लद्दाख, जम्मू और कश्मीर का परिसीमन कब और क्यों?

Map of Ladakh, J&K

दूसरे कार्यकाल में मोदी सरकार का सबसे ज़्यादा Focus देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा पर है. नए गृहमंत्री अमित शाह पिछले 4 दिनों में जम्मू और कश्मीर पर तीन बैठकें कर चुके हैं. आज भी अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर की स्थिति पर एक बैठक की और सूत्रों से हमें ये जानकारी मिल रही है कि सरकार, जम्मू और कश्मीर में परिसीमन किए जाने पर विचार कर रही है.

परिसीमन क्या होता है? ये हम आपको आगे विस्तार से बताएंगे. लेकिन आसान भाषा में आप ये समझ लीजिए कि अगर जम्मू-कश्मीर में परिसीमन हुआ तो राज्य के तीन क्षेत्रों… जम्मू, कश्मीर और लद्दाख में विधानसभा सीटों की संख्या में बदलाव होगा. अगर परिसीमन हुआ तो जम्मू और कश्मीर के विधानसभा क्षेत्रों का नक्शा पूरी तरह बदल जाएगा. जम्मू और कश्मीर की राजनीति में आज तक कश्मीर का ही पलड़ा भारी रहा है, क्योंकि विधानसभा में कश्मीर की विधानसभा सीटें, जम्मू के मुकाबले ज्यादा हैं. अगर परिसीमन होता है और जम्मू की विधानसभा सीटें बढ़ती है, तो अलगाववादी मानसिकता के नेताओँ की स्थिति कमज़ोर होगी और राष्ट्रवादी शक्तियां मजबूत होंगी.

Political Map of Jamnmu

आज हम कश्मीर पर मोदी सरकार की इस नई योजना का DNA टेस्ट करेंगे. हम कश्मीर पर इस नए Action Plan के सामने आने वाली चुनौतियों और रुकावटों का भी विश्लेषण करेंगे. परिसीमन का मतलब होता है… किसी राज्य के निर्वाचन क्षेत्र की सीमा का निर्धारण करने की प्रक्रिया. संविधान में हर 10 वर्ष में परिसीमन करने का प्रावधान है. लेकिन सरकारें ज़रूरत के हिसाब से परिसीमन करती हैं. जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में कुल 87 सीटों पर चुनाव होता है. 87 सीटों में से कश्मीर में 46, जम्मू में 37 और लद्दाख में 4 विधानसभा सीटें हैं. परिसीमन में सीटों में बदलाव में आबादी और वोटरों की संख्या का भी ध्यान रखा जाता है.

ऐसा माना जा रहा है कि अगर परिसीमन किया जाता है तो जम्मू की सीटें बढ़ जाएंगी और कश्मीर की सीटें कम हो जाएंगी, क्योंकि 2002 के विधानसभा चुनाव में जम्मू के मतदाताओं की संख्या कश्मीर के मतदाताओं की संख्या से करीब 2 लाख ज्यादा थी. जम्मू 31 लाख रजिस्टर्ड वोटर थे. कश्मीर और लद्दाख को मिलाकर सिर्फ 29 लाख वोटर थे.

कश्मीर के हिस्से में ज्यादा विधानसभा सीटें क्यों हैं? ये समझने के लिए आपको जम्मू और कश्मीर के इतिहास को समझना होगा. वर्ष 1947 में जम्मू और कश्मीर की रियासत का भारत में विलय हुआ. तब जम्मू और कश्मीर में महाराज हरि सिंह का शासन था. वर्ष 1947 तक शेख अब्दुल्ला कश्मीरियों के सार्वमान्य नेता के तौर पर लोकप्रिय हो चुके थे.

जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह, शेख अब्दुल्ला को पसंद नहीं करते थे. लेकिन शेख अब्दुल्ला को पंडित नेहरू का आशीर्वाद प्राप्त था. पंडित नेहरू की सलाह पर ही महाराजा हरि सिंह ने शेख अब्दुल्ला को जम्मू और कश्मीर का प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया. वर्ष 1948 में शेख अब्दुल्ला के प्रधानमंत्री नियुक्त होने के बाद महाराजा हरि सिंह की शक्तियां तकरीबन खत्म हो गई थीं.

इसके बाद शेख अब्दुल्ला ने राज्य में अपनी मनमानी शुरू कर दी. वर्ष 1951 में जब जम्मू कश्मीर के विधानसभा के गठन की प्रक्रिया शुरू हुई. तब शेख अब्दुल्ला ने जम्मू को 30 विधानसभा सीटें, कश्मीर को 43 विधानसभा सीटें और लद्दाख को 2 विधानसभा सीटें आवंटित कर दीं.

वर्ष 1995 तक जम्मू और कश्मीर में यही स्थिति रही. वर्ष 1993 में जम्मू और कश्मीर में परिसीमन के लिए एक आयोग बनाया गया था. 1995 में परिसीमन आयोग की रिपोर्ट को लागू किया गया. पहले जम्मू कश्मीर की विधानसभा में कुल 75 सीटें थीं. लेकिन परिसीमन के बाद जम्मू कश्मीर की विधानसभा में 12 सीटें बढ़ा दी गईं. अब विधानसभा में कुल 87 सीटें थीं. इनमें से कश्मीर में 46, जम्मू में 37 और लद्दाख में 4 विधानसभा सीटें हैं. इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी जम्मू और लद्दाख से हुए इस अन्याय को ख़त्म करने की कोशिश नहीं हुई.

यही वजह है कि जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में हमेशा नेशनल कॉन्फ्रेंस और PDP जैसी कश्मीर केंद्रित पार्टियों का वर्चस्व रहता है. ये पार्टियां, संविधान के अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 A को हटाने का विरोध करती हैं. यही वजह है कि कश्मीर से अलगाववादी मानसिकता खत्म नहीं हो रही है.

जम्मू कश्मीर की विधानसभा का राजनीतिक गणित इस तरह का है कि हर परिस्थिति में कश्मीर केंद्रित पार्टियों का ही वर्चस्व रहता है. अगर जम्मू और लद्दाख की 37 और 4 सीटों को जोड़ दिया जाए, तब भी सिर्फ 41 सीटें होती हैं. ये कश्मीर की 46 विधानसभा सीटों से 5 कम है. यही वजह है कि जम्मू कश्मीर की राजनीति में हमेशा मुख्यमंत्री कश्मीर से ही चुनकर आता है.

जम्मू कश्मीर में बहुमत की सरकार बनाने के लिए किसी भी पार्टी को 44 सीटों की ज़रूरत होती है. कश्मीर में मुसलमानों की आबादी करीब 98 प्रतिशत है. सांप्रदायिक राजनीति करने में माहिर जम्मू और कश्मीर के क्षेत्रीय दल बहुत आसानी से कश्मीर की 46 सीटों को जीत कर बहुमत के आंकड़े को हासिल कर लेते हैं.

बीते 30 वर्षों से जम्मू और कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस या PDP के बग़ैर किसी भी दल की सरकार नहीं बन पायी. इन दोनों पार्टियों में कोई आंतरिक लोकतंत्र नहीं है. नेशनल कॉन्फ्रेंस पर अब्दुल्ला परिवार का राज है और PDP मुफ्ती परिवार की सियासी संपत्ति की तरह हैं. ये दोनों ही परिवार कश्मीर से आते हैं. आज से कुछ साल पहले जम्मू कश्मीर की राजनीतिक स्थिति ये थी कि वहां या तो मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री बनते थे या फिर फारुख अब्दुल्ला और मौजूदा राजनीतिक स्थिति ये है कि जम्मू कश्मीर में या तो महबूबा मुफ्ती मुख्यमंत्री बनेंगी या फिर उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बनेंगे.

इन राजनीतिक परिस्थितियों में सबसे ज़्यादा अन्याय जम्मू और लद्दाख के साथ हो रहा है. कश्मीर केंद्रित पार्टियों की सरकार में जम्मू और लद्दाख के साथ सौतेला व्यवहार होता रहा है. मोदी सरकार ने इस समस्या को जड़ से ख़त्म करने का फ़ैसला किया है. लेकिन ये इतना आसान नहीं है, क्योंकि नेशनल कॉन्फ्रेंस और PDP इसका विरोधी करेंगी. महबूबा मुफ्ती ने एक Tweet करके इसका विरोध किया है. उन्होंने लिखा है कि  भारत सरकार की परिसीमन की योजना के बारे में सुनकर वो परेशान हैं. ज़बरदस्ती परिसीमन सांप्रदायिक आधार पर राज्य के भावनात्मक बंटवारे की कोशिश है.

फारुक अब्दुल्ला ने भी हमेशा परिसीमन को टालने की कोशिश की है. नए सिरे से परिसीमन में सबसे बड़ी रूकावट उन्होंने ही पैदा की थी. वर्ष 2002 में नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार ने परिसीमन को 2026 तक रोक दिया था. इसके लिए अब्दुल्ला सरकार ने Jammu and Kashmir Representation of the People Act 1957 और जम्मू कश्मीर के संविधान के Section 47(3) में बदलाव किया था.

Section 47(3) में हुए बदलाव के मुताबिक वर्ष 2026 के बाद जब तक जनसंख्या के सही आंकड़े सामने नहीं आते हैं तब तक विधानसभा की सीटों में बदलाव करना ज़रूरी नहीं है. वर्ष 2026 के बाद जनगणना के आंकड़े वर्ष 2031 में आएंगे. इसलिए अगर देखा जाए तो अब जम्मू कश्मीर में परिसीमन 2031 तक टल चुका है. फारुख अब्दुल्ला सरकार के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर की गई थी. लेकिन 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया था. यानी सरकार के सामने राजनीतिक चुनौती के साथ साथ कानूनी चुनौती भी है.

अगर देखा जाए तो परिसीमन की सबसे बड़ी रुकावट फारुख अब्दुल्ला की सरकार का फैसला है. उनके बेटे उमर अब्दुल्ला ने आज फेसबुक पर एक पोस्ट लिखकर अपने पिता के फैसले का बचाव किया है. उमर अब्दुल्ला ने लिखा है कि वर्ष 2001 में भारत के संविधान के आर्टिकल 82 और 170 में संशोधन किया गया था. जिसके मुताबिक लोकसभा और विधानसभा की सीटों पर परिसीमन को 2026 के बाद पहली जनगणना तक टाल दिया गया.

उमर अब्दुल्ला ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि इसी संविधान संधोशन के आधार पर जम्मू और कश्मीर में भी परिसीमन को 2026 के बाद तक टाल दिया गया. उमर अब्दुल्ला, भारतीय संविधान के मुताबिक फैसले लेने का दावा कर रहे हैं. लेकिन, असलियत ये है कि कश्मीर समस्या की एक बड़ी वजह अब्दुल्ला परिवार की राजनीति है. ये परिवार राज्य में अपनी मनमानी करता रहा और उस समय की केंद्र की सरकारों ने उन्हें रोकने की कोई कोशिश नहीं की. आज हमने इस पर एक रिपोर्ट बनाई है. ये रिपोर्ट कश्मीर समस्या के बारे में आपकी जानकारी को बढ़ाएगी.

Separatist leaders of Kashmir (neither Jammu nor Ladakh)

अलगाववाद और आतंकवाद के ख़िलाफ़ मोदी सरकार की नीति Zero Tolerance की है. इसीलिए एक तरफ़ तो सरकार ने कश्मीर समस्या के समाधान के लिए आक्रामक रवैया अपनाया है और दूसरी तरफ National Investigation Agency भी लगातार अलगाववादी नेताओं पर शिकंजा कस रही है. Terror Funding Case में आरोपी अलगाववादी नेता.. आसिया आंद्राबी, शब्बीर शाह और मसरत आलम को आज दिल्ली की एक स्पेशल कोर्ट में पेश किया गया था. अदालत ने इन अलगाववादी नेताओं को 10 दिन के लिए NIA की हिरासत में भेज दिया है.

NIA ने 2018 में आतंकवादी हाफिज सईद, सैयद सलाउद्दीन और कई कश्मीरी अलगाववादियों पर फंड मुहैया कराने के मामले में FIR दर्ज की थी. जम्मू-कश्मीर को नक़्शे को देखा जाये तो यहां का 61 प्रतिशत भूभाग लद्दाख़ है. जहां आतंकवाद का कोई असर नहीं है. वहीं 22 प्रतिशत जम्मू में आतंकवाद ख़त्म हुए लंबा वक़्त बीत चुका है. लेकिन कश्मीर घाटी…जो राज्य का क़रीब 17 प्रतिशत हिस्सा है…वहीं पर अलगाववादी और आतंकवादी सक्रिय हैं. कश्मीर घाटी में 10 ज़िले हैं…जहां आतंकवादी घटनाएं होती हैं। इनमें से भी दक्षिण कश्मीर के 4 ज़िले शोपियां, पुलवामा, कुलगाम और अनंतनाग ही आतंकवाद के गढ़ माने जाते हैं.

Curtsy ‘DNA’ Sudhir Choudhry

जम्मू और लादाख के लोग 370 और 35 ए से आज़ादी चाहते हैं: भाजपा

तकरीबन हर चुनावी घोषणा पत्र में भाजपा अनुछेद 370 और 35ए हटाने की बात करती है, इस बार भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी चुनावों से पहले इन धाराओं को हटाने की आपनी प्रतिबद्धता दोहराई। पार्टी ने यह भी कहा कि विधानसभा चुनावों के बाद अपने दम पर राज्य में सरकार बनाने का नेशनल कांफ्रेंस का दावा ‘खोखला’ है

जम्मू: बीजेपी की जम्मू-कश्मीर इकाई ने शनिवार को दावा किया कि जम्मू और लद्दाख क्षेत्रों के लोग पार्टी को वोट देकर जल्द से जल्द संविधान के अनुच्छेद 370 और 35ए को हटवाना चाहते हैं.  पार्टी ने यह भी कहा कि विधानसभा चुनावों के बाद अपने दम पर राज्य में सरकार बनाने का नेशनल कांफ्रेंस का दावा ‘खोखला’ है.

बीजेपी ने हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में राज्य की उधमपुर, जम्मू और लद्दाख सीट पर जीत दर्ज की है जबकि कश्मीर घाटी की सभी तीन सीटों श्रीनगर, बारामूला और अनंतनाग सीटों पर नेशनल कांफ्रेंस को जीत मिली थी.  नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने शुक्रवार को कहा था कि प्रधानमंत्री विशाल बहुमत के बावजूद अनुच्छेद 35ए और 370 नहीं हटा सकते. 

इसपर बीजेपी की राज्य इकाई के प्रवक्ता ब्रिगेडियर (सेवानिवृत) अनिल गुप्ता ने कहा, ‘अब्दुल्ला और नेशनल कांफ्रेंस के नेतृत्व के पास अनुच्छेद 35ए और 370 को लेकर बड़े-बड़े दावे करने के लिये जम्मू और लद्दाख का जनादेश नहीं है क्योंकि इन दोनों क्षेत्रों के लोग इन अनुच्छेदों को जल्द से जल्द हटवाना चाहते हैं.’

‘कश्मीर के लिए अनुच्छेद 370 सबसे बड़ा अवरोधक’
इससे पहले बुधवार (22 मई) को भाजपा के महासचिव राम माधव ने कहा था कि कश्मीर को बाकी देश के साथ भावनात्मक तौर पर जोड़ने की राह में अनुच्छेद 370 सबसे बड़ा अवरोधक है. 

उन्होंने कहा था कि कश्मीर मुद्दे को अलग-थलग विषय के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘कश्मीर में स्थिति को संभालने की प्रक्रिया में जम्मू और लद्दाख बलि के बकरे बन गए हैं.’

माधव ने कहा कि घाटी के उन लोगों की हिफाजत होनी चाहिए जो भारत समर्थक भावनाएं रखते हैं. उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 के कारण नहीं, जम्मू-कश्मीर के भारत के साथ आने के पत्र (इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन) पर दस्तखत के दिन ही कश्मीर भारत का अखंड हिस्सा बन गया.

माधव ने कहा कि कश्मीर के भारत से जुड़ने की वजह अनुच्छेद 370 नहीं है. कश्मीर के कुछ नेता देश में इस तरह की भ्रांति फैला रहे हैं. बाकी देश के साथ कश्मीर के भावनात्मक जुड़ाव में अनुच्छेद 370 सबसे बड़ा बाधक है. 

सेक्टर-14 में रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया

पुरनूर, पंचकूला, 24 मई:

जिला रेडक्राॅस सोसायटी द्वारा आज राजकीय ओद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाओं सेक्टर-14 में रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया। आईटीआई और कांवड संघ के सहयोग से आयोजित इस शिविर में 35 स्वैच्छिक रक्तदाताओं ने रक्तदान किया।

  जिला रेडक्राॅस सोसायटी के सचिव अनिल जोशी ने बताया कि इस शिविर में रक्त संग्रह के लिये राजकीय सामान्य अस्पताल सेक्टर-6 के चिकित्सकों की टीम को तैनात किया गया। श्री जोशी ने रक्तदाताओं को बैज लगाकर प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा कि प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति को वर्ष में कम से कम एक बार रक्तदान अवश्य करना चाहिए। उन्होेंने कहा कि रक्तदान से व्यक्ति के शरीर पर किसी प्रकार का प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि दान में दिया गया रक्त 48 घंटे की अवधि में बिना किसी अतिरिक्त खुराक  के स्वयं पूरा हो जाता है। उन्होंने कहा कि रक्तदान करना जरूरी है क्योंकि घायल लोगों व मरीजों को समय पर रक्त उपलब्ध करवाकर अमूल्य जीवन बचाया जा सकता हैं। 

चुनाव आयोग ने खारिज की सर्वोच्च न्यायालय की सलाह

जिस याचिका को न्यायालय के सतर पर ही खारिज हो जाना चाहिए था उसे चुनाव आयोग त पहुंचाया गया। अगर याचिकाकारता की मानें तो भारत की आधी आबादी सोमवार और शुक्रवार का व्रत रखती है, इस लिहाज से सोमवार एवं शुक्रवार को भी चुनावों के नियमों में ढील दी जानी चाहिए। यह तो अच्छा हुआ की चुनाव आयोग ने तुष्टीकरण की नीति नहीं अपनाई।
एक य‍ाच‍िका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चुनाव आयोग वोट‍िंग के समय को सुबह 7 बजे की बजाए अलसुबह साढ़े 4 या 5 बजे से कर दे.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को चुनाव आयोग से कहा कि ‘लू’ और रमजान को ध्यान में रखते हुये लोकसभा चुनाव के शेष चरणों का मतदान शुरू होने का समय सुबह सात बजे से पहले सवेरे पांच बजे करने के बारे में वह आवश्यक आदेश जारी करे. इस मांग को चुनाव आयोग ने खारिज कर दिया है. इससे पहले प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ के समक्ष इस सिलसिले में एक याचिका पर शीघ्र सुनवाई का अनुरोध किया गया.

पीठ ने कहा था, ‘ चुनाव आयोग को आवश्यक आदेश जारी करने का निर्देश दिया जाता है. उपरोक्त संदर्भों में रिट याचिका का निपटारा किया जाता है.’ यह याचिका अधिवक्ता मोहम्मद निजामुद्दीन पाशा और असद हयात ने दायर की थी. इसके जरिए चुनाव के शेष चरणों में मतदान का समय सुबह सात बजे के बजाय दो से ढाई घंटे पहले, सुबह साढ़े चार या पांच बजे से करने का अनुरोध किया गया.

याचिकाकर्ताओं ने चुनाव आयोग को लोकसभा चुनाव के तहत पांचवें, छठे और सातवें चरण के मतदान के लिए मतदान का समय दो से ढाई घंटे पहले करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है. शेष तीन चरणों के तहत क्रमश: छह मई, 12 मई और 19 मई को मतदान होना है. याचिका में कहा गया है कि चुनाव के इन शेष चरणों के दौरान देश के कई हिस्सों में ‘लू’ चलने की परिस्थितियां मौजूद होंगी और रमजान का महीना भी रहेगा.

याचिका में कहा गया है कि रमजान का महीना छह मई से शुरू होने की संभावना है, जिस दिन पांचवें चरण का मतदान है. रमजान के दौरान मुसलमान रोजा रखते हैं. याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उन्होंने इस सिलसिले में सोमवार को आयोग को एक ज्ञापन दिया था लेकिन आयोग ने इसका जवाब नहीं दिया. इसमें यह भी कहा गया है कि मौसम विभाग ने अगले कुछ दिनों में प्रचंड ‘‘लू’’ चलने की चेतावनी दी है. इस दौरान चुनावी राज्यों – मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा, दिल्ली, चंडीगढ़, झारखंड, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में तापमान सामान्य से पांच डिग्री ज्यादा हो जाता है.

याचिका में कहा गया है कि मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों के चलते मुसलमानों का घरों से बाहर निकलना और वोट देने के लिए कतार में खड़े रहना मुश्किल होगा. साथ ही सुबह की नमाज और सहरी करने के बाद ज्यादातर लोग (रोजा रखने वाले) आराम करते हैं.

बीते साल की तरह ही इस बार भी रमजान के महीने में सीजफायर हो : महबूबा

हाल जी में गिरफ्तार हुए वायुसेना के 4 अफसरों की हत्या के आरोपी और जम्मू-कश्मीर की पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती की बहन का अपहरण करने वाले यासीन मालिक के लिए बहुत ज़्यादा चिंतित हैं। अभी हाल ही में महबूबा ने कहा कि इस एक महीने के लिए सेना द्वारा चलाए जाने वाले खोजी अभियानों (सर्च ऑपरेशन) और अन्य कड़ी कार्रवाई पर रोक लगनी चाहिए. पिछले साल भी उनकी यह अपील मान ली गयी थी तो आतंकियों को नए पनागाह ढूँढने और बनाने में बड़ी सुविधा हुई थी। सेना के सफाई अभियान को बड़ा झटका था ऑपरेशन बीच में रोकना।

श्रीनगर: अपने विवादित बयानों को लेकर लगतार चर्चाओं में बनी रहने वालीं पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती एक बार फिर से सुर्खियों में आ गई हैं. दरअसल, महबूबा मुफ्ती ने शनिवार को कहा कि मुस्लिम धर्म का सबसे बड़ा त्योहार पवित्र रमजान का महीना आने वाला है. इस दौरान लोग दिन-रात दुआ मांगने मस्जिदों और इबादतगाहों में जाते हैं. महबूबा ने कहा कि मेरी भारत सरकार से अपील है कि बीते साल की तरह ही इस बार भी रमजान के महीने में सीजफायर हो. 

जम्मू-कश्मीर की पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती ने कहा कि इस एक महीने के लिए सेना द्वारा चलाए जाने वाले खोजी अभियानों (सर्च ऑपरेशन) और अन्य कड़ी कार्रवाई पर रोक लगनी चाहिए. इससे राज्य के लोगों को कम से कम एक महीने आराम से बिताने को मिल जाएगा. उन्होंने कहा कि मैं आतंकियों से भी अपील करूंगी कि वे रमजान के महीने में कोई भी हमला न करें क्योंकि, रमजान का पवित्र महीना इबादत और दुआ मांगने का है.

हाल ही में महबूबा मुफ्ती ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर उनकी इस टिप्पणी को लेकर निशाना साधा था कि अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए ने राज्य को ”बहुत नुकसान” पहुंचाया है. महबूबा ने कहा कि ये अनुच्छेद देश के साथ उनके संबंधों का आधार है. महबूबा ने कहा, ”अनुच्छेद 370 देश के साथ हमारे रिश्तों और जुड़ाव का आधार है और अगर प्रधानमंत्री को लगता है कि इसके कारण कश्मीर को नुकसान हुआ तो उन्हें कश्मीर छोड़ देना चाहिए.”

बता दें कि अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देता है और राज्य से संबंधित कानून बनाने की संसद की शक्ति को सीमित करता है. अनुच्छेद 35ए राज्य विधानसभा को विशेषाधिकार देने के लिए ‘स्थायी निवासियों’ को परिभाषित करने की शक्ति देता है. 


वैश्विक आतंकी घोषित होने पर दिग्विजय ने कहा “घोषणाओं से क्या होता है”

जहां एक ओर भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत के तहत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) ने बुधवार को पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) के प्रमुख मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित किए जाने पर पूरे भारत में ख्शी की लहर है ओर विश्व भर में मोदी द्वारा किए गए कूटनीतिक प्रयासों की सराहना हो रही है वहीं मानो कांग्रेस को कोई खास फर्क नहीं पड़ा। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और भोपाल से कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह ने कहा है घोषणाएँ तो घोषणाएँ ही होतीं हैं उनसे क्या होता है?

भोपाल: भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत के तहत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) ने बुधवार को पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) के प्रमुख मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित किए जाने पर मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और भोपाल से कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह ने प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा, “घोषणा से क्या होता है, जब पाकिस्तान के पीएम दोस्ती जता रहे हैं मोदी जी के साथ तो दाऊद इब्राहिम, मसूद अजहर और हाफिज सईद को तत्काल भारत को सौंप देना चाहिए.”

भारत ने किया यूएन के फैसले का किया स्वागत
भारत ने बुधवार को संयुक्त राष्ट्र द्वारा जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर को ‘वैश्विक आतंकवादी’ घोषित करने के फैसले का स्वागत करते हुए इसे आतंकवाद के खात्मे के लिए देश द्वारा किए जा रहे प्रयासों में ‘बड़ी सफलता’ बताया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जयपुर में एक चुनावी रैली में पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन ‘जैश-ए-मोहम्मद’ के सरगना मसूद अजहर को बुधवार को आतंकवादी घोषित किए जाने पर संतोष जताते हुए इसे आतंकवाद के खिलाफ भारत के लंबे संघर्ष की बड़ी सफलता बताया. प्रधानमंत्री ने इसके साथ ही कहा कि यह गर्व का दिन है और इस बात का प्रतीक है कि आज भारत की आवाज दुनिया भर में सुनी जाती है. 

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह सहित पार्टी के अन्य नेताओं ने आतंकी संगठन ‘‘जैश ए मोहम्मद’’ के सरगना मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने वाले संयुक्त राष्ट्र के कदम का श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को दिया. 

हालांकि कांग्रेस ने पुलवामा आतंकी हमले में जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख की भूमिका का जिक्र संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में नहीं होने पर निराशा जाहिर की. दलगत राजनीति से ऊपर उठकर राजनीतिक पार्टियों ने संयुक्त राष्ट्र के इस कदम का स्वागत किया. कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरेजवाला ने इस कदम का स्वागत किया लेकिन उनका कहना है कि विपक्षी पार्टी इस बात से निराश है कि संयुक्त राष्ट्र की सूची में पुलवामा आतंकवादी हमले और जम्मू-कश्मीर का हवाला नहीं है. पुलवामा हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए थे. 

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया, “क्या यह सही है कि मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करना केवल इसलिए संभव हो पाया क्योंकि पुलवामा और कश्मीर में आतंकवाद का हवाला रिपोर्ट से हटा लिया गया?” 

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने यह महत्वपूर्ण परिणाम हासिल करने के पीछे भारतीय राजनयिकों की कठिन मेहनत का उल्लेख करते हुए उन्हें बधाई दी। उन्होंने कहा, “हम पाकिस्तान से मांग करते हैं कि वह तत्काल अजहर को गिरफ्तार करे, उसकी संपत्ति जब्त करे और उससे जुड़े सभी संगठन बंद करे.”

मसूद पर यूएन का बैन 130 करोड़ भारतवासियों की जीत है: मोदी

पीएम मोदी ने कहा, “ये है नया भारत और ये है इस नए भारत की ललकार. आज भारत की बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. मैं डंके की चोट पर ये कहना चाहता हूं कि ये तो सिर्फ शुरुआत है. आगे आगे देखिए, होता है क्या.” 
पीएम मोदी ने कहा, “ये सिर्फ मोदी की सफलता नहीं है, ये पूरे हिंदुस्तान की सफलता है. आज भारत के लिए, हर भारतीय के लिए बेहद गर्व का दिन है. मेरी हाथ जोड़कर प्रार्थना है कि कोई राजनीतिक दल ऐसे उत्साह और आत्मविश्वास के माहौल में कृपा करके मिलावट न करे.” 

नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र ने पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन ‘‘जैश-ए-मोहम्मद’’ के सरगना मसूद अजहर को बुधवार को वैश्विक आतंकवादी घोषित कर दिया. पीएम नरेंद्र मोदी ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए इसे 130 करोड़ देशवासियों की सफलता बताया. पीएम मोदी ने अपनी जयपुर रैली में कहा कि ये नया भारत है, जिसकी आवाज को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. 

पीएम ने कहा, “भारत को मिली आतंकवाद के खिलाफ ऐतिहासिक सफलता. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पुलवामा आतंकी हमले का दोषी मसूद अजहर अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित. आज देश के लिए गर्व का दिन है. आतंक पर विश्व भारत के साथ रहा.” पीएम मोदी ने कहा कि विपक्षियों पर निशाना साधते हुए कहा कि आशा करता हूं कि वे आज जश्न मनाएंगे.  

पीएम मोदी ने कहा, “ये है नया भारत और ये है इस नए भारत की ललकार. आज भारत की बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. मैं डंके की चोट पर ये कहना चाहता हूं कि ये तो सिर्फ शुरुआत है. आगे आगे देखिए, होता है क्या.” 

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#WATCH: “UNSC has listed JeM’s #MasoodAzhar as a Global Terrorist. In our fight against terrorism, it is a big victory,” says, PM Narendra Modi1,1688:51 PM – May 1, 2019359 people are talking about thisTwitter Ads info and privacy

पीएम मोदी ने कहा, “ये सिर्फ मोदी की सफलता नहीं है, ये पूरे हिंदुस्तान की सफलता है. आज भारत के लिए, हर भारतीय के लिए बेहद गर्व का दिन है. मेरी हाथ जोड़कर प्रार्थना है कि कोई राजनीतिक दल ऐसे उत्साह और आत्मविश्वास के माहौल में कृपा करके मिलावट न करे.” 

भारत के लिए बड़ी कूटनीतिक जीत 
मसूद अजहर पर बैन लगाए जाने को भारत के लिए इसे एक बड़ी कूटनीतिक जीत के तौर पर देखा जा रहा है. सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समिति के तहत उसे ‘‘काली सूची’’ में डालने के एक प्रस्ताव पर चीन द्वारा अपनी रोक हटा लेने के बाद यह घटनाक्रम हुआ. भारत के राजदूत एवं संयुक्त राष्ट्र में स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरूद्दीन ने ट्वीट किया, ‘‘बड़े, छोटे, सभी एकजुट हुए. मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध सूची में आतंकवादी घोषित किया गया है. समर्थन करने के लिए सभी का आभार.’’ यह पूछे जाने पर कि क्या चीन ने अपनी रोक हटा ली है, अकबरूद्दीन ने कहा, ‘‘हां, हटा ली गई है.’’ 

चीन ने उस प्रस्ताव पर से अपनी रोक हटा ली है जिसे फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका द्वारा संरा सुरक्षा परिषद की 1267 अलकायदा प्रतिबंध समिति में फरवरी में लाया गया था. जम्मू कश्मीर के पुलवामा में भारतीय सुरक्षा बलों पर 14 फरवरी को पाक के आतंकी संगठन जैश के आतंकी हमला करने के कुछ ही दिनों बाद यह प्रस्ताव लाया गया था. इस हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए थे.

मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धि : मसूद अजहर वैश्विक आतंकी घोषित

संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा समिति ने पुलवामा हमले के मास्टर माइंड जैश – ए – मोहम्मद ए सरगना ओर कुख्यात आतंकी अजहर मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित कर दिया। टीवी छनलों के माध्यम से यह खबर सब तरफ फ़ेल गयी ए ओर जहां भारत में खुशी की लहर है लोग सरकार ओर उसके प्रयासों की तारीफ कर रही है वहीं कांग्रेस और उनके प्रवक्ता टीवी पर बता रहे हैं कि यह कोई बड़ी बात नहीं है। indyaTV के शो जहां यह ख़बर फ्लैश हुई तब प्रवक्ता राजीव शुक्ला ने अपनी राय रखी।

नई दिल्ली: पुलवामा और पठानकोट के गुनहगार आतंकी मसूद अजहर पर मोदी सरकार की बड़ी कूटनीतिक जीत हुई है. संयुक्त राष्ट्र ने मसूद अजहर को ग्लोबल टेररिस्ट घोषित कर दिया है. मोदी सरकार की बड़ी कूटनीतिक जीत. चीन ने अपनी आपत्ति वापस ले ली है. चीन हर बार अड़ंगा लगाता आ रहा है. मसूद अजहर को ग्लोबल आतंकी घोषित किए जाने के बाद उसकी संपत्ति जब्त होगी. मसूद अजहर के आने-जाने पर रोक लगेगी. 

चीन ने 13 मार्च को 1267 अलकायदा प्रतिबंध समिति में अमेरिका, ब्रिटेन से समर्थित फ्रांस के एक प्रस्ताव को यह कह कर बाधित कर दिया था कि उसे मामले के अध्ययन के लिए और वक्त चाहिए. चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा था कि प्रस्ताव पर रोक यह ध्यान में रखते हुए भी लगाई गई थी कि पुलवामा आतंकवादी हमले के बाद संबंधित पक्ष को बातचीत करने का समय मिल सके. 

इसके बाद अमेरिका ने अजहर को काली सूची में डालने के लिए 27 मार्च को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सीधे एक प्रस्ताव पेश कर दिया था जिसके बारे में चीन ने कहा था कि यह 1267 समिति को कमतर आंकने के बराबर है.  प्रवक्ता की तरफ से सोमवार को की गई ये टिप्पणियां पहली बार की गई हैं जब चीन ने अजहर के मुद्दे को सुलझाने की प्रगति के बारे में कुछ कहा. 

Masood issue “can be properly resolved”: Geng Shuang

China put a technical hold in March on a fresh proposal to impose a ban on the head of Pakistan-based JeM which claimed responsibility for the deadly Pulwama terror attack.

Citing “some progress” on the issue of listing of the Pakistan-based Jaish-e-Mohammad chief Masood Azhar as a terrorist at the UN Security Council, China indicated on Tuesday that it was willing to change its decade-old stand opposing the move.

“The relevant consultations are going on within the committee and have achieved some progress,” said Chinese Foreign Ministry spokesperson Geng Shuang, adding that he believed the issue of Azhar’s listing, which was put on hold by Beijing on March 13, “can be properly resolved.”

Diplomatic sources confirmed to media that Masood Azhar could be placed on the UNSC’s 1267 Committee’s list of sanctioned individuals and entities as early as Wednesday, once China formally intimated its decision to lift the hold, which it placed on a proposal initiated by the U.S., the U.K, and France after the Pulwama attack in February this year.

May 1 deadline

A UN diplomat in New York told media that a silence period (during which objections may be raised), which kicked off on April 23, would end at 9 a.m. (New York time) on May 1.

The UNSC 1267 panel last met to discuss the designation of Masood Azhar as a terrorist on April 23, when China and the U.S. disagreed on when the listing would go through, the diplomat said.

While China wanted to hold off on the decision until mid-May, the U.S. did not want to wait beyond April 23 to wrap up the process to list Azhar.

Asked specifically about a newspaper report that the listing would be done on May 1, Mr. Geng said, “China is still working with the relevant parties and we are in contact with all relevant parties within the 1267 Committee and I believe with the efforts of all parties, this will be properly resolved.”

The Ministry of External Affairs did not comment on the report, as an official said the government would “wait for the decision” before making any statement.

The listing of Masood Azhar, who’s organisation JeM was listed in 2001, has been pending for more than a decade.

This is the fourth attempt by countries at the UNSC and India to bring Azhar under UN sanctions . China had vetoed each of the previous proposals citing it had not received enough evidence against Azhar, who was released in 1999 during the IC-814 hijacking in exchange for hostages.

Diplomatic sources said China’s turnaround came after Foreign Secretary Vijay Gokhale’s visit to Beijing last week, where India shared details of all the evidence on Masood Azhar, including links to the February 14 Pulwama attack for which the JeM had claimed responsibility. American, British and French diplomats had been pursuing the case with China, even threatening to bring the listing proposal to the entire UNSC for a vote if China refused to relent.

Optimistic note

On Friday, British High Commissioner to India Dominic Asquith said he was “optimistic” that the proposal would go through shortly.

In an interview on Monday, Pakistan Foreign Ministry spokesman Mohammad Faisal said Pakistan was “willing to discuss the listing”, but rejected evidence of Azhar’s links to the Pulwama attack.

चीन के मुखपृष्ठ ने माना कि – फिर एक बार मोदी सरकार

द्निया में यूं तो मोदी के बहुत से मुरीद हैं लेकिन राष्ट्र के राष्ट्र मोदी की लहर में होंगे यह अविस्मर्णिया है विदेशों खास कर रूस द्वारा मोदी ओ सर्वोच्च नागरिका सम्मान से विभूषित करना न केवल मोदी के बढ़ते हुए कद को दर्शाता है वहीं हमारे अपने राष्ट्र को भी एक संदेश देता है, सम्मान जन्म से नहीं अपने कर्मों से अर्जित किया जाता है। मोदी को सम्मानित करने वाले देश चीन सरकार का मुखपत्र माने जाने वाले ‘ग्‍लोबल टाइम्‍स’ ने कहा है कि पीएम मोदी के सियासी कद के आगे फिलहाल भारत का कोई नेता नहीं है. बीजेपी का संगठन विपक्ष से बेहतर है, इसलिए वापसी की संभावना है.

बीजिंग: चीन के सरकारी मीडिया ने लोकसभा चुनाव 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्‍व में दोबारा बीजेपी के सत्‍ता में आने की भविष्‍यवाणी की है. चीन सरकार का मुखपत्र माने जाने वाले ‘ग्‍लोबल टाइम्‍स’ ने कहा है कि पीएम मोदी के सियासी कद के आगे फिलहाल भारत का कोई नेता नहीं है. बीजेपी का संगठन विपक्ष से बेहतर है, इसलिए वापसी की संभावना है.

‘ग्‍लोबल टाइम्‍स’ के एक आर्टिकल में कहा गया, ”भारत में 11 अप्रैल से चुनाव हो रहे हैं और सबकी निगाहें 23 मई यानी नतीजों के दिन पर टिकी हुई हैं. चुनाव में इस बात की पूरी उम्‍मीद है कि पीएम नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी संसद में सबसे बड़ा दल बनकर उभरेगी. पीएम नरेंद्र मोदी के सियासी कद जैसा कोई नेता नहीं है. बीजेपी की फंडिंग शक्ति और संगठन की ताकत विपक्ष से बेहतर है. ऐसे में लगता है कि पीएम मोदी के दोबारा सत्‍ता में वापसी की संभावना है.”

मोदी की कूटनीतिक विरासत जारी रहनी चाहिए, चुनाव नतीजे चाहें जो हों’ शीर्षक से लिखे गए इस आर्टिकल में पीएम मोदी के दुनिया के देशों के साथ किए गए कूटनीतिक प्रयासों की तारीफ की गई है. इसमें पीएम मोदी को ‘व्‍यावहारिक’ नेता बताते हुए सार्क और चीन के साथ संबंधों को मजबूत करने के प्रयासों के लिए मोदी की सराहना की गई है. इसके साथ ही पीएम मोदी और शी चिनफिंग के पिछले साल वुहान में अनौपचारिक बातचीत का विशेष जिक्र करते हुए आर्टिकल में कहा गया है कि भारत में चुनाव नतीजे चाहें जो हों लेकिन भारत और चीन के बीच राजनीतिक, सांस्‍कृतिक और आर्थिक संबंध प्रगाढ़ होने चाहिए.

वुहान बैठक का एक साल पूरा
उल्‍लेखनीय है कि भारत और चीन वुहान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच ‘अनौपचारिक बैठक’ के एक साल होने पर मध्य चीनी शहर में सप्ताह भर चलने वाले भारत महोत्सव का आयोजन कर रहे हैं. मोदी-शी के बीच 27-28 अप्रैल 2018 को हुई बैठक के एक साल होने पर भारत ने वुहान में भारत के रंग (कलर्स ऑफ इंडिया) सप्ताह की शुरूआत की है. इस दौरान नृत्य प्रस्तुति, सिनेमा की प्रदर्शनी, फोटो प्रदर्शनी और व्यापार तथा पर्यटन को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों का आयोजन होगा.

चीन में भारतीय दूत विक्रम मिसरी और वुहान के उप मेयर चेन शीजिन ने कार्यक्रम का शुभारंभ किया. भारतीय दूतावास ने बताया कि बीजिंग में भारतीय दूतावास और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर), नयी दिल्ली हुबेई प्रांतीय सरकार और वुहान नगर सरकार के सहयोग से इसका आयोजन कर रहा है. चाइना आर्ट एसोसिएशन ने भी इसमें मदद की है.