कहीं माध्यम वर्ग को समाप्त करने कि साज़िश तो नहीं कोरोना?
कोरोना के बढ़ते हुए मामलों को देख कर राजनैतिक कार्यक्रमों में जहां भीड़ होती है उनकी विवेचना और उन पर रोक की कार्रवाई न करके केवल बाजार बंद लॉकडाउन कर्फ्यू पर निर्णय हो जाता है।
सोशल साइट पर और ग्रुपों में संचालक समाजसेवा करने वालों द्वारा ऐसा माहौल बनाया जाता है कि लॉकडाउन हो जाए। बड़ी तत्परता से ऐसे समाचार प्रसारित किए जाते हैं कि लॉक डाउन होने का हव्वा खड़ा हो जाए।
सबसे बड़ा प्रश्न है कि:
- क्या बाजार में दुकानदार व्यवसायी कोरोना रोग फैलाने में है?
- क्या उनके बाजार खोलने से कोरोना फैल रहा है? आखिर यह समीक्षा क्यों नहीं हो रही?
प्रशासनिक अधिकारी जब बैठक करता है तब व्यापारियों के अगुआ नेता हां में हां मिलाते हुए बाजार बंद का निर्णय,कम समय तक खोलने का निर्णय कर बैठते हैं। ये प्रतिनिधि उपखंड में बैठक में 5- 7 ही होते हैं। 15:20 मिनट की बैठक में यह निर्णय हो जाता है।
व्यापारियों ने दुकानदारों ने आपस में बैठकर कभी चर्चा की?कोरोना रोगी जिस किसी शहर में मिले हैं तो उनकी हिस्ट्री देखी गई? क्या उस हिस्ट्री में दुकान से या बाजार से कोरोनावायरस फैलना सामने आया?
व्यापारी प्रतिनिधि हां में हां मिलाते हुए बंद का,लोक डाउन कर्फ्यू निर्णय कर लेते हैं। व्यापारियों ने कभी भी उपखंड अधिकारी को लिखित में यह क्यों नहीं दिया कि केवल व्यापार पर अंकुश लगाया जाता है। राजनीतिक रैलियों चाहे वह किसी भी पार्टी की हो उन पर रोक क्यों नहीं है? उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई क्यों नहीं है? यह समीक्षा क्यों नहीं हो रही कि दुकानदार व्यापारी कोरोना फैलाते हैं या नहीं फैलाते? इसकी समीक्षा होनी चाहिए। रेलें,बसें चल रही है जिनमें भीड़ होती है। वहां कोरोना फैलने का खतरा अधिक है। यहां तक कि चिकित्सालयों में रजिस्ट्रेशन के लिए कतारों में,प्रचार रैलियों को झंडी दिखाने में,कोरोनावारियों को सम्मानित करने के फोटोशूट,मंत्रियोंअधिकारियों को भेंट ज्ञापन में कोई सोशल डिस्टेंस नहीं होता।
हिंदुस्तान में पिछले 1 साल से व्यापार बहुत बुरी हालत के अंदर है। दुकानदार व्यापारी जिनसे लाखों करोड़ों लोग परिवार पलते हैं। उनके कर्मचारी पलते हैं। वे सभी लोकडाउन और बंद से बेहाल हो जाते हैं। बाजार खुलते हैं तो अनेक प्रकार के कार्य भी मजदूरी और रोजगार साथ साथ चलते हैं। बाजार बंद होने से मजदूरी करने वाले रेहड़ी,थड़ी,खोमचे लगाने वाले भी प्रभावित होते हैं।
हिंदुस्तान में अधिकतर बल्कि कहना चाहिए कि 90% व्यापारी दुकानदार मध्यम वर्गीय और कम आय वाले परिवारों से जुड़े हुए हैं। बंद से उनकी रोजी रोटी पर संकट आता है तो मध्यमवर्गीय परिवारों के हर प्रकार के कार्य रुक जाते हैं। अच्छा खासा परिवार जमीन पर आ पड़ता है।
उसे घर चलाने के लिए और दुर्भाग्य से कोई बीमारी हो जाए तो कर्जा भी लेना पड़ जाता है।
यहां स्पष्ट रूप से कहा जाना चाहिए कि शासन और प्रशासन दुकानदारों पर अंकुश लगाने के लिए आगे रहने की प्रवृति और सोच बंद करे।
राजनीतिक रैलियों पर राजनेताओं के कार्यक्रमों की भीड़ पर किसी प्रकार की रोक नहीं लगाता।
बाजार में जो लोग मास्क के बिना घेरे में आते हैं उन पर तो जुर्माना लग जाता है लेकिन रैलियों की भीड़ पर किसी प्रकार का कोई जुर्माना नहीं लगता। आज तक शासन प्रशासन ने रैलियां निकालने वाले नेताओं के विरुद्ध कोई मुकदमे दर्ज नहीं किए और किसी को गिरफ्तार नहीं किया।
ये सारे सवाल व्यापारी नेताओं को लिखित में शासन प्रशासन को देना चाहिए।
आखिर अकेले व्यापारी और दुकानदार ही क्यों बंद और जुर्माने के शिकार किए जाते रहें जब उनकी कोई गलती नहीं है।
उनकी कोई भूल भी नहीं है तो हमेशा सरकार का कड़ा निर्णय व्यापारियों पर ही लागू क्यों होता है?
व्यापारी संगठनों को सोशल मीडिया चलाने वाले स्थानीय ग्रुप वालों से भी सीधा सवाल करना चाहिए और मिलना चाहिए कि वह ग्रुपों में केवल व्यापारियों के पीछे ही हाथ धो करके क्यों पड़े रहते हैं? व्यापार बंद कराने से दुकानें बंद कराने से सोशल मीडिया वालों को क्या लाभ है? यह कौनसी समाजसेवा है?
स्थानीय राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के विरुद्ध ग्रुपों में क्यों नहीं लिखते? व्यापारी ही उनको कमजोर नजर आते हैं इसलिए जब चाहे व्यापारियों के विरुद्ध माहौल बनाना शुरू कर दिया जाता है?
व्यापारी नेताओं को शासन प्रशासन के सामने सीधा एक ही सवाल करना चाहिए कि देश में कानून सबके लिए बराबर है। उनके अनुसार ही कार्रवाई हो। राजनीतिक रैलियों की राजनेताओं द्वारा भीड़ इकट्ठी करने की छूट है तो व्यापारी तो केवल अपनी दुकान करता है जिसके अंदर भीड़ नहीं होती। शासन प्रशासन से बात करने के लिए लिखित में देने के लिए वे प्रतिनिधि भेजे जाने चाहिए जो मुंह के ताला लगाए और हाथ बांधे हों। सरकार धार्मिक आयोजनों पर रोक लगाने से भी कतराती है यह साबित हो रहा है।
सरकार के पास नौकरियां जरूरत के अनुसार है नहीं और होती भी नहीं है। लोग निजी क्षेत्रों में रोजी रोटी पाते हैं।
कोरोना से बचाव के लिए तय गाइड लाईन का सख्ती से पालन हो और उस पर शासन प्रशासन को जोर लगाना चाहिए।
साभार : करणीदानसिंह राजपूत
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