Tuesday, December 24

:– स्वास्थ्य सुविधाओं की दृष्टि से धरातल पर कार्य करने की है अति आश्यकता
:-स्वास्थ्य सुविधाओं के आभाव में जनता की अपेक्षाओं से हो रहा खिलवाड़
:-ड़ेंगू से जूझ रही आम जनता को स्वास्थ्य सुविधाओं की दरकार
:-स्वास्थ्य सुविधाओं की दृष्टि से सरकारी तंत्र सवालों के घेरे में,जनता पर पड़ रही दोहरी मार
:-जनता को संपूर्ण स्वास्थ्य सुविधाएं देने में विफ़ल होती शासन व्यवस्था
:- स्वास्थ्य सुविधाओं की दृष्टि से धरातल पर कार्य करने की है अति आवश्यकता
:- बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए सरकार की प्रतिबद्धता अपेक्षित

सुशिल पंडित

किसी भी देश की लोकतंत्र स्वस्थ व सुदृढ़ होना वहाँ की जनता को मिल रही मूलभूत सुविधाओं पर निर्भर करता है। जनता की अपेक्षाओं और भावनाओं पर खरा उतरना मौजूदा शासन व्यवस्था की नैतिक जिम्मेदारी होती है। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, यहां के सविधान में लोगो को राज्य से आधारभूत सुविधाओं की मांग की गारंटी दी गई है। भारतीय संविधान के अनुछेद 21ए में मौलिक अधिकार का प्रावधान है। इन अधिकारों की श्रखला में स्वास्थ्य सुविधाओं को मुख्य रूप से अंकित किया गया है परंतु यह अधिकार आम व अति निम्न स्तर के व्यक्ति की पहुँच से कोसो दूर दिखाई दे रहा है। यदि विकसित देशों की बात करें तो वहां की सरकारों के द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के लिए कुल खर्च का 80 से 90 प्रतिशत सरकार वहन करती है और यह गारंटी सवैधानिक रूप से सार्वजनिक सुविधाओं के माध्यम से प्रदान की जा रही हैं परंतु भारत में निर्धारित वर्ग के अलावा अन्य जरुरतमंद के पास यह अधिकार नही है। वर्तमान परिस्थितियों में भारत की जनता ड़ेंगू जैसी बीमारी की चपेट में है, यदि स्पष्ठ शब्दों में कहा जाए कि देश में डेंगू का कहर है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। सरकारी आंकड़ो की बात करें तो ड़ेंगू के बहुत अधिक केस नही है परंतु यदि वास्तविकता की दृष्टि से और निजी अस्पतालों व प्रयोगशालाओं की रिपोर्ट के आधार पर हर तीसरा बीमार व्यक्ति वर्तमान में डेंगू का मरीज है। सरकारी अस्पतालों में बेड का न मिलना और निजी अस्पतालों की रोजाना बढ़ती भीड़ से मौजूद सरकार की कार्यशैली पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वभाविक से लग रहा है।स्वास्थ्य सुविधाओं की दृष्टि से वर्तमान में देश की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली का बुरा हाल है, वही दूसरी ओर निजी अस्पतालों में निरन्तर सुविधा का विस्तार जारी हैं, जिसके चलते लोंगो का रुझान निजी अस्पतालों की ओर होना स्वभाविक हो चुका है। चौथे राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वे के मुताबिक, 56 फीसदी शहरी व 49 फीसदी ग्रामीण लोगों ने निजी स्वास्थ्य सेवाओं का विकल्प चुना है। अत: देश की स्वास्थ्य सुविधाओं में सार्वजनिक व निजी दोनों की भूमिका की जांच करने की आवश्यकता हैं। निजी अस्पतालों की मनमानी और सरकारी अस्पतालों में व्यापक स्तर पर सुविधाओं का आभाव जनता की अपेक्षाओं के प्रतिकूल माना जा सकता है। सरकार के द्वारा निजी अस्पतालों के लिए कोई ऐसी नीति भी नही तैयार की गई जिसके तहत आम आदमी पर आर्थिक बोझ न पड़े। डेंगू को लेकर जहां सरकार के सभी प्रयास विफल नजर आ रहे हैं वहीं आम आदमी निजी अस्पतालों की लूट का शिकार होता दिखाई दे रहा है। मौजूद हालात को देखते हुए सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली पर जनता का विश्वास न होना भी निजी अस्पतालों की भीड़ का बड़ा कारण माना जा सकता है। वस्तुतः निजी अस्पतालों द्वारा प्रदान की जाने वाली सुविधाओं और सरकारी अस्पतालों में पूर्णतः उपचार के अभाव चलते भी लोंगो का रुझान निजी क्षेत्र से मिलने स्वास्थ्य सुविधाओं की ओर हो रहा है अब इस डर कहे या मजबूरी? दरअसल कोरोना के कारण जनता डर के साये में जीने के लिए विवश हैं वहीं मौसम के परिवर्तन से उतपन्न हुई ड़ेंगू वायरल बुखार ने आम आदमी को शारीरिक,मानसिक व आर्थिक रूप से निर्बल कर दिया है। सरकार के द्वारा स्वास्थ्य सुविधाओं की व्यापक व्यवस्थाओं का ढिंढोरा पीटा जा रहा है परंतु जब बात आम आदमी की जान की आती है तो सभी स्वास्थ्य सुविधाएं छू मंतर क्यों हो जाती है? देश के की राज्यों में डेंगू का कहर बढ़ता ही जा रहा है, राजधानी दिल्ली में एक हफ़्ते में एक हजार से अधिक मरीजों संख्या होना चिंता का विषय बना हुआ है।वही उतरप्रदेश में 2016 के बाद सबसे अधिक है यहां ड़ेंगू के मरीजों की संख्या 23 हजार से अधिक बताई जा रही हैं। पंजाब में हालात बद से बदत्तर बने है यहां 60 से अधिक मौते हो चुकी हैं, जम्मूकश्मीर में मरीज़ो की संख्या 1100 से अधिक बताई जा रही है। राजस्थान 13 हजार से अधिक मरीज़ ड़ेंगू पीड़ित पाए गए। अभी तक देश में लगभग 1 लाख 20 हज़ार मरीज़ ड़ेंगू से प्रभावित है। वास्तविकता के आधार पर ड़ेंगू का ईलाज सरकारी अस्पतालों में संभव न होने के कारण लोंगो को मज़बूरन निजी अस्पतालों की ओर रुख करना पड़ रहा है। सरकार के द्वारा शिक्षा,स्वास्थ्य व रोजग़ार को प्राथमिकता देने की बात चुनावी रैलियों और जनसभाओं में करना आम बात हो चुकी है परंतु धरातल के पटल पर कार्य करना सरकार और सम्बन्धित विभागों के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नही है। शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं के आभाव का लाभ निजी क्षेत्र में कार्य कर रहे लोग उठा रहे है,निजी अस्पतालों में एक दिन के ईलाज का मतलब है कि आम आदमी की एक महीने की तनख्वाह का स्वाह हो जाना परन्तु अपनी व अपनो की जान के बदले हर व्यक्ति को यह सौदा सस्ता ही लगता है। सरकार के द्वारा ड़ेंगू मरीज़ों के आंकड़ो की जादूगरी और विपक्षी दलों का राजनैतिक रोटियां सेंकने का खेल बदस्तूर जारी है परंतु आम आदमी के जीवन की महत्ववता न के बराबर है।2014 के चुनाव के बाद मौजूदा सरकार के प्रतिनिधि प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी जी ने कार्यभार संभालने के पाश्चत एक राष्ट्रव्यापी सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का अनावरण किया था जिसे राष्ट्रीय स्वास्थ्य गारंटी योजना के नाम से जाना जाता हैं। जिसका मुख्य लक्ष्य देश के प्रत्येक नागरिक को मुफ्त दवाएं,नैदानिक उपचार और गंभीर बीमारियों के लिए बीमा उपल्ब्ध करना था परंतु वर्तमान में यह योजना कागज़ी दस्तावेजो की शोभा बढ़ा रही हैं। सरकार के पास डेंगू और मलेरिया से संबंधित सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं।  पिछले कई दशकों में डेंगू के मरीज़ों की संख्या तीन गुना बढ़ना देश की स्वास्थ्य प्रणाली पर सीधे तौर पर प्रश्नचिन्ह मेंआज सकता है। अमेरिका की ब्रांडेस यूनिवर्सिटी के डोनाल्ड शेपर्ड के अक्टूबर 2014 में जारी शोध पत्र के अनुसार भारत विश्व में सबसे अधिक डेंगू प्रभावित देशों मे शामिल हो चुका है जो चिंता का विषय है। एक सर्वेक्षण के अनुसार 2012 में दक्षिण एशिया क्षेत्र में डेंगू के लगभग दो लाख नब्बे हजार मामले दर्ज हुए थे, जिसमें करीब 20 प्रतिशत भागीदारी भारत की थी वतर्मान में जब हर वर्ष डेंगू के मामले बढ़ रहे हों, तो यह गंभीर समस्या हो सकती है। वर्ष 2010 में डेंगू के 20 हजार से ज्यादा मामले दर्ज हुए, जो बढ़कर 2012 में 50 हजार और 2013 में 75 हजार हो गए। राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम के आंकड़ों के अनुसार, दिसंबर 2014 में 40 हजार केस दर्ज हुए थे। वर्तमान में यह संख्या दोगुनी से भी अधिक हो चुकी है। देश की खराब स्वास्थ्य सेवाओं और असंतुलित डॉक्टर-मरीज अनुपात को देखते हुए इस संख्या को कम करना सरकार और सम्बन्धित विभागों के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। देश में प्रति 1800 मरीजों पर एक चिकित्सक की उपलब्धता सराकर की कथनी और करनी का अंतर स्पष्ठ करने के लिए प्रयाप्त होगा। देश के 10 बड़े चिकितसा संस्थान इस क्षेत्र में निरंतर प्रयास कर रहे हैं परंतु अभी तक सफलता नही मिल सकी और न ही प्रयाप्त संसाधन उपलब्ध हो सके हैं।वर्तमान परिदृश्य में डेंगू मलेरिया जैसी बीमारी को जड़मूल से समाप्त करना संभव नही होगा परन्तु इसके लिए व्यापक पैमाने पर स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना सराकर की जिम्मेदारी बनती हैं। भारत मे सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली बहुत अच्छी न होने के कारण आज हमारा देश अपने पड़ौसी देशों से पिछड़ता दिखाई दे रहा है। अभी कुछ समय पहले आई एक वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार स्वास्थ्य सुविधाओं की दृष्टि से भारत 194 देशों में 145 वे स्थान पर है स्पष्ठ तौर पर यदि कहा जाए तो भारत स्वास्थ्य संसाधनों की दृष्टि से पड़ौसी देश श्रीलंका,भूटान और बंगलादेश से भी पिछड़ा हुआ है जो भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली की गंभीरता को प्रदर्शित करने के लिए क़ाफी होगा और यही कारण है कि लोंगो को निजी अस्पतालों की शरण मे जाना पड़ता है। इस लचर व्यवस्था से जहाँ आम आदमी पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ बढ़ रहा है वहीं आम वर्ग स्वास्थ्य सुविधाओं का आभाव झेलने के लिए विवश हो रहा है। इस बीमारी के फैलने का कारण जहाँ स्वंम की लापरवाहीं है वहीं सरकार द्वारा निर्धारित किए गए विभागों की सुस्त कार्यप्रणाली भी मुख्य कारण है। सरकार के द्वारा प्रतिवर्ष इस प्रकार की बीमारियों की रोकथाम हेतु अरबों रुपए खर्च किए जा रहे हैं लेकिन वस्तविक रूप से कार्य करने के अभाव के चलते हर वर्ष लाखों लोग इन बीमारियों की चपेट में आते हैं। जनसहभागिता की कमी और विभागीय अधिकारियों की लापरवाही के कारण हर वर्ष मरीज़ों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही हैं। इस मच्छर जनित बीमारी से जहाँ आम आदमी का बजट बिगड़ रहा है वहीं देश की अर्थव्यवस्था को भी प्रतिवर्ष लगभग 13000 हजार करोड़ रुपए का नुक्सान होता है।बहरहाल सरकारी तंत्र और मौजूदा शासन को आगे दौड़ पीछे छोड़ की नीति को त्याग कर धरातल पर कार्य करना होगा। जनता की आवश्यकताओं और अपेक्षाओं पर आधारित व्यवस्था प्रदान करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता बहुत महत्व रखती है। जनता के द्वारा विभिन्न प्रकार के टेक्सिस के माध्यम से अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी पूर्ण की जा रही और इसके बदले में मिलने वाली सुविधाओं की दरकार भी जनता ही करेगी। देश की अधिकतर जनसंख्या सामाजिक,आर्थिक व अन्य कारणों से निजी स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ लेने में असक्षम हैं, साथ ही एक लोककल्याणकारी व्यवस्था का यह दायित्व बनता है कि देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा का मजबूत आधारभूत ढांचा तैयार करे जिसमें कोई भी व्यक्ति आसानी व शीघ्र स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ ले सके।