5 अगस्त 2020 को जब राम मंदिर का शिलान्यास किया आ रहा है तो 1992 के आरसेवकों को अपने बीते दिनों की याद आह्लादित कर रही है। शास्त्री देवशंकर ने अपने संस्मरणों को डेमोक्रेटिकफ्रंट॰कॉम से सांझा किया।
शास्त्री देवशंकर चौबीसा, उदयपुर:
सन 1992 में मेरी पोस्टिंग सागवाड़ा में थी, वहां हम कनकमल जी भाईसाहब के सानिध्य में कार सेवा के लिए रवाना हुए। सागवाड़ा से हम बस द्वारा बांसवाड़ा के स्वयंसेवकों को साथ लेते हुए रतलाम पहुंचे। रतलाम से हमने रात को ट्रेन पकड़ी थी, जैसे ही ट्रेन में चढ़े ऐसा लगा कि जितने भी कारसेवक आ रहे थे, वह सभी अपने परिवार के लोग हैं, जगह नहीं थी, ऊपर-नीचे खचाखच ट्रेन भरी हुई थी। मैं जब ट्रेन के ऊपर सवारियों को बैठे हुए देखता तो ऐसा लगता है कि कैसे बैठते होंगे, परन्तु जब मैं स्वयं ट्रेन के ऊपर बैठा तो रामलला के भक्तो के मध्य बहुत ही आनंददायक माहौल था। “जय श्री राम” के नारे और गीतों को गाते हुए अयोध्याजी पहुंचे।
कनक जी के सानिध्य में हमने अपना अभियान जारी रखा, जैसा जैसा निर्देश मिलता रहा वैसे हम कार्य करते रहें। प्रातः काल से लेकर के विभिन्न संतो, महंतों और नेताओं के भाषण चल रहे थे और उनको सुन रहे थे और यह तय हुआ था कि सबसे पहले कौन जाएगा, सबसे आगे कौन खड़ा रहेगा, इसके लिए रात्रि में बैठक भी हुई थी। ऐसी स्थिति में जिस दिन ढांचा गिरा उस दिन ना तो भूख लग रही थी ओर ना ही प्यास लग रही थी, केवल एक ही लक्ष्य था और उसके लिए हम सभी वहां मैदान में डटे हुए थे। हमारी जरूरत पड़ जाए और हम भगवान श्रीराम और देश के लिए काम आये।
शाम को 5:00 बजे राष्ट्रपति शासन लग गया था। वहां ऐसी स्थिति में रात को पता चला कि सुबह जल्दी उठते ही सुबह 4:00 बजे हमको उठा दिया गया और कहा कि यहां अयोध्याजी में कर्फ्यू लग चुका है तुरंत जितना जल्दी हो सकता है अयोध्याजी खाली करने के आदेश मिले। साथ ही पुलिस की घोषणा भी हो रही थी कि आप तुरंत अयोध्याजी खाली करें। लेकिन प्रातः कालीन 4:00 बजे अपना आवास छोड़कर के निकले थे पुलिस वालों ने हमको रोका, परंतु माइक से मजिस्ट्रेट घोषणा की, कि जो कारसेवक घर की तरफ जा रहे हैं उन्हें किसी प्रकार से परेशान नहीं किया जाए और हमने वहाँ से ट्रेन पकड़ी। बाराबंकी में मुस्लिमों ने ट्रेन को रोका और पथराव किया। परन्तु हमारे साथ कुछ ऑर्मी के जवान थे, उन्होंने मुकाबला किया हवाई फायरिंग कर उन लोगों को भगाया । फिर धीरे से ट्रेन रवाना हुई ऐसे करते-करते हम घर पहुंचे।
जो हमने उठाया था एक लक्ष्य लेकर पहुंचे थे वह कल साकार होता दिख रहा है, भगवान श्रीराम का जन्म स्थान पर इस भव्य मंदिर के निर्माण के लिए 1992 में जो कुछ किया था वह अपनी आंखों से होता हुआ हम देख रहे हैं ।