गीता जयंती के उपलक्ष्य में गीता के बारहवें अध्याय का पाठ किया
डेमोक्रेटिक फ्रंट, मोहाली – 10 दिसंबर :
जमना एन्क्लेव, जीरकपुर स्थित शिव मंदिर में गीता जयंती के उपलक्ष्य में संस्कृत भारती की पंचकूला विंग के आचार्यों द्वारा गीता के बारहवें अध्याय का पाठ कर प्रेम और भक्ति के महत्व पर प्रकाश डाला गया। मंदिर के प्रधान एसडी वाधवा, सचिव ओएन शर्मा, अतुल कपूर और राम लुभाया ने किया। आचार्यों ने ने बताया कि भागवद गीता के बारहवें अध्याय में आध्यात्मिक साधनाओं के अन्य स्तरों की विशालता, भक्ति मार्ग की सर्वोत्कृष्टता के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। उन्होंने बताया कि श्रीकृष्ण कहते हैं कि साकार व निराकार दोनों मार्ग भगवत प्राप्ति की ओर ले जाते हैं और वे उनके साकार रूप की पूजा करने वाले भक्त को सर्वश्रेष्ठ योगी के रूप में सम्मान देते हैं। कृष्ण ने स्पष्ट रूप से कहा है कि माया से जुड़े देहधारियों के लिए निराकार अव्यक्त रूप की साज-सज्जा करना कष्टदायक और अत्यंत कठिन है, जबकि उनके वास्तविक रूप की साज-सज्जा करने वाले भक्त अपने स्वयं के साथ भगवान में विलीन हो जाते हैं और उनके प्रत्येक कर्म भगवान को समर्पित होते हैं। वे शीघ्रता से जीवन-मरण के बंधनों से मुक्त हो जाते हैं। इसलिए श्रीकृष्ण अर्जुन को अपनी बुद्धि समर्पित करने और अपने मन को केवल अपनी प्रेममयी भक्ति में स्थिर करने के लिए कहते हैं। श्रीकृष्ण ने कहा है कि यदि अर्जुन अपने मन को पूर्ण रूप से भगवान में एकाग्र करने की स्थिति प्राप्त नहीं कर सकते हैं तब उन्हें आध्यात्मिक अभ्यास द्वारा पूर्णता की श्रेणी को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। भक्ति कोई रहस्यमय उपहार नहीं है। इसे नवीनीकृत प्रयास से अंकित किया जा सकता है। यदि अर्जुन इतना भी नहीं कर सकते हैं तो भी उन्हें पराजय को स्वीकार नहीं करना चाहिए, इसके विपरीत उन्हें केवल श्रीकृष्ण के सुख के लिए अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। यदि उसके लिए ऐसा करना संभव नहीं है तो उसे अपने कर्मों का त्याग कर देना चाहिए और अपनी आत्मा में स्थित होना चाहिए। श्रीकृष्ण कहते हैं कि लौकिक कर्मों से श्रेष्ठ कर्म फल का त्याग करना है और ज्ञान अर्जन से श्रेष्ठ कर्म फल का त्याग करना है जो परम शांति प्राप्त करने के मार्ग की ओर ले जाता है।