राजीव गाँधी फाउंडेशन और हुयावै
यूपीए शासनकाल के दौरान चीन सरकार से 1 करोड़ रुपए से अधिक का दान लेने के बाद से ही राजीव गाँधी फाउंडेशन (RGF) विवादों में घिर गया है। इस फाउंडेशन के शीर्ष अधिकारियों में कॉन्ग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और राहुल गाँधी के नाम शामिल हैं। आपको बताते है कि कैसे राजीव गाँधी फाउंडेशन और चीन के बीच इस तरह का संदेहपूर्ण संबंध 2018-2019 तक जारी रहा।
वर्ष 2018-19 की राजीव गाँधी फाउंडेशन की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, भारती फाउंडेशन उन संगठनों में से एक था, जिसने इसे दान किया था। उस समय भारती फाउंडेशन Huawei के साथ भी पार्टनरशिप में था, जिसके चीन के साथ व्यापक संबंध हैं। वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2018-19 में राजीव गाँधी फाउंडेशन में अनुदान और दान से कुल 95,91,766 रुपए की आय हुई थी।
इससे पहले 2020 में, अमेरिका में ट्रम्प प्रशासन ने Huawei और उसके आपूर्तिकर्ताओं को अमेरिकी प्रौद्योगिकी और सॉफ्टवेयर तक पहुँचने से रोक दिया था। अमेरिका ने यह स्पष्ट कर दिया है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से व्यापक संबंध होने के कारण Huawei उनकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है। इसी तरह के कारणों के लिए, यूनाइटेड किंगडम भी अपने 5G नेटवर्क से Huawei पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रहा है।
Huawei से उत्पन्न होने वाला खतरा काफी समय से स्पष्ट है। मगर फिर भी कॉन्ग्रेस के शीर्ष पदाधिकारी राजीव गाँधी फाउंडेशन के लिए 2018-2019 के अंत कर एक ऐसे NGO से धन लेते रहे, जिसकी Huawei के साथ पार्टनरशिप थी।
भारती फाउंडेशन द्वारा गृह मंत्रालय को प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों से यह भी पता चलता है कि इसे कतर फाउंडेशन एंडोमेंट से वित्त वर्ष 2018-19 में लगभग 14 करोड़ रुपए मिले थे। बता दें कि कतर फाउंडेशन एक प्राइवेट चैरिटी संस्थान है, जो पूर्व अमीर शेख हमद बिन खलीफा अल थानी और उनकी पत्नी शेखा मोझा बिंत नासिर द्वारा स्थापित किया गया था।
हालाँकि यह स्पष्ट नहीं है कि भारती फाउंडेशन ने राजीव गाँधी फाउंडेशन को कितनी राशि दान की थी। यहाँ पर यह भी याद दिला दें कि इस अवधि के दौरान राजीव गाँधी फाउंडेशन, अमन बिरादरी ट्रस्ट के साथ पर्टनरशिप में था, जिसकी स्थापना हर्ष मंदर के द्वारा की गई थी, जो कि ‘एक्टिविस्ट’ है और उस संगठन का सदस्य है, जो इटालियन सीक्रेट सर्विस के साथ काम करता है।
इतनी ही नहीं, कॉन्ग्रेस का यहूदी अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस के साथ भी काफी नजदीकी संबंध रहा है। बता दें कि जॉर्ज सोरोस का विदेश के आंतरिक मामलों में दखल देने का इतिहास रहा है। उस पर कई देशों द्वारा उनके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया गया है। भारत में, जॉर्ज सोरोस ने कई भारतीय गैर सरकारी संगठनों के अपने धन के माध्यम से कॉन्ग्रेस पार्टी के साथ काफी करीबी संबंध स्थापित किए।
साल 2007-08 के लिए राजीव गाँधी फाउंडेशन की वार्षिक रिपोर्ट में Human Rights Law Network (HRLN) को पार्टनर बताया गया। 2014-15 में विदेशी दान केवल Human Rights Law Network के लिए उपलब्ध हैं, इसलिए, हम यह सुनिश्चित नहीं कर सकते हैं कि संगठन को विदेशी धन प्राप्त हो रहा था, हालाँकि यह राजीव गाँधी फाउंडेशन के साथ पार्टनरशिप में था। लेकिन इसकी FCRA सबमिशन बताती है कि इसे जॉर्ज सोरोस के ओपन सोसाइटी संस्थान से बड़ी मात्रा में धनराशि प्राप्त हुई है।
ओपन सोसाइटी इंस्टीट्यूट के अलावा, एचआरएलएन को ईसाई मिशनरी संगठनों और विदेशी सरकारों से भी भारी धनराशि मिली है। HRLN भी नक्सल से जुड़े संगठनों के साथ भारतीय राजद्रोह कानूनों के खिलाफ अभियान चला रहा है और रोहिंग्याओं को भी मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान कर रहा है, जो इस देश में अवैध रूप से रह रहे हैं।
आरजीएफ अपने सिस्टर ऑर्गेनाइजेशन राजीव गाँधी चैरिटेबल ट्रस्ट (RGCT) के माध्यम से क्लिंटन फाउंडेशन से जुड़ा हुआ है। जबकि सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी के अलावा कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता भी RGF में शीर्ष अधिकारी हैं। केवल माँ-बेटे की जोड़ी पार्टी के शीर्ष अधिकारियों में आरजीसीटी में न्यासी बोर्ड में दिखाई देती है।
आरजीसीटी की वेबसाइट के अनुसार, एक अन्य सिस्टर ऑर्गेनाइजेशन ने रायबरेली और अमेठी जिलों के भीतर 31 ब्लॉकों में डायरिया के प्रबंधन पर समुदाय के सदस्यों को प्रशिक्षित करने के लिए CHAI के साथ पार्टनरशिप की।
यह स्पष्ट है कि जॉर्ज सोरोस के साथ नेहरू-गाँधी परिवार के व्यापक संबंधों का भारत और भारतीयों के लिए गहरा प्रभाव है। हम अपेक्षाकृत निश्चित हो सकते हैं कि जब तक नेहरू-गाँधी परिवार कॉन्ग्रेस पार्टी पर शासन करना जारी रखेगा, भारतीय राष्ट्रवाद का बचाव करने के लिए उस पर भरोसा नहीं कर सकते। पिछले कुछ वर्षों में, कॉन्ग्रेस के व्यवहार से यह बात सामने आई है कि वह केवल सत्ता की परवाह करती है, उन्हें राष्ट्र की या लोगों की चिंता नहीं है।
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