सनातन धर्म में पितृ पक्ष का क्या महत्त्व है और यमलोक से परिजनों के पास क्यों आते हैं पितर
सनातन धर्म में किसी की मृत्यु के बाद उस व्यक्ति का श्राद्ध किया जाता है जो कि बेहद जरूरी होता है। इसलिए पितृ पक्ष का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है और इस दौरान 15 दिनों तक लोग अपने पितरों तक का श्राद्ध व तर्पण करते हैं। मान्यता है यदि विधि-विधान से पितरों का तर्पण न किया जाए तो उनको मुक्ति प्राप्त नहीं होती। श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है. कहा जाता है कि पितृ पक्ष में यमराज पितरों को अपने परिजनों से मिलने के लिए मुक्त कर देते हैं और 15 दिनों तक पितर धरती पर रहते हैं। इस दौरान यदि पितरों का श्राद्ध न किया जाए तो वह नाराज हो जाते हैं।
राजविरेन्द्र वशिष्ठ, धर्म/संस्कार डेस्क, डेमोक्रेटिक फ्रंट, चंडीगढ़ :
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक जब सूर्य नारायण कन्या राशि में विचरण करते हैं तब पितृलोक पृथ्वी लोक के सबसे अधिक नजदीक आता है। श्राद्ध का अर्थ पूर्वजों के प्रति श्रद्धा भाव से है। जो मनुष्य उनके प्रति उनकी तिथि पर अपनी सामर्थ्य के अनुसार फलफूल, अन्न, मिष्ठान आदि से ब्राह्मण को भोजन कराते हैं। उस पर प्रसन्न होकर पितृ उसे आशीर्वाद देकर जाते हैं। पितरों के लिए किए जाने वाले श्राद्ध दो तिथियों पर किए जाते हैं, प्रथम मृत्यु या क्षय तिथि पर और द्वितीय पितृ पक्ष में जिस मास और तिथि को पितर की मृत्यु हुई है अथवा जिस तिथि को उसका दाह संस्कार हुआ है। इसमें एक पिंड का दान और एक ब्राह्मण को भोजन कराया जाता है। पितृपक्ष में जिस तिथि को पितर की मृत्यु तिथि आती है, उस दिन पार्वण श्राद्ध किया जाता है। पार्वण श्राद्ध में 9 ब्राह्मणों को भोजन कराने का विधान है।
श्राद्ध का अर्थ अपने देवताओं, पितरों, परिवार और वंश के प्रति श्रद्धा प्रकट करना है। जब स्वजन अपने शरीर को छोड़कर चले जाते हैं। वह चाहे किसी भी रूप में अथवा किसी भी लोक में हों, श्राद्ध पक्ष के समय अपनी तिथि पर पृथ्वी पर आते हैं। उनकी तृप्ति के लिए श्रद्धा के साथ जो शुभ संकल्प और तर्पण किया जाता है, उसको हमारे पितृ सूक्ष्म रूप में आकर अवश्य ग्रहण करते हैं। अपनी तिथि के दिन हमारे पितृ सवेरे सूर्य की किरणों पर सवार होकर आते हैं। वे अपने पुत्र पौत्र अथवा वंशजों से अपेक्षा करते हैं कि उन्हें अन्न-जल प्रदान करें। ब्राह्मण को भोजन कराने एवम पितृ जल देने से वे एक वर्ष के लिए तृप्त हो जाते हैं। इन सोलह दिनों में न कोई शुभ कार्य किया जाता है और न ही कोई नई वस्तु खरीदी जाती है।
धर्म ग्रंथों के मुताबिक श्राद्ध के सोलह दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं। ऐसी मान्यता है कि पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है। वर्ष के किसी भी मास तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है। पितरों की संतुष्टि के उद्देश्य से श्रद्धापूर्वक किये जाने वाले तर्पण, ब्राह्मण भोजन, दान आदि कर्मों को श्राद्ध कहा जाता है। इसे पितृयज्ञ भी कहते हैं। श्राद्ध के द्वारा व्यक्ति पितृऋण से मुक्त होता है और पितरों को संतुष्ट करके स्वयं की मुक्ति के मार्ग पर बढ़ता है। श्राद्ध या पिण्डदान दोनो एक ही शब्द के दो पहलू है पिण्डदान शब्द का अर्थ है अन्न को पिण्डाकार मे बनाकार पितर को श्रद्धा पूर्वक अर्पण करना इसी को पिण्डदान कहते है दक्षिण भारतीय पिण्डदान को श्राद्ध कहते हैं।
सनातन धर्म के मरणोपरांत संस्कारों को पूरा करने के लिए पुत्र का प्रमुख स्थान माना गया है। शास्त्रों में लिखा है कि नरक से मुक्ति पुत्र द्वारा ही मिलती है। इसलिए पुत्र को ही श्राद्ध, पिंडदान का अधिकारी माना गया है। और नरक से रक्षा करने वाले पुत्र की कामना हर मनुष्य करता है।
क्यों आवश्यक है श्राद्ध:
- श्राद्ध पितृ ऋण से मुक्ति का माध्यम है
- श्राद्ध पितरों की संतुष्टि के लिये आवश्यक है
- महर्षि सुमन्तु के अनुसार श्राद्ध करने से श्राद्धकर्ता का कल्याण होता है
- मार्कंडेय पुराण के अनुसार श्राद्ध से संतुष्ट होकर पितर श्राद्धकर्ता को दीर्घायु, संतति, धन, विघ्या, सभी प्रकार के सुख और मरणोपरांत स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करते हैं
- अत्री संहिता के अनुसार श्राद्धकर्ता परमगति को प्राप्त होता है
पितरों के निमित्त श्राद्ध तर्पण आदि का समय दिन के मध्यान काल मे माना जाता है। इस वर्ष आश्विन कृष्ण पूर्णिमा और प्रतिपदा तिथि 10 और 11 सितम्बर दोनों दिन अपराह्न व्यापिनी है। अतः यहां प्रतिपदा का श्राद्ध 10 सितंबर को किया जाएगा। इस वर्ष प्रतिपदा अपराह्न काल के अधिक भाग को 10 सितंबर के दिन ही व्याप्त कर रही थी इसलिए प्रतिपदा का महालय श्राद्ध 10 सितंबर को किया जाएगा और द्वितीया का श्राद्ध 11 सितम्बर को किया जाएगा। 25 सितम्बर रविवार को अमावस्या तिथि का श्राद्ध / सर्वपित्र श्राद्ध का समापन होगा।
- यदि श्राद्ध नहीं किया जाता है, तो पितरों को बड़ा ही दुःख होता है
ब्रह्म पुराण पुराण में उल्लेख है की यदि श्राद्ध नहीं किया जाता है, तो पितर श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को श्राप देते हैं। श्राप के कारण वह वंशहीन हो जाता अर्थात वह पुत्र रहित हो जाता है, उसे जीवनभर कष्ट झेलना पड़ता है, घर में बीमारी बनी रहती है।