अवैध बस्तियाँ रोहिङ्ग्यान या कोई और प्रशासन मौन
यह मुंबई की धारावी बस्ती के पासव भी नहीं किन्तु उत्तराखण्ड जैसे छोटे राज्य के लिए धारावी से कम भी नहीं। यह तस्वीर देहरादून की धर्मपुर विधानसभा के ब्ंजारवाला के चांदचक की है, जहा साल भर में अचानक 500 से ऊपर झोंपड़ी बन गईं, और हैरानी की बात यह है की पुलिस प्रशासन को इसकी भनक तक नहीं। शमुन आली नाम के किसान की ज़मीन पर यह बस्ती बस रही है और किराया भी शमुन आली साहब के ही जेब में जा रहा है।
जहां किरायेदार की पहचान अनिवार्य एवं न करवाना एक दंडनीय अपराध और कई मामलों में देश द्रोह भी माना जाता है वहीं शमून अली के यहाँ 500 परिवार झुग्गियाँ बना कर रह रहे हैं और पुलिस आँखें मूंदे बैठी है। सवाल खड़ा होता है की यह लोग कौन हैं और कहाँ से आए हैं? इंका प्रशासन द्वारा स्त्यान अभी तक क्यों नहीं हुआ? स्थानीय लोगों में भाय का माहौल व्यापत है। यह लोग कूड़ा बीनने, कबाड़ी का या अन्य छोटे मोटे काम कर रहे हैं, पर बिना पहचान के बिना सत्यापन के इनका यहाँ होना सुरक्षा की दृष्टि से बहुत बड़ा खतरा मुफ्त में लेने वाली बात है।
इन लोगों का कहना है की उन्हे नगर निगम की मंजूरी मिली है जबकि ज़मीन शमून अली की है और किराया भी वही ले रहे हैं। यहा रहने वाले लोगों के पास अपना कोई पहचान पत्र भी नहीं है जिससे यह पुष्टि हो सके की यह लोग भारत के नागरिक हैं भी या नहीं। सीमांत प्रदेश उत्तराखंड में इस प्रकार की बस्ती का उभरना आने वाले समय में सामरिक राजनैतिक और सामाजिक खतरों की बानगी हो सकते हैं। इस बस्ती में आनेवालों की संख्या में दिनोंदिन हो रही बढ़ौतरी कई प्र्शन उठा रही है।
- इन्हे यहाँ किसकी शह पर बसाया जा रहा है?
- इस बारे में प्रशासन, पुलिस और एलआईयू तक को कोई जान कारी क्यों नहीं है?
सीमांत प्रदेश उत्तराखंड में इस प्रकार की घुसपैठ आने वाले समय में कोई बड़े खतरे का रूप ले इसके पहले सरकार को कोई ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है
देखना है की सरकार आने वाले समय में क्या ठोस कदम उठाती है।
साभार गिरिराज उनियाल
Leave a Reply
Want to join the discussion?Feel free to contribute!