Wednesday, December 25

‘देशी आंदोलन’ मात्र बोलने या सुनने से ही राष्ट्र भक्ति की भावना जागृत होना हम सब के लिए स्वाभविक सी बात है, स्वदेशी वस्तुओं के उत्पादन व बिक्री से कोई अन्य वर्ग लाभान्वित हो या शायद न भी हो परन्तु आम जनता को इसका आर्थिक व सामाजिक दृष्टि से लाभ सीधे तौर पर हो सकता है। हो भी क्यों न पराधिनता के सफ़र में स्वदेशी आंदोलन ने अपनी विशेष भूमिका निभाई है। तत्कालीन परिस्थितियों में इस रणनीति के अंतर्गत ब्रिटेन में निर्मित उत्पादों का बहिष्कार करना था तथा स्वदेश में बने उत्पाद का अधिकाधिक प्रयोग करके अंग्रेजी हकूमत को नुकसान पंहुचाना व भारत के लोगों के लिए रोजगार का सृजन करना स्वदेशी आंदोलन का एकमात्र उद्देश्य था। पराधिनता की विषमताओं में भारतवासियों के लिए यह सब एक बहुत बड़ी चुनौती रही होगी क्योंकि हम जिस शासन के आधीन हो और उसी हकूमत के द्वारा निर्मित वस्तुओं का बहिष्कार कर तत्कालीन शासन की आर्थिक पृष्टभूमि पर अंकुश लगाने का कार्य करना सच में साहसपूर्ण था। परन्तु वर्तमान के परिदृश्य में हालात विपरीत है।

सुशील पंडित (पत्रकार), यमुनानगर – जून 18

सुशील पंडित

सोमवार रात्रि को भारत चीन सीमा पर हुुुई हिंसक झड़प में जहाँ हमारे 20 जवान शहीद हुए वहीं एक बार फिर से चीन के इस घिनौने कृत्य नेे सम्पूूर्ण भारत के नागरिकों के समक्ष चीन का अमानवीय चेहरा उजागर हुआ। ऐसा क्यों होता है कि जब हम मानसिक या शारीरिक रूप किसी की प्रताड़ना का शिकार होते हैं तब हम कुछ क्षण के लिए उसका विरोध करते हैं परन्तु परिस्थिति सामान्य होने पर हम सहज रूप से सब भूल कर फिर से उसी धारा प्रवाह में बहने लगते हैं। मेरे इस लेख का एकमात्र उद्देश्य है आप सभी का ध्यान केंद्रित करना कि वर्तमान में स्वदेशी आंदोलन कितना सार्थक है और यदि नही है तो यह जिम्मेदारी किसकी है। क्या केवल आम जनता की या फिर वर्तमान सत्ता या पूर्व में सत्ता सुख भोग चुके राजनीतिक दल या पूंजीपतियों की।

‘देशी आंदोलन’ मात्र बोलने या सुनने से ही राष्ट्र भक्ति की भावना जागृत होना हम सब के लिए स्वाभविक सी बात है, स्वदेशी वस्तुओं के उत्पादन व बिक्री से कोई अन्य वर्ग लाभान्वित हो या शायद न भी हो परन्तु आम जनता को इसका आर्थिक व सामाजिक दृष्टि से लाभ सीधे तौर पर हो सकता है। हो भी क्यों न पराधिनता के सफ़र में स्वदेशी आंदोलन ने अपनी विशेष भूमिका निभाई है। तत्कालीन परिस्थितियों में इस रणनीति के अंतर्गत ब्रिटेन में निर्मित उत्पादों का बहिष्कार करना था तथा स्वदेश में बने उत्पाद का अधिकाधिक प्रयोग करके अंग्रेजी हकूमत को नुकसान पंहुचाना व भारत के लोगों के लिए रोजगार का सृजन करना स्वदेशी आंदोलन का एकमात्र उद्देश्य था। पराधिनता की विषमताओं में भारतवासियों के लिए यह सब एक बहुत बड़ी चुनौती रही होगी क्योंकि हम जिस शासन के आधीन हो और उसी हकूमत के द्वारा निर्मित वस्तुओं का बहिष्कार कर तत्कालीन शासन की आर्थिक पृष्टभूमि पर अंकुश लगाने का कार्य करना सच में साहसपूर्ण था। परन्तु वर्तमान के परिदृश्य में हालात विपरीत है आज हम हर प्रकार से सक्षम है  राष्ट्र पर किसी बाहरी शक्ति का दबाव या प्रभाव भी नही है। फिर ऐसा क्यों लगता है कि हमें अपने ही देश में अपने ही स्वदेशी उत्पादों की बिक्री के लिए जागरण के माध्यम से जागरूक किया जाने पर भी बहुत अच्छे परिणाम नजर नहीं आ रहे क्या कारण है कि हम अपने घर में निर्मित की जा रही वस्तुओं में भारत के लोगों की विश्वसनीयता नही हासिल कर पा रहे हैं। स्वदेशी जैसे अनुकरणीय औऱ उदात्त विचार के प्रति लोगों में गंभीरता नाममात्र ही दिखाई देती है। जहां एक ओर स्वदेशी जागरण मंच व अन्य संगठनों व संस्थाओं के माध्यम से दिन रात प्रचार प्रसार किया जा रहा है वहीं देश के कुछ वर्ग विदेशी कंपनियों की चाटूकारिता करते हुए निरन्तर आर्थिक विकास पर टिप्पणी करने में लगे हुए हैं।

मेरे इस लेख का आशय प्रधानमंत्री के द्वारा दिए गए भाषण “लोकल के लिए वोकल होने” से भी है परन्तु भाषण को वास्तविकता के पटल पर क्रियान्वित करना वास्तव मे चुनौती पूर्ण प्रयास होता है स्वदेशी की सार्थकता तो हमें स्वदेशी बन कर ही सिद्ध करनी होगी। विदेशी परिधान पहन कर स्वदेशीकरण की बात करना ये किसी भी भारतीय को शोभा नहीं देता एक ओर हमारे नेताओं अभिनेताओं के द्वारा स्वदेशी जागरण का अलख जगाया जा रहा है वहीं दूसरी तरफ वही नेता अभिनेता सुबह उठने से लेकर और रात को सोने तक के समय में विदेशी कंपनियों के द्वारा बनाई गई लग्जरी वस्तुओं का भोग करने से नही चूकते। क्या स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग केवल आम जनता के लिए है? यदि ऐसा है तो कोई अधिकार नहीं है इन वर्गों को बड़े बड़े मंचो से स्वदेशी का ढिंढोरा पीटने का।

चीन ने भारतीय बाजारों में अपनी पकड़ बना रखी है इसका कारण है कम गुणवत्ता वाले उत्पादों को कम मूल्यों पर लोगों की पहुंच तक उपलब्ध करना और यह सब तभी संभव होता है जब किसी राष्ट्र का बाजारीकरण की व्यवस्था सुस्त हो चीन के साथ भारत के व्यपारिक सम्बंध 80 के दशक से तेज हुए है तथा वर्तमान समय की बात की जाए तो चीन ने तो कभी भारतीय उत्पाद को महत्व नहीं दिया। भारत लगभग 160 देशों के साथ व्यपार करता है जिनसे 60 प्रतिशत घाटा होता है जिसमें अकेले चीन से 42 प्रतिशत का नुकसान हमें उठाना पड़ता है इस बात से यह प्रतीत होता है कि राजनैतिक व पूंजीपतियों की निजी महत्वाकांक्षा का ही परिणाम है जो हम वर्तमान में स्वदेशी आंदोलन को अधिक सफ़ल नही कर पाए। लोकल को वोकल बनाने के लिए बाजारीकरण की नीति में सुधार लाने की अति आवश्यकता है। विदेशी मानसिकता रखने वाले कुछ वर्गों को यदि छोड़ दिया जाए तो भारत का हर आम आदमी मौजूदा व्यवस्था से यही अपेक्षा रखता है कि उन्हें अपने ही देश में बनी हुई वस्तुएँ उनके बजट में उपलब्ध हो सके परन्तु बड़े बड़े शोरूम पर बिकने वाले स्वदेशी उत्पाद अपने अत्यधिक मूल्यों के कारण आम आदमी की पहुँच से कोसों दूर है, भारत में निर्मित यह उत्पाद विदेशी वस्तुओं के दामों की अपेक्षा कही अधिक है जिसके चलते यहाँ भी परिस्थिति स्वदेशी आंदोलन के प्रतिकूल हो जाती है कुछ ऐसे स्वदेशी उत्पाद बाजार में उपलब्ध है जो कहने में और देखने में स्वदेशी हो सकते परन्तु उनके मूल्यों पर ध्यान दिया जाए तो वह भी अन्य विदेशी वस्तुओं की भांति ही दिखाई देते हैं।

जो लोग,वर्ग या दल आन्तरिक रूप से विदेशी उत्पादों का उपयोग करते हैं या इन्हें बढ़ावा देने में लगे हुए हैं वह मानसिक रूप से आज भी ग़ुलाम ही कहे जा सकते हैं या संभवत ये सब  उन संस्थाओं या सगठनों से जुड़े हैं जो विदेशी कंपनियों को बढ़ावा देने के लिए चंदा प्राप्त कर रहे है। यदि स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग का केवल भाषण या सोशल मीडिया पर बखान न करके अपितु इन्हें वास्तविक जीवन में स्थान देंगे तो केवल देश की अर्थव्यवस्था ही ठीक नहीं होगी साथ ही लाखों बेरोजगारों को रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे स्थानीय प्रतिभा को आगे बढ़ने का मौका मिल सकता है। स्वदेशी केवल उत्पाद से जुड़ा विषय नही है यह वर्तमान भारत का आंदोलन भी है स्वदेशी के आभाव में राजनीतिक,आर्थिक,सांस्कृतिक और मानसिक स्वतंत्रता असंभव है। इस अभियान की सार्थकता तभी संभव हो सकती है जब सभी राजनैतिक दल सामाजिक सगठन व बुद्धिजीवी वर्ग के लोग एक मंच पर एकत्रित हो कर निजी स्वार्थ त्याग एक स्वर में स्वदेशी को बढ़ावा देने के लिए आवाज बुलंद करने का सकारात्मक प्रयास करेंगे।

केवल मात्र भाषण या विभिन्न प्रकार के मंचो पर परिचर्चा कर स्वदेशी आंदोलन को सफ़ल करना संभव नहीं है अपितु आम जनता व भारत के लघु व कुटीर उद्योगों से जुड़े लोगों के हितों को भी ध्यान में रखते हुए धरातल पर कार्य कर तथा वास्तविकता को आधार बनाकर ही “लोकल के लिए वोकल” का नारा सही दिशा में कारगर हो सकता है।