साबित करता है.
जन्मदिन पर अहमद पटेल को मिला यह खास तोहफा
21 अगस्त को अहमद पटेल का जन्मदिन भी है. इस दिन राहुल गांधी ने नियुक्ति पत्र जारी किया है. उनके समर्थक कह रहे हैं कि राहुल गांधी की तरफ से तोहफा है. अहमद पटेल के मायूस समर्थक खुश नजर आ रहें हैं. लेकिन पहले की तरह अहमद पटेल ने लाइम लाइट से दूरी बना रखी है. अहमद पटेल को साइलेंट ऑपरेटर के तौर पर देखा जाता है. यही उनकी खूबी है. उनको पता है कि किस से क्या काम लेना है. कांग्रेस के भीतर उनके दोस्त भी है, तो विरोधी भी है. लेकिन अब हालात बदल गए है. कांग्रेस के पास फंड की कमी भी है. पार्टी को एक साल से कम वक्त में आम चुनाव का सामना करना है. इसलिए अहमद पार्टी के लिए बेहतरीन फंड मैनेजर साबित हो सकते हैं.
कांग्रेस को फंड की जरूरत
अहमद पटेल भले ही आधिकारिक तौर पर कोषाध्यक्ष ना रहें हों लेकिन पार्टी का हिसाब किताब उनके जिम्मे ही थी. सप्ताह में एक से दो बार वो निवर्तमान कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा के साथ बैठकर पार्टी के आर्थिक हालात की समीक्षा करते थे. चुनाव के दौरान ऐसी बैठको का दौर बढ़ जाता था. लेकिन अब ये जिम्मेदारी सीधे उनके कंधों पर है. पार्टी के लिए नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी के होते हुए पैसा जुटाना आसान काम नहीं है. कॉरपोरेट घराने कांग्रेस से दूरी बनाए हुए हैं, खासकर बड़े घराने अभी कांग्रेस के पाले में नहीं है. बीजेपी अध्यक्ष की पैनी निगाह से बचकर ये काम करना कठिन है. लेकिन यूपीए के दस साल में सोनिया गांधी का दरवाजा अहमद के जरिए ही खुलता था. इसलिए पूराने रिश्ते की बदौलत पटेल कांग्रेस का काम आसान कर सकते हैं.
पटेल पर कोटरी पॉलिटिक्स करने का आरोप
सोनिया गांधी के कार्यकाल में अहमद पटेल पर कोटरी पॉलिटिक्स को बढ़ावा देने का आरोप है.उनके विरोधी कहते है कि जमीनी नेताओं को पार्टी के भीतर हाशिए पर ढधकेलने का काम सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव ने बखूबी अंजाम दिया है. जिसके अहमद पटेल के साथ रिश्ते खराब हुए उसके नंबर पार्टी के भीतर कम हो गए. इसके अलावा अपने लोगों को प्रमोट करने का आरोप भी विरोधी उनके ऊपर लगाते हैं. मसलन भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की मनमानी के कारण चौधरी विरेंद्र सिंह और राव इन्द्रजीत समेत कई नेताओं ने पार्टी छोड़ दी. लेकिन हुड्डा का कुछ नहीं बिगड़ सका, क्योंकि उन्हें अहमद का आशीर्वाद प्राप्त था.
महाराष्ट्र में जमीनी नेताओं को दरकिनार करके पृथ्वीराज चह्वाण को मुख्यमंत्री बना दिया गया. इसके अलावा जगन मोहन रेड्डी को पार्टी छोड़ने की वजह भी उन्हीं को बताया गया है. ये सब बानगी भर है. लेकिन अहमद के विरोधी पार्टी के भीतर हाशिए पर जाते रहे, क्योंकि अहमद पटेल की ताकत लगातार बढ़ती रही.
यूपीए के दस साल में सबसे ताकतवर
सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के बाद अगर किसी की चलती थी तो वो अहमद पटेल की चलती थी. उनसे मिलने के लिए कई दिन कैबिनेट मंत्रियों को इंतजार करना पड़ता था. कांग्रेस के मुख्यमंत्री उनसे मिलकर ही अपने आप को धन्य महसूस करते थे. यूपीए सरकार के एक मंत्री बता रहे थे कि अहमद पटेल से मिलने का समय मांगा तो कहा गया कि तीन बजे आ जाओ लेकिन जब वो तीन बजे पहुंचे तो पता चला की सुबह के तीन बजे मिलने का वक्त है. इस तरह से 2007 में अमरोहा में राहुल गांधी के रोड शो के दौरान भीड़ इकट्ठा करने की जिम्मेदारी ऐसे सांसद पर थी, जो कांग्रेस का नहीं था. जाहिर है कि अहमद पटेल की बात टालने की हिम्मत कम ही लोगों में थी.
सरकार चलाने में अहम भूमिका
यूपीए के दस साल के दौरान सहयोगी दलों के साथ रिश्ते मजबूत रखने का काम बखूबी अंजाम दिया है. 2008 में लेफ्ट के समर्थन वापसी के बाद मनमोहन सिंह सरकार को बचाने में अहम किरदार अहमद का ही था. समाजवादी पार्टी को विरोधी से समर्थक बनाने में उनको ज्यादा वक्त नहीं लगा. जिससे सरकार बच गई.
ये बात दूसरी है कि कैश फॉर वोट का इल्जाम लगा लेकिन अहमद पटेल उससे बेदाग निकले. इस घूसकांड का कोई नतीजा तो नहीं निकला लेकिन अमर सिंह और सुधींद्र कुलकर्णी को जेल जरूर जाना पड़ा.
हालांकि उस वक्त कांग्रेस के साथ खड़े समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता अमर सिंह अब बीजेपी से रिश्ते बनाने में मशगूल हैं. वहीं बीजेपी के साथ रहे लाल कृष्ण आडवाणी के सहयोगी सुधींद्र कुलकर्णी राहुल गांधी के सबसे बड़े समर्थक के तौर पर दिखाई दे रहें हैं.
गठबंधन के लिए उपयोगी
अहमद पटेल की हर पार्टी में दोस्ती है. बीजेपी में भी उनके दोस्तों की कमी नहीं है. खासकर अमित शाह से पहले वाली बीजेपी में उनके चाहने वालों की कमी नहीं हैं, क्योंकि अहमद पटेल को दोस्ती करना और निभाना भी आता है. क्षेत्रीय दलों के सभी कद्दावर नेता उनके फोन कॉल पर उपलब्ध हैं. समाजवादी पार्टी और बीएसपी दोनों यूपीए की समर्थक ऐसे नहीं थी. ममता बनर्जी से रिश्ते अच्छे हैं. चंद्रबाबू नायडू जब कांग्रेस की राजनीति करते थे तो अहमद पटेल उनके शुभचिंतक में से थे.
कर्नाटक की सरकार बनाने में भी पटेल ने अहम भूमिका निभाई है. एचडी देवगौड़ा को राजी करने का काम उन्होंने ही अंजाम दिया था. हालांकि मेघालय में सरकार बनाने में नाकाम रहे थे. यही हाल मणिपुर में भी हुआ. लेकिन इन सब के बाद भी कांग्रेस में उनके बराबर का राजनीतिक प्रबंधक कोई नहीं है. ये बात उन्होंने पिछले साल राज्यसभा के चुनाव में साबित कर दी थी. जब वो अमित शाह की राजनीतिक व्यूह रचना तोड़कर चुनाव जीतने में कामयाब हो गए थे.
गांधी परिवार से करीबी
अहमद पटेल को राजनीति में आगे बढ़ाने का काम गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री माधव सिंह सोलंकी ने किया था. जिसके बाद राजीव गांधी के करीबी हो गए. राजीव गांधी नें उनको 1985 में पार्टी का महासचिव बनाया, फिर 1986 में गुजरात जैसे महत्वपूर्ण राज्य का अध्यक्ष बना दिया गया. सीताराम केसरी की अध्यक्षता में 1996 -2000 तक पटेल कोषाध्यक्ष रहे थे. सीताराम केसरी का साथ छोड़कर सोनिया गांधी के साथ आए, फिर 2001 से 2017 तक उनके राजनीतिक सचिव की हैसियत से काम किया और अब राहुल गांधी के साथ पटेल की पारी का आगाज हो रहा है.