किसान आंदोलन: न जाएँगे न मानेंगे

भारतीय कृषि में बड़े पैमानें पर सुधारों की चर्चा को गति जुलाई 2004 में यूपीए (I) सरकार के दौरान मिलनी शुरू हुई. हालाँकि, मनमोहन सिंह सरकार को राष्ट्रहित के मामलों पर टालमटोल करने और उन्हें लंबित करने में महारत हासिल थी. धीरे-धीरे सरकार में भ्रष्टाचार व्याप्त हो गया और हर मुद्दे पर अलोकप्रिय होने का डर हावी होने लगा था. अतः इस सरकार ने कृषि सुधारों सहित रक्षा सौदे, आतंकवाद पर रोकथाम, आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था और विदेश नीति सम्बन्धी अनेक मामलों को लटकाए रखा. यूपीए (I) सरकार के गठन के एक महीने के अन्दर यानि 19 जुलाई, 2004 को लोकसभा में कृषि सुधारों पर एक सवाल कृषि मंत्री से पूछा गया था. इसपर तत्कालीन कृषि राज्य मंत्री कांतिलाल भूरिया ने मंडी शुल्क खत्म करने, निजी क्षेत्र द्वारा उच्च तकनीक प्रदान करना, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के लिए यूनिफाइड फूड लॉ, विदेशी खरीददारों को चिन्हित करना, और निजी क्षेत्र को निवेश के लिए प्रोत्साहित करने वाला पॉंच स्तर वाला कृषि सुधारों का एक खाका पेश कर दिया.

नयी दिल्ली(ब्यूरो):

कृषि कानूनों के मसले पर सरकार और किसानों के बीच बातचीत जारी है.सातवें दौर की बैठक में केवल एक बात पर सहमति बनी की अगली बैठक 8 जनवरी को होगी. सातवें दौर की ये चर्चा दिल्ली के विज्ञान भवन में ही हो रही है. पिछली बातचीत में सरकार बिजली बिल और पराली जलाने के मसले पर किसानों की मांग मान गई थी, लेकिन अब MSP और कृषि कानून वापसी पर दोनों पक्षों में चर्चा हो रही है.

किसानों और सरकार के बीच वार्ता से ताजा खबर ये है कि किसान संगठनों के MSP पर लिखित आश्वासन और तीनों कृषि कानूनों को वापस करने की मांग पर सरकार ने कहा एक संयुक्त कमेटी बना देते हैं वो तय करे कि इन तीनों कानूनों में क्या क्या संशोधन किए जाने चाहिए. सूत्रों के अनुसार सरकार के इस प्रस्ताव को किसान संगठनों ने खारिज कर दिया.

लंच ब्रेक के बाद किसान संगठनों के साथ सरकार के मंत्रियों की वार्ता दोबारा शुरू हो गई है. आज दोनों पक्षों के बीच आठवें दौर की वार्ता हो रही है. इससे पहले सरकार ने किसानों की मांगों पर विचार करते हुए तीनों कानूनों में संशोधन के लिए संयुक्त कमेटी गठित करने पर तैयार हो गई थी. लेकिन किसानों ने सरकार के इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया.

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