15 से अधिक मुस्लिम देश भारत से नाराज़
पाकिस्तान का सर्वोच्च सम्मान निशान-ए-पाकिस्तान पाने वाले ओमान के ग्रैंड मुफ्ती शेख अहमद बिन हमाद अल खलीली ने भाजपा के खिलाफ मुहिम की शुरुआत की। ग्रैंड मुफ्ती ने ट्वीट किया कि भारत की सत्तारूढ़ पार्टी के प्रवक्ता ने इस्लाम के दूत के खिलाफ एक ढीठ और अपमानजनक टिप्पणी की है। ये एक ऐसा मामला है जिसके खिलाफ दुनिया भर के मुस्लिमों को एक साथ आना चाहिए। ग्रैंड मुफ्ती ने भारतीय उत्पादों के बहिष्कार का भी आह्वान किया, वहीं कई ट्विटर हैंडल ने सभी भारतीय निवेश को अपने कब्जे में लेने और भारतीयों की छंटनी करने का आग्रह किया।
- पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ टिप्पणी पर बीजेपी ने नूपुर शर्मा को सस्पेंड कर दिया है
- ओमान के ग्रैंड मुफ्ती ने बीजेपी के खिलाफ ट्विटर पर मुहिम चलाई थी
- ग्रैंड मुफ्ती के बयान के बाद पाकिस्तान के ट्विटर हैंडल से भारत का खाड़ी देशों में विरोध हुआ
राजविरेन्द्र वसिष्ठ, डेमोक्रेटिक फ्रंट, चंडीगढ़/नयी दिल्ली :
बीजेपी से निलंबित प्रवक्ता नूपुर शर्मा द्वारा पैगंबर मोहम्मद पर दिए विवादित बयान से दुनियाभर में हंगामा मचा हुआ है। खाड़ी देश भी इस मामले में भारत से खफा नजर आ रहे हैं। इस बीच इस पूरे विवाद पर पाकिस्तान की साजिश का खुलासा हुआ है। पाकिस्तान ने इस मुद्दे पर नूपुर शर्मा के खिलाफ सोशल मीडिया पर कैंपेन चलाया और हैशटैग ट्रेंड कराया था। इतना ही नहीं खाड़ी देशों को भी भड़काया। पाकिस्तान ने बड़ी संख्या में फॉलोअर्स से ट्वीट कराए और लोगों को भारत के खिलाफ भड़काया। पाकिस्तान की साजिश गल्फ देशों से भारत के अच्छे संबंधों को खराब करने की है। वह चाहता है कि खाड़ी देश भारत के खिलाफ खड़े हों। इसलिए उसने नूपुर शर्मा से जुड़े हैशटैग को सोशल मीडिया पर ट्रेंड कराया।
पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ आपत्तिजनक बयान पर खाड़ी देशों से उठे विरोध के बाद बीजेपी एक्शन मोड में नजर आ रही है। पार्टी ने अपने दो प्रवक्ताओं नूपुर शर्मा और नवीन कुमार पर एक्शन लेकर कड़ा संदेश देने की कोशिश की और उसके बाद ऐसे नेताओं की लिस्ट तैयार करके उन्हें विवादास्पद बयानों से दूर रहने की हिदायत भी दे डाली।
इधर, इस मामले में आतंकी संगठन अल कायदा ने भी भारत को धमकी दी है। संगठन ने चिट्ठी जारी की है जिसमें दिल्ली, महाराष्ट्र, यूपी और गुजरात में आत्मघाती हमले की धमकी दी गई है।
इस मुद्दे पर पहले 57 मुस्लिम देशों के संगठन इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) ने विरोध जताया और इसके बाद कुछ अरब देशों ने भारतीय उत्पादों का बहिष्कार शुरू कर दिया। इसके साथ ही ईरान, इराक, कुवैत, कतर, सऊदी अरब, ओमान, यूएई, जॉर्डन, अफगानिस्तान, बहरीन, मालदीव, लीबिया, इंडोनेशिया, तुर्की, मलेशिया और पाकिस्तान ने भी बयान का विरोध किया है।
भारत और Middle-East के बीच रिश्ते सिर्फ इतिहास और संस्कृति में ही नहीं बल्कि व्यापार और वाणिज्य से भी आ चुके हैं। कई सालों से इन देशों के साथ व्यापार कर रहा है और भारत के विदेशी व्यापार में इन देशों का बड़ा हिस्सा है। . वही तेल के मामले में तो भारत इन देशों पर ही निर्भर है। इसके अलावा इन देशों में बड़ी संख्या भारतीय रह रहे हैं जिस. इन देशों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। बता दें कि खाड़ी देशों में कई बड़े रिटेल स्टोर और रेस्टोरेंट के मालिक भी भारतीय हैं। ऐसे में अगर भारतीय सामान और बिजनेस का विरोध होता है तो उन लोगों के लिए मुश्किल हो सकती है।
भारत और कुछ अरब देशों के संबंधों के बीच आए खटास ने एक साथ कई सवाल खड़े कर दिए हैं। देश के सत्ताधारी दल की पार्टी प्रवक्ता के द्वारा पैगंबर मोहम्मद पर दिए गए बयान के बाद कई अरब देशों में इस बात का विरोध शुरू हो गया और गंभीरता यहां तक पहुंच गई कि तीन अरब देशों ने भारतीय राजदूत को तलब कर स्पष्टीकरण मांगना शुरू कर दिया कि पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ बयान क्यों दिया गया और यह कहां तक उचित है।
इस्लामिक देशों में यह मुद्दा तेजी से बढ़ रहा है। ओआइसी की ओर से जारी बयान में ताजा विवाद को इस्लाम के विरुद्ध भारत में बढ़ती नफरत का हिस्सा बताया गया है। वहीं भारत की ओर से जारी बयान में कहा गया है, ‘हमने आर्गेनाइजेशन आफ इस्लामिक कोआपरेशन (ओआइसी) प्रमुख की ओर से भारत को लेकर दिए गए बयान को देखा। भारत सरकार ओआइसी प्रमुख के गैर-जरूरी और संकुचित मानसिकता वाले बयान को पूरी तरह खारिज करती है।’ ‘भारत सरकार सभी धर्मो का सम्मान करती है।’ ‘धार्मिक शख्सियत के लिए अपमानजनक ट्वीट और कमेंट व्यक्ति विशेष द्वारा किए गए हैं। ये किसी भी तरह से भारत सरकार के विचारों को नहीं दर्शाते। इन लोगों के विरुद्ध पहले ही कड़ी कार्रवाई की गई है।’ भारतीय विदेश मंत्रलय की ओर से जारी आधिकारिक बयान में भी ओआइसी प्रमुख के बयान को दुर्भाग्यपूर्ण बताया गया है और इसे विभाजनकारी एजेंडे को सामने लाना वाला कहा गया है। वहीं दूसरी तरफ हिंदू देवी देवताओं के अश्लील पेंटिंग बनाने वाले पेंटर एमएफ हुसैन को अपनी नागरिकता देने वाले देश कतर का भी ट्विटर पर विरोध तेज हो गया है।
यहां हमें यह समझने की जरूरत है कि जब भी हम लोग भारत की विदेश नीति पढ़ते हैं तो कहते हैं कि भारत की विदेश नीति को निर्धारित करने में घरेलू कारकों की भी भूमिका होती है। खासकर दलीय राजनीति, जनमत और मीडिया से भारत की विदेश नीति बहुत प्रभावित होती है। अब मीडिया पर हुई बहस ने ही भारत अरब संबंधों को प्रभावित कर दिया। ऐसा इसलिए, क्योंकि भारत में सत्ताधारी दल की प्रवक्ता नुपुर शर्मा द्वारा पैगंबर मोहम्मद पर दिए गए आपत्तिजनक बयान के बाद अरब देशों में भारतीय वस्तुओं के बहिष्कार का मुद्दा ट्विटर पर ट्रेंड करने लगा। इस्लामिक देशों में यह विरोध कहां तक जायज है कि अगर इसकी बात करें तो हमें निष्कर्ष यह मिलेगा कि विश्व के सभी धर्मो के लोगों ने अपने सर्वोच्च धर्म गुरुओं, महापुरुषों को उनके आचरण से जुड़ी सीमा में नहीं बांधा, बल्कि एक अनन्य धार्मिक आस्था के भाव से संचालित होते रहे।
समस्या यह है कि आज इंटरनेट मीडिया की बहसों में अलग अलग धर्मो के महापुरुषों के आचरणों पर अनुसंधान का कार्य बढ़ गया है, बल्कि इस बात में कोई संशय नहीं कि अलग अलग राजनीतिक दलों के पार्टी प्रवक्ताओं ने भावावेश और आक्रोश में आकर ऐसा बयान देना सीख लिया है जिसके प्रभाव क्या पड़ेंगे, उस पर विचार नहीं किया जाता। देश में मीडिया में अपने विचार और अभिव्यक्ति की आजादी को आगे रखकर लोग बातें रखते हैं, लेकिन धार्मिक आस्थाओं को आहत करने का काम तो कहीं से औचित्यपूर्ण नहीं है, फिर चाहे वह हंिदूू धर्म हो, इस्लाम हो या ईसाई।
आज इस बात पर चर्चा इसलिए जरूरी है, क्योंकि यह पहला अवसर नहीं है जब टीवी चैनल या इंटरनेट मीडिया की पोस्टों ने भारत की विदेश नीति और उसके राजनय को असुविधाजनक स्थिति में डाल दिया है, बल्कि इसके पहले भी ट्विटर पर भारतीयों की बयानबाजी ने खाड़ी देशों में भारत के विरोध में प्रदर्शन को बढ़ाया था। वर्ष 2015-16 में भारत और नेपाल संबंधों को इंटरनेट मीडिया के तमाम पोस्ट बुरी तरह प्रभावित कर चुके हैं। इसलिए इस मामले में इंटरनेट मीडिया को भी अपनी भूमिका में सुधार करना पड़ेगा।
अब सवाल यह उठता है कि क्या कोई पार्टी प्रवक्ता टीवी की बहस में किसी की आलोचना नहीं कर सकता, किसी धर्म विशेष में व्याप्त किसी बुराई के खात्मे या सुधार की बात नहीं कर सकता? तो इसका जवाब है बिल्कुल कर सकता है, लेकिन उसे इस बात का बिल्कुल हक नहीं है कि वह किसी धर्म के धर्म गुरु की नैतिकता पर ही सवाल खड़े कर दे, क्योंकि ऐसा करने से उसे कुछ हासिल नहीं होगा। इसके विपरीत इसका दुष्परिणाम यह हो सकता है कि ये भड़काऊ बात की श्रेणी में आ जाएगा और देश-विदेश में भारत की बहुलतावादी संस्कृति पर दाग लगेगा। शायद यही कारण है कि सत्ताधारी दल भाजपा ने अपने प्रवक्ता पर कार्रवाई की है।
अब प्रश्न यह उठता है कि राजनीतिक दलों के प्रवक्ताओं द्वारा धर्म विशेष पर भावावेश में की जाने वाली टिप्पणी से विदेश संबंध क्यों प्रभावित हो। यहां देखा यह भी जा रहा है कि एक बड़ा वर्ग भाजपा द्वारा इस प्रकरण पर दिए गए आधिकारिक वक्तव्य को सही और तर्कसंगत मान रहा है जिसमें सर्वधर्म समभाव में आस्था और किसी भी धर्म के गुरुओं के अपमान को न सहने की बात की गई है। निश्चित रूप से भाजपा के इस दृष्टिकोण को गलत सिद्ध करने का कोई तुक नहीं बनता, क्योंकि जो लोग इस मसले पर सत्ताधारी दल का विरोध कर रहे हैं, उन्हें राष्ट्रवादी से आगे राष्ट्रीय हितवादी बनने की जरूरत है और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भारत की स्थिति पर भी थोड़ा विचार करना चाहिए। खाड़ी देश सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, ओमान, कुवैत और कतर से भारत के द्विपक्षीय संबंध आर्थिक दृष्टि से काफी मजबूत रहे हैं। खाड़ी सहयोग संगठन भारत के सबसे बड़े क्षेत्रीय व्यापार साङोदार में से है। संयुक्त अरब अमीरात के साथ हमने अभी कुछ ही समय पहले मुक्त व्यापार समझौता किया है और 50 अरब डालर के द्विपक्षीय व्यापार के लक्ष्य को तय किया है। इसके अलावा भारत की सबसे अधिक कामकाजी आबादी खाड़ी देशों में रहती है जो भारत को 70 से 80 अरब डालर के बीच रकम हर साल भेजती है। इस लिहाज से अरब वर्ल्ड, खाड़ी देशों का भारत विरोध हमारे व्यावसायिक हितों के लिहाज से अच्छा नहीं है।
अरब देशों की तरफ हम कश्मीर मसले से लेकर पाकिस्तान को काउंटर करने के मसले पर समर्थन की अपेक्षा करते हैं। हम ओआइसी की भारत विरोधी बयानों को बेअसर कराने के लिए अरब वल्र्ड की तरफ देखते रहे हैं। अब केवल ट्विटर और फेसबुक पर सक्रिय राष्ट्रवादी ये कहें कि ये अरब वल्र्ड कौन होता है जिसके सामने भारत ने सरेंडर कर दिया है, या जो लोग पार्टी प्रवक्ता की सदस्यता निलंबन के प्रकरण को भाजपा का कायरतापूर्ण निर्णय कह रहे हैं, वही देश के कंपोजिट कल्चर, सर्वधर्म समभाव के यशगान में लगे दिखाई देते हैं।
यहां एक सीधा सवाल उठाया जा सकता है कि फ्रांस में शार्ली हेब्दो पत्रिका में पैगंबर मोहम्मद को काटरून में ट्रांसजेंडर के रूप में पेश करने को कौन उचित ठहराएगा। ये कौन सी अभिव्यक्ति की आजादी राजनीतिक दल के नेताओं या अन्य लोगों को मिली है कि वे प्रभु श्रीराम, पैगंबर मोहम्मद, ईसा मसीह आदि को चरित्र प्रमाण पत्र बांटें। वर्तमान में जो प्रकरण हुआ है उससे बड़ी सबक ये ली जानी चाहिए कि सभी राजनीतिक दलों को अपने अपने कार्यकर्ताओं को कुछ वाजिब मर्यादाओं में रहकर राष्ट्रीय हित में भी काम करने की सीख दी जानी चाहिए।
अरब देशों के साथ अच्छे संबंधों को बढ़ावा देना भारत की विदेश नीति का एक प्रमुख लक्ष्य रहा है। लेकिन खाड़ी देशों और पश्चिम एशिया के इस्लामिक देशों के साथ भारत के संबंधों में समय समय पर उतार चढ़ाव देखे गए हैं। हाल के वर्षो में भारत सरकार ने जहां खाड़ी देशों के साथ मजबूत संबंध स्थापित करने पर जोर दिया, वहीं दूसरी तरफ बीते दिनों भारत के नागरिकता संशोधन अधिनियम और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर जैसे कारणों से उपजे विरोध प्रदर्शन, दंगे और मुस्लिम अल्पसंख्यकों के हितों के प्रश्नों पर कई इस्लामिक देशों सहित खाड़ी देशों में एक असंतोष की भावना भड़काने का प्रयास किया गया जिससे कुवैत जैसे कई खाड़ी देशों ने इस्लामिक सहयोग संगठन से यह मांग तक कर दी कि भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय के संरक्षण के मामले को उसे संज्ञान में लेना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि खाड़ी सहयोग परिषद भारत का सबसे बड़ा क्षेत्रीय व्यापारिक साङोदार रहा है। वर्ष 2021-22 में दोनों के मध्य 154.73 अरब डालर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ है। इसमें भी संयुक्त अरब अमीरात के साथ 60 अरब और सऊदी अरब के साथ 34 अरब डालर का द्विपक्षीय वार्षिक व्यापार रहा है। भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए बड़े स्तर पर खाड़ी देशों पर निर्भर है।
भारत के कुल कच्चे तेल के आयात का लगभग 20 प्रतिशत सऊदी अरब से और 10 प्रतिशत ईरान से आता है। इसलिए भारत को एक साथ सऊदी अरब और ईरान से अच्छे संबंधों को बनाकर रख पाने की चुनौती रही है, क्योंकि दोनों देश एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी हैं। वहीं कतर भारत के लिए एलएनजी प्राप्ति का सबसे बड़ा स्रोत रहा है और कतर राजनीतिक संकट का प्रभाव भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर पड़ना स्वाभाविक भी है। इसलिए भारत का यह सदैव दृष्टिकोण रहा है कि खाड़ी क्षेत्र में किसी भी समस्या का राजनीतिक और शांतिपूर्ण समाधान होना चाहिए और खाड़ी देशों के मध्य विश्वास बहाली के हर संभव प्रयास किए जाने चाहिए। चूंकि खाड़ी क्षेत्र महाशक्तियों की क्षेत्रीय राजनीति की प्रयोगशाला भी रहा है, इसलिए वहां अलग अलग राष्ट्रों के समूहों की गुटबाजी को भी बढ़ावा मिलता रहा है। इसी क्रम में भारत ने ईरान से क्रूड आयल मंगाने के मुद्दे पर अमेरिका के दबाव को भी ङोला और साथ ही पूरी तरह यह भी कोशिश की कि उसे अपनी संप्रभुता से समझौता नहीं करना पड़े। भारत को ईरान और रूस के साथ व्यापारिक समझौतों के आधार पर ही अमेरिका ने जीएसपी की सूची से बाहर भी निकाल दिया था। यही ईरान और रूस या फिर चीन के संबंध और प्रभाव खाड़ी देशों में न बढ़े, अमेरिका इसकी कोशिश करता रहा है।