“कोरोना से डर नहीं लगता साहब…भूख से लगता है”……
समाज की वास्तविक स्थिति देखी तो यह प्रतीत हुआ कि किस लोकतंत्र की छाया में बैठ कर हमारा सम्पूर्ण समाज सविधान की चादर ओढ़े, सामाजिक समरसता के गीत गुनगुना रहा था। मैं किसी राजनैतिक पार्टी या धर्म विशेष की बात नहीं करना चाहता क्योंकि इनके बारे में बात करना इन प्रतिकूल परिस्थितियों में अंधे से रास्ता पूछने जैसा होगा।
सुशील पंडित, यमुनानगर
कोविड19 के प्रकोप ने सम्पूर्ण मानव जाति का परिदृश्य ही बदल कर रख दिया है। यह जो भी विकट समस्या महामारी के रूप में हमारे सामने मुँह खोले खड़ी है इसकी तो शायद हम में से किसी ने भी कल्पना भी नहीं की होगी।
जो भी वर्तमान में चल रहा है इससे यह तो बिल्कुल स्पष्ट हो चुका है कि हम सभी अभी तक एक ऐसा भ्रम से सराबोर जीवन व्यतीत कर रहे थे जो वास्तविकता से कोसों दूर है। आज जब समाज की वास्तविक स्थिति देखी तो यह प्रतीत हुआ कि किस लोकतंत्र की छाया में बैठ कर हमारा सम्पूर्ण समाज सविधान की चादर ओढ़े, सामाजिक समरसता के गीत गुनगुना रहा था। मैं किसी राजनैतिक पार्टी या धर्म विशेष की बात नहीं करना चाहता क्योंकि इनके बारे में बात करना इन प्रतिकूल परिस्थितियों में अंधे से रास्ता पूछने जैसा होगा। आज जब मैं अपनी रिपोटिंग के दौरान फील्ड में कार्य कर रहा था तो मैने देखा बहुत अधिक संख्या में लोग पैदल अपनी मंजिल की तलाश में चले जा रहे थे। जब मैंने उन्हें ध्यान से देखा तो प्रतीत हुआ वो तो सभी हिंदुस्तानी ही थे और शायद हमारे लोकतंत्र में भी बराबर के भागीदार, कुछ के थके-मांदे चहरो से तो सविधान भी पसीना बन कर टपक रहा था। और हाँ कुछ बच्चे भी थे, शायद हमारे देश के भविष्य में बनने वाले डॉक्टर, इंजीनियर, अधिवक्ता, व उच्च अधिकारी आदि पर अफ़सोस भूखे, थके और सहमे हुए थे। मातृशक्ति भी इस अंजान, परिणामरहित संघर्ष में कंधे से कंधा मिलाकर चल रही थीं। सभी के मन में एक ही प्रश्न था कि ये सब क्या हो रहा है? और क्यों हो रहा है?
मैं एक पत्रकार होने से पहले आम इंसान हूँ इसलिए उनमें से एक को पूछ बैठा, आप कहा से हो? उस गरीब के जवाब ने मुझे भी झकझोर कर रख दिया कहने लगा साहब भारत से ही हूँ क्या आप भी फ़ोटो लेने आए हो? और मैं स्तब्ध रह कर उस व्यक्ति(मजदूर) को देखता रहा क्योंकि उसकी बात का जवाब शायद मेरे पास नही था। इससे पहले मैं कुछ और बात करता उस हैरान परेशान श्रमिक ने मार्मिक शब्दों में कहा “साहब कोरोना से डर नहीं लगता, भूख से लगता है” जाहिर सी बात है यह बात उसने किसी बड़ी वजह से ही कही होगी। एक ओर शासन प्रशासन प्रवासी मजदूरों की जरूरतें पूरी करने की क़वायद में लगी है चाहें वो बड़े बड़े बजट के माध्यम से या फिर राजनीतिज्ञों के मुखारबिंद से डिबेट्स में सीना चौड़ा करके कहे गये आम आदमी के कानों में रस घोलने वाले शब्दों के माध्यम से। परन्तु अफ़सोस धरातल पर अब शून्य ही नजर आ रहा है। सभी श्रमिकों में मौजूदा हालात को लेकर असमंजस की स्तिथि बनी हुई है। इन प्रतिकूल परिस्थितियों की आंच में विपक्षी दलों के द्वारा भी ओछी राजनीति की रोटियां खूब सेकी जा रही है। बहरहाल जो भी हो मेरा यानि हर उस आम आदमी का यही प्रश्न है कि क्या कमी है और कहा कमी है अगर है तो उसे सुधारने का मौका सभी गलती करने वालों के पास शायद है अभी। हमारे देश में कोरोना जैसी महामारी ने अभी दस्तक दी है और मैं परमपिता परमात्मा से यह प्रार्थना भी करता हूँ कि अब बस और नही क्योंकि यहाँ शासन अभी पूरी तरह से परिपूर्ण नही हैंं जो रोते हुए लोगों के आँसू पोंछ सके। और न ही यह सतयुग है कि जो दो चार सच्चे नेताओं की देशभक्ति से सभी पीड़ाओ को पल भर में समाप्त कर दे।
किसी भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था ही वहाँ के सामाजिक जीवन की व्यवस्था को सुनिश्चित करती है। वर्तमान परिवेश में जो भी चल रहा है उसका निदान करना किसी भी विशेष राजनैतिक दल या विशेष समाज के हाथ में नही है लेकिन आपसी सामंजस्य स्थापित करके ही इस महामारी से लड़ने में हम सक्षम हो सकते हैं। हमें सभी की भावनाओं का आदर करना होगा वो चाहे इस देश का गरीब मजदूर हो या फिर राष्ट की अर्थव्यवस्था मजबूत करने वाला व्यपारी क्योंकि अगर लोकतंत्र है तो हम है और स्वस्थ लोकतंत्र में सामजिक समानता का अधिकार सभी को है। भविष्य के गर्भ में क्या है ये शायद किसी को नही पता। बहरहाल जो भी चल रहा है उसका सामना तो हम करेंगें और दूसरों को भी करने के लिए प्रेरित करने का सकारात्मक प्रयास करेंगे। अब बहुत हुआ किसी धर्म जाति पर कटाक्ष करने के यह खेल जो सिर्फ और सिर्फ इस दोगली राजनीति की उपज है।बुजुर्ग अक्सर कहते “शत्रु तब पहचानिए जब सुख हो निकट, मित्र तब जानिए जब परिस्थिति हो विकट ” भूतकाल तो चला गया जो हुआ नहीं पता परन्तु वर्तमान व भविष्य में अपने विवेक का प्रयोग करके स्वंम का और स्वस्थ, सुदृढ़,और सच्चे राष्ट्र का निर्माण करने में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें।
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