खुले में नमाज़ – एक विश्लेषण
वाइज़ शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर, या वोह जगह दिखा दे जहां पर खुदा ना हो
उत्तर प्रदेश के जिला नोएडा में एक पार्क में नमाज़ पढ़ने पर लोगों ने आपत्ति जगाई थी। नोएडा पुलिस ने नोटिस जारी कर इस पर रोक लगा दी थी। देश का एक बुद्धिजीवी वर्ग इसे धार्मिक असहनशीलता की नज़र से देखने लगा है। सोशल मीडिया पर इसे भड़काने की कोशिश हो रही है। यह विश्लेषण किसी एक धर्म या नमाज़ को ले कर नहीं बल्कि उस सोच पर है जिसके तहत लोग सड़कों पर प्रदर्शन करते हैं। धार्मिक भावनाओं की जगह अपने दिल में ओर अपने घर में होनी चाहिए, सड़कों या पार्कों में नहीं। किसी भी ऐसे कार्यक्र्म को जिससे लोगों को परेशानी हो, धार्मिक नहीं माना जा सकता है। धार्मिक कार्यक्रमों के लिए लाउडस्पीकर का प्रयोग ख़त्म कर देना चाहिए। इससे लोगों को परेशानी होती है और ध्वनि प्रदूषण भी फैलता है। लाउडस्पीकर का प्रयोग तो मद्धम आवाज़ में और जन कल्याण की घोषणाओं इत्यादि के लिए ही होना चाहिए।
विडम्बना यह है की हमारे देश में अल्पसंख्यकों के हितों की बातें करने को धर्मनिरपेक्षता माना जाता है और बहुसंख्यकों की बात करने को असहनशीलता से जोड़ दिया जाता है। किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना मेरा मकसद नहीं है।
यह सारा विवाद नोएडा के एक पार्क से शुरू हुयथा। जहां आस पास की बहुत सी कंपनियों में काम करने वाले मुस्लिम कर्मचारी इस पार्क में अक्सर नमाज़ पढ़ते हैं। स्थानीय लोगों के मुताबिक पहले नमाज़ पढ़ने वालों की संख्या कम होती थी बल्कि सिर्फ दफ्तरों में काम करने वाले ही आते थे, लेकिन अब तो आस पास के लोग भी जुडते गए और कारवां बढ़ता गया। अब तो 500 से 700 लोग हर जुम्मे को जुम्मा करने आने लगे हैं। इसके साथ बिरयानी और दूसरे व्यंजन बेचने वालों का भी जमावड़ा शुरू हो गया है।
यू॰पी॰ पुलिस ने उचित कार्यवाही करते हुए संबन्धित लोगों को नोएडा प्रकरण से एन॰ओ॰सी॰ ले कर अनुमति लेने को कहा गया है। सिटी मेजिस्ट्रेट के आदेशों के आभाव में उन्हे वहाँ नमाज़ पढ़ने से माना गया है। बिना आदेश के किसी भी धर्म के लोगों को सार्वजनिक स्थान पर कार्यक्र्म करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, एस एस॰एस॰पि डॉ। अजयपाल शर्मा का कहना है कंपनियों को कहा गया है कि अपने कर्मचारियों को बताएं कि पार्कों में नमाज़ पढ़ने न जाएँ, और अगर इसका उल्लंघन हुआ तो इसकी ज़िम्मेदारी इनहि कंपनियों कि होगी।
इसके बाद इस मुद्दे पर पूरे देश में चर्चा होने लगी, कि खुले में नमाज़ पढ़ना जायज है कि नहीं? हमारे देश में जीतने भी लोग अपने आप को धर्म निरपेक्ष या सेकुलर कहने वाले हैं वह खड़े हो गए और कहने लगे कि यह तो बे इंसाफ़ी है। इस मामले में कुछ शरारती तत्त्व भी माहौल बिगाड़ने में जुट गए हैं। पार्कों के अलावा लोग ट्रैफिक जाम करते हैं और सड़कों पीआर नमाज़ पढ्न शुरू कर देते हैं। लोग धर्म का मामला मान कर डर जाते हैं और आपत्ति करने से घबराते हैं। लेकिन इस्लाम के कई जानकार इसे ठीक नहीं मानते। उनका कहना है कि जिस कि जगह पर नमाज पढ़ने के लिए उनसे इजाज़त लेना ज़रूरी है। हमारा संविधान सभी को अपने धर्म कि उपासना करने कि इजाज़त देता है। संविधान के आर्टिकल 25 के अनुसार देश के हर व्यक्ति को अपनी इच्छा से किसी भी धर्म को मानने, उसकी उपासना करने का अधिकार है। सड़कों पर नमाज़ पढ़ने कि समस्या सिर्फ भारत के लिए ही नहीं बल्कि कई और देशों में भी खड़ी हुई थी।
2011 में फ्रांस में ऐसे ही नज़ारे सामने आए। फ्रांस में अपना मुत्तल्ला बिछा कर सड़कों पर नमाज़ अता कि जाती थी। लोगों को बहुत परेशानी हुई और इसके बाद विरोध शुरू हुआ। सितंबर 2011 में फ्रांस की सरकार ने सड़कों पर नमाज़ पढ़ने पर पाबंदी लगा दी। दुबई में पिछले साल अक्तूबर में सड़क के किनारे नमाज़ पढ़ते हुए लोगों पर एक कर जिसका टायर फट गया था, चढ़ गयी। इससे 2 लोगों की मृत्यु हो गयी। इसके बाद दुबई में सड़क किनारे नमाज़ पढ़ने वालों पर 1000 दरहम (लगभग 19,000/= रुपए) के जुर्माने का प्रावधान रखा गया। चीन के शिंजियांग प्रांत में सरकारी स्कूल, दफ्तरों ओर करप्रेत दफ्तरों में नमाज़ पढ़ने पर पाबंदी है।
इस्लाम के जान कार और लेखक ‘तारिक फतेह’ जो कि आजकल टोरंटो में रहते हैं ने कहा कि “नमाज़ मस्जिद में पढ़नी चाहिए, अगर मस्जिद नहीं है तो घर में जा कर पढ़ें। अगर घर से दूर हों तो आप जहां भी हों वहीं पर नमाज़ पढ़ सकते हैं, लेकिन आप किसी और कि जगह पर जा कर, कबजा कर नमाज़ पढ़ें या जुम्मा करें यह मुमकिन नहीं।“ आपकी नमाज़ से इसी और को नुकसान पँहुचे यह बिलकुल गैर इस्लामिक बात है। फ्रांस, लंदन, स्टोकहोम में भी यही सभी कुछ हुआ। उससे सिर्फ एक नियत नज़र आती है और वह है शरारत की। जैसा की आप भारत (नोएडा) की बात कर रहे हैं, यह कभी भी मान्य नहीं हो सकता।
हमारे देश में इन मुद्दों को बहुत संवेदनशील माना जाता है, और सरकारें भी जान बूझ कर इनसे दूरी बनाए रखतीन हैं। केंद्र और राजी सरकारे मानती हैं कि नमाज़ के बारे में हाथ डालेंगी तो उनके वोट बैंक खतरे में पड़ सकता है, इसीलिए तो इन सब चीजों को नज़रअंदाज़ करतीं हैं, जो कि आगे चल कर नासूर बन जातीं हैं। स्थानीय लोग शिकायत करते हैं ओर सरकारें इन्हे अनसुना कर देतीं हैं। लेकिन यह बात सिर्फ खुले में नमाज़ पर ही लागू नहीं होती, रोजाना हमारे शहर में गली, मुहल्ले या सड़क पर धार्मिक आयोजन, शादी ब्याह व्गैराह होते रहते हैं, बड़े बड़े लाउडस्पीकर बजते रहते हैं, शोर मचाया जाता है, पूरे सड़क,, गली या मोहल्ले को रोक दिया जाता है, औ यह सब बहुत ही भक्तिभाव से किया जाता है।
भारत में ध्वनि प्रदूषण के चले रात 10 बजे से सुयह 6 बजे तक लाउडस्पीकर य पी॰ए॰ सिस्टम का इस्तेमाल करना गैर कानूनी है। लेकिन इस कानून की हर दिन रात और शाम धज्जियां उड़ाई जातीं हैं। लोग इस बात से बी डरते हाँ कि पड़ौसी से दुश्मनी लेना शायद ठीक नहीं होगा।
सार्वजनिक स्थानों पर धार्मिक आयोजन (सभी तरह के) एवं नमाज़ वगैराह बंद कर देने चाहिये। असली पूजा व इबादत तो मन में उठने वाले विचारों से होती है उसके लिए दूसरों को परेशान करने कि ज़रूरत नहीं।
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