Chandigarh January 1, 2021
किसी भी भाषा की गतिशीलता और तरक्की उस भाषा से और उस भाषा में होने वाले अनुवाद पर निर्भर करती है। कोई भाषा कहां तक पहुंचेगी, उसमें अनुवाद की बड़ी भूमिका होती है। अतः हमें अनुवाद की ताकत को पहचानना चाहिए। यह तथ्य पंजाब विश्वविद्यालय के यू.जी.सी. – एच.आर.डी.सी. द्वारा आयोजित दो सप्ताह के भाषा शिक्षकों के लिए पुनश्चर्या पाठ्यक्रम (रिफ्रेशर कोर्स) के दौरान उभरकर सामने आया। पंजाब विश्वविद्यालय की ओर से “अनुवाद की संस्कृति व संस्कृति का अनुवाद” विषय पर आयोजित यह पहला ऑनलाइन रिफ्रेशर कोर्स आज संपन्न हो गया।इसके समापन सत्र में हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला के कुलाधिपति प्रो. हरमहेंद्र सिंह बेदी मुख्य वक्ता के तौर पर शामिल हुए जबकि हरियाणा साहित्य अकादमी व हरियाणा उर्दू अकादमी, पंचकूला के निदेशक डॉ. चंद्र त्रिखा मुख्य अतिथि थे।
डॉ. चंद्र त्रिखा ने इस अवसर पर कहा कि भाषाएं अनुवाद के माध्यम से केवल बढ़ती ही नहीं है बल्कि बचती भी हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि उर्दू अदब आज यदि युवा पीढ़ी के बीच जिंदा है तो वो अनुवाद के कारण ही है।
प्रो. बेदी ने अनुवाद के महत्त्व को रेखांकित करते हुए गुरुवाणी का उदाहरण देते हुए बताया कि इसमें हिंदी, फ़ारसी, ब्रज, पंजाबी इत्यादि भाषाओं के संतों की वाणी गुरु ग्रंथ साहिब में गुरुमुखी लिपि में संकलित की गई है। वैश्विक वाङ्मय के पीछे अनुवाद की बहुत बड़ी भूमिका है और इसके माध्यम से ही यह ज्ञात हुआ है कि ऋग्वेद सबसे प्राचीन ग्रंथ है जिसमें एशिया की संस्कृति का सूक्ष्म वर्णन मिलता है।
एचआरडीसी के निदेशक प्रो. एसके तोमर ने कहा कि नई शिक्षा नीति में अनुवाद के महत्व को समझते हुए राष्ट्रीय स्तर पर एक श्रेष्ठ अनुवाद संस्थान स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है। उन्होंने कहा कि अनुवाद के माध्यम से सभी भारतीय भाषाओं की ज्ञान संपदा पूरी दुनिया तक पहुंच सकती है।
रिफ्रेशर कोर्स के कोर्स समन्वयक व हिंदी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. गुरमीत सिंह ने समापन सत्र में दो सप्ताह के रिफ्रेशर कोर्स की रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए उम्मीद जताई कि कोर्स के दौरान अनुवाद के विविध पक्षों पर हुई सार्थक चर्चा को प्रतिभागी अपने क्षेत्रों और विद्यार्थियों के बीच आगे बढ़ाएंगे और इसके माध्यम से अनुवाद की एक ऐसी संस्कृति विकसित हो पाएगी जिसमें सभी भारतीय भाषाएं एक साथ आगे बढ़ पाएंगी। कोर्स में शामिल प्रतिभागियों राजेश जानकर, वेदव्रत, पूजा रावल और गुरप्रीत रायकोट ने समापन सत्र में अपने अनुभव साझे करते हुए कहा कि कोर्स में बहुत कुछ नया सीखने को मिला। एचआरडीसी की उप निदेशक डॉ. जयंती दत्ता ने सभी का धन्यवाद किया।
इस रिफ्रेशर कोर्स में भारत के 10 राज्यों हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, चंडीगढ़, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली एवं राजस्थान से भाषा के शिक्षकों ने हिस्सा लिया। जिसमें अंग्रेजी के 13, हिंदी के 11, पंजाबी के 5, संस्कृत के 7 और मराठी के 1 शिक्षक शामिल हैं। इस कोर्स में अलग – अलग विषयों तथा क्षेत्रों से सम्बन्धित देश – विदेश के लगभग 30 विषय विशषज्ञों ने व्याख्यान दिए। इनमें प्रो. शिव कुमार सिंह (पुर्तगाल), प्रो. आनंदवर्धन शर्मा (बुल्गारिया), प्रो. भीम सिंह दहिया (पूर्व कुलपति, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय), श्री बालेंदु शर्मा दाधीच (निदेशक माइक्रोसॉफ्ट), डॉ. चंद्र त्रिखा (निदेशक हरियाणा उर्दू अकादमी, पंचकूला), प्रो.अनघा भट्ट(पुणे) , डॉ. धनंजय चोपड़ा (इलाहाबाद), प्रो. शशि मुदिराज (हैदराबाद), प्रो. प्रभाकर सिंह (बीएचयू, बनारस), श्री विनोद संदलेश (संयुक्त निदेशक, केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो, दिल्ली), प्रो. शाशिधरन (कोची,केरल), प्रो. दिलीप शाक्य व प्रोफेसर खालिद जावेद (जामिया,नई दिल्ली), प्रो. सुधीर प्रताप सिंह (जेएनयू, नई दिल्ली), प्रो. कुमुद शर्मा (दिल्ली विश्वविद्यालय), प्रो. विजय लक्ष्मी (मणिपुर) एवं प्रो. दिनेश चमोला( हरिद्वार) शामिल हैं।