षटतिला व्रत तिथि, महत्व, कथा और विधि

षटतिला एकादशी (Shattila Ekadashi) हिंदू धर्म में बेहद ही खास मानी जाती है. मान्यता है कि इस एकादशी (Ekadashi) का व्रत और दान करने से सारी मनोकामना पूर्ण होती हैं. षटतिला एकादशी (Shattila Ekadashi) के दिन भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की खास पूजा-अर्चना की जाती है. इस एकादशी (Ekadashi) में तिल का भी बेहद खास महत्व है. पूजा से लेकर दान करने और हवन करने तक, हर चीज़ में तिल का इस्तेमाल किया जाता है. यहां जानिए षटतिला एकादशी (Shattila Ekadashi) का महत्व, व्रत कथा, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त के बारे में.

षटतिला एकादशी कब है?
हर साल की तरह इस बार भी षटतिला एकादशी जनवरी महीने में है. हिंदु कैलेंडर के मुताबिक कुष्ण पक्ष की एकादशी को है. वहीं, अंग्रेज़ी कैलेंडर के मुताबिक षटतिला एकादशी 31 जनवरी, 2019 को है.   

षटतिला एकादशी का महत्‍व
षटतिला एकादशी के दिन दान पुण्य करने का खास महत्व है, खासकर तिल का. इस एकादशी का व्रत रखने वाले अपनी दिनचर्या में तिल को हर तरीके से इस्तेमाल करते हैं. वो तिल के तेल से नहाते हैं, तिल को पूजा में इस्तेमाल करते हैं. तिल की या फिर तिल से बनी मिठाई का दान भी करते हैं. 

षटतिला की तिथि और मुहूर्त 
एकादशी तिथि प्रारम्भ: 30 जनवरी 2019 को दोपहर 03 बजकर 33 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त: 31 जनवरी 2019 को शाम 05 बजकर 02 मिनट तक
पारण (व्रत तोड़ने का) की तिथि: 01 फरवरी 2019 को सुबह 07 बजकर 11 मिनट से सुबह 09 बजकर 23 मिनट तक
पारण तिथि समाप्‍त: 01 फरवरी 2019 को शाम 06 बजकर 59 मिनट. 

षटतिला एकादशी की पूजन सामग्री 
षटतिला एकादशी के एक दिन पहले ही पूजन सामग्री एकत्रित कर लें. पूजन सामग्री इस प्रकार है- फूल, फूलों की माला, नारियल, सुपारी, अनार, आंवला, लौंग, बेर, धूप, दीपक, घी, पंचामृत (कच्‍चे दूध, दही, घी, चीनी और शहद का मिश्रण), अक्षत, कुमकुम, लाल चंदन, तिल से बने हुए मिष्‍ठान, तिल और कपास मिश्रित गोबर की 108 पिंडीका. 

षटतिला एकादशी का व्रत कैसे करें, जानिए पूजन विधि 
– षटतिला एकादशी के दिन स्‍नान करने के बाद स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें. 
– अपनी सभी इंद्रियों को वश में कर काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्‍या और द्वेष का त्‍याग कर श्री हरि विष्‍णु का स्‍मरण करें. 
– अब घर के मंदिर में श्री हरि विष्‍णु की मूर्ति या फोटो के सामने दीपक जलाकर व्रत का संकल्‍प लें.
– भगवान विष्‍णु की प्रतिमा या फोटो को स्‍नान कराएं और वस्‍त्र पहनाएं. 
– अब भगवान विष्‍णु को नैवेद्य और फलों का भोग लगाएं. 
– इसके बाद विष्‍णु को धूप-दीप दिखाकर विधिवत् पूजा-अर्चना करें और आरती उतारें. 
– पूरे दिन निराहार रहें. शाम के समय कथा सुनने के बाद फलाहार करें और रात में जागरण करें.
– षटतिला एकादशी के दिन पुष्य नक्षत्र में गोबर, कपास, तिल मिलाकर उनके कंडे या पिंड‍िका बनानी चाहिए. उन कंडों से 108 बार हवन करें.
– दूसरे दिन भगवान विष्‍णु का का पूजन करने के बाद उन्‍हें खिचड़ी का भोग लगाए. 
– फिर पेठा, नारियल या सुपारी का अर्घ्‍य देते हुए कहें- “हे भगवान! आप दीनों को शरण देने वाले हैं, इस संसार सागर में फंसे हुओं का उद्धार करने वाले हैं. हे पुंडरीकाक्ष! हे विश्वभावन! हे सुब्रह्मण्य! हे पूर्वज! हे जगत्पते! आप लक्ष्मीजी सहित इस तुच्छ अर्घ्य को ग्रहण करें.”
– इसके बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं. भोजन में तिल से बने खाद्य पदार्थों को जरूर शामिल करें. उसे जल से भरा घड़ा दान में दें. ब्राह्मण को श्यामा गौ और तिल पात्र देना भी अच्‍छा माना जाता है.
– मान्‍यता है कि जो जितने तिलों का दान करता है, उतने ही हजार वर्ष स्वर्ग में वास करता है. 

तिल का महत्‍व 
षटतिला एकादशी में तिल का विशेष महत्‍व है. तिल का प्रयोग ही इस एकादशी को अन्‍य एकादशियों से पृथक करता है. इस दिन छह तरीकों से तिल का इस्‍तेमाल किया जाता है:  1- तिल स्नान 2- तिल का उबटन 3- तिल का हवन 4- तिल का तर्पण 5- तिल का भोजन 6- तिल का दान. छह तरीकों से तिल के प्रयोग के कारण ही इसे षटतिला एकादशी कहा जाता है. इस व्रत रखने वालों के अलावा सभी को लोगों कुछ इस तरह छह तरीकों से तिल का इस्‍तेमाल करना चाहिए: 
तिल का पहला प्रयोग: स्‍नान के पानी में तिल का प्रयोग करें और पीले कपड़े पहनें. 
तिल का दूसरा प्रयोग: तिल का उबटन लगाएं. 
तिल का तीसरा प्रयोग: पूर्व दिशा की ओर बैठ जाएं. फिर पांच मुट्ठी तिल लेकर 108 बार “ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र” का जाप करें.
तिल का चौथा प्रयोग: दक्षिण दिशा की ओर खड़े होकर पितरों को तिल का तर्पण दें. 
तिल का पांचवां प्रयोग: एकादशी के दूसरे दिन यानी कि द्वादश को ब्राह्मणों को तिल युक्‍त फलाहारी भोजन कराना चाहिए. 
तिल का छठा प्रयोग: दूसरे दिन ब्राह्मणों को तिल का दान दें. मान्‍यता है कि इस दिन जो जितना अधिक तिल का दान करेगा उसे स्‍वर्ग में रहने का उतना ही अवसर मिलेगा. 

षटतिला एकादशी व्रत के नियम
– जो लोग षटतिला एकादशी का व्रत करना चाहते हैं उन्‍हें एक दिन पहले यानी कि दशमी के दिन से व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए. 
– दशमी के दिन सूर्यास्‍त के बाद भोजन ग्रहण न करें और रात में सोने से पहले भगवान विष्‍णु का ध्‍यान करें. 
 व्रत के दिन पानी में गंगाजल और तिल डालकर स्‍नान करना चाहिए. 
– दशमी और एकादशी के दिन मांस, लहसुन, प्‍याज, मसूर की दाल का सेवन वर्जित है. 
 रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा भोग-विलास से दूर रहना चाहिए.
– एकादशी के दिन गाजर, शलजम, गोभी और पालक का सेवन न करें.

षटतिला एकादशी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार नारदजी ने भगवान श्रीविष्णु से षटतिला एकादशी कथा के बारे में पूछा.  भगवान ने नारदजी से कहा, “हे नारद! मैं तुमसे सत्य घटना कहता हूं. ध्यानपूर्वक सुनो. प्राचीन काल में मृत्युलोक में एक ब्राह्मणी रहती थी. वह सदैव व्रत किया करती थी. एक समय वह एक मास तक व्रत करती रही. इससे उसका शरीर अत्यंत दुर्बल हो गया. वो ब्राह्नणी कभी अन्न दान नहीं करती थी एक दिन भगवान विष्णु खुद उस ब्राह्मणी के पास भिक्षा मांगने पहुंचे.  

वह ब्राह्मणी बोली, “महाराज किसलिए आए हो?” मैंने कहा- “मुझे भिक्षा चाहिए.” इस पर उसने एक मिट्टी का ढेला मेरे भिक्षापात्र में डाल दिया. मैं उसे लेकर स्वर्ग में लौट आया. 
 
कुछ समय बाद ब्राह्मणी भी शरीर त्याग कर स्वर्ग में आ गई. उस ब्राह्मणी को मिट्टी का दान करने से स्वर्ग में सुंदर महल मिला, परंतु उसने अपने घर को अन्नादि सब सामग्रियों से शून्य पाया. घबरा कर वह मेरे पास आई और कहने लगी, “भगवन् मैंने अनेक व्रत आदि से आपकी पूजा की, परंतु फिर भी मेरा घर अन्नादि सब वस्तुओं से शून्य है. इसका क्या कारण है?” 
 
इस पर मैंने कहा, “पहले तुम अपने घर जाओ. देवस्त्रियां आएंगी तुम्हें देखने के लिए. पहले उनसे षटतिला एकादशी का पुण्य और विधि सुन लो, तब द्वार खोलना.” मेरे ऐसे वचन सुनकर वह अपने घर गई. जब देवस्त्रियां आईं और द्वार खोलने को कहा तो ब्राह्मणी बोली- “आप मुझे देखने आई हैं तो षटतिला एकादशी का माहात्म्य मुझसे कहो.”
 
उनमें से एक देवस्त्री कहने लगी, “मैं कहती हूं.” जब ब्राह्मणी ने षटतिला एकादशी का माहात्म्य सुना तब द्वार खोल दिया. देवांगनाओं ने उसको देखा कि न तो वह गांधर्वी है और न आसुरी है वरन पहले जैसी मानुषी है. उस ब्राह्मणी ने उनके कथनानुसार षटतिला एकादशी का व्रत किया. इसके प्रभाव से वह सुंदर और रूपवती हो गई तथा उसका घर अन्नादि समस्त सामग्रियों से युक्त हो गया.
 
अत: मनुष्यों को मूर्खता त्याग कर षटतिला एकादशी का व्रत और लोभ न करके तिलादि का दान करना चाहिए. इससे दुर्भाग्य, दरिद्रता तथा अनेक प्रकार के कष्ट दूर होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है.

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