कोरोना का सुविधानुसार उपयोग कितना सार्थक
सारिका तिवारी, डेमोक्रेटिकफ्रंट॰कॉम, चंडीगढ़
सरकारों ने 1 जनवरी को नए महामारी से संबंधित प्रतिबंध लगाए, जिससे केंद्र शासित प्रदेशों और कई राज्यों में स्थित सभी रेस्तरां और भोजनालयों को उनकी कुल क्षमता के आधे से संचालित करने का आदेश दिया गया। साथ ही जिन लोगों को कोविड 19 वैक्सीन की दोनों खुराक का टीका नहीं लगाया गया है, उन्हें भोजनालयों, साथ ही विवाह स्थलों और भोजों में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। जबकि इस 18 वर्ष से कम आयु की जनसंख्या को पाबंदी के दायरे से बाहर रखा गया है। वो भी तभी तक जब तक इस आयुवर्ग का सरकारों द्वारा टीकाकरण आरम्भ नहीं हो जाता।
ऐसा दोहरा रवैया सरकारें क्यों कर रही हैं आम लोगों की समझ से परे है। क्या बच्चे कोविड वायरस कैरियर या संक्रमित नहीं हो सकते?
हरियाणा और चंडीगढ़ में मॉल में केवल उन्हीं लोगों को प्रवेश दिया जा रहा है जिनका टीकाकरण हो चुका है ।
गुड़गांव के एक बड़े मॉल के प्रबंधक ने बताया कि वे केवल उन लोगों को अनुमति दे रहे हैं जिन्होंने दोनों खुराक ली हैं। 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को उनकी आईडी की जांच के बाद प्रवेश की अनुमति है, लेकिन 12 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों को प्रवेश की अनुमति नहीं थी लेकिन अब जब 18 वर्ष से कम आयुवर्ग के टीकाकरण करने की व्यवस्था में विलम्ब हो रहा है इसलिए इस आयुवर्ग के लोगों पर से पाबन्दी हटा दी गई है।
इसी तरह देखा जाए तो नाईट कर्फ्यू भी मज़ाक सा लगता है रात के कर्फ्यू पर डब्ल्यूएचओ में मुख्य वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन ने कहा नीति निर्माताओं को अपनी रणनीतियों पर फिर से विचार करना चाहिए। “रात के कर्फ्यू जैसी चीजें, जिसके पीछे कोई विज्ञान नहीं है को छोड़ साक्ष्य-आधारित उपाय करने चाहिए । नाइटलाइफ़ वाले शहरों में इस तरह के प्रतिबंधों को उचित ठहराया जा सकता है।
लेकिन कहीं और अर्थव्यवस्था या सामान्य जीवन को प्रभावित न करते हुए आंशिक लॉकडाउन की छाप बनाने के अलावा इसका कोई मतलब नहीं है। इसने पुलिस को देर से भोजन करने वालों को परेशान करने और पहले से ही व्यस्त अवकाश क्षेत्र का गला घोंटने के लिये पास दे दिया है।
इस तरह के आंशिक लॉकडाउन के साथ समस्या यह है कि उन्हें दुनिया भर में बिना किसी वैज्ञानिक तर्क के लागू किया जाता है। कुछ सिद्धांत हैं जो सुझाव देते हैं कि कोविड की बूंदें सर्दियों में रात के तापमान में जीवित नहीं रह सकती हैं, लेकिन वे निर्णायक रूप से स्थापित नहीं हुई हैं।
इस तरह के निर्देश नेताओं को सूर्यास्त से पहले बड़ी चुनावी रैलियां करने का लाइसेंस देते हैं। मास्किंग, पब्लिक डिस्टेंसिंग और हाथों को बार-बार सैनिटाइज करने के सभी कोविड प्रोटोकॉल को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया जाता है, मंच पर नेताओं के साथ भी, मास्क लगाने के उदाहरण का नेतृत्व करने में विफल। यह बिहार में पहली लहर और बंगाल और अन्य जगहों पर दूसरी लहर के दौरान हुआ। टेम्पलेट अब दोहराया जा रहा है, जब तीसरी लहर अभी शुरू हुई है।
निष्पक्ष अंपायर की भूमिका निभाने की चुनाव आयोग की क्षमता का शीघ्र ही परीक्षण किया जाएगा जब वह फरवरी के आसपास चुनाव होने वाले पांच राज्यों में आदर्श आचार संहिता लागू करेगा। दूसरी लहर के दौरान भी चुनाव हो जाने तक कोविड के मामले ऑन रिकॉर्ड नहीं रखे गए थे । देखें क्या इस बार भी चुनाव आयोग इस बार इधर-उधर खिसकने का जोखिम उठाएगा?
जहां तक रात के कर्फ्यू का सवाल है, आइए हम खुद को मूर्ख न बनाएं।