विशेषः आज उत्तर दिशा की यात्रा न करें। अति आवश्यक होने पर मंगलवार को धनिया खाकर, लाल चंदन,मलयागिरि चंदन का दानकर यात्रा करें।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2020/10/aaj_ka_panchang-1200_0-sixteen_nine.jpg6751200Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2021-05-18 04:10:522021-05-18 04:27:33पंचांग, 18 मई 2021
श्री रामानुजाचार्य की पूजा पूरे देश में की जाती है। भारत के दक्षिणी, उत्तरी हिस्सों में उनके भक्त यह दिन विशेष उत्सव के रूप में मनाते हैं। श्री रामानुजाचार्य जयंती पर पूरे देश के मंदिरो को सुंदर तरीके सजाया जाता है तथा भजन-कीर्तन और सांस्कृतिक उत्सव भी आयोजित किए जाते हैं। इस दिन उपनिषदों के अभिलेख को सुनना शुभ माना जाता है तथा उनकी मूर्ति पर पुष्प अर्पित करके सुखपूर्ण जीवन की प्रार्थनाएं करते हैं।
धर्म/संस्कृति डेस्क :
वेदों के निषेधाज्ञा पालन के नाम पर जब अल्पबुद्धि व्यक्तियों के प्रभाव में अन्धविश्वास पूर्ण कर्मकांड और निर्दयतापूर्वक पशु-हत्या हो रही थी और वेदों पर आधारित यथार्थ धर्म शिथिल पड़ने लगा था, तब एक समाज-सुधारक के रूप में इस धरातल पर बुद्ध प्रकट हुए । वैदिक साहित्य को पूर्णता से अस्वीकार करके उन्होंने तर्कसंगत नास्तिकतावाद विचारों एवं अहिंसा को जीवन का सर्श्रेष्ठ लक्ष्य बताया ।
कुछ ही समय बाद शंकराचार्य के दर्शन और सिद्धांतों ने बौद्ध विचारों को पराजित किया और सम्पूर्ण भारत में इसका विस्तार हुआ। शंकराचार्य द्वारा उपनिषदों और वैदिक साहित्य की प्रामाणिकता को पुनर्जीवित किया गया और बौद्ध मत के विरुद्ध, अस्त्र के रूप में प्रस्तुत किया गया । वेदों की व्याख्या में शंकराचार्य एक निष्कर्ष पर पहुंचे की जीवात्मा और परमात्मा एक ही हैं, और उन्होंने ‘अद्वैत-वेदांत’ मत स्थापित किया । उन्होंने प्रधानरूप से उन श्लोकों को महत्त्व दिया जिनसे बौद्ध मत के तर्कसंगत नास्तिकतावाद को खंडित किया जा सके, अंततोगत्वा शंकराचार्य की शिक्षाएं पूर्णरूपेण ईश्वरवाद का समर्थन नहीं करती थी, जिनका आगे चलकर अनावरण श्रील रामानुजाचार्य द्वारा होना निर्धारित था । वैष्णव मत की पुन: प्रतिष्ठा करने वालों में रामानुज या रामानुजाचार्य का महत्वपूर्ण स्थान है।
रामानुज का जन्म सन १०१७ ई. में हुआ था । ज्योतिषीय गणना के अनुसार तब सूर्य, कर्क राशि में स्थित था । एक राजपरिवार से सम्बंधित उनके माता-पिता का नाम कान्तिमती और आसुरीकेशव था । रामानुज का बाल्यकाल उनके जन्मस्थान, श्रीपेरुम्बुदुर में ही बीता । १६ वर्ष की आयु में उनका विवाह रक्षकम्बल से हुआ ।
पिता की मृत्यु के उपरांत रामानुजाचार्य कांची चले गए जहाँ उन्होंने यादव प्रकाश नामक गुरु से वेदाध्ययन प्रारंभ किया। यादव प्रकाश की वेदांत टिकाएं शंकर-भाष्य से प्रेरित थी और मायावादी विचारों का प्रतिपादन करती थी । श्री रामानुजाचार्य की बुद्धि इतनी कुशाग्र थी कि वे अपने गुरु की व्याख्या से भी अधिक विस्तृत व्याख्या कर दिया करते थे। रामानुज के गुरु ने बहुत मनोयोग से शिष्य को शिक्षा दी। वेदांत का इनका ज्ञान थोड़े समय में ही इतना बढ़ गया कि इनके गुरु यादव प्रकाश के लिए इनके तर्कों से पार पाना कठिन हो गया। रामानुज की विद्वत्ता की ख्याति निरंतर बढ़ती गई। इनकी शिष्य-मंडली भी बढ़ने लगी। यहाँ तक कि इनके गुरु यादव प्रकाश भी इनके शिष्य बन गए। रामानुज द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत ‘विशिष्टाद्वैत’ कहलाता है। श्रीरामानुजाचार्य बड़े ही विद्वान, सदाचारी, धैर्यवान और उदार थे। चरित्रबल और भक्ति में तो ये अद्वितीय थे।
श्रीरामानुजाचार्य कांचीपुरम में रहते थे। वे वहां श्री वरदराज भगवान की पूजा करते थे। कांचीपुरम के दक्षिण-पश्चिम में ३०० किमी दूर कावेरी तट पर पवित्र स्थल श्रीरंगम (तिरुचिरापल्ली) है। श्रीरंगम के मठाधीश प्रसिद्ध आलवार संत श्रीयामुनाचार्य थे। जब श्रीयामुनाचार्य की मृत्यु सन्निकट थी, तब उन्होंने अपने शिष्य के द्वारा श्रीरामानुजाचार्य को अपने पास बुलवाया, किन्तु इनके पहुँचने के पूर्व ही श्रीयामुनाचार्य की मृत्यु हो गयी।
अश्रुपूरित नेत्रों और भावपूर्ण हृदय के साथ वहाँ पहुँचने पर रामानुज ने देखा कि श्रीयामुनाचार्य के दाहिने हाथ की तीन अंगुलियाँ मुड़ी हुई थीं। वहां पर उपस्थित सभी शिष्यों ने इस रहस्य को जानना चाहा । श्रीरामानुजाचार्य ने समझ लिया कि श्रीयामुनाचार्य इसके माध्यम से कुछ कहना चाहते हैं। उन्होंने उच्च स्वर में कहा, “मै अज्ञानमोहित जनों को नारायण के चरणकमलों की अमृतवर्षा और शरणागति में लगाकर सर्वदा निर्विशेषवाद से उनकी रक्षा करता रहूँगा”। उनके इतना कहते ही एक अंगुली खुलकर सीधी हो गयी।
रामानुज ने पुनः कहा, “मैं लोगों की रक्षा हेतु समस्त अर्थों का संग्रह कर मंगलमय परम तत्वज्ञान प्रतिपादक श्रीभाष्य की रचना करूंगा”। इतना कहते ही एक और अंगुली खुलकर सीधी हो गयी। रामानुज पुनः बोले, “जिन पराशर मुनि ने लोगों के प्रति दयावश जीव, ईश्वर, जगत, उनका स्वाभाव तथा उन्नति का उपाय स्पष्ट रूप से समझाते हुए विष्णु-पुराण की रचना की, उनके ऋण का शोधन करने के लिए मै किसी दक्ष एवं महान भक्त शिष्य को उनका नाम दूंगा।”
रामानुज के इतना कहते ही अंतिम अंगुली भी खुलकर सीधी हो गयी। यह देखकर सब लोग बड़े विस्मित हुए और इस बात में किसी को संदेह नहीं रहा कि यह युवक यथासमय आलवन्दार (श्रीयामुनाचार्य) का आसन ग्रहण करेगा। श्रीरामानुजाचार्य ने ‘ब्रह्मसूत्र’, ‘विष्णुसहस्त्रनाम’ और अलवन्दारों के ‘दिव्य प्रबन्धम्’ की टीका कर श्रीयामुनाचार्य को दिए गए तीन वचनों को पूरा किया।
श्रीरामानुचार्य गृहस्थ थे, किन्तु जब इन्होंने देखा कि गृहस्थी में रहकर अपने उद्देश्य को पूरा करना कठिन है, तब इन्होंने गृहस्थ आश्रम को त्याग दिया और श्रीरंगम जाकर संन्यास धर्म की दीक्षा ले ली। इनके गुरु श्रीयादव प्रकाश को अपनी पूर्व करनी पर बड़ा पश्चात्ताप हुआ और वे भी संन्यास की दीक्षा लेकर श्रीरंगम चले आये और श्रीरामानुजाचार्य की सेवा में रहने लगे। आगे चलकर उन्होंने गोष्ठीपूर्ण से दीक्षा ली।
गोष्ठीपूर्ण एक परम धार्मिक विद्वान् थे। गोष्ठीपूर्ण दीक्षा लेने और मन्त्र प्राप्त करने के लिए श्रीरामानुजाचार्य उनके पास गए। गोष्ठी पूर्ण ने उनके आने का आशय जानकर कहा, “किसी अन्य दिन आओ तो देखा जायेगा।” निराश होकर रामानुज अपने निवास स्थान को लौट आये। श्रीरामानुज इसके बाद फिर गोष्ठिपूर्ण के चरणों में उपस्थित हुए, परन्तु उनका उद्देश्य सफल नहीं हुआ। इस प्रकार अट्ठारह बार लौटाए जाने के बाद गुरुदेव ने रामानुजाचार्य को अष्टाक्षर नारायण मंत्र (‘ऊँ नमः नारायणाय’) का उपदेश देकर समझाया- वत्स! यह परम पावन मंत्र जिसके कानों में पड़ जाता है, वह समस्त पापों से छूट जाता है। मरने पर वह भगवान नारायण के दिव्य वैकुंठधाम में जाता है। यह अत्यंत गुप्त मंत्र है, इसे किसी अयोग्य को मत सुनाना क्योंकि वह इसका आदर नहीं करेगा। गुरु का निर्देश था कि रामानुज उनका बताया हुआ मन्त्र किसी अन्य को न बताएं। किंतु जब रामानुज को ज्ञात हुआ कि मन्त्र के सुनने से लोगों को मुक्ति मिल जाती है तो वे मंदिर की छत पर चढ़कर सैकड़ों नर-नारियों के सामने चिल्ला-चिल्लाकर उस मन्त्र का उच्चारण करने लगे। यह देखकर क्रुद्ध गुरु ने इन्हें नरक जाने का शाप दिया। इस पर रामानुज ने उत्तर दिया— यदि मन्त्र सुनकर हज़ारों नर-नारियों की मुक्ति हो जाए तो मुझे नरक जाना भी स्वीकार है। रामानुज का जवाब सुनकर गुरु भी प्रसन्न हुए।
वृद्धावस्था में रामानुजाचार्य प्रतिदिन नदी पर स्नान करने जाया करते थे। वे जब स्नान करने जाते तो एक ब्राह्मण के कंधे का सहारा लेकर जाते और लौटते समय एक शूद्र के कंधे का सहारा लेते। वृद्धावस्था के कारण उन्हें किसी के सहारे की आवश्यकता है, यह बात तो सभी समझते थे किंतु आते समय ब्राह्मण का और लौटते समय शूद्र का सहारा सबकी समझ से परे था। उनसे इस विषय में प्रश्न करने का साहस भी किसी में न था। सभी आपस में चर्चा करते कि वृद्धावस्था में रामानुजाचार्य की बुद्धि भ्रष्ट हो गई है। नदी स्नान कर शुद्ध हो जाने के बाद अपवित्र शूद्र को छूने से स्नान का महत्व ही भला क्या रह जाता है? शूद्र का सहारा लेकर आएं और स्नान के बाद ब्राह्मण का सहारा लेकर जाएं तो भी बात समझ में आती है। एक दिन एक पंडित से रहा नहीं गया, उसने रामानुजाचार्य से पूछ ही लिया- प्रभु आप स्नान करने आते हैं तो ब्राह्मण का सहारा लेते हैं किंतु स्नान कर लौटते समय शूद्र आपको सहारा देता है। क्या यह नीति के विपरीत नहीं है? यह सुनकर आचार्य बोले- मैं तो शरीर और मन दोनों का स्नान करता हूं। ब्राह्मण का सहारा लेकर आता हूं और शरीर का स्नान करता हूं किंतु तब मन का स्नान नहीं होता क्योंकि उच्चता का भाव पानी से नहीं मिटता, वह तो स्नान कर शूद्र का सहारा लेने पर ही मिटता है। ऐसा करने से मेरा अहंकार धुल जाता है और सच्चे धर्म के पालन की अनुभूति होती है।
श्रीरामानुजाचार्य ने भक्तिमार्ग का प्रचार करने के लिये सम्पूर्ण भारत की यात्रा की। इन्होंने भक्तिमार्ग के समर्थन में गीता और ब्रह्मसूत्र पर भाष्य लिखा। वेदान्त सूत्रों पर इनका भाष्य श्रीभाष्य के नाम से प्रसिद्ध है। इनके द्वारा चलाये गये सम्प्रदाय का नाम भी श्रीसम्प्रदाय है। इस सम्प्रदाय की आद्यप्रवर्तिका श्रीमहालक्ष्मी जी मानी जाती हैं। श्रीरामानुजाचार्य ने देश भर में भ्रमण करके लाखों लोगों को भक्तिमार्ग में प्रवृत्त किया। यात्रा के दौरान अनेक स्थानों पर आचार्य रामानुज ने कई जीर्ण-शीर्ण हो चुके पुराने मंदिरों का भी पुनर्निमाण कराया। इन मंदिरों में प्रमुख रुप से श्रीरंगम्, तिरुनारायणपुरम् और तिरुपति मंदिर प्रसिद्ध हैं। इनके सिद्धान्त के अनुसार भगवान विष्णु ही पुरुषोत्तम हैं। वे ही प्रत्येक शरीर में साक्षी रूप से विद्यमान हैं। भगवान नारायण ही सत हैं, उनकी शक्ति महा लक्ष्मी चित हैं और यह जगत उनके आनन्द का विलास है। भगवान श्रीलक्ष्मीनारायण इस जगत के माता-पिता हैं और सभी जीव उनकी संतान हैं।
श्री रामानुजाचार्य १२० वर्ष की आयु तक श्रीरंगम में रहे । वृद्धावस्था में उन्होंने भगवान् श्री रंगनाथ जी से देहत्याग की अनुमति लेकर अपने शिष्यों के समक्ष अपने देहावसान के इच्छा की घोषणा कर दी । शिष्यों के बीच घोर संताप फ़ैल गया और सभी उनके चरण कमल पकड़कर अपने इस निर्णय का परित्याग करने की याचना करने लगे।
इसके तीन दिन पश्चात श्री रामानुजाचार्य शिष्यों को अपने अंतिम निर्देश देकर इस भौतिक जगत से वैकुण्ठ को प्रस्थान कर गए ।
— श्री रामानुजाचार्य के अपने शिष्यों को दिए गए अन्तिम निर्देश : —
१) सदैव ऐसे भक्तों का संग करो जिनका चित्त भगवान् के श्री चरणों में लगा हो और अपने गुरु के समान उनकी सेवा करो ।
२) सदैव वेदादि शास्त्रों एवं महान वैष्णवों के शब्दों में पूर्ण विश्वास रखो ।
३) काम, क्रोध एवं लोभ जैसे शत्रुओं से सदैव सावधान रहो, अपनी इंद्रियों के दास न बनो ।
४) भगवान् श्री नारायण की पूजा करो और हरिनाम को एकमात्र आश्रय समझकर उसमे आनंद अनुभव करो ।
५) भगवान् के भक्तों की निष्ठापूर्वक सेवा करो क्योंकि परम भक्तों की सेवा से सर्वोच्च कृपा का लाभ अवश्य और अतिशीघ्र मिलता है ।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2021/05/Ramanujacharya-Biography-Hindi.jpg307547Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2021-05-18 04:02:312021-05-18 04:03:43श्री रामानुजाचार्य जयंती विशेष: आचार्य रामानुज का जीवन परिचय
जीवन और मृत्यु के योग में उलझती ये दुनिया आखिर क्यों भूल जाती है कि जीवन और मृत्यु के बीच मे एक जिंदगी भी है जिसको जीने के लिये धरती लोक में जन्म लेने वाले तेरे मेरे के चक्कर में आखिर क्यों भूल जाते हैं कि ना तो वो कुछ लेकर आये थे ना ही कुछ लेकर जायेगे यह बात वर्ल्ड ह्यूमेन राइट ऑबजर्वर की वर्ल्ड महिला विंग निदेशक प्रीति धारा ने पंचकूला की दबंग पत्रकार सुधा जग्गा के कोरोना वायरस के कारण हुई आकस्मिक निधन पर उन्हें अश्रुल श्रद्धांजलि देते हुए प्रेसविज्ञप्ति जारी करते हुए कही ।
उन्होंने कहा कि 6 वर्ष पूर्व उनकी मुलाकात सुधा जग्गा से एक प्रोग्राम के तहत हुई थी और जब उनकी जिंदगी के बारे में पता चला कि सुधा जग्गा ने अपनी जिंदगी में कई कठनाइयों का सामना कर लोगो के दिलो में जो स्नेह अपना बना रखा था उनके इसी स्नेह के कारण उनका इस प्रकार से साथ छोड़ चले जाने से पंचकूला का हर शख्स जिसने उनके साथ कार्य किया था गमगीन हो ये ही बात कर रहा है कि सुधा जग्गा इस जहान से ऐसे अपने कार्यों को पूर्ण किये बिना कैसे जा सकती है ।उनकी मृत्यु को पंचकूला निवासी विश्वास नही कर पा रहे हैं ।
1969 को मलोट में पैदा हुई सुधा जग्गा का जीवन बचपन से ही सँघर्षमय गुजरा था । माता – पिता के इलावा एक छोटा भाई सुधीर जग्गा है जिससे उन्हें बहुत लगाव रहा और उस्की हर खुशी के लिए किसी से भी वो लड़ पड़ती थी उनका वैवाहिक जीवन भी सँघर्ष मई रहा । इतनी कठनाईयो के बीच उन्होने एक पुत्र को जन्म दिया । वैवाहिक जीवन ठीक ना होने के कारण उन्होंने अपने पुत्र अनीश जग्गा को साथ लेकर पति का घर छोड़ दिया ।और पंचकूला चली आई और अपने पुत्र के भविष्य को देखते हुए अपना पहला कार्य बर्फ की फैक्ट्री लगा कर शुरू किया । जमीनी सत्र से जुड़ी सुधा जग्गा ने कभी अपने कार्य को छोटा बड़ा नही समझा और अपनी पूरी मेहनत और लगन से अपने कार्यों को किया ।
प्रीति धारा ने कहा कि अगर उनके जीबन पर कोई लिखना भी चाहे तो अल्फ़ाज़ कम पड़ जाते हैं । सुधा जग्गा ने अपने जीवन का सिर्फ एक ही लक्ष्य बना रखा था कि वो किसी भी व्यक्ति व महिला के खिलाफ कभी भी अन्याय नही होने देना चाहती थी चाहे वो अपना हो या पराया सबके दुख दर्द में वो हमेशा साथ चली उन्होंने अपनी एक संस्था चिराग कला अकादमी भी शुरू की जिसमे उन्होंने बच्चों व कला प्रेमियों के हुनर को आगे लाने के लिए एक मंच दिया ताकि कला प्रेमियों की कला को लोगो के सामने ला सके । मशहूर कॉमेडियन खयाली सहारण को भी चिराग कला अकादमी के बैनर तले पहला मंच उन्होंने ही दिया ।
उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना खुद का चेंनल 8 को शुरू कर अपनी एक नई पारी के माध्यम से शुरू किया और सरकार द्वारा जनता के लिए दी जा रही सुविधाएं जन जन तक पंहुचाने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों से भी टकराने की हिम्मत जुटा सबको न्याय दिलवाया । ये ही कारण था कि सुधा जग्गा प्रशासनिक अधिकारियों के साथ साथ हर फील्ड से जुड़े कर्मचारियों की चहेती बन गई थी इतने कम समय में जहां वो सबकी चहेति बन चुकी थी वहीं कुछ लोग उनकी इस कामयाबी से नाखुश लोगो ने उन्हें गिराने की बहुत कोशिश की लेकिन वो कभी भी डगमगाई नही ओर अपने होंसले से वो हमेशा सँघर्ष करती रही ।यहाँ तक कि उनके पारिवारिक जान पहचान वाले अपने उन्हें गिराने में लगे रहे लेकिन वो कभी भी डगमगाई नहीं
प्रीति धारा ने बतलाया कि समाज की सेवा के साथ साथ वो अपने बेटे और भाई से बहुत प्यार करती थी लेकिन हर परिवार में कोई कोई समस्या जरूर होती है जो कि उनके परिवार में भी थी । ओर पिछले काफी समय से सुधा जग्गा परेशान चल रही थी । जीवन लीला समाप्त होने से पहले यानी लोकडाउन के तहत वो घर घर जा जरूरत मन्दो की जरूरत पूरी करने के लिए सुधा जग्गा उनकी जरूरत पूरी करने में लगी रही और खुद कोरोना की शिकार हो गई ।एक तो कोरोना उस पर घर की समस्याओ ने उनके होंसले कमजोर कर दिये जिस कारण वो हमारे बीच नही रहीं ।
वर्ल्ड ह्यूमेन राइट ऑबजर्वर की वर्ल्ड चेयरपर्सन राजश्री शर्मा ,वर्ल्ड निदेशक यतीश शर्मा , धारा परिचय फाउंडेशन के महासचिव आकाशदीप , वर्ल्ड ह्यूमेन राइट के राष्ट्रीय महासचिव अरुण सोंधी , राष्ट्रीय लीगल सेल की डायरेक्टर पायल धुपर , ब्रेंड अम्बेसडर रितू वर्मा,आचार्य राजीव शर्मा , पत्रकार राजकुमार राणा ,दिव्या , वरिष्ठ पत्रकार सुभाष शर्मा आदि महानुभाव ने उनके निधन पर गहरा शोक प्रकट किया ।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2021/05/bc99bae1-63d8-49e8-9d9b-a29364ed4aa7.jpg712770Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2021-05-18 03:31:372021-05-18 03:32:03रुलाएंगे तुम्हे वही लोग — जो तुम्हें सबसे प्यारे हैं
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