पंचकुला में अकेले पड़ते जा रहे चंद्रमोहन

सारिका तिवारी, पंचकूला 06 अक्टूबर:

पंचकूला विधानसभा से जैसे ही कांग्रेस ने चंद्रमोहन को अपने प्रत्याशी के रूप में चुनावी दंगल में उतारा तो जनता और मीडिया में तरह-तरह की अटकलें लगाई जाने लगी। कुछ स्वर तो चंद्र मोहन को भाजपा के लिए एक चुनौती कह रहे थे तो दूसरे मान रहे थे निश्चित मतदाता और दूसरे मुद्दों पर मतदान करने वाले भाजपा को ही वोट देंगे। चंद्रमोहन पंचकूला में जाना माना नाम है जिसको दोनों पहलू से जाना जाता है चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक ऐसे में एक वर्ग वह भी है जो चंद्रमोहन के इतिहास से परिचित है कुछ पार्टी की अंदरूनी ताकतें है जो अपने समर्थकों को कांग्रेस को वोट करने के लिए प्रोत्साहित ना करने के लिए अडिग है। बहुत ही जोड़-तोड़ के बाद कांग्रेस ने पंचकूला विधानसभा से चंद्रमोहन बिश्नोई को टिकिट तो दे दी लेकिन स्थानीय कांग्रेसी आपसी कलह की वजह से तटस्थ हैं।

पैराशूट की तरह चंद्र मोहन को पंचकूला से उतारा गया इसमें कोई शक नहीं कि चंद्रमोहन पहले भी पंचकूला से विधायक रह चुके हैं लेकिन अब परिस्थितियां अलग हैं उस समय पंचकूला और कालका संयुक्त विधानसभा क्षेत्र था लेकिन कालका को अब अलग चुनाव क्षेत्र बना दिया गया । पिछली परिस्थितियां देखी जाएं तो चंद्रमोहन के समर्थक कालका और ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा है सूत्रों के अनुसार पंचकूला में चंद्रमोहन इतना समर्थन जुटा नहीं कर पाएंगे जितना कोई स्थानीय प्रत्याशी कर पाता । ऐसा नहीं है कि चंद्रमोहन पंचकूला के नहीं लेकिन उनका लंबे समय तक क्षेत्र से दूर रहना और कांग्रेस छोड़ हजकां के टिकट पर नलवा से चुनाव लड़ना एक बड़ा कारण हो सकते हैं कई गुट या प्रत्याशी चुपचाप सक्रिय प्रचार से किनारा कर गए, कुछ लोग मात्र दिखावे के लिए नामांकन के दिन मीडिया के सामने दिखाई दिए और वही कुछ मुखर होकर मीडिया के माध्यम से अपना विरोध जता रहे हैं।

पार्टी के आंतरिक सूत्रों के अनुसार चंद्रमोहन स्वयं भी पंचकूला से चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे लेकिन पार्टी ने इन्हें बहुत मुश्किल से मनाया पिछले 4 दिन से चंद्रमोहन जब भी मीडिया और जनता के बीच में आ रहे हैं तो उनके हाव-भाव देखकर उत्साह नहीं झलकता । ऐसा लगता है मानो पार्टी और समर्थक उन्हें चुनाव लड़ाना चाह रहे हैं और पंचकूला का चुनाव उनके गले पड़ रहा है ।पार्टी के नेताओं का कहना है कि चंद्रमोहन उम्मीदवारी थोपी गई है उन्होंने पंचकूला टिकट के लिए दवा ही नहीं किया थ।


ऐसा नहीं है के चंद्र मोहन के आने से भाजपा पूरी तरह से परास्त हो जाएगी लेकिन ऐसा भी नहीं कि कांग्रेस प्रत्याशी भाजपा को टक्कर ना दे सके पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार जीत में मार्जन कम हो सकता है, फिर भी घटकर कितना कम हो सकता है फिलहाल पंचकूला के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों को देखा जाए तो अभी भी मोदी लहर कायम है चंद्रमोहन के नाम और चेहरे को कुछ वोट तो अवश्य मिलेंगे लेकिन गुपचुप से उनके दुश्मन उनके इतिहास को मतदाताओं के सामने दोबारा जीवंत करने के प्रयास में जुटे हैं। इंटरनेट के युग में इतिहास से विमुख होना जरा मुश्किल है।

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