IBRO EARLY CAREER AWARD-2020

Chandigarh September 22, 2020

Dr. Ranjana Bhandari currently working as Assistant Professor (Temporary) at University Institute of Pharmaceutical Sciences, Panjab University, Chandigarhhas received INTERNATIONAL BRAIN RESEARCH ORGANIZATION (IBRO) funded Early Career Award-2020 amounting to 5000 Euro (5 lakhs) for her proposal entitled “Development of Brain-targeted therapeutics for Autism Spectrum Disorders”.

Through this project she would be undertaking research in the area of developing brain-targeted therapeutics for targeting neurodegeneration in regressive autism occurring in children. This technology would be eventually patented. Ranjana also has a registered start-up company under the name”AKB INNOVANT HEALTHCARE PVT. LTD” to her credit.

Dr. Ranjana completed her PhD under the supervision of Dr. Anurag Kuhad, Assistant Professor at University Institute of Pharmaceutical Sciences, Panjab University, Chandigarh and Dr.Jyoti K Paliwal, Director PhaEx Consulting, Gurgaon & Ex Director of Ranbaxy & CDRI, Lucknow.

एएमयू के स्कूल की लीज़ खत्म वंशजों ने वापिस मांगी ज़मीन

प्रयागराज में केंद्रीय विश्वविद्यालय के इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के बाद प्रोफेसर राजेंद्र सिंह (रज्जू भैया) राज्य विश्वविद्यालय की तर्ज पर अब अलीगढ़ को भी एक राज्य विश्वविद्यालय का तोहफा मिलने जा रहा है। योगी आदित्यनाथ सरकार ने अलीगढ़ में भी राज्य विश्वविद्यालय खोलने की योजना फाइनल कर ली है। यहां पर राजा महेंद्र प्रताप सिंह स्टेट यूनिवर्सिटी खोली जाएगी। राजा महेंद्र सिंह ने ही अलीगढ़ में विश्वविद्यालय खोलने के लिए अपनी जमीन दान की थी, लेकिन अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के किसी भी कोने में उनका नाम अंकित नहीं है। इसी कारण यहां पर एएमयू का नाम बदलने के लिए काफी मांग उठती रहती है। अब योगी आदित्यनाथ सरकार ने इसके लिए बीच का रास्ता निकाल लिया है।

उप्र(ब्यूरो):

स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक, पूर्व जाट राजा महेंद्र प्रताप सिंह (1886-1979) ने 1929 में 90 साल की लीज पर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को स्कूल स्थापित करने के लिए लगभग 3.04 एकड़ जमीन दी थी। पिछले साल लीज समाप्त होने के बाद जाट राजा के वंशजों ने माँग की है कि विश्वविद्यालय के आगरा स्थित स्कूल का नाम बदल कर उनके नाम पर रखा जाए और साथ ही महेंद्र प्रताप सिंह द्वारा एएमयू को दी गई बाकी जमीन उन्हें वापस कर दी जाए।

मामले को देखने और अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए यूनिवर्सिटी की कार्यकारी परिषद द्वारा एक समिति का गठन किया गया है। इस समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर तारिक मंसूर हैं।

सिंह के प्रपौत्र चरत प्रताप सिंह के अनुसार, उन्होंने 2018 में लीज की समाप्ति के बारे में विश्वविद्यालय को कानूनी नोटिस दिया था। उन्होंने कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय द्वारा शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए उनके परदादा द्वारा दी गई जमीन के दो हिस्से थे। 

हालाँकि, उन्होंने आगे ये भी कहा कि वे उस जमीन का बड़ा हिस्सा दान कर रहे हैं, जिस पर आगरा में महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर एएमयू का सिटी स्कूल बनाने की माँग की गई है। चरत ने कहा कि भूमि के दूसरे छोटे टुकड़े (1.2 हेक्टेयर) को परिवार को वापस सौंप दिया जाना चाहिए या फिर जमीन के मौजूदा बाजार मूल्य के अनुसार उन्हें मुआवजा दिया जाना चाहिए।

महेंद्र प्रताप सिंह मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज के पूर्व छात्र थे, जो बाद में एएमयू बन गया।

सिंह को मान्यता देने को लेकर एएमयू और बीजेपी के बीच रस्साकशी

गौरतलब है कि पिछले साल, अलीगढ़ की इगलास सीट पर उप-चुनावों के दौरान प्रचार करते हुए, सीएम योगी आदित्यनाथ ने घोषणा की थी कि राज्य सरकार महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर एक विश्वविद्यालय स्थापित करेगी। एएमयू में इस तरह के योगदान देने के बावजूद यूनिवर्सिटी द्वारा मान्यता नहीं दी गई थी। इसके बाद यूपी कैबिनेट ने पूर्व जाट राजा के नाम पर एक विश्वविद्यालय के निर्माण के प्रस्ताव को मंजूरी दी।

सिंह, भाजपा और यूनिवर्सिटी के बीच विवाद की वजह बन गए थे।  पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के चित्र को एएमयू परिसर में लटकाए जाने के बाद विश्वविद्यालय के नाम बदलने की माँग ने 2018 में गति पकड़ ली थी।

1 दिसंबर 2014 को AMU में जाट राजा की 128 वीं जयंती मनाने के लिए भाजपा सांसद सतीश गौतम के सुझाव के बाद विवाद खड़ा हो गया था। भाजपा ने तब अलीगढ़ में अपने कार्यालय में एक छोटे से समारोह की व्यवस्था की थी और बाद में सिंह पर एक संगोष्ठी आयोजित करने के लिए यूनिवर्सिटी के तत्कालीन कुलपति की तरफ से आश्वासन मिला था।

सिंह ने 1957 के लोकसभा चुनावों में अटल बिहारी वाजपेयी को हराया था

महेंद्र प्रताप सिंह प्रथम विश्व युद्ध के मध्य अफगानिस्तान में एक अस्थाई सरकार स्थापित करने के लिए जाने जाते हैं। बाद में उन्हें 1932 में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया था। सिंह 1957-62 के दौरान मथुरा निर्वाचन क्षेत्र से एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में निर्वाचित लोकसभा सदस्य भी थे, उन्होंने कद्दावर भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी को हराया था। अटल बिहारी वाजपेयी बाद में भारत क प्रधानमंत्री बने।

दिल्ली दंगो के साजिशकर्ता की ‘यूएपीए’ के तहत गिरफ्तारी

दिल्ली हिंसा मामले में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने JNU के पूर्व छात्र उमर खालिद से 11 घंटे लंबी पूछताछ की। लंबी पूछताछ के बाद खालिद को गिरफ्तार किया गया। देश-विरोधी गतिविधियों में शामिल होने वालों के खिलाफ कानून और सख्त हो गया है। इस तरह की हरकतों को अंजाम देने वालों को अब यूं ही नहीं छोड़ा जाएगा। इसके लिए ऐसे लोगों पर यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया जा रहा है। कई बार इसका विरोध भी हुआ है, लेकिन देश की अखंडता से खिलवाड़ करने वालों के साथ अब कोई मुरौवत नहीं होगी। खालिद की गिरफ्तारी और उसपर यूएपीए के तहत मामला दर्ज करना इस बात का द्योतक है कि देश के खिलाफ एक शब्द भी अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।  

नयी दिल्ली(ब्यूरो) :

दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद को गिरफ्तार कर लिया है। उमर खालिद को दिल्ली में हुए हिन्दू-विरोधी दंगों के मामले में यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया है। शनिवार (सितम्बर 12, 2020) को ही दिल्ली पुलिस ने उमर खालिद को समन दिया था और उन्हें लोधी कॉलनी स्थित स्पेशल सेल के ऑफिस में हाजिरी देकर जाँच में सहयोग करने को कहा गया था। इससे पहले जुलाई 31 को भी उनसे पूछताछ हो चुकी है।

उसी दिन उमर खालिद का मोबाइल फोन भी सीज कर लिया गया था। रविवार को वो दोपहर 1 बजे पूछताछ के लिए पहुँचे, जिसके बाद शाम को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। अब उन्हें सोमवार को दिल्ली की एक अदालत के समक्ष पेश किया जाएगा। आने वाले कुछ ही दिनों में दिल्ली पुलिस उनके खिलाफ चार्जशीट भी दायर करेगी। क्राइम ब्रांच के नारकोटिक्स यूनिट में तैनात सब-इंस्पेक्टर अरविन्द कुमार को मुखबिर से मिली सूचना के बाद मार्च 6 को उमर खालिद के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी।

मुखबिर ने पुलिस के सामने खुलासा किया था कि दिल्ली में हुआ हिन्दू-विरोधी दंगा पूर्व नियोजित साजिश के तहत हुआ था और इसमें उसके साथ दानिश सहित 2 अन्य साथी शामिल थे। ये सभी अलग-अलग संगठनों का हिस्सा थे। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दिल्ली दौरे के समय अंतरराष्ट्रीय मीडिया के सामने भारत में मुसलमानों के प्रताड़ित होने का नैरेटिव बनाने के लिए उमर खालिद ने दो अलग-अलग जगहों पर भड़काऊ भाषण भी दिया था।

क्या है यूएपीए (UAPA) अधिनियम ? 

1967 में बने यूएपीए यानी गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम में अगस्त 2019 में संसोधन किया गया। यूएपीए बेहद सख्त कानून है। इसे देश की अखंडता और संप्रभुता को खतरा पहुंचाने वाली गतिविधियों से रोकने के लिए बनाया गया है। 1967 में इकस कानून के बनने के बाद से इसमें कई बार संसोधन किया गया।  

8 जुलाई को लोकसभा में पेश

यह विधेयक सरकार को यह अधिकार भी देता है कि इसके आधार पर किसी को भी व्यक्तिगत तौर पर आतंकवादी घोषित कर सकती है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 8 जुलाई को यूएपीए बिल लोकसभा में पेश किया था। यूएपीए बिल के तहत केंद्र सरकार किसी भी संगठन को आतंकी संगठन घोषित कर सकती है अगर निम्न 4 में से किसी एक में उसे शामिल पाया जाता है-

  1. आतंक से जुड़े किसी भी मामले में उसकी सहभागिता या किसी तरह का कोई कमिटमेंट पाया जाता है।
  2. आतंकवाद की तैयार।
  3. आतंकवाद को बढ़ावा देने की गतिविधि।
  4. आतंकी गतिविधियों में किसी अन्य तरह की संलिप्तता।

यूएपीए में नए बदलाव के तहत एनआईए के पास असीमित अधिकार आ जाएंगे। वह आतंकी गतिविधियों में शक के आधार पर लोगों को उठा सकेगी, साथ ही संगठनों को आतंकी संगठन घोषित कर उन पर कार्रवाई कर सकती है।  जांच के लिए एनआईए को पहले संबंधित राज्य की पुलिस से अनुमति लेना पड़ती थी, लेकिन अब इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी।

हालाँकि, उमर खालिद के वकील त्रिदीप पाइस ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए बताया कि उनके क्लाइंट के खिलाफ लगाए गए आरोप पूरी तरह गलत, मनगढ़ंत और दबाव के कारण दर्ज किए गए हैं। सितम्बर 4 को किए गए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उमर खालिद ने कहा था कि देश में दो किस्म का क़ानून चल रहा है- एक सत्ताधारी पार्टी के समर्थकों के लिए और दूसरा आम लोगों के लिए, जिनके खिलाफ झूठे सबूत बनाए जाते हैं।

ताहिर हुसैन ने पूछताछ के दौरान बताया था कि उसने 8 जनवरी को ही सीएए विरोधी प्रदर्शन स्थल शाहीनबाग में खालिद सैफी (India Against Hate Group) और उमर खालिद (JNU) के साथ मिलकर इस दंगे की योजना बना ली थी। उसने कबूला था कि वो और भी कई सीएए विरोधी प्रदर्शन के आयोजकों से संपर्क में था। इस कबूलनामे में उमर खालिद का नाम आने के साथ ही दिल्ली पुलिस ने उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी थी।

हिन्दी सुरक्षा सप्ताह – क्या वाकई??

जब भी हिन्दी दिवस आता है, हिन्दी के अस्‍त‍ित्‍व पर खतरे को लेकर बहस और विमर्श शुरू हो जाता है। चंद गोष्‍ठ‍ियां होती हैं और कुछ सरकारी आयोजन। कुछ अखबारों में हिन्दी को सम्‍मान देने की रस्‍में पूरी की जाती हैं।
कुल जमा सप्‍ताह भर तक ‘हिन्दी सुरक्षा सप्‍ताह’ चलता है। इन कुछ दिनों तक हिन्दी हमारा गर्व और माथे की बिंदी हो जाती है।

14 सितंबर,2020 :

प्रति‍ वर्ष यही होता है, संभवत: आगे भी होता रहेगा। चूंकि यह एक परंपरा-सी है, ठीक उसी तरह जैसे हम आजादी का उत्‍सव मनाते हैं या नया वर्ष।
पिछले कई वर्षों से ऐसा किया जा रहा है। हिन्दी के अस्‍त‍िव को बचाने के लिए नारे गढ़े जा रहे हैं और इसके सिर पर मंडराते खतरे गि‍नाए जा रहे हैं। लेकिन तब से अब तक न तो हिन्दी का अस्‍त‍ित्‍व मिटा है और ही इस पर कोई संकट या खतरा आया गहराया है। और न ही ऐसा हुआ है कि हिन्दी बचाओ अभियान चलाने से यह अब हमारे सिर का ताज हो गई हों।

न तो हिन्दी का अस्‍त‍ित्‍व खत्‍म हुआ है और न ही इस पर कोई संकट है। यह तो हमारी आदत और औपचारिकता है हर दिवस पर ‘ओवररेटेड’ होना, इसलिए हम यह सब करते रहते हैं।

हिन्दी की अपनी लय है, अपनी चाल और अपनी प्रकृति‍। इन्‍हीं के भरोसे वो चलती है और अपनी राह बनाती रहती है। सतत प्रवाहमान किसी नदी की तरह। कभी अपने बहाव में तरल है तो कहीं उबड़-खाबड़ पत्‍थरों से टकराती बहती रहती है और वहां पहुंच जाती है, जहां उसे जाना होता है, जहां से उसे गुजरना होता है।
इसके बनाने बि‍गड़ने में हमारा अपना कोई योगदान नहीं हैं, वो खुद ही अपना अस्‍त‍ित्‍व तैयार करती है और जीवि‍त रहती है, हमारे ढकोसले से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता।

भाषा कभी किसी अभि‍यान के भरोसे जिंदा नहीं रहती। वो देश, काल और परिस्‍थति के अनुसार अपनी लय बनाती रहती है। स्‍वत: ही उसकी मांग होती है और स्‍वत: ही उसकी पूर्त‍ि। यह ‘डि‍मांड और सप्‍लाय’ का मामला है।

पिछले दिनों या वर्षों में हिन्दी की लय या गति‍ देख लीजिए। दूसरी भाषाओं से हिन्दी में अनुवाद की मांग है, इसलिए कई किताबों के अनुवाद हिन्दी में हो रहे हैं, कई अंतराष्‍ट्रीय बेस्‍टसेलर किताबों के अनुवाद हिन्दी में किए जा रहे हैं। क्‍योंकि हिन्दी-भाषी लोग उन्‍हें पढ़ना चाहते हैं, और वे हिन्दी पाठक किसी अभि‍यान के तहत या किसी मुहिम से प्रेरित होकर हिन्दी नहीं पढ़ना चाहते, बल्‍कि उन्‍हें स्‍वाभाविक तौर बगैर किसी प्रयास के हिन्दी पढ़ना है, इसलिए हिन्दी उनकी मांग है।
सोशल मीडि‍या पर हिन्दी में ही चर्चा और विमर्श होते हैं, यह स्‍वत: है। हिन्दी में लिखा जा रहा है, हिन्दी में पढ़ा जा रहा है। हाल ही में कई प्रकाशन हाउस ने हिन्दी में अपने उपक्रम प्रारंभ किए हैं।

हीरे – मोती से लेकर माँ, रहस्यनामा, पिता और पुत्र, बौड़म(Idiot), यद्ध और शांति, अपराध और दंड इत्यादि सभी रूसी कालजयी रचनाएँ मैंने हिन्दी ही में पढ़ी हैं।

गूगल हो, ट्व‍िटर या फेसबुक। या सोशल मीडि‍या का कोई अन्‍य माध्‍यम। हिन्दी ने अपनी जगह बना ली है, हिन्दी में ही लिखा, पढ़ा और खोजा जा रहा है।
ऐसा कभी नहीं होता कि हमारी अंग्रेजी अच्‍छी हो जाएगी तो हिन्दी खराब हो जाएगी। बल्‍क‍ि एक भाषा दूसरी भाषा का हाथ पकड़कर ही चलती है। एक दूसरे को रास्‍ता दिखाती है। अगर हमारे मन के किसी एक के प्रति‍ कोई द्वेष न हों।

साभार : नवीन रांगियाल

हिन्दी का प्रचार राष्ट्रीयता का प्रचार है: हिन्दी दिवस पर विशेष

राष्ट्र भाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है। हिन्दी अपनी ताकत से बढ़ेगी। हिन्दी का प्रचार राष्ट्रीयता का प्रचार है। हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाना नहीं है वह तो है ही। हमारे राष्ट्र की अभिव्यक्ति का सरलतम स्त्रोत है। हिन्दी के द्वारा सारे भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है आदि…आदि … ये हम नहीं बोल रहे ये देश के विद्वान् पुरुषों के कथन हैं जो राष्ट्र भाषा के प्रचार को राष्ट्रीयता का अंग मानते थे। अब केवल काम है। नीतियां हैं…वो भी बेमतलब।

14 सितंबर, 2020:

कितना दुखी होंगे वे आज, जहां भी होंगे। क्योकि उनके इन सभी स्वर्णिम वाक्यों को, लोहे की तरह जंग लगे सरियों में हम बदलते देख रहे हैं, बड़े भारी और बोझल मन के दुःख के साथ। कहां गई भाषा के प्रति आस्था, विश्वास। कहां गया मातृभाषा का गौरव और उसकी अभिव्यक्ति? कैसे जाता जा रहा है ये रसातल में, कमतरी का अपराधबोध लिए हुए? कौन जिम्मेदार है इसका? और कैसे बचा पाएंगे अस्मिता हम अपने हिन्दू, हिंदुस्तान की धड़कन हिन्दी को? या फिर चलता रहेगा यह राष्ट्र ऐसे ही आत्माविहीन शव सा हिन्दी की धडकन से विरक्त हो? सोचिए इस विषय को, विचारिए इस संकट को भी….भाषा कोई भी बुरी नहीं। बच्चा वाणी ले कर पैदा होता है, भाषा उसे हम देते हैं वैसे ही जैसे धर्म देते हैं और ये बात कि हिन्दी भी उसी धर्म से जुड़ी हुई है जो हमारे प्रथम धर्म हैं।

हिन्दी का बिगाड़ भारत माता के रूप की लालिमा का बिगाड़ है, उसकी सिन्दूरी आभा का बिगाड़ है, उसके माथे की बिंदी का बिगाड़ है। बिगाड़ तो अंग्रेजों ने भरपूर किया पर उनके बिगाड़ को सम्मान से स्वीकार किया चापलूसों ने।
फ़िल्में, शिक्षा पद्धति, कान्वेंटीकरण से होता सत्यानाश तो हम भुगत ही रहे थे, अब आया है वेब सीरिज का दौर।

साधन जितने आकार में छोटे होते गए, जेब में समाते गए इनके भाषा-बिगाडू रोगाणु-जीवाणु भी उतनी ही सूक्ष्म भेदीकरण शक्ति के साथ मस्तिष्क में समाने लगे हैं। जो थोड़ी बहुत हिन्दी का सतीत्व बचा हुआ था उसका शील-भंग करने में इसने भी कोई कसार नहीं छोड़ी। भले ही कहें कि ये तो हिन्दी में हैं फिर आपको दिक्कत क्यों? तो फिर पहले भाषा का मायने जानें-“गिरा हि संखारजुया वि संसति, अपेसला होइ असाहुवादिणी.”- बृहतकल्पभाष्य
अर्थात्- सुसंकृत भाषा भी यदि असभ्यतापूर्वक बोली जाती है तो वह भी जुगुप्सित हो जाती है।

बस यही चीज वर्तमान में आ चुकी है, पहले दबे पांव आती थी अब पूरे प्रमाण-पत्रों के साथ स्वीकार्य हो पूरी तरह अहंकार में चूर बच्चों बच्चों तक पहुंचाई जा रही है। नशीले हानिकारक पदार्थों के साथ। धुंआ-धुंआ होती संकृति के साथ ख़राब जुबान का जहर घोलती ये वेब सीरीजों की बाढ़, शयनकक्ष के कर्मों को सड़कों पर खुले आम करने को प्रोत्साहित करती, भाषा की मर्यादाओं को भंग करने को उकसाती इस बार अपने साथ धरती की घास को भी बहा ले जाएगी जो बड़ा ही अनर्थकारी होगा। ‘जब कोई विजित जाति अपनी भाषा के शब्दों को ठुकराए और विजेता की भाषा पर गर्व करे तो इसे गुलामी का ही चिह्न मानना चाहिए।’‘भाषा की दो खानें हैं, एक किताबों में एक जनता की जुबान पर।’ और ये जुबान भ्रष्ट हो चली है खास करके भाषा के मामले में। ‘भाषा ही संस्कृति का वाहन है और उसका अंग भी।’ और हम दोनों के ही हन्ता बन बैठे हैं। कई आसान सी बुराइयों ने ‘कुनेन’ की भांति काम किया है। ऊपर से मीठा अंदर से कड़वा-जहर। दिल, दिमाग, बुद्धि, शुद्धि, जुबान, भाषा सभी को ख़त्म करने पर आमादा।

बात-बात पर अपशब्दों का प्रयोग, महिलाओं के लिए अश्लील भाषा का बेहिचक प्रयोग, मर्यादा भंग, लिहाज को ठेंगा बताता बड़ों के प्रति अपमानजनक व्यवहार, कुटिलता से भरे नामों की रचना, धर्मग्रंथों के साथ-साथ संस्कृति का मजाक उड़ाना ऐसी कई अनंत बीमारियों के संवाहक ये वेब-सीरिज पीढ़ियों को बिगाड़ने का अपराध कर रहे।

‘भाषा की समृद्धि स्वतंत्रता का बीज है’ पर दुखद तो यह है मेरे देश में कि विदेशी भाषा तो छोड़ हम अपनी भाषा के विषय में भी नहीं जानते। जबकि ‘भाषा मानव-मस्तिष्क की वह शस्त्रशाला है जिसमें अतीत की सफलताओं के जयस्मारक और भावी सफलताओं के लिए अस्त्र-शस्त्र, एक सिक्के के दो पहलुओं की तरह साथ साथ रहते हैं।’ पर हमें सावधान रहना होगा कि हमारा ये गौरवपूर्ण सिक्का जो भारतमाता के स्वर्णिम भाल पर चमचमा रहा है अपनी भाषा हिन्दी के रूप में इसे कोई भी मलीन न करने पाए हम भाषा को नहीं बनाते, भाषा हमें बनाती है। थोड़े से प्रयोजनीय शब्द गढ़ लेना भाषा बनाना नहीं है, सुविधा है।

भाषा बड़ी रहस्यमयी देवी है। यह नई सृष्टि करती है। इतिहास विधाता के किए कराऐ पर वह ऐसा पर्दा डालती है कि कभी-कभी दुनिया ही बदल जाती है। तो इस खतरनाक मायाजाल को पहचानें। इसकी घुसपैठ हमारे देश की नींव को दीमक लगा दे उसके पूर्व ही हिन्दी के मान की रक्षा के पुण्य दायित्व को निभाएं। भाषा में प्रयुक्त एक-एक शब्द, एक-एक स्वराघात कुछ सूचना देते हैं। व्यक्तियों का नाम, कुलों-खानदानों के नाम, पुराने गावों के नाम, जीवंत इतिहास के साक्षी हैं। हमारे रीति-रस्म, पहनावे, मेले, नाच-पर्व, पर्व-त्योहार-उत्सव सभी तो हमारी इस भाषा की गाथा सुना जाते हैं। आओ…मिल कर रोकें इस दुश्मन को जो हमारी भाषा रूपी गहने की चोरी की नीयत से कई रूप धरे है। यह भाषा ही तो हमारे विचारों का परिधान है। क्योंकि जब कोई भाषा नष्ट होती है तो उस राष्ट्र की कई वंशावलियां भी नष्ट हो जातीं हैं। तो सावधान….नींद से जागें…आपके देश की आत्मा पर प्रहार हो रहा है….धीरे-धीरे…हौले-हौले से पर करारा…

साभार : डॉ. छाया मंगल मिश्र

Webinar on NEP 2020 by PU Biotechnogy Deptt

Chandigarh – 10 Sept:

Department of Biotechnology, Panjab University Chandigarh organized a Webinar on National Education Policy 2020 which was inaugurated by the Vice Chancellor, Prof Raj Kumar . In his inaugural address, Prof Raj Kumar described the New Education Policy -2020  as holistic and futuristic policy in nature. The new education policy will bring quality education and research in Indian Institute of Primary and Higher Education. He quoted that it will began new era of education system in India and India will regain its lost glory of education system existed during the era of Takshila and Nalanda Universities etc, when people from various parts of world come to study in India. NEP-2020 is being described as “Blooming for the sake of Blooming”. It is a policy towards fulfilling mission of self reliant/Atmanirbhar Bharat. Inclusion of all 22 languages in NEP-2020 and teaching/learning in the National language is again a welcoming step in NEP. This will help each and every child to grasp the thing more easily, when taught in their mother tongue.

 Eminent speakers like Dr Sunil Gupta, Chairman of the HP State Higher Education Council and former VC HPU Shimla described how the policy will change the entire education system of India. Dr Sandeep malhotra, from Allahabad Central University talked about the research aspects of NEP-2020  and how this policy will enhance research capabilities of Indian universities and institutes. Prof RC Sobti, former VC Panjab University and BBAU Lukhnow enlightened the students that NEP-2020 is a value based education policy and develops humanistic, ethical, skill oriented, and other values among students.

In the end  Dr Kashmir Singh, Chairperson Department of Biotechnology thanked the speakers and participants for their active participation and making this event as success.

A National Webinar on “Prospects of National Education Policy-2020 in Higher Education” Organized by Department of Zoology, Panjab University

Chandigarh – 08 Sept.

Department of Zoology, Panjab University organized a national webinar on “Prospects of National Education Policy-2020 in higher education”which was presided by Vice Chancellor, Prof. Raj Kumar , today.He emphasized the need to incorporate basic sciences like Zoology with the industry and enhance the employability of the students.

 Dr Leena Chandran Wadia, senior fellow at Observer Research Foundation, Mumbai was the speaker of the event and she spoke on the topic “NEP-2020: A New Dawn for Higher Education in India?” She started her talk by stating the aim of NEP to build character, make productive, contributable citizens for making an equitable society.  She pointed out the main features of NEP 2020 like the need of liberal education, vocational education and multidisciplinary approach as the pillars of this policy. She reflected that providing autonomy and institutional governance to higher educational institutions would drive the education system. Further, she said that empowering the faculty would play an important role in the success of NEP in higher education.

In the end she clarified the doubts of the participants and emphasized that these reforms would help in fulfilling the aim of education.

सूचना प्रौद्योगिकी की दुनिया में हिंदी विषय पर वेब – संवाद

Chandigarh September 4, 2020

  • हिंदी को ज्ञान की भाषा बनाना जरूरी
  • सूचना प्रौद्योगिकी को अपनाना ही रास्ता

चंडीगढ़,4 सितंबर:

 पंजाब विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा हिंदी माह उत्सव के तहत विशेष व्याख्यानपरिचर्चा श्रृंखला की चौथी कड़ी में आज ‘सूचना प्रौद्योगिकी की दुनिया में हिंदी’ विषय पर परिचर्चा हुई, इस परिचर्चा में विशेष रूप से जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के डॉ. गंगा सहाय मीणा मुख्य वक्ता के रूप में शामिल हुए। 

डॉ. मीणा ने कहा कि सूचनाओं और मनोरंजन की भाषा से अब हिंदी को ज्ञान की भाषा बनाना जरूरी है और इसके लिए सूचना प्रौद्योगिकी को अपनाना ही एक मात्र विकल्प है। उन्होंने कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रयोग की जा रही हिंदी में अभी भले ही एकरूपता नहीं है लेकिन फिर भी इसके माध्यम से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फलक पर हिंदी जन जन तक पहुंची है। सूचना प्रौद्योगिकी के विभिन्न आयामों को लेकर हिंदी समाज में जागरूकता की कमी है। इसलिए इस दिशा में विशेष प्रयास करने की जरूरत है। 

एक दशक पहले हिंदी में भी विण्डोज़ आने लगे हैं और लिनक्स ऑपरेटिंग में शुरू से हिंदी आपको मिलेगी।

हिंदी की उन्नति  के बारे में उन्होंने कहा कि एटीएम में हम खुद ही हिंदी नहीं चुनते, फ़ोन में भी हम हिंदी नहीं चुनते हैं और दिल्ली के नेहरू प्लेस जैसे स्थान जहाँ ऑपरेटिंग सिस्टम ख़ूब मिलते हैं वहां भी अगर हिंदी ऑपरेटिंग सिस्टम मांगेंगे तो वो कहेंगे की ऐसा ग्राहक साल भर में एक दो ही आते हैं। 

व्याख्यान के बाद प्रश्न उत्तर का सत्र भी हुआ जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों से शोधार्थी एवं प्राध्यापकों ने हिस्सा लिया।

विभागाध्यक्ष डॉ. गुरमीत सिंह ने सभी का स्वागत करते हुए बताया कि इस वर्ष हिंदी माह उत्सव में विशेष तौर पर ऑनलाइन माध्यम का लाभ उठाकर के देश के विभिन्न हिस्सों के विद्वानों को जोड़ने की कोशिश की गई है ताकि हमारे विद्यार्थी हिंदी की व्यापक पहुंच से अवगत हो सकें।

इस कड़ी में अगला व्याख्यान 4 सितंबर को ‘अनुवाद का संसार और हिंदी’ विषय पर होगा। इस  व्याख्यान में केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो, नई दिल्ली के संयुक्त निदशक विनोद संदलेश मुख्य वक्ता होंगे। 

14 सितंबर को हिंदी दिवस पर इस एक माह के उत्सव का समापन कार्यक्रम होगा जिसमें प्रसिद्ध गीतकार और हिंदी विभाग के पूर्व छात्र डॉ. इरशाद कामिल मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होंगे। वे ‘हिंदी-उर्दू-पंजाबी की साझा विरासत’ पर अपनी बात रखेंगे।

आज के कार्यक्रम में देश के विभिन्न हिस्सों से 50 से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया जिनमें विभाग के प्रो. सत्यपाल सहगल, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से डॉ. मंजू पुरी, प्रयागराज से डॉ. ज्ञानेन्द्र शुक्ल और श्री प्रशांत मिश्रा शामिल रहे।

इस हिंदी माह उत्सव में 6 विशेष व्याख्यानों के अलावा ‘हिंदी हैं हम’ नाम से कविता लेखन प्रतियोगिता भी आयोजित की गई जिसमें अंतिम तिथि तक 115 से अधिक प्रविष्टियां प्राप्त हुईं हैं। इस प्रतियोगिता के नतीजे 14 सितंबर के कार्यक्रम में घोषित होंगे।  इसके साथ ही विभाग के फेसबुक अकाउंट के माध्यम से कविता वाचन श्रृंखला भी शुरू की गई है।

WEBINAR ON NEW EDUCATION POLICY: A ROADMAP FOR ENGINEERING EDUCATION

Chandigarh September 4, 2020

A Webinar on New Education Policy: A roadmap for Engineering Education was organized by UIET, Panjab University, Chandigarh ,today. The event commenced with an introductory message by Prof. Raj Kumar, Vice Chancellor who has been associated with NEP since the beginning and also gave inputs in the framing of NEP. PU VC also gave some optimistic insight into the fact that although pandemic is a curse, it has certainly given the opportunity of development to domains like engineering and medicine.

Subsequently Prof. Dheeraj Sanghi,Director PEC spoke about the aspects of New Education Policy related to higher education. He cited the chapters from New Education Policy that are related to higher education. He talked about the aspect of multidisciplinary education. In the curriculum, there should be interdisciplinary courses. There should be more flexibility in the courses chosen by the students i.e. more elective courses should be offered to the students.

Prof.Sanghi pointed out that it is very natural that the minds of students, as well as faculties, will resist these changes that this policy demands but we need to overcome this resistance. The NEP caters to the major problem that the college students face about not knowing exactly what they want to study in college or what are their interests. The provision of Dual Major will be provided i.e. one person having computer science engineering shall be allowed to opt for psychology also. It was also discussed as to how important it is to make a robust lateral entry system if we want to implement the NEP in a good way.

Prof.Sanghi also pointed to the fact that the policy gives the flexibility to the universities to implement the changes recommended at a time they find appropriate i.e. either from this batch or from the next session. He also talked about Academic Bank of Credit (ABC) which will be established to digitally store the academic credits earned from various recognised higher educational institutes so that the credits earned in the previous years can be awarded after entering into the programme again. With this ABC, the fear of wastage of years is avoided.

Continuous evaluation will be there rather than having one major exam at the end of the semester which has almost 70 % of credit or marks. He also added that tenure track recruitment should be there for faculties in which the teaching ability of the teacher will be evaluated after every 5-6 years. He then talked about the use of technology through online and digital courses. He talked about a big caveat of NEP which states that the quality of the online courses should be as good as the best on-campus programme of the higher educational institution. He said that such a scenario is not possible in the present situation and can only be made possible after approximately 10 years from now. More than 40% of courses shall be offered online to reduce the teaching load that will also provide an ample amount of time to the faculty for research work. He also discussed Faculty development programmes that should be conducted more frequently.  Employability will automatically improve if a good batch of students graduate as  industry will  be interested to recruit them.

PU offers Grant of 5% Fee Waiver to Students

Chandigarh September 4, 2020

Panjab University Chandigarh, Vice Chancellor Prof Raj Kumar, in anticipation of approval of the Syndicate, has approved the 5% fee exemption across all courses to all the students of Panjab University Chandigarh and its Regional Centres for the current Semester, keeping in view the difficulties faced due to Covid 19 pandemic.

In order to facilitate the payment of fee , all students are allowed to deposit the course fee in 4 equal installments instead of two installments. The students who have paid full fee, will be adjusted in their next installment.

Also, 100% fee concession has been granted to physically challenged students whereas,  EWS concession will be extended to the students of traditional courses also as a special measure.

The concessions offered are over and above the different kinds of concession/ scholarships/schemes(involving an amount of Rs 5 Crore) which is already being offered by the University.