दोनों राज्यों मे भाजपा का पलड़ा भारी मुख्य मंत्री के चेहरे आगे रख लड़ा जाएगा चुनाव

हरियाणा और महाराष्ट्र में कौन पार्टी है कितने पानी में? क्या बीजेपी सिर्फ मोदी लहर के भरोसे है? दोनों राज्यों में उसका मुकाबला कांग्रेस से होने वाला है. महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी सीटों के बंटवारे के मामले में आगे हैं लेकिन हरियाणा में आपसी सिर फुटव्वल से पारा पाना आसान नहीं!

सारिका तिवारी

चुनाव आयोग आज दोपहर महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है. यहां 21 अक्‍टूबर को वोट डाले जाएंगे. 24 को नतीजा आएगा. दोनों राज्‍यों में इस वक्‍त भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. दोनों में उसका पलड़ा भारी है. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या पार्टी इन राज्यों में फिर से अपने दम पर सरकार बना पाएगी. पार्टी सूत्रों का कहना है कि महाराष्ट्र और हरियाणा में मौजूदा मुख्यमंत्रियों के चेहरे को ही आगे करके चुनाव लड़ा जाएगा. दोनों सीएम एक राउंड की अपनी चुनावी यात्राएं पूरी कर चुके हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद राज्यों की सत्ता हासिल करने की यह जंग दिलचस्प होने वाली है.

वरिष्ठ पत्रकार नवीन धमीजा का कहना है कि ये दोनों राज्य राजनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण हैं.  हरियाणा और महाराष्ट्र में कभी कांग्रेस का शासन हुआ करता था, लेकिन दोनों राज्यों में वो इस वक्त हाशिए पर है. कांग्रेस के नेता आपस में ही लड़ रहे हैं. फिर भी इन दोनों में बीजेपी और कांग्रेस के बीच टक्कर है. महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी सीटों के बंटवारे के मामले में बीजेपी-शिवसेना से आगे हैं. लेकिन हरियाणा में वो आपसी सिर फुटव्वल से अभी तक पार नहीं पा सकी है.

इन दोनों राज्यों में विधानसभा की 378 सीटें हैं. जिनमें से 183 पर बीजेपी विधायक हैं. जबकि कांग्रेस के पास सिर्फ 51 सीटें हैं. दोनों राज्यों में सत्ताधारी पार्टी को पीएम नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ज्यादा भरोसा है. मोदी लहर के भरोसे ही यहां पार्टी मैदान जीतने की उम्मीद कर रही है. पीएम मोदी पिछले एक माह में दोनों राज्यों में दौरा कर चुके हैं.

राजस्थान, एमपी जैसा तो नहीं होगा हाल?

दिसंबर 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी अपनी सरकार गंवा चुकी है. हालांकि, लोकसभा चुनाव में उसने जबरदस्त वापसी करते हुए कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया था. फिर भी पार्टी हरियाणा, महाराष्ट्र में होने वाले चुनाव को अति आत्मविश्वास में नहीं लड़ेगी. इसलिए तैयारियों में कोई ढील नहीं दी जा रही.

लोकसभा चुनाव में जीत के बाद हौसले बुलंद

लोकसभा चुनाव में बंपर जीत के बाद बीजेपी और उसके कार्यकर्ताओं के हौसले बुलंद हैं. इसलिए इन राज्यों में बीजेपी जीत के पक्के इरादे के साथ जरूर उतरेगी. बीजेपी प्रवक्ता राजीव जेटली का कहना है कि दोनों राज्यों में पार्टी की गणित और केमिस्ट्री दोनों मजबूत है. आइए, समझते हैं कि किस राज्य में क्या सियासी समीकरण है?

महाराष्ट्र का राजनीतिक गणित

महाराष्ट्र में बीजेपी का शासन है. जिसे देवेंद्र फडणवीस चला रहे हैं. 288 सीटों वाले प्रदेश में बीजेपी के पास सबसे अधिक 135 विधानसभा सीट हैं. उसकी सहयोगी शिवसेना के पास 75 और विपक्षी दल कांग्रेस के पास 34 और एनसीपी के पास 31 सीट हैं. ना-नुकुर करते-करते बीजेपी और शिवसेना ने लोकसभा चुनाव साथ लड़ा. जिसमें बीजेपी ने 23 और शिवसेना ने 18 सीटें जीतीं. लेकिन विधानसभा की सीटें शिवसेना बराबर-बराबर हिस्सेदारी पर लड़ना चाहती है. लोकसभा चुनाव में एनसीपी ने 4 सीटें जबकि कांग्रेस ने सिर्फ एक सीट हासिल की थी. ऐसे में यहां पावरफुल गठबंधन बीजेपी-शिवसेना का ही है. हार की निराशा में घिरी कांग्रेस के लिए यहां चुनाव की डगर काफी कठिन नजर आ रही है.

हरियाणा की सियासत में कौन कहां?

हरियाणा में विधानसभा की 90 सीटें हैं. पिछला चुनाव अक्टूबर 2014 में हुआ था. बीजेपी ने यह चुनाव बिना चेहरे के लड़ा था. पीएम नरेंद्र मोदी की अगुआई में बीजेपी ने कांग्रेस के गढ़ रहे इस प्रदेश में 47 सीटें जीतीं. पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई. जींद उप चुनाव जीतने के बाद बीजेपी के पास 48 विधानसभा सीट हो गईं. 2014 में आरएसएस प्रचारक मनोहरलाल खट्टर को सीएम बनाकर पार्टी ने पहले से जमे जमाए नेताओं को चौंका दिया था. हालांकि सियासी जानकार कहते हैं कि जन आशीर्वाद रैली में दो बार सीएम का गुस्सा सोशल मीडिया में छाया रहा, यह कहीं उनके सियासी कॅरियर पर भारी न पड़ जाए.

फिलहाल तो मनोहरलाल के नेतृत्व में हरियाणा की सभी 10 लोकसभा सीटें भी बीजेपी की झोली में आ गई हैं. इसलिए दिल्ली दरबार में उनके नंबर ठीक बताए जाते हैं. बीजेपी ने यहां पर 75 से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. 2014 में कांग्रेस के पास 17 और इनेलो की 19 सीटें थीं. पांच निर्दलीय और एक-एक बहुजन समाज पार्टी, शिरोमणि अकाली दल के विधायक चुने गए थे. हालांकि, इस समय इनेलो के 10 वर्तमान विधायक बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. जबकि जन नायक जनता पार्टी में शामिल हुए 4 विधायक अयोग्य घोषित कर दिए गए हैं. इनेलो के पास सिर्फ तीन विधायक बचे हैं. देखना ये है कि आज से शुरू हो रही सत्ता की नई जंग में कौन कहां खड़ा होगा.

Indeed a Very Positive Budget, Sets Indian Economy rolling to new heights

Mazboot Budget for Mazboot Nagrik
“यकीन हो तो रास्ता निकलता है, हवा की ओट लेकर भी चिराग जलता है”

CA. Keshav R Garg

It is indeed a Mazboot Budget for Mazboot Nagrik. The maiden budget by first full time lady finance minister has set the tone for the growth of Indian Economy for next 5 years. It seems that day is not far when India will see its peak growth under the regime of very talented, humble and grounded finance minister. From village to cities, youth to old, MSME to Large Caps everyone has been touched in this well sought budget of newly elected government.

As far as a common man is concerned a number of initiatives have been introduced. We cannot just talk about tax benefits but those benefits as well which make life of common man easy. The government has introduced the concept of NCMC Transport card which will cater for all transport needs all across the country be it metros, buses, toll tax etc. Not only it will help in transportation but in case of emergencies, one can withdraw cash from ATM as well with the help of this card. Additional Tax benefit of Rs. 1.5 lakh each for purchase of electric vehicle and affordable house has also been granted. PAN Card shall no more be required for filing of ITR, it can simply be done with the help of Aadhaar Number. Both can now be used inter-changeably. Also a pre-filled income tax return form shall be made available for the Salaried class.

There had been special focus on start-ups in this budget. The Finance minister assured that the issue of angel investor and its investment shall now be resolved. There shall be no scrutiny on start-ups in respect of their valuation by the income tax department.Exemption from capital gains have been introduced where a persons sells his house and invests that money in a start-ups. Further aTV channel specifically for start-ups is set to be introduced which will help them hand holding in relation to fund raising and initial hiccups.

For bigger corporate house tax rate has been reduced from 28% to 25% where the annual turnover does not exceed Rs. 400 crores. Faceless E-assessment system shall be introduced from 2019 where the cases for scrutiny shall be selected from central repository without providing the details of officer to the taxpayer. This will be huge measure to reduce corruption. For super-rich an additional surcharge of 3% to 7% has been introduced in align with the government to reduce income gaps. Also a TDS of 2% has been introduced if one withdraws cash more than Rs. 1 crore in a financial year. This is in lieu to curb cash transactions.

Apart from above various measures such as Social Stock exchangeloan against Corporate bonds100% FDIs in various sectors,Government investment in banksInsurance Schemes for small traders/business units are all meant to increase the inflow of funds in the Indian economy. The additional resources of funds will certainly boost the business activities being carried out in every nook and corner of the country. FM dint even forget visually impaired, she announced introduction of special Rupee coins for them. Even for students New Education Policy to promote Study in India set to roll out. 

Government has brought huge changes as far as indirect taxes are concerned. A Sabka Vishwas (Legacy Dispute Resolution Scheme, 2019) has been introduced to square off service tax and central excise matters pending as on 30.06.2019. This is to off-load the burden of Pre-GST litigations from the department as well as from taxpayers. The person can pay 70%/50% of the tax dues where the amount is less than 50 lakhs/more than 50 lakhs respectively. No penalty/late fees shall be charged under this scheme. Further to provide relief to taxpayers and to settle ever going debate, CGST Act 2017 has been amended to provide that interest shall be charged on net cash liability instead of Gross Tax liability under GST. Further GST Act has been changed in order to effect the various taxpayer friendly decisions taken by 35th GST Council Meeting.

We at KRG Legal feel that this budget is really positive. It not only sets the tone for future growth of our country but also towards more transparent and compliant nation. With lesser interaction with tax officials, transparency is set to increase in the interest of taxpayers. The Legacy scheme/one-time settlement was a demand pending since long which has now been fulfilled. On the similar lines, states must also come out with such scheme. We also feel that this budget is achievable and has been prepared keeping in view the ground realities. We congratulate our Lady Finance Minister for her masterstroke and look forward to more such constructive work in future as well.

“Yakin ho to raasta nikalta hai, hawa ki aut lekar bhi chirag jalta hai”

गाँव के शहरीकरण ने बढ़ाया जल संकट

सारिका तिवारी

विलंबित मानसून, पिछले वर्ष की कमी मानसून से पहले, और भूजल के स्तर में गिरावट ने संकट को बढ़ा दिया है। जलाशयों के दो-तिहाई भाग में असामान्य जल स्तर चल रहा है। बढ़ते तापमान, खराब शहरी नियोजन, जिसके परिणामस्वरूप भराव, और निर्माण, आर्द्रभूमि, योजना प्रक्रिया में हाइड्रोलॉजिकल योजनाओं के प्रति कुल उपेक्षा और पारंपरिक जल संरक्षण ज्ञान के दुरुपयोग ने इस खतरनाक स्थिति में योगदान दिया है।

स्थिति और खराब हो जाएगी, 2030 तक पानी की मांग दोगुनी होने की उम्मीद है, अगर युद्धस्तर पर पानी से निपटना तुरंत नहीं लिया जाता है। पानी की कमी का आर्थिक गतिविधि के सभी क्षेत्रों के लिए खतरनाक प्रभाव है। यह कई सामाजिक लाभों के साथ-साथ लड़कियों के साथ, विशेष रूप से ग्रामीण भारत में पानी लाने के लिए स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर होने पर घड़ी को वापस कर देगा। यह स्वच्छता क्रांति को भी बाधित करेगा।

रविवार को अपने रेडियो संबोधन में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने व्यक्तियों, समुदायों और कंपनियों को एक साथ आने के लिए कहा। जल दक्षता को बढ़ावा देने और अपव्यय को कम करने के लिए सरकार के हस्तक्षेप की तत्काल आवश्यकता है। इस भयावह संकट के लिए कोई चांदी की गोली नहीं है। यदि लोग जल संकट की तीव्रता का एहसास करने में विफल रहते हैं, तो भारत का सामना करना पड़ रहा है ।

अब चेन्नई को ही देखें तो वस्तुतः सूखा चला गया है, जबकि शहरी और ग्रामीण भारत के कई अन्य हिस्से पानी के संकट से जूझ रहे हैं। पानी की बर्बादी न तो नई है और न ही तमिलनाडु की राजधानी तक सीमित है।

अध्ययनों से पता चलता है कि अगले साल तक लगभग 20 शहर शहरों में भूजल से बाहर हो जाएंगे। जलवायु परिवर्तन, आक्रामक भूमि उपयोग परिवर्तन, अनुचित शहरी नियोजन और निर्माण ने देश में जल आपातकाल में योगदान दिया है। इस संकट को हल करने के लिए सभी हितधारकों – लोगों, उद्योग, वैज्ञानिकों, नीति निर्माताओं और सरकारों द्वारा सभी स्तरों पर मजबूत नीतिगत रूपरेखा और ठोस प्रयास की आवश्यकता होगी।

शुरुआत के लिए, भारत सरकार को जल संरक्षण, जल निकायों के संरक्षण, वितरण नेटवर्क को टक्कर देने और नए आवास में वर्षा जल संचयन को एक अनिवार्य विशेषता बनाना चाहिए।

भारत में फसलों के लिए भय, पाँच साल में जून रहा सबसे अधिक खुश्क

सारिका तिवारी, चंडीगढ़

मौसम विभाग ने कहा, भारत में पांच साल में सूखा पड़ा, मौसम विभाग ने कहा कि फसलों और व्यापक अर्थव्यवस्था के लिए आशंका बढ़ रही है।

कुल मिलाकर, मानसून की बारिश औसत से एक तिहाई कम थी, हालांकि कुछ राज्यों में, जिनमें गन्ना भी शामिल है, जो उत्तर प्रदेश के उत्तरी राज्य में बढ़ रहा है, वे 61 प्रतिशत कम थे, भारत मौसम विभाग (आईएमडी) के आंकड़ों से पता चला है।

भारत की कृषि योग्य भूमि का लगभग 55% हिस्सा वर्षा आधारित है, और कृषि एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का लगभग 15% हिस्सा बनाती है, जो पहले से ही मंदी का शिकार है।

विश्लेषकों ने कहा कि अगर अगले दो से तीन सप्ताह में बारिश में सुधार नहीं होता है, तो भारत को संकट का सामना करना पड़ सकता है। किसानों को उपभोक्ता से लेकर उपभोक्ता सामान तक सब कुछ बेचने वाली कंपनियाँ असुरक्षित होंगी।

कृषि मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि किसानों ने 28 जून को 14.7 मिलियन हेक्टेयर में फसलें लगाई थीं।

दिल्ली जल बोर्ड आखिर कब काम करेगा

राजविरेन्द्र वसिष्ठ

यकीन मानिए यदि दिल्ली को सम्पूर्ण राज्य का दर्जा मिल जाता है तो दिल्ली का जल बोर्ड बहुत ही तीव्रता से अपने काम करने लगेगा। आज यदि दिल्लीवासियों को पानी ठीक से नहीं मिल रहा है तो इसके पीछे केंद्र की मोदी सरकार है। मोदी सरकार के कारण दिल्ली में सीसीटीवी कैमरा नहीं लगे और इसी कारण जल बोर्ड पर मुख्यमंत्री नज़र नहीं रख पा रहे, जल बोर्ड को सुचारु रूप से काम करवाने के लिए मुख्यमंत्री ने महिलाओं को मेट्रो में मुफ्त यात्रा की सुविधा प्रदान की, छात्रों को 100 प्रतिशत वजीफा और फीस माफी भी की। लेकिन यह जल बोर्ड काम ही नहीं कर रहा। मुख्य मंत्री ने तो पानी भी लगभग मुफ्त कर दिया था, बस यह दिल्ली के नाशुक्रे लोग जो चीज़ मुफ्त कर दी वह और भी ज़्यादा चाहिए। भाई दिल्ली में औरतों के लिए मेट्रो का सफर मुफ्त है, भीषण गर्मी की दोपहर वह मेट्रो में बिताएँ, वातानुकूलित मेट्रो में। बस वह करें जिससे मुख्य मंत्री को न काम करना पड़े न जवाब देने पड़ें।

नई दिल्ली: शहर के निवासियों को चौबीसों घंटे पाइपलाइन के जरिए जलपूर्ति करने का दिल्ली सरकार का सपना अभी दूर की कौड़ी नजर आ रहा है. इस महत्वाकांक्षी परियोजना को लेकर शुरू की गई पायलट परियोजना की स्थिति देखें तो ऐसा लगता है कि दशकों के बाद भी यह सपना कहीं सिर्फ सपना ही ना बना रह जाए.

दिल्ली जल बोर्ड ने 2009 में सभी को चौबीसों घंटे पानी देने का विचार बनाया और जनवरी 2013 में सुएज कंपनी के साथ मिलकर एक पायलट परियोजना शुरू की. इस परियोजना का लक्ष्य दिसंबर 2014 तक मालवीय नगर के 50,000 और वसंत विहार के 8,000 कनेक्शनों को चौबीसों घंटे पानी मुहैया कराना था.

परियोजना के प्रमुख और वरिष्ठ अभियंता वीरेन्द्र कुमार के अनुसार, परियोजना शुरू होने के करीब साढ़े छह साल बाद भी अभी तक मालवीय नगर के नवजीवन विहार और गीतांजली एन्क्लेव में करीब 800 और वसंत विहार के करीब 450 कनेक्शनों को ही चौबीसों घंटे पानी मिल पा रहा है.

कुमार का दावा है कि जमीन के मालिकाना हक वाली तमाम एजेंसियों, नगर निकायों, डीडीए और वन विभाग, से मंजूरी मिलने में देरी भी परियोजना की लेट-लतीफी के लिए जिम्मेदार है.

सिर्फ इतना ही नहीं, यह पायलट परियोजना इसलिए भी पूरी नहीं हो पा रही है क्योंकि जल बोर्ड के पास चौबीसों घंटे जलापूर्ति के लायक पानी नहीं है.

औसतन दिल्ली में प्रत्येक कनेक्शन को दिन में चार घंटे जलापूर्ति होती है. दिल्ली जलबोर्ड एक दिन में 93.5 करोड़ गैलन पानी की आपूर्ति करता है जबकि मांग 114 करोड़ गैलन पानी की है.

अब देखना यह है की अब जल बोर्ड के खिलाफ एलजी के घर जा कर मोदी के खिलाफ धारणा दिया जाएगा। बहुत ज़रूरी है भाई

एक और ख़बर जो ख़बर न बन सकी

1951 में कांग्रेस सरकार ने “हिंदू धर्म दान एक्ट” पास किया था। इस एक्ट के जरिए कांग्रेस ने राज्यों को अधिकार दे दिया कि वो किसी भी मंदिर को सरकार के अधीन कर सकते हैं।
इस एक्ट के बनने के बाद से आंध्र प्रदेश सरकार नें लगभग 34,000 मंदिर को अपने अधीन ले लिया था। कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु ने भी मंदिरों को अपने अधीन कर दिया था। इसके बाद शुरू हुआ मंदिरों के चढ़ावे में भ्रष्टाचार का खेल। उदाहरण के लिए तिरुपति बालाजी मंदिर की सालाना कमाई लगभग 3500 करोड़ रूपए है। मंदिर में रोज बैंक से दो गाड़ियां आती हैं और मंदिर को मिले चढ़ावे की रकम को ले जाती हैं। इतना फंड मिलने के बाद भी तिरुपति मंदिर को सिर्फ 7 % फंड वापस मिलता है, रखरखाव के लिए।

आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री YSR रेड्डी ने तिरुपति की 7 पहाड़ियों में से 5 को सरकार को देने का आदेश दिया था। इन पहाड़ियों पर चर्च का निर्माण किया जाना था। मंदिर को मिलने वाली चढ़ावे की रकम में से 80 % “गैर हिंदू” कामों के लिए किया जाता है।

तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक हर राज्य़ में यही हो रहा है। मंदिर से मिलने वाली रकम का इस्तेमाल मस्जिदों और चर्चों के निर्माण में किया जा रहा है। मंदिरों के फंड में भ्रष्टाचार का आलम ये है कि कर्नाटक के 2 लाख मंदिरों में लगभग 50,000 मंदिर रखरखाव के अभाव के कारण बंद हो गए हैं।
दुनिया के किसी भी लोकतंत्रिक देश में धार्मिक संस्थानों को सरकारों द्वारा कंट्रोल नहीं किया जाता है, ताकि लोगों की धार्मिक आजादी का हनन न होने पाए। लेकिन भारत में ऐसा हो रहा है। सरकारों ने मंदिरों को अपने कब्जे में इसलिए किया क्योंकि उन्हे पता है कि मंदिरों के चढ़ावे से सरकार को काफी फायदा हो सकता है।

लेकिन, सिर्फ मंदिरों को ही कब्जे में लिया जा रहा है। मस्जिदों और चर्च पर सरकार का कंट्रोल नहीं है। इतना ही नहीं, मंदिरों से मिलने वाले फंड का इस्तेमाल मस्जिद और चर्च के लिए किया जा रहा है।

इन सबका कारण अगर खोजे तो 1951 में पास किया हुआ कॉंग्रेस का वो बिल है। हिन्दू मंदिर एक्ट की पुरजोर मांग करनी चाहिए जिससे हिन्दुओ के मंदिरों का प्रबंध हिन्दू करे ।गुरुद्वारा एक्ट की तर्ज पर हिन्दू मंदिर एक्ट बनाया जाए।

राजीव कुमार सैनी,
एडवोकेट हाई कोर्ट इलाहाबाद
स्वयंसेवक
संयोजक , भाजपा विधि प्रकोष्ठ, हाई कोर्ट इलाहाबाद इकाई, प्रयागराज

रूको, अरे सुनो , नए फैशन के पत्रकार:

हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर विशेष:
सरिका तिवारी

रूको, अरे सुनो , नए फैशन के पत्रकार ।
ऐसा कौन सा कर्म-कुकर्म तुमने कर डाला, जो तुम्‍हारे गले की हड्डी की तरह फंसा हुआ है : कलम को तोप नहीं, तमंचा को परमाणु मानते हैं यह जर्नलिस्‍ट : तुम्‍हें इतना ही डर लगता है, तो पत्रकारिता को क्‍यों बदनाम करते हो : दास्‍तान-ए-डरपोंक पत्रकार-एक :

आवश्यकता है

‘‘चाहिए स्वराज्य के लिए एक संपादक। वेतन-दो सूखी रोटियां, एक गिलास ठंडा पानी और प्रत्येक संपादकीय के लिए दस साल जेल और विशेष अवसर पे अपना सिर कटाने के लिये तैयार, योग्य कलमकार’’

ढम्‍म, ढम्‍म, ढम्‍म।
सुनो, सुनो।
आज के कुछ पत्रकारों की कहानी सुनो। 
बिलकुल नएदौर के पत्रकारों की कहानी।
नये टेस्‍ट वाले पत्रकारों की कहानी।
अनोखे बिजूखा-टाइप नये-नये अंदाज के पत्रकारों की कहानी।
बिना कलम वाले पत्रकारों की कहानी। बिना किसी खबर वाले पत्रकारों की कहानी।
बकलोल पत्रकारों की कहानी।
बहादुर होने का चोला पहन कर डर पोंक रहे पत्रकारनुमा पत्रकारों की कहानी।
सिर्फ दलाली पर आमादा पत्रकारों की कहानी। खबर लिखने की तमीज नहीं, लेकिन इन्‍हें भय बहुत है।
इतने भयभीत हैं यह पत्रकार, कि उन्‍हें गनर चाहिए। सरकारी गनर, विद कारबाइन।
ढम्‍म, ढम्‍म, ढम्‍म।

जी हां, आइये ऐसे पत्रकारों की कहानी सुनिये, जो कर्म से भले पत्रकार न हों, लेकिन खुद को पत्रकार के तौर पर यत्र-तत्र-सर्वत्र विचरण करते रहते हैं। मनुष्‍यरूपेण मृगाचरन्ति। यह गजब कहानी है पत्रकारिता के उन पहरूओं की, जिनका पत्रकारिता से धेला भर लेना-देना नहीं होता। वे दावा तो करेंगे कि वह करते हैं पत्रकारिता, लेकिन डर-डर कर। इतना डरेंगे कि डरपोंक मारेंगे। डर के मारे नानी मरती है इन बहादुर पत्रकारों की। लिखने की तमीज भले न हो, लेकिन उन्‍हें अपनी सुरक्षा के लिए वे यत्र-तत्र-सर्वत्र चिल्‍ल-पों करते दिख जाते हैं। जिस किस की भी चरण-धूलि अपने माथे पर टीका की तरह सजा लेंगे और फिर भिक्षा में मांगेंगे गनर। सरकारी गनर। सरकारी स्‍टेनगन के साथ वाला गनर।
उस समय सबकी ज़रूरत सिर्फ और सिर्फ आजादी थी और उसे किसी भी हाल में हासिल करने का एकमात्र उद्देश्य लोगों के ज़हन में था। बंदूक, तलवार, तोपें और तमाम बड़े-बड़े हथियारों से क्रांतिकारी स्वतंत्रता की जंग लड़ रहे थे किंतु क्रांति का हर प्रयास सिर्फ निराशा को ही देने वाला था और इसका परिणाम था 1857 की क्रांति की विफलता। बस इसी दौर में हथियारों से परे आजादी की अलख जगाने का जिम्मा कलमकारों ने अपने हिस्से लिया और कलम की ताकत कुछ ऐसी चमकी, कि मशहूर शायर अकबर इलाहबादी को कहना पड़ा-

“खींचों न कमानों को न तलवार निकालो, जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो”

जुझारू पत्रकारों के इस अमिट योगदान को बयाँ करने के लिये महान् कवियत्री महादेवी वर्मा को कहना पड़ा “पत्रकारों के पैरों के छालों से आज का इतिहास लिखा जाएगा”

इतना ही नहीं, ‘स्वराज्य’ नामक अखबार ने अपने संपादक पद के लिए छपा यह विज्ञापन इस बात को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है- ‘‘चाहिए स्वराज्य के लिए एक संपादक। वेतन-दो सूखी रोटियां, एक गिलास ठंडा पानी और प्रत्येक संपादकीय के लिए दस साल जेल और विशेष अवसर पे अपना सिर कटाने के लिये तैयार, योग्य कलमकार’’

स्वदेशी आंदोलन के समय 1907 में उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद के निवासी शांति नारायण भटनागर ने अपनी जमीन-जायदाद बेचकर स्वराज्य नामक साप्ताहिक अखबार निकाला। स्वराज्य अखबार के सम्पादकों को कुल 125 वर्ष के काले पानी की सजा हुई, फिर भी डिगे नहीं। स्वराज के संस्थापक भटनागर जी ‘रायजादा’ कहलाते थे उन्हें भी सरकार ने नहीं छोड़ा। तीन वर्षों का सश्रम कारावास हुआ। स्वराज प्रेस जब्त कर लिया गया। नया प्रेस खुला। बलिदानी सम्पादकों ने फिर कमान संभाल ली। होती लाल वर्मा को 10 वर्ष तथा बाबू राम हरि को 11 अंकों के प्रकाशन के बाद 21 वर्षों की सजा हुयी। मुंशी राम सेवक नये सम्पादक के रूप में कलेक्टर को अपना घोषणा पत्र ही दे रहे थे कि उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। कलेक्टर ने चुनौती दी कि और भी कोई है इस तख्त पर गद्दीनशीन होने के लिये। तब आगे आये देहरादून के नंद गोपाल चोपड़ा। जिन्हें 12 अंकों के सम्पादन के बाद 30 वर्षों की सजा दी गयी। तब एकदम से 12 नामों की सूची सम्पादक बनने के लिए आयी। सभी ने कहा हम करेंगे सम्पादन। किंतु पंजाब के फील्ड मार्शल कहे जाने वाले लद्धा राम कपूर सम्पादक बने। उन्हें तीन सम्पादकीय लिखने पर प्रति सम्पादकीय 10 वर्ष अर्थात् कुल तीस वर्षों की सजा हुई। इसके पश्चात अमीर चन्द्र जी इसके सम्पादक बने। किन्तु यहां महत्व का विषय यह है कि हर सम्पादक के जेल जाने के बाद स्वराज में एक विज्ञापन छपता था ‘सम्पादक चाहिए- वेतन दो सूखे ठिक्कड़ (रोटी), एक गिलास ठंडा पानी, हर सम्पादकीय लिखने पर 10 वर्ष काले पानी की कैद’। फिर भी लोग डरे नहीं, दमन के सम्मुख झुके नहीं। स्वाभाविक रूप से उनकी प्रेरणा का आधार बिगड़ती व्यवस्था का अंर्तनाद ही था।

लेकिन अब इन्‍हें अपने पेशे को चमकाने के लिए खबरों और व्‍याकरणों की जरूरत नहीं पड़ती है। बल्कि उसके ठीक उलट, उन्‍हें अपना धंधा चमकाने के लिए सरकारी स्‍टेनगन लादे एक सरकारी गनर की जरूरत पड़ती है, जिसके साथ वे खड़े हों और छाती ठोंक कर यह प्रदर्शन करने की मूर्खता कर सकें कि उनकी सुरक्षा अब सरकार का जिम्‍मा बन चुका है। जाहिर है कि वह दलाली ही है, जिसका दारोमदार इस नये दौर के पत्रकारों ने थाम लिया है। इनमें से ही कई लोग भी हैं, जो खुद को वरिष्‍ठ पत्रकार के तौर पर पेश करते हैं, लेकिन अपनी काली-करतूतों के चलते गनर हासिल कर उसका सार्वजनिक प्रदर्शन करते रहते हैं।

जी हां, अब नतीजा यह कि पत्रकारिता अब कलम के सिपहसालारों की संख्‍या अब बेहद न्‍यून होती जा रही है। उनकी जगह ले लिया है बनावटी और दिखावटी पत्रकारों ने, जिनको पत्रकारिता का ककहरा तक नहीं आता, लेकिन झूठ और चापलूसियों की ऐसी-ऐसी लन्‍तरानियां उछालने में माहिर हैं यह पत्रकार।

“ज़िन्दगी से बड़ी कोई किताब नही, औ-दुआओं से बड़ा ख़िताब नहीं।” डॉ॰माही

एम०के०साहित्य अकादमी पंचकुला द्वारा ‘महफ़िल के रंग, बच्चों के संग’

एम०के०साहित्य अकादमी पंचकुला द्वारा दिनांक 4/5/2019 , दिन शनिवार को प्रातः 11बजे से एक बजे तक ‘महफ़िल के रंग, बच्चों के संग’ में एक काव्य प्रतियोगिता का आयोजन ‘साई की पाठशाला’ सेक्टर 12 पंचकूला में किया गया। डॉ०प्रतिभा माही ने मंच संचालन करते हुए माँ शारदे व ओम साई राम को नमन कर समारोह का आगाज़ किया।
‘साई की पाठशाला’ के 25 बच्चों ने काव्य प्रतियोगिता में भाग लिया। सभी नन्हें नन्हें फूल व कलियों ने अपनी अपनी पसन्द का कव्य पाठ किया तथा गाना गाया। जिनमें से उच्चतम 10 प्रतिभागियों को पुरुस्कार व अन्य प्रतिभागियों को डॉ०प्रतिभा माही ने उपहार दिया। सभी छोटे बड़े मस्ती में झूमने लगे। यह पूरा कार्यक्रम मुख्य अतिथि श्रीमती सुनीता नैन (उप जिला शिक्षा अधिकारी पंचकुला) विशेष अतिथि श्री अनिल थापर जी व श्रीमती वैशाली कंसल (समाज सेविका व महा सचिव , महिला मोर्चा बी०जे०पी०) के सानिध्य में तथा श्री गणेश दत्त (वरिष्ठ तकनीकी निदेशक ,राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र हरियाणा ,भारत सरकार) की अध्यक्षता में हुआ।

‘साई की पाठशाला’ जहाँ श्री अनिल थापर जी के संरक्षण व निर्देशन में नन्हें नन्हें वो मासूम बच्चे शिक्षा व संस्कार ग्रहण कर रहे हैं, जो झुग्गी-झौपड़ियों में रहते हैं तथा गरीबी के कारण पढ़ नहीं सकते, अपने सपने पूरे नहीं कर सकते, कुछ बच्चेट्राफिक लाइट पर भीख माँग माँगकर अपना गुजारा करते हैं । ऐसे सभी बच्चों को श्री अनिल थापर जी तथा उनकी टीम साई की पाठशाला में अपनी गाड़ियों से लेकर आते हैं, उन नन्हें मासूम बच्चों को मुफ़्त शिक्षा देते हैं तथा उनके सपनों को एक उड़ान देकर स्कूलों में भर्ती कराते हैं। अगर एक शब्द में कहा जाए तो श्री अनिल थापर जी उन सबके लिए एक मसीहा हैं जो तन-मन-धन सम्पूर्ण रूप से समाज सेवा को सपर्पित हैं।
डॉ०प्रतिभा माही ने दो पंक्तियों में अपने अनुभव को कहा—
“ज़िन्दगी से बड़ी कोई किताब नही,
औ-दुआओं से बड़ा ख़िताब नहीं।”

समारोह में उपस्थित सुनीता गर्ग , सुशील अरोड़ा, मंजू बिसला व जगदीप जी ने भी अपने विचार प्रस्तुत कर विशेष योग दान दिया। एम०के०साहित्य अकादमी पंचकुला संस्था ने भी आज ‘साई की पाठशाला’ द्वारा किये जा रहे इस परोपकारी यज्ञ में अपनी ये पहली आहुति दी है और अब आगे भविष्य में समय समय पर देती रहेगी , ऐसा डॉ० प्रतिभा माही ने कहा जो कि इस संस्था अध्यक्ष/संस्थापिका हैं। कार्यक्रम सम्पूर्ण रूप से सफल रहा इसका श्रेय अनिल थापर व डॉ०प्रतिभा माही को जाता है।

अरविंद V/s दीपेंदर “दिल्ली अभी दूर है”

सारिका तिवारी

यूं तो चुनाव कई बातों से प्रेरित होते हैं लेकिन हरियाणा की भूमि का कण कण राजनीति को धार देता है। गली मोहल्ले के टोलों में स्कूली बच्चों से लेकर चौपाल में हुक्का गुड़गुड़ाते बुजुर्ग तक राजनीति की बिसात पर अपने विचार खुले दिल से रखते हैं। निर्भीकता से अपने राजनैतिक विचारों को व्यक्त करना यहाँ की खासियत है। लेकिन इस बार जानकारों के लिए भी स्थिति असमंजस की है। जातीय समीकरणों से खेली जाने वाली राजनीति में नॉन जात इस बार चुप्पी साधे बैठा है।

हुड्डा का गढ़ माना जाने वाला रोहतक लोकसभा क्षेत्र इस बार असमंजस की स्थिति में है। इसलिए इस क्षेत्र को एक बार फिर जीतने के लिए हुड्डा परिवार ने पूरा जोर लगा रखा है। रोहतक लोकसभा क्षेत्र से हुड्डा परिवार की प्रतिष्ठा भी दांव पर है। कांग्रेस पार्टी की ओर से मौजूदा सांसद दीपेंद्र हुड्डा चौथी बार प्रत्याशी हैं।

हुड्डा परिवार 9 बार सांसद बना है। रणबीर हुड्डा 1952 तथा 1957 में सांसद बने। 1991, 1996, 1998 और 2004 में भूपेंद्र हुड्डा और 2005, 2009 तथा 2014 में दीपेंद्र हुड्डा सांसद बने। 1952 से लेकर 2014 तक हुए चुनाव में ज्यादातर समय जाट नेता ही सांसद बने हैं। इसमें भी 11 बार कांग्रेस जीती है। 1962, 1971 व 1999 और 1977, 1980 तथा 1989 में गैर कांग्रेसी प्रत्याशी को जीत हासिल हुई थी। 

वहीं बीजेपी, भाजपा ने पूर्व सांसद अरविंद शर्मा को मैदान में उतारा है जो कि प्रधानमंत्री मोदी की छवि को सामने रखकर वोट मांग रहे है। भाजपा का इस लोकसभा क्षेत्र को आगामी विधानसभा को ध्यान में रख कर चुनाव लड़ रही है अगर दीपेंद्र हुड्डा को हराने में कामयाब रही तो आगामी विधानसभा चुनावों के लिए रणनीति साफ हो जाएगी।खुद दीपेंद्र हुड्डा भी मानते हैं कि रोहतक का चुनाव राजनीतिक दिशा तय करेगा। 

जानें कौन हैं अरविंद शर्मा भाजपा प्रत्याशी अरविंद शर्मा भी 3 बार सांसद रह चुके हैं। शर्मा 1996 में सोनीपत से आजाद उम्मीदवार के तौर पर जीते। शिवसेना के प्रदेश अध्यक्ष रहे और 1999 में रोहतक से चुनाव लड़े लेकिन हार गए। कांग्रेस में शामिल हुए और करनाल से 2004 और 2009 में जीते। 2014 में भाजपा के अश्विनी चोपड़ा ने अरविंद को हरा दिया। फिर वह बीएसपी में शामिल हुए। बीएसपी ने उन्हें सीएम उम्मीदवार भी घोषित किया था। विधानसभा चुनाव में वह दो सीटों से लड़े लेकिन हार गए।

जातिवाद चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। एक नज़र देखते हैं जातिय समीकरण  को।
इस लोकसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा करीब सवा 6 लाख जाट वोटर, करीब 2 लाख 98 हजार अनुसूचित जाति के वोटर, करीब 1 लाख 70 हजार यादव वोटर, करीब 1 लाख 24 हजार ब्राह्मण वोटर और करीब 1 लाख 8 हजार पंजाबी वोटर हैं। जातिगत समीकरणों को देखते हुए ही कांग्रेस, इनेलो और जेजेपी-आप गठबंधन ने जाट प्रत्याशियों को टिकट दिया है, जबकि बीजेपी ने ब्राह्मण प्रत्याशी पर भरोसा जताया है। बीएसपी-एलएसपी गठबंधन की ओर से विश्वकर्मा जाति के प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं। 

भाजपा ने गैर जाट उम्मीदवार उतारकर इसे बड़ा हथियार बनाया है। चुप्पी साधे बैठा नॉन जाट वोटर ही इस बार निर्णायक साबित होगा। कुल 17.37 लाख वाेटाें में से करीब साढ़े 10 लाख गैर जाट वाेटर हैं। इन्हें रिझाने के लिए दाेनाें ही पार्टियां जोर लगा रही हैं।

इनेलाे और जेजेपी से भी जाट उम्मीदवारों के खड़े होने से दीपेंद्र हुड्डा को नुकसान हाेने का आंकलन सिरे नहीं चढ़ पाया। जाट भी जीताऊ उम्मीदवार की ओर ज्यादा झुकते दिख रहे हैं। इसका सबसे ज्यादा नुकसान इनेलो को झेलना पड़ सकता है। जेजेपी के प्रदीप देशवाल राजनीतिक पारी की अच्छी ओपनिंग के लिए प्रयास कर रहे हैं। दीपेंद्र अपनी शराफत, पिछले काम और राेहतक की चाैधर के नाम पर वोट मांग रहे हैं

इस बार लोकसभा चुनाव में प्रमुख मुद्दा नरेंद्र मोदी बनाम दीपेंद्र हुड्डा बन गया है। जबकि शर्मा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर जनता के बीच हैं, वहीं दीपेंद्र, कांग्रेस सरकार के समय पर हुए विकास कार्यों के नाम पर वोट मांग रहे हैं। अरविंद शर्मा को पीएम मोदी, सीएम, दंगों के दर्द और ग्रुप डी की भर्तियों का सहारा है। शर्मा के सामने बड़ी चुनाैती भितरघात से निपटना भी है। कई नेता उनकाे टिकट देने से खफा थे तो कुछ प्रचार से दूरी बनाए हैं।

इसके अलावा जननायक जनता पार्टी-आप गठबंधन ने छात्र नेता प्रदीप देशवाल और इनेलो ने धर्मवीर फौजी को प्रत्याशी बनाया है। बीएसपी-एलएसपी गठबंधन से किशन सिंह पांचाल मैदान में हैं। 

प्रधानमंत्री की अक्षय वार्ता

प्रधानमंत्री आवास 7 लोक कल्याण मार्ग पर हुई इस बातचीत में अक्षय कुमार ने पीएम मोदी की जिंदगी से जुड़े कई पहलुओं पर चर्चा की.

  • अक्षय कुमार ने पूछा सर्दी-जुकाम का इलाज, PM मोदी ने बताया रामबाण नुस्खा
  • अक्षय कुमार ही नहीं बराक ओबामा भी पूछ चुके हैं पीएम मोदी से यह सवाल
  • अक्षय कुमार ने पीएम से पूछा उनका बैंक बैलेंस, मिला यह चौंकाने वाला जवाब…
  • PM मोदी की चाह थी संन्यासी बनूं या सोल्जर और कैसे भटकते-भटकते प्रधानमंत्री बन गए
  • पीएम मोदी ने बताया बॉलीवुड के कौन से नगमें आज भी उन्हें अच्छे लगते हैं
  • ट्विंकल खन्ना के ट्वीट्स पढ़ते हैं पीएम मोदी! अक्षय से बोले- ‘आपका झगड़ा नहीं होता होगा’

नई दिल्लीः अभिनेता अक्षय कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बुधवार को ‘‘निष्पक्ष और पूरी तरह से गैर राजनीतिक’’ बातचीत की. प्रधानमंत्री आवास 7 लोक कल्याण मार्ग पर हुई इस बातचीत में अक्षय कुमार ने पीएम मोदी की जिंदगी से जुड़े कई पहलुओं पर चर्चा की. पीएम मोदी ने इस बातचीत में अपने परिवार, खान-पान और हंसी-मजाक से जुड़े किस्से साझा किए.  

अक्षयः इंटरव्यू की शुरुआत में अक्षय ने अपने ड्राइवर की बेटी का सवाल पीएम मोदी से पूछा, क्या आप आम खाते हैं

पीएमः पीएम मोदी ने कहा कि मैं आम खाता हूं, जब छोटा था तब मैं खेत में जाकर आम खाने चला जाता था. मुझे आम के पेड़ पर पके हुए आम खाना ज्यादा पसंद था. जैसे जैसे समय आगे बढ़ा आम रस खाने की आदत लगी. लेकिन अभी कंट्रोल करना पड़ता है. 

अक्षयः कभी आपने सोचा था कि आप प्रधानमंत्री बनेंगे?

पीएमः कभी ऐसा विचार नहीं आया कि मैं कभी पीएम बनूंगा. अगर मेरी कहीं नौकरी लग जाती तो मेरी मां पूरे गांव में गुड़ बांट देती.

अक्षयः क्या आप संन्यासी बनना चाहते थे, आप सेना में भर्ती होना चाहते थे

पीएमः 1962 की लड़ाई के दौरान मेहसाणा स्टेशन पर जब जवान जाते थे तो मैं भी चला जाता था. मन को खुशी होती थी. गुजरात में सैनिक स्कूल के बारे में जानना और उसमें भर्ती होने की मेरी इच्छा थी. हमारे मोहल्ले में एक प्रिंसिपल रहते थे. मैं उनके पास चला गया. मैं कभी भी बड़े आदमी से मिलने से पहरेज नहीं करता था. मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं पीएम बनूंगा.

अक्षयःआपको कभी गुस्सा आता है, किस पर और कैसे निकालते हो?

पीएमः कभी कोई कहेगा कि मुझे गुस्सा नहीं आता है तो बहुत लोगों को हैरानी होगी. आप अच्छी चीजों पर जोर दें जिससे नकारात्मक चीजें अपने आप रुक जाएंगी. चपरासी से लेकर प्रिंसिपल सचिव तक पर मुझे गुस्सा व्यक्त करने का अवसर नहीं आया. मैं किसी को नीचा दिखाकर काम नहीं करता हूं. मैं हैल्पिंग हैंड की तरह काम करता हूं. मेरे अंदर गुस्सा होता होगा, लेकिन मैं उसे व्यक्त करने से रोक लेता हूं.

अक्षयः आपका मन करता है कि आप अपनी मां और परिवार के साथ रहें?

पीएमः मैंने बहुत छोटी आयु में घर छोड़ दिया था. कोई मोह माया नहीं रही, अब मेरी जिंदगी ऐसी ही बन गई है. मेरी मां मुझसे कहती है कि तुम मेरे पीछे क्यों समय खराब करते हो. जब वो दिल्ली आतीं हैं तो मैं भी उनको मां को समय नहीं दे पाता हूं. यहां मां रहीं थीं लेकिन मैं फील्ड में ही लगा रहता था. मैं रात को 12 बजे आता था, तो मां को दुख होता था. यहां मां का मन नहीं लगता, वो गांव के लोगों के साथ रहती है तो अच्छा लगाता है.

अक्षयः आपकी छवि बहुत कठोर प्रशासक की है?

पीएमः ये छवि सही नहीं है. काम का अनुशासन मैं अपने जीवन में खुद लेकर आया. मैं सख्त हूं, अनुशासित हूं लेकिन कभी किसी को नीचा दिखाने का काम नहीं करता. अक्सर कोशिश करता हूं कि किसी काम को कहा तो उसमें खुद इन्वॉल्व हो जाऊं. सीखता हूं और सिखाता भी हूं और टीम बनाता चला जाता हूं. मैंने पीएम वाली छवि नहीं बनाई. दोस्ताना व्यवहार रखता हूं. कई बार अफसर झिझकते हैं तो मैं चुटकले भी सुनाता हूं.

अक्षयः विपक्षी पार्टियों में आपके दोस्त हैं?

पीएमः गुलामनबी आजाद मेरे अच्छे दोस्त हैं. जब भी मिलते हैं बहुत अच्छे से मिलते हैं. ममता बनर्जी मेरे लिए खुद कुर्ते भेजतीं है. ममता दीदी साल में एक-दो कुर्ते मुझे भेज देतीं हैं. बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना मेरे लिए बंगाली मिठाई भेज देतीं हैं.

अक्षयः आपने अपने पैसे दे दिए, प्लॉट दे दियाक्या आप सच में गुजराती हैं

पीएमः पीएम मोदी ने चुटकला सुनाया, ट्रेन में स्टेशन आने पर ऊपर की सीट पर बैठे एक शख्स ने नीचे की सीट (खिड़की) पर बैठे शख्स से पूछा कौन सा स्टेशन आया है? तभी खिड़की पर बैठे शख्स ने बाहर खड़े आदमी से पूछा, भैय्या कौन सा स्टेशन है? बाहर खड़े शख्स ने जवाब दिया, 1 रुपया दो तब बताउंगा. इतने में खिड़की पर बैठे शख्स से ऊपर बैठे व्यक्ति ने कहा कोई बात, अहमदाबाद ही होगा. 

अक्षयः अगर आपको अलादीन का चिराग मिले और तीन चीजें मांगने को कहें तो क्या मांगेगे?

पीएमः मैं सबसे पहले नई पीढ़ी को कहूंगा कि ये अलादीन पर विश्वास करना बंद करें. इससे आलस का भाव आता है. ये हमारे यहां का चिंतन नहीं है, हमारे यहां का चिंतन परिश्रम का है. 

अक्षयः आपका रिटायरमेंट प्लान क्या है?

पीएमः जिम्मेवारी ही मेरी जिंदगी है, मुझे परवाह नहीं होती है कि मुझे अपने को एंगेज करने के लिए कुछ करना पड़ेगा. मैं शरीर का कण कण और जीवन का पल पल किसी ना किसी मिशन पर ही खपाऊंगा.

अक्षयः जब आप सीएम से पीएम बने थे तब सबसे वैल्यूबल चीज यहां (पीएम हाउस में) क्या लेकर आए थे

पीएमः पीएम बनते समय मुझे ये बैनिफिट मिला है कि मैं लंबे अरसे तक सीएम रहकर आया था. मैं गुजरात का लंबे समय तक सीएम रहा. ये तजुर्बा शायद मेरे पहले के पीएम को नहीं मिला था. देवगौड़ा साहब सीएम रहे थे लेकिन बहुत अल्पकाल के लिए. लेकिन मैं बहुत लंबे समय तक सीएम रहा. ये अनुभव मैं वहां (गुजरात से) से लेकर आया जो देश के काम आ रहा है.

अक्षयः आप केवल साढ़े तीन घंटे ही सोते हैं?

पीएमः इस बारे में मेरे मित्र अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा भी चिंतित रहते थे. ओबामा जब भी मिलते हैं तो पूछते हैं, मेरी बात मानी? नींद बढ़ाई? ओबामा कहते कि तुम ऐसा क्यों करते हो? आपको नींद पूरी लेनी चाहिए.  लेकिन मैं क्या करूं. मेरे जानने वाले सारे डॉक्टर कहते कि नींद बढ़ाओ. लेकिन ये मेरे जीवन का हिस्सा बन गया है. रिटायरमेंट के बाद मैं नींद बढ़ाने पर मैं ध्यान दूंगा.

अक्षयः अगर आपको कभी जुकाम लगता है तो आप क्या करते हैं?

पीएमः बहुत साल पहले मैं कैलाश यात्रा पर पैदल गया था. सब दर्द से परेशान थे, मुझे कुछ नहीं हुआ. मुझे आयुर्वेद पर विश्वास है. जुकाम होने पर सरसों का तेल गर्म करके नाक में डाल देता हूं. ठीक हो जाता है.

अक्षयः आपका फैशन आपने खुद ने किया है या आपको किसी ने सुझाया है?

पीएमः मेरे कपड़ों को लेकर दुनिया ने अलग छवि बनाई है. मैं सीएम बना तब तक कपड़े खुद धोता था. लंबी बांह वाले कुर्ते धोने में समय लगता है, यह बैग में जगह भी लेते. इसलिए मैंने आधी बाजू के कुर्ते पहनना शुरू कर दिया. मुझे शुरू से अच्छी तरह से कपड़े पहनने का शौक रहा. मैं बर्तन में गर्म कोयला भरकर के कपड़ों को प्रेस करके पहनता था. मेरे मामा मेरे लिए कैनवास के जूते लाए वो गंदे हो जाते थे फिर मैं उन्हें ब्लैक बोर्ड पर लिखने वाले चाक से चमकाता था. 

अक्षयः उल्टी घड़ी पहनने के पीछे का क्या कारण है?

पीएमः ये मैं इसलिए पहनता हूं ताकि समय देखूं तो किसी को पता ना चले, कहीं उसे बुरा ना लग जाए. मैं मीटिंग में होता हूं, समय देखते वक्त किसी को पता ना चले इसके लिए चोरी छिपे समय देख लेता हूं.

अक्षयः क्या आप अपने वेतन में से कुछ अपनी माता जी को भेजते हैं?

पीएमः मेरी मां आज भी मेरे हाथ पर कुछ ना कुछ रख देती है, मां मुझे आज भी एक सवा रुपया देतीं हैं. मेरी मां को कोई जरूरत नहीं है मुझसे कुछ लेने की. सीएम रहते हुए भी मेरे परिवार ने कोई बेनिफिट नहीं लिया.

अक्षयः आपने बचपन में कौन सा खेल खेला है?

पीएमः मुझे टीम गेम पसंद है, ये आपके व्यक्तित्व को अलग से डेवलप करता है. टीम वाले खेल जिंदगी जीना सिखाते हैं. हम सभी को ग्रुप वाले खेल खेलना चाहिए. मैंने गुल्ली डंडा भी खेला. ज्यादातर मैं तैरने के लिए चला जाता था. पहले तालाब में ही पानी आता था, मैं कपड़े धोने वहां जाता था. मेरा बॉडी डेवलप्मेंट स्वीमिंग से हुआ है. 

अक्षयः क्या मेरे पीएम यूएन में अपनी पहली स्पीच के समय नर्वस थे?

पीएमः यूएन में स्पीच से पहले मैं नर्वस बिल्कुल नहीं था. मेरी बातों के आधार पर भाषण लिखा गया था. 

अक्षयः क्या फिल्म देखते हैं? कौन सी फिल्म आखिरी देखी?

पीएमः जब सीएम था तब अमिताभ बच्चन के साथ ‘पा’ फिल्म देखी. सीएम था तभी अनुपम जी के साथ आतंकवाद पर बनी फिल्म  ‘A Wednesday’ देखी. मैंने पीएम बनने के बाद कोई फिल्म नहीं देखी. मैंने स्वच्छता अभियान पर बनी फिल्म ‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’ देखने के लिए काफी लोगों को कहा. लेकिन मैं खुद ये फिल्म देख नहीं पाया. इस फिल्म की कई लोगों से तारीफ भी सुनी.

अक्षयः क्या आप सोशल मीडिया पर एक्टिव रहते हैं? आप देखते हैं कि आजकल क्या चल रहा है

पीएमः मैं सोशल मिडिया जरूर देखता हूं इससे मुझे बाहर क्या चल रहा है इसकी जानकारी मिलती है। मैं आपका भी और टविंकल खन्ना जी का भी ट्विटर देखता हूं और जिस तरह वो मुझ पर गुस्सा निकालती हैं तो मैं समझता हूं की इससे आपके परिवार में बहुत शांति रहती होगी. 

अक्षयः आप में और मुझमें एक समानता है, आप चाय बेचते थे और मैं वेटर था, हम दोनों का कोई गॉडफादर नहीं था.

पीएमः जब मैं चाय बेचता था तो मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला. मैं जब चाय बेचता था तो मेरे गांव में ट्रेन तो बहुत कम आती थी लेकिन मालगाड़ी ज्यादा आती थी. मालगाड़ी में दूधवाले होते थे उनसे बातें करते करते मैं हिंदी सीख गया. शाम को वो भजन करते थे, उन्होंने मुझसे नॉर्थ इंडिया के कल्चर से मिलवा दिया.

बता दें कि एक दिन पहले अक्षय (51) ने ट्वीट कर बताया था कि वह कुछ ‘‘अनोखा करने जा रहे हैं, जो उन्होंने पहले कभी नहीं किया.’’ अभिनेता ने ट्वीट कर बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी बातचीत चुनाव के समय में ‘‘सुकून भरा माहौल’’ देगी. कुमार ने माइक्रोब्लॉगिंग साइट पर लिखा था, ‘‘देश में जहां हर ओर चुनाव और राजनीति की बात हो रही है, यहां आप चैन की सांस ले सकेंगे. हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ निष्पक्ष और पूरी तरह गैर राजनीतिक बातचीत करने का अवसर पाकर मैं गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं.’’  ज़ी मीडिया से साभार