नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के कार्यकाल में दलितों पर जाति आधारित हिंसा एक रोजमर्रा की वास्तविकता बन गई है : अनुसूचित जाति विभाग, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी
नयी दिल्ली(ब्यूरो) मंगलवार | 10 अगस्त 2021:
अनुसूचित जाति विभाग, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी
जब से भारतीय जनता पार्टी की सरकार केंद्र में सत्ता में आई है दलितों और अन्य हाशिए पर धकेले गए समुदायों के खिलाफ अत्याचार और हिंसा के मामलों की कुल संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों ने 2019 में दलितों के खिलाफ अत्याचारों की कुल संख्या 45,935 थी जिसमें अकेले उत्तर प्रदेश के 11,829 मामले हैं – यह उत्तर प्रदेश में घटित घटनाये पूरे भारत में दलितों के खिलाफ कुल जाति अत्याचारों का 25.8% हिस्सा है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत दर्ज अनुसूचित जातियों के खिलाफ अत्याचार के मामलों में 2009 और 2018 के बीच में 281.75% की वृद्धि हुई है। यह तथ्य केवल दर्ज़ किए गए मामलों का है। अमूमन ऐसे मामलों में FIR दर्ज करने के लिए पुलिस की अनिच्छा, सरकार से समर्थन की कमी और पीड़ितों और उनके परिवार के सदस्यों के जीवन पर अपराधियों द्वारा धमकी दिए जाने के कारण जाति आधारित अत्याचार के दोगुने से अधिक मामले हर साल दर्ज ही नहीं होते हैं। दलित पीड़ितों और उनके परिवारजनों को इन कारणों से न्याय नहीं मिलता। आंध्र प्रदेश में 8 दलित युवकों का सुंदुरु हत्याकांड एक महत्वपूर्ण मामला है और 30 साल बाद भी अब तक किसी दोषी को सजा नहीं हुई।
देश भर में दलितों के लिए जाति आधारित हिंसा एक रोजमर्रा की वास्तविकता बन गई है, खासकर नरेंद्र मोदी की भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के दौरान दलित महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध बहुत ज़्यादा बढ़ गए है। हम यह बताना चाहते हैं कि हाथरस और हाल ही में दक्षिण-पश्चिमी दिल्ली के छावनी क्षेत्र में हुए अत्याचार के मामले में, जहां युवा दलित लड़कियों के साथ बलात्कार किया गया, उनकी हत्या की गई और उनका जबरन दाह संस्कार कर दिया गया, यहाँ न्याय को रोका जा रहा है। यह इस लिए हो रहा है क्योंकि सभी लोकतांत्रिक संस्थानों का महत्व ख़तम होता जा रहा है। प्रधानमंत्री का कहना है कि फास्ट ट्रैक अदालतों की स्थापना की जाएगी ताकि ऐसे मामलों में न्याय में देरी न हो लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ है। संसद में कोई बयान नहीं आया है। लेकिन वह उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को मॉडल सरकार के तौर पर सर्टिफिकेट देते रहते हैं। दिल्ली में श्मशान घाट के परिसर में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज को नष्ट कर दिया गया है। पुलिस आरोपियों को गिरफ्तार करने वाली थी लेकिन ऐसा करने के बजाय उन्होंने पीड़ित परिवार को परेशान किया। इस स्थिति के लिए सीधे तौर पर गृह मंत्री अमित शाह जिम्मेदार हैं क्योंकि दिल्ली की कानून-व्यवस्था उनके अधीन है। आरएसएस-बीजेपी और उसके अन्य संगठनों के हिंदू राष्ट्र का स्पष्ट उद्देश्य अनिवार्य रूप से पदानुक्रमित सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखना चाहता है। जाति आधारित हिंसा का उद्देश्य दलितों को अपमानित करना और एक असमान समाज की स्थापना करना है। इसलिए यह आवश्यक है कि हम इन घटनाओं से पीड़ित और अपराधी की जाति को न छुपाये क्योंकि यह उस ऐतिहासिक उत्पीड़न को मिटा देगा जिसने दलित बालिकाओं को ऐसी स्थिति में रखा हुआ है जहा घर में पीने का पानी तक नहीं होता है। सफाई कर्मचारी की मौत भी बड़े पैमाने पर हुई है और हाथ से मैला ढोने की अमानवीय प्रथा अभी भी जारी है। केजरीवाल सरकार ने इस सामाजिक खतरे से आंखें मूंद ली हैं। अपने वादों से मुकर गई इस सरकार ने महिलाओं को क्या सुरक्षा दी है इसका अंदाजा हम लगा ही सकते हैं।
मोदी सरकार अनुसूचित जाति के लोगों के कल्याण के लिए वार्षिक बजट के आवंटन में कटौती कर रही है। छात्रवृत्ति को रोका/ जानबूझकर टाला जा रहा है जिसके परिणामस्वरूप रोहित वेमुला जैसे अनुसूचित जाति के छात्रों के बीच आत्महत्या और पढ़ाई छोड़ने की दर में वृद्धि हुई है। मोदी सरकार ने २७ जुलाई २०२१ को माध्यमिक शिक्षा प्राप्त कर रही लड़कियों के लिए प्रोत्साहन की राष्ट्रीय योजना (NSIGSE) को बंद करके (जो यूपीए सरकार द्वारा शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य माध्यमिक विद्यालयों में अनुसूचित जाति की लड़कियों के नामांकन को बढ़ावा देना और ड्रॉपआउट रेट को कम करना था) यह दर्शा दिया है कि दलितों के कल्याण के बारे मोदी सरकार बिलकुल चिंतित नहीं हैं।
इन घटनाओ को ध्यान में रखते हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अनुसूचित जाति विभाग वर्तमान भाजपा सरकार द्वारा दलितों के खिलाफ बढ़ते जघन्य अत्याचारों के मुद्दे और की रक्षा के उपायों को लागू न करने पर एक विरोध सभा “हल्लाबोल” शुरू कर रही है। हम इन महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाएंगे और सीधे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से जवाब मांगेंगे। “हल्लाबोल” विरोध सभा १२ अगस्त २०२१ को सुबह १०:०० बजे से दोपहर २:०० बजे तक दिल्ली के जंतर मंतर पर होगा।
हमारा मानना है कि यह अन्याय के खिलाफ एकजुट लड़ाई है और इसमें समाज के सभी वर्गों का समर्थन अत्यंत महत्वपूर्ण है। कांग्रेस पार्टी भारतीयों की भावी पीढ़ियों के लिए समानता की दृष्टि स्थापित करने और पीड़ितों और उनके परिवारों को हर जगह समर्थन देने की दिशा में काम करना जारी रखेगी। इस विरोध में आपका समर्थन और भागीदारी भारत में समानता और सामाजिक न्याय के मूलभूत सिद्धांतों की रक्षा करेगी।