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Chandigarh February 4, 2022 Centre for the Study of Social Exclusion and Inclusive Policy (CSSEIP) सामाजिक बहिष्करण और समावेशी नीति अध्ययन केंद्र, पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ द्वारा 4 फरवरी को ‘एक दिवसीय वेबिनार” जिसका शीर्षक ‘समावेशन और कल्याण: विकास और मुद्दे’ आयोजित किया गया। इस अवसर पर मुख्य वक्ता, डॉ सलिल कुमार, सहायक प्रोफेसर, SGGS कॉलेज, चंडीगढ़, ने जैन धर्म के मतानुसार समावेशन व समावेशी विकास को मानव कल्याण के लिए प्राथमिकता बताकर उसका विश्लेषणात्मक वर्णन किया। स्वागत संबोधन में प्रोफेसर अशोक कुमार, डायरेक्टर, CSSEIP व हिंदी साहित्य की जानी-मानी हस्ती, ने कहा कि धर्म एक व्यापक विचार है, इसको पंथो, सम्प्रदायों की संकीर्णता में नही बाँधना चाहिए। सबको अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करना होगा व स्वयं को समाज के लिए सदैव तत्पर बनाकर ही हम समस्याओं का प्रभावी निराकरण कर सबका कल्याण कर सकते है। वेबिनार का संचालन करते हुए डॉ कंचन चंदन, शिक्षक, CSSEIP, ने कहा कि मानवीय समता, बंधुता व मानवतावादी सोच के साथ ही हम सबका कल्याण कर सकते है और समावेशी समाज बना सकते है। मुख्यवक्ता डॉ सलिल कुमार ने बताया कि ‘जैन’ क्या? ‘जिन’ शब्द उत्पति हुई है, इसका तात्पर्य है जिसने सब इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ली हो। समावेशी समाज के लक्ष्य हम “संयम ही जीवन है”, सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक आचरण/चरित्र को अपने जीवन मे उतारकर प्राप्त कर सकते है। उन्होंने जैन तीर्थंकरों के माध्यम से समावेशन पर बल दिया। उदाहरण के लिए, ऋषभदेव/आदिदेव/आदिनाथ के ‘असि- सुरक्षा, मसि- व्यापार, कृषि – खेती’ को सभ्यता की नींव/ आकार देने वाला बताया। नेमिनाथ ने बलि का विरोध कर अहिंसा को प्रबल किया. महावीर स्वामी ने सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अस्तेय में पांचवा व्रत ब्रह्मचर्य जोड़ा। जो समाज को स्पष्ट दिशानिर्देश थे कि क्या करना है, क्या छोड़ना है। मुख्यवक्ता ने बताया कि यदि हम जैन मत में शामिल रत्न, व्रत, तप व आचरण को अपने जीवन मे उतारे तो समतामूलक समाज की रचना कर सकते है। उन्होंने वैज्ञानिक दृष्टिकोण को रेखांकित करते हुए अनीश्वरवाद व अनेकान्तवाद पर बल दिया। सभी पंथो, सम्प्रदायों और जातियों को ऊंच-नीच की भावनाओं को त्याग होगा, महिला-पुरूष में भेदभाव समाप्त हो को जैन दर्शन का अभिन्न अंग बताया। विकास व सबके कल्याण के लिए शीलों का पालन व एक-दूसरे के प्रति सदाचरण करना जरूरी है। उन्होंने आडम्बर विहीन व कर्मकांड विहीन समाज की रचना को समावेशी समाज का आधार बताया जिसमे नैतिक मूल्य सर्वोपरि हो। उन्होंने जैन मुनि धर्मप्रज्ञ व भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम की पुस्तक ‘सुखी परिवार, समृद्ध राष्ट्र’ के माध्यम से संदेश दिया कि परिवार एक इकाई के रूप में यदि समृद्ध होगा तो हम राष्ट्र को समृद्ध बना सकते है, और नैतिक मूल्यों को जीवन मे अपनाकर ही समृद्ध समाज को यथार्थ कर सकते है, इस सकारत्मक बिंदु पर अपना व्याख्यान समाप्त किया।…
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